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प्रिलिम्स फैक्ट्स

प्रारंभिक परीक्षा

मीथेन उत्सर्जन

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

मीथेन, जो घरेलू और औद्योगिक उपयोगों के लिये एक महत्त्वपूर्ण ईंधन है, जब बिना नियंत्रण के लैंडफिल से उत्सर्जित होती है तो यह भारत के जलवायु लक्ष्यों और शहरी पारिस्थितिक स्वास्थ्य के लिये एक बड़ा पर्यावरणीय खतरा बन जाती है।

सारांश

  • उपग्रह आँकड़ों से पता चलता है कि भारत के लैंडफिल से निकलने वाला मीथेन उत्सर्जन अनुमान से कहीं अधिक है, जिससे CO₂ की तुलना में 20 वर्षों में 84 गुना अधिक शक्तिशाली इस गैस के संबंध में एक बड़ा सूचना-अंतर उजागर होता है।
  • उपग्रह निगरानी, स्थल-स्तरीय सत्यापन और एकीकृत नीतियाँ मीथेन हॉटस्पॉट की सटीक पहचान में सक्षम बनाती हैं, जिससे प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन, जलवायु कार्रवाई तथा ऊर्जा पुनर्प्राप्ति पहलों को समर्थन मिलता है।

मीथेन क्या है?

  • परिचय: मीथेन एक रासायनिक यौगिक है, जिसका आणविक सूत्र CH₄ है। इसमें एक कार्बन परमाणु चार हाइड्रोजन परमाणुओं से जुड़ा होता है। यह सबसे सरल एल्केन है और प्राकृतिक गैस का प्रमुख घटक है।
  • भौतिक गुण: यह गंधहीन, रंगहीन, स्वादहीन तथा वायु से हल्की गैस है। पूर्ण दहन की अवस्था में ऑक्सीजन की उपस्थिति में यह नीली ज्वाला के साथ जलती है और कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) तथा जल (H₂O) का निर्माण करती है।
  • उपयोग: प्राकृतिक गैस का मुख्य घटक होने के कारण (आमतौर पर 80–95%), मीथेन का उपयोग हीटिंग, विद्युत उत्पादन और खाना पकाने के लिये एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जाता है।
    • इसके अतिरिक्त, इसका उपयोग रासायनिक संश्लेषण में हाइड्रोजन, अमोनिया, मेथनॉल तथा अन्य रसायनों के उत्पादन में भी किया जाता है।
  • उत्सर्जन: भारत, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा मीथेन उत्सर्जक है, जो प्रतिवर्ष लगभग 31 मिलियन टन मीथेन उत्सर्जित करता है (वैश्विक उत्सर्जन का लगभग 9%)।
    • UNFCCC को प्रस्तुत भारत की तीसरी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016 में (भूमि उपयोग, भूमि उपयोग परिवर्तन और वानिकी—LULUCF को छोड़कर) भारत का मीथेन उत्सर्जन 409 मिलियन टन CO₂e था।
  • मीथेन के प्रमुख स्रोत:
    • प्राकृतिक स्रोत: आर्द्रभूमियाँ, जहाँ कार्बनिक पदार्थों का अवायवीय अपघटन होता है।
    • कृषि गतिविधियाँ: जलमग्न धान के खेत, जहाँ अवायवीय परिस्थितियाँ बनती हैं तथा पशुओं में एंटेरिक किण्वन, विशेष रूप से मवेशियों से।
    • दहन एवं औद्योगिक प्रक्रियाएँ: जीवाश्म ईंधनों का निष्कर्षण, परिवहन और दहन।
      • जैव-ईंधन दहन (जैसे लकड़ी, फसल अवशेष)।
      • लैंडफिल और अपशिष्ट जल उपचार (कार्बनिक अपशिष्ट का अवायवीय अपघटन): भारत के कुल मीथेन उत्सर्जन का लगभग 15% अपशिष्ट क्षेत्र से उत्पन्न होता है।
      • उर्वरक उत्पादन एवं अन्य औद्योगिक गतिविधियाँ।
  • ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (GWP): यह एक प्रबल ग्रीनहाउस गैस (GHG) है, जो अवरक्त विकिरण को अवशोषित करती है और ग्रीनहाउस प्रभाव में योगदान करती है।
    • 20 वर्ष की अवधि में मीथेन CO₂ की तुलना में लगभग 84 गुना अधिक प्रभावी रूप से ऊष्मा को रोकती है और 100 वर्ष की अवधि में, यह लगभग 28–34 गुना अधिक शक्तिशाली होती है।

  • मीथेन को कम करने की पहलें:
  • मीथेन चक्र: यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मीथेन (CH₄) का उत्पादन, उत्सर्जन और पर्यावरण से निष्कासन होता है।
    • अवायवीय परिस्थितियों में सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पादित (आर्द्रभूमियाँ, धान के खेत, रोमंथी पशु, लैंडफिल)।
    • प्राकृतिक और मानवीय गतिविधियों के माध्यम से वायुमंडल में उत्सर्जित।
    • मृदा और वायुमंडल में ऑक्सीकरण द्वारा निष्कासित (मुख्यतः OH रेडिकल्स द्वारा)।

Methane_Cycle

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. मीथेन को कार्बन डाइऑक्साइड से अधिक खतरनाक क्यों माना जाता है?
मीथेन का ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (GWP) 20 वर्षों में CO₂ की तुलना में 84 गुना है, जिससे यह निकट‑अवधि के जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण बनता है।

2. भारत के मीथेन उत्सर्जन में अपशिष्ट क्षेत्र का कितना हिस्सा है?
भारत में लगभग 15% मीथेन उत्सर्जन लैंडफिल और अपशिष्ट जल उपचार से उत्पन्न होता है, जो जैविक अपशिष्ट के एनारोबिक विघटन के कारण होता है।

3. ग्लोबल मीथेन प्लेज क्या है?
COP26 में लॉन्च किया गया यह अभियान 2030 तक वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में 30% कमी लाने का लक्ष्य रखता है। भारत ने इस प्रतिज्ञा में अभी तक सदस्यता नहीं ली है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं?  (2019)

  1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।
  2. मीथेन हाइड्रेट के विशाल निक्षेप उत्तरी ध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।
  3. वायुमंडल के अंदर मीथेन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. चावल की व्यापक खेती के कारण कुछ क्षेत्र ग्लोबल वार्मिंग में योगदान दे सकते हैं। इसके संभावित कारण क्या है/हैं? (2010)

1. चावल की खेती से जुड़ी अवायवीय स्थितियाँ मीथेन के उत्सर्जन का कारण बनती हैं।

2. जब नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों का उपयोग किया जाता है तो उर्वरित मिट्टी से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जित होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापन) की चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये। (2022)

प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017)


रैपिड फायर

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार 2025

स्रोत: पी.आई.बी.

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस 2025 (14 दिसंबर) पर राष्ट्रपति ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार 2025 प्रदान किये।

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार

  • परिचय: राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency- BEE) की एक पहल है। इसे वर्ष 1991 में स्थापित किया गया था, ताकि उन संस्थानों और उद्योगों की उल्लेखनीय उपलब्धियों को मान्यता दी जा सके, जिन्होंने उर्जा खपत को कम करते हुए उत्पादन क्षमता बनाए रखी
  • कवर किये गए क्षेत्र: उद्योग, वाणिज्यिक भवन, परिवहन, संस्थान और ऊर्जा-कुशल उपकरण
  • उद्देश्य:

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE)

    और पढ़ें: ऊर्जा दक्षता ब्यूरो


    रैपिड फायर

    कंधमाल में भाँग की अवैध कृषि

    स्रोत: द हिंदू

    ओड़िशा के कंधमाल ज़िले की हरी-भरी पहाड़ियाँ वर्ष 2025 में रिकॉर्ड ज़ब्तियों के कारण राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करते हुए अवैध भॉंग/कैनबिस की कृषि का एक प्रमुख केंद्र बन गई हैं।

    • नीति की विडंबना: कंधमाल अपने भौगोलिक संकेत (GI) वाला कंधमाल हल्दी के लिये जाना जाता है, फिर भी आर्थिक संकट ने गाँववासियों को अवैध कृषि की ओर प्रवृत्त कर दिया है, जो समावेशी ग्रामीण विकास में अंतर को उजागर करता है।
    • अनुकूल भौगोलिक स्थिति: ज़िले का दूरस्थ, वनाच्छादित और पहाड़ी भूभाग, साथ ही भॉंग के लिये उपयुक्त जलवायु, निगरानी तथा पहुँच को अत्यंत कठिन बना देता है, जिससे गुप्त रूप से कृषि को बढ़ावा मिलता है।
    • भॉंग: भॉंग एक सामान्य शब्द है, जिसका उपयोग विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) विभिन्न मनो-सक्रिय तैयारियों के लिये करता है, जो कैनबिस सैटिवा पौधे से प्राप्त होती हैं।
      • भॉंग में प्रमुख मनो-सक्रिय घटक डेल्टा-9 टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल (THC) है। THC के संरचनात्मक समान यौगिकों को कैनाबिनॉइड्स कहा जाता है।
      • भांग 20–30°C के मध्यम तापमान में सबसे अच्छी तरह उगती है और वृद्धि के चरण के अनुसार 40–70% आर्द्रता स्तर की आवश्यकता होती है। 
    • भारत में भॉंग की कृषि: यह इंडो-गैंगेटिक मैदानों और दक्कन क्षेत्र में पाई जाती है।
    • भॉंग का नियमन: इसे मुख्य रूप से स्वापक औषधि एवं मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो भॉंग की कृषि, स्वामित्व, बिक्री, खरीद, परिवहन तथा सेवन को अपराध मानता है, विशेष रूप से इसके रेज़िन (चरस) और फूलों के शीर्ष (गॉंजा) के लिये।
      • यह अधिनियम केंद्रीय सरकार को औद्योगिक उद्देश्यों के लिये भॉंग की कृषि की अनुमति देने का अधिकार देता है, जिसमें रेशा, बीज, तेल और बागवानी उपयोग शामिल हैं।
      • हालाँकि इस अधिनियम में बीज और पत्तियाँ तब शामिल नहीं हैं जब वे सिरों (Tops) के साथ न हों, जिससे राज्यों को भॉंग जैसे उत्पादों को अपने स्थानीय कानूनों के अनुसार नियंत्रित करने की स्वतंत्रता मिलती है।
      • उत्तराखंड वह पहला राज्य है जिसने औद्योगिक भॉंग (हैम्प) की कृषि को कानूनी मान्यता दी है।
      • संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1961 के सिंगल कन्वेंशन ऑन नार्कोटिक ड्रग्स के शेड्यूल IV से भॉंग (Cannabis) को हटा दिया, इसके चिकित्सीय संभावनाओं को मान्यता देते हुए, जबकि नियंत्रित चिकित्सा उपयोग के लिये इसे शेड्यूल I में बनाए रखा।

    अधिक पढ़ें: हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा कैनबिस की कृषि को वैध बनाने पर विचार


    रैपिड फायर

    भारत लगभग 100% रेलवे विद्युतीकरण के करीब

    स्रोत: पी. आई. बी.

    भारतीय रेलवे अपने लगभग पूरे ब्रॉडगेज नेटवर्क के विद्युतीकरण को पूरा करने के करीब है जिसमें 99 प्रतिशत से अधिक हिस्सा पहले ही विद्युतीकृत हो चुका है। यह भारत की सतत और कम उत्सर्जन वाली परिवहन प्रणाली की ओर तेज़ी से बढ़ती पहल को रेखांकित करता है।

    • उत्सर्जन में कमी और ऊर्जा दक्षता: लगभग पूर्ण विद्युतीकरण के कारण डीज़ल की खपत कम हुई, उत्सर्जन घटा और यह भारतीय रेलवे के नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जक बनने के लक्ष्य का समर्थन करता है।
      • भारतीय रेलवे का लक्ष्य वर्ष 2030 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन हासिल करना है, जो एक राष्ट्रीय रेलवे प्रणाली के लिये विश्व स्तर पर सबसे जल्दी प्राप्त किये जाने वाले लक्ष्यों में से एक है।
      • भारतीय रेलवे भारत के सबसे बड़े विद्युत उपभोक्ताओं में से एक है और विद्युतीकरण की ओर बढ़ने से इसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ एकीकृत करना संभव हो जाता है।
    • आर्थिक और परिचालन लाभ: कम रखरखाव और ऊर्जा लागत के चलते परिचालन व्यय में कमी आती है।
      • सेवाओं की औसत गति और विश्वसनीयता में वृद्धि, जिससे लॉजिस्टिक्स और माल ढुलाई संचालन में सुधार होता है।
      • यह भारत को तेज़ माल परिवहन सुनिश्चित करके 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य में भी समर्थन करता है।
    • वैश्विक महत्त्व: भारत ने 25 राज्यों में अपने ब्रॉडगेज नेटवर्क का 99.2% विद्युतीकरण कर लिया है, जो कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं से आगे है, जो अभी भी डीज़ल पर निर्भर हैं।
      • वर्ष 2019–2025 के बीच जो विद्युतीकृत रेल मार्ग किलोमीटर (RKM) जोड़े गए, वे जर्मनी के कुल रेल नेटवर्क के बराबर हैं, जो भारत की ग्रीन ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर में वैश्विक नेतृत्व को दर्शाता है।

    Rail Electrification

    और पढ़ें: रेलवे का विद्युतीकरण


    रैपिड फायर

    असंगठित क्षेत्र के उद्यमों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASUSE) 2026

    स्रोत: पी.आई.बी

    सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने सार्वजनिक परामर्श हेतु असंगठित क्षेत्र के उद्यमों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASUSE) 2026 के लिये ड्राफ्ट स्थापना अनुसूची (ESU) जारी की है।

    असंगठित क्षेत्र के उद्यमों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASUSE) 

    • परिचय: ASUSE, एक महत्त्वपूर्ण सांख्यिकीय उपकरण, भारत के विशाल असंगठित गैर-कृषि क्षेत्र के परिचालन और आर्थिक मानकों को मापता है।
      • NSO वर्ष 2021–22 से ASUSE का वार्षिक रूप से संचालन कर रहा है।
    • व्यापक डेटा कवरेज: ASUSE रोज़गार आकार, सकल मूल्य संवर्द्धन, पारिश्रमिक, संपत्ति स्वामित्व, डिजिटल अपनाने (ICT उपयोग) और ऋण स्थिति पर डेटा एकत्र करता है।
      • यह कृषि और निर्माण क्षेत्रों को शामिल नहीं करता, बल्कि निर्माण, व्यापार तथा अन्य सेवाओं पर केंद्रित है।
    • नीतिगत लक्ष्यों के लिये समर्थन: यह डेटा MSME, वस्त्र एवं श्रम जैसे प्रमुख मंत्रालयों को कल्याण योजनाओं, ऋण पहुँच नीतियों और औपचारिककरण अभियानों के निर्माण में सहायता करता है।

    असंगठित गैर-कृषि क्षेत्र

    • रोज़गार में योगदान: असंगठित क्षेत्र, भारत के अनौपचारिक श्रमबल का एक बड़ा हिस्सा रोज़गार देता है, लाखों लोगों को बिना औपचारिक अनुबंध के आजीविका प्रदान करता है।
      • पूर्ववर्ती NSSO सर्वेक्षणों के अनुसार, भारत के 90% से अधिक श्रमबल अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्न हैं, जो इसके सामाजिक-आर्थिक महत्त्व को दर्शाता है।
    • आर्थिक संबंध: ये उद्यम औपचारिक अर्थव्यवस्था को वस्तुओं और सेवाओं के आपूर्तिकर्त्ता के रूप में कार्य करते हैं तथा निर्माण, व्यापार एवं सेवाओं में घरेलू मूल्य शृंखलाओं का समर्थन करते हैं।

    और पढ़ें: भारत की सांख्यिकी प्रणाली 


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