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डेली न्यूज़

  • 02 Jun, 2025
  • 36 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

RBI वार्षिक रिपोर्ट 2024-25

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, सकल घरेलू उत्पाद, हेडलाइन मुद्रास्फीति, मौद्रिक नीति समिति, तरलता समायोजन सुविधा, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ, चालू खाता घाटा, वित्तीय समावेशन सूचकांक, पूंजीगत व्यय

मेन्स के लिये:

वित्तीय स्थिरता और मौद्रिक नीति प्रबंधन सुनिश्चित करने में RBI की भूमिका, भारत की व्यापक आर्थिक स्थिरता पर मुद्रास्फीति की अस्थिरता का प्रभाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2024-25 जारी की, जिसमें देश की मौद्रिक नीति, वित्तीय स्थिरता, नियामक पहल और प्रमुख आर्थिक विकास का व्यापक अवलोकन प्रदान किया गया।

भारतीय रिज़र्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट 2024–25: प्रमुख बिंदु

  • वैश्विक आर्थिक वृद्धि: वैश्विक वृद्धि वर्ष 2024 में 3.3% तक धीमी हो गई, जो 3.7% (वर्ष 2000-19) के ऐतिहासिक औसत से कम है। भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार संरक्षणवाद और बढ़े हुए सार्वजनिक ऋण के बीच वर्ष 2025 में वृद्धि 2.8% और वर्ष 2026 में 3.0% रहने की उम्मीद है।
    • वैश्विक मुद्रास्फीति वर्ष 2023 में 6.6% से घटकर वर्ष 2024 में 5.7% हो जाएगी, लेकिन प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में सेवा मुद्रास्फीति स्थिर बनी रहेगी।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था का लचीलापन: भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर वर्ष 2024-25 में घटकर 6.5% रह गई, फिर भी यह विश्व स्तर पर सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बनी रही।
    • कृषि सकल मूल्य संवर्द्धन (GVA) में 4.6% की वृद्धि हुई (पिछले वर्ष यह 2.7% थी), जो रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन और अनुकूल मौसम के कारण संभव हुआ।
    • औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि धीमी होकर 4.3% हो गई तथा सेवा क्षेत्र 7.5% की वृद्धि के साथ सुदृढ़ बना रहा तथा GVA में इसकी हिस्सेदारी 64.1% रही।
  • RBI बैलेंस शीट: मार्च, 2025 तक RBI की बैलेंस शीट में वार्षिक रूप से 8.2% की वृद्धि हुई। 
    • इसकी आय में 22.77% की वृद्धि हुई (विदेशी मुद्रा लेन-देन लाभ में ~33% की वृद्धि और निवेश से उच्च रिटर्न के कारण), जबकि व्यय में 7.76% की वृद्धि हुई।
    • इससे 2.68 लाख करोड़ रुपए का रिकॉर्ड अधिशेष प्राप्त हुआ, जो पिछले वर्ष के 2.11 लाख करोड़ रुपए से 27.37% अधिक था।
    • परिसंपत्ति पक्ष में, सोने में 52.09%, घरेलू निवेश में 14.32% तथा विदेशी निवेश में 1.70% की वृद्धि हुई। 
    • अधिक नोट जारी होने, पुनर्मूल्यांकन खातों और अन्य देयताओं के कारण इसमें वृद्धि हुई।
    • मार्च 2025 तक, विदेशी परिसंपत्तियाँ (सोना और ऋण सहित) कुल परिसंपत्तियों का 74.27% थीं, जबकि घरेलू परिसंपत्तियाँ 25.73% थीं। सोने की होल्डिंग 57.48 मीट्रिक टन बढ़कर 879.58 मीट्रिक टन हो गई।
  • मुद्रास्फीति की प्रवृत्तियाँ: हेडलाइन मुद्रास्फीति वर्ष 2023-24 में 5.4% से घटकर वर्ष 2024-25 में 4.6% हो जाएगी।
    • कोर मुद्रास्फीति 3.5% रही तथा खाद्य मुद्रास्फीति मार्च 2025 तक घटकर 2.9% हो जाएगी।
    • वैश्विक ऊर्जा कीमतों में नरमी के कारण ईंधन की कीमतों में 2.5% की गिरावट देखी गई।
  • मौद्रिक नीति और तरलता: मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने वर्ष 2024-25 के अधिकांश समय तक रेपो दर को 6.50% पर बनाए रखा, लेकिन अक्तूबर 2024 में रुख को “अनुकूलता की वापसी” से “तटस्थ” में बदल दिया।
    • तरलता दबाव को कम करने के लिये दिसंबर 2024 में नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को घटाकर 4% कर दिया गया
  • बाह्य क्षेत्र: व्यापारिक निर्यात में मामूली रूप से 0.1% की वृद्धि हुई, जबकि आयात में 6.2% की वृद्धि हुई, जिससे व्यापार घाटा बढ़कर 282.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया
    • चालू खाता घाटा (CAD) सकल घरेलू उत्पाद के 1.3% पर प्रबंधनीय रहा। विदेशी मुद्रा भंडार 668.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जिसमें 11 महीनों के व्यापारिक आयात शामिल हैं।
  • घरेलू बचत में वृद्धि: वित्त वर्ष 2024 में शुद्ध घरेलू बचत बढ़कर सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (GNDI) (अंतिम उपभोग और सकल बचत के लिये राष्ट्र को उपलब्ध आय को मापता है) का 5.1% हो गई ।  
  • वित्तीय क्षेत्र की स्थिति: बैंक क्रेडिट वृद्धि जमा वृद्धि से अधिक रही, जिससे क्रेडिट-टू-डिपॉजिट अनुपात में थोड़ा सुधार हुआ।
  • डिजिटल भुगतान और वित्तीय समावेशन: वर्ष 2024-25 में डिजिटल भुगतान की मात्रा में 34.8% और मूल्य में 17.9% की वृद्धि हुई।
    • यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ने वैश्विक वास्तविक-समय भुगतानों की मात्रा का 48.5% हिस्सा हासिल किया।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक का वित्तीय समावेशन सूचकांक वर्ष 2023 में 60.1 से बढ़कर वर्ष 2024 में 64.2 हो गया, जो वित्तीय सेवाओं के गहन उपयोग को दर्शाता है।
      • वित्तीय साक्षरता बढ़ाने के प्रयास वित्तीय साक्षरता सप्ताह 2025 और बच्चों के लिये "जूनियर मनी" और "मिनी मनी" जैसे शुभंकरों के साथ नए अभियानों के माध्यम से जारी रहे।
      • उपभोक्ता शिकायत निवारण को और सशक्त किया गया, जिसमें भारतीय रिज़र्व बैंक के लोकपाल कार्यालयों का विस्तार तथा एक राष्ट्रव्यापी वित्तीय जागरूकता अभियान शामिल है।
  • नियामक और तकनीकी पहल: भारतीय रिज़र्व बैंक ने डिजिटल बैंकिंग सुरक्षा बढ़ाने के लिये 'bank.in' डोमेन की शुरुआत की तथा केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) पायलट परियोजना को 17 बैंकों और 60 लाख उपयोगकर्त्ताओं तक विस्तारित किया।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक ने फिनटेक और विनियमित संस्थाओं द्वारा प्रौद्योगिकी अपनाने की निगरानी के लिये फिनटेक रिपॉजिटरी तथा एमटेक रिपॉजिटरी की शुरुआत की। RBI इनोवेशन हब द्वारा प्रबंधित ये प्लेटफॉर्म मशीन लर्निंग और कृत्रिम बुधिमत्ता जैसी तकनीकों से संबंधित डेटा एकत्र करते हैं, जिससे नीति निर्माण और उद्योग की समझ में सहायता मिलती है। 
  • राजकोषीय स्थिति: केंद्र सरकार का सकल राजकोषीय घाटा (GFD) वर्ष 2023-24 में 5.5% से घटकर वर्ष 2024-25 में 4.7% हो गया।
    • पूंजीगत व्यय में 5.2% की वृद्धि हुई; राजस्व व्यय में 5.8% की वृद्धि हुई। राज्यों का समेकित राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 3.2% के भीतर रहने की संभावना है।
  • वर्ष 2025-26 का आउटलुक: भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर को 6.5% पर बनाए रखने का अनुमान है, जिसमें जोखिम संतुलित हैं।
    • मुद्रास्फीति के 4.0% पर रहने की संभावना है, जहाँ आपूर्ति दबावों में कमी देखने को मिल रही है, लेकिन वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण इसमें वृद्धि का जोखिम है
    • केंद्र सरकार का लक्ष्य वर्ष 2025-26 में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 4.4% तक घटाना है और सार्वजनिक ऋण-से-GDP अनुपात को घटाकर वर्ष 2031 तक 50% तक पहुँचाना है।

RBI की वार्षिक रिपोर्ट 2024–25 में उजागर की गई प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • जाली नोट: कुल मिलाकर जाली नोटों का पता लगाने में कमी आई है, लेकिन जाली 200 रुपए और 500 रुपए के नोट क्रमशः 13.9% और 37.3% बढ़े हैं, जिसके कारण सतर्कता जारी रखना आवश्यक है।
  • बैंक धोखाधड़ी की राशि में वृद्धि: भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंक धोखाधड़ी की राशि में तेज़ वृद्धि को उजागर किया है, जो मामलों की संख्या कम होने के बावजूद लगभग तीन गुना बढ़कर 36,014 करोड़ रुपए हो गई है।
    • यह वृद्धि मुख्यतः पुराने धोखाधड़ी मामलों के पुनः वर्गीकरण और देर से रिपोर्टिंग के कारण हुई है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में धोखाधड़ी की सबसे अधिक राशि देखी गई, जो मुख्यतः ऋण पोर्टफोलियो से संबंधित थी, जबकि निजी बैंकों ने अधिक मामलों की रिपोर्ट की, जो मुख्य रूप से डिजिटल भुगतान धोखाधड़ी से जुड़ी हुई थीं। कार्ड/इंटरनेट धोखाधड़ी की राशि में कमी आई है, लेकिन संख्या में ये सामान्य बनी हुई हैं।
  • वैश्विक अनिश्चितताएँ: बढ़ता संरक्षणवाद और भू-राजनीतिक तनाव (जैसे रूस-यूक्रेन) व्यापार को अस्थिर कर सकते हैं तथा बाज़ार में अस्थिरता उत्पन्न कर सकते हैं।
    • अमेरिका की बदलती शुल्क नीतियाँ और अन्य देशों की प्रतिक्रिया में उठाए गए कदम अस्थायी रूप से बाज़ार में अस्थिरता उत्पन्न कर सकते हैं।
  • मुद्रास्फीति प्रबंधन: बढ़ती इनपुट लागत और कमज़ोर वैश्विक मांग के कारण भारत के औद्योगिक विकास को खतरा है, जिससे मुद्रास्फीति प्रबंधन में चुनौतियाँ आ रही हैं। जबकि प्रमुख मुद्रास्फीति में कमी आई है, अस्थिर खाद्य पदार्थों की कीमतें मुद्रास्फीति में कमी की गति को धीमा कर रही हैं।
  • राजकोषीय समेकन और पूंजीगत व्यय में संतुलन: वर्ष 2024-25 में GFD को घटाकर GDP का 4.7% कर दिया गया है, लेकिन इसके लिये राजकोषीय समेकन और विकास को बढ़ावा देने हेतु पूंजीगत व्यय बढ़ाने की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
    • वर्ष 2024-25 में पूंजीगत व्यय में 5.2% की वृद्धि होगी, लेकिन विकास की गति को बनाए रखने के लिये अभी भी इसमें और वृद्धि की आवश्यकता है।
  • जलवायु परिवर्तन और संधारणीयता जोखिम: बढ़ते जलवायु आघात कृषि उत्पादकता और खाद्य मूल्य स्थिरता के लिये खतरा बन रहे हैं। नवीकरणीय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकी को अपनाने के प्रयास जारी हैं, लेकिन दीर्घकालिक सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये इन प्रयासों का विस्तार करना आवश्यक है।

भारत की आर्थिक वृद्धि और वित्तीय स्थिरता के लिये क्या उपाय आवश्यक हैं?

  • खाद्य मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: कटाई के बाद क्षति को कम करने और जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के कारण मूल्य वृद्धि को रोकने के लिये कोल्ड चेन तथा भंडारण सहित कृषि-लॉजिस्टिक्स ढाँचे को मज़बूत करना।
    • पूर्वानुमान आधारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना लागू करना और मौसम आपूर्ति आघातों के दौरान कीमतों को स्थिर रखने के लिये समय पर बफर स्टॉक जारी करना।
  • वित्तीय क्षेत्र की सुदृढ़ता बढ़ाना: विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों एवं डिजिटल भुगतान प्रणालियों में विश्वास तथा स्थिरता बनाए रखने के लिये RBI के म्यूलहंटर AI (Mulehunter AI) और उन्नत डिजिटल फोरेंसिक उपकरणों के माध्यम से धोखाधड़ी की पहचान व रोकथाम को तीव्र करना।
    • RBI इनोवेशन हब के EmTech रिपॉजिटरी द्वारा समर्थित AI/ML आधारित उन्नत धोखाधड़ी पहचान तकनीकों को लागू करना अत्यंत आवश्यक है।
  • डिजिटल नवाचार का उपयोग: लेन-देन की दक्षता बढ़ाने, नकदी पर निर्भरता घटाने और मनी लॉन्ड्रिंग पर नियंत्रण मज़बूत करने के लिये CBDC पायलट को बड़े पैमाने पर लागू करना डिजिटल वित्त के भविष्य के अनुरूप है।
  • बाह्य क्षेत्र में विविधता: बहुपक्षीय व्यापार समझौतों और द्विपक्षीय साझेदारियों में सक्रिय भागीदारी से संरक्षणवाद के आघातों तथा भू-राजनीतिक जोखिमों को कम किया जा सकता है।
    • मज़बूत विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखना अस्थिरता के विरुद्ध एक प्रभावी सुरक्षा कवच सुनिश्चित करता है।
  • गुणवत्तापूर्ण पूंजीगत व्यय: आधारभूत संरचना, हरित ऊर्जा और डिजिटल कनेक्टिविटी पर केंद्रित पूंजीगत व्यय में बदलाव (जो 5.2% की वृद्धि दर्शाता है) दीर्घकालिक उत्पादकता लाभ के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • परिणाम-आधारित बजट और डिजिटल गवर्नेंस के माध्यम से सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन में सुधार व्यय दक्षता तथा पारदर्शिता को बढ़ाएगा।
  • जलवायु अनुकूलन और हरित वित्तपोषण: बैंकों द्वारा ग्रीन बॉण्ड जारी करने और ESG-समर्थ निवेश को प्रोत्साहित करने जैसे हरित वित्तपोषण उपकरण भारत की COP26 प्रतिबद्धताओं तथा सतत् लक्ष्यों के अनुरूप हैं।
    • जलवायु जोखिम मूल्यांकन को बैंकिंग पर्यवेक्षण और ऋण मूल्यांकन में एकीकृत करने से प्रणालीगत जोखिमों में कमी आएगी।

निष्कर्ष

भारतीय रिज़र्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट 2024-25 यह दर्शाती है कि भारत को वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच मज़बूत आर्थिक वृद्धि और वित्तीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है। मुद्रास्फीति नियंत्रण पर रणनीतिक ध्यान, डिजिटल नवाचार को बढ़ावा देना और गुणवत्तापूर्ण पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता देना अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगा। इसके अतिरिक्त, जलवायु संबंधी जोखिमों का समाधान हरित वित्तपोषण और अनुकूलन नीतियों के माध्यम से करना दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करेगा, जिससे भारत विकास तथा प्रगति के साथ चुनौतियों का भी प्रभावी रूप से सामना कर सकेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में वित्तीय सेवाओं तक पहुँच को लोकतांत्रिक बनाने में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह आरबीआई की बेंचमार्क ब्याज दरों को तय करती है।
  2.  यह आरबीआई के गवर्नर सहित 12 सदस्यीय निकाय है जिसका प्रतिवर्ष पुनर्गठन किया जाता है।
  3.  यह केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता अनुपात में कटौती और अनुकूलन
  2.  सीमांत स्थायी सुविधा दर में बढ़ोतरी
  3.  बैंक रेट और रेपो रेट में कटौती

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. वित्तीय संस्थाओं व बीमा कंपनियों द्वारा की गई उत्पाद विविधता के फलस्वरूप उत्पादों व सेवाओं में उत्पन्न परस्पर व्यापन ने सेबी (SEBI) व इर्डा (IRDA) नामक दोनों नियामक अभिकरणों के विलय के प्रकरण को प्रबल बनाया है। औचित्य सिद्ध कीजिये। (2013)


शासन व्यवस्था

फार्मा उद्योग को आकार देने वाली प्रौद्योगिकियाँ

प्रीलिम्स के लिये:

फार्मास्युटिकल, जेनेरिक ड्रग, जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र, एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट्स (API), उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना, बल्क ड्रग पार्क योजना का प्रचार, mRNA वैक्सीन, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी 

मेन्स के लिये:

फार्मा उद्योग को आकार देने वाली प्रौद्योगिकियाँ, भारत में फार्मा उद्योग की स्थिति, भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग में अवसर और चुनौतियाँ।  

स्रोत: बी.एल.

चर्चा में क्यों?

फार्मास्युटिकल उद्योग बायोलॉजिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और ऑटोमेशन में प्रगति के साथ बदल रहा है, जो दवा विकास एवं निर्माण प्रक्रियाओं को नया आकार दे रहे हैं। वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में बने रहने के लिये भारत को इन नवाचारों में विशेषज्ञ कौशल को बढ़ावा देना होगा और नियामक अनुपालन, अवसंरचना तथा नवाचार क्षमता जैसी प्रमुख चुनौतियों का समाधान करना होगा।

फार्मास्युटिकल उद्योग को आकार देने वाली प्रमुख प्रौद्योगिकियाँ कौन-सी हैं?

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML): AI और ML औषधि खोज की प्रक्रिया को तेज़ करते हैं, अणुओं के व्यवहार की भविष्यवाणी करते हैं, मौजूदा दवाओं के नए उपयोगों की पहचान करते हैं तथा  उपचारों का व्यक्तिगतकरण करते हैं।
    • जेनरेटिव AI, विशेषकर लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (LLM) जीव विज्ञान की समझ को बेहतर बनाते हैं और आनुवंशिकी जैसे डेटा का उपयोग करके अधिक प्रभावी क्लिनिकल ट्रायल्स के डिज़ाइन में सहायता करते हैं।
    • भारत में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के अंतर्गत कार्यरत AI एवं रोबोटिक्स केंद्र (CAIR) सक्रिय रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता अनुप्रयोगों का विकास कर रहा है जो फार्मास्युटिकल क्षेत्र के लिये भी लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं।
    • भारत में सन फार्मा और डॉ. रेड्डीज़ लेबोरेटरीज़ जैसी प्रमुख फार्मास्युटिकल कंपनियाँ क्षय रोग और मधुमेह जैसी राष्ट्रीय बोझ वाली बीमारियों से निपटने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग कर रही हैं।
  • इंटरनेट ऑफ मेडिकल थिंग्स (IoMT): IoMT IoT उपकरणों और मोबाइल एप्लिकेशन्स को एकीकृत करता है, जो हृदय गति, रक्तचाप और ग्लूकोज़ स्तर जैसे स्वास्थ्य मापदंडों की वास्तविक समय (रियल टाइम) में निगरानी करता है।
    • यह व्यक्तिनिष्ठ उपचार सक्षम बनाता है और विकेंद्रीकृत नैदानिक परीक्षणों (DCT) को समर्थन प्रदान करता है, जिससे रोगियों की पहुँच, सुविधा और परीक्षण दक्षता में वृद्धि होती है।
    • IoT-सक्षम पैकेजिंग तापमान एवं प्रकाश संपर्क जैसी भंडारण स्थितियों की निगरानी करती है, जिससे नियामक मानकों का अनुपालन सुनिश्चित होता है तथा उत्पाद खराब होने से बचते हैं।
  • डेटा पारदर्शिता के लिये ब्लॉकचेन: ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी फार्मास्युटिकल आपूर्ति शृंखला में गोपनीयता, पारदर्शिता और पता लगाने योग्य प्रक्रिया को सुनिश्चित करती है।
    • यह प्रौद्योगिकी चिकित्सा रिकॉर्ड तक सुरक्षित पहुँच सक्षम करती है, आपूर्तिकर्त्ताओं को प्रमाणित करती है, दवा मूल्यों का ट्रैक रखती है तथा नकली या घटिया गुणवत्ता वाली दवाओं का पता लगाने में सहायता करती है, जिससे नियामक अनुपालन और रोगी सुरक्षा में सुधार होता है।
    • उदाहरण के लिये, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के शोधकर्त्ताओं ने 'ब्लॉकट्रैक' विकसित किया है - चिकित्सा डेटा एवं सूचना आदान-प्रदान हेतु ब्लॉकचेन-आधारित यह अपनी तरह की पहली सुरक्षित प्रणाली है।
  • बायोलॉजिक्स और बायोसिमिलर: बायोलॉजिक्स जीवों से प्राप्त जटिल दवाएँ हैं, जैसे- टीके, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, पुनः संयोजक प्रोटीन और कोशिका चिकित्सा। 
    • बायोसिमिलर लागत प्रभावी, पेटेंट समाप्ति के बाद विकसित जैविक उत्पादों के चिकित्सकीय रूप से समतुल्य संस्करण हैं। 
    • ऑर्गन बायोप्रिंटिंग में कोशिकाओं और अन्य बायोमटेरियल से युक्त बायोइंक से जीवित, कार्यात्मक अंगों का निर्माण करने के लिये 3D प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग किया जाता है। 
    • बायोकॉन एक अग्रणी भारतीय बायोटेक कंपनी है जो बायोसिमिलर और इंसुलिन उत्पादों पर कार्य कर रही है।
  • डिजिटल ट्विन प्रौद्योगिकी: डिजिटल ट्विन प्रौद्योगिकी भौतिक प्रक्रियाओं के आभासी सिमुलेशन बनाने के लिये वास्तविक समय डेटा का उपयोग करती है। 
    • फार्मास्यूटिकल्स, यह विनिर्माण दक्षता में सुधार, डाउनटाइम को कम करने और परिचालन को अनुकूलित करने हेतु दवा उत्पादन प्रणाली का अनुकरण करने में मदद करता है।

भारत में फार्मास्युटिकल उद्योग की स्थिति क्या है?

  • भारत मात्रा के हिसाब से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा फार्मास्यूटिकल्स उत्पादक है और मूल्य के हिसाब से विश्व में 14 वें स्थान पर है। 
    • यह वैश्विक वैक्सीन मांग का 50% से अधिक और अमेरिकी बाज़ार में लगभग 40% जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करता है।
  • बाज़ार का आकार: वित्त वर्ष 2023-24 के लिये, भारत का फार्मास्युटिकल बाज़ार लगभग 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसने राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1.72% का योगदान दिया। 
    • भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र, जिसका मूल्य वर्ष 2022 में 137 अरब डॉलर था, वर्ष 2030 तक 300 अरब डॉलर तक पहुँचने का लक्ष्य रखता है। इस क्षेत्र का वर्ष 2030 तक 130 अरब डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है।
  • प्रमुख खंड:
    • जेनेरिक दवाइयाँ: भारत विश्व का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है, जो वैश्विक मांग का 20% पूरा करता है
    • सक्रिय फार्मास्युटिकल अवयव (API): भारत 500 से अधिक API का विनिर्माण करता है , जो वैश्विक API बाज़ार का 8% है
    • चिकित्सा उपकरण: वर्ष 2030 तक इस क्षेत्र के 11 अरब डॉलर से बढ़कर 50 अरब डॉलर तक पहुँचने की संभावना है।
  • विकास चालक:
    • किफायती मूल्य: भारतीय फार्मास्यूटिकल्स पश्चिमी समकक्षों की तुलना में काफी अधिक लागत प्रभावी हैं।
    • सरकारी सहायता: उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी पहल घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करती है।
    • सुदृढ़ अनुसंधान एवं विकास: भारत में सुदृढ़ वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग कार्यबल है, जो वर्ष 2023 में 64,480 पेटेंट आवेदनों के साथ पेटेंट फाइलिंग में विश्व स्तर पर 6वें स्थान पर है
  • संबंधित सरकारी पहल:

फार्मा क्षेत्र में वर्तमान तकनीकी सफलताओं से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?

  • डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा चुनौतियाँ: फार्मा में AI, बिग डेटा एनालिटिक्स और क्लाउड सिस्टम के उपयोग से संवेदनशील रोगी तथा नैदानिक ​​डेटा में वृद्धि हुई है। इससे डेटा गोपनीयता, साइबर सुरक्षा जोखिम और संभावित उल्लंघनों के बारे में गंभीर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, जो रोगी की गोपनीयता एवं स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में सार्वजनिक विश्वास से समझौता कर सकती हैं।
  • बढ़ती लागत और पहुँच में बाधाएँ: बायोलॉजिक्स, AI प्लेटफॉर्म और ऑटोमेशन जैसी तकनीकों के लिये बुनियादी ढाँचे, उपकरण और कुशल कार्यबल में भारी निवेश की आवश्यकता होती है। यह उच्च लागत छोटे और मध्यम उद्यमों (SME) पर बोझ डालती है, बड़ी फर्मों के साथ अंतर को बढ़ाती है एवं फार्मा क्षेत्र में नवाचारों को किफायती व व्यापक तरीके से अपनाने को सीमित करती है।
  • विनियामक जटिलताएँ और विलंब: फार्मा क्षेत्र में तेज़ी से हो रही तकनीकी प्रगति प्रायः विनियामक सुधारों से आगे निकल जाती है, जिससे रोगी सुरक्षा सुनिश्चित करने और त्वरित अनुमोदन देने में कठिनाई होती है। स्पष्ट और वैश्विक स्तर पर समन्वित दिशा-निर्देशों की अनुपस्थिति के कारण नई उपचार पद्धतियों तथा नवाचारों को बाज़ार में लाने में भ्रम एवं विलंब होता है।
  • कौशल की कमी और कार्यबल की तैयारी: फार्मा उद्योग में AI, बायोटेक और ऑटोमेशन जैसी तकनीकों को अपनाने के लिये बहु-विषयक कौशलों की आवश्यकता होती है। हालाँकि भारत में डेटा साइंस, बायोइन्फॉर्मेटिक्स और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में बड़ी प्रतिभा की कमी है, जिससे इन तकनीकों का प्रभावी कार्यान्वयन बाधित होता है।
  • नैतिक, सामाजिक और समानता से जुड़ी चिंताएँ: जीन एडिटिंग, AI डायग्नोस्टिक्स और पर्सनलाइज़्ड मेडिसिन जैसे नवाचारों से सहमति, डेटा पक्षपात एवं निष्पक्ष पहुँच जैसे नैतिक मुद्दे उत्पन्न होते हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिये मज़बूत नैतिक ढाँचे की आवश्यकता है, ताकि समाज को किसी भी प्रकार की क्षति से बचाया जा सके और समावेशी स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित की जा सके।

फार्मा क्षेत्र में उत्तरदायी तकनीकी हस्तक्षेप सुनिश्चित करने के लिये कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • मज़बूत और अनुकूली विनियामक प्रणाली: विनियामक ढाँचे को अनुकूल और भविष्योन्मुखी होना चाहिये, ताकि नवाचारों को तेज़ी से अनुमोदन मिल सके तथा साथ ही रोगियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो। अनुकूल विनियामक नीतियाँ नवाचार और प्रभावशीलता की पुष्टि के बीच संतुलन बना सकती हैं।
  • डेटा गोपनीयता, सुरक्षा और नैतिकता को सुदृढ़ करना: फार्मा कंपनियों को डिजिटल डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के अनुसार एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन, ट्रेसबिलिटी के लिये ब्लॉकचेन और खतरे की पहचान हेतु AI आधारित तकनीकों को अपनाना चाहिये। पक्षपात को कम करने और निष्पक्षता सुनिश्चित करने हेतु नैतिक AI फ्रेमवर्क अनिवार्य हैं।
  • मानव संसाधन और डिजिटल कौशल में निवेश: सरकार, शैक्षणिक संस्थानों और उद्योग के बीच सहयोग से पुनः कौशल विकास कार्यक्रम, डिजिटल साक्षरता, नवाचार प्रयोगशालाएँ एवं मेंटरशिप प्लेटफॉर्म तैयार किये जाने चाहिये, ताकि एक भविष्य-योग्य कार्यबल विकसित हो सके।
  • नैतिक और सामाजिक उत्तरदायित्व का संस्थागतकरण: स्वतंत्र नैतिक समितियाँ, पारदर्शी क्लीनिकल ट्रायल प्रोटोकॉल एवं जन भागीदारी से जुड़े संवाद महत्त्वपूर्ण हैं, ताकि जीन एडिटिंग और AI डायग्नोस्टिक्स जैसी तकनीकों के दीर्घकालिक प्रभावों, सहमति तथा समानता से जुड़ी चिंताओं का समाधान किया जा सके।
  • सहयोगात्मक एवं खुले नवाचार को बढ़ावा देना: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), ओपन-सोर्स प्लेटफॉर्म और ग्लोबल कंसोर्टियम ज्ञान को एकत्रित कर सकते हैं, जोखिमों को साझा कर सकते हैं तथा लागत प्रभावी एवं समावेशी तरीके से नवाचार को गति दे सकते हैं।

निष्कर्ष

AI, बायोटेक्नोलॉजी और ऑटोमेशन जैसी उभरती तकनीकों में कौशल अंतर को पाटना, फार्मा क्षेत्र में भारत की अग्रणी भूमिका बनाए रखने के लिये अत्यंत आवश्यक है। इन क्षमताओं को सुदृढ़ करने से न केवल दवा अनुसंधान और निर्माण की प्रक्रिया में सुधार होगा, बल्कि तीव्र तकनीकी परिवर्तन के बीच वैश्विक फार्मा क्षेत्र में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता भी सुनिश्चित होगी।

और पढ़ें: भारत में फार्मास्युटिकल विनियमन, फार्मा उद्योग से संबंधित चुनौतियाँ

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न. भारतीय दवा उद्योग की वर्तमान स्थिति और वैश्विक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। हाल की तकनीकी प्रगति ने इसके विकास और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कैसे प्रभावित किया है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से भारत में सूक्ष्मजीवी रोगजनकों में बहु-दवा प्रतिरोध की घटना के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ लोगों की आनुवंशिक प्रवृत्ति 
  2.   बीमारियों को ठीक करने के लिये एंटीबायोटिक दवाओं की गलत खुराक लेना
  3.   पशुपालन में एंटीबायोटिक का प्रयोग 
  4.   कुछ लोगों में कई पुरानी बीमारियाँ 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (b) 


मेन्स 

प्रश्न: भैषजिक कंपनियों के द्वारा आयुर्विज्ञान के पारंपरिक ज्ञान को पेटेंट कराने से भारत सरकार किस प्रकार रक्षा कर रही है? (2019)


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