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डेली न्यूज़

  • 30 May, 2025
  • 24 min read
शासन व्यवस्था

NGO विनियामक ढाँचे पर पुनर्विचार

प्रिलिम्स के लिये:

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, आपातकाल, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), PM पोषण, सेबीवर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF), भारतीय राष्ट्रीय कला और सांस्कृतिक विरासत ट्रस्ट - INTACH। 

मेन्स के लिये:

FCRA के अंतर्गत गैर सरकारी संगठनों का विनियमन तथा भारत में उनके बेहतर कामकाज के लिये सुधार का सुझाव दिया गया।

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

गृह मंत्रालय (MHA) ने हाल ही में विदेशी अंशदान (विनियमन) नियम, 2011 में नए संशोधनों की घोषणा की है, जो भारत में कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों (NGO) द्वारा विदेशी धन प्राप्त करने और उसका उपयोग करने के तरीके को प्रभावित करेंगे।

NGO के लिये नए FCRA नियमों के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • प्रकाशन गतिविधियों पर प्रतिबंध: प्रकाशन-संबंधी गतिविधियों में संलग्न गैर सरकारी संगठनों को अब भारत के समाचार-पत्र रजिस्ट्रार से एक प्रमाण-पत्र प्राप्त करना होगा, जिसमें मीडिया विनियमों के अनुपालन की पुष्टि की जाएगी तथा यह घोषित किया जाएगा कि वे “समाचार-पत्र नहीं हैं।”
  • वित्तीय प्रकटन: FCRA, 2010 पंजीकरण के लिये आवेदन करने वाले गैर सरकारी संगठनों को पिछले तीन वर्षों के वित्तीय विवरण और लेखा परीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी, जिसमें परिसंपत्ति एवं देनदारियाँ, आय व व्यय तथा प्राप्तियाँ साथ ही भुगतान खाते शामिल हैं।
  • FATF अनुपालन: गैर सरकारी संगठनों को वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) के सर्वोत्तम अभ्यास दिशा-निर्देशों के अनुपालन की घोषणा करनी होगी, जो विदेशी वित्तीय प्रवाह की निगरानी को मज़बूत करने के भारत के प्रयासों के अनुरूप है।
  • विदेशी योगदान प्राप्त करने के लिये नई आवश्यकताएँ: गैर सरकारी संगठनों को विदेशी दाताओं से एक प्रतिबद्धता-पत्र प्रस्तुत करना होगा, जिसमें दान का मिलान व्यय के विवरण के साथ एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के साथ किया जाना चाहिये।
  • पूर्व में पंजीकृत NGO के लिये दायित्व: यदि किसी NGO का FCRA पंजीकरण समाप्त हो गया है या रद्द कर दिया गया है, तो उसे पूर्व में प्राप्त विदेशी अंशदान की प्राप्ति और उपयोग का विवरण देते हुए एक हलफनामा प्रस्तुत करना होगा।

विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम

  • FCRA का परिचय: FCRA 1976 में आपातकाल के दौरान भारत में व्यक्तियों, संघों और संगठनों द्वारा विदेशी योगदान की स्वीकृति एवं उपयोग को विनियमित करने के लिये बनाया गया एक कानून है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि ऐसे योगदान का उपयोग केवल वैध उद्देश्यों के लिये किया जाए तथा राष्ट्रीय हित से समझौता न किया जाए
  • संशोधन: विदेशी अंशदान को नियंत्रित करने वाले कानून को आधुनिक बनाने के लिये  मूल FCRA अधिनियम, 1976 को निरस्त कर दिया गया और वर्ष 2010 में उसके स्थान पर नया कानून लाया गया।
    • वर्ष 2020 में, नियमों को कड़ा करने और विदेशी दान की निगरानी में सुधार करने के लिये अतिरिक्त संशोधन पेश किये गए।

NGO क्या हैं और भारत में इनका विनियमन किस प्रकार होता है?

  • परिचय: यह स्वतंत्र रूप से कार्यरत गैर-लाभकारी संगठन होते हैं जिनका प्रमुख बल मानवीय, सामाजिक या विकासात्मक उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। 
  • भारत में गैर सरकारी संगठनों का गठन: 
    • सोसायटी: इनका पंजीकरण सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत होता है।
    • ट्रस्ट: निजी ट्रस्ट भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 (जो एक केंद्रीय विधि है) के तहत पंजीकृत होते हैं।
      • सरकारी ट्रस्ट, संबंधित राज्य विधियों के तहत पंजीकृत होते हैं।
    • धर्मार्थ कंपनियाँ: इनका पंजीकरण कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के तहत गैर-लाभकारी कंपनियों के रूप में होता है।
  • विदेशी अंशदान विनियमन: विदेशी अंशदान या दान प्राप्त करने वाले गैर सरकारी संगठनों को गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा प्रशासित विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010 के तहत पंजीकरण या अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
    • FCRA, 2010 के तहत व्यक्तियों, संघों या कंपनियों (NGO सहित) द्वारा विदेशों से प्राप्त किये जाने वाले धन और उसके उपयोग को विनियमित किया जाता है।
      • इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विदेशी अंशदान का भारत की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा, आर्थिक या वैज्ञानिक हितों में बाधा डालने के साथ लोक व्यवस्था को कमज़ोर करने या किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने में न किया जाए। 
  • विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2020 में प्रमुख संशोधन:
    • यह अनिवार्य किया गया कि सभी विदेशी अंशदान केवल निर्दिष्ट बैंक (भारतीय स्टेट बैंक, दिल्ली) में निर्दिष्ट "FCRA खाते" के माध्यम से प्राप्त किये जाएंगे।
    • प्राप्तकर्त्ता से किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को विदेशी अंशदान का हस्तांतरण निषिद्ध है।
    • प्रशासनिक व्यय की स्वीकार्य सीमा को विदेशी अनुदानों की कुल राशि के 50% से घटाकर 20% कर दिया गया है।
    • केंद्र सरकार को निम्नलिखित अधिकार दिये गए:
      • संक्षिप्त जाँच के बाद विदेशी अंशदान की प्राप्ति या उपयोग को प्रतिबंधित या निलंबित कर सकता है।
      • गैर सरकारी संगठनों के पदाधिकारियों, निदेशकों और प्रमुख अधिकारियों के लिये आधार या अन्य मान्य पहचान पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य किया जाएगा।

गैर सरकारी संगठनों की प्रमुख भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ क्या हैं?

  • शासन: गैर सरकारी संगठन पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देकर लोकतंत्र को सुदृढ़ करते हैं, जिसका उदाहरण एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) है, जिसकी जनहित याचिकाओं के कारण उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड, शिक्षा और संपत्ति का खुलासा अनिवार्य हो गया।
    • वे सरकारी योजनाओं के पूरक भी बनते हैं, जैसे अक्षय पात्र फाउंडेशन, जो कुपोषण के खिलाफ प्रधानमंत्री पोषण योजना का समर्थन करते हैं ।
  • सामाजिक सुधार: गैर सरकारी संगठन मानव अधिकारों की रक्षा करते हैं (उदाहरण के लिये, बचपन बचाओ आंदोलन), महिलाओं को सशक्त बनाते हैं (सेवा), PLWHA (HIV/AIDS से पीड़ित लोग) और LGBTQIA+ समुदायों (नाज़ फाउंडेशन) जैसे हाशिये  पर पड़े समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा गरीबी उन्मूलन करते हैं (गूँज)
  • आपदा राहत और पुनर्वास: सीड्स इंडिया जैसे गैर सरकारी संगठन प्राकृतिक आपदाओं और आपात स्थितियों के दौरान तत्काल सहायता तथा दीर्घकालिक पुनर्वास सहायता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • पर्यावरण संरक्षण: वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) जैसे कई गैर सरकारी संगठन जागरूकता अभियानों और ज़मीनी स्तर की पहलों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा, सतत् विकास को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये कार्य करते हैं।

NGOs

भारत में गैर-सरकारी संगठनों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • विनियामक प्रतिबंध: सख्त FCRA विनियमों के परिणामस्वरूप NGO लाइसेंस रद्द कर दिये गए हैं, जिससे उन्हें विदेशी अंशदान प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है, एक ओर जहाँ घरेलू CSR फंड बड़े पैमाने पर कॉर्पोरेट-संबद्ध NGO की ओर निर्देशित किये जाते हैं, वहीं दूसरी ओर छोटे संगठन कम वित्तपोषित एवं संघर्षरत रह जाते हैं।
  • विश्वास की कमी: NGO पर ‘राष्ट्र-द्रोही’ गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप लगाए जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप उन पर सरकारी जाँच, छापे तथा कभी-कभी प्रतिबंध भी लगाए जाते हैं। उदाहरण के रूप में, ग्रीनपीस इंडिया (Greenpeace India) पर कोयला खनन और परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के विरोध में किये गए अभियानों के माध्यम से आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करने का आरोप लगाया गया जिसके कारण उस पर प्रतिबंध लगाया गया।
  • पारदर्शिता का अभाव: कुछ गैर-सरकारी संगठनों की इस बात के लिये आलोचना की गई है कि वे उत्तरदायित्व निभाने में असफल रहे हैं तथा निर्धारित प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के दायित्वों का पालन नहीं करते। इसके परिणामस्वरूप उन पर सरकारी निगरानी बढ़ गई है तथा जनसामान्य का विश्वास भी घटा है। 
    • कई मामलों में, जिन गैर सरकारी संगठनों ने अपना वार्षिक रिटर्न दाखिल नहीं किया, उनका FCRA पंजीकरण रद्द कर दिया गया।  

भारत में NGO विनियमन को सख्त करने के लिये कौन-से प्रमुख सुधारों की आवश्यकता है?

  • द्वितीय ARC अनुशंसाओं को लागू करना: इसकी अनुशंसाओं के अनुसार, विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) के क्रियान्वयन को विकेंद्रीकृत किया जाना चाहिये, ताकि अनावश्यक प्रशासनिक बाधाओं को कम किया जा सके। इसके साथ ही, कानून की ऐसी व्याख्या सुनिश्चित की जानी चाहिये जो एक ओर जहाँ वास्तविक और लोकहितकारी स्वयंसेवी संगठनों (NGOs) को अत्यधिक नियंत्रण से संरक्षण दे, वहीं दूसरी ओर विदेशी अभिदाय के दुरुपयोग को भी प्रभावी रूप से रोक सके।
  • मनी लॉन्ड्रिंग (AML) के खिलाफ सख्त जाँच: मनी लॉन्डरिंग (धन शोधन) विरोधी उपायों को और सशक्त किया जाना आवश्यक है। भारत चूँकि 'वित्तीय कार्रवाई कार्यबल' (FATF) का सदस्य है, अतः NGO से जुड़ी निधियों के नियमन को FATF के दिशा-निर्देशों से जोड़ा जाना चाहिये। इसके अंतर्गत फर्जी NGOs की पहचान और उन पर कार्रवाई को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, जैसा कि वर्ष 2017 में लगभग 11,000 अवैध NGOs के विरुद्ध कठोर कार्रवाई के माध्यम से किया गया था।
    • SEBI की निगरानी प्रणाली की तर्ज़ पर, NGO फंड डायवर्जन के मामलों में स्वचालित अलर्ट जारी करके भ्रष्ट संस्थाओं को तेज़ी से ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है।
  • घरेलू वित्तपोषण को प्रोत्साहित करना: भारतीय दाताओं के लिये कर प्रोत्साहन प्रदान करना तथा टाटा ट्रस्ट्स की शिक्षा पहल जैसे विश्वसनीय गैर सरकारी संगठनों के साथ कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSO) साझेदारी को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष:

नए FCRA संशोधन विदेशी वित्त पोषित NGO की निगरानी को मज़बूत करते हैं, जिससे पारदर्शिता और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित होती है। हालाँकि डिजिटल ऑडिट, आधार से जुड़े डेटाबेस और घरेलू फंडिंग प्रोत्साहन जैसे संतुलित सुधारों की आवश्यकता है ताकि वास्तविक NGO का समर्थन करते हुए दुरुपयोग को रोका जा सके। FATF के सख्त अनुपालन और भ्रष्ट संस्थाओं को तेज़ी से ब्लैकलिस्ट करने से (विकास संबंधी कार्य में बाधा डाले बिना) जवाबदेहिता में वृद्धि होगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में विदेशी वित्त पोषण प्राप्त करने वाले गैर सरकारी संगठनों के बेहतर विनियमन के लिये आवश्यक सुधारों की जाँच कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न. क्या सिविल सोसाइटी और गैर-सरकारी संगठन आम नागरिक को लाभ पहुँचाने के लिये सार्वजनिक सेवा वितरण का कोई वैकल्पिक मॉडल प्रस्तुत कर सकते हैं? इस वैकल्पिक मॉडल की चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (2021)


मुख्य परीक्षा

अंतर-सेवा संगठन नियम 2025

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

भारत ने अंतर-सेवा संगठन (कमांड, नियंत्रण और अनुशासन) अधिनियम, 2023 के अंतर्गत अंतर-सेवा संगठन (कमांड, नियंत्रण और अनुशासन) नियम, 2025 को अधिसूचित किया है।

अंतर-सेवा संगठन क्या हैं?

  • परिचय: ISO सशस्त्र बलों (सेना, नौसेना और वायु सेना) की दो या अधिक शाखाओं के कर्मियों से बनी इकाइयाँ या कमांड हैं। इन्हें एकीकृत योजना, संचालन तथा रसद की सुविधा हेतु डिज़ाइन किया गया है।
  • ISO अधिनियम 2023: यह अधिनियम विभिन्न सेवाओं से संबंधित पृथक विधियों (जैसे- सेना अधिनियम, 1950, नौसेना अधिनियम, 1957 एवं वायु सेना अधिनियम, 1950) से उत्पन्न चुनौतियों (जिनसे प्राय: संयुक्त-सेवा में समन्वय तथा अनुशासन में बाधा उत्पन्न होती है) का समाधान करने पर केंद्रित है। 
  • यह मौजूदा कानूनों में संशोधन नहीं करता है, फिर भी यह अधिनियम ISO कमांडर-इन-चीफ और ऑफिसर-इन-कमांड को उनकी कमान के अंतर्गत सभी कार्मिकों पर, यद्यपि उनकी सेवा कुछ भी हो, प्रशासनिक और अनुशासनात्मक प्राधिकार प्रदान करता है।  
  • यह अंडमान और निकोबार कमांड तथा रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी जैसे संयुक्त सेवा कमांड संगठनों को औपचारिक रूप से मान्यता देता है तथा नए ISO और संयुक्त सेवा कमांड के सृजन की अनुमति देता है तथा उन्हें कमांडर-इन-चीफ के अधीन रखता है।
  • केंद्र समग्र नियंत्रण बनाए रखता है और नेतृत्व की भूमिकाओं के लिये पात्रता निर्धारित करता है, जबकि कमांडिंग अधिकारी ISO के अंतर्गत इकाई-स्तरीय अनुशासन और प्रशासन का प्रबंधन करते हैं।
  • ISO नियम 2025: ISO अधिनियम, 2023 की धारा 11 के तहत अधिसूचित इन नियमों का उद्देश्य सेना, नौसेना और वायु सेना में ISO के तहत कार्य करते समय अनुशासन तथा प्रशासन के कुशल प्रबंधन को सुनिश्चित करना है, जैसे संयुक्त कमांड या थिएटर कमांड।
  • वर्ष 2025 के नियमों के अनुसार, संयुक्त सेवा कमान और अंतर-सेवा प्रतिष्ठान दोनों में किसी भी दो या सभी तीन सशस्त्र बलों के कार्मिक शामिल होंगे। 
    • संयुक्त सेवा कमान का नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल, एयर मार्शल या वाइस एडमिरल के पद पर कार्यरत कमांडर-इन-चीफ करते हैं।
    • अंतर-सेवा प्रतिष्ठान की कमान मेजर जनरल, एयर वाइस मार्शल, रियर एडमिरल या उससे उच्च रैंक वाले ऑफिसर-इन-कमांड द्वारा संभाली जाती है।
    • ISO नियम 2025 के तहत, यदि कोई कमांडर-इन-चीफ, ऑफिसर-इन-कमांड या कमांडिंग ऑफिसर अवकाश पर है अथवा अनुपस्थित है, तो इंटर-सर्विसेज़ यूनिट के आदेशों में औपचारिक रूप से उसके स्थान पर किसी अन्य को अभिहित किया जाएगा। 
      • आपात स्थिति में बिना किसी पूर्व आदेश के, अगला उच्चतर गठन एक अस्थायी स्थानापन्न नियुक्त करेगा। 
  • अंतर-सेवा संगठनों में कमान और नियंत्रण के संबंध में मौजूदा नियमों या अधिनियमों के अंतर्गत न आने वाले मामलों पर निर्णय के लिये केंद्र सरकार को प्रेषित किया जाएगा।

अंतर-सेवा संगठनों का महत्त्व क्या है?

  • परिवर्द्धित परिचालन सहक्रिया: एकीकृत कमान के तहत एकीकरण से सेना, नौसेना और वायु सेना इकाइयों के बीच संयुक्त नियोजन तथा आपातकालीन समन्वय की सुविधा मिलती है।
  • कारगिल समीक्षा समिति (1999) ने कारगिल युद्ध के दौरान तीनों सशस्त्र बलों के बीच समन्वय के अभाव को उजागर किया और संरचनात्मक सुधारों की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया। इसने संयुक्त परिचालन प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये एकीकृत कमांड की अनुशंसा की। 
    • आधुनिक युद्ध क्षेत्र में जटिल, बहु-क्षेत्रीय खतरों, विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान से संबंधित दो-मोर्चे वाले परिदृश्य में शत्रुओं का सामना करने हेतु तीनों बलों के बीच यह समन्वय अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • संसाधनों का इष्टतम उपयोग: ISO रसद के संग्रहण, अनुरक्षण और सहायता कार्यों में सक्षम है, जिससे दोहराव का समाधान एवं संसाधनों की बचत होती है।
  • बेहतर युद्ध तत्परता: संयुक्त प्रशिक्षण और योजना बहु-क्षेत्रीय संचालन के लिये अंतःक्रियाशीलता तथा तैयारी को बढ़ाते हैं, जिसमें साइबर एवं अंतरिक्ष युद्ध शामिल हैं।
  • सामरिक सुधार एवं आधुनिकीकरण: एकीकरण आधुनिक सैन्य सिद्धांत और अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं (जैसे- अमेरिका एवं चीन) की ओर बदलाव को दर्शाता है।
    • यह भारत की सैन्य संरचना को उभरती भू-राजनीतिक चुनौतियों के साथ समन्वयित करता है और भविष्य में युद्ध के लिये तैयार करने हेतु प्रौद्योगिकी के एकीकरण तथा सिद्धांतात्मक विकास को प्रोत्साहित करता है।

Theaterisation_of_Armed_Forces

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत के सैन्य सुधारों के संदर्भ में अंतर-सेवा संगठनों के महत्त्व के संबंध में विवेचना कीजिये। 

और पढ़ें: भारत की एकीकृत थिएटर कमान

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान में अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का उल्लेख कहाँ है? (2014)

(a) संविधान की उद्देशिका में
(b) राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों में
(c) मूल कर्त्तव्यों में
(d) नौवीं अनुसूची में

उत्तर: (b)


मेन्स: 

प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों की भी चर्चा कीजिये। (2021) 

प्रश्न: "बहुधार्मिक व बहुजातीय समाज के रूप में भारत की विविध प्रकृति, पड़ोस में दिख रहे अतिवाद के संघात के प्रति निरापद नहीं है।" ऐसे वातावरण के प्रतिकार के लिये अपनाई जाने वाली रणनीतियों के साथ विवेचना कीजिये। (2014)


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