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डेली न्यूज़

  • 31 May, 2025
  • 47 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

WHO द्वारा वैश्विक महामारी संधि का समर्थन

प्रिलिम्स के लिये:

WHO महामारी संधि, गैर-संचारी रोग, रोगाणुरोधी प्रतिरोध, जलवायु परिवर्तन, हृदय रोग, मलेरिया।

मेन्स के लिये:

वर्तमान में विश्व को प्रभावित करने वाली प्रमुख स्वास्थ्य चुनौतियाँ, वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल प्रयासों में भारत की अग्रणी भूमिका, वैश्विक स्वास्थ्य प्रबंधन को नियंत्रित करने वाला वर्तमान संस्थागत कार्य ढाँचा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी 78वीं वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में WHO संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत विश्व की पहली वैश्विक महामारी संधि को अंगीकृत किया है। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य सुरक्षा को उन्नत बनाने के साथ महामारी से निपटने के क्रम में समान अनुक्रिया सुनिश्चित करना है।  

WHO की वैश्विक महामारी संधि क्या है? 

  • परिचय: इसे 20 मई, 2025 को अंगीकृत किया गया था। यह वैश्विक स्वास्थ्य ढाँचे को सुदृढ़ करने तथा महामारी के दौरान निदान, टीके एवं चिकित्सा के लिये समय पर न्यायसंगत सुगम्यता सुनिश्चित करने के क्रम में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सिद्धांतों को निर्धारित करने पर केंद्रित है।
    • यह संधि हस्ताक्षर और अनुसमर्थन के लिये खुली है तथा 60 देशों द्वारा अनुसमर्थन के बाद बाध्यकारी बन जाएगी।
  • पृष्ठभूमि: महामारी संधि के लिये वार्ता दिसंबर 2021 में कोविड-19 के ओमिक्रॉन वैरिएंट के दौरान शुरू हुई, जब विकसित देशों द्वारा वैक्सीन की होर्डिंग/जमाखोरी से अविकसित देशों को पहुँच से वंचित कर दिया गया
    • अध्ययनों से पता चला है कि समान वैक्सीन वितरण से दस लाख से अधिक लोगों की जान बचाई जा सकती थी। अनुचित समन्वय और असमानता को दूर करने के लिये, WHO के सदस्य देशों ने इस संधि को तैयार करने के लिये सहयोग किया।
  • प्रमुख प्रावधान: 
    • पैथोजन एक्सेस और न्यायसंगत साझाकरण: फार्मा कंपनियों को पैथोजन सैंपल (रोगजनक के नमूनों) और डेटा तक पहुँच दी जाएगी, बशर्ते कि वे महामारी-संबंधी टीकों, उपचारों एवं जाँच उपकरणों का 10% भाग WHO को निशुल्क उपलब्ध कराएँ तथा अन्य 10% को सस्ती दरों पर आपूर्ति करें।
    • प्रौद्योगिकी एवं ज्ञान हस्तांतरण: सदस्य देशों को विकासशील देशों में टीकों और दवाओं के स्थानीय उत्पादन को सक्षम बनाने हेतु तकनीक एवं विशेषज्ञता साझा करने के लिये प्रोत्साहित करना होगा।
    • समन्वय वित्तीय तंत्र और GSCL: सदस्य देशों ने महामारी की रोकथाम, तैयारी और अनुक्रिया के लिये एक समन्वय वित्तीय तंत्र की शुरुआत करने का आदेश दिया।
      • वैश्विक आपूर्ति शृंखला और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क (GSCL) को अंतर्राष्ट्रीय चिंता की सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान बाधाओं को दूर करने तथा महामारी से संबंधित स्वास्थ्य उत्पादों तक न्यायसंगत, समय पर, सुरक्षित एवं सस्ती पहुँच सुनिश्चित करने के लिये लॉन्च किया गया था।
    • अनुसंधान वित्तपोषण एवं पहुँच अधिकार: देशों को यह सुनिश्चित करना होगा कि सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित अनुसंधान में परिणामी चिकित्सा उत्पादों तक समय पर और उचित पहुँच की शर्तें शामिल हों। 
      • यदि सार्वजनिक धन से विकसित जीवनरक्षक दवाइयाँ अप्राप्य या अनुपलब्ध हों तो सरकारों को हस्तक्षेप करना चाहिये।
    • संप्रभुता संरक्षित: WHO को राष्ट्रीय कानूनों को दरकिनार करने या यात्रा प्रतिबंध, टीकाकरण आवश्यकताओं या लॉकडाउन जैसे आदेश लागू करने से रोक दिया गया है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि देशों का महामारी प्रतिक्रियाओं पर पूर्ण अधिकार बना हुआ है।

WHO के वैश्विक महामारी समझौते से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?

  • सीमित WHO अधिकार: यह संधि स्पष्ट रूप से WHO को राष्ट्रीय कानूनों को निर्देशित करने या यात्रा प्रतिबंध, टीकाकरण अनिवार्यता या लॉकडाउन जैसे उपाय लागू करने की शक्तियों से वंचित करती है, जिससे संकट के दौरान प्रवर्तन और अनुपालन सीमित हो जाता है।
  • बौद्धिक संपदा और नवाचार: दवा कंपनियाँ उच्च जोखिम वाले अनुसंधान और नवाचार का समर्थन करने के लिये मज़बूत बौद्धिक संपदा (IP) संरक्षण एवं कानूनी निश्चितता की मांग करती हैं, जो महामारी के दौरान न्यायसंगत पहुँच के साथ इनके बीच संतुलन बनाने की चुनौती पर प्रकाश डालती है।
  • अस्पष्ट लाभ-साझाकरण तंत्र: रोगजनक पहुँच और लाभ-साझाकरण प्रणाली (PABS) का उद्देश्य जैविक सामग्रियों (रोगजनकों) एवं जीनोम अनुक्रमों के साझाकरण को नियंत्रित करना है, ताकि टीकों और निदान तक समान पहुँच सहित निष्पक्ष लाभ-साझाकरण सुनिश्चित किया जा सके। 
    • हालाँकि इसके कार्यान्वयन में स्पष्टता का अभाव है और तंत्र पर अभी भी बातचीत चल रही है, जिसे वर्ष 2026 के विश्व स्वास्थ्य सभा में अंतिम रूप दिये जाने की उम्मीद है।
  • WHO से अमेरिका का बाहर होना: वैश्विक दवा निर्माण में एक प्रमुख देश, अमेरिका का WHO से बाहर होना, इस संधि के प्रभाव को कमज़ोर करता है, क्योंकि इसकी फार्मा कंपनियाँ डेटा साझा करने या संधि के प्रावधानों का पालन करने के लिये बाध्य नहीं हैं, जिससे वैश्विक समन्वय में बड़ा अंतर उत्पन्न हो रहा है।

WHO महामारी समझौते में भारत का योगदान

  • समानता और वैश्विक एकजुटता का समर्थन: भारत विशेष रूप से निम्न-मध्यम आय अर्थव्यवस्थाओं (LMIC) के लिये टीकों, निदान तथा चिकित्सा तक उचित पहुँच का समर्थन करता है एवं उसने वैक्सीन राष्ट्रवाद का मुकाबला करने और समय पर वैश्विक समर्थन सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत समानता खंडों पर ज़ोर दिया है।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और IPR लचीलेपन के लिये समर्थन: भारत ने दक्षिण अफ्रीका के साथ साझेदारी में कोविड-19 टीकों और चिकित्सा विज्ञान के लिये बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) पर छूट के लिये विश्व व्यापार संगठन में वैश्विक आह्वान का नेतृत्व किया।
    • यह विकासशील देशों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुगम बनाने तथा विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने के लिये संधि में संतुलित बौद्धिक संपदा अधिकार प्रावधानों पर ज़ोर दे रहा है।
  • स्वास्थ्य प्रणाली के लचीलेपन पर ज़ोर: भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना, कार्यबल क्षमता निर्माण और विशेष रूप से कम संसाधन वाले क्षेत्रों में लचीली स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने के लिये प्रशिक्षण में वैश्विक निवेश बढ़ाने का समर्थन करता है।

प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियाँ क्या हैं?

और पढ़ें: वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियाँ

वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन को आकार देने और आगे बढ़ाने में भारत की भूमिका क्या है?

और पढ़ें: वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में भारत की भूमिका

नोट

  • 78वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में ऑस्ट्रिया, नॉर्वे, ओमान और सिंगापुर को उनकी खाद्य आपूर्ति से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैटी एसिड (TFA) को समाप्त करने के लिये सम्मानित किया।

Trans Fatty Acids

ट्रांस फैट के विरुद्ध प्रयास:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ट्रांस फैट की मात्रा को कुल फैट के 2 ग्राम/100 ग्राम तक सीमित कर दिया है अथवा आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत तेलों (PHO) पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • REPLACE एक्शन फ्रेमवर्क (2018), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा वर्ष 2025 तक औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट के वैश्विक उन्मूलन के लिये शुरू की गई पहल है।
    • इसने वर्ष 2025 के अंत तक उन देशों में ट्रांस फैट उन्मूलन नीतियों को लागू करने का लक्ष्य रखा था, जो वैश्विक ट्रांस फैट का कम-से-कम 90% और प्रत्येक क्षेत्र में कम-से-कम 70% का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • हालाँकि मई 2025 तक केवल 60 देशों (वैश्विक जनसंख्या का 46%) ने ही सर्वोत्तम-प्रथाओं पर आधारित नीतियाँ अपनाई हैं।
  • भारत की भूमिका:
    • भारत ने खाद्य सुरक्षा एवं मानक (बिक्री पर निषेध और प्रतिबंध) विनियम, 2021 के तहत वर्ष 2022 में तेल और वसा में ट्रांस फैट पर 2% की सीमा लागू की।

निष्कर्ष

WHO महामारी संधि एक अधिक न्यायसंगत और समन्वित वैश्विक स्वास्थ्य ढाँचे की दिशा में एक ऐतिहासिक परिवर्तन को दर्शाता है। यह कोविड-19 से मिली सीख को संस्थागत रूप देता है, जिससे तीव्र प्रतिक्रिया, वैक्सीन तक न्यायसंगत पहुँच और सुदृढ़ स्वास्थ्य प्रणालियाँ सुनिश्चित की जा सकें। भारत और अन्य देशों के लिये इसका शीघ्र अंगीकरण एवं प्रभावी कार्यान्वयन भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों से सुरक्षा प्रदान करने तथा वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा को मज़बूत करने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. WHO वैश्विक महामारी संधि क्या है? इसे अपनाने में आने वाली चुनौतियों और कोविड-19 के बाद विश्व में वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन को मज़बूत करने में इसके महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना।
  2.  छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना।
  3.  बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना।
  4.  पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. ‘‘एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।’’ विश्लेषण कीजिये। (2021)

प्रश्न. भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' प्राप्त करने हेतु समुचित स्थानीय सामुदायिक स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल का मध्यक्षेप एक पूर्वापेक्षा है। व्याख्या कीजिये। (2018)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

OPEC+ उत्पादन रणनीति में बदलाव

प्रिलिम्स के लिये:

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन, K-शेप्ड रिकवरी, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA), विश्व व्यापार संगठन (WTO)

मेन्स के लिये:

वैश्विक तेल आपूर्ति गतिशीलता और OPEC+, भारत की ऊर्जा सुरक्षा और तेल आयात पर निर्भरता

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

सऊदी अरब के नेतृत्व वाले पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC)+ समूह ने तेल उत्पादन में 411,000 बैरल प्रतिदिन (BPD) की वृद्धि करने का निर्णय लिया है। यह उत्पादन वृद्धि का लगातार तीसरा महीना है, जो वर्ष 2023 में शुरू की गई स्वैच्छिक उत्पादन कटौती को धीरे-धीरे परिवर्तित कर रहा है।

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन

  • OPEC एक स्थायी अंतर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1960 में बगदाद सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला द्वारा की गई थी, जिसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के वियना में है। 
    • OPEC में वर्तमान में 12 सदस्य हैं, जिनमें अल्जीरिया, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेज़ुएला शामिल हैं।
    • OPEC सदस्य देशों के बीच तेल नीतियों का समन्वय करने के लिये कार्य करता है ताकि स्थिर कीमतें, उपभोक्ताओं को निरंतर आपूर्ति और निवेशकों के लिये उचित रिटर्न सुनिश्चित किया जा सके।
    • OPEC देश विश्व के लगभग 30% कच्चे तेल का उत्पादन करते हैं, 80% प्रमाणित भंडार उनके पास हैं और वैश्विक निर्यात में इनका योगदान लगभग 50% है तथा सऊदी अरब OPEC में सबसे बड़ा उत्पादक देश है। 
  • OPEC+ का गठन वर्ष 2016 में OPEC और 10 अन्य तेल उत्पादक देशों के बीच गठबंधन के रूप में किया गया था, जिसका उद्देश्य अमेरिकी शेल तेल के उत्पादन में वृद्धि के कारण तेल की कीमतों में हुई गिरावट के दृष्टिगत प्रतिस्पर्द्धा करना था।
    • OPEC+ में OPEC के सदस्यों के अतिरिक्त अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कज़ाखस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान शामिल हैं।
    • OPEC और OPEC+ देश संयुक्त रूप से वैश्विक तेल उत्पादन का लगभग 60% उत्पादन करते हैं।

OPEC+ द्वारा तेल उत्पादन में वृद्धि के कारण क्या थे?

  • उत्पादन में कटौती का अपर्याप्त प्रभाव: वर्ष 2023 में, आठ OPEC+ सदस्यों ने तेल की गिरती कीमतों के दृष्टिगत स्वेच्छा से तेल उत्पादन में प्रतिदिन 2.2 मिलियन बैरल (bpd) की कटौती करने का निर्णय लिया।
    • इन कटौतियों के बावजूद, तेल की वैश्विक कीमतों में गिरावट जारी रही, जो बाज़ार पर अपर्याप्त प्रभाव का संकेत है।
  • OPEC+ के अंतर्गत अतिउत्पादन में वृद्धि: कज़ाखस्तान, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और नाइजीरिया जैसे देशों ने अपनी निर्धारित सीमाओं से अधिक तेल का उत्पादन किया। इस विषय में सऊदी अरब चिंतित था चूँकि उसने लगभग 3 मिलियन bpd की सबसे अधिक कटौती की थी।
  • कोविड के बाद बाज़ार की कमज़ोरी: महामारी के बाद आर्थिक पुनर्प्राप्ति K-आकार की रही है, जिसके परिणामस्वरूप तेल की मांग में कमज़ोरी और असमानता देखी गई है। तेल बाज़ार में अब OPEC+ के बाहर कई स्वतंत्र उत्पादक हैं, जिससे यह और अधिक जटिल हो गया है।
    • महँगे अपतटीय और कठिन क्षेत्रों में अत्यधिक निवेश किया गया है, जहाँ राजनीतिक तथा  आर्थिक कारणों से, भले ही लाभ कम हो, उत्पादन जारी रखना आवश्यक है।
    • रूस, ईरान और वेनेज़ुएला जैसे बड़े तेल निर्यातक अमेरिकी प्रतिबंधों से सीमित हैं।
    • ब्राज़ील और गुयाना जैसे गैर-OPEC+ उत्पादक भी उत्पादन बढ़ा रहे हैं, जिससे वैश्विक अतिआपूर्ति बढ़ रही है।
    • अमेरिका में शेल उत्पादक में वृद्धि हुई हैं, जिससे बाज़ार अधिक प्रतिस्पर्द्धी हो गया है और OPEC+ नियंत्रणों के प्रति कम संवेदनशील हो गया है।
  • मूल्य समर्थन से बाज़ार हिस्सेदारी की ओर बदलाव: मूल्य स्थिरीकरण के प्रयास विफल होने के बाद, सऊदी अरब ने मूल्य के बजाय बाज़ार हिस्सेदारी पर ध्यान केंद्रित करने की अपनी पुरानी रणनीति को पुनर्जीवित किया।
    • सऊदी अरब को अपनी विशाल अतिरिक्त तेल उत्पादन क्षमता तथा स्थिर राजस्व बनाए रखने के लिये स्थिर, मध्यम उच्च कीमतों को प्राथमिकता देने के कारण "स्विंग प्रोड्यूसर" के रूप में जाना जाता है।
    • हालाँकि जब अन्य उत्पादक अपने निर्धारित कोटे से अधिक उत्पादन करते हैं, तो सऊदी अरब उच्च लागत वाले उत्पादकों पर दबाव बनाने और अपने नेतृत्व को पुनः स्थापित करने के लिये बाज़ार में वृद्धि कर देता है (जैसा कि वर्ष 1985-86, वर्ष 1998, वर्ष 2014-16 और वर्ष 2020 में देखा गया है)।

OIL_Production

वैश्विक तेल मांग किस प्रकार विकसित हो रही है?

  • वैश्विक तेल मांग में गिरावट: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, वर्ष 2025 में वैश्विक तेल की मांग में केवल 0.73% की वृद्धि होने की संभावना है। 
    • ‘अधिकतम मांग' (Peak Demand) सिद्धांत (यह विचार कि वैश्विक तेल मांग अपने उच्चतम बिंदु पर पहुँच जाएगी और फिर स्थायी रूप से कम हो जाएगी) को वैश्विक आर्थिक मंदी, बढ़ते EV अंगीकरण और सुदृढ़ जलवायु-परिवर्तन कार्रवाई जैसे संकेतकों के साथ मान्यता प्राप्त हो रही है। 
      • इन प्रवृत्तियों के साथ-साथ अमेरिकी टैरिफ युद्ध जैसे व्यवधानों के कारण वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (S&P ग्लोबल ने वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर वर्ष 2025 में केवल 2.2% और वर्ष 2026 में 2.4% रहने का अनुमान लगाया है, जो वर्ष 2008 की आर्थिक मंदी के बाद सबसे कम दर मानी जा रही है) और व्यापार पूर्वानुमान में कमी आई है। 
    • परिणामस्वरूप, तेल की मांग स्थिर हो सकती है तथा आपूर्ति संबंधी बाधाएँ कम होने पर भी कीमतें नहीं बढ़ सकती हैं। 
  • व्यापार जोखिम: विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने वर्ष 2025 में वैश्विक व्यापार में 0.2% वार्षिक गिरावट का पूर्वानुमान लगाया है। इसके कारण आपूर्ति में कटौती के बावजूद तेल की कीमतें कम रह सकती हैं, जिससे पारंपरिक आपूर्ति-मांग मूल्य तंत्र को चुनौती मिल सकती है।
  • प्रतिबंध और आपूर्ति पक्ष की बाधाएँ: रूस, ईरान और वेनेज़ुएला जैसे प्रमुख तेल उत्पादक अमेरिकी प्रतिबंधों के अधीन (प्रतिबंध हटने पर स्थिति बदल सकती है) हैं, जिससे उनकी निर्यात क्षमता कम हो रही है।

वैश्विक तेल मूल्य अस्थिरता का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

  • भारत की बढ़ती तेल मांग: भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक (चीन और अमेरिका के बाद) है, जिसकी मांग वृद्धि (वर्ष 2024-25 में ~ 3.2%) वैश्विक दर से लगभग चार गुना है।
    • उम्मीद है कि भारत वर्ष 2025 में वैश्विक कच्चे तेल की मांग में लगभग 25% का योगदान देगा और वर्ष 2040 तक प्राथमिक मांग चालक बन जाएगा।
  • अल्पकालिक लाभ: कच्चे तेल की कम कीमतें भारत के आयात बिल को कम कर सकती हैं, क्योंकि तेल की कीमतों में प्रत्येक 1 अमेरिकी डॉलर की गिरावट से सालाना लगभग 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत होगी।
  • दीर्घकालिक जोखिम: तेल राजस्व में गिरावट से खाड़ी क्षेत्र के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की अर्थव्यवस्थाएँ कमज़ोर हो सकती हैं, जिससे द्विपक्षीय व्यापार, निवेश और पर्यटन प्रभावित हो सकते हैं।
    • इससे खाड़ी में नौ मिलियन से अधिक भारतीय प्रवासियों की नौकरी जा सकती है, जिससे विप्रेषण प्रवाह (लगभग 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर) खतरे में पड़ सकता है, जो भारत के भुगतान संतुलन को सहारा देता है।
    • तेल और गैस क्षेत्र से जुड़े कर राजस्व में भी कमी आती है, जिससे सरकारी वित्त प्रभावित हो सकता है।
  • विविधीकरण की आवश्यकता: भारत के सामने हाइड्रोकार्बन पर निर्भरता कम करने तथा अस्थिर तेल बाज़ारों से होने वाले जोखिमों को कम करने के लिये नए विकास चालकों को विकसित करने की रणनीतिक अनिवार्यता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: OPEC+ ने अपना ध्यान मूल्य नियंत्रण से हटाकर बाज़ार हिस्सेदारी पर केंद्रित कर लिया है। इस परिवर्तन का वैश्विक तेल बाज़ारों और भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. वेनेज़ुएला के अलावा दक्षिण अमेरिका से निम्नलिखित में से कौन OPEC का सदस्य है? (2009)

(a) अर्जेंटीना

(b) ब्राज़ील

(c) इक्वाडोर

(d) बोलीविया

उत्तर: (c)

मेन्स

प्रश्न. "वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस० डी० जी०) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)


भारतीय अर्थव्यवस्था

MSME विकास के उत्प्रेरक के रूप में मध्यम उद्यमों का सुदृढ़ीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, विनिर्माण क्षेत्र, मुद्रा योजना विस्तार, उद्यम पोर्टल, गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन, आर्थिक समीक्षा 2024-25, डिजिटल MSME 2.0 

मेन्स के लिये:

भारत की आर्थिक संवृद्धि में MSME की भूमिका, MSME क्षेत्र के विकास में बाधा उत्पन्न करने वाले प्रमुख मुद्दे

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

NITI आयोग ने 'मध्यम उद्यमों के लिये नीति की रूपरेखा तैयार करने' (डिज़ाइनिंग अ पॉलिसी फॉर मीडियम इंटरप्राइजेज़) पर एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें भारत के मध्यम आकार के उद्यमों (जिसमें ₹125 करोड़ तक के संयंत्र और मशीनरी में निवेश और ₹500 करोड़ तक का वार्षिक कारोबार करने वाले उद्यम शामिल हैं) को बढ़ावा देने के लिये एक समर्पित रियायती ऋण योजना और सुधारों का प्रस्ताव है। 

  • यह रिपोर्ट लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों के समाधान हेतु एक संभावित रूपरेखा भी हो सकती है, जिससे अधिक समावेशी और विस्तार योग्य MSME पारिस्थितिकी तंत्र का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

मध्यम उद्यमों के लिये NITI आयोग की प्रमुख नीतिगत अनुशंसाएँ क्या हैं?

  • वित्तीय पहुँच को सुविधाजनक बनाना: एक समर्पित कार्यशील पूंजी योजना की शुरुआत की जानी चाहिये जिसमें अधिकतम 25 करोड़ रुपए रियायती ऋण और आपातकालीन निधियों के लिये 5 करोड़ रुपए तक की पूर्व-स्वीकृत सीमा के साथ मध्यम उद्यम क्रेडिट कार्ड की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण और उद्योग 4.0: मौजूदा प्रौद्योगिकी केंद्रों को भारत SME उद्योग 4.0 सक्षमता केंद्रों में अपग्रेड करना, जो हब-एंड-स्पोक मॉडल (एक केंद्रीय इकाई को कई शाखाओं से जोड़ता है) के माध्यम से कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और स्वचालन सहायता प्रदान करते हैं, ताकि सुचारु रूप से इसके उपयोग हेतु व्यापक पहुँच तथा चरणबद्ध कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।
  • अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार में वृद्धि: आत्मनिर्भर भारत कोष से सरकारी वित्तपोषण का 25-30% विशेष रूप से मध्यम उद्यमों के अनुसंधान एवं विकास के लिये आवंटित किया जाना चाहिये। 
    • त्रिस्तरीय शासन प्रणाली स्थापित करना तथा राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप प्रतिस्पर्द्धा आधारित वित्तपोषण को बढ़ावा देना।
  • क्लस्टर-आधारित परीक्षण और गुणवत्ता प्रमाणन: औद्योगिक क्लस्टरों के भीतर क्षेत्र-विशिष्ट परीक्षण सुविधाएँ स्थापित करके, लागत को कम करके और सार्वजनिक-निजी भागीदारी और डिजिटल उपकरणों के माध्यम से निर्यात गुणवत्ता अनुपालन में सुधार करके MSE -क्लस्टर विकास कार्यक्रम को मध्यम उद्यमों तक विस्तारित करना।
  • अनुकूलित कौशल विकास: MSME संपर्क पोर्टल के माध्यम से वास्तविक समय कौशल अंतर मानचित्रण को बढ़ाना और क्लस्टर-विशिष्ट, प्रौद्योगिकी-लिंक्ड एवं निर्यात-उन्मुख प्रशिक्षण को शामिल करने के लिये उद्यमिता व कौशल विकास कार्यक्रम का विस्तार करना। 
  • केंद्रीकृत डिजिटल पोर्टल: उद्यम प्लेटफॉर्म पर एक समर्पित उप-पोर्टल बनाएँ, जिसमें योजनाओं, अनुपालन, वित्त और बाज़ार पहुँच के बारे में जानकारी को समेकित किया जाएगा, जो पात्रता सहायता, अनुपालन ट्रैकिंग व वास्तविक समय नियामक तथा बाज़ार अपडेट के लिये AI उपकरणों के साथ एकीकृत होगा।

नोट: जबकि मध्यम उद्यम उच्च नवाचार, निवेश और निर्यात क्षमता के माध्यम से उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं, सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों सहित पूरे MSME पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है - जो समावेशी आर्थिक विकास व ग्रामीण रोज़गार के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। एक सहक्रियात्मक दृष्टिकोण क्षेत्रीय विकास और लचीलेपन को बढ़ा सकता है।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) क्या हैं?

  • MSME के बारे में: MSME ऐसे व्यवसाय हैं जो वस्तुओं तथा पण्यों का उत्पादन, प्रसंस्करण और संरक्षण करते हैं।
  • वर्गीकरण: विनिर्माण के लिये संयंत्र और मशीनरी या सेवा उद्यमों के लिये उपकरणों में उनके निवेश के साथ-साथ उनके वार्षिक कारोबार के आधार पर इन्हें मुख्य तौर पर सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों में वर्गीकृत किया जाता है।
  • MSME परिदृश्य: उद्यम पोर्टल (फरवरी 2025) के अनुसार, भारत में 5.93 करोड़ MSME हैं, जिनमें सूक्ष्म उद्यम 98% से अधिक हैं, जबकि मध्यम उद्यमों की हिस्सेदारी सिर्फ 0.3% (69,300 इकाइयाँ) है। 
    • 2.95 करोड़ पंजीकृत MSME (MSME वार्षिक रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार) में से 72% सेवा क्षेत्र में और शेष 28% विनिर्माण क्षेत्र में संलग्न हैं।
  • महत्त्व:
    • सकल घरेलू उत्पाद और रोज़गार में योगदान: MSME वर्तमान में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 29% का योगदान करते हैं, 6,000 से अधिक विविध उत्पादों का उत्पादन करते हैं तथा भारत के 60% से अधिक कार्यबल को रोज़गार देते हैं।
      • MSME 27 करोड़ तक का रोज़गार उत्पन्न करते हैं, जिनमें महिलाएँ कार्यबल का 26% हिस्सा हैं।
      • जबकि सूक्ष्म उद्यम MSME क्षेत्र में 89% रोज़गार उत्पन्न करते हैं, मध्यम उद्यम 3% का योगदान देते हैं, लेकिन प्रति इकाई रोज़गार लगभग 89 व्यक्तियों का होता है।
    • निर्यात में योगदान: भारत के निर्यात में MSME का योगदान 40% है, जबकि पंजीकृत MSME में से केवल 1.36% ही निर्यातक हैं।
      • इनमें से 64% का निर्यात कारोबार 1 करोड़ रुपए से कम है।
    • हरित एवं सतत् विकास: MSME स्वच्छ ऊर्जा और परिपत्र अर्थव्यवस्था प्रथाओं को अपनाकर भारत के हरित औद्योगिक अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। RAMP (विश्व बैंक के समर्थन के साथ) और तेलंगाना MSME नीति (4,000 करोड़ रुपए) जैसी योजनाएँ सतत् विकास तथा उद्यमिता पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
    • डिजिटल और तकनीकी परिवर्तन में अग्रणी: MSME तेज़ी से डिजिटल भुगतान, स्वचालन और AI को अपना रहे हैं। ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) और 1 लाख करोड़ रुपए के ब्याज मुक्त नवाचार कोष जैसे कार्यक्रम इस बदलाव का समर्थन करते हैं।
      • MSME के 72% लेन-देन अब डिजिटल हैं।

और पढ़ें: भारत की MSME क्षमता का लाभ उठाना

भारत में MSME से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • वित्त तक पहुँच: मुद्रा योजना और PM विश्वकर्मा जैसी योजनाओं के बावजूद, MSME को संपार्श्विक की कमी, उच्च ब्याज दरों तथा जटिल ऋण प्रक्रियाओं के कारण ऋण संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कई MSME औपचारिक ऋणदाता मानदंडों को पूरा करने में असफल रहते हैं, जिससे वे अविश्वसनीय अनौपचारिक ऋण स्रोतों की ओर बढ़ जाते हैं।
    • SIDBI रिपोर्ट 2025 के अनुसार, सर्वेक्षण किये गए MSME में से 17% ने कोई ऋण नहीं लिया, जबकि 8% अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर थे, सूक्ष्म उद्यम सबसे अधिक प्रभावित हुए (12%)।
  • विनियामक और अनुपालन बोझ: MSME जटिल कर संरचनाओं, निरंतर नीतिगत बदलावों और जनशक्ति एवं विशेषज्ञता की कमी के कारण भारी अनुपालन से जूझ रहे हैं। जबकि GST ने कुछ प्रक्रियाओं को आसान बना दिया है, लेकिन विनियामक बोझ अभी भी भारी है, जिससे दंड और वित्तीय तनाव बढ़ रहा है।
    • श्रम, कराधान और पर्यावरण संबंधी विनियमों में कई अतिव्यापी कानून नौकरशाही संबंधी बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
  • बुनियादी अवसरंचना और रसद अंतराल: खराब परिवहन, भंडारण एवं आपूर्ति शृंखलाओं के कारण लागत और देरी बढ़ जाती है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जिससे बाज़ार का विस्तार तथा ग्राहक संतुष्टि सीमित हो जाती है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में बताया गया है कि भारत में लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद के 14-18% के दायरे में है, जबकि वैश्विक बेंचमार्क 8% है।
  • प्रौद्योगिकी अपनाने में पिछड़ापन: अधिकांश MSME वित्तीय और तकनीकी सीमाओं के कारण AI, IoT एवं ऑटोमेशन जैसी तकनीकों तक पहुँच नहीं बना पाते, जिससे उनकी प्रतिस्पर्द्धा तथा नवाचार क्षमता घट जाती है। डिजिटल भुगतान प्रणाली का एकीकरण कमज़ोर है और साइबर सुरक्षा भी अपर्याप्त बनी हुई है, जिससे परिचालन जोखिम बढ़ जाते हैं।
    • 64 मिलियन MSME में से केवल 7.7 मिलियन ने ही डिजिटल परिपक्वता हासिल की है।
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 45% MSME ने अपने संचालन में किसी न किसी रूप में AI को अपनाया है।
  • कुशल कार्यबल की कमी: MSME आंशिक/अकुशल श्रमिकों पर बहुत निर्भर करते हैं, जो दक्षता को प्रभावित करता है। तकनीकी/प्रबंधकीय भूमिकाओं में लक्षित प्रशिक्षण और कुशल मानव संसाधनों की कमी विकास तथा उत्पादकता को सीमित करती है।
    • लगभग 47% MSME को उपयुक्त कौशल वाले कर्मचारियों की खोज में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से विनिर्माण और IT-सक्षम सेवाओं में, जहाँ सतत् विकास के लिये विशिष्ट प्रतिभा अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • बाजार पहुँच और प्रतिस्पर्द्धा: MSME को कम ब्रांड दृश्यता, सीमित विपणन बजट और सीमित बाज़ार बुद्धिमत्ता का सामना करना पड़ता है।
    • वर्तमान में पंजीकृत MSMEs में से केवल 1.36% निर्यात कर रहे हैं और इनमें भी, मध्यम उद्यम, जो केवल 9% निर्यात करने वाली इकाइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं, MSME निर्यात का 40% योगदान देते हैं।
  • उच्च अनौपचारिकता: हाल ही में हुए सुधारों के बावजूद, अभी भी MSME का एक बड़ा हिस्सा अपंजीकृत है, जो औपचारिक ऋण, सरकारी योजनाओं और IPR/कानूनी सुरक्षा तक पहुँच से वंचित है। अपर्याप्त दस्तावेज़ीकरण विश्वसनीयता एवं मापनीयता को कमज़ोर करता है।

और पढें: MSME क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ 

MSME क्षेत्र को मज़बूत और पुनर्जीवित करने के लिये भारत क्या कदम उठा सकता है?

  • अनुपालन एवं औपचारिकता को सरल बनाना: जटिल कर नियम MSME की लागत बढ़ाते हैं और औपचारिकता को हतोत्साहित करते हैं। 
    • भारत को ब्राज़ील के SIMPLES कार्यक्रम की तरह GST सहज और उद्यम पोर्टल का उपयोग करते हुए सरलीकृत दरों तथा पूर्व-भरे फॉर्म के साथ एकीकृत कर फाइलिंग प्रणाली अपनानी चाहिये। 
    • बढ़ती हुई कंपनियों को सहायता प्रदान करने के लिये, अनुपालन को सरल बनाने के उद्देश्य से कर लाभ के साथ 3 वर्षों का संक्रमण काल प्रदान किया जाना चाहिये।
  • वास्तविक समय (रियल टाइम) की निगरानी और नीति मूल्यांकन: एक केंद्रीय MSME प्रदर्शन डैशबोर्ड बनाया जाना चाहिये ताकि क्रेडिट, प्रौद्योगिकी उपयोग, निर्यात, रोज़गार और कौशल को ट्रैक किया जा सके।
    • एक उच्च-शक्ति वाली MSME परिवर्तन परिषद को डेटा संग्रह और नीति की निगरानी के तहत समन्वय करना चाहिये ताकि बेहतर निगरानी एवं मूल्यांकन किया जा सके।
  • वित्त तक पहुँच में सुधार: छोटे और ग्रामीण MSME को किफायती तथा समय पर ऋण प्राप्त करने में सहायता करने के लिये वैकल्पिक क्रेडिट स्कोरिंग (व्यापार और उपयोगिता भुगतान के आधार पर), ब्लॉकचेन ऋण एवं डिजिटल संपार्श्विक प्रणाली जैसे फिनटेक उपकरणों का उपयोग करना, जिससे विद्यमान क्रेडिट योजनाओं से आगे बढ़ते हैं।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार को प्रोत्साहन: क्षेत्रीय नवाचार केंद्र स्थापित करना जहाँ MSME AI, IoT, रोबोटिक्स और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसी नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर सकें।
    • इन केंद्रों को किफायती तकनीकी सहायता, मार्गदर्शन और अनुसंधान समूहों के साथ कार्य करने के अवसर उपलब्ध कराने चाहिये।
  • कौशल और उद्यमिता का निर्माण: MSME श्रमिकों को डिजिटल कौशल, व्यावसायिक प्रशिक्षण, नेतृत्व और उद्यमिता में प्रशिक्षित करने हेतु एक राष्ट्रीय मिशन शुरू करना चाहिये।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि कार्यबल आधुनिक आवश्यकताओं को पूरा करते है, ऑनलाइन शिक्षण, प्रशिक्षुता और वैश्विक प्रमाणन का उपयोग करना।
  • बाज़ार पहुँच और ब्रांडिंग का विस्तार: एक डिजिटल पोर्टल बनाना जो GeM जैसे घरेलू बाज़ारों को वैश्विक निर्यात प्लेटफार्मों से एकीकृत करे। 
    • इससे MSME के लिये उत्पादों को सूचीबद्ध करना, निर्यात सहायता प्राप्त करना और बाज़ार डेटा तक पहुँचना आसान हो जाएगा। साथ ही, MSME उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिये “वोकल फॉर लोकल” जैसे अभियान चलाना।
  • सतत् और समावेशी विकास का समर्थन करना: MSME को ग्रीन क्रेडिट, कार्बन क्रेडिट और स्थिरता पर प्रशिक्षण के साथ स्वच्छ प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करना। बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देकर, कृषि आधारित उद्योगों का समर्थन करके तथा व्यापार शृंखलाओं में महिलाओं एवं हाशिये के समूहों को शामिल करके ग्रामीण MSME में सुधार करना।

निष्कर्ष

मध्यम उद्यमों के लिये NITI आयोग की सिफारिशें इस प्रमुख क्षेत्र को मज़बूत करने के लिये वित्तीय पहुँच, प्रौद्योगिकी और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करती हैं। सभी MSME को शामिल करने के लिये इन सुधारों का विस्तार करना महत्त्वपूर्ण है। वित्त, नवाचार, बाज़ार पहुँच और स्थिरता को संबोधित करने वाला एक एकीकृत दृष्टिकोण संपूर्ण MSME क्षेत्र को पुनर्जीवित करेगा, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था और रोज़गार को बढ़ावा मिलेगा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. भारत के आर्थिक विकास में MSME की भूमिका पर चर्चा कीजिये तथा उनकी चुनौतियों के समाधान के लिये NITI आयोग की प्रमुख नीतिगत सिफारिशों का विश्लेषण कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न 1. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल की है/ हैं? (2012)

  1. राष्ट्रीय निवेश तथा विनिर्माण क्षेत्रो की स्थापना
  2. 'एकल खिड़की मंज़ूरी' (सिंगल: विड़ो क्लीयरेंस) की सुविधा प्रदान करना
  3. प्रौद्योगिकी अधिग्रहण तथा विकास कोष की स्थापना

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये :

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न 2. सरकार के समावेशित वृद्धि लक्ष्य को आगे ले जाने में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कार्य सहायक साबित हो सकते हैं: (2011)

  1. स्व-सहायता समूहों (सेल्फ-हैल्प ग्रुप्स) को प्रोत्साहन देना
  2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को प्रोत्साहन देना
  3. शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू करना

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये :

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1,2 और 3 

उत्तर: (d)


प्रश्न 3. भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

  1. 'सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (एम.एस.एम.ई.डी.) अधिनियम 2006' के अनुसार, 'जिनके संयंत्र और मशीन में निवेश 15 करोड़ रुपए से 25 करोड़ रुपए के बीच हैं, वे मध्यम उद्यम हैं'।
  2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को दिये गए सभी बैंक ऋण प्राथमिकता क्षेत्रक के अधीन अर्ह हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/है?

(a) केवल 1
(c) 1 और 2 दोनों
(b) केवल 2
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


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