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प्लास्टिक बैन

  • 20 Nov 2018
  • 22 min read

संदर्भ

कुछ समय पहले दक्षिणी स्पेन के समुद्री तट पर बहकर आई एक मरी हुई स्पर्म व्हेल ने कई लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। जाँच से पता चला कि उसके पेट और आँतों में जमे 64 पाउंड के प्लास्टिक कचरे ने उसकी जान ले ली थी। इस घटना ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या सही में हमारी पृथ्वी हानिकारक प्लास्टिक कचरे के सैलाब से भर गई है? ताज्जुब तो यह है कि हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में प्लास्टिक के बिना काम असंभव से दिखते हैं। दूर-दराज के आइलैंड से लेकर आर्कटिक तक ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ प्लास्टिक की मौजूदगी न हो। अगर यही ट्रेंड जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे महासागरों में मछलियों से ज़्यादा प्लास्टिक होगा। शायद 2050 तक ही यह स्थिति देखने को मिल जाए। आज का हमारा यह आर्टिकल प्लास्टिक कचरे से पैदा हुए इस गंभीर मुद्दे के अलग-अलग पहलुओं को छूने की कोशिश करेगा।

आइये अब प्लास्टिक और उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर गौर करते हैं-

  • सबसे पहले हम जानेंगे कि प्लास्टिक आखिर है क्या और यह बनता किससे है? साथ ही हम यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर प्लास्टिक का वह कौन सा गुण है जो पर्यावरण के लिये खतरा बनता जा रहा है और क्या कारण है कि हम इसे रिप्लेस नहीं कर पा रहे हैं?
  • जैसा कि हम जानते हैं सिंथेटिक फाइबर की तरह प्लास्टिक भी एक पॉलीमर है। जब रासायनिक पदार्थों के छोटे-छोटे यूनिट मिलकर एक बड़ा यूनिट बनाते हैं तो उसे पॉलीमर कहते हैं। ये पॉलीमर प्राकृतिक भी होते हैं, जैसे- कॉटन, सिल्क आदि और ये कृत्रिम भी होते हैं, जैसे- सिंथेटिक फाइबर यानी नायलॉन,पॉलिस्टर,रेयॉन,एक्रेलिक आदि।
  • जहाँ थर्मोप्लास्टिक गर्म होने पर आसानी से अपना आकार बदल लेते हैं वहीं, थर्मोसेटिंग प्लास्टिक गर्म होने के बाद भी अपना आकार नहीं बदलते। पॉलीथिन और PVC थर्मोप्लास्टिक के उदाहरण हैं जिनका प्रयोग खिलौनों एवं विभिन्न प्रकार के कंटेनरों में किया जाता है। बेकेलाइट और मेलामाइन थर्मोसेटिंग प्लास्टिक के उदाहरण हैं जिनका प्रयोग बिजली के सामानों में किया जाता है।
  • चूँकि प्लास्टिक का गुण है कि वह जल और हवा के साथ प्रतिक्रिया नहीं करता और साथ ही भार में हल्का, मज़बूत, टिकाऊ और मेटल की अपेक्षा सस्ता भी होता है। इन्हीं कारणों से इसका इंडस्ट्री और घरेलू सामानों में काफी प्रयोग होता है। हेल्थ केयर इंडस्ट्री में टैबलेट पैकेजिंग से लेकर किचन के सामानों जैसे- नॉन-स्टिक कुकवेयर बनाने वाले टेफ्लॉन तक में भी प्लास्टिक का प्रयोग होता है।
  • भले ही प्लास्टिक के कई अहम उपयोग हैं लेकिन one time use वाले प्लास्टिक पर हमारी निर्भरता बढ़ती ही जा रही है। जिसके कारण पर्यावरण संबंधित गंभीर परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। अंतिम रुप से, पॉलीथिन बैग्स एवं अन्य रुपों में कचरे के ढेर में इक्ट्ठा होता जा रहा है। इस प्लास्टिक का डिस्पोजल आज के समय में एक बड़ी समस्या बन गई है। जिस प्लास्टिक को इंसानों ने अपनी सुविधा के लिये बनाया था, आज वही मानव जाति के लिये भष्मासुर बन चुका है।
  • प्लास्टिक का वह गुण जो पर्यावरण के लिये खतरा पैदा कर रहा है, वह है इसका नॉन-बायोडिग्रेडेबल होना। आपको बता दें कि जो पदार्थ बैक्टीरिया आदि की क्रियाओं से अपघटित होते हैं वे बायोडिग्रेडेबल कहलाते हैं।
  • वहीं दूसरी तरफ, इन क्रियाओं से अपघटित नहीं होने वाले पदार्थ नॉन- बायोडिग्रेडेबल कहलाते हैं जैसे कि प्लास्टिक। चूँकि प्लास्टिक अपघटित होने में कई साल का समय लेता है, इसलिये इसे इको-फ्रेंडली नहीं माना जाता। यह पर्यावरण में मिलकर उसे प्रदूषित करता है।
  • इसके अलावा, इन सिंथेटिक पदार्थों के जलने की प्रक्रिया काफी धीमी होती है और ये आसानी से पूरी तरह जलते भी नहीं हैं। साथ ही जलाने की प्रक्रिया में यह वातावरण में काफी विषैले धुएँ भी छोड़ते हैं जो वायु प्रदूषण का कारण बनता है। प्लास्टिक प्रदूषण से प्रकृति, वन्यजीव और यहाँ तक कि हमारे स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्लास्टिक प्रदूषण किस प्रकार हमारे पारितंत्र और मानव स्वास्थ्य पर असर डालता है?

  • डिस्पोज़ के लिये डाला हुआ प्लास्टिक का एक छोटा टुकड़ा भी हमारी धरती को नुकसान पहुँचा रहा है, फिर चाहे वह महासागरों में मौजूद हो या हमारे food chain में। कचरे में फेंका हुआ प्लास्टिक हमारे प्राकृतिक स्थलीय, स्वच्छ जल और समुद्री आवासों को प्रदूषित करता है।
  • म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट के रूप में यह ‘प्लास्टिक’ झरनों और नदियों में जाकर मिल जाता है, जहाँ से यह वर्षा जल और बाढ़ के पानी द्वारा समुद्रों में पहुँच जाता है। दरअसल, प्लास्टिक के ये कचरे ध्रुवों से लेकर इक्वेटर तक और तट रेखा से लेकर गहरे समुद्र तक को प्रदूषित कर रहे हैं। हालाँकि समुद्र के नितल या सी-बेड पर थोड़ी मात्रा में ही प्लास्टिक कचरे पाए जाते हैं लेकिन चिंता की बात यह है कि गहरे समुद्र में सूर्य का प्रकाश न पहुँचने और कम तापमान होने के कारण इनका डिग्रेडेशन रेट बहुत कम है।
  • वहीं, हल्के प्लास्टिक अपने उत्प्लावी नेचर के कारण समुद्र की सतहों पर बने रहते हैं और समुद्री धाराओं की मदद से समुद्र में प्लास्टिक के गेयर बनाते हैं। गौरतलब है कि हवाई एवं कैलिफोर्निया के बीच पाए जाने वाले गेयर Great Pacific Garbage Patch में  महासागरीय प्लास्टिक का सबसे बड़ा जमाव पाया जाता है। एक बार गेयर के अंदर प्लास्टिकों के आ जाने के बाद ये तब तक उस गेयर से बाहर नहीं निकल पाते जब तक कि सूर्य की किरणें इन प्लास्टिकों को माइक्रोप्लास्टिक में न बदल दें।
  • आपको बता दें कि माइक्रोप्लास्टिक प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं जिनकी लंबाई 5 मिलीमीटर से ज़्यादा नहीं होती। आजकल ये माइक्रोप्लास्टिक वैज्ञानिकों के लिये चिंता का विषय बनते जा रहे हैं। अमूनन देखा गया है कि समुद्रों में फेंके गए फिसिंग नेट और तैरते हुए प्लास्टिक के ये कचरे समुद्री जीवों का बसेरा बनने लगते हैं। चूँकि कुछ समय के लिये प्लास्टिक के ये कचरे समुद्री सतह पर मौजूद रहते हैं इसलिये ये विदेशी जातियों को एक जगह से दूसरी जगह ढोने का काम भी करने लगते हैं।
  • आपको बता दें कि किसी भी पारितंत्र की देशज जातियों के लिये विदेशी जातियाँ लाभदायक नहीं होतीं। इसके अलावा कभी-कभी इनके घेरों में आकर समुद्री जीव फँस जाते हैं। समाचारों में अक्सर सील, कछुआ वगैरह को प्लास्टिक के इन कचरों में फँसे हुए दिखाया जाता है। समुद्री प्लास्टिक कचरे का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि कछुआ, मछली, सी-बर्डस, मैमल्स और अकशेरुकी जीवों द्वारा प्लास्टिक के इन कचरों को जेली फिश या भोजन समझ कर खा लिया जाना । ये प्लास्टिक उनके शरीर में जाकर जैव-संचयन या bio-accumulation का कारण बनते हैं।
  • जैव-संचयन के तहत,  non-biodegradable प्रदूषक किसी पारितंत्र की खाद्य श्रृंखला में, विभिन्न पोषण स्तरों से गुजरते हैं। चूँकि इन प्रदूषकों का जीवों के भीतर उपापचय नहीं हो पाता, इसलिये जीव में उनका सांद्रण बढ़ता जाता है। इन प्लास्टिकों से रिसने वाले खतरनाक केमिकलों के कारण या फिर रेस्पिरेटरी सिस्टम में प्लास्टिकों के चोक होने से इन जीवों की मृत्यु तक हो जाती है। समुद्री प्लास्टिक के ये कचरे जीवों के मूवमेंट और पोषण में भी बाधा पहुँचाते हैं जिससे इनकी जनन क्षमता में कमी आ जाती है।
  • यहाँ पर एक और बात गौर करने लायक है कि प्लास्टिक प्रदूषण न सिर्फ समुद्र बल्कि ताज़े जल निकायों, भूमि, जानवरों और मनुष्यों को भी बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है। मिट्टी में मिलकर प्लास्टिक खनिज, जल और पोषक तत्त्वों के अवशोषण में बाधा पहुँचाता है और इसकी उर्वरता को कम करता है । जब इसे लैंडफिल वाली जगह पर डिस्पोज किया जाता है तो इसका अपघटन तेज़ गति से नहीं हो पाता, जिससे उस क्षेत्र की जमीन और मिट्टी प्रदूषित हो जाती है।
  • लैंडफिल में डाले गए प्लास्टिक, जल के साथ रिएक्शन कर खतरनाक केमिकल्स बनाते हैं और अगर ये केमिकल्स रिस कर ground water aquifers तक पहुँच जाएँ तो ये जल की गुणवत्ता को खराब कर देते हैं। यही ग्राउंड वाटर पॉल्यूशन का कारण बनता है। प्लास्टिक में पाए जाने वाले टॉक्सिक केमिकल्स जैसे Styrene Trimer, Bisphenol-A और Polystyrene  में पाया जाने वाला बेंजीन हमारे पीने योग्य पानी की क्वालिटी को खराब कर रहे हैं।
  • प्लास्टिक में मौजूद Phthalates और Bisphenol-A मानव में कैंसर उत्पन्न करते हैं। साथ ही प्लास्टिक में एंडोक्राइन संबंधी समस्या पैदा करने वाले रसायन भी मौजूद होते हैं जो मोटापा या डायबिटीज का कारण बनते हैं। प्लास्टिक को जलाने से कार्बन मोनोऑक्साइड, डाइऑक्सीन, हाइड्रोजन साइनाइड जैसी ज़हरीली गैसें वायुमंडल में पहुँचती हैं। ये हमारे तंत्रिका तंत्र और इम्यून क्षमता पर खराब प्रभाव डालती हैं।
  • चूँकि प्लास्टिक भार में हल्के होते हैं इसलिये ये हवा द्वारा लैंडफिल और कूड़ेघरों से निकलकर दूसरे जगहों पर भी पहुँच जाते हैं। वहाँ पर प्लास्टिक के ये कचरे water ways को रोकने, कृषि भूमि को नष्ट करने और मच्छर जैसे कीटों के लिये breeding ground उपलब्ध कराने का काम करते हैं। जाहिर है कि एक सही disposal system की कमी के कारण, रास्ते में इधर-उधर घूमने वाले जानवर इन प्लास्टिक्स को निगल जाते हैं जो कि उनके मौत का कारण बनता है।।

प्लास्टिक से उत्पन्न हुई इस समस्या के समाधान के लिये राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या प्रयास किये जा रहे हैं ?

  • जहाँ तक प्लास्टिक प्रदूषण की बात है, तो वह अब बड़ा रूप धारण कर चुका है। यह इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि हरेक वर्ष हम जितना प्लास्टिक फेंक देते हैं उससे धरती को 4 बार घेरा जा सकता है।
  • स्थिति की इस गंभीरता को समझते हुए हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने भी रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में लोगों से प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने की अपील की थी। प्रधानमंत्री मोदी को पर्यावरण के लिये किये गए विभिन्न हेतु 73वें यूएन जनरल असेंबली ने चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवार्ड भी दिया। इन कार्यों में 2022 तक भारत से ऑल-सिंगल यूज प्लास्टिक को हटाने की प्रतिज्ञा भी शामिल है।

सरकार इसके लिये और कौन से प्रयास कर रही है?

  1. भारत का Plastic Waste Management Rules 2016, 50 माइक्रोन की मोटाई से कम वाले प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाता है और 2 सालों के अंदर non-recyclable एवं multi-layered plastic के निर्माण और बिक्री को चरणबद्ध तरीके से हटाने का निर्देश देता है।
  2. पर्यावरण मंत्रालय ने हाल ही में Plastic Waste Management (amendment) rules 2018 अधिसूचित किया है, जिसके अनुसार वैसे multi-layered plastic, जिनकी रिसाइक्लिंग नहीं हो सकती, उन्हें चरणबद्ध तरीके से बाहर करना शामिल है।
  3. इस संशोधन में उत्पादक और निर्यातकों के लिये एक सेंट्रल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बनाने का भी निर्देश दिया गया है।
  4. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और Solid Waste Management Rules, 2016 के अनुसार, सूखे कचरे यानी प्लास्टिक, पेपर, मेटल, ग्लास और गीले यानी किचन और बगीचे के कचरे को, उनके स्रोत पर ही अलग करना होगा।
  5. लगभग 20 से अधिक भारतीय राज्यों ने, प्लास्टिक के किसी न किसी form को प्रतिबंधित किया हुआ है। जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, उत्तर-प्रदेश, महाराष्ट्र, सिक्किम, त्रिपुरा, नगालैंड आदि ऐसे ही कुछ राज्य हैं।
  6. समुद्री प्लास्टिक के बॉर्डरलेस नेचर को देखते हुए विश्व स्तर पर वैज्ञानिक और कार्यकर्त्ता इसके लिये एक वैश्विक हल की बात कर रहे हैं।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके लिये क्या प्रयास किये जा रहे हैं ? 

  1. हाल ही में नैरोबी में यूनाइटेड नेशन्स एन्वायरनमेंट असेम्बली में 200 से ज़्यादा देशों ने समुद्रों से प्लास्टिक प्रदूषण को हटाने के लिये एक संकल्प पारित किया। हालाँकि यह कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि नहीं है लेकिन आगे का रास्ता तय करने में मददगार साबित होगी।
  2. यह संकल्प, UNEP घोषणा का ही एक भाग है जो कचरे में कमी लाने, प्रदूषण के खिलाफ कड़े नियम बनाने और धारणीय जीवन-शैली के लिये fiscal incentives देने की बात करता है।
  3. UN Sustainable Development Goals में भी सभी प्रकार के समुद्री प्रदूषणों में कमी लाने और उसे रोकने की बात कही गई है। एक और रोचक बात यह कि इस बार के विश्व पर्यावरण दिवस, 2018 की थीम, Beat Plastic Pollution रखी गयी थी, जिसकी मेज़बानी भारत ने ही की थी। इसका उद्देश्य non-biodegradable waste के डिस्पोजल से पैदा हुई स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों और पर्यावरण के संबंध में जागरूकता पैदा करना था।
  • इसके अलावा विश्व भर के समुद्रों से प्लास्टिक को हटाने के लिये गैर-लाभकारी संगठन The Ocean  Cleanup आधुनिक तरीकों का विकास कर रहा है। इसने समुद्री धाराओं की मदद से 5 सालों में Great Pacific Garbage Patch के आधे भाग को साफ करने की योजना बनाई गई है।
  • इसके साथ-साथ कुछ समय पहले चिली, ओमान, श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका ने भी clean seas campaign नामक एक अभियान को ज्वाइन किया।
  • अब देखने वाली बात यह है कि चर्चा में रहे ये सारे कदम प्लास्टिक से होने वाली हानि को रोकने में कितना असरदार हो सकते हैं|

आगे की राह

  • गौरतलब है कि डिस्पोजेबल प्रोडक्ट्स एवं पैकेजिंग वाले प्लास्टिक के उपयोग में हुई बढ़ोतरी ने प्लास्टिक कचरे के ढेर में वृद्धि की है। इसलिये Single use या disposable plastic के उपयोग में कमी लाते हुए इसका प्रयोग बिल्कुल बंद करना होगा।
  • साथ ही जरुरी है कि biodegradable plastics का प्रयोग अधिक-से-अधिक हो। कचरे का इकट्ठा होना मानव व्यवहार से संबंधित मुद्दा है जिसे बदलने के लिये शिक्षा की ज़रूरत पड़ेगी। इससे कचरे को उसके source पर ही पैदा करने से रोका जा सकेगा। प्राकृतिक वातावरण में डाले जाने वाले प्लास्टिक कचरे में तत्काल कमी लाने के लिये ज़रूरी है कि कचरे का बेहतर तरीके से निपटान और उसका प्रबंधन किया जाए।
  • कचरे के प्रबंधन के नज़रिये से 3R वाले सिद्धांत यानी Reduce, Reuse और Recycle  को अमल में लाने की ज़रूरत है। अब तो इस 3R के बदले 5R सिद्धांत को लाने की ज़रूरत महसूस की जा रही है, जहाँ 4R, Energy Recovery और 5R, Molecular redesign के लिये जाना जाता है।
  • रिसाइक्लिंग प्रक्रिया में निजी क्षेत्रों की भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर भी इस दिशा में काम करने की ज़रूरत है। प्लास्टिक के निर्माण से लेकर कचरे के प्रबंधन तक के विभिन्न चरणों में प्रभावी नीतियों को अपनाना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि समुद्रों में सबसे ज़्यादा प्लास्टिक उन देशों से आता है जहाँ वेस्ट मैनेजमेंट पॉलिसी मज़बूत और प्रभावी नहीं है।
  • प्लास्टिक के कचरे का उपयोग निर्माणकारी कामों जैसे- सड़क निर्माण वगैरह में भी किया जा सकता है लेकिन इसके लिये ज़रूरी है कि कचरे को उसके स्रोत स्थल पर ही अलग-अलग कर दिया जाए। क्योंकि कार्बनिक पदार्थों के साथ मिलकर इसके पुनर्चक्रण की क्षमता में कमी आ जाती है।
  • इसके साथ ही सभी देशों को चाहिये कि वह जीवाश्म ईंधन के लिये दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म करें क्योंकि रॉ-प्लास्टिक यानी प्लास्टिक के एक प्रकार के कच्चे रूप को तैयार करने में पेट्रोलियम का प्रयोग किया जाता है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण में कमी लाने के लिये सभी देशों को एक साथ आना होगा क्योंकि प्रदूषण, एरोसॉल, नदी का प्रवाह, वन्यजीव और रोग के वाहक आदि किसी राष्ट्रीय सीमा में बंधे नहीं होते। इसके अलावा सभी देशों को मिलकर एक अंतर्राष्ट्रीय संधि को अमलीजामा पहनाने की दिशा में काम करना होगा|
  • साथ ही प्लास्टिक प्रदूषण को दूर करने के लिये सिंगल यूज़ वाले प्लास्टिक बैग पर रोक लगाना और प्लास्टिक के उत्पादन एवं वितरण पर नियंत्रण करना भी आज की ज़रूरत है। हमारी अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण भाग बन चुके इस सर्वव्यापी पदार्थ को बनाने और इस्तेमाल करने के तरीके पर जल्द ही दुबारा सोचने की ज़रूरत है। क्योंकि ‘लेना-बनाना-फेंकना’ वाली अर्थव्यवस्था को फिर से डिज़ाइन करके उसे चक्रीय बनाना ही एकमात्र दीर्घकालिक समाधान हो सकता है।
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