प्रारंभिक परीक्षा
अनैच्छिक नार्को टेस्ट पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने निर्णय दिया है कि कोई भी जबरन या अनैच्छिक नार्कोटेस्ट असंवैधानिक है, और इसने वर्ष 2025 में पटना उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें अमलेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2025) मामले में ऐसी टेस्ट की अनुमति दी गई थी।
सारांश
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना है कि जबरन नार्कोटेस्ट असंवैधानिक हैं, और इसने आत्म-आरोपण के खिलाफ सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों की पुष्टि की, जो अनुच्छेद 20(3) और 21 के तहत आते हैं।
- यह निर्णय नैतिक मानकों, सहमति की आवश्यकताओं को मजबूत करता है और भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में ऐसी जांच तकनीकों के साक्ष्य मूल्य को सीमित करता है।
नार्कोटेस्ट क्या है?
- बारे में: नार्कोटेस्ट एक जाँच तकनीक है जिसमें आरोपी की हिचकिचाहट और संकोच को कम करने के लिये सोडियम पेंटोथाल जैसे सेडेटिव दवाएँ (बार्बिटुरेट्स – सेडेटिव‑हाइप्नोटिक दवाओं की श्रेणी) दी जाती हैं।
- इसका उद्देश्य तर्क और चेतन नियंत्रण को कम करके छिपी हुई जानकारी प्राप्त करना होता है।
- इसे अहिंसक जाँच तकनीक माना जाता है, जो पॉलीग्राफ और ब्रेन‑मैपिंग टेस्ट के समान है।
- सहमति के बिना नार्को टेस्ट: ये व्यक्तिगत स्वायत्तता का उल्लंघन करते हैं, जो प्राकृतिक न्याय का एक बुनियादी सिद्धांत है और नैतिक दर्शन—जिसमें इमैनुअल कांट के विचार भी शामिल हैं—इस बात पर जोर देता है कि सहमति के बिना किये गए कार्य नैतिक रूप से अस्वीकार्य होते हैं।
- एक लोकतांत्रिक आपराधिक न्याय प्रणाली में, न्याय के लिये पीड़ितों के अधिकारों और आरोपियों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है तथा आत्म-अपराध से सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ किसी भी प्रकार का समझौता संवैधानिक नैतिकता को कमज़ोर करता है।
- संवैधानिक संरक्षण:
- अनुच्छेद 20(3): किसी भी आपराधिक मामले में आरोपी व्यक्ति को "आत्म-दोषसिद्धि के विरुद्ध अधिकार" देता है, जिसका मतलब है कि किसी भी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाही देने के लिये मज़बूर नहीं किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 21: प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता और निजता के अधिकार की गारंटी प्रदान करता है तथा किसी व्यक्ति (आरोपी) की स्पष्ट सहमति के बिना ऐसा कोई भी परीक्षण (टेस्ट) इसका उल्लंघन है।
- एक लोकतांत्रिक आपराधिक न्याय प्रणाली को पीड़ितों के अधिकारों और आरोपियों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिये।
- अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 14 और 19 के साथ मिलकर संविधान के स्वर्णिम त्रिकोण का निर्माण करता है, जैसा कि मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) मामले में कहा गया है।
- इसलिये, निजता के अधिकार का कोई भी उल्लंघन प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है, जो इस मूलभूत संवैधानिक ढाँचे को बाधित करता है।
- कानूनी प्रावधान: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 253 के तहत बचाव पक्ष के चरण में कोई व्यक्ति स्वेच्छा से नार्को टेस्ट के लिये सहमति दे सकता है। हालाँकि, ऐसे परीक्षण की मांग करने का कोई पूर्ण या अपरिहार्य अधिकार नहीं है।
- न्यायिक निर्णय:
- सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य (2010): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि स्वतंत्र सहमति के बिना कराया गया नार्को टेस्ट असंवैधानिक हैं, जिसके परिणाम साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं होते है।
- अमलेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2025): सर्वोच्च न्यायालय ने बलपूर्वक नार्को टेस्ट को असंवैधानिक करार दिया।
- मनोज कुमार सैनी बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2023) और विनोभाई बनाम केरल राज्य (2025): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि नार्को टेस्ट के परिणाम अपराध सिद्ध नहीं करते हैं और उन्हें स्वतंत्र साक्ष्य के साथ पुष्टि की आवश्यकता होती है। ऐसे परीक्षणों को प्रमुख साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. नार्को टेस्ट क्या है?
नार्को टेस्ट एक अन्वेषणात्मक तकनीक है, जिसमें अवरोधों को कम करने और जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से बार्बिट्यूरेट्स जैसी निद्राजनक दवाएँ, उदाहरणार्थ सोडियम पेंटोथल, दी जाती हैं।
2. बलपूर्वक नार्को टेस्ट असंवैधानिक क्यों हैं?
ये संविधान के अनुच्छेद 20(3) के अंतर्गत आत्म-अभिसाक्ष्य के लिये बाध्य न किये जाने के अधिकार का उल्लंघन करते हैं तथा अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का अतिक्रमण करते हैं।
3. सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य (2010) में सर्वोच्च न्यायालय ने क्या निर्णय दिया?
न्यायालय ने निर्णय दिया कि स्वतंत्र और सूचित सहमति के बिना किये गए नार्को टेस्ट असंवैधानिक हैं तथा उनके परिणाम साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं हैं।
4. क्या स्वैच्छिक नार्को टेस्ट कानूनी रूप से स्वीकार्य है?
हाँ, एक व्यक्ति BNSS की धारा 253 के तहत बचाव के चरण में स्वैच्छिक रूप से नार्को टेस्ट का विकल्प चुन सकता है, किंतु इसे कराने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत 'निजता का अधिकार' संरक्षित है? (2021)
(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29
उत्तर:C
रैपिड फायर
‘पैक्स सिलिका’ पहल
वर्ष 2025 में आयोजित पहले ‘पैक्स सिलिका’ शिखर सम्मेलन में, भारत को अमेरिका के नेतृत्व वाली 'पैक्स सिलिका' पहल से बाहर रखा गया, जिससे तीव्र राजनीतिक आलोचना हुई।
- पैक्स सिलिका पहल: यह एक सुरक्षित, अनुकूल और नवाचार-संचालित सिलिकॉन आपूर्ति श्रृंखला बनाने की एक रणनीतिक पहल है ।
- इसका उद्देश्य महत्वपूर्ण खनिजों, ऊर्जा स्रोतों, सेमीकंडक्टरों , उन्नत विनिर्माण, एआई अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व को कम करना और जबरदस्ती की निर्भरता का मुकाबला करना है।
- ‘पैक्स सिलिका’ के तहत प्रमुख उपायों में उच्च-तकनीकी क्षेत्रों में संयुक्त उद्यमों और रणनीतिक सह-निवेश को बढ़ावा देना, संवेदनशील प्रौद्योगिकियों और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को चिंताजनक देशों से बचाना और विश्वसनीय प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना शामिल है।
- शामिल देश (दिसंबर 2025 तक): अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, नीदरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, इज़रायल, यूएई और ऑस्ट्रेलिया।
- गौरतलब है कि क्वाड के अन्य सदस्य (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) इसमें शामिल हैं, लेकिन भारत नहीं है।
- भारत की स्थिति: विशेषज्ञों का कहना है कि भारत बाद के चरण में पैक्स सिलिका में शामिल हो सकता है, जैसा कि मिनरल्स सिक्योरिटी पार्टनरशिप (MSP) के मामले में देखा गया है, जो महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करने के लिये वर्ष 2022 में शुरू की गई अमेरिका के नेतृत्व वाली पहल है।
- भारत जून, 2023 में जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और कनाडा जैसे साझेदारों के साथ MSP में शामिल हुआ।
- MSP लिथियम, कोबाल्ट, निकेल और 17 दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे खनिजों पर केंद्रित है तथा इसे दुर्लभ पृथ्वी प्रसंस्करण में चीन के प्रभुत्व और अफ्रीका में उसके खनन पदचिह्न का मुकाबला करने के प्रयास के रूप में देखा जाता है।
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रैपिड फायर
ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs)
भारत ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (Global Capability Centres–GCCs) के लिये विश्व के प्रमुख गंतव्य के रूप में उभर रहा है। वर्तमान में देश में 1,700 से अधिक GCCs संचालित हैं और वर्ष 2030 तक इस क्षेत्र की अनुमानित आय 105 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की संभावना है, जिससे यह भारत की सेवा-आधारित विकास रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ बनता जा रहा है।
ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC)
- परिचय: ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCC), जिन्हें पहले ग्लोबल इन-हाउस सेंटर्स (GIC) के नाम से जाना जाता था, बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा स्थापित की गई अपतटीय इकाइयाँ हैं।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, भारत के GCC अब एयरोस्पेस, रक्षा, सेमीकंडक्टर, इंजीनियरिंग अनुसंधान एवं विकास, नवाचार केंद्रों और वैश्विक संचालन में रणनीतिक भूमिका निभाते हैं, जिससे आत्मनिर्भर भारत को मज़बूती मिलती है।
- क्लस्टर शहर: प्रमुख केंद्रों में बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, एनसीआर और मुंबई शामिल हैं।
- महत्व: भारत में लगभग 1,700 GCC केंद्र हैं, जिनमें 1.9 मिलियन से अधिक लोग कार्यरत हैं तथा वर्ष 2030 तक इनकी संख्या 2,400 केंद्रों और 2.8 मिलियन कर्मचारियों तक पहुँचने का अनुमान है।
- भारत वैश्विक विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) कार्यबल में 28% और वैश्विक सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग प्रतिभा पूल में 23% का योगदान प्रदान करते हैं। वर्ष 2030 तक GCC देशों में वैश्विक नेतृत्व भूमिकाओं की संख्या 6,500 से बढ़कर 30,000 तक पहुँचने का अनुमान है।
- इंजीनियरिंग रिसर्च GCCs, ओवरऑल GCC सेटअप की तुलना में 1.3 गुना तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
- लक्षित नीतियाँ और सुधार: जेनेसिस (जेन-नेक्स्ट सपोर्ट फॉर इनोवेटिव स्टार्टअप्स) - टियर-II और टियर-III शहरों में GCC फीडर इकोसिस्टम स्थापित करने हेतु ₹490 करोड़ की योजना को बढ़ावा देना है।
- MeitY द्वारा संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (EMC 2.0): आनुवंशिक रूप से विकसित देशों को आकर्षित करने के लिये प्लग-एंड-प्ले बुनियादी ढाँचा प्रदान करता है।
- स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया और फ्यूचरस्किल्स प्राइम (MeitY-NASSCOM) जैसे कार्यक्रम भविष्य के लिये तैयार डिजिटल कार्यबल का निर्माण कर रहे हैं।
- भारत अधिकांश क्षेत्रों, विशेष रूप से आईटी और अनुसंधान एवं विकास में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देता है, जिससे GCC देशों में निवेश को बढ़ावा मिलता है।
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और पढ़ें: भारत में वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) को बढ़ावा देना |
रैपिड फायर
पोंडुरु खादी को GI टैग
आंध्र प्रदेश के कपड़े, पोंडुरु खादी को भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री (Geographical Indications Registry) द्वारा भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्रदान किया गया है ।
- पोंडुरु खादी: यह आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम ज़िले के पोंडुरु गाँव में उत्पादित एक पारंपरिक हस्तनिर्मित सूती कपड़ा है, जिसे स्थानीय रूप से पटनुलु के नाम से जाना जाता है।
- यह कपड़ा पहाड़ी कपास, पुनासा कपास या लाल कपास का उपयोग करके बनाया जाता है, ये सभी कपास श्रीकाकुलम क्षेत्र में ही पाए जाते हैं।
- कपास की सफाई से लेकर कताई और बुनाई तक, पूरी उत्पादन प्रक्रिया हाथों से की जाती है, जिससे पारंपरिक कौशल संरक्षित रहते हैं।
- पोंडुरु खादी की अनूठी विशेषताएँ: वालुगा मछली के जबड़े की हड्डी का उपयोग करके कपास की सफाई करना एक विश्व स्तर पर अनूठी प्रथा है, जो केवल पोंडुरु खादी में ही पाई जाती है।
- पोंडुरु भारत का एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ कताई करने वाले अभी भी 24 तीलियों वाले एकल-ध्रुवीय चरखे का उपयोग करते हैं, जिसे गांधी चरखा के नाम से जाना जाता है।
- यह कपड़ा अपनी अत्यधिक उच्च धागा संख्या (यार्न काउंट), लगभग 100–120, के लिये जाना जाता है, जो इसकी बेहद बारीक गुणवत्ता को दर्शाती है।
- ऐतिहासिक महत्त्व: स्वतंत्रता-पूर्व काल में, महात्मा गांधी ने अपने जर्नल यंग इंडिया में पोंडुरु खादी के गुणों पर प्रकाश डाला था तथा इसे आत्मनिर्भरता, स्वदेशी और स्वतंत्रता आंदोलन के आदर्शों से जोड़ कर प्रस्तुत किया था।
- GI टैग: यह किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले उत्पादों की पहचान करता है, जिनकी विशिष्ट रूप, गुणवत्ता और विशेषताएँ उस क्षेत्र से जुड़ी होती हैं।
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रैपिड फायर
एक राष्ट्र एक बंदरगाह प्रक्रिया (ONOP)
एक राष्ट्र एक बंदरगाह प्रक्रिया (One Nation–One Port Process- ONOP) ढाँचा बंदरगाहों पर आवश्यक दस्तावेज़ीकरण को 33% तक कम करेगा, जिससे कार्यकुशलता बढ़ेगी और लागत एवं समय में कमी आएगी।
एक राष्ट्र एक बंदरगाह प्रक्रिया (ONOP)
- परिचय: भारत में बंदरगाह प्रक्रियाओं में समानता लाने के लिये बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय (MoPSW) की एक सुधार पहल।
- उद्देश्य: सभी प्रमुख और चुनिंदा लघु बंदरगाहों के लिये दस्तावेज़ीकरण, अनुमोदन और कार्यप्रवाह को मानकीकृत करना।
- विशेषताएँ:
- बंदरगाह-वार प्रक्रियाओं में भिन्नताओं को समाप्त करके व्यवसाय करने में आसानी को बढ़ावा देता है।
- ONOP के तहत सरकार सभी भारतीय बंदरगाहों पर जहाज-संबंधी सभी जानकारियों के सुचारू इलेक्ट्रॉनिक प्रस्तुतिकरण और प्रसंस्करण के लिये नेशनल लॉजिस्टिक्स पोर्टल – मरीन (NLP-Marine/“सागर सेतु”) को अपग्रेड कर रही है।
- यह सभी प्रमुख (और चुनिंदा लघु) बंदरगाहों में प्रक्रियाओं में समानता लाता है, जिससे उन प्रक्रिया संबंधी असंगतियों को समाप्त किया जाता है जो संचालन में देरी तथा लॉजिस्टिक्स लागत बढ़ाने का कारण बनती थीं।
- महत्त्व: इस पहल से कार्गो हैंडलिंग की दक्षता में उल्लेखनीय सुधार होने, टर्नअराउंड समय में कमी, लॉजिस्टिक्स लागत में कटौती और बंदरगाह संचालन को सरल बनाकर भारत की वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्द्धा को मज़बूत करने की उम्मीद है।
- NLP-Marine / “सागर सेतु” (नेशनल लॉजिस्टिक्स पोर्टल – मरीन)
- सभी जहाज़-संबंधी और कार्गो-संबंधी जानकारी के इलेक्ट्रॉनिक प्रस्तुतिकरण और प्रसंस्करण के लिये एक केंद्रीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म।
- यह सभी बंदरगाह हितधारकों को एक ही प्लेटफॉर्म पर एकीकृत करता है, जिससे कई मैनुअल फॉर्म और भौतिक दस्तावेज़ों की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
- ONOP के तहत अपग्रेड किया जा रहा है ताकि कागज़ रहित कार्यप्रवाह, तेज़ मंज़ूरी और वास्तविक समय में डेटा साझा करना सुनिश्चित किया जा सके।
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