ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 29 May, 2025
  • 31 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

AI-संचालित स्वायत्त उपग्रह

प्रिलिम्स के लिये:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जियोस्टेशनरी इक्वेटोरियल ऑर्बिट, चंद्रयान-3, केसलर सिंड्रोम, बाह्य अंतरिक्ष संधि

मेन्स के लिये:

उभरती हुई अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों की चुनौतियाँ और अवसर, उपग्रह प्रणालियों में तकनीकी प्रगति

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) संचालित स्वायत्त उपग्रहों के उदय ने वैश्विक अंतरिक्ष शासन में महत्त्वपूर्ण अंतराल को उजागर किया है। जब उपग्रह खुद निर्णय लेने और कार्य करने लगेंगे, तो कानूनी ज़िम्मेदारी, नैतिक नियमन एवं राजनीतिक संघर्ष के खतरे प्रमुख चिंताओं के केंद्र में आ जाते हैं।

AI-स्वायत्त उपग्रह क्या है?

  • AI-स्वायत्त उपग्रहों से तात्पर्य ऐसे अंतरिक्ष-यान से है जो न्यूनतम या बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के संचालन के लिये AI का लाभ उठाते हैं। 
    • ये उपग्रह डेटा का विश्लेषण करने, निर्णय लेने और वास्तविक समय में स्वतंत्र रूप से कार्य निष्पादित करने के लिये अक्सर मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग तकनीकों पर आधारित उन्नत एल्गोरिदम का उपयोग करते हैं।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • ऑनबोर्ड डेटा प्रोसेसिंग: AI उपग्रहों को अंतरिक्ष में डेटा का विश्लेषण करने, अप्रासंगिक विवरणों को फिल्टर करने और पृथ्वी पर केवल महत्त्वपूर्ण जानकारी भेजने में सक्षम बनाता है, जिससे बैंडविड्थ की बचत होती है तथा देरी कम होती है।
      • अंतरिक्ष आधारित डेटा सेंटर सौर ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं और सीधे अंतरिक्ष में ऊष्मा उत्सर्जित कर सकते हैं, जिससे ऊर्जा की खपत कम हो सकती है। यह दृष्टिकोण स्थलीय डेटा केंद्रों की तुलना में कार्बन उत्सर्जन में नाटकीय रूप से कटौती कर सकता है।
    • स्वार्म इंटेलिजेंस (SI): नक्षत्रों या समूहों में, उपग्रह डेटा साझा कर सकते हैं और सामूहिक रूप से सीख सकते हैं (इसे "हाइव लर्निंग" भी कहा जाता है)। यह पूरे नेटवर्क में सहयोगात्मक व्यवहार और बेहतर प्रदर्शन की अनुमति देता है।
    • स्वचालित संचालन: वे लगातार अपनी स्थिति की निगरानी करते हैं, दोषों की पहचान करते हैं और स्वतंत्र रूप से मरम्मत करते हैं।
    • सामरिक रक्षा : अगली पीढ़ी के AI उपग्रह बेड़े GEO (जियोस्टेशनरी इक्वेटोरियल ऑर्बिट) और LEO (लो अर्थ ऑर्बिट) में एक बहुस्तरीय निगरानी प्रणाली तैयार करेंगे। 
      • उदाहरण के लिये, किसी वस्तु का पता लगाने वाला GEO उपग्रह, किसी LEO उपग्रह को अधिक निकट से निरीक्षण करने का कार्य सौंप सकता है, जिससे वास्तविक समय पर निगरानी और समन्वित प्रतिक्रिया संभव हो सकेगी, जो विज्ञान और रक्षा के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • स्व-निदान: आंतरिक दोषों का पता लगाना और कक्षा में सुधार का प्रयास करना।
    • टकराव से बचाव: अंतरिक्ष में बढ़ते यातायात और मलबे के कारण, स्वायत्त उपग्रह संभावित टकरावों की भविष्यवाणी करने तथा ज़मीनी नियंत्रण से निर्देशों की प्रतीक्षा किये बिना ही बचाव कार्य करने के लिये AI का उपयोग कर सकते हैं।
    • कॉम्बैट समर्थन: उपग्रह स्वायत्त लक्ष्य ट्रैकिंग और संलग्नता के साथ वास्तविक समय में खतरे का पता लगाने की सुविधा प्रदान करते हैं। वे परिस्थितिजन्य आवश्यकताओं के आधार पर संचालन को अनुकूलित कर सकते हैं, जैसे कि आपदाओं के बाद सेंसर को पुनः लक्षित करना या पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण कक्षा को समायोजित करना।
    • अंतरिक्ष अन्वेषण में AI की प्रगति: भारत अगले पाँच वर्षों में 50 AI-संचालित उपग्रहों को लॉन्च करेगा। ये उपग्रह अंतरिक्ष अन्वेषण और राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देंगे, जो अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में AI को एकीकृत करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
      • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा चंद्रयान-3 में AI का ऐतिहासिक उपयोग देखा गया, जब प्रज्ञान रोवर ने बिना ऑर्बिटर के, विक्रम लैंडर के साथ संवाद करने के लिये AI का उपयोग किया गया, जिससे सुरक्षित लैंडिंग, नेविगेशन और संसाधनों का पता लगाने में सहायता मिली।
      • चीन ने अपने थ्री-बॉडी कंप्यूटिंग कांस्टेलेशन के निर्माण के तहत 12 उपग्रहों को लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य विश्व का पहला अंतरिक्ष-आधारित सुपरकंप्यूटर बनाना है । AI से लैस ये उपग्रह कक्षा में डेटा प्रोसेस करते हैं और उन्नत तकनीकों का परीक्षण करते हैं।

नोट: हैदराबाद स्थित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी फर्म टेकमी2स्पेस (TakeMe2Space), अंतरिक्ष में भारत की पहली AI लैब, माई ऑर्बिटल इंफ्रास्ट्रक्चर - टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर (MOI-TD) लॉन्च करेगी। यह मिशन कक्षा में वास्तविक समय डेटा प्रोसेसिंग का प्रदर्शन करेगा, जिससे अंतरिक्ष अनुसंधान अधिक किफायती और सुलभ हो जाएगा।

AI-स्वायत्त उपग्रहों के उभरते जोखिम क्या हैं?

  • दोष निर्धारण और कानूनी अस्पष्टता: यदि एक स्वायत्त उपग्रह त्रुटिपूर्ण गणना करता है और लगभग संघट्ट या वास्तविक क्षति का कारण बनता है, तो यह स्पष्ट नहीं है कि कानूनी रूप से कौन उत्तरदायी है - AI डेवलपर, लॉन्चिंग स्टेट, ऑपरेटिंग यूनिट या स्वामी राष्ट्र।
    • इससे बहु-न्यायालयीय व्यवधान उत्पन्न होते हैं, जहाँ कोई भी एकल इकाई AI निर्णयों के लिये स्पष्ट रूप से जवाबदेह नहीं होती है।
  • AI भ्रम और गलत निर्णय: AI प्रणालियाँ खतरों को गलत तरीके से वर्गीकृत कर सकती हैं, जैसे किसी वाणिज्यिक उपग्रह को शत्रुतापूर्ण वस्तु समझ लेना या किसी हानिरहित वस्तु को टकराव के खतरे के रूप में पहचानना, जिससे अंतरिक्ष में अनपेक्षित टकराव हो सकता है।
    • इससे अनपेक्षित युद्धाभ्यास या रक्षात्मक कार्रवाइयाँ हो सकती हैं जो कूटनीतिक या सैन्य संघर्ष में बदल सकती हैं ।
  • दोहरे उपयोग एवं हथियारीकरण के जोखिम: AI प्रौद्योगिकियों में दोहरे उपयोग का जोखिम है, क्योंकि नागरिक उद्देश्यों के लिये डिज़ाइन किये गए स्वायत्त उपग्रहों को वास्तविक समय की निगरानी, ​​लक्ष्यीकरण अथवा यहाँ तक ​​कि अंतरिक्ष में आक्रामक संचालन के लिये पुन: उपयोग किया जा सकता है, जिससे सैन्य अभियानों में सहायता प्राप्त हो सकती है और साथ ही हथियारों की होड़ को बढ़ावा मिल सकता है।
  • टकराव का जोखिम और कक्षीय मलबा, वर्ष 2030 तक LEO में हज़ारों स्वायत्त उपग्रहों की अपेक्षा की जाती है। समन्वित टकराव-निवारण प्रोटोकॉल के बिना, कई उपग्रहों द्वारा स्वायत्त निर्णयों से अंतरिक्ष यातायात की भीड़, दुर्घटनाएँ या मलबे (केस्लर सिंड्रोम) का कारण बन सकते हैं।
  • मानवीय निगरानी का अभाव: वर्तमान संधियाँ राज्यों द्वारा अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये " प्राधिकरण और निरंतर निगरानी " की मांग करती हैं।
  • हालाँकि सच्ची स्वायत्तता, सार्थक मानवीय नियंत्रण की गुंजाइश को सीमित करती है, जिससे उत्तरदायित्व के बिना स्वचालित निर्णयन संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • प्रमाणन एवं मानकों में अंतराल: विमानन या समुद्री क्षेत्रों के विपरीत, अंतरिक्ष में उपग्रहों में AI की सुरक्षा एवं विश्वसनीयता के परीक्षण और सत्यापन के लिये वैश्विक प्रमाणन संबंधी ढाँचे का अभाव है।
  • प्रतिकूल या असामान्य अंतरिक्ष स्थितियों में AI के प्रदर्शन के लिये कोई वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय मानक नहीं हैं।
  • नैतिक दुविधाएँ: AI उपग्रह स्वचालित घातक आयुध प्रणालियों (LAWS) का समर्थन कर सकते हैं। इससे जीवन-मरण के निर्णय मशीनों को सौंपने के संबंध में नैतिक चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, विशेष रूप से यदि उन्हें अंतरिक्ष में या अंतरिक्ष से तैनात किया जाए, जो कानूनी और नैतिक रूप से विवादास्पद बना हुआ है।
  • स्वायत्त AI युद्ध प्रणालियों में नैतिक दिशा-निर्देशों का अभाव होता है और वे दीर्घकालिक कूटनीतिक परिणामों पर विचार किये बिना निर्णय लेते हैं। जब अंतर्राष्ट्रीय कानूनों या मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है, तब ज़िम्मेदारी सौंपना जटिल हो जाता है।
  • कानूनी अंतराल: वर्तमान अंतरिक्ष कानून जैसे कि बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967) तथा दायित्व अभिसमय (1972) मानवीय नियंत्रण एवं राजकीय उत्तरदायित्व मानते हैं, लेकिन AI-संचालित स्वायत्त उपग्रहों के लिये स्पष्ट प्रावधानों का अभाव है। 
  • OST का अनुच्छेद VI राष्ट्रीय अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये राज्यों को उत्तरदायी मानता है, लेकिन स्वायत्त कार्यों के लिये उत्तरदायित्व को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं करता है।

बाह्य अंतरिक्ष संधि और दायित्व अभिसमय

  • बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967): यह वर्ष 1963 के संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र पर आधारित है और साथ ही यह अंतरिक्ष कानून की आधारशिला भी है। यह अंतरिक्ष में परमाणु और सामूहिक विनाश के हथियारों पर प्रतिबंध लगाता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि अंतरिक्ष का उपयोग सभी देशों द्वारा शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जाए। भारत ने बाह्य अंतरिक्ष संधि की पुष्टि की है।
  • दायित्व अभिसमय (1972): बाह्य अंतरिक्ष संधि (OST) के अनुच्छेद 7 के आधार पर बनाया गया यह अभिसमय प्रक्षेपण करने वाले राज्यों को उनके अंतरिक्ष पिंडों द्वारा पृथ्वी पर होने वाली क्षति के लिये पूर्णतः उत्तरदायी बनाता है और अंतरिक्ष में होने वाली क्षति के लिये दोष-आधारित उत्तरदायित्व निर्धारित करता है। भारत ने दायित्व अभिसमय की पुष्टि की है।

AI-संचालित उपग्रहों के संचालन के लिये रोडमैप क्या होना चाहिये?

  • AI प्रमाणीकरण और परीक्षण: उपग्रहों में AI स्वायत्तता को प्रमाणित करने के लिये वैश्विक मानक बनाए जाने चाहियें, जो विमानन और स्वचालित वाहनों से प्रेरित हों।
  • दायित्व और बीमा रूपरेखा: AI उपग्रहों की विफलता सीमा-पार बहुपक्षीय क्षति पहुँचा सकती है, जिससे दोष निर्धारण और क्षतिपूर्ति जटिल हो जाती है।
    • खतरनाक कार्गो दायित्व पर समुद्री सम्मेलनों (HNS कन्वेंशन,1996) और अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन नियमों (मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, 1999) से प्रेरित होकर, अंतरिक्ष प्रशासन को सम्मिलित बीमा योजनाओं को अपनाना चाहिये।
    • इससे मुआवज़े  की प्रक्रिया सरल और सुचारु हो जाएगी तथा लंबे कानूनी विवादों से बचाव हो सकेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून का अद्यतन: मौजूदा बुनियादी संधियाँ मानव पर्यवेक्षण को आधार मानती हैं, लेकिन AI की स्वायत्तता दायित्व की सीमाओं को अस्पष्ट कर देती है। AI उपग्रहों की स्पष्ट परिभाषा और दायित्व की स्पष्टता के लिये COPUOS के अंतर्गत संशोधन या नए प्रोटोकॉल की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष

अंतरिक्ष अब केवल एक भौतिक सीमा नहीं रह गया है, बल्कि एक डिजिटल रूप से संचालित क्षेत्र बन चुका है। स्वायत्त उपग्रहों के लिये आधुनिक कानूनी ढाँचे की आवश्यकता है। यदि सक्रिय रूप से इस कानूनी ढाँचे का पालन नहीं किया गया, तो अंतरिक्ष में स्वायत्तता नवाचार के बजाय अस्थिरता आ सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: स्वायत्त AI उपग्रहों से जुड़े जोखिमों की जाँच कीजिये। इन जोखिमों को कम करने के लिये कौन-से शासन तंत्र अपनाए जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न: भारत की अपना स्वयं का अंतरिक्ष केंद्र प्राप्त करने की क्या योजना है और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को यह किस प्रकार लाभ पहुँचाएगी?  (2019)


आपदा प्रबंधन

भारत में शहरी बाढ़

प्रिलिम्स के लिये:

शहरी बाढ़, चरम मौसम की घटनाएँ, पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन, भारतीय मौसम विभाग, भारत में बाढ़ प्रबंधन

मेन्स के लिये:

भारत में शहरी बाढ़ में वृद्धि के कारण, शहरी बाढ़ के प्रमुख प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

बंगलूरू में तीव्र प्री-मानसून वर्षा हुई, जिससे भारी जलभराव, झीलों का ओवरफ्लो और जान-माल को गंभीर नुकसान पहुँचा। इस वर्ष मानसून के समय से पहले वर्षा होने के कारण शहर में बाढ़ के खतरे और भी अधिक बढ़ने की संभावना है।

शहरी बाढ़ क्या है?

  • शहरी बाढ़ से तात्पर्य अधिक वर्षा, नदियों के उफान, अवरुद्ध जल निकासी प्रणालियों या अन्य जल-संबंधी घटनाओं के कारण सघन आबादी वाले क्षेत्रों में भूमि या संपत्ति के जलमग्न होने से है।
    • इससे जलभराव होता है, परिवहन बाधित होता है, बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचता है तथा शहरी आबादी के लिये स्वास्थ्य संबंधी खतरा उत्पन्न होता है।
  • उदाहरण: बंगलूरू बाढ़ (2024), दिल्ली बाढ़ (2023), मुंबई बाढ़ (2020), चेन्नई बाढ़ (2015)

Urban_Flooding

भारत में शहरी बाढ़ के प्रमुख कारण क्या हैं?

  • प्राकृतिक कारण:
    • भारी मानसूनी वर्षा: भारतीय उपमहाद्वीप में दक्षिण-पश्चिम मानसून से विशेषरूप से पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में तीव्र मानसूनी वर्षा होती है। मुंबई जैसे शहरों में प्रायः कम समय में भारी वर्षा होती है, जिससे जल निकासी प्रणाली पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।
      • उदाहरण: वर्ष 2015 की चेन्नई बाढ़ बंगाल की खाड़ी के ऊपर चक्रवाती परिसंचरण से जुड़ी अत्यधिक मानसून वर्षा के कारण आई थी ।
  • स्थलाकृति: कई भारतीय शहर बाढ़ के मैदानों या निचले तटीय क्षेत्रों में स्थित हैं (जैसे- कोंकण तट पर मुंबई, गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में कोलकाता)। इन क्षेत्रों में समतल भूभाग और धीमी जल निकासी के कारण स्वाभाविक रूप से अपवाह जमा होता है, जो तटीय शहरों में उच्च ज्वार के प्रभाव से और भी बढ़ जाता है।
    • इसके अलावा, लगभग 900 मीटर की ऊँचाई पर स्थित बंगलूरू जैसे शहरों में प्राकृतिक रूप से अतिरिक्त जल निकासी के लिये प्रमुख नदियों का अभाव है।
  • जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाएँ: जलवायु परिवर्तन के कारण निरंतर तीव्र वर्षा हो रही है, जिससे अचानक बाढ़ आ रही है। 
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2023 में दिल्ली में बाढ़ अत्यधिक वर्षा के कारण आई थी, जिसके कारण यमुना नदी का जल शहरी क्षेत्रों में भर गया था। 
  • मानवजनित कारण:
    • तीव्र शहरीकरण और अवरुद्ध योजना: अनियोजित शहरी विकास के कारण प्राकृतिक जल निकासी चैनलों का कंक्रीटीकरण हो गया है तथा आर्द्रभूमि एवं बाढ़ के मैदानों पर अतिक्रमण हो गया है। 
      • उदाहरण के लिये बंगलूरू में एक समय 1,000 से अधिक झीलें थीं, लेकिन अतिक्रमण और निर्माण के कारण लगभग 80% झीलें नष्ट हो गई हैं या उनका क्षरण हो गया है, जिससे प्राकृतिक जल धारण क्षमता कम हो गई है तथा अपवाह बढ़ गया है। 
  • अपर्याप्त जल निकासी अवसंरचना: कई भारतीय शहर पुरानी, ​​छोटी जल निकासी प्रणालियों पर निर्भर हैं, जो तीव्र वर्षा का प्रबंधन नहीं कर सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिये मुंबई की ब्रिटिशकालीन जल निकासी, जिसे 25 मिमी./घंटा के लिये डिज़ाइन किया गया है, भारी मानसून के दौरान अक्सर भर जाती है, जैसा कि वर्ष 2023 की बाढ़ में देखा गया था। 
  • ठोस अपशिष्ट का कुप्रबंधन: ठोस अपशिष्ट का अनियंत्रित निस्तारण जल निकास मार्गों और वर्षा जल प्रणालियों को अवरुद्ध कर देता है, जिससे शहरी बाढ़ की समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2023 में हिमाचल प्रदेश में प्लास्टिक अपशिष्ट ने प्राकृतिक और कृत्रिम जलमार्गों को अवरुद्ध कर दिया, जिससे बाढ़ का प्रभाव और अधिक गंभीर हो गया।
    • इसके अलावा, वर्ष 2015 में चेन्नई में आई बाढ़, नदी के मुहाने पर स्थित नहरों में गाद व अपशिष्ट के जमा होने तथा अनियंत्रित शहरी विकास के कारण प्राकृतिक जल प्रवाह अवरुद्ध होने से और अधिक भीषण हो गई थी।
  • वनोन्मूलन: पर्वतीय क्षेत्रों में झूम कृषि और चारण के कारण वनोन्मूलन एवं  अनुचित भूमि उपयोग के कारण सतही अपवाह और गाद का जमाव बढ़ जाता है, जिससे निम्न शहरी क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है। 
    • उदाहरण के लिये, असम में  गुवाहाटी को ऐसे वनोन्मूलन के कारण बार-बार बाढ़ का सामना करना पड़ता है।

Cities_Vulnerable_to_Urban_Flooding

शहरी बाढ़ के प्रमुख प्रभाव क्या हैं?

  • आर्थिक क्षति और बुनियादी ढाँचे को नुकसान: शहरी बाढ़ से सड़क, पुल, विद्युतऔर जल प्रणालियों जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को गंभीर नुकसान होता है, जिससे जीर्णोद्धार की लागत बहुत अधिक हो जाती है और आर्थिक व्यवधान उत्पन्न होता है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2015 की चेन्नई बाढ़ के कारण 15,000 करोड़ रुपए से अधिक की क्षति हुई, जिससे परिवहन और विद्युतआपूर्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट: शहरी बाढ़ से सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बढ़ता है, क्योंकि इससे जल जमा हो जाता है, जिससे मच्छरों की संख्या में वृद्धि होती है और मलेरिया एवं डेंगू जैसी बीमारियाँ बढ़ती हैं। दूषित पेयजल से हैज़ा, टाइफाइड और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियाँ भी फैलती हैं। 
    • उदाहरण: वर्ष 2020 में केरल में आई बाढ़ के कारण लेप्टोस्पायरोसिस और अन्य जलजनित रोगों में वृद्धि देखी गई।
  • विस्थापन और सामाजिक भेद्यता: शहरी बाढ़ से सुभेद्य समूहों, विशेषरूप से अनौपचारिक बस्तियों और निचले इलाकों के निवासियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हज़ारों लोग विस्थापित हो जाते हैं, आवास खो देते हैं और बुनियादी सेवाओं तक उनकी पहुँच नहीं हो पाती, जिससे गरीबी और असमानता में वृद्धि होती है। 
    • वर्ष 2022 की मुंबई बाढ़ के कारण मलिन बस्तियों में रहने वालों को गंभीर विस्थापन और आजीविका के नुकसान का सामना करना पड़ा।
  • पारिस्थितिकी क्षरण और जल प्रदूषण: शहरी बाढ़ प्रदूषक, सीवेज़ और औद्योगिक अपशिष्ट को झीलों और नदियों में ले जाती है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है और जैवविविधता कम होती है। बंगलूरू की झीलों में देखा जाने वाला यह प्रदूषण भूजल पुनर्भरण और प्राकृतिक बाढ़ नियंत्रण को बाधित करता है ।
    • इसके अलावा, तीव्र अपवाह से मृदा क्षरण होता है और हरित क्षेत्रों को क्षति पहुँचती है, जिससे शहरी जल संकट और भी गंभीर हो जाता है।
  • अतिभारित बुनियादी ढाँचा: बार-बार आने वाली शहरी बाढ़ जल निकासी, अपशिष्ट प्रबंधन और शहरी नियोजन में विफलताओं को उजागर करती है। अवरुद्ध नालियाँ, अपर्याप्त वर्षा जल प्रणालियाँ और जल निकायों पर अतिक्रमण बाढ़ को और प्रभावित करती हैं। 
    • मुंबई की पुरानी जल निकासी व्यवस्था, जो वर्ष 2023 की बाढ़ के दौरान देखी गई थी, अक्सर ध्वस्त हो जाती है, जिससे गंभीर जलभराव होता है तथा आपातकालीन सेवाएँ बाधित होती हैं।

Cities_Vulnerable_to_Urban_Flooding

शहरी बाढ़ के प्रति समुत्थानशीलता हेतु क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • एकीकृत जलग्रहण प्रबंधन: संपूर्ण नदी बेसिनों का समग्र प्रबंधन (जिसमें ऊपरी और निचले क्षेत्रों के प्रभावों को ध्यान में रखा जाता है) बाढ़ को स्रोत पर ही नियंत्रित करने में मदद करता है।
    • उदाहरण के लिये, नीदरलैंड के "रूम फॉर द रिवर" प्रोजेक्ट में नदियों के सुरक्षित विस्तार के लिये विशेष स्थान बनाए गए हैं। इसी तरह के उपायों को भारतीय शहरी संदर्भ में अपनाकर बाढ़ के जोखिम को कम किया जा सकता है।
  • सतत् शहरी जल निकासी प्रणालियों (SUDS) को बढ़ावा देना: पारगम्य फुटपाथ (permeable pavements), वर्षा उद्यान (Rain Gardens), जैव-मार्ग (Bio-Swales) तथा डिटेंशन और अवरोध बेसिन (Detention Basins) जैसे समाधानों को अपनाकर वर्षा जल को स्रोत पर ही प्रबंधित किया जा सकता है। यह प्राकृतिक जलचक्र की नकल करता है और जल के रिसाव को बढ़ाता है।
  • स्पंज सिटी अवधारणा को अपनाना: स्पंज सिटी दृष्टिकोण में शहरी परिदृश्यों को डिज़ाइन करना शामिल है जो प्राकृतिक और इंजीनियर समाधानों के माध्यम से वर्षा जल को अवशोषित, संग्रहीत तथा शुद्ध करते हैं, जिससे अपवाह एवं बाढ़ के प्रभाव को कम किया जा सके।
    • चीन का शंघाई शहर इस मॉडल पर हरित छतें (green roofs), पारगम्य सतहें और हरित स्थान विकसित कर रहा है। 
    • इसी प्रकार, मुंबई में भी बाढ़ प्रतिरोधक क्षमता और भूजल पुनर्भरण बढ़ाने के लिये इस मॉडल को अपनाया जा रहा है।
  • जल निकायों का पुनरुद्धार: शहरी झीलों, आर्द्रभूमि और प्राकृतिक जल धारण क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने से बाढ़ अवशोषण क्षमता में वृद्धि होती है। 
  • बंगलूरू की जक्कुर झील का पुनरुद्धार पारिस्थितिकी पुनरुद्धार के माध्यम से बाढ़ की रोकथाम को प्रभावी ढंग से दर्शाता है।
  • सामुदायिक सहभागिता एवं पूर्व चेतावनी प्रणाली: बाढ़ की रोकथाम और प्रतिक्रिया में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी से लचीलापन मजबूत होता है। 
    • अहमदाबाद के  हीट एक्शन प्लान के समान मजबूत पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ स्थापित करना, जिसमें सामुदायिक पहुँच भी शामिल है, शहरी बाढ़ प्रबंधन में सुधार के लिये अपनाई जा सकती हैं ।
    • सिंगापुर का स्मार्ट वाटर असेसमेंट नेटवर्क (SWAN) वास्तविक समय में जल स्तर को ट्रैक करने के लिये रिमोट सेंसर का उपयोग करता है, SMS के माध्यम से अलर्ट जारी करता है, ताकि त्वरित सार्वजनिक प्रतिक्रिया और बाढ़ की तैयारी सुनिश्चित हो सके। भारत भी इससे प्रेरणा प्राप्त कर सकता है। 

निष्कर्ष

भारत में शहरी बाढ़, जो अनियोजित शहरी विकास एवं जलवायु परिवर्तन के कारण होती है जीवन, संपत्ति और बुनियादी ढाँचे के लिये एक गंभीर खतरा उत्पन्न करती है। एक लचीले दृष्टिकोण के लिये स्पंज सिटी सिद्धांतों, स्मार्ट स्टॉर्मवाटर प्रबंधन, आर्द्रभूमि के पुनर्स्थापन और जलवायु-अनुकूल शहरी योजना का एकीकरण आवश्यक है। दीर्घकालिक बाढ़ न्यूनीकरण और सतत् शहरी विकास के लिये सक्रिय समुदाय भागीदारी और संस्थागत समन्वय महत्त्वपूर्ण हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

शहरी बाढ़ में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों पर चर्चा कीजिये तथा प्रभावी बाढ़ प्रबंधन के लिये उपाय सुझाइये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs)  

मुख्य परीक्षा:

Q. नदियों को आपस में जोड़ने से सूखा, बाढ़ और बाधित नौवहन जैसी बहुआयामी अंतर-संबंधित समस्याओं का व्यवहार्य समाधान प्राप्त किया जा सकता है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये । (2020)

Q. भारत में हैदराबाद और पुणे जैसे स्मार्ट शहरों सहित लाखों शहरों में भारी बाढ़ के कारणों का विवरण दीजिये, तथा स्थायी उपचारात्मक उपाय सुझाइये।  (2020)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2