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लैमार्कियन वंशागति और एपिजेनेटिक्स विकास

  • 19 Jun 2025
  • 3 min read

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में चावल के पौधों में एपिजेनेटिक परिवर्तन के माध्यम से वंशागत शीत सहनशीलता की खोज जीन-बैप्टिस्ट लैमार्क के उस सिद्धांत की ऐतिहासिक पुष्टि है, जिसमें कहा गया था कि पर्यावरणीय प्रभाव आनुवंशिकता को प्रभावित कर सकते हैं — यद्यपि इस अवधारणा पूर्व में खारिज किया गया था, लेकिन अब आधुनिक विज्ञान द्वारा समर्थित है।

  • एपिजेनेटिक्स (Epigenetics) का तात्पर्य जीन अभिव्यक्ति में आने वाले उन वंशानुगत परिवर्तनों से है जो बाह्य कारकों के कारण होते हैं। ये कारक जीन को सक्रिय या निष्क्रिय कर देते हैं, लेकिन DNA अनुक्रम (DNA sequence) में कोई परिवर्तन नहीं करते।
  • लैमार्क का सिद्धांत (1809): इस सिद्धांत में प्रस्तावित किया गया था कि किसी जीव द्वारा अपने जीवनकाल में उपयोग, अनुपयोग या पर्यावरण के प्रभाव से प्राप्त लक्षण अगली पीढ़ी को विरासत में मिल सकते हैं।
    • यह सिद्धांत तब तक प्रमुख था जब तक डार्विन के प्राकृतिक चयन (1859) और मेंडल के वंशागति के नियमों ने इसे गलत साबित नहीं कर दिया।
    • एक अध्ययन में पाया गया कि चावल के पौधों को शीत के संपर्क में लाने से उनके जीन में एपिजेनेटिक परिवर्तन हुए, जिससे शीत सहनशीलता विकसित हुई और यह लक्षण पाँच पीढ़ियों तक वंशागत रहा।
  • लैमार्क के लिये वैज्ञानिक चुनौतियाँ:
    • डार्विन का प्राकृतिक चयन (1859): इसमें तर्क दिया गया कि आनुवंशिक विविधताएँ (अर्जित लक्षण नहीं), ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ के माध्यम से विकास को निर्देशित करती हैं।
    • वाइज़मैन का प्रयोग (1890 के दशक): बिना पूँछ वाले चूहों से सामान्य पूँछ वाले चूहों को जन्म दिया, जिससे अर्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धांत गलत साबित हुआ।
    • ग्रेगर जॉन मेंडल: इन्होंने दिखाया कि जीन (DNA) आनुवंशिकता के स्थिर इकाई हैं, न कि पर्यावरणीय अनुकूलन। 
  • एपिजेनेटिक्स का विकास:
    • रॉयल ब्रिंक का मक्का अध्ययन (1956): इसने दर्शाया कि केवल DNA अनुक्रम ही नहीं, बल्कि जीन अभिव्यक्ति भी वंशागत हो सकती है, जो गैर-DNA आधारित आनुवंशिकता को प्रदर्शित करता है।
    • आर्थर रिग्स की परिकल्पना (1975): इसने प्रस्तावित किया कि एपिजेनेटिक मार्क (DNA पर रासायनिक टैग) DNA अनुक्रम को बदले बिना भी लक्षणों को पीढ़ियों तक पहुँचा सकते हैं। DNA में उत्परिवर्तन की तुलना में एपिजेनेटिक मार्क्स को बदलना आसान होता है।

Theories_of_Evolution

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