प्रारंभिक परीक्षा
बिल्डिंग-इंटीग्रेटेड फोटोवोल्टिक्स
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
जैसे-जैसे भारत के नगर ऊर्ध्व दिशा में विस्तार कर रहे हैं और पारंपरिक रूफटॉप सौर पैनलों के लिये स्थान सीमित होता जा रहा है, विशेषज्ञ बिल्डिंग-इंटीग्रेटेड फोटोवोल्टिक्स (BIPV) को एक मापनीय और भूमि-तटस्थ विकल्प के रूप में देख रहे हैं।
- विश्व बैंक के अनुसार, भारत को वर्ष 2047 तक एक विकसित देश बनाने के लिये आवश्यक नगरीय अवसंरचना का 70% भाग अभी बनाया जाना बाकी है। यदि बिल्डिंग-इंटीग्रेटेड फोटोवोल्टिक्स (BIPV) को डिज़ाइन के चरण से ही एकीकृत किया जाए, तो स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को तेज़ी से प्राप्त किया जा सकता है।
बिल्डिंग-इंटीग्रेटेड फोटोवोल्टिक्स क्या है?
- परिचय: BIPV में सौर ऊर्जा उत्पन्न करने वाले घटक (फोटोवोल्टिक (PV) सेल) सीधे भवन की संरचना — जैसे कि अग्रभाग, छत, खिड़कियाँ और रेलिंग — में शामिल किये जाते हैं, जो पारंपरिक सामग्री जैसे टाइल, काँच या क्लैडिंग का स्थान लेते हैं।
- पारंपरिक रूफटॉप सोलर (RTS) प्रणालियों के विपरीत, जो भवनों की छत पर स्थापित की जाती हैं, BIPV भवन के डिज़ाइन का अभिन्न हिस्सा बन जाता है।
- BIPV मॉड्यूल बिजली उत्पन्न करते हैं, साथ ही भवन की संरचनात्मक और सौंदर्यात्मक आवश्यकताओं को भी पूरा करते हैं।
- भारत में BIPV की आवश्यकता: रूफटॉप सोलर सिस्टम (RTS) के लिये लगभग 300 वर्ग फुट क्षेत्र की आवश्यकता होती है ताकि 3 किलोवाट (kW) क्षमता प्राप्त की जा सके, हालाँकि कई शहरी घरों और ऊँची इमारतों के पास छाया-रहित छतें उपलब्ध नहीं होतीं।
- उदाहरण के लिये, एक 16-मंज़िला इमारत RTS के माध्यम से केवल लगभग 40 kWp उत्पन्न कर सकती है, जबकि BIPV-समेकित अग्रभाग के जरिये 150 kWp तक विद्युत उत्पन्न की जा सकती है।
- वर्ष 2051 तक भारत की शहरी जनसंख्या के 850 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है, जिससे ऊर्जा की मांग में तीव्र वृद्धि होगी, परंतु RTS एकमात्र इस अंतर को पूरा नहीं कर सकता।
- स्थान की सीमाएँ, कार्यान्वयन में विलंब तथा कम जागरूकता जैसे कारणों से भारत 100 गीगावाट सौर लक्ष्य के साथ वर्ष 2022 तक 40 GW RTS के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका, जो अब वर्ष 2026 तक के लिये बढ़ा दिया गया है। BIPV (Building-Integrated Photovoltaics) इस अंतर को समाप्त करने के साथ-साथ पर्यावरणीय सततता को भी बढ़ावा दे सकता है।
- भारत को वर्ष 2030 तक 300 GW सौर क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिये केवल ग्राउंड-माउंटेड और रूफटॉप सिस्टम पर निर्भर नहीं रहना चाहिये। इस लक्ष्य के लिये भूमि-तटस्थ समाधान, जैसे BIPV को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
- भारत में BIPV की स्थिति: सौर ऊर्जा की घटती लागत और सतत् स्थापत्य की बढ़ती मांग के कारण भारत में BIPV को अपनाने में तेज़ी आ रही है।
- प्रमुख प्रतिष्ठानों में नवी मुंबई स्थित CtrlS डाटासेंटर में 863-kWp प्रणाली, कोलकाता के अक्षय ऊर्जा संग्रहालय में सोलर डोम तथा विजयवाड़ा और साहिबाबाद रेलवे स्टेशनों पर बड़े BIPV प्रतिष्ठान शामिल हैं, जो सार्वजनिक एवं वाणिज्यिक क्षेत्रों में BIPV की विस्तार क्षमता को दर्शाते हैं।
- भारत में BIPV के प्रसार में बाधाएँ: BIPV प्रतिष्ठानों के लिये आवश्यक उच्च प्रारंभिक निवेश एक गंभीर बाधा बनी हुई है, जो इसके व्यापक रूप से अपनाए जाने को सीमित करती है।
- समर्पित नीतियों का अभाव और अपर्याप्त वित्तीय प्रोत्साहन बिल्डरों तथा डेवलपर्स को भवन डिज़ाइन में प्रारंभिक रूप से BIPV को एकीकृत करने से हतोत्साहित करते हैं।
- BIPV में सीमित विशेषज्ञता और आयातित प्रौद्योगिकी पर निर्भरता स्थानीय विनिर्माण एवं तैनाती में बाधा उत्पन्न करती है।
- वास्तुकारों, योजनाकारों और उपभोक्ताओं सहित कई हितधारकों को BIPV के लाभों एवं अनुप्रयोगों के बारे में जानकारी का अभाव है।
भवन-एकीकृत फोटोवोल्टिक्स और पारंपरिक रूफटॉप सौर
विशेषता |
BIPV |
RTS |
एकीकरण |
भवन डिज़ाइन में एकीकृत |
छत के ऊपर स्थापित |
कार्यक्षमता |
दोहरे उद्देश्य (निर्माण सामग्री + विद्युत) |
केवल ऊर्जा उत्पादन हेतु |
इंस्टालेशन |
परिसर, भवन डिज़ाइन का हिस्सा |
मौजूदा इमारतों में आसानी से नवीनीकरण |
लागत |
एकीकरण के कारण उच्चतर |
अपेक्षाकृत कम |
रखरखाव |
जटिल और महँगा |
अपेक्षाकृत कम लागत |
सौर फोटोवोल्टिक्स क्या है?
- सौर PV(फोटोवोल्टिक्स): सौर PV (फोटोवोल्टिक्स) एक ऐसी तकनीक है जो अर्द्धचालक पदार्थों से बने फोटोवोल्टिक्स कोशिकाओं का उपयोग करके सूर्य के प्रकाश को सीधे विद्युत में परिवर्तित करती है।
- जब सूर्य का प्रकाश (फोटॉन) PV सेल पर पड़ता है, तो यह पदार्थ में इलेक्ट्रॉनों को उत्तेजित करता है, जिससे प्रत्यक्ष धारा (DC) विद्युत का प्रवाह उत्पन्न होता है।
- इनवर्टर नामक उपकरणों का उपयोग इस DC विद्युत को प्रत्यावर्ती धारा (AC) में परिवर्तित करने के लिये किया जाता है, जिसका उपयोग घरों और पावर ग्रिड में किया जाता है।
- PV सेल में प्रयुक्त प्रमुख सामग्रियाँ: PV सेल मुख्य रूप से सूर्य के प्रकाश को विद्युत में परिवर्तित करने के लिये सिलिकॉन, कैडमियम टेल्यूराइड और पेरोवस्काइट जैसे अर्द्धचालकों का उपयोग करते हैं
- चाँदी और ताँबे जैसी सुचालक सामग्री विद्युत प्रवाह को सक्षम बनाती हैं, जबकि काँच संरचनात्मक समर्थन एवं आवरण प्रदान करता है।
- EVA (एथिलीन विनाइल एसीटेट) जैसे एनकैप्सुलेंट्स और TPT (टेडलर पॉलिएस्टर टेडलर) जैसे बैकशीट्स कोशिकाओं को नमी, धूल व शारीरिक क्षति से बचाते हैं, जिससे स्थायित्व एवं दक्षता सुनिश्चित होती है।
- सौर PV प्रणालियों के प्रकार:
- ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम: यह प्रणाली बैटरी भंडारण के बिना सीधे राष्ट्रीय ग्रिड से जुड़ी होती है। यह ऊर्जा प्रदान करती है और अतिरिक्त ऊर्जा को ग्रिड में भेज देती है, जिससे विद्युत बिल तथा कार्बन उत्सर्जन दोनों में कमी आती है।
- हालाँकि ग्रिड बंद होने पर यह कार्य करना बंद कर देती है, लेकिन इसमें बैटरियों को जोड़कर इसे हाइब्रिड सिस्टम में अपग्रेड किया जा सकता है।
- ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम: यह प्रणाली पूरी तरह से ग्रिड से स्वतंत्र होती है और दूर-दराज़ के क्षेत्रों या ऊर्जा आत्मनिर्भरता के लिये उपयुक्त होती है। इसमें बैटरियों तथा प्रायः बैकअप जनरेटर भी शामिल होते हैं ताकि निरंतर विद्युत आपूर्ति बनी रहे।
- हाइब्रिड सोलर सिस्टम: यह प्रणाली सौर पैनलों को बैटरी भंडारण के साथ जोड़ती है, जबकि यह ग्रिड से भी जुड़ी रहती है।
- यह अतिरिक्त ऊर्जा को बैटरियों में संग्रहित करती है ताकि विद्युत कटौती केसमय उसका उपयोग किया जा सके, जिससे बैकअप ऊर्जा और अनुकूलन मिलता है।
- ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम: यह प्रणाली बैटरी भंडारण के बिना सीधे राष्ट्रीय ग्रिड से जुड़ी होती है। यह ऊर्जा प्रदान करती है और अतिरिक्त ऊर्जा को ग्रिड में भेज देती है, जिससे विद्युत बिल तथा कार्बन उत्सर्जन दोनों में कमी आती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. 'पी.एम. सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना' के बारे में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2025)
उपर्युक्त कथनों में कौन-कौन से सही हैं? (a) केवल I और II उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न: भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। (2020) |
रैपिड फायर
राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार 2025
स्रोत: पी.आई.बी
भारत की राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार 2025 को 15 नर्सिंग पेशेवरों को प्रदान किया, ताकि स्वास्थ्य देखभाल और जनसेवा में उनके अनुकरणीय योगदान को मान्यता दी जा सके।
राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार
- परिचय: यह पुरस्कार वर्ष 1973 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों, केंद्रशासित प्रदेशों तथा स्वैच्छिक संगठनों में सेवा देने वाले उत्कृष्ट नर्सिंग कर्मियों को सम्मानित करना है।
- यह पुरस्कार नैदानिक देखभाल, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और नर्सिंग प्रशासन में उल्लेखनीय योगदान को मान्यता देता है।
- श्रेणियाँ: इसे 3 श्रेणियों में प्रस्तुत किया गया है: पंजीकृत नर्स एवं मिडवाइफ (RN & RM), पंजीकृत सहायक नर्स एवं मिडवाइफ (RANM) और पंजीकृत महिला आगंतुक।
- पात्रता: पात्र नामांकित व्यक्तियों में अस्पतालों, सामुदायिक परिवेशों, शैक्षणिक संस्थानों या प्रशासनिक भूमिकाओं में कार्यरत नर्सें शामिल हैं।
- पुरस्कार: प्रत्येक पुरस्कार में एक प्रशस्ति-पत्र, 1,00,000 रुपए का नकद पुरस्कार और एक पदक शामिल है।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल
- फ्लोरेंस नाइटिंगेल (1820-1910) एक अंग्रेज़ी समाज सुधारक, सांख्यिकीविद् और आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक थीं।
- वह क्रीमिया युद्ध (जो रूस और ओटोमन साम्राज्य के बीच लड़ा गया) के दौरान प्रसिद्ध हुईं, जब उन्होंने घायल सैनिकों की देखभाल की तथा बेहतर स्वच्छता के माध्यम से मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई।
- उन्होंने लंदन के सेंट थॉमस हॉस्पिटल में नाइटिंगेल स्कूल ऑफ नर्सिंग की स्थापना की, जिसने आधुनिक नर्सिंग शिक्षा की नींव रखी।
और पढ़ें: स्टेट ऑफ द वर्ल्ड नर्सिंग, 2025 रिपोर्ट
रैपिड फायर
ट्रोजन हॉर्स स्टाइल ड्रोन हमला
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
यूक्रेन ने ट्रकों में छिपाकर ले जाए जा रहे मोबाइल लकड़ी के केबिनों में लगे FPV (फर्स्ट पर्सन व्यू) ड्रोन के माध्यम से एक गुप्त ट्रोजन हॉर्स जैसी रणनीति अपनाते हुए रूसी हवाई ठिकानों पर हमला किया।
- FPV ड्रोन ऐसे मानवरहित हवाई वाहन (UAV) होते हैं, जिन्हें दूर से नियंत्रित किया जा सकता है। जिनमें आगे की ओर लगा कैमरा ऑपरेटर को लाइव वीडियो प्रसारित करता है। इससे ऑपरेटर को "पायलट जैसा दृश्य" प्राप्त होता है।
ट्रोजन हॉर्स
- ट्रोजन हॉर्स शब्द का महत्त्व पौराणिक कथाओं (ग्रीक) और साइबर सुरक्षा दोनों में है।
- पौराणिक कथाओं में, यह धोखे का प्रतिनिधित्व करता है - एक उपहार के रूप में प्रस्तुत एक छुपा हुआ खतरा।
- साइबर सुरक्षा में, ट्रोजन हॉर्स (या ट्रोजन) एक प्रकार का मैलवेयर है जो वैध प्रतीत होता है लेकिन एक बार इंस्टॉल हो जाने पर गुप्त रूप से सिस्टम तक अनधिकृत पहुँच प्रदान करता है।
- यह अक्सर उपयोगकर्त्ताओं को इसे डाउनलोड करने या खोलने के लिये धोखा देने हेतु सोशल इंजीनियरिंग का उपयोग करता है, जो प्राचीन कथा की भ्रामक रणनीति को प्रतिबिंबित करता है।
- सैन्य और भूराजनीति में, ट्रोजन हॉर्स का तात्पर्य गुप्त रणनीति से है, जहाँ क्षत्रु को घुसपैठ करने या नुकसान पहुँचाने के लिये हथियार, एजेंट या तकनीक को हानिरहित दिखने वाली वस्तुओं के भीतर छुपाया जाता है।
साइबर हमला
- साइबर हमला किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा किसी अन्य व्यक्ति या संगठन की सूचना प्रणाली में सेंध लगाने का दुर्भावनापूर्ण और जानबूझकर किया गया प्रयास है।
- प्रकार:
और पढ़ें: साइबर धोखाधड़ी , आधुनिक युद्ध में UAV
रैपिड फायर
3 DPSU को मिनीरत्न का दर्जा
स्रोत: पी.आई.बी.
रक्षा मंत्रालय ने तीन प्रमुख रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (DPSU) — म्यूनिशंस इंडिया लिमिटेड (MIL), आर्मर्ड व्हीकल्स निगम लिमिटेड (AVNL) और इंडिया ऑप्टेल लिमिटेड (IOL) — को "मिनीरत्न (श्रेणी-I)" का दर्जा प्रदान करने को मंज़ूरी दी है।
- DPSU का रूपांतरण: MIL, AVNL और IOL वे सात सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में से तीन हैं, जिन्हें वर्ष 2021 में पूर्ववर्ती आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) से अलग किया गया था, जो भारत सरकार के रक्षा क्षेत्र सुधारों का हिस्सा है।
- MIL के उत्पादों में गोलाबारूद (छोटे से लेकर उच्च कैलिबर तक), मोर्टार, रॉकेट, ग्रेनेड और स्वनिर्मित विस्फोटक शामिल हैं।
- AVNL के उत्पादों में MBT अर्जुन, T-90 टैंक्स, BMP-II सरथ (जलीय पैदल सेना युद्ध वाहन) और रक्षा गतिशीलता समाधान (स्टालियन, LPTA आदि) शामिल हैं।
- IOL टैंक्स, तोपखाना और नौसैनिक हथियारों के लिये ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम और दृष्टि उपकरणों में विशेषज्ञता रखता है।
- मिनीरत्न श्रेणी-I दर्जा: जिन CPSE ने पिछले तीन वर्षों में लगातार लाभ कमाया है, कम-से-कम तीन वर्षों में कर-पूर्व लाभ 30 करोड़ रुपए या उससे अधिक है तथा जिनकी निवल संपत्ति सकारात्मक है, वे मिनीरत्न-I का दर्जा दिये जाने के लिये पात्र हैं।
- मिनीरत्न कंपनियों को निवेश करने, पूंजी जुटाने और त्वरित निर्णय लेने के लिये अधिक स्वायत्तता प्राप्त होती है। इससे उनकी कार्यक्षमता, प्रतिस्पर्द्धात्मकता और वैश्विक पहुँच बढ़ती है।
भारत में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (CPSEs) का वर्गीकरण
श्रेणी |
शुरुआत |
मानदंड (Criteria) |
उदाहरण |
महारत्न |
मई, 2010 में |
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नवरत्न |
1997 में |
मिनीरत्न श्रेणी-I तथा अनुसूची ‘A’ की वे कंपनियाँ जिन्हें पिछले 5 वर्षों में समझौता ज्ञापन प्रणाली (MoU system) के तहत ‘उत्कृष्ट’ या ‘अत्यंत उत्तम’ रेटिंग प्राप्त हुई हो और जो नीचे दिए गए 6 में से कम से कम कुछ प्रदर्शन मानकों में कुल 60 या उससे अधिक स्कोर प्राप्त करती हों: 1. नेट प्रॉफिट टू नेट वर्थ 2. मानव संसाधन लागत का कुल लागत से अनुपात 3. मूल्यह्रास, ब्याज एवं कर पूर्व लाभ का पूंजी से अनुपात 4. ब्याज एवं कर पूर्व लाभ का टर्नओवर से अनुपात 5. प्रति शेयर आय 6. अंतर-क्षेत्रीय प्रदर्शन |
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मिनीरत्न |
1997 में |
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रैपिड फायर
भारत का पहला स्वदेशी पोलर रिसर्च पोत
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (GRSE), जो भारत सरकार का एक उपक्रम है, ने नॉर्वे की कंपनी कॉन्सबर्ग के साथ भारत का पहला स्वदेशी पोलर रिसर्च वेसल (PRV) विकसित करने के लिये समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।
- PRV एक ऐसा जहाज़ होता है जो ध्रुवीय क्षेत्रों (उत्तर तथा दक्षिण ध्रुव के आस-पास) और समुद्री क्षेत्रों में अनुसंधान का समर्थन करता है, जिसे राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCPOR) की आवश्यकताओं के अनुसार तैयार किया गया है।
- PRV भारत के ध्रुवीय और समुद्री अनुसंधान मिशनों का समर्थन करेगा, जिससे इसके मौजूदा तीन अनुसंधान स्टेशन — अंटार्कटिका में भारती और मैत्री तथा आर्कटिक में हिमाद्री — को सुदृढ़ किया जाएगा।
- इस पोत में उन्नत वैज्ञानिक उपकरण लगाए जाएंगे ताकि ध्रुवीय और दक्षिणी महासागर क्षेत्रों में समुद्री पारिस्थितिक तंत्र तथा गहरे समुद्र की जैवविविधता का अन्वेषण किया जा सके।
- यह परियोजना भारत की सुरक्षा के लिये पारस्परिक और समग्र उन्नति (MAHASAGAR) के प्रति प्रतिबद्धता को और मज़बूत करेगी।
- सागरमाला 2.0 के तहत भारत का लक्ष्य बुनियादी ढाँचे की कमी को पूरा करके तथा जहाज़ निर्माण, मरम्मत और पुनर्चक्रण को बढ़ाकर वैश्विक समुद्री नेता बनना है।
- नॉर्वे के साथ यह सहयोग भारत के ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत लक्ष्यों के अनुरूप है, जो देश में स्वदेशी जहाज़ निर्माण क्षमता को बढ़ावा देता है।
और पढ़ें: भारत का पहला शीतकालीन आर्कटिक अनुसंधान
रैपिड फायर
रहस्यमयी तारे द्वारा रेडियो तरंग और एक्स-रे का उत्सर्जन
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
खगोलविदों ने एक अनोखी खगोलीय वस्तु की खोज की है जो हर 44 मिनट में एक साथ रेडियो तरंगें और एक्स-रे उत्सर्जित करती है। यह वस्तु हाल ही में पहचानी गई श्रेणी "दीर्घ-अवधि रेडियो ट्रान्सिएंट" की एक दुर्लभ सदस्य के रूप में चिह्नित की गई है।
- यह मिल्की वे आकाशगंगा में स्थित है और पृथ्वी से लगभग 15,000 प्रकाश-वर्ष दूर, स्कूटम तारामंडल की दिशा में पाया गया है।
- दीर्घ-अवधि रेडियो ट्रान्सिएंट कुछ मिनटों से लेकर घंटों तक की अवधि में तीव्र रेडियो विस्फोट उत्सर्जित करते हैं, जो सामान्य पल्सर की तुलना में कहीं अधिक समय लेते हैं। पल्सर तेज़ घूर्णन के कारण मिलीसेकंड्स से सेकंड्स में चमकते और बुझते रहते हैं।
- पल्सर तेज़ी से घूमने वाले न्यूट्रॉन तारे होते हैं, जो किसी विशाल तारे के क्षय के बाद उसके संकुचित कोर से बनते हैं।
- इस वस्तु की प्रकृति अभी तक अज्ञात है और इसकी संभावित पहचानों में शामिल हैं:
- एक मैग्नेटार (एक घूर्णनशील न्यूट्रॉन तारा जिसमें अत्यंत शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र होता है)
- एक श्वेत बौना, जो एक द्विआधारी प्रणाली (बाइनरी सिस्टम) में अपने साथी तारे के साथ स्थित होता है।
- सूर्य से आठ गुना तक अधिक द्रव्यमान वाले तारे श्वेत बौने (White Dwarf) के रूप में अपना अंत करते हैं। हाइड्रोजन ईंधन समाप्त हो जाने के बाद, ये तारे लाल दानव (Red Giant) के रूप में फैल जाते हैं, अपनी बाह्य परतों को छोड़ देते हैं और अंततः सिकुड़कर पृथ्वी के आकार के एक घने कोर में बदल जाते हैं, जिसे श्वेत बौना कहा जाता है।
- एक मैग्नेटार (एक घूर्णनशील न्यूट्रॉन तारा जिसमें अत्यंत शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र होता है)
- शोधकर्त्ताओं ने अपने अध्ययन के लिये नासा की चंद्रा एक्स-रे वेधशाला और अन्य दूरबीनों से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग किया।
- रेडियो तरंगों की तरंगदैर्घ्य लंबी और आवृत्ति कम होती है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से रेडियो तथा टेलीविज़न जैसे संचार के लिये किया जाता है। एक्स-रे की तरंगदैर्घ्य कम और आवृत्ति अधिक होती है, जिससे वे पदार्थों में प्रवेश कर सकते हैं तथा इनका व्यापक रूप से चिकित्सा इमेजिंग में उपयोग किया जाता है।
और पढ़ें: मैग्नेटर्स से संबंधित एस्ट्रोसैट की खोज