इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

डायनासोर और पक्षियों के बीच संबंध

  • 10 Aug 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

डायनासोर और पक्षियों के बीच संबंध, कपाल विकास, एंडोथर्मिक एनिमल, थेरोपोड वंशावली

मेन्स के लिये:

डायनासोर और पक्षियों के बीच संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पक्षियों और डायनासोर के बीच संबंध के बारे में जानकारी दी गई है।

अनुसंधान की पद्धति:

  • शोधकर्त्ताओं ने 51 वर्तमान प्रजातियों की नाक की गुहाओं (Nasal Cavities) का विश्लेषण करने के लिये कंप्यूटेड टोमोग्राफी (Computed Tomography- CT) स्कैन और 3D पुनर्निर्माण सहित अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया।
    • इन प्रजातियों में पक्षी, स्तनधारी, सरीसृप (मगरमच्छ तथा कछुए सहित) और छिपकलियाँ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त शोधकर्त्ताओं ने जीवाश्मों के आधार पर एक प्रकार के थेरोपोड डायनासोर, वेलोसिरैप्टर (Velociraptor) की नाक गुहा का डिजिटल रूप से पुनर्निर्माण किया।
  • डायनासोर से पक्षियों तक कपाल विकास (Cranial Evolution- समय के साथ जीव के कपाल में परिवर्तन) की समझ बढ़ाने के लिये उन्होंने मुख्य रूप से नाक गुहा पर ध्यान केंद्रित किया।
  • उन्होंने इस संभावना का पता लगाया कि नाक गुहा मस्तिष्क को ठंडा करने और नियमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:

  • नाक गुहा का आकार और नियततापीयता:
    • पक्षियों और स्तनधारियों सहित एंडोथर्मिक (नियततापी या गर्मरक्त वाले) जानवरों में शीतरक्त वाले जानवरों की तुलना में उनके सिर के आकार के सापेक्ष बड़ी नाक गुहाएँ थीं।
    • इस आकार के अंतर ने नियततापीयता (Warm-Bloodedness) और नाक गुहा के आयामों के बीच एक संभावित संबंध का संकेत दिया।
  • श्वसन/रेस्पिरेटरी टर्बिनेट्स और ब्रेन कूलिंग:
    • नियततापी जानवरों ने अपनी नाक गुहाओं के भीतर एक जटिल संरचना का प्रदर्शन किया जिसे रेस्पिरेटरी टर्बिनेट (Respiratory Turbinate) के रूप में जाना जाता है। इस संरचना का एक प्राथमिक कार्य मस्तिष्क को ठंडा करना था।
      • इस खोज ने पहले की धारणा को चुनौती दी कि बड़ी नाक गुहाएँ मुख्य रूप से पूरे शरीर के चयापचय को सुविधाजनक बनाती हैं।
  • डायनासोर तथा पक्षियों के लिये विकासवादी निहितार्थ: 
    • थर्मोरेग्यूलेशन से पक्षियों और स्तनधारियों सहित गर्म रक्त वाले प्राणियों को लाभ हुआ होगा, जिससे उनके विकास पर प्रभाव पड़ा होगा।
    • इसके विपरीत वेलोसिरैप्टर की पुनर्निर्मित नाक गुहा ने एक विकसित शीतलन प्रणाली की कमी का संकेत दिया, जो थेरोपोड डायनासोर और आधुनिक पक्षियों के बीच थर्मोरेग्यूलेशन में अंतर का सुझाव देता है।
  • नासिका मार्ग पर मैक्सिला का प्रभाव: 
    •  वेलोसिरैप्टर में नासिका मार्ग का आकार मैक्सिला, निचले जबड़े की हड्डी से प्रभावित होता था।
    • उन्होंने प्रस्तावित किया कि थेरोपोड वंश में मैक्सिला में कमी के कारण नाक गुहा उनकी थर्मल विनियमन रणनीति के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण बन गया।

अध्ययन का महत्त्व:

  • अध्ययन ने मस्तिष्क को ठंडा करने में श्वसन टर्बाइनेट्स के संभावित कार्य को लेकर नवीन अंतर्दृष्टि प्रदान की और साथ ही शोधकर्त्ताओं ने अपनी परिकल्पनाओं को मान्य करने के लिये अधिक व्यापक शोध की आवश्यकता पर बल दिया।
  • शारीरिक अनुकूलन और पर्यावरणीय कारकों के बीच जटिल परस्पर क्रिया को समझना भविष्य के अध्ययन का मुख्य केंद्र बिंदु बना हुआ है।

गर्म रक्त तथा ठंडे रक्त वाले जानवरों में अंतर:

स्वरूप

गर्म रक्त वाले पशु (एंडोथर्म)

शीत-रक्त वाले पशु (एक्टोथर्म)

चयापचय

उच्च चयापचय दर

निम्न चयापचय दर

शारीरिक तापमान

पर्यावरण से स्वतंत्र शरीर के तापमान को अपेक्षाकृत स्थिर बनाए रखना

शरीर का तापमान बाहरी वातावरण के अनुसार बदलता रहता है

ऊर्जा स्रोत

शरीर के तापमान को बनाए रखने के लिये आंतरिक ताप उत्पादन (चयापचय) पर निर्भर रहना

थर्मोरेग्यूलेशन के लिये ऊष्मा के बाहरी स्रोतों पर निर्भर रहना

गतिविधि का स्तर

विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में सक्रिय हो सकते हैं

गतिविधि का स्तर तापमान से प्रभावित होता है; गर्म परिस्थितियों में प्राय: अधिक सक्रिय होते हैं

वातावरण के प्रति अनुकूलन क्षमता

शरीर के तापमान को नियंत्रित करने की अपनी क्षमता के कारण विविध वातावरण में रह सकते हैं

तापमान प्राथमिकताओं के आधार पर उनके आवास विकल्प सीमित हैं

प्रजनन दर

सामान्य रूप से उच्च ऊर्जा मांग के कारण प्रजनन दर कम होती है

कम ऊर्जा मांग के कारण प्रजनन दर अधिक हो सकती है

उदाहरण

स्तनधारी (मनुष्यों सहित), पक्षी

सरीसृप (जैसे साँप, छिपकली), उभयचर, अधिकांश मछलियाँ, अकशेरुकी (कुछ कीड़ों को छोड़कर)

चार्ल्स डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत:

  • परिचय:
    • चार्ल्स डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत जीव विज्ञान में एक मूलभूत अवधारणा है जो बताती है कि समय के साथ प्रजातियाँ कैसे बदलती हैं, साथ ही नई प्रजातियाँ कैसे उत्पन्न होती हैं।
    • डार्विन के विचारों ने पृथ्वी पर जीवन की समझ में क्रांति ला दी तथा प्रजातियों की विविधता को लेकर एक व्यापक स्पष्टीकरण प्रदान किया।
  • महत्त्वपूर्ण तत्त्व:
    • संशोधन के साथ वंश: डार्विन ने प्रस्तावित किया कि सभी प्रजातियों के पूर्वज समान हैं तथा प्रजातियाँ समय के साथ संशोधन के चलते वंश नामक प्रक्रिया के माध्यम से धीरे-धीरे बदलती हैं, जिसका अर्थ है कि मौजूदा प्रजातियों से नई प्रजातियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • प्राकृतिक चयन: डार्विन के सिद्धांत का केंद्रीय तंत्र प्राकृतिक चयन है। उन्होंने देखा कि प्रत्येक पीढ़ी में सीमित संसाधनों के कारण जीवित रहने की क्षमता से अधिक संतानें जन्म लेती हैं, परिणामस्वरूप अस्तित्व के लिये संघर्ष करना पड़ता है।
    • विविधता: किसी भी आबादी के भीतर लक्षणों में भिन्नताएँ होती हैं। इनमें से कुछ विविधताएँ वंशानुगत होती हैं, जिसका अर्थ है कि ये लक्षण संतानों में स्थानांतरित किये जा सकते हैं। 
    • अनुकूलन: ऐसे लक्षण वाले जीव जो अपने पर्यावरण के साथ अधिक अनुकूलित होते हैं, उनमें जीवित रहने और प्रजनन करने की संभावना अधिक होती है।
    • विशिष्टता: लंबे समय तक और क्रमिक परिवर्तनों के कारण आबादी के भीतर एक-दूसरे से इतनी भिन्नता आ जाती है कि वे परस्पर प्रजनन करना बंद कर देते हैं। इस स्थिति में नई प्रजातियों का निर्माण होता है।
  • प्रजातिकरण: आबादी इस प्रकार भिन्न हो सकती है कि वे अब विस्तारित अवधि में और प्रगतिशील परिवर्तनों के संचय के माध्यम से परस्पर प्रजनन नहीं कर सकती हैं। परिणामस्वरूप नई प्रजातियाँ निर्मित होती हैं।

कंप्यूटेड टोमोग्राफी(CT):

  • यह एक मेडिकल इमेजिंग तकनीक है जो एक्स-रे और उन्नत कंप्यूटर प्रसंस्करण के उपयोग से शरीर की विस्तृत क्रॉस-सेक्शनल छवियाँ बनाती है।
  • एक्स-रे की ही तरह यह शरीर की अंदरूनी संरचनाओं को दिखाती है लेकिन यह 1D, 2D छवि बनाने के बजाय, CT स्कैन से शरीर की दर्जनों से सैकड़ों तक छवियाँ लेता है।
  • नियमित एक्स-रे के माध्यम से चीजें स्पष्ट नहीं होने की स्थिति में सेवा प्रदाता CT स्कैन का उपयोग करते हैं।
  • उदाहरण के लिये शरीर की संरचनाओं की बेहतर समझ से लिये नियमित एक्स-रे का उपयोग पर्याप्त नहीं है।
  • CT स्कैन अधिक स्पष्टता और सटीकता से यह जानकारी प्रदान करने में मदद करता है।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2