इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 24 Aug, 2019
  • 66 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

दीपोर बील

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal-NGT) ने असम सरकार को दीपोर बील (गुवाहाटी के पश्चिमी किनारे पर एक प्रमुख आर्द्रभूमि) के आस-पास के क्षेत्र को पर्यावरण-संवेदी क्षेत्र या इको-सेंसिटिव ज़ोन (Eco-Sensitive Zone-ESZ) घोषित करने का निर्देश दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • NGT ने अपने आदेश में सरकार को आर्द्र्भूमि पर मौजूदा अतिक्रमण को हटाने और भविष्य में किसी भी अतिक्रमण को रोकने के लिये कदम उठाने और दीपोर बील (Deepor Beel) के पारितंत्र में स्थित नगरपालिका ठोस अपशिष्ट डंपिंग ग्राउंड का प्रबंधन करने का निर्देश भी दिया।
  • दीपोर बील एक 'महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र' और एक रामसर साइट है, जिसके निकट एक आरक्षित वन भी है।
  • दीपोर बील ताज़े पानी की एक झील है तथा अतिक्रमण के कारण लंबे समय से इसके क्षेत्र में कमी हो रही है। कभी 4,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला यह क्षेत्र अब घटकर 500 हेक्टेयर में सिमट गया है।
  • दीपोर बील प्रवासी पक्षियों की 200 से अधिक प्रजातियों का वास स्थान है।
  • वर्ष 2018 में राष्‍ट्र स्‍तरीय विश्‍व आद्र भूमि दिवस का आयोजन दीपोर बील में ही किया गया था।

आवश्यकता

  • इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि झील प्रतिकूल मानवीय गतिविधियों (जैसे कि मानव बस्तियों के लिये आर्द्र भूमि को भरना, आर्द्र भूमि के किनारों को काटना, मछली पकड़ना, प्रवासी पक्षियों को मारना आदि) का खामियाजा भुगत रही है।
  • पर्यावरणविदों द्वारा अक्सर यह आरोप भी लगाया जाता है कि वेटलैंड क्षेत्र पर डंप किये गए कचरे ने झील के पानी को विषाक्त कर दिया है। हालाँकि असम सरकार का कहना है कि डंपिंग ग्राउंड वेटलैंड से लगभग 500 मीटर की दूरी पर है और इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि यह झील को प्रदूषित कर रहा है।
  • जल की गुणवत्ता में गिरावट, झील की सतह में अवसादन और जल निकाय और इसके आस-पास के क्षेत्रों में वनों की कटाई जैसी गतिविधियों को देखते हुए इसका संरक्षण आवश्यक है।

क्या है इको-सेंसिटिव ज़ोन या पर्यावरण संवेदी क्षेत्र?

  • इको-सेंसिटिव ज़ोन या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) भारत सरकार द्वारा किसी संरक्षित क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के आस-पास के अधिसूचित क्षेत्र हैं।
  • इको-सेंसिटिव ज़ोन में होने वाली गतिविधियाँ 1986 के पर्यावरण (संरक्षण अधिनियम) के तहत विनियमित होती हैं और ऐसे क्षेत्रों में प्रदूषणकारी उद्योग लगाने या खनन करने की अनुमति नहीं होती है।
  • सामान्य सिद्धांतों के अनुसार, इको-सेंसिटिव ज़ोन का विस्तार किसी संरक्षित क्षेत्र के आस-पास 10 किमी. तक के दायरे में हो सकता है। लेकिन संवेदनशील गलियारे, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों एवं प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से भी अधिक क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
  • राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास इको-सेंसिटिव ज़ोन के लिये घोषित दिशा-निर्देशों के तहत निषिद्ध उद्योगों को इन क्षेत्रों में काम करने की अनुमति नहीं है।
  • ये दिशा-निर्देश वाणिज्यिक खनन, जलाने योग्य लकड़ी के वाणिज्यिक उपयोग और प्रमुख जल-विद्युत परियोजनाओं जैसी गतिविधियों को प्रतिबंधित करते हैं।
  • कुछ गतिविधियों जैसे कि पेड़ गिराना, भूजल दोहन, होटल और रिसॉर्ट्स की स्थापना सहित प्राकृतिक जल संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग आदि को इन क्षेत्रों में नियंत्रित किया जाता है।
  • पर्यावरण संवेदी क्षेत्र घोषित करने का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास कुछ गतिविधियों को नियंत्रित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों की निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।

पर्यावरण संवेदी क्षेत्र का महत्त्व

  • औद्योगीकरण, शहरीकरण और विकास की अन्य पहलों के दौरान भू-परिदृश्य में बहुत से परिवर्तन होते हैं जो कभी-कभी भूकंप, बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन सकते हैं। इसलिये इन गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के लिये संरक्षित क्षेत्रों के निकटवर्ती क्षेत्रों को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू एवं द इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने हेतु कदम

चर्चा में क्यों?

भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने और आर्थिक विकास दर को बढ़ाने के उद्देश्य से वित्त मंत्रालय द्वारा कुछ नए उपायों की घोषणा की गई है।

वित्त मंत्री द्वारा की गई प्रमुख घोषणाएँ:

  • निवेशकों के संबंध में -
    • सरकार ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (Foreign Portfolio Investors-FPIs) पर लगने वाला अधिभार (Surcharge) वापस ले लिया है।
    • इसके अलावा इक्विटी बाज़ार (Equity Markets) में घरेलू निवेशकों पर लगने वाला अधिभार (Surcharge) भी वापस ले लिया गया है।
    • डीमैट खाते (Demat Account) खोलने और म्यूचुअल फंड में निवेश के लिये आधार-आधारित केवाईसी (Aadhaar-Based KYC) को मंज़ूरी दी जाएगी।
  • उद्योग के संबंध में -
    • कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (Corporate Social Responsibility-CSR) के नियमों का उल्लंघन नागरिक अपराध (Civil Offence) के रूप में देखा जाएगा, न कि दंडनीय अपराध (Criminal Offence) के रूप में।
    • अब तक बचे हुए सभी जीएसटी (GST) रिफंड का 30 दिनों के भीतर भुगतान किया जाएगा।
    • भविष्य के सभी जीएसटी (GST) रिफंड का भुगतान 60 दिनों के भीतर किया जाना अनिवार्य कर दिया गया है।
    • साथ ही वित्त मंत्रालय GST प्रणाली को और अधिक सरल बनाने का भी प्रयास कर रही है।
  • ऑटोमोबाइल सेक्टर के संबंध में -
    • 31 मार्च, 2020 से पहले खरीदे गए भारत स्टेज (Bharat Stage-BS) IV वाहन, अपने पंजीकरण की पूरी अवधि तक प्रयोग किये जा सकेंगे।
    • वित्त मंत्रालय ने सभी सरकारी विभागों में नए वाहनों की खरीद पर लगे प्रतिबंध को भी हटा दिया है, ताकि विभाग नए वाहन खरीद सके और वाहनों की मांग में वृद्धि हो।
    • इसके अलावा वाहन रजिस्ट्रेशन फीस (Vehicle Registration Fee) में बढ़ोतरी का निर्णय भी अगले साल जून तक के लिये टाल दिया गया है।
    • मार्च 2020 से पूर्व खरीदे गए वाहनों के लिये मूल्यह्रास (Depreciation) की दर बढ़ाकर 30 कर दी गई है।
  • एमएसएमई (MSME) के संबंध में -
  • एनबीएफसी (NBFC) के संबंध में -
    • गैर-बैंक वित्तीय संस्थाएँ (Non-bank financial institution-NBFC) भी अब आधार-आधारित केवाईसी (Aadhaar-Based KYC) का उपयोग कर सकती हैं।
    • NBFC को जारी होने वाले सभी पूर्व भुगतान नोटिस (Prepayment notices) की निगरानी बैंकों द्वारा की जाएगी।
    • केंद्र सरकार पब्लिक सेक्टर के बैंकों की सहायता करने के उद्देश्य से 70 हज़ार करोड़ रुपए की राशि जारी करेगी।

स्रोत: द हिंदू


विविध

संयुक्‍त जल प्रबंधन सूचकांक-2.0

चर्चा में क्यों?

जल शक्ति मंत्रालय के प्रयासों में वृद्धि करने के लिये, नीति आयोग ने संयुक्‍त जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index -CWMI 2.0) का दूसरा संस्करण तैयार किया है। 27 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से 13 ने पिछले साल की तुलना में अपने जल प्रबंधन में सुधार किया है।

प्रमुख बिंदु

  • CWMI 2.0 ने आधार वर्ष 2016-17 के संदर्भ में वर्ष 2017-18 के लिये विभिन्‍न राज्‍यों को स्‍थान प्रदान किया है। रिपोर्ट में गुजरात ने वर्ष 2017-18 में 100 में से 75 अंक प्राप्त कर पहला स्‍थान प्राप्त किया है, इसके बाद आंध्र प्रदेश, मध्‍य प्रदेश, गोवा, कर्नाटक और तमिलनाडु का स्‍थान है।
  • पूर्वोत्‍तर और हिमालयी राज्‍यों में हिमाचल प्रदेश प्रथम स्‍थान पर रहा। इसके बाद उत्‍तराखंड, त्रिपुरा और असम का स्‍थान है।
  • संघशासित प्रदेशों ने पहली बार अपने आँकड़े दिये हैं, जिनमें पुद्दुचेरी शीर्ष स्‍थान पर रहा है।
  • सूचकांक में वृद्धि संबंधी बदलाव के मामले में हरियाणा सामान्‍य राज्‍यों में पहले स्‍थान पर और पूर्वोत्‍तर तथा हिमालयी राज्‍यों में उत्‍तराखंड पहले स्‍थान पर रहा है।
  • औसतन 80 प्रतिशत राज्‍यों ने पिछले तीन वर्षों में सूचकांक का आकलन किया और अपने जल प्रबंधन स्‍कोर में सुधार किया, जिसमें औसत सुधार +5.2 प्‍वाइंट रहा।

चार्ट -1: CWMI 2.0 वर्ष 2019 में विभिन्‍न राज्‍यों की रैंकिंग

CWMI

पृष्ठभूमि

  • भारत के विकास और पर्यावरण प्रणाली को बनाए रखने के लिये तेज़ी से जल के वैज्ञानिक प्रबंधन की आवश्‍यकता महसूस की जा रही है। सरकार जल प्रबंधन को लेकर अति सक्रिय है और उसने जल प्रबंधन से जुड़े कार्यों को गति देने के लिये जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया। नवगठित जल शक्ति मंत्रालय ने जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिये जल शक्ति अभियान (Jal Shakti Misson) की शुरुआत कर जल चुनौतियों से निपटने का प्रयास किया है।
  • नीति आयोग ने सबसे पहले राज्‍यों के बीच सहकारी और प्रतिस्पर्धात्‍मक संघवाद की भावना पैदा करने के लिये एक साधन के रूप में वर्ष 2018 में संयुक्‍त जल प्रबंधन सूचकांक की शुरुआत की।
  • यह मैट्रिक्‍स के अखिल भारतीय सेट तैयार करने का पहला प्रयास था, जो जल प्रबंधन और जल चक्र के विभिन्‍न आयामों को मापता है। रिपोर्ट को बड़े पैमाने पर स्‍वीकार किया गया और राज्‍यों को अपने जल को भविष्‍य हेतु सुरक्षित करने के लिये कहाँ ध्‍यान देने की ज़रूरत है, इस बारे में दिशा-निर्देश दिये गए।
  • CWMI जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन के संदर्भ में राज्‍यों/संघशासित प्रदेशों के प्रदर्शन का आकलन करने और उनमें सुधार लाने का साधन है। यह कार्य जल शक्ति मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय और सभी राज्‍यों/संघशासित प्रदेशों की साझेदारी से पूर्ण होता है। यह सूचकांक राज्‍यों को उपयोगी जानकारी प्रदान करता है ताकि वे जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के लिये उपयुक्‍त रणनीति तैयार करके उसे लागू कर सके।

समग्र जल प्रबंधन सूचकांक

(Composite Water Management Index -CWMI)

  • नीति आयोग जल के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composition Water Management Index -CWMI) प्रकाशित करता है।
  • समग्र जल प्रबंधन सूचकांक जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन के आकलन और उनमें सुधार लाने का एक प्रमुख साधन है।
  • यह सूचकांक राज्यों और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों को उपयोगी सूचना उपलब्ध करा रहा है जिससे वे उचित रणनीति बनाकर उसे जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन में लागू कर सकेंगे। साथ ही एक वेब पोर्टल भी इसके लिये लॉन्च किया गया है।
  • समग्र जल प्रबंधन सूचकांक में भूजल, जल निकायों की पुनर्स्थापना, सिंचाई, खेती के तरीके, पेयजल, नीति और प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं के 28 विभिन्न संकेतकों के साथ 9 विस्तृत क्षेत्र शामिल हैं।
  • समीक्षा के उद्देश्य से राज्यों को दो विशेष समूहों- ‘पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्य’ और ‘अन्य राज्यों’ में बाँटा गया है।

स्रोत: PIB


जैव विविधता और पर्यावरण

एकल उपयोग वाले प्‍लास्टिक पर प्रतिबंध लगाएगी भारतीय रेलवे

संदर्भ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्‍वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिये गये भाषण में 02 अक्‍तूबर, 2019 से देश में प्‍लास्टिक के उपयोग पर रोक लगाने के आह्वान को ध्‍यान में रखते हुए भारतीय रेलवे ने एकल उपयोग वाले प्लास्टिक (Single Use Plastic) पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया है।

एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक या डिस्पोज़ेबल प्लास्टिक (Disposable Plastic) ऐसे प्लास्टिक हैं जिन्हें फेंकने या पुनर्नवीनीकरण से पहले केवल केवल एक बार ही उपयोग किया जाता है। जैसे- प्लास्टिक की थैलियाँ, स्ट्रॉ, सोडा और पानी की बोतलें तथा अधिकांशतः खाद्य पैकेजिंग के लिये प्रयुक्त होने वाली प्लास्टिक।

प्रमुख बिंदु

  • पर्यावरण को प्‍लास्टिक के खतरे से बचाने के लिये रेलवे द्वारा इस पहल की शुरुआत की जाएगी।
  • रेल मंत्रालय ने रेलवे की सभी यूनिटों को 02 अक्तूबर से 50 माइक्रॉन से कम मोटाई वाले एकल उपयोग प्‍लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया है।
  • प्‍लास्टिक के कचरे के सृजन को न्‍यूनतम स्‍तर पर लाने और इसके पर्यावरण अनुकूल निपटान की व्‍यवस्‍था करने पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है।
  • इस संबध में रेल मंत्रालय ने एक सर्कुलर जारी कर निम्‍नलिखित निर्देशों को लागू करने की बात कही है:
    • एकल या एकबारगी उपयोग वाली प्‍लास्टिक सामग्री पर प्रतिबंध लगाया जाएगा।
    • सभी रेलवे वेंडरों को प्‍लास्टिक के बैग का उपयोग करने से बचना होगा।
    • कर्मचारियों को प्‍लास्टिक उत्‍पादों का उपयोग कम करना चाहिये, प्‍लास्टिक उत्‍पादों का पुनर्चक्रण (Recycling) कर इनका फिर से इस्‍तेमाल करना चाहिये। साथ ही फिर से उपयोग में लाए जा सकने वाले सस्‍ते थैलों का उपयोग करना चाहिये ताकि प्‍लास्टिक के स्‍टॉक में कमी आ सके।
    • IRCTC (Indian Railway Catering and Tourism Corporation) विस्‍तारित उत्‍पादक के रूप में ज़िम्‍मेदारी निभाते हुए पेयजल की पैकिंग के लिये उपयोग की जाने वाली प्‍लास्टिक से निर्मित बोतलों को लौटाने की व्यवस्था को लागू करेगा।
    • प्‍लास्टिक की बोतलों को पूरी तरह तोड़ देने वाली मशीनें जल्द से जल्‍द उपलब्‍ध कराई जाएंगी।

2 अक्तूबर, 2019 से इन निर्देशों का सख्ती से पालन किया जाएगा ताकि सभी संबंधित लोगों को ‘प्‍लास्टिक मुक्‍त रेलवे’ (Plastic Free Railway) सुनिश्चित करने हेतु पूरी तैयारी करने के लिये पर्याप्‍त समय मिल सके।

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

भारत में कुष्ठ रोग की वापसी

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) द्वारा जारी नवीनतम आँकड़ों के मुताबिक, दुनिया के 66 प्रतिशत कुष्ठ रोग (Leprosy) से पीड़ित लोग भारत में मौजूद हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत ने आधिकारिक रूप से वर्ष 2005 में कुष्ठ रोग को समाप्त कर दिया था और उस समय राष्ट्रीय स्तर पर इसकी प्रसार दर 0.72 प्रति 10,000 लोगों तक पहुँच गई थी।
    • WHO के अनुसार, रोग समाप्ति का अर्थ उस स्थिति से है जब प्रसार दर 1 प्रति 10000 पर होती है।
  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016-17 के दौरान भारत में कुष्ठ रोग के 1,35,485 मामले सामने आए थे।
  • मार्च 2017 तक देश के 11 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लगभग 53 जिलों में कुष्ठ रोग की प्रसार दर 2 प्रति 10,000 पाई गई थी।
    • ये राज्य थे बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, दादरा और नगर हवेली, लक्षद्वीप तथा दिल्ली।

कुष्ठ रोगियों की संख्या में बढ़ोतरी का कारण

  • वर्ष 2005 में भारत आधिकारिक तौर पर कुष्ठ रोग से मुक्त देश बन गया था, कुष्ठ रोग मुक्ति की घोषणा के साथ ही उन स्वास्थ्य कर्मियों के रोग उन्मूलन संबंधी प्रयास भी कम हो गए जो वर्ष 2005 तक ग्रामीण इलाकों में रोग की पहचान करने और उसके निवारण में सहायता कर रहे थे। कुष्ठ रोग की ओर अधिक ध्यान न दिये जाने के कारण इसके पीड़ितों में लगातार बढ़ोतरी होती गई।

आगे की राह

  • उन क्षेत्रों की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करना आवश्यक है जहाँ कुष्ठ रोग के सर्वाधिक मामले दर्ज किये जा रहे हैं।
  • भारत को कुष्ठ रोग के उन्मूलन संबंधी एक स्पष्ट रणनीति और उसके कार्यान्वयन की आवश्यकता है।

कुष्ठ रोग क्या है?

  • कुष्ठ रोग दीर्घकालिक संक्रामक रोग है, जो मुख्यतः माइकोबैक्टेरियम लेप्री (Mycobacterium leprae) के कारण होता है। संक्रमण के बाद औसतन पाँच साल की लंबी अवधि के पश्चात् रोग के लक्षण दिखाई देते हैं, क्योंकि माइकोबैक्टेरियम लेप्री धीरे-धीरे बढ़ता है। यह मुख्यत: मानव त्वचा, ऊपरी श्वसन पथ की श्लेष्मिका, परिधीय तंत्रिकाओं, आँखों और शरीर के कुछ अन्य हिस्सों को प्रभावित करता है।
  • रोग को पॉसीबैसीलरी (PB) या मल्टीबैसीलरी (MB) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जो कि बैसीलरी लोड पर निर्भर करता है। PB कुष्ठ रोग अपेक्षाकृत कम घातक रोग है, जिसे कुछ (अधिकतम पाँच) त्वचा के घावों (पीला या लाल) द्वारा पहचाना जाता सकता है। जबकि MB कई (अधिक-से-अधिक) त्वचा के घावों, नोड्यूल, प्लाक/प्लैक, मोटी त्वचा या त्वचा संक्रमण से जुड़ा है।

कुष्ठ रोग उन्मूलन हेतु ‘राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम’

  • वर्ष 1955 में सरकार ने राष्ट्रीय कुष्ठ रोग नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया। वर्ष 1982 से मल्टी ड्रग थेरेपी की शुरुआत के बाद देश से कुष्ठ रोग के उन्मूलन के उद्देश्य से वर्ष 1983 में इसे राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NLEP) के रूप में बदल दिया गया।
  • इस रोग के मामले की शीघ्र जानकारी और उपचार, कुष्ठ रोग उन्मूलन की कुंजी है, क्योंकि कुष्ठ रोगियों का जल्दी पता लगाने से संक्रमण के स्रोतों में कमी आएगी और रोग का संचारण भी रुकेगा। ‘आशा कार्यकर्त्री’, इस रोग के मामलों का पता लगाने में मदद कर रही हैं और सामुदायिक स्तर पर संपूर्ण उपचार भी सुनिश्चित कर रही हैं; इसके लिये उन्हें प्रोत्साहन राशि का भुगतान किया जाता है।

स्रोत: लाइव मिंट


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और फ्रांँस

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी फ्रांँस के दौरे पर हैं। दोनों देशों ने आतंकवाद की निंदा के साथ ही अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया पर भी चर्चा की। भारत और फ्रांँस के बीच आतंकवाद पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, राफेल विमान, भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के लिये चिकित्सा प्रशिक्षण सहायता, साइबर सुरक्षा और अफगानिस्तान सहित कई मुद्दों पर सहमति व्यक्त की गई।

समझौते के प्रमुख बिंदु:

आतंकवाद:

  • फ्रांँस ने आतंकवाद पर वैश्विक सम्मेलन आयोजित करने के भारत के प्रस्ताव का समर्थन किया साथ ही दोनों देशों ने मेलबर्न में आतंकवाद के वित्तपोषण पर "नो मनी फॉर टेरर" के आयोजन हेतु संयुक्त राष्ट्र के देशों से समर्थन करने को भी कहा।
  • भारत और फ्रांँस ने दोनों देशों की नोडल एजेंसियों और जांँच एजेंसियों के बीच उत्कृष्ट सहयोग को आगे बढ़ाने के साथ ही परिचालन सहयोग बढ़ाने और कट्टरपंथ की ऑनलाइन घटनाओं से निपटने के लिये प्रयासों हेतु सहमति व्यक्त की। वर्ष 2018 में ही दोनों पक्ष ऑनलाइन कट्टरता पर सहयोग करने के लिये सहमत हुए थे।
  • भारत और फ्रांँस ने क्राइस्टचर्च कॉल टू एक्शन (Christchurch Call to Action) के कार्यान्वयन की पुष्टि की है।

क्राइस्टचर्च कॉल टू एक्शन (Christchurch Call to Action):

  • इस समझौते के तहत फ्राँस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन और न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जैकिंडा अर्डर्न द्वारा वैश्विक दस्तावेज़ पर पेरिस में हस्ताक्षर किये गए।
  • इस समझौते का उद्देश्य सोशल मीडिया पर चरमपंथी और हिंसक सामग्रियों को हटाना है।
  • इस सम्मलेन में ब्रिटेन, फ्राँस, कनाडा,आयरलैंड, सेनेगल, इंडोनेशिया,जोर्डन एवं यूरोपियन यूनियन के नेताओं के साथ ही बड़ी तकनीकी कंपनियाँ जैसे- ट्विटर . गूगल, माइक्रोसॉफ्ट आदि शामिल हुए थे। \
  • भारत की तरफ से इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology) ने इसमें भाग लिया था।
  • इस दस्तावेज़ का मुख्य उद्देश्य क्राइस्टचर्च में हमलों के बाद सरकारों और ऑनलाइन सेवा प्रदाताओं की सामूहिक एवं स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं पर बल देते हुए इंटरनेट पर आतंकवादी और हिंसक चरमपंथी सामग्री के प्रसार को रोकना है।
  • भारत और फ्रांँस ने आतंकवाद के सभी रूपों, अभिव्यक्तियों और "सीमा पार से आतंकवाद" की निंदा की। दोनों देशों ने वर्ष 2018 की तरह ही सभी देशों से आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकानों और बुनियादी ढांँचे को खत्म करने, आतंकवादी नेटवर्क और उनके वित्तपोषण चैनलों को बाधित करने की सिफारिश भी की।
  • अलकायदा, ISIS, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयब्बा जैसे आतंकवादी संगठनों के सीमा पार प्रसार को रोकने हेतु दोनों देशों ने मिलकर काम करने का आह्वान किया है।
  • उपरोक्त आंतकवादी संगठनों के सहयोगियों द्वारा प्रभावित दक्षिण एशिया और साहिल क्षेत्र में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही गई।

रक्षा:

  • भारत और फ्रांँस के बीच राफेल लड़ाकू विमान के समझौते तहत सितंबर में भारत को राफेल लड़ाकू विमान मिलने की संभावना है।
  • भारत और फ्रांँस ने रक्षा क्षेत्र में दोनों के बीच संबंधों पर संतोष व्यक्त किया, साथ ही मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों में परस्पर सहयोग की भी बात कही।

परमाणु:

  • भारत में फ्रांँस के सहयोग से जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
  • दोनों देशों ने इस संयंत्र की प्रगति पर संतोष व्यक्त किया। महाराष्ट्र के जैतापुर में छह परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों के निर्माण के लिये दोनों देशों के बीच वर्ष 2018 में औद्योगिक मार्ग वायदा समझौता (Industrial Way Forward Agreement) हुआ था।

अंतरिक्ष:

  • फ्रांँस के राष्ट्रपति मैक्रोन के वर्ष 2018 के भारत के दौरे के दौरान अंतरिक्ष सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों जैसे ग्रहों की खोज और मानव अंतरिक्ष यान संबंधी समझौता किया गया था।
  • फ्रांँस ने भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के चिकित्सा प्रशिक्षण सहायता हेतु सहमति व्यक्त की है जो वर्ष 2022 में भारत के मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन का हिस्सा होगा ।
  • भारत और फ्रांँस ने संयुक्त समुद्री डोमेन जागरूकता मिशन की प्राप्ति के लिये एक रूपरेखा की स्थापना हेतु कार्यान्वयन व्यवस्था पर हस्ताक्षर किये। यह हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की आक्रामक नीति पर नज़र रखेगा।

साइबर:

  • वर्ष 2018 के समझौते में साइबर क्षेत्र का कोई उल्लेख नहीं था लेकिन इस दौरे में दोनों देशों ने साइबर सुरक्षा और डिजिटल प्रौद्योगिकी रोडमैप पर द्विपक्षीय सहयोग के विस्तार की बात कही।
  • दोनों देशों ने विशेष रूप से उच्च क्षमता की कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में आपसी सहयोग की संभावना पर बल दिया।

समुद्री समझौता:

  • भारत और फ्रांँस ने विशेष रूप से हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में नेविगेशन की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिये एक साझा प्रतिबद्धता व्यक्त की।
  • भारत और फ्रांँस द्वारा वर्ष 2018 में मैक्रॉन की यात्रा के दौरान अपनाए गए संयुक्त रणनीतिक विज़न के बाद हिंद महासागर क्षेत्र में भारत-फ्रांँस के बीच सहयोग में वृद्धि हुई है।
  • भारत और फ्रांँस ने गुरुग्राम में सूचना संलयन केंद्र - हिंद महासागर क्षेत्र ( Information Fusion Centre – Indian Ocean Region- IFC-IOR) में व्हाइट शिपिंग समझौते के कार्यान्वयन के लिये एक फ्रांँसीसी संपर्क अधिकारी की नियुक्ति पर सहमति व्यक्त की है।

आर्थिक पक्ष:

  • भारत और फ्रांँस ने द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने तथा आर्थिक संचालकों के लाभ के लिये बाजार पहुँच जैसे मुद्दों के समाधान को गति देने हेतु एक उपयुक्त रूपरेखा तय की।
  • फ्रांँस और भारतीय कंपनियों के लिये व्यापार और निवेश "चिंता के मुद्दों" को सुलझाने हेतु संयुक्त रूप से काम करने का निर्णय लिया गया है।
  • भारत और फ्रांँस ने संयुक्त रूप से सहमति व्यक्त की कि वे उच्च-स्तरीय आर्थिक और वित्तीय वार्ता को फिर से सक्रिय करेंगे।

अफगानिस्तान:

  • वर्ष 2018 के समझौते में अफगानिस्तान शांति पर कोई बातचीत नहीं की गई थी लेकिन इस बार के समझौते के तहत दोनों पक्षों ने अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये सक्रिय रूप से सहयोग करने का फैसला किया है, जिसमें क्षेत्रीय संकट भी शामिल हैं।
  • दोनों देशों ने अफगानिस्तान में एक समावेशी शांति और सुलह प्रक्रिया का समर्थन किया, जिसका नेतृत्व, स्वामित्व और नियंत्रण अफगानिस्तान द्वारा किया जाए।
  • अफगानिस्तान में संवैधानिक व्यवस्था, मानवाधिकार, विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण और एक स्थायी राजनीतिक समाधान की बात कही गई।
  • राष्ट्रपति के चुनाव को समय पर आयोजित करने का आह्वान किया गया, साथ ही आतंकवादी हिंसा की समाप्ति, अफगानिस्तान में स्थायी शांति, सुरक्षा और स्थिरता के लिये आतंकवादी संगठनो की समाप्ति की बात कही गई।

जम्मू-कश्मीर और अनुच्छेद 370:

  • भारत और फ्रांँस के बीच जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निलंबित करने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के सरकार के कदम पर चर्चा की गई।
  • फ्रांँस ने इस कदम का समर्थन करते हुए कहा कि फ्रांँस ऐसी ही नीतियों का समर्थन करेगा जो इस क्षेत्र को स्थिरता प्रदान करे, साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से कहा कि इस क्षेत्र में किसी को भी हिंसा की अनुमति नहीं मिलनी चाहिये।
  • फ्रांँस ने कहा कि यह भारत का एक संप्रभु मुद्दा है। कश्मीर के मुद्दे को भारत और पाकिस्तान के बीच ही सुलझाया जाना चाहिये, साथ ही इसमें किसी अन्य पक्ष को शामिल नहीं किया जाना चाहिये।
  • भारत और फ्रांँस के संबंध सर्वकालिक एवं सदाबहार रहे हैं, दोनों देशों के बीच संबंध के क्षेत्र में पर्याप्त विविधता और गहराई है। पहले के मधुर सामरिक संबंधों के साथ ही वर्तमान में भी दोनों देश जलवायु परिवर्तन और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के मुद्दे पर एक-दूसरे को समर्थन प्रदान कर रहे हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

तैरता परमाणु रिएक्टर

चर्चा में क्यों?

पर्यावरणविदों की चेतावनियों के बावजूद भी रूस ने आर्कटिक महासागर में पहला तैरता परमाणु रिएक्टर अकादमिक लोमोनोसोव (Akademik Lomonosov) लॉन्च किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • पर्यावरणविदों ने इस रिएक्टर की प्रभावशीलता को देखते हुए इसे ‘बर्फ पर चेर्नोबिल’ (Chernobyl on ice) और ‘परमाणु टाइटैनिक’ नाम दिया है।

Akademik Lomonosov

  • वर्ष 2006 में सेंट पीटर्सबर्ग में अकादमिक लोमोनोसोव का निर्माण कार्य शुरू हुआ था।
  • अकादमिक लोमोनोसोव जो कि परमाणु ईंधन से भरा हुआ है। इसने आर्कटिक बंदरगाह मरमंस्क (Murmansk) से उत्तर-पूर्वी साइबेरिया के पेवेक (Pevek) के लिये 5,000 किमी. यात्रा प्रारंभ कर दी है।
  • साइबेरिया क्षेत्र के एक शहर पेवेक में यह संयंत्र एक बंद कोयला संयंत्र का स्थान लेगा।
  • परमाणु एजेंसी रोसाटॉम के अनुसार, इस प्रकार के रिएक्टर से सदैव बर्फ से ढकें स्थानों को ऊर्जा आसानी से उपलब्ध कराई जा सकेगी, साथ ही इस प्रकार के रिएक्टरों का निर्यात भी किया जाएगा।
  • रूस इस प्रकार के संयंत्रों का प्रयोग आर्कटिक क्षेत्र में बड़ी बुनियादी ढांँचागत परियोजनाओं, खनिज तेल और हाइड्रोकार्बन की खोज हेतु करेगा।

इस रिएक्टर से संबंधित चिंताएँ:

  • रूस के सुदूर उत्तर में एक सैन्य परीक्षण स्थल पर घातक विस्फोट के बाद रेडियोधर्मी चिताएँ बढ़ गई हैं।
  • ग्रीनपीस के अनुसार, परमाणु ऊर्जा संयंत्र से रेडियोधर्मी कचरे का उत्पादन होता है जिससे दुर्घटना हो सकती है। अकादमिक लोमोनोसोव तूफानों के लिये कमज़ोर है इसलिये इसके दुर्घटनाग्रस्त होने की अधिक संभावना बनी हुई है।
  • रोसाटॉम इस संयंत्र के लिये आवश्यक ईंधन को जहाज़ पर ही रखने की योजना बना रहा है। ग्रीनपीस ने चेतावनी दी है कि इस ईंधन से जुड़ी कोई भी दुर्घटना आर्कटिक क्षेत्र के संवेदनशील पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुँचा सकती है।
  • ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के कारण पिघलती बर्फ से अटलांटिक महासागर और प्रशांत महासागर का रूस के उत्तरी तट के साथ जुड़ने वाला मार्ग अधिक सुलभ हो गया है।
  • एक प्रकार के तैरते परमाणु संयंत्र की लागत भी बहुत अधिक होती है।

ग्रीनपीस (Greenpeace)

  • ग्रीनपीस पर्यावरण चेतना हेतु विश्वव्यापी आंदोलन है। इसकी स्थापना वर्ष 1971 में कनाडा के वैंकूवर (Vancouver) में हुई थी।
  • वर्ष 1976 के आसपास ग्रीनपीस ने स्वतंत्र गैर सरकारी संगठन के रूप में कार्य करना प्रारंभ किया था।
  • इसकी स्थापना का तात्कालिक उद्देश्य अमेरिका द्वारा अलास्का में नाभिकीय हथियारों के परीक्षण का विरोध करना था किंतु बाद में इसका उद्देश्य व्यापक रूप से पर्यावरण की सुरक्षा के करना हो गया।
  • यह महासागर, वन, जैव-विविधता और महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय स्थानों जैसे- आर्कटिक तथा अंटार्कटिका के विशेष संरक्षण का प्रयास करता है।
  • ग्रीनपीस का वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय एम्सटर्डम (नीदरलैंड) में स्थित है।
  • ग्रीनपीस इंटरनेशनल के 26 स्वतंत्र राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कार्यालय 55 से अधिक देशों में कार्य कर रहे हैं।
  • इन राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा वैश्विक रणनीतियों को स्थानीय संदर्भ में संचालित किया जा सकता हैं। स्थानीय कार्यालय अपने कार्यों के लिये आवश्यक निधि के संग्रहण के लिये भी स्वतंत्र हैं।
  • ग्रीनपीस इंडिया की स्थापना वर्ष 2001 में हुई थी। इसका मुख्यालय बंगलूरू में स्थित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आपदा प्रबंधन

प्रकृति और शहरीकरण

चर्चा में क्यों?

बीते साल एक रिपोर्ट में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India-CAG) ने वर्ष 2015 की चेन्नई बाढ़ को “मानव निर्मित आपदा” की संज्ञा दी थी।

प्रमुख बिंदु:

  • पानी की अधिकता के बाद अब चेन्नई एक अन्य संकट से जूझ रहा है - पानी की कमी का संकट। बीते कुछ वर्षों में चेन्नई के 30 से अधिक जल स्रोत गायब हो गए हैं।
  • पक्की सड़कों और सतहों (Floors) के अत्यधिक निर्माण ने वर्षा के जल को पृथ्वी की सतह तक आने से काफी हद तक रोक दिया है जिससे कारण भूजल स्तर में कमी हुई है।
  • गौरतलब है कि चेन्नई की बाढ़ और वर्तमान जल संकट इस बात का संकेत हैं कि किस प्रकार झीलों एवं नदियों के अतिक्रमण ने भारत के छठे सबसे बड़े शहर को पर्यावरण असंवेदनशीलता की स्थिति में पहुँचा दिया है।

शहरीकरण और उसके प्रभाव

  • प्राकृतिक संसाधनों की लागत पर शहरीकरण के विकास के उदाहरण भारत या वैश्विक स्तर पर नए नहीं हैं। बंगलूरू, हैदराबाद और यहाँ तक ​​कि मैक्सिको जैसे शहर इस बात के प्रमुख उदाहरण हैं।
  • कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा जारी एक नोटिस में कहा गया था कि पाँच साल से भी कम समय में बंगलूरू की लगभग 15 झीलों की पारिस्थितिक विशेषताएँ नष्ट हो गई हैं।
  • बंगलूरू में अतिक्रमित झीलों के क्षेत्र को बस स्टैंड, स्टेडियम और यहाँ तक कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दफ्तर के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।

तेलंगाना ने किया है जल क्षेत्र में सराहनीय कार्य

  • तेलंगाना के हालात भी कुछ अच्छे नहीं थे, वहाँ काकतीय राजवंश द्वारा निर्मित तालाब और झीलें बीते कुछ वर्षों में गायब हो गई।
  • उक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुए तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने वर्ष 2015 में ‘मिशन काकतीय’ नाम से एक आंदोलन शुरू किया जिसका मुख्य उद्देश्य काकतीय राजवंश द्वारा निर्मित तालाब और झीलों की बहाली करना है।
  • वर्तमान में तेलंगाना हाइड्रोलिक मॉडल की ओर बढ़ रहा है। यह मॉडल पानी के छह स्रोतों को एकीकृत करता है ताकि शहर के सबसे अविकसित क्षेत्रों की भी जल संसाधनों तक पहुँच सुनिश्चित हो सकें और चेन्नई जैसी स्थिति से बचने के लिये भूजल को बहाल किया जा सके।

मेक्सिको और बंगलूरू में भी हुआ है काम

  • मेक्सिको ने अपने डूबते हुए शहर को बचाने के प्रयास में ‘रेसिलियेंस ऑफिसर’ (Resilience Officer) नाम से एक अधिकारी की नियुक्ति की है।
    • रेसिलियेंस ऑफिसर, मेक्सिको में एक उच्च स्तरीय अधिकारी है जो सीधे शहर के मेयर को रिपोर्ट करता है।
    • इस अधिकारी का कार्य यह विचार करना है कि शहर की कोई नीति या योजना शहर की आपदा से लड़ने की क्षमताओं को किस प्रकार कम कर सकती है साथ ही वह यह सुझाव भी देगा कि इस स्थिति से किस प्रकार निपटा जाए।
  • इसके अलावा बंगलूरू एक सार्वजनिक निजी भागीदारी (Public Private Partnership) मॉडल में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी फंड (Corporate Social Responsibility Funds) के माध्यम से कुंडलाहल्ली झील के पुनरुद्धार का प्रयास कर रहा है।

2050: कैसे होंगे हालात?

  • एक अनुमान के मुताबिक, आने वाले 30 वर्षों में भारत की 50 प्रतिशत आबादी शहरों में निवास करेगी।
  • इस हिसाब से यदि हम अपने देश का बेहतर भविष्य चाहते हैं तो हम कैसे देश के 50 प्रतिशत लोगों की जान खतरे में डाल सकते हैं?
  • यदि हम अभी नहीं जागे तो हमें प्रकृति के खतरनाक परिणामों को भुगतने के लिये तैयार रहना होगा और मानवता के विनाश हेतु हमें किसी परमाणु बम की आवश्यकता भी नहीं होगी।

आगे की राह:

  • शहरीकरण किसी भी समाज के विकास हेतु काफी महत्त्वपूर्ण है और यदि इसे सुव्यवस्थित ढंग से किया जाए तो इसके काफी परिणाम सकारात्मक हो सकते हैं।
  • शहरीकरण के दौरान बड़े स्तर पर वृक्षों की कटाई की जाती हैं, इस संदर्भ में एक नीति तैयार की जानी चाहिये और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये की जितनी आवश्यकता है उतने ही वृक्ष काटे जाएं। साथ ही उतनी ही मात्रा में वृक्षारोपण का भी प्रावधान किया जाना चाहिये ताकि प्रकृति में संतुलन भी बना रहे और विकास को भी सुनिश्चित किया जा सकें।
  • उद्योगों को नगरीय क्षेत्रों से दूर इस प्रकार स्थापित करना चाहिये कि उनका प्रभाव शहरों पर न पड़े।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये वित्तीय संस्थान

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने देश के बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण की ज़रूरतों को हल करने के लिये एक विकास वित्तीय संस्थान (Development Financial Institute-DFI) स्थापित करने का प्रस्ताव पेश किया है।

प्रमुख बिंदु

  • इस तरह की संस्था की स्थापना को एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है क्योंकि बैंकों के पास ऐसी परियोजनाओं को वित्त देने के लिये दीर्घकालिक धन नहीं होता है।
  • बैंक ऐसी परियोजनाओं के लिये ऋण नहीं दे सकते हैं क्योंकि इससे उनकी ऋण देने की क्षमता कम हो जाती है।

अवसंरचना संबंधित वित्त हेतु भारत को DFI की ज़रूरत क्यों है?

  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये इससे पूंजी प्रवाह में वृद्धि होगी और पूंजी बाज़ार सक्रिय होंगे।
  • दीर्घकालिक वित्त में सुधार करने के लिये।
  • अवसंरचना और आवास परियोजनाओं के लिये ऋणों की उपलब्धता बढ़ाने के लिये।
  • जैसा कि भारत में विकास बैंक नहीं है, DFI देश के लिये एक संस्थागत तंत्र की आवश्यकता को पूरा करेगा।
  • बुनियादी ढाँचे से संबंधित परियोजनाओं हेतु ऋण प्रवाह में सुधार किया जा सकेगा।

RBI ने वर्ष 2017 में यह भी निर्दिष्ट किया था कि विशिष्ट बैंक न केवल तेज़ी से विकसित होती भारतीय अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक वित्तपोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं बल्कि दीर्घकालिक वित्तपोषण में विद्यमान अंतर को भी भर सकते हैं।

इस प्रकार यदि सरकार देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, क्षेत्रीय, ग्रामीण और पर्यावरणीय चिंताओं को हल करना चाहती है तो DFI की अवधारणा को पुनर्जीवित करना बुद्धिमानी होगी।

विकास वित्त संस्थान क्या है?

  • ये विकासशील देशों में विकास परियोजनाओं को वित्त प्रदान करने के लिये विशेष रूप से स्थापित संस्थान हैं।
  • इन बैंकों की पूंजी का स्रोत राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय विकास निधि है।
  • यह विभिन्न विकास परियोजनाओं को प्रतिस्पर्द्धी दर पर वित्त प्रदान करने की क्षमता रखता है।

यह वाणिज्यिक बैंकों से किस प्रकार भिन्न है?

  • यह वाणिज्यिक बैंकों के परिचालन मानदंडों के बीच एक संतुलन बनाता है, जिसमें एक ओर वाणिज्यिक बैंक और दूसरी ओर विकास संबंधी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं।
  • DFI केवल वाणिज्यिक बैंकों की तरह सादे ऋणदाता नहीं हैं, बल्कि ये अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के विकास में सहायक के रूप में भी कार्य करते हैं।

भारत में DFI का विकास:

  • भारत का पहला DFI भारतीय औद्योगिक निगम (IFC) था जिसे वर्ष 1948 में लॉन्च किया गया था।
  • IDBI, UTI, NABARD, EXIM बैंक, SIDBI, NHB, IIFCL आदि अन्य प्रमुख DFIs हैं।
  • बाद में इनमें से कई को ICICI बैंक, IDBI बैंक, आदि जैसे बैंकों में परिवर्तित कर दिया गया।

विकास वित्तीय संस्थान का वर्गीकरण:

  • सेक्टर विशिष्ट वित्तीय संस्थान: ये वित्तीय संस्थान एक विशेष क्षेत्र की परियोजनाओं को वित्त प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित होते हैं।
    • उदाहरण के तौर पर: NHB पूरी तरह से आवास परियोजनाओं से संबंधित है, EXIM बैंक आयात निर्यात कार्यों की ओर उन्मुख है।
  • निवेश संस्थान: ये व्यवसाय संचालन को सुविधाजनक बनाने के लिये डिज़ाइन की गई सेवाएँ प्रदान करने का कार्य करते हैं।
    • जैसे कि पूंजीगत व्यय वित्तपोषण (Capital Expenditure Financing) और इक्विटी ऑफरिंग्स (Equity Offerings), जिसमें इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) जैसे: LIC, GIC और UTI भी शामिल हैं।

स्रोत : द हिन्दू


भारत-विश्व

UNSC बैठक और चीन एवं पाकिस्तान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में UNSC (UN Security Council) ने ‘सशस्त्र संघर्ष की स्थिति में धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और कुशलता के प्रोत्साहन’ (Advancing the Safety and Security of Persons Belonging to Religious Minorities in Armed Conflict) पर एक बैठक का आयोजन किया।

प्रमुख बिंदु

  • इस बैठक में चीन और पाकिस्तान में रहने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न करने के लिये इन देशों की आलोचना की गई।
  • इस बैठक में धार्मिक स्वतंत्रता को देशों के भीतर और देशों के मध्य शांति व स्थिरता के लिये आवश्यक माना गया।
  • दोनों देशों में ईसाई, अहमदी, उइगर और अन्य जातीय अल्पसंख्यकों को उत्पीड़ित किये जाने के कारण इन्हें अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा बैठक में बुलाया गया था।
  • इस बैठक में विश्व से यहूदी विरोधी (Anti-Semitism), मुस्लिम विरोधी, ईसाइयों और अन्य धार्मिक समूहों के उत्पीड़न तथा सभी प्रकार के नस्लवाद (Racism), ज़ेनोफ़ोबिया (Xenophobia), भेदभाव और हिंसा को समाप्त करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।
  • प्रथम अंतर्राष्ट्रीय दिवस (22 अगस्त 2019) के अवसर पर धर्म या विश्वास के आधार पर हिंसा पीड़ितों का स्मरण करने के लिये इस बैठक का आयोजन किया गया।
  • अरिया-फार्मूला (Arria-Formula) पर आधारित इस बैठक का आयोजन पोलैंड द्वारा किया गया।

चीन के संदर्भ में

  • चीन में उइगर (Uighur), कज़ाख (Kazakhs) और मुस्लिम (Muslims), तिब्बती बौद्ध (Tibetan Buddhists), कैथोलिक (Catholics), प्रोटेस्टेंट (Protestants) तथा फालुन गोंग (Falun Gong) सहित कई धार्मिक समूहों के सदस्यों को गंभीर उत्पीड़न एवं दमन का सामना करना पड़ रहा है।
  • चीन की तरह धार्मिक अभिव्यक्ति और सार्वजनिक क्षेत्र में धर्म की भूमिका को प्रतिबंधित करने के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा का उपयोग करने वाले देशों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।

पाकिस्तान के संदर्भ में

  • पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ अराजक तत्त्वों एवं भेदभावपूर्ण कानून और प्रथाओं के आधार पर उत्पीड़न किया जाता है।

अरिया-फार्मूला (Arria-Formula)

  • अरिया फॉर्मूला एक अनौपचारिक व्यवस्था है जो UNSC को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के मुद्दों के बारे में अधिक लचीलापन प्रदान करता है।
  • मार्च 1992 में इसे पहली बार लागू किया गया।
  • यह बैठक प्रत्येक माह आयोजित की जाती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

ऑटो ट्रिगर तंत्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने कहा है कि वह जकार्ता में शुरू हुए क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) की वार्ता में आयात में तीव्र बढ़ोतरी के विरुद्ध अस्थायी सुरक्षा उपाय के रूप में ऑटो ट्रिगर (Auto Trigger) पर अपने प्रस्ताव को स्वीकार किये जाने पर बल देगा।

प्रमुख बिंदु

  • भारत घरेलू उद्योग की सुरक्षा के लिये आयात वृद्धि को नियंत्रित करने हेतु 'ऑटो-ट्रिगर' तंत्र पर बल दे रहा है।
  • Auto Trigger तंत्र के अनुसार, यह RCEP के सदस्य देशों के लिये आयात शुल्क में कमी या उसे पूर्णतया समाप्ति की दशा में आयात में होने वाली अप्रत्याशित वृद्धि को रोकने के लिये एक व्यवस्था है। इसके तहत RCEP देशों के बीच होने वाले आयात की मात्रा एक निश्चित सीमा से अधिक पहुँचने पर इस पर संरक्षण शुल्क (Safeguard Duties) स्वत: लागू हो जाएगा।
  • भारत प्रस्तावित Investor-State Dispute Settlement (ISDS) निकाय को RCEP समझौते में समावेशित करने का विरोध कर रहा है क्योंकि यह निकाय सदस्य देशों के घरेलू कानूनों को देश के बाहर चुनौती देने का प्रावधान करता है।
  • भारत ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ (Rules of Origin) के नियमों को और भी कठोर करने पर बल दे रहा है। इससे कम आयात शुल्क वाले देशों के माध्यम से वस्तुओं के आयात को रोका जा सकेगा।

रूल्स ऑफ ओरिजिन

(Rules of origin)

  • ये ऐसे मापदंड हैं जो किसी उत्पाद के राष्ट्रीय स्रोत को निर्धारित करने के लिये आवश्यक होते हैं।
  • इसके तहत कई मामलों में शुल्क और प्रतिबंध ‘आयात के स्रोत’ पर निर्भर करते हैं।
  • भारत को आशंका है कि RCEP समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भारतीय बाज़ार ऐसे तीसरे देश से आयातित सस्ती वस्तुओं से भर जाएगा जो RCEP का सदस्य नहीं है लेकिन इसने अन्य RCEP सदस्यों के साथ FTA (Free Trade Agreement) पर हस्ताक्षर कर रखे है।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)

  • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एक प्रस्तावित मेगा मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement-FTA) है, जो आसियान के दस सदस्य देशों तथा छह अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) के बीच किया जाना है।
  • ज्ञातव्य है कि इन देशों का पहले से ही आसियान से मुक्त व्यापार समझौता है।
  • वस्तुतः RCEP वार्ता की औपचारिक शुरुआत वर्ष 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन में हुई थी।
  • RCEP को ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप (Trans Pacific Partnership- TPP) के एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
  • सदस्य देश: ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम। इनके अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड सहभागी (Partner) देश हैं।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (24 August)

  • आतंकी वित्त पोषण और धन शोधन मामलों पर नजर रखने वाले FATF के एशिया-प्रशांत समूह ने पाकिस्तान को वैश्विक मानकों पर खरा उतरने में विफल रहने के चलते उसे विस्तृत काली सूची में डाल दिया है। ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा में FATF के एशिया-प्रशांत समूह की दो दिनों तक हुई बैठक में यह फैसला किया गया। समूह ने यह पाया कि पाकिस्तान ने धन शोधन और आतंकवाद के वित्त पोषण संबंधी 40 अनुपालन मानकों में से 32 का पालन नहीं किया। आतंकवादी गतिविधियों के लिये धन मुहैया कराना और धन शोधन के 11 प्रभावी मानकों में से पाकिस्तान 10 में खरा नहीं उतर पाया। पाकिस्तान 41 सदस्यीय एशिया-प्रशांत समूह को यह नहीं समझा पाया कि किसी भी पैरामीटर पर उसे कैसे अपग्रेड किया जा सके। विदित हो कि जून 2018 से ही पाकिस्तान FATF की 'ग्रे लिस्‍ट' में मौजूद है। FATF का पूरा नाम Financial Action Task Force है। यह एक अंतर-सरकारी संस्था है जो मनी लान्डरिंग को रोकने से संबंधित नीतियाँ बनाने के लिये वर्ष 1989 में स्थापित की गई थी। वर्ष 2001 में इसका कार्यक्षेत्र विस्तारित किया गया और आतंकवाद का वित्त पोषण कराने के विरुद्ध नीतियाँ बनाना भी इसके कार्यक्षेत्र में सम्मिलित कर लिया गया। इसका सचिवालय स्थित OECD के मुख्यालय में है।
  • केंद्रीय परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने इस वर्ष 1 दिसंबर से सभी चौपहिया वाहनों के लिये फास्टैग (FASTag) लगाना अनिवार्य करने का एलान किया है, क्योंकि सभी टोल प्लाज़ा की सभी लेन्स में फास्टैग से टोल लेने की व्यवस्था की जाएगी। अर्थात् जिन वाहनों में फास्टैग लगा होगा, वह किसी भी लेन से बिना रुके टोल गेट पार कर सकेंगे। फिलहाल देश में सभी टोल प्लाज़ा पर फास्टैग से टोल लेने की व्यवस्था हो गई है, लेकिन सभी लेन में ऐसा नहीं हो पाया है। सभी लेन फास्टैग होने से वाहन वहां बिना रुके टोल चुका कर आगे बढ़ जाएंगे। यह न सिर्फ सरकार डिजिटल इंडिया अभियान को आगे बढ़ाएगा बल्कि नकदी के व्यवहार में भी कमी लाएगा। ज्ञातव्य है कि फास्टैग एक रिचार्जेबल कार्ड है जिसमें रेडियो फ्रिक्वेंसी आईडेंटिफिकेशन (RFID) तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। कार की विंडस्क्रीन पर लगने वाले इस कार्ड का इस्तेमाल टोल टैक्स भरने में होगा। वाहन के मालिक को यह FASTag प्रीपेड अकाउंट से लिंक कराना होगा और फास्टैग लगी कार जब टोल प्लाज़ा पर पहुँचेगी तो एक डिवाइस से संपर्क में आने के बाद टोल टैक्स अपने आप कट जाएगा और चालक बिना रुके टोल प्लाज़ा पार कर लेगा।
  • पर्यावरण को प्‍लास्टिक के खतरे से बचाने के लिये चलाए जा रहे अभियान में पशुपालन एवं डेयरी विभाग ने अमूल और मदर डेयरी से अनुरोध किया है कि वे दूध की थैलियों का पुनर्चक्रण करने से संबंधित कार्ययोजना बनाकर पशुपालन एवं डेयरी विभाग के साथ साझा करे, ताकि उसका कार्यान्वयन करने के लिये उसे अन्य दुग्ध संघों तक पहुंचाया जा सके। गुजरात दुग्ध संघ (अमूल), कर्नाटक दुग्ध संघ (नंदिनी), पंजाब दुग्ध संघ (वेर्का), महाराष्ट्र दुग्ध संघ (महानंद) जैसे प्रमुख डेयरी संघों से अनुरोध किया है कि वे 3R- रिड्यूस, रिबेट और रियूज की कार्यनीति के तहत अभियान के रूप में दूध की प्लास्टिक की थैलियों के पुनः उपयोग को बढ़ावा दें। रिड्यूस यानी आधा लीटर दूध की थैली की तुलना में एक लीटर दूध की थैली का दाम घटाते हुए प्लास्टिक की थैलियों की खपत में कमी लाना, रिबेट यानी प्लास्टिक वापस लाने वाले उपभोक्ताओं को छूट देना, रियूज यानी सड़क निर्माण, पुनर्चक्रण करने वाले उपयोगकर्ताओं के लिये थैलियों का पुनः उपयोग करना।
  • दयालुता पर पहले विश्व युवा सम्मेलन का आयोजन हाल ही में नई दिल्ली में हुआ। 23 अगस्त को आयोजित हुए इस सम्मेलन का उद्घाटन रास्त्रपति रामनाथ कोविंद ने किया। यूनेस्को, महात्मा गांधी शांति और सतत विकास शिक्षा संस्थान और मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने संयुक्त रूप से इस सम्मेलन का आयोजक किया। इस सम्मेलन में 27 देशों के युवा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन का उद्देश्य युवाओं में सहानुभूति, सद्भावना और जागरूकता की भावना जागृत करना था ताकि वे अपने आपमें परिवर्तन लाकर अपने समुदायों में स्थायी शांति का माहौल बना सकें। इस मौके पर राष्ट्रपति ने कहा कि महात्मा गांधी एक महान और दूरदर्शी जननायक थे। उन्होंने कुछ सार्वभौमिक आदर्शों और मूल्यों का मानवीकरण किया। गांधीजी सभी युगों के लिए प्रासंगिक है और यह बात वर्तमान समय में भी सत्य है। गांधीजी वर्तमान वैश्विक चिंताओं, जैसे- शांति और सद्भावना की आवश्यकता, आतंकवाद तथा जलवायु परिवर्तन आदि के संदर्भ में भी प्रासंगिक हैं।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा एवं अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने 23 अगस्त को नई दिल्ली में सेवानिवृत्ति-पूर्व परामर्श कार्यशाला और अनुभव पुरस्कार, 2019 प्रदान किये। गौरतलब है कि वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री के आह्वान पर अनुभव पोर्टल तैयार किया गया था, जिसका उद्देश्य सेवानिवृत्त अधिकारियों के समृद्ध अनुभवों को डिजिटल रूप में संरक्षित करना है। वर्ष 2016 में पुरस्कार योजना शुरू की गई, ताकि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अपने अनुभव साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। वर्ष 2016 से ही हर वर्ष वार्षिक समारोहों का आयोजन भी होने लगा। यह इस श्रृंखला का चौथा वार्षिक पुरस्कार है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2