प्रारंभिक परीक्षा
INSV कौंडिन्य
- 23 May 2025
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चर्चा में क्यों?
भारतीय नौसेना ने हाल ही में भारतीय नौसेना नौकायन पोत (INSV) कौंडिन्य को शामिल किया है, जो प्राचीन सिले हुए जहाज़ (स्टिच्ड शिप) निर्माण पद्धति (टंकाई पद्धति) का उपयोग करके बनाया गया पहला 'सिला हुआ जहाज़' है, जो भुला दी गई जहाज़ निर्माण विधियों को पुनः जीवित करता है।
- इसका नाम प्रसिद्ध भारतीय नाविक कौंडिन्य के नाम पर रखा गया है और यह वर्ष 2025 के अंत तक प्राचीन व्यापार मार्गों का अन्वेषण करते हुए ओमान की ऐतिहासिक यात्रा पर निकलेगा।
- इसे भारतीय नौसेना , संस्कृति मंत्रालय और गोवा स्थित एक जहाज़ निर्माण कंपनी के बीच त्रिपक्षीय समझौते के माध्यम से क्रियान्वित किया जाता है।
INSV कौंडिन्य के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- INSV कौंडिन्य: यह 5वीं शताब्दी के अजंता गुफा चित्रों में दर्शाए गए एक जहाज़ के आधार पर बनाया गया एक सिला हुआ जहाज़ है।
- यह पुस्तक अजंता के भित्तिचित्रों, प्राचीन ग्रंथ युक्तिकल्पतरु (राजा भोज द्वारा 9वीं शताब्दी ई. में लिखी गई) तथा विदेशी यात्रियों के विवरणों से प्रेरित है, जिन्होंने सिले हुए भारतीय जहाज़ों (stitched Indian ships) का वर्णन किया है।
- इसमें प्रतीकात्मक रूपांकन इस प्रकार हैं:
- कदंब वंश का गंदभेरुंड, जो कोंकण तट पर शासन करने वाला दो सिर वाला गरुड़
- पालों पर सूर्य के चित्र
- धनुष पर सिंह याली (पौराणिक सिंह)
- हड़प्पा शैली का प्रस्तर का लंगर।
- कौंडिन्य के बारे में: कौंडिन्य प्रथम शताब्दी के भारतीय नाविक थे, जिन्हें मेकांग डेल्टा तक नौकायन के लिये जाना जाता है, जहाँ उन्होंने योद्धा रानी सोमा से विवाह किया और फुनान साम्राज्य (आधुनिक कंबोडिया) की सह-स्थापना की, जो दक्षिण-पूर्व एशिया के शुरुआती भारतीय राज्यों में से एक था।
- आधुनिक कंबोडिया और वियतनाम के खमेर और चाम राजवंशों की उत्पत्ति इसी संघ से मानी जाती है।
- उनकी कहानी कंबोडियाई और वियतनामी स्रोतों में संरक्षित है, यद्यपि भारतीय अभिलेखों में नहीं, और उन्हें वैश्विक ऐतिहासिक प्रभाव वाली विदेशी यात्राएँ करने वाला पहला भारतीय नाविक माना जाता है।
- टंकाई विधि: यह 2,000 वर्ष पुरानी पारंपरिक भारतीय जहाज़ निर्माण तकनीक है जो अपने हस्त शिल्प कौशल, स्वदेशी सामग्रियों और गैर-औद्योगिक तकनीकों के लिये जानी जाती है। प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं:
- सिले हुए तख्ते की तकनीक: सागौन, साल या आम की लकड़ी के तख्तों को ड्रिल करके नारियल की रस्सियों से सिला जाता है, फिर जलरोधी बनाने के लिये कपास, राल और मछली के तेल से सील कर दिया जाता है।
- धातु के फास्टनरों का प्रयोग नहीं: लोहे की कीलों का प्रयोग करने वाली यूरोपीय विधियों के विपरीत, टंकाई विधि में जंग को रोकने के लिये धातु का प्रयोग नहीं किया जाता था, जिससे जहाज़ हल्के, अधिक लचीले और मरम्मत में आसान हो जाते थे।
- अद्वितीय निर्माण: सर्वप्रथम पतवार का निर्माण किया जाता है, फिर रिब्स जोड़ी जाती हैं, जिससे वेस्टर्न फ्रेम-फर्स्ट विधियों के विपरीत, प्रक्षुब्ध सागर (Rough Seas) में भी अधिक लचीलापन और स्थायित्व प्राप्त होता है।
- स्वदेशी सामग्री: इसमें नारियल की रस्सी, डैमर राल और जंतु वसा का उपयोग किया जाता है, ये सभी समुद्री जल के प्रति प्रतिरोधी हैं।
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