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फार्मा उद्योग को आकार देने वाली प्रौद्योगिकियाँ
- 02 Jun 2025
- 16 min read
प्रीलिम्स के लिये:फार्मास्युटिकल, जेनेरिक ड्रग, जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र, एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट्स (API), उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना, बल्क ड्रग पार्क योजना का प्रचार, mRNA वैक्सीन, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी। मेन्स के लिये:फार्मा उद्योग को आकार देने वाली प्रौद्योगिकियाँ, भारत में फार्मा उद्योग की स्थिति, भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग में अवसर और चुनौतियाँ। |
स्रोत: बी.एल.
चर्चा में क्यों?
फार्मास्युटिकल उद्योग बायोलॉजिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और ऑटोमेशन में प्रगति के साथ बदल रहा है, जो दवा विकास एवं निर्माण प्रक्रियाओं को नया आकार दे रहे हैं। वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में बने रहने के लिये भारत को इन नवाचारों में विशेषज्ञ कौशल को बढ़ावा देना होगा और नियामक अनुपालन, अवसंरचना तथा नवाचार क्षमता जैसी प्रमुख चुनौतियों का समाधान करना होगा।
फार्मास्युटिकल उद्योग को आकार देने वाली प्रमुख प्रौद्योगिकियाँ कौन-सी हैं?
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML): AI और ML औषधि खोज की प्रक्रिया को तेज़ करते हैं, अणुओं के व्यवहार की भविष्यवाणी करते हैं, मौजूदा दवाओं के नए उपयोगों की पहचान करते हैं तथा उपचारों का व्यक्तिगतकरण करते हैं।
- जेनरेटिव AI, विशेषकर लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (LLM) जीव विज्ञान की समझ को बेहतर बनाते हैं और आनुवंशिकी जैसे डेटा का उपयोग करके अधिक प्रभावी क्लिनिकल ट्रायल्स के डिज़ाइन में सहायता करते हैं।
- भारत में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के अंतर्गत कार्यरत AI एवं रोबोटिक्स केंद्र (CAIR) सक्रिय रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता अनुप्रयोगों का विकास कर रहा है जो फार्मास्युटिकल क्षेत्र के लिये भी लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं।
- भारत में सन फार्मा और डॉ. रेड्डीज़ लेबोरेटरीज़ जैसी प्रमुख फार्मास्युटिकल कंपनियाँ क्षय रोग और मधुमेह जैसी राष्ट्रीय बोझ वाली बीमारियों से निपटने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग कर रही हैं।
- इंटरनेट ऑफ मेडिकल थिंग्स (IoMT): IoMT IoT उपकरणों और मोबाइल एप्लिकेशन्स को एकीकृत करता है, जो हृदय गति, रक्तचाप और ग्लूकोज़ स्तर जैसे स्वास्थ्य मापदंडों की वास्तविक समय (रियल टाइम) में निगरानी करता है।
- यह व्यक्तिनिष्ठ उपचार सक्षम बनाता है और विकेंद्रीकृत नैदानिक परीक्षणों (DCT) को समर्थन प्रदान करता है, जिससे रोगियों की पहुँच, सुविधा और परीक्षण दक्षता में वृद्धि होती है।
- IoT-सक्षम पैकेजिंग तापमान एवं प्रकाश संपर्क जैसी भंडारण स्थितियों की निगरानी करती है, जिससे नियामक मानकों का अनुपालन सुनिश्चित होता है तथा उत्पाद खराब होने से बचते हैं।
- डेटा पारदर्शिता के लिये ब्लॉकचेन: ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी फार्मास्युटिकल आपूर्ति शृंखला में गोपनीयता, पारदर्शिता और पता लगाने योग्य प्रक्रिया को सुनिश्चित करती है।
- यह प्रौद्योगिकी चिकित्सा रिकॉर्ड तक सुरक्षित पहुँच सक्षम करती है, आपूर्तिकर्त्ताओं को प्रमाणित करती है, दवा मूल्यों का ट्रैक रखती है तथा नकली या घटिया गुणवत्ता वाली दवाओं का पता लगाने में सहायता करती है, जिससे नियामक अनुपालन और रोगी सुरक्षा में सुधार होता है।
- उदाहरण के लिये, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के शोधकर्त्ताओं ने 'ब्लॉकट्रैक' विकसित किया है - चिकित्सा डेटा एवं सूचना आदान-प्रदान हेतु ब्लॉकचेन-आधारित यह अपनी तरह की पहली सुरक्षित प्रणाली है।
- बायोलॉजिक्स और बायोसिमिलर: बायोलॉजिक्स जीवों से प्राप्त जटिल दवाएँ हैं, जैसे- टीके, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, पुनः संयोजक प्रोटीन और कोशिका चिकित्सा।
- बायोसिमिलर लागत प्रभावी, पेटेंट समाप्ति के बाद विकसित जैविक उत्पादों के चिकित्सकीय रूप से समतुल्य संस्करण हैं।
- ऑर्गन बायोप्रिंटिंग में कोशिकाओं और अन्य बायोमटेरियल से युक्त बायोइंक से जीवित, कार्यात्मक अंगों का निर्माण करने के लिये 3D प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग किया जाता है।
- बायोकॉन एक अग्रणी भारतीय बायोटेक कंपनी है जो बायोसिमिलर और इंसुलिन उत्पादों पर कार्य कर रही है।
- डिजिटल ट्विन प्रौद्योगिकी: डिजिटल ट्विन प्रौद्योगिकी भौतिक प्रक्रियाओं के आभासी सिमुलेशन बनाने के लिये वास्तविक समय डेटा का उपयोग करती है।
- फार्मास्यूटिकल्स, यह विनिर्माण दक्षता में सुधार, डाउनटाइम को कम करने और परिचालन को अनुकूलित करने हेतु दवा उत्पादन प्रणाली का अनुकरण करने में मदद करता है।
भारत में फार्मास्युटिकल उद्योग की स्थिति क्या है?
- भारत मात्रा के हिसाब से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा फार्मास्यूटिकल्स उत्पादक है और मूल्य के हिसाब से विश्व में 14 वें स्थान पर है।
- यह वैश्विक वैक्सीन मांग का 50% से अधिक और अमेरिकी बाज़ार में लगभग 40% जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करता है।
- बाज़ार का आकार: वित्त वर्ष 2023-24 के लिये, भारत का फार्मास्युटिकल बाज़ार लगभग 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसने राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1.72% का योगदान दिया।
- भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र, जिसका मूल्य वर्ष 2022 में 137 अरब डॉलर था, वर्ष 2030 तक 300 अरब डॉलर तक पहुँचने का लक्ष्य रखता है। इस क्षेत्र का वर्ष 2030 तक 130 अरब डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है।
- प्रमुख खंड:
- जेनेरिक दवाइयाँ: भारत विश्व का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है, जो वैश्विक मांग का 20% पूरा करता है।
- सक्रिय फार्मास्युटिकल अवयव (API): भारत 500 से अधिक API का विनिर्माण करता है , जो वैश्विक API बाज़ार का 8% है।
- चिकित्सा उपकरण: वर्ष 2030 तक इस क्षेत्र के 11 अरब डॉलर से बढ़कर 50 अरब डॉलर तक पहुँचने की संभावना है।
- विकास चालक:
- किफायती मूल्य: भारतीय फार्मास्यूटिकल्स पश्चिमी समकक्षों की तुलना में काफी अधिक लागत प्रभावी हैं।
- सरकारी सहायता: उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी पहल घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करती है।
- सुदृढ़ अनुसंधान एवं विकास: भारत में सुदृढ़ वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग कार्यबल है, जो वर्ष 2023 में 64,480 पेटेंट आवेदनों के साथ पेटेंट फाइलिंग में विश्व स्तर पर 6वें स्थान पर है।
- संबंधित सरकारी पहल:
फार्मा क्षेत्र में वर्तमान तकनीकी सफलताओं से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?
- डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा चुनौतियाँ: फार्मा में AI, बिग डेटा एनालिटिक्स और क्लाउड सिस्टम के उपयोग से संवेदनशील रोगी तथा नैदानिक डेटा में वृद्धि हुई है। इससे डेटा गोपनीयता, साइबर सुरक्षा जोखिम और संभावित उल्लंघनों के बारे में गंभीर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, जो रोगी की गोपनीयता एवं स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में सार्वजनिक विश्वास से समझौता कर सकती हैं।
- बढ़ती लागत और पहुँच में बाधाएँ: बायोलॉजिक्स, AI प्लेटफॉर्म और ऑटोमेशन जैसी तकनीकों के लिये बुनियादी ढाँचे, उपकरण और कुशल कार्यबल में भारी निवेश की आवश्यकता होती है। यह उच्च लागत छोटे और मध्यम उद्यमों (SME) पर बोझ डालती है, बड़ी फर्मों के साथ अंतर को बढ़ाती है एवं फार्मा क्षेत्र में नवाचारों को किफायती व व्यापक तरीके से अपनाने को सीमित करती है।
- विनियामक जटिलताएँ और विलंब: फार्मा क्षेत्र में तेज़ी से हो रही तकनीकी प्रगति प्रायः विनियामक सुधारों से आगे निकल जाती है, जिससे रोगी सुरक्षा सुनिश्चित करने और त्वरित अनुमोदन देने में कठिनाई होती है। स्पष्ट और वैश्विक स्तर पर समन्वित दिशा-निर्देशों की अनुपस्थिति के कारण नई उपचार पद्धतियों तथा नवाचारों को बाज़ार में लाने में भ्रम एवं विलंब होता है।
- कौशल की कमी और कार्यबल की तैयारी: फार्मा उद्योग में AI, बायोटेक और ऑटोमेशन जैसी तकनीकों को अपनाने के लिये बहु-विषयक कौशलों की आवश्यकता होती है। हालाँकि भारत में डेटा साइंस, बायोइन्फॉर्मेटिक्स और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में बड़ी प्रतिभा की कमी है, जिससे इन तकनीकों का प्रभावी कार्यान्वयन बाधित होता है।
- नैतिक, सामाजिक और समानता से जुड़ी चिंताएँ: जीन एडिटिंग, AI डायग्नोस्टिक्स और पर्सनलाइज़्ड मेडिसिन जैसे नवाचारों से सहमति, डेटा पक्षपात एवं निष्पक्ष पहुँच जैसे नैतिक मुद्दे उत्पन्न होते हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिये मज़बूत नैतिक ढाँचे की आवश्यकता है, ताकि समाज को किसी भी प्रकार की क्षति से बचाया जा सके और समावेशी स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित की जा सके।
फार्मा क्षेत्र में उत्तरदायी तकनीकी हस्तक्षेप सुनिश्चित करने के लिये कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- मज़बूत और अनुकूली विनियामक प्रणाली: विनियामक ढाँचे को अनुकूल और भविष्योन्मुखी होना चाहिये, ताकि नवाचारों को तेज़ी से अनुमोदन मिल सके तथा साथ ही रोगियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो। अनुकूल विनियामक नीतियाँ नवाचार और प्रभावशीलता की पुष्टि के बीच संतुलन बना सकती हैं।
- डेटा गोपनीयता, सुरक्षा और नैतिकता को सुदृढ़ करना: फार्मा कंपनियों को डिजिटल डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के अनुसार एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन, ट्रेसबिलिटी के लिये ब्लॉकचेन और खतरे की पहचान हेतु AI आधारित तकनीकों को अपनाना चाहिये। पक्षपात को कम करने और निष्पक्षता सुनिश्चित करने हेतु नैतिक AI फ्रेमवर्क अनिवार्य हैं।
- मानव संसाधन और डिजिटल कौशल में निवेश: सरकार, शैक्षणिक संस्थानों और उद्योग के बीच सहयोग से पुनः कौशल विकास कार्यक्रम, डिजिटल साक्षरता, नवाचार प्रयोगशालाएँ एवं मेंटरशिप प्लेटफॉर्म तैयार किये जाने चाहिये, ताकि एक भविष्य-योग्य कार्यबल विकसित हो सके।
- नैतिक और सामाजिक उत्तरदायित्व का संस्थागतकरण: स्वतंत्र नैतिक समितियाँ, पारदर्शी क्लीनिकल ट्रायल प्रोटोकॉल एवं जन भागीदारी से जुड़े संवाद महत्त्वपूर्ण हैं, ताकि जीन एडिटिंग और AI डायग्नोस्टिक्स जैसी तकनीकों के दीर्घकालिक प्रभावों, सहमति तथा समानता से जुड़ी चिंताओं का समाधान किया जा सके।
- सहयोगात्मक एवं खुले नवाचार को बढ़ावा देना: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), ओपन-सोर्स प्लेटफॉर्म और ग्लोबल कंसोर्टियम ज्ञान को एकत्रित कर सकते हैं, जोखिमों को साझा कर सकते हैं तथा लागत प्रभावी एवं समावेशी तरीके से नवाचार को गति दे सकते हैं।
निष्कर्ष
AI, बायोटेक्नोलॉजी और ऑटोमेशन जैसी उभरती तकनीकों में कौशल अंतर को पाटना, फार्मा क्षेत्र में भारत की अग्रणी भूमिका बनाए रखने के लिये अत्यंत आवश्यक है। इन क्षमताओं को सुदृढ़ करने से न केवल दवा अनुसंधान और निर्माण की प्रक्रिया में सुधार होगा, बल्कि तीव्र तकनीकी परिवर्तन के बीच वैश्विक फार्मा क्षेत्र में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता भी सुनिश्चित होगी।
और पढ़ें: भारत में फार्मास्युटिकल विनियमन, फार्मा उद्योग से संबंधित चुनौतियाँ
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