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OPEC+ उत्पादन रणनीति में बदलाव

  • 31 May 2025
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन, K-शेप्ड रिकवरी, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA), विश्व व्यापार संगठन (WTO)

मेन्स के लिये:

वैश्विक तेल आपूर्ति गतिशीलता और OPEC+, भारत की ऊर्जा सुरक्षा और तेल आयात पर निर्भरता

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

सऊदी अरब के नेतृत्व वाले पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC)+ समूह ने तेल उत्पादन में 411,000 बैरल प्रतिदिन (BPD) की वृद्धि करने का निर्णय लिया है। यह उत्पादन वृद्धि का लगातार तीसरा महीना है, जो वर्ष 2023 में शुरू की गई स्वैच्छिक उत्पादन कटौती को धीरे-धीरे परिवर्तित कर रहा है।

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन

  • OPEC एक स्थायी अंतर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1960 में बगदाद सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला द्वारा की गई थी, जिसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के वियना में है। 
    • OPEC में वर्तमान में 12 सदस्य हैं, जिनमें अल्जीरिया, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेज़ुएला शामिल हैं।
    • OPEC सदस्य देशों के बीच तेल नीतियों का समन्वय करने के लिये कार्य करता है ताकि स्थिर कीमतें, उपभोक्ताओं को निरंतर आपूर्ति और निवेशकों के लिये उचित रिटर्न सुनिश्चित किया जा सके।
    • OPEC देश विश्व के लगभग 30% कच्चे तेल का उत्पादन करते हैं, 80% प्रमाणित भंडार उनके पास हैं और वैश्विक निर्यात में इनका योगदान लगभग 50% है तथा सऊदी अरब OPEC में सबसे बड़ा उत्पादक देश है। 
  • OPEC+ का गठन वर्ष 2016 में OPEC और 10 अन्य तेल उत्पादक देशों के बीच गठबंधन के रूप में किया गया था, जिसका उद्देश्य अमेरिकी शेल तेल के उत्पादन में वृद्धि के कारण तेल की कीमतों में हुई गिरावट के दृष्टिगत प्रतिस्पर्द्धा करना था।
    • OPEC+ में OPEC के सदस्यों के अतिरिक्त अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कज़ाखस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान शामिल हैं।
    • OPEC और OPEC+ देश संयुक्त रूप से वैश्विक तेल उत्पादन का लगभग 60% उत्पादन करते हैं।

OPEC+ द्वारा तेल उत्पादन में वृद्धि के कारण क्या थे?

  • उत्पादन में कटौती का अपर्याप्त प्रभाव: वर्ष 2023 में, आठ OPEC+ सदस्यों ने तेल की गिरती कीमतों के दृष्टिगत स्वेच्छा से तेल उत्पादन में प्रतिदिन 2.2 मिलियन बैरल (bpd) की कटौती करने का निर्णय लिया।
    • इन कटौतियों के बावजूद, तेल की वैश्विक कीमतों में गिरावट जारी रही, जो बाज़ार पर अपर्याप्त प्रभाव का संकेत है।
  • OPEC+ के अंतर्गत अतिउत्पादन में वृद्धि: कज़ाखस्तान, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और नाइजीरिया जैसे देशों ने अपनी निर्धारित सीमाओं से अधिक तेल का उत्पादन किया। इस विषय में सऊदी अरब चिंतित था चूँकि उसने लगभग 3 मिलियन bpd की सबसे अधिक कटौती की थी।
  • कोविड के बाद बाज़ार की कमज़ोरी: महामारी के बाद आर्थिक पुनर्प्राप्ति K-आकार की रही है, जिसके परिणामस्वरूप तेल की मांग में कमज़ोरी और असमानता देखी गई है। तेल बाज़ार में अब OPEC+ के बाहर कई स्वतंत्र उत्पादक हैं, जिससे यह और अधिक जटिल हो गया है।
    • महँगे अपतटीय और कठिन क्षेत्रों में अत्यधिक निवेश किया गया है, जहाँ राजनीतिक तथा  आर्थिक कारणों से, भले ही लाभ कम हो, उत्पादन जारी रखना आवश्यक है।
    • रूस, ईरान और वेनेज़ुएला जैसे बड़े तेल निर्यातक अमेरिकी प्रतिबंधों से सीमित हैं।
    • ब्राज़ील और गुयाना जैसे गैर-OPEC+ उत्पादक भी उत्पादन बढ़ा रहे हैं, जिससे वैश्विक अतिआपूर्ति बढ़ रही है।
    • अमेरिका में शेल उत्पादक में वृद्धि हुई हैं, जिससे बाज़ार अधिक प्रतिस्पर्द्धी हो गया है और OPEC+ नियंत्रणों के प्रति कम संवेदनशील हो गया है।
  • मूल्य समर्थन से बाज़ार हिस्सेदारी की ओर बदलाव: मूल्य स्थिरीकरण के प्रयास विफल होने के बाद, सऊदी अरब ने मूल्य के बजाय बाज़ार हिस्सेदारी पर ध्यान केंद्रित करने की अपनी पुरानी रणनीति को पुनर्जीवित किया।
    • सऊदी अरब को अपनी विशाल अतिरिक्त तेल उत्पादन क्षमता तथा स्थिर राजस्व बनाए रखने के लिये स्थिर, मध्यम उच्च कीमतों को प्राथमिकता देने के कारण "स्विंग प्रोड्यूसर" के रूप में जाना जाता है।
    • हालाँकि जब अन्य उत्पादक अपने निर्धारित कोटे से अधिक उत्पादन करते हैं, तो सऊदी अरब उच्च लागत वाले उत्पादकों पर दबाव बनाने और अपने नेतृत्व को पुनः स्थापित करने के लिये बाज़ार में वृद्धि कर देता है (जैसा कि वर्ष 1985-86, वर्ष 1998, वर्ष 2014-16 और वर्ष 2020 में देखा गया है)।

OIL_Production

वैश्विक तेल मांग किस प्रकार विकसित हो रही है?

  • वैश्विक तेल मांग में गिरावट: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, वर्ष 2025 में वैश्विक तेल की मांग में केवल 0.73% की वृद्धि होने की संभावना है। 
    • ‘अधिकतम मांग' (Peak Demand) सिद्धांत (यह विचार कि वैश्विक तेल मांग अपने उच्चतम बिंदु पर पहुँच जाएगी और फिर स्थायी रूप से कम हो जाएगी) को वैश्विक आर्थिक मंदी, बढ़ते EV अंगीकरण और सुदृढ़ जलवायु-परिवर्तन कार्रवाई जैसे संकेतकों के साथ मान्यता प्राप्त हो रही है। 
      • इन प्रवृत्तियों के साथ-साथ अमेरिकी टैरिफ युद्ध जैसे व्यवधानों के कारण वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (S&P ग्लोबल ने वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर वर्ष 2025 में केवल 2.2% और वर्ष 2026 में 2.4% रहने का अनुमान लगाया है, जो वर्ष 2008 की आर्थिक मंदी के बाद सबसे कम दर मानी जा रही है) और व्यापार पूर्वानुमान में कमी आई है। 
    • परिणामस्वरूप, तेल की मांग स्थिर हो सकती है तथा आपूर्ति संबंधी बाधाएँ कम होने पर भी कीमतें नहीं बढ़ सकती हैं। 
  • व्यापार जोखिम: विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने वर्ष 2025 में वैश्विक व्यापार में 0.2% वार्षिक गिरावट का पूर्वानुमान लगाया है। इसके कारण आपूर्ति में कटौती के बावजूद तेल की कीमतें कम रह सकती हैं, जिससे पारंपरिक आपूर्ति-मांग मूल्य तंत्र को चुनौती मिल सकती है।
  • प्रतिबंध और आपूर्ति पक्ष की बाधाएँ: रूस, ईरान और वेनेज़ुएला जैसे प्रमुख तेल उत्पादक अमेरिकी प्रतिबंधों के अधीन (प्रतिबंध हटने पर स्थिति बदल सकती है) हैं, जिससे उनकी निर्यात क्षमता कम हो रही है।

वैश्विक तेल मूल्य अस्थिरता का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

  • भारत की बढ़ती तेल मांग: भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक (चीन और अमेरिका के बाद) है, जिसकी मांग वृद्धि (वर्ष 2024-25 में ~ 3.2%) वैश्विक दर से लगभग चार गुना है।
    • उम्मीद है कि भारत वर्ष 2025 में वैश्विक कच्चे तेल की मांग में लगभग 25% का योगदान देगा और वर्ष 2040 तक प्राथमिक मांग चालक बन जाएगा।
  • अल्पकालिक लाभ: कच्चे तेल की कम कीमतें भारत के आयात बिल को कम कर सकती हैं, क्योंकि तेल की कीमतों में प्रत्येक 1 अमेरिकी डॉलर की गिरावट से सालाना लगभग 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत होगी।
  • दीर्घकालिक जोखिम: तेल राजस्व में गिरावट से खाड़ी क्षेत्र के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की अर्थव्यवस्थाएँ कमज़ोर हो सकती हैं, जिससे द्विपक्षीय व्यापार, निवेश और पर्यटन प्रभावित हो सकते हैं।
    • इससे खाड़ी में नौ मिलियन से अधिक भारतीय प्रवासियों की नौकरी जा सकती है, जिससे विप्रेषण प्रवाह (लगभग 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर) खतरे में पड़ सकता है, जो भारत के भुगतान संतुलन को सहारा देता है।
    • तेल और गैस क्षेत्र से जुड़े कर राजस्व में भी कमी आती है, जिससे सरकारी वित्त प्रभावित हो सकता है।
  • विविधीकरण की आवश्यकता: भारत के सामने हाइड्रोकार्बन पर निर्भरता कम करने तथा अस्थिर तेल बाज़ारों से होने वाले जोखिमों को कम करने के लिये नए विकास चालकों को विकसित करने की रणनीतिक अनिवार्यता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: OPEC+ ने अपना ध्यान मूल्य नियंत्रण से हटाकर बाज़ार हिस्सेदारी पर केंद्रित कर लिया है। इस परिवर्तन का वैश्विक तेल बाज़ारों और भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. वेनेज़ुएला के अलावा दक्षिण अमेरिका से निम्नलिखित में से कौन OPEC का सदस्य है? (2009)

(a) अर्जेंटीना

(b) ब्राज़ील

(c) इक्वाडोर

(d) बोलीविया

उत्तर: (c)

मेन्स

प्रश्न. "वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस० डी० जी०) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018)

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