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प्रिलिम्स फैक्ट्स

प्रारंभिक परीक्षा

पहली स्वदेशी mRNA वैक्सीन तकनीक

  • 14 May 2022
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR)- कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (The Centre for Cellular & Molecular Biology-CCMB) ने पहले स्वदेशी mRNA वैक्सीन तकनीक के 'सिद्धांत के प्रमाण' की सफलता की घोषणा की है।

  • यह स्व-प्रतिकृति RNA (Self-Replicating RNA) पर आधारित जेनोवा बायो द्वारा विकसित किये जा रहे एमआरएनए वैक्सीन से अलग है।
  • शोधकर्ता के अनुसार प्रौद्योगिकी किसी भी इच्छुक कंपनी को हस्तांतरित करने के लिये तैयार है ताकि नियामक अनुमोदन के उपरांत अगले चरण में इसे मानव परीक्षण करके वैक्सीन को बाजार लाया जा सके।

सिद्धांत का प्रमाण

सिद्धांत का प्रमाण जिसे अवधारणा का प्रमाण भी कहा जाता है, इसकी व्यवहार्यता को प्रदर्शित करने के लिये निश्चित विधि या विचार की प्राप्ति की जाती है अथवा अवधारणा या सिद्धांत को व्यावहारिक रूप में सत्यापित करने के उद्देश्य से प्रदर्शित किया जाता है।

mRNA वैक्सीन प्रौद्योगिकी:

  • परिचय:
    • mRNA वैक्सीन हमारी कोशिकाओं को प्रोटीन बनाने का तरीका सिखाने के लिये mRNA का उपयोग करते हैं और यह प्रोटीन हमारे शरीर के अंदर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को शुरू करता है। जब असली वायरस हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया जो एंटीबॉडी का उत्पादन करती है, वही हमें संक्रमित होने से बचाती है।
    • शोधकर्ताओं ने SARS-CoV-2 के खिलाफ स्वदेशी सशक्त mRNA वैक्सीन कैंडिडेट विकसित किया है।
    • यह मॉडर्ना मॉडल पर आधारित है लेकिन इसे सबके लिये उपलब्ध जानकारी और स्वदेशी तकनीक एवं सामग्री में के साथ बनाया गया है।
  • प्रभावकारिता:
    • mRNA की दो खुराक देने पर चूहों में कोविड -19 स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ "मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया" देखी गई है।
    • ह्यूमन ACE2 रिसेप्टर उत्पन्न एंटी-स्पाइक एंटीबॉडी की सहायता से कोरोनवायरस को बाध्य करने या रोकने में 90% से अधिक कुशल पाया गया है।
      • एंजियोटेंसिन कनवर्टिंग एंजाइम 2 (ACE-2), जिसे एसीईएच (ACE homolog) के नाम से जाना जाता है, एक अभिन्न मेम्ब्रेन प्रोटीन है।
      • ACE-2 SARS-CoV और SARS-CoV-2 वायरस के लिये ग्राही के रूप में कार्य करता है।
      • यह कोरोनावायरस को मानव कोशिकाओं की एक विस्तृत शृंखला में प्रवेश करने और संक्रमित करने के लिये प्रवेश बिंदु प्रदान करता है।
  • महत्व:
    • स्वदेशी विकसित mRNA वैक्सीन अन्य संक्रामक रोगों जैसे कि तपेदिक, डेंगू के बुखार, मलेरिया, चिकनगुनिया, दुर्लभ आनुवंशिक रोगों और अन्य रोगों से निपटने में सक्षम है।
      • इन वैक्सीन का उपयोग विभिन्न प्रकार के पैन-कोविड -19 वैक्सीन को कवर करने के लिये किया जा सकता है।
      • इससे अन्य बीमारियों के लिये भी वैक्सीन विकसित किये जा सकते हैं।

वैक्सीन के विभिन्न प्रकार:

  • स्वदेशी रूप से विकसित वैक्सीन :
    • ZyCoV-D: इसे DBT के समर्थन से Zydus (एक दवा कंपनी) द्वारा निर्मित किया गया है।
    • कोवैक्सीन: इसे भारत बायोटेक द्वारा ICMR के सहयोग से विकसित किया गया है।
  • विश्व स्तर पर विकसित वैक्सीन :
    • कोविशील्ड (Covishield): यह ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका द्वारा विकसित कोरोना वायरस वैक्सीन को दिया गया नाम है, जिसे तकनीकी रूप से AZD1222 या ChAdOx 1 nCoV-19 कहा जाता है।
    • स्पुतनिक वी: यह आधिकारिक तौर पर पंजीकृत होने वाला पहला वैक्सीन है जो रूस के रक्षा मंत्रालय के सहयोग से मास्को के गमालेया संस्थान द्वारा विकसित किया गया है।

पारंपरिक वैक्सीन बनाम mRNA वैक्सीन:

  • वैक्सीन शरीर में रोग उत्पन्न करने वाले ऑर्गनिज़म (Organisms) या जीवों (वायरस या बैक्टीरिया) द्वारा उत्पन्न प्रोटीन को पहचानने और उन पर प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते है।
  • पारंपरिक वैक्सीन रोग उत्पन्न करने वाले जीवों की लघु या निष्क्रिय खुराक से या इनके द्वारा उत्पन्न प्रोटीन से बने होते हैं, जिन्हें प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिये शरीर में टीकाकरण के माध्यम से प्रवेश कराया जाता है।
  • mRNA वैक्सीन वह विधि है जो शरीर में वायरल प्रोटीनों को स्वयं से उत्पन्न करने के लिये प्रेरित करता है।
    • वे mRNA या messenger RNA का उपयोग करते हैं, यह अणु अनिवार्य रूप से डीएनए निर्देशों के लिये कार्रवाई में भाग लेता है। कोशिका के अंदर mRNA का उपयोग प्रोटीन बनाने के लिये टेम्पलेट के रूप में विकसित किया जाता है।

mRNA आधारित वैक्सीन के उपयोग के लाभ:

  • mRNA वैक्सीन को सुरक्षित माना जाता है क्योंकि यह मानक सेलुलर तंत्र द्वारा गैर-संक्रामक, प्रकृति में गैर-एकीकृत संचरण के लिये जाना जाता है।
  • ये अत्यधिक प्रभावशाली होते है क्योंकि इनकी अंतर्निहित क्षमता के कारण ये कोशिका द्रव्य के अंदर प्रोटीन संरचना में स्थानांतरित हो जाते हैं।
  • इसके अतिरिक्त mRNA वैक्सीन पूरी तरह से सिंथेटिक हैं और इनके विकास के लिये किसी जीव (अंडे या बैक्टीरिया) की आवश्यकता नहीं होती है। इसलिये उन्हें स्थायी रूप से सामूहिक टीकाकरण के लिये इनकी "उपलब्धता" और "पहुँच" सुनिश्चित करने के लिये आसानी से निर्मित किया जा सकता है।

विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. क्लोरोक्वीन जैसी दवाओं के लिये मलेरिया परजीवी के व्यापक प्रतिरोध ने मलेरिया से निपटने के लिये मलेरिया का वैक्सीन विकसित करने के प्रयासों को प्रेरित किया है। एक प्रभावी मलेरिया वैक्सीन विकसित करना कठिन क्यों है? (2010)

(a) मलेरिया प्लास्मोडियम की कई प्रजातियों के कारण होता है।
(b) प्राकृतिक संक्रमण के दौरान मनुष्य मलेरिया के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं कर सकता है।
(c) वैक्सीन केवल बैक्टीरिया के खिलाफ विकसित किये जा सकते हैं।
(d) मनुष्य केवल एक मध्यवर्ती मेज़बान है औरअंतिम मेज़बान नहीं है।

उत्तर: b

व्याख्या:

  • मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो प्लास्मोडियम परजीवी के कारण होती है, यह संक्रमित मादा एनोफिलीज मच्छरों के माध्यम से लोगों में फैलती है।
  • मलेरिया परजीवी में प्रतिरक्षा प्रणाली से बचने की असाधारण क्षमता होती है जो एक प्रभावी मलेरिया वैक्सीन विकसित करने में आने वाली कठिनाइयों की व्याख्या करता है।
  • RTS,S/AS01 (RTS,S) छोटे बच्चों में मलेरिया के खिलाफ आंशिक सुरक्षा प्रदान करने वाली अब तक की एकमात्र वैक्सीन/वैक्सीन है। अत: विकल्प (B) सही है।

प्रश्न. 'रिकॉम्बिनेंट वेक्टर वैक्सीन' के संबंध में हाल के घटनाक्रमों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. इन टीकों/वैक्सीन के विकास में जेनेटिक इंजीनियरिंग का प्रयोग किया जाता है।
  2. बैक्टीरिया और वायरस का उपयोग वैक्टर के रूप में किया जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: c

व्याख्या:

  • रिकॉम्बिनेंट वेक्टर वैक्सीन आनुवंशिक इंजीनियरिंग के माध्यम से निर्मित की जाती हैं। बैक्टीरिया या वायरस के लिये प्रोटीन निर्मित करने वाले जीन को अलग कर दूसरी कोशिका के जीन के अंदर प्रविष्ट कराया जाता है। जब वह कोशिका पुनरुत्पादित (Reproduces) करती है, तो यह वैक्सीन प्रोटीन का उत्पादन करती है जिसका अर्थ है कि प्रतिरक्षा प्रणाली प्रोटीन को पहचान कर शरीर को इससे सुरक्षा प्रदान करेगी। अत: कथन 1 सही है।
  • जीवित पुनः संयोजक बैक्टीरिया (Live Recombinant Bacteria) या वायरल वैक्टर प्राकृतिक संक्रमणों की तरह प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावी ढंग से उत्तेजित करते हैं तथा इसमें आंतरिक सहायक गुण होते हैं। उन्हें मेज़बान जीव में प्रवेश करने हेतु एक माध्यम की तरह उपयोग किया जाता है।
  • कई जीवाणुओं को वैक्टर के रूप में इस्तेमाल किया गया है, जैसे- माइकोबैक्टीरियम बोविस बीसीजी ( Mycobacterium bovis BCG), लिस्टेरिया मोनोसाइटोजेन्स (Listeria monocytogenes), साल्मोनेला एसपीपी (Salmonella spp) और शिगेला एसपीपी (Shigella spp)।
  • वैक्सीन के विकास हेतु कई वायरल वैक्टर उपलब्ध हैं, जैसे- वैक्सीनिया, मोडिफाइड वैक्सीनिया वायरस अंकारा, एडेनोवायरस, एडेनो संबंद्ध वायरस, रेट्रोवायरस/लेंटवायरस, अल्फावायरस, हर्पीज वायरस आदि। अत: कथन 2 सही है।

स्रोत: द हिंदू

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