प्रारंभिक परीक्षा
गूगल का प्रोजेक्ट सनकैचर
चर्चा में क्यों?
गूगल ने प्रोजेक्ट सनकैचर की घोषणा की है, जो अंतरिक्ष में सौर ऊर्जा से चलने वाले डेटा केंद्रों का परीक्षण करने के लिये एक दीर्घकालिक अनुसंधान पहल है, जिसका प्रथम प्रायोगिक प्रक्षेपण वर्ष 2027 में किया जाना प्रस्तावित हैं।
सारांश
- गूगल के प्रोजेक्ट सनकैचर का उद्देश्य अंतरिक्ष में सौर ऊर्जा से चलने वाले डेटा सेंटर को विकसित करना है, जिसके लिये AI चिप्स और लेजर-आधारित संचार से लैस उपग्रहों के समूह का उपयोग करके कक्षा में ही डेटा को संसाधित किया जाएगा।
- इस पहल का उद्देश्य पृथ्वी पर स्थित डेटा केंद्रों के बढ़ते ऊर्जा बोझ को कम करना, जलवायु-अनुकूल कंप्यूटिंग का समर्थन करना और बाह्य अंतरिक्ष संधि, 1967 के तहत डिजिटल और अंतरिक्ष शासन को नया रूप देना है।
गूगल का प्रोजेक्ट सनकैचर क्या है?
- परिचय: इस परियोजना का उद्देश्य उपग्रहों पर छोटे कंप्यूटिंग रैक तैनात करके अंतरिक्ष में सौर ऊर्जा से चलने वाले डेटा केंद्रों का परीक्षण करना है। गूगल, पृथ्वी की इमेजिंग करने वाली कंपनी प्लैनेट लैब्स के साथ साझेदारी में एक शिक्षण मिशन के हिस्से के रूप में, वर्ष 2027 की शुरुआत तक दो प्रोटोटाइप उपग्रहों को लॉन्च करने की योजना बना रहा है ।
- यह टेंसर प्रोसेसिंग यूनिट्स (TUP) पर निर्भर करेगा, जो गूगल की पेटेंटेड कस्टम चिप्स हैं जिन्हें उच्च मात्रा, कम परिशुद्धता वाली कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रोसेसिंग के लिये डिज़ाइन किया गया है, और डेटा सेंटर-स्तरीय गणना में सक्षम उपग्रहों के एक समूह में उपग्रहों को आपस में जोड़ने के लिये लेज़र-आधारित ऑप्टिकल लिंक का उपयोग करेगा।
- अंतरिक्ष में डेटा सेंटर का संचालन:
- सौर ऊर्जा उत्पादन: उपग्रह सतत सौर विकिरण का उपयोग करके कंप्यूटिंग सिस्टम को संचालित करेंगे, जिससे पृथ्वी-आधारित विद्युत पर निर्भरता कम होगी।
- ऑनबोर्ड AI कंप्यूटिंग: प्रत्येक उपग्रह में AI चिप्स (जैसे TPU/ GPU) होंगे, जो डेटा को सीधे अंतरिक्ष में प्रोसेस करेंगे, बजाय इसके कि सभी डेटा पृथ्वी पर भेजे जाऍं।
- उपग्रह समूह (Satellite Constellations): कई उपग्रह मिलकर वितरित डेटा सेंटर के रूप में कार्य करेंगे और कार्यभार को विभिन्न नोड्स में साझा करेंगे।
- उपग्रहों के बीच लेज़र संचार समूह के भीतर उच्च गति और कम विलंबता वाले डेटा स्थानांतरण को संभव बनाएगा।
- अंतरिक्ष में एज प्रोसेसिंग: उपग्रहों से प्राप्त डेटा को (जैसे पृथ्वी अवलोकन) कक्षा में ही प्रोसेस किया जाएगा, जिससे बैंडविड्थ आवश्यकताएँ और प्रतिक्रिया समय कम होगा।
- रेडिएशन-हॉर्डेंड सिस्टम: हार्डवेयर को रेडिएशन, निर्वात और तापमान की चरम परिस्थितियों को सहने के लिये डिज़ाइन किया जाएगा।
- पृथ्वी पर डाउनलिंक: प्रोसेस किया गया डेटा चयनित रूप से ग्राउंड स्टेशनों को भेजा जाएगा, जिससे डेटा लोड और विलंब (Latency) की चुनौतियाँ कम होंगी।
- अंतरिक्ष में डेटा सेंटर का महत्त्व:
- यह पृथ्वी-आधारित डाटा सेंटर पर दबाव को कम करता है, जिससे AI के तेज़ी से बढ़ते दौर में विद्युत और जल की मांग कम होती है।
- गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक डेटा सेंटर से विद्युत की मांग 165% तक बढ़ सकती है।
- यह स्वच्छ, सौर-ऊर्जा संचालित कंप्यूटिंग को सक्षम बनाता है, जिससे जलवायु शमन प्रयासों को समर्थन मिलता है।
- यह डेटा संप्रभुता से जुड़ी सीमाओं के संभावित समाधान प्रदान करता है, क्योंकि बाह्य अंतरिक्ष 'आउटर स्पेस ट्रीटी, 1967' के तहत किसी भी राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।
- यह पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाओं, केबल कटने और विद्युत बाधाओं के विरुद्ध डिजिटल अवसंरचना के अनुकूलन को बढ़ाता है।
- यह भावी पीढ़ी की अंतरिक्ष-आधारित डिजिटल अवसंरचना की दिशा में परिवर्तन का संकेत देता है, जिसका वैश्विक AI, क्लाउड कंप्यूटिंग और शासन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
- यह पृथ्वी-आधारित डाटा सेंटर पर दबाव को कम करता है, जिससे AI के तेज़ी से बढ़ते दौर में विद्युत और जल की मांग कम होती है।
डेटा केंद्र
- परिचय: डेटा केंद्र विशेषीकृत सुविधाएँ हैं, जिनमें सर्वर, स्टोरेज, नेटवर्किंग तथा विद्युत आपूर्ति, शीतलन और सुरक्षा के सहायक प्रणालियों के माध्यम से डिजिटल डेटा की विशाल मात्रा का भंडारण, प्रसंस्करण और प्रबंधन किया जाता है।
- ये क्लाउड कंप्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और अन्य डिजिटल सेवाओं के लिये विश्वसनीय तथा स्केलेबल अवसंरचना प्रदान करते हैं।
- अंतरिक्ष में डेटा केंद्रों की ओर वैश्विक प्रगति:
- ओपनAI (सैम ऑल्टमैन): सौर ऊर्जा से संचालित, डायसन स्फियर जैसे नेटवर्क के रूप में AI डेटा केंद्रों का प्रस्ताव।
- Nvidia: H100 GPU से युक्त स्टारक्लाउड उपग्रह का प्रक्षेपण, जिसे एआई कार्यभार के लिये अनुकूलित किया गया है।
- लोनस्टार डेटा होल्डिंग्स: 8 TB SSD स्टोरेज वाले 1 किलोग्राम के मिनी डेटा केंद्र को चंद्रमा पर भेजा गया।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. प्रोजेक्ट सनकैचर क्या है?
प्रोजेक्ट सनकैचर, उपग्रह-आधारित AI कंप्यूटिंग प्रणालियों का उपयोग करके अंतरिक्ष में सौर-ऊर्जा संचालित डेटा केंद्रों का परीक्षण करने हेतु गूगल की एक शोध पहल है।
2. अंतरिक्ष में डेटा केंद्र कैसे कार्य करेंगे?
ये निरंतर सौर ऊर्जा, ऑनबोर्ड AI चिप्स, उपग्रह नक्षत्र और वितरित कंप्यूटिंग के लिये लेज़र-आधारित अंतर-उपग्रह लिंक का उपयोग करेंगे।
3. अंतरिक्ष-आधारित डेटा केंद्रों को जलवायु-अनुकूल क्यों माना जाता है?
ये कंप्यूटिंग के लिये स्वच्छ, अविरल सौर ऊर्जा का उपयोग करते हुए, पृथ्वी की विद्युत और जल संसाधनों पर निर्भरता को कम करते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस
- कार्य को प्रभावी रूप से करं सकती है?
- औद्योगिक इकाइयों में विद्युत् की खपत कम करना
- सार्थक लघु कहानियों और गीतों की रचना
- रोगों का निदान
- टेक्स्ट से स्पीच (Text-to-Speech) में परिवर्तन
- विद्युत ऊर्जा का बेतार संचरण
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1,2, 3 और 5
(b) केवल 1,3 और 4
(c) केवल 2,4 और 5
(d) 1,2,3,4 और 5
उत्तर: (d)
रैपिड फायर
विजय दिवस की 54वीं वर्षगांऊठ
भारत ने 16 दिसंबर को 54वाँ विजय दिवस मनाया, जो वर्ष 1971 के भारत–पाकिस्तान युद्ध में प्राप्त ऐतिहासिक सैन्य विजय की स्मृति में है। यह 13 दिनों का संघर्ष था, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
भारत–पाकिस्तान युद्ध, 1971
- कारण एवं हस्तक्षेप: ऑपरेशन सर्चलाइट एक पूर्व नियोजित सैन्य अभियान था, जिसे पाकिस्तान सेना ने 25 मार्च, 1971 को पूर्वी पाकिस्तान में प्रमुख शहरों पर कब्जा करने, बंगाली सेनाओं को निरस्त्र करने और अवामी लीग के नेताओं व समर्थकों को गिरफ्तार या समाप्त करने के लिये शुरू किया था।
- इस अभियान के परिणामस्वरूप व्यापक अत्याचार हुए, जिनमें लाखों लोगों की मृत्यु हुई और लगभग 1 करोड़ शरणार्थी भारत में प्रवेश करने को विवश हुए।
- इस मानवीय संकट ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता संघर्ष के समर्थन में भारत के हस्तक्षेप को प्रेरित किया।
- निर्णायक विजय एवं आत्मसमर्पण: यह संघर्ष 16 दिसंबर, 1971 को ढाका में लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हुआ, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़े सैन्य आत्मसमर्पणों में से एक था।
- रणनीतिक नेतृत्व एवं सैन्य अभियान: इस विजय का नेतृत्व फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने किया। इसमें ऑपरेशन ट्राइडेंट (कराची बंदरगाह के विरुद्ध नौसैनिक अभियान) जैसे महत्त्वपूर्ण अभियानों और लोंगेवाला का युद्ध (1971) जैसी ऐतिहासिक लड़ाइयों की अहम भूमिका रही।
- परिणाम और बलिदान: इस युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश की स्वतंत्रता और गठन हुआ, जिससे भारत की क्षेत्रीय प्रतिष्ठा और मज़बूती हुई।
- शिमला समझौता 2 जुलाई, 1972 को शिमला में हस्ताक्षरित किया गया, जिसमें वर्ष 1971 के भारत–पाकिस्तान युद्ध के बाद दोनों देशों ने संघर्ष और टकराव समाप्त करने का संकल्प लिया।
- महत्त्व: विजय दिवस भारतीय सशस्त्र बलों और मुक्ति वाहिनी (बंगाली गुरिल्ला प्रतिरोध आंदोलन) की साहसिकता का सम्मान करता है, राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करता है तथा स्वतंत्रता हेतु किये गए मानव बलिदान की याद दिलाता है।
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और पढ़ें: भारत-पाक युद्ध: 1971 |
रैपिड फायर
डाइविंग सपोर्ट क्राफ्ट
भारतीय नौसेना ने कोच्चि नौसेना बेस (दक्षिणी नौसेना कमान) में प्रथम स्वदेशी डाइविंग सपोर्ट क्राफ्ट (DSC), DSC A20 को कमीशन किया, जो इसकी अंतर्जलीय संचालन क्षमताओं में एक महत्त्वपूर्ण वृद्धि का प्रतीक है।
- परिचय: एक डाइविंग सपोर्ट क्राफ्ट (DSC) एक विशेषीकृत पोत है जिसे मुख्य रूप से तटीय और बंदरगाह परिवेशों में अंतर्जलीय गोताखोरी संचालनों को सुविधाजनक बनाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- प्राथमिक भूमिका: यह पोत अत्याधुनिक गोताखोरी उपकरणों से सुसज्जित है, जो तटीय जलक्षेत्रों में जल के भीतर मरम्मत एवं निरीक्षण, बंदरगाह की सफाई तथा अन्य महत्त्वपूर्ण गोताखोरी अभियानों में प्रमुख भूमिका निभाएगा।
- तकनीकी विशेषताएँ: इस पोत का डिज़ाइन और निर्माण इंडियन रजिस्टर ऑफ शिपिंग (IRS) के वर्गीकरण नियमों के अनुरूप किया गया है, जो सुरक्षा और प्रदर्शन मानकों को सुनिश्चित करता है।
- यह लगभग 390 टन के विस्थापन वाला एक कैटामारन-ढाँचे वाला जहाज़ है, जो स्थिरता और अंतर्जलीय संचालनों के लिये अनुकूलित है।
- रणनीतिक महत्त्व: यह नौसेना की महत्त्वपूर्ण अंतर्जलीय और उद्धार मिशनों को संचालित करने में परिचालन लचीलेपन और आत्मनिर्भरता को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाता है।
- यह परियोजना राष्ट्रीय आत्मनिर्भर भारत दृष्टि के अनुरूप है, जिसका लक्ष्य रक्षा आयातों पर निर्भरता कम करना और घरेलू औद्योगिक विशेषज्ञता का निर्माण करना है।
- भारतीय नौसेना में अन्य हालिया समावेशन: INS निस्तार, INSV कौंडिन्य, फ्रिगेट हिमगिरी, INS सूरत, INS उदयगिरि आदि।
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रैपिड फायर
एंथ्रोपॉज़ और शहरी पक्षियों में विकास
कोविड-19 लॉकडाउन ने एक ‘एंथ्रोपॉज़’ उत्पन्न किया, जिसने एक दुर्लभ प्राकृतिक प्रयोग का अवसर प्रदान किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि मानव गतिविधियों में कमी किस प्रकार शहरी डार्क-आईड जंकॉस जैसे जीवों की वन्यजीवन संरचना को तेज़ी से बदल सकती है।
- एंथ्रोपॉज़: इसका तात्पर्य है वैश्विक, अस्थायी रूप से मानव गतिविधियों में कमी, विशेषकर यात्रा में कमी, जो कोविड-19 महामारी के लॉकडाउन (2020 की शुरुआत) के दौरान हुई।
- वन्यजीवन पर एंथ्रोपॉज़ के प्रभाव: एक अध्ययन से पता चला कि डार्क-आईड जंकॉस (छोटे, धूसर रंग के न्यू वर्ल्ड स्पैरो जैसे पक्षी) जो शहरों में रहते हैं, उनकी चोंच छोटी और मोटी हो गई थी, क्योंकि वे मानव भोजन पर निर्भर थे।
- कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, जब लोग और खाद्य अपशिष्ट गायब हो गए। वर्ष 2021–22 में जन्मे पक्षियों की चोंच लंबी और प्राकृतिक (वन्य प्रकार की) हुई।
- जैसे ही मानव गतिविधियाँ लौटीं, शहरी पक्षियों की चोंच का प्रारंभिक आकार फिर से उभर आया, यह साबित करते हुए कि मानव उपस्थिति वन्यजीवन में तीव्र विकासात्मक परिवर्तन को प्रेरित कर सकती है।
- समान महामारी प्रभावों में पक्षियों के गीतों में शांति, वन्यजीवन का शहरों के निकट आना और पशुओं के व्यवहार में बदलाव शामिल थे, जो मानव-प्रेरित पारिस्थितिकी तंत्र की धारणा को और मज़बूत करते हैं।
- अध्ययन इस विचार का समर्थन करता है कि विकास को हज़ारों वर्षों तक इंतज़ार करने की आवश्यकता नहीं है; शहरीकरण जैसे मज़बूत चयनात्मक दबावों के तहत, विकासात्मक परिवर्तन कुछ ही पीढ़ियों में हो सकते हैं।
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