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संसद टीवी संवाद

जैव विविधता और पर्यावरण

विशेष/द बिग पिक्चर/देश-देशांतर/इन-डेप्थ: विश्व पर्यावरण दिवस: प्लास्टिक युग के खतरों को पहचानें

  • 06 Jun 2018
  • 23 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि 

पर्यावरण की सुरक्षा और इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये प्रत्येक वर्ष 5 जून का दिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है। वैसे इस दिन को दुनियाभर में मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने 1972 में की थी, लेकिन पहला विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1974 को मनाया गया था और इस वर्ष 45वाँ विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। 

भारत को मिली है वैश्विक मेज़बानी
इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की वैश्विक मेज़बानी भारत को मिली है। इस अवसर पर सरकारों, उद्योग जगत, समुदायों और सभी लोगों से आग्रह किया गया कि वे साथ मिलकर स्थायी विकल्प खोजें और एक बार उपयोग में आने वाले प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग को जल्द-से-जल्द रोकें, क्योंकि यह हमारे महासागरों को प्रदूषित कर रहा है, समुद्री जीवन को नष्ट कर रहा है और मानव स्वास्थ्य के लिये खतरा बन गया है। स्थिति इतनी विषम हो चुकी है कि जितनी देर में कोई तेज़ गेंदबाज़ एक ओवर फेंकता है, उतनी देर में चार ट्रक प्लास्टिक का कचरा महासागर में बहा दिया जाता है।

  • प्रत्येक वर्ष इस दिन की एक विशेष थीम होती और इस बार की थीम बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन (Beat Plastic Polution) है यानी प्लास्टिक प्रदूषण को हराएँ अर्थात् करेंगे संग प्लास्टिक प्रदूषण से जंग।

पर्यावरण क्या है?

  • आमतौर पर समझा जाता है कि वायु, जल, मिट्टी, नदियाँ, झीलें, जीव-जंतु और वनस्पतियाँ मिलकर पर्यावरण का निर्माण करते हैं। यह सीमित अर्थों में सच है। 
  • व्यापक रूप से हम कह सकते हैं कि मनुष्य के आसपास का सारा वातावरण, घर के भीतर और बाहर, सभी कुछ पर्यावरण का हिस्सा है। 
  • हम यह भी कह सकते हैं कि किसी क्षेत्र विशेष की भौतिक व जैविक स्थिति या परिवेश जो किसी जीव या प्रजाति को प्रभावित करती हो, पर्यावरण कहलाता है। 
  • यह भी कह सकते हैं कि धरती पर जिस किसी चीज़ को देखा और महसूस किया जा सकता है, वह पर्यावरण का हिस्सा है। इसमें मानव, जीव-जंतु, पहाड़, चट्टान जैसी चीजों के अलावा हवा, पानी, ऊर्जा आदि को भी शामिल किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण (UNEP) क्या है? 
पर्यावरण के मुद्दे पर अग्रणी वैश्विक आवाज़ है--संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण। यह राष्ट्रों और लोगों को आने वाली पीढ़ियों के जीवन से समझौता किये बिना, उनके जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिये प्रेरित करता है, जानकारी देता है और योग्य बनाता है। ऐसा करके यह पर्यावरण संरक्षण के लिये नेतृत्व प्रदान करता है और प्रोत्साहित करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण दुनियाभर में सरकारों, निजी क्षेत्र, सिविल सोसाइटी और संयुक्त राष्ट्र की अन्य इकाइयों तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करता है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

प्लास्टिक क्या है?

  • बेल्जियम मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक लियो बेकलैंड को प्लास्टिक का आविष्कर्त्ता माना जाता है।
  • उन्होंने फॉरमलडेहाइड और फेनॉल जैसे रसायनों के साथ प्रयोग करते हुए प्लास्टिक का अविष्कार किया था। 
  • इसे उन्होंने बैकेलाइट नाम दिया था। इसके बाद प्लास्टिक ने बहुत तेज़ी से हर जगह अपनी पहुँच बनानी शुरू कर दी। 
  • दुनियाभर की प्रयोगशालाओं से प्लास्टिक के तरह-तरह के रूप सामने आने लगे, जिनमें पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाली पॉलीस्टारेन, नायलॉन, पॉलिथायलेन जैसी चीजें शामिल थीं। 
  • इससे पहले तक प्लास्टिक की तरह की चीज़ सेल्युलाइड से बनाई जाती थी, जो पौधों से प्राप्त किया जाता था।

लगातार बढ़ रहा है उत्पादन और खपत 

  • दशकों पहले लोगों की सुविधा के लिये प्लास्टिक का आविष्कार किया गया था, लेकिन धीरे-धीरे यह अब पर्यावरण के लिये ही नासूर बन गया है। 
  • आज प्लास्टिक अपने उत्पादन से लेकर इस्तेमाल के सभी चरणों में पर्यावरण और पारिस्थितकीय तंत्र के लिये खतरनाक बन गया है। 
  • प्लास्टिक और पॉलीथीन के कारण पृथ्वी और जल के साथ-साथ वायु भी प्रदूषित होती जा रही है। 
  • हाल के दिनों में मीठे और खारे दोनों प्रकार के पानी में मौजूद जलीय जीवों में प्लास्टिक रसायन से होने वाले दुष्प्रभाव नज़र आने लगे हैं। 

यहाँ-वहाँ, जहाँ-तहाँ प्लास्टिक ही प्लास्टिक 
इसके बावजूद प्लास्टिक और पॉलीथीन की बिक्री में कोई कमी नहीं आई है। दरअसल इसके पीछे लोगों की यह धारणा काम कर रही है कि प्लास्टिक के सामान चटख रंग वाले और आसानी से साफ किये जा सकने वाले होते हैं। टपरवेयर के बने प्लास्टिक उत्पाद इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। इसके अलावा प्लास्टिक से बनी चीज़ों के सस्ता होने की वज़ह से ये आसानी से सभी की पहुँच में होते हैं। आज लोगों के घर प्लास्टिक के सामान से भरे हैं...बाज़ार भरे हैं...इसके साथ कचरों के ढेर से दुनियाभर के देश भरे हैं।

महासागर भी पटे पड़े हैं प्लास्टिक से 

  • महासागरों में बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय बनता जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच अवस्थित तस्मानिया सागर का क्षेत्र प्लास्टिक प्रदूषण के सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है।
  • धरती पर फेंका गया अरबों टन प्लास्टिक कचरा हर साल महासागरों में समा जाता है। आसानी से विघटित नहीं होने के कारण यह इनमें जस-का-तस पड़ा रहता है।
  • केवल हिंद महासागर में ही भारतीय उपमहाद्वीप से पहुँचने वाली भारी धातुओं और लवणीय प्रदूषण की मात्रा प्रतिवर्ष करोड़ों टन है।

पारिस्थितकीय तंत्र के लिये घातक

  • लाखों टन प्लास्टिक कचरा रोज़ाना समुद्र में समा जाने से जैव विविधता भी प्रभावित होती है और समुद्री वनस्पति की वृद्धि पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • प्लास्टिक की यह मात्रा पर्यावरण के लिये तो समस्या है ही, साथ-साथ जलीय जीव-जंतुओं के लिये भी जानलेवा साबित हो रही है।
  • पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ ही महासागर अपने अंदर व आस-पास अनेक छोटे-छोटे नाज़ुक परितंत्रों को पनाह देते हैं, जिससे उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु व वनस्पतियाँ पनपती हैं। प्लास्टिक इन सभी को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।
  • दुनिया के लगभग 90% समुद्री जीव-जंतु एवं पक्षी किसी-न-किसी रूप में अपने शरीर में प्लास्टिक ले रहे हैं। 
  • आर्कटिक सागर को लेकर किये गए एक शोध के अनुसार, अगर यही स्थिति रहती है तो 2050 तक समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक कचरा नज़र आएगा।
  • 1960 के दशक में पक्षियों के आहार में केवल 5% प्लास्टिक की मात्रा पाई गई थी, जबकि 2050 तक लगभग 99% समुद्री पक्षियों के पेट में प्लास्टिक होने की संभावना जताई जा रही है।

माइक्रोबिड्स

प्लास्टिक के कुछ छोटे रूप भी हैं, जिन्हें माइक्रोबिड्स कहा जाता है। इनका आकार 5 मिमी. से अधिक नहीं होता। भारतीय मानक ब्यूरो ने कुछ समय पूर्व जैव रूप से अपघटित न होने वाले माइक्रोबिड्स को उपभोक्ता उत्पादों में उपयोग के लिये असुरक्षित बताया। अमेरिका, कनाडा और नीदरलैंड जैसे देशों ने निजी देखभाल उत्पादों में माइक्रोबिड्स के उपयोग को रोकने के लिये नियम बना रखे हैं, लेकिन इनकी रोकथाम के लिये भारत में अभी कोई नियम नहीं बना है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

प्लास्टिक युग में रह रहे हैं हम

  • हम अपनी ज़िंदगी के हर पहलू में प्लास्टिक को देखने के अभ्यस्त हो गए हैं और हमें यह आदत कई दशकों के लगातार इस्तेमाल से पड़ी है तथा आज प्लास्टिक हमारे व्यवहार में शामिल हो गया है। 
  • कभी चमत्कार के तौर पर ईजाद किये गए प्लास्टिक को हमने पहना है...ओढ़ा है...खेला है...जीवन का शायद ही कोई क्षेत्र बचा होगा जिसमें प्लास्टिक का हस्तक्षेप न रहा हो। 
  • पहले हमने प्लास्टिक से अपनी ज़रूरतें पूरी कीं, फिर इसके लिये नई ज़रूरतें पैदा कीं। यही कारण है कि प्लास्टिक आज हमारी ज़िंदगी के हर पहलू में शामिल हैं। न दिखाई देते हुए भी हमारी ज़िंदगी में शामिल हो चुका है, जैसे-रगों में दौड़ता लहू।
  • दक्षिण-पूर्व एशिया में प्लास्टिक का कचरा बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है।

प्लास्टिक की मुलायम थैलियाँ और तमाम चीज़ों की पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक आज पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचा रहा है तथा इसके साथ कदमताल कर रही हैं रोज़ करोड़ों की संख्या में इस्तेमाल होने वाली पानी और कोल्ड ड्रिंक्स की प्लास्टिक की बोतलें। तमाम प्रतिबंधों के बावजूद इनका इस्तेमाल बढ़ता ही जा रहा है। 

  • भारत सहित कई देशों के लिये प्लास्टिक बहुत बड़ी चुनौती बनता जा रहा है, लेकिन इसे रोकने का कोई ज़रिया नहीं है।
  • विश्व में चीन में सबसे ज़्यादा प्लास्टिक का उत्पादन होता है, लेकिन इसे रोकने का दबाव कोई देश चीन पर नहीं डाल सकता।

जीवन और पर्यावरण के लिये गंभीर खतरा 
हमारे आस-पास इसका दैनिक इस्तेमाल से यह हमारे खान-पान में भी दाखिल हो गया है। वैज्ञानिक कब से कह रहे हैं कि हालात ऐसे ही बने रहे तो प्लास्टिक हमारे जीवन के लिये खतरा बन जाएगा। अपने आस-पास नज़रें दौड़ाने पर पता चलता है कि प्लास्टिक हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। लेकिन प्लास्टिक ने हमारा जीवन जितना आसान किया है, उतना ही इसकी वजह से हम कठिनाई में हैं...विशेषकर ऐसा प्लास्टिक जो केवल एक बार इस्तेमाल करके फेंक दिया जाता है, जैसे थैलियाँ, पैकेजिंग और पानी की बोतल आदि। यदि हमने हालात पर काबू नहीं पाया तो प्लास्टिक शायद किसी रोज़ हमारे अंत की वज़ह भी बन सकता है।

प्लास्टिक प्रदूषण से जुड़े कुछ तथ्य 

  • जिस रफ्तार से हम प्लास्टिक इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे 2020 तक दुनियाभर में 12 अरब टन प्लास्टिक कचरा जमा हो चुका होगा और इसे साफ करने में सैकड़ों साल लग जाएंगे। 
  • प्रत्येक वर्ष दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक कैरी बैगों का उपयोग किया जाता है।
  • हर वर्ष कम-से-कम 8 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में पहुँचता है, जो प्रति मिनट एक कूड़े से भरे ट्रक के बराबर है।
  • पिछले एक दशक के दौरान उत्पादित प्लास्टिक की मात्रा पिछली एक शताब्दी के दौरान उत्पादित प्लास्टिक की मात्रा से अधिक थी।
  • हमारे द्वारा प्रयोग किये जाने वाले प्लास्टिक में से 50% प्लास्टिक का केवल एक बार उपयोग होता है।
  • प्रत्येक मिनट 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं।
  • हमारे द्वारा उत्पन्न किये गए कुल कचरे में 10% योगदान प्लास्टिक का होता है।
  • हर वर्ष 80 लाख टन से भी अधिक प्लास्टिक महासागरों को प्रदूषित करता है। 

क्या किया जा सकता है?

  • देश में प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के लिये प्रयास तो किये जा रहे हैं, लेकिन सक्रिय जन-सहयोग के अभाव में इसके आशाजनक परिणाम सामने नहीं आ रहे। 
  • देश के 25 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लागू किया गया है, लेकिन यह कितना प्रभावी है, किसी से छिपा नहीं है। 
  • भारत में प्रतिदिन 25,940 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से 40% कचरा एकत्र नहीं हो पाता।

चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को अपनाया जाए 

  • चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को लागू करके इस दुविधा का हल मिल सकता है। इन सिद्धांतों में डिज़ाइन में बदलाव करके प्रदूषण को निकाल बाहर करना, पदार्थों को इस्तेमाल में बनाए रखना और पुष्टिकारक तथा पुनरुत्पादक प्रणाली में एक प्राकृतिक पूंजी का निर्माण करना आदि शामिल है। 
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था केवल प्लास्टिक और वस्त्रों जैसे पदार्थों की वैश्विक धाराओं पर ही लागू नहीं होती, बल्कि यह सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी उल्लेखनीय योगदान दे सकती है। 
  • इसके साथ नवरचना को बढ़ावा देने वाले तंत्र भी होने चाहिये, जिनके तहत प्लास्टिक पैकेजिंग के डिज़ाइन को उसके एकत्रण, छंटाई और तत्पश्चात उसके पुनःउपयोग या पुनःचक्रण से जोड़ा जा सकता है। 
  • वैसे भी प्लास्टिक के निपटान का सर्वाधिक उपयोगी तरीका इसका पुनःचक्रण (Recycle) है। पुनःचक्रण से तात्पर्य प्लास्टिक अपशिष्ट से पुनः प्लास्टिक प्राप्त करके प्लास्टिक की नई चीजें बनाना है। 

(टीम दृष्टि इनपुट)

जन-सहयोग का होना बेहद ज़रूरी 

  • देश में जारी स्वच्छता अभियान के बावजूद प्लास्टिक युक्त कचरे से गाँव, कस्बे, नगर-महानगर, अंटे पड़े हैं और जगह-जगह प्लास्टिक युक्त कूड़ा-कचरा (प्लास्टिक  बैग और बोतलें) बिखरा पड़ा रहता है। 
  • सरकार और स्थानीय निकायों की लापरवाही तो इसके लिये ज़िम्मेदार है ही, आम जनता का भी योगदान कम नहीं है इस समस्या को विकराल बनाने में। यही कारण है कि आज प्लास्टिक हमारे पीने के पानी में भी मौजूद है और भोजन में भी।

प्लास्टिक के खिलाफ लड़ाई के लिये किसी बड़े कदम की आवश्यकता नहीं है, बल्कि हमें अपने व्यवहार में पर्यावरण हितैषी छोटे-छोटे परिवर्तन लाने की ज़रूरत है। प्रत्येक व्यक्ति की पर्यावरण के प्रति सामाजिक ज़िम्मेदारी तो है ही, यह हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी भी है कि आने वाली पीढ़ियों के लिये पर्यावरण की रक्षा करें।

  • खरीदारी करते समय कपड़े या जूट के थैले साथ लेकर जाएँ
  • प्लास्टिक की थैलियों का पुनः प्रयोग करें
  • पुनः प्रयोग की जा सकने वाली प्लास्टिक क्राकरी को अपनाएँ
  • पहले से ही पैक किये गए खाद्य पदार्थों की खरीदारी कम करें

प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 
प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के तहत प्लास्टिक कचरे का पृथक्करण अपेक्षित है, जिसे प्रभावी रूप से लागू करने पर प्लास्टिक और अन्य सामग्री को पुनः प्राप्त किया जा सकेगा जिससे पर्यावरण को हो रही क्षति को भी कम किया जा सकता है। 

  • इन नियमों के तहत प्लास्टिक कैरी बैग की न्यूनतम मोटाई 40 माइक्रॉन से बढ़ाकर 50 माइक्रॉन कर दी गई है।
  • जो नियम पहले नगर निगम के क्षेत्रों तक ही लागू होते थे, उन्हें अब सभी गाँवों तक बढ़ा दिया गया है, क्योंकि प्लास्टिक ग्रामीण क्षेत्रों में भी पहुँच गया है। 
  • प्लास्टिक कैरी बैग के उत्पादकों, आयातकों एवं इन्हें बेचने वाले वेंडरों के पूर्व-पंजीकरण के माध्यम से प्लास्टिक कचरा प्रबंधन शुल्क के संग्रह की शुरुआत भी की गई है। 

उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में देश में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिये केवल यही एक नियम है कि कोई उत्पादक या दुकानदार 50 माइक्रॉन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक के कैरी बैग की बिक्री नहीं कर सकता। चूँकि यह नियम अन्य सभी प्रकार के प्लास्टिक पर लागू नहीं होता, इसलिये इसका उपयोग कम नहीं हो पा रहा है।

सड़क निर्माण में प्लास्टिक का प्रयोग
प्लास्टिक की वस्तुओं का उपयोग करने के बाद इन्हें कचरे में फेंक दिया जाता है, लेकिन अब इस प्लास्टिक कचरे से सड़कें बनाने की तकनीक पर कम चल रहा है तथा टाटानगर, जमशेदपुर, मुंबई और तमिलनाडु में प्लास्टिक कचरे का उपयोग सड़क बनाने में किया जा रहा है। 

  • इसके लिये बिटुमिन (डामर, तारकोल) के साथ प्लास्टिक कचरा मिलाया जाता है, जिसके इस्तेमाल से सड़क मजबूत बनती है और पानी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। 
  • बिटुमिन कच्चे तेल के शोधन से निकलने वाला अपशिष्ट है और भारत अपनी आवश्यकता के अधिकांश पेट्रोलियम पदार्थों का आयात करता है।
  • ऐसे में सड़क निर्माण में बड़े पैमाने पर प्लास्टिक के इस्तेमाल से बिटुमिन की खपत घटेगी, विदेशी मुद्रा की बचत होगी और प्लास्टिक के कचरे से होने वाले प्रदूषण को भी कुछ हद तक कम किया जा सकेगा।

निष्कर्ष: आधुनिक अर्थव्यवस्था का एक अनिवार्य हिसा बन चुके इस सर्वव्यापी प्लास्टिक को बनाने और इस्तेमाल करने के तरीके पर हमें जल्द-से-जल्द दोबारा सोचना होगा। दुनियाभर में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण की समस्या चिंताजनक स्तर तक पहुँच चुकी है और इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि ही हो रही है। वर्तमान में प्लास्टिक का उपयोग सर्वव्यापी हो गया है और जैसे-जैसे उपभोक्तावाद बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इसकी खपत भी बढ़ती जा रही है। 

चूँकि प्लास्टिक को नष्ट होने में काफी समय लगता है तथा इसके कारण पानी से लेकर हवा और भूमि सभी प्रदूषित हो रहे  हैं। अतः हमें प्लास्टिक के उपयोग पर तत्काल एवं बड़े पैमाने पर रोक लगाने की ज़रूरत है।  इससे निजात पाने के लिये व्यक्तिगत रूप से हमें अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह करना पड़ेगा, तभी यह पृथ्वी सुरक्षित रह सकती है। इस दिशा में और अधिक गंभीरता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। हमें एक समाज के रूप में एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की ज़रूरत है, जो प्लास्टिक के उपयोग को कम करता हो और उसे बाहरी परिवेश में जाने से रोकता हो।

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