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अनैच्छिक नार्को टेस्ट पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

  • 15 Dec 2025
  • 37 min read

स्रोत: द हिंदू

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने निर्णय दिया है कि कोई भी जबरन या अनैच्छिक नार्कोटेस्ट असंवैधानिक है, और इसने वर्ष 2025 में पटना उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें अमलेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2025) मामले में ऐसी टेस्ट की अनुमति दी गई थी।

सारांश

  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना है कि जबरन नार्कोटेस्ट असंवैधानिक हैं, और इसने आत्म-आरोपण के खिलाफ सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों की पुष्टि की, जो अनुच्छेद 20(3) और 21 के तहत आते हैं।
  • यह निर्णय नैतिक मानकों, सहमति की आवश्यकताओं को मजबूत करता है और भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में ऐसी जांच तकनीकों के साक्ष्य मूल्य को सीमित करता है।

नार्कोटेस्ट क्या है?

  • बारे में: नार्कोटेस्ट एक जाँच तकनीक है जिसमें आरोपी की हिचकिचाहट और संकोच को कम करने के लिये सोडियम पेंटोथाल जैसे सेडेटिव दवाएँ (बार्बिटुरेट्स – सेडेटिव‑हाइप्नोटिक दवाओं की श्रेणी) दी जाती हैं।
    • इसका उद्देश्य तर्क और चेतन नियंत्रण को कम करके छिपी हुई जानकारी प्राप्त करना होता है।
    • इसे अहिंसक जाँच तकनीक माना जाता है, जो पॉलीग्राफ और ब्रेन‑मैपिंग टेस्ट के समान है।
  • सहमति के बिना नार्को टेस्ट: ये व्यक्तिगत स्वायत्तता का उल्लंघन करते हैं, जो प्राकृतिक न्याय का एक बुनियादी सिद्धांत है और नैतिक दर्शन—जिसमें इमैनुअल कांट के विचार भी शामिल हैं—इस बात पर जोर देता है कि सहमति के बिना किये गए कार्य नैतिक रूप से अस्वीकार्य होते हैं।
    • एक लोकतांत्रिक आपराधिक न्याय प्रणाली में, न्याय के लिये पीड़ितों के अधिकारों और आरोपियों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है तथा आत्म-अपराध से सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ किसी भी प्रकार का समझौता संवैधानिक नैतिकता को कमज़ोर करता है।
  • संवैधानिक संरक्षण: 
    • अनुच्छेद 20(3): किसी भी आपराधिक मामले में आरोपी व्यक्ति को "आत्म-दोषसिद्धि के विरुद्ध अधिकार" देता है, जिसका मतलब है कि किसी भी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाही देने के लिये मज़बूर नहीं किया जा सकता है।
    • अनुच्छेद 21: प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता और निजता के अधिकार की गारंटी प्रदान करता है तथा किसी व्यक्ति (आरोपी) की स्पष्ट सहमति के बिना ऐसा कोई भी परीक्षण (टेस्ट) इसका उल्लंघन है।
      • एक लोकतांत्रिक आपराधिक न्याय प्रणाली को पीड़ितों के अधिकारों और आरोपियों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिये। 
    • अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 14 और 19 के साथ मिलकर संविधान के स्वर्णिम त्रिकोण का निर्माण करता है, जैसा कि मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) मामले में कहा गया है। 
      • इसलिये, निजता के अधिकार का कोई भी उल्लंघन प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है, जो इस मूलभूत संवैधानिक ढाँचे को बाधित करता है।
  • कानूनी प्रावधान: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 253 के तहत बचाव पक्ष के चरण में कोई व्यक्ति स्वेच्छा से नार्को टेस्ट के लिये सहमति दे सकता है। हालाँकि, ऐसे परीक्षण की मांग करने का कोई पूर्ण या अपरिहार्य अधिकार नहीं है।
  • न्यायिक निर्णय:
    • सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य (2010): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि स्वतंत्र सहमति के बिना कराया गया नार्को टेस्ट असंवैधानिक हैं, जिसके परिणाम साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं होते है।
    • अमलेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2025): सर्वोच्च न्यायालय ने बलपूर्वक नार्को टेस्ट को असंवैधानिक करार दिया।
    • मनोज कुमार सैनी बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2023) और विनोभाई बनाम केरल राज्य (2025): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि नार्को टेस्ट के परिणाम अपराध सिद्ध नहीं करते हैं और उन्हें स्वतंत्र साक्ष्य के साथ पुष्टि की आवश्यकता होती है। ऐसे परीक्षणों को प्रमुख साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. नार्को टेस्ट क्या है?
नार्को टेस्ट एक अन्वेषणात्मक तकनीक है, जिसमें अवरोधों को कम करने और जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से बार्बिट्यूरेट्स जैसी निद्राजनक दवाएँ, उदाहरणार्थ सोडियम पेंटोथल, दी जाती हैं।

2. बलपूर्वक नार्को टेस्ट असंवैधानिक क्यों हैं?
ये संविधान के अनुच्छेद 20(3) के अंतर्गत आत्म-अभिसाक्ष्य के लिये बाध्य न किये जाने के अधिकार का उल्लंघन करते हैं तथा अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का अतिक्रमण करते हैं।

3. सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य (2010) में सर्वोच्च न्यायालय ने क्या निर्णय दिया?
न्यायालय ने निर्णय दिया कि स्वतंत्र और सूचित सहमति के बिना किये गए नार्को टेस्ट असंवैधानिक हैं तथा उनके परिणाम साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं हैं।

4. क्या स्वैच्छिक नार्को टेस्ट कानूनी रूप से स्वीकार्य है?
हाँ, एक व्यक्ति BNSS की धारा 253 के तहत बचाव के चरण में स्वैच्छिक रूप से नार्को टेस्ट का विकल्प चुन सकता है, किंतु इसे कराने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत 'निजता का अधिकार' संरक्षित है? (2021)

(a) अनुच्छेद 15

(b) अनुच्छेद 19

(c) अनुच्छेद 21

(d) अनुच्छेद 29

उत्तर:C

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