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भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक

  • 05 Jul 2019
  • 18 min read

 Last Updated: July 2022 

"भारत का नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG-कैग) संभवतः भारत के संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारी है। वह ऐसा व्यक्ति है जो यह देखता है कि संसद द्वारा अनुमन्य खर्चों की सीमा से अधिक धन खर्च न होने पाए या संसद द्वारा विनियोग अधिनियम में निर्धारित मदों पर ही धन खर्च किया जाए।”

-डॉ. भीम राव अम्बेडकर

  • भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (Comptroller & Auditor General of India-CAG) भारत के संविधान के तहत एक स्वतंत्र प्राधिकरण है।
  • यह भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग (Indian Audit & Accounts Department) का प्रमुख और सार्वजनिक क्षेत्र का प्रमुख संरक्षक है।
  • इस संस्था के माध्यम से संसद और राज्य विधानसभाओं के लिये सरकार और अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों (सार्वजनिक धन खर्च करने वाले) की जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है और यह जानकारी जनसाधारण को दी जाती है।

पृष्ठभूमि

  • महालेखाकार का कार्यालय वर्ष 1858 में स्थापित किया गया था, ठीक उसी वर्ष जब अंग्रेज़ों ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का प्रशासनिक नियंत्रण अपने हाथों में लिया था।
  • वर्ष 1860 में सर एडवर्ड ड्रमंड को पहले ऑडिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया। इसके कुछ समय बाद भारत के महालेखापरीक्षक को भारत सरकार का लेखा परीक्षक और महालेखाकार कहा जाने लगा।
  • वर्ष 1866 में इस पद का नाम बदलकर नियंत्रक महालेखा परीक्षक कर दिया गया और वर्ष 1884 में इसे भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक के रूप में फिर से नामित किया गया।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत महालेखापरीक्षक को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया क्योंकि इस पद को वैधानिक दर्जा दिया गया था।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने संघीय ढाँचे में प्रांतीय लेखा परीक्षकों के लिये प्रावधान करके महालेखापरीक्षक के पद को और शक्ति दी।
  • इस अधिनियम में नियुक्ति और सेवा प्रक्रियाओं का भी उल्लेख था और भारत के महालेखापरीक्षक के कर्त्तव्यों का संक्षिप्त विवरण भी।
  • वर्ष 1936 के लेखा और लेखा परीक्षा आदेश ने महालेखापरीक्षक के उत्तरदायित्वों और लेखा परीक्षा कार्यों का प्रावधान किया।
  • यह व्यवस्था वर्ष 1947 तक अपरिवर्तित रही। स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक नियंत्रक और महालेखापरीक्षक नियुक्त किये जाने का प्रावधान किया गया।
  • वर्ष 1958 में CAG के क्षेत्राधिकार में जम्मू और कश्मीर को शामिल किया गया।
  • वर्ष 1971 में केंद्र सरकार ने नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (कर्त्तव्य, शक्तियाँ और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 लागू किया।
  • अधिनियम ने CAG को केंद्र और राज्य सरकारों के लिये लेखांकन और लेखा परीक्षा दोनों की ज़िम्मेदारी दी।
  • वर्ष 1976 में CAG को लेखांकन के कार्यों से मुक्त कर दिया गया।

ब्रिटेन के CAG से तुलना

  • भारत का CAG केवल महालेखापरीक्षक की भूमिका निभाता है, नियंत्रक महालेखाकार की नहीं, जबकि ब्रिटेन में महालेखापरीक्षक के साथ-साथ इसमें नियंत्रक महालेखाकार की शक्ति भी निहित होती है।
  • भारत में CAG पैसा खर्च होने के बाद खातों का लेखा-जोखा करता है यानी पोस्ट-फैक्टो, जबकि UK में CAG की मंज़ूरी के बिना सरकारी खजाने से कोई पैसा निकाला ही नहीं जा सकता है।
  • भारत में CAG संसद का सदस्य नहीं होता, जबकि ब्रिटेन में कैग हाउस ऑफ कॉमंस का सदस्य होता है।

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 148 CAG की नियुक्ति, शपथ और सेवा की शर्तों से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 149 भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के कर्त्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 150 कहता है कि संघ और राज्यों को खातों का विवरण राष्ट्रपति के अनुसार (CAG की सलाह पर) रखना होगा।
  • अनुच्छेद 151 कहता है कि संघ के खातों से संबंधित CAG की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी जाएगी, जो संसद के प्रत्येक सदन के पटल पर रखी जाएगी।
    • किसी राज्य के लेखाओं के संबंध में भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट राज्य के राज्यपाल को प्रस्तुत की जाएगी, जो उन्हें राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखेगा।
  • अनुच्छेद 279- ‘शुद्ध आय’ की गणना CAG द्वारा प्रमाणित की जाती है, जिसका प्रमाणपत्र अंतिम माना जाता है।
  • तीसरी अनुसूची- भारत के संविधान की तीसरी अनुसूची की धारा IV भारत के CAG और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा पदभार ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का प्रावधान करती है।
  • छठी अनुसूची- इस अनुसूची के अनुसार, ज़िला परिषद या क्षेत्रीय परिषद के खातों को राष्ट्रपति की अनुमति के साथ CAG द्वारा अनुमोदित प्रारूप के अनुसार रखा जाना चाहिये।
  • इन निकायों के खाते का लेखा-जोखा इस तरह से करना होगा जिस प्रकार CAG उचित समझता है और ऐसे खातों से संबंधित रिपोर्ट राज्यपाल को प्रस्तुत की जाएगी, जो विधानमंडल के समक्ष रखी जाती है।

कैग की स्वायत्तता

  • CAG की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिये संविधान में कई प्रावधान किये गए हैं।
  • CAG राष्ट्रपति की सील और वारंट द्वारा नियुक्त किया जाता है और इसका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है। ( दोनों में से जो भी पहले हो)
  • CAG को राष्ट्रपति द्वारा केवल संविधान में दर्ज प्रक्रिया के अनुसार हटाया जा सकता है जो कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के तरीके के समान है।
  • एक बार CAG के पद से सेवानिवृत्त होने/इस्तीफा देने के बाद वह भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन किसी भी कार्यालय का पदभार नहीं ले सकता।
  • CAG भारत में सरकार की लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक कड़ी है। अन्य कड़ियों में सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग और संघ लोक सेवा आयोग शामिल हैं।
    • कोई भी मंत्री संसद में CAG का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।
  • CAG का वेतन और अन्य सेवा शर्तें नियुक्ति के बाद भिन्न (कम) नहीं की जा सकतीं।
  • उसकी प्रशासनिक शक्तियाँ और भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग में सेवारत अधिकारियों की सेवा शर्तें राष्ट्रपति द्वारा उससे परामर्श के बाद ही निर्धारित की जाती हैं।
  • CAG के कार्यालय का प्रशासनिक व्यय, जिसमें सभी वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं जिन पर संसद में मतदान नहीं हो सकता।

CAG के कार्य और शक्तियाँ

  • CAG को विभिन्न स्रोतों से ऑडिट करने के अधिकार प्राप्त हैं, जैसे-
    • संविधान का अनुच्छेद 148 से 151
    • नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (कर्त्तव्य, शक्तियाँ और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971
    • महत्त्वपूर्ण निर्णय
    • भारत सरकार के निर्देश
    • लेखा और लेखा-परीक्षा विनियम, 2017
  • CAG भारत की संचित निधि और प्रत्येक राज्य, केंद्रशासित प्रदेश जिसकी विधानसभा होती है, की संचित निधि से संबंधित खातों के सभी प्रकार के खर्चों का परीक्षण करता है।
  • भारत की आकस्मिक निधि और भारत के सार्वजनिक खाते के साथ-साथ प्रत्येक राज्य की आकस्मिक निधि और सार्वजनिक खाते से होने वाले सभी खर्चों का परीक्षण करता है।
  • केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के किसी भी विभाग के सभी ट्रेडिंग, विनिर्माण, लाभ- हानि खातों, बैलेंस शीट और अन्य अतिरिक्त खातों का ऑडिट करता है।
  • संबंधित कानूनों द्वारा आवश्यक होने पर वह केंद्र या राज्यों के राजस्व से वित्तपोषित होने वाले सभी निकायों, प्राधिकरणों, सरकारी कंपनियों, निगमों और निकायों की आय-व्यय का परीक्षण करता है।
  • राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा अनुशंसित किये जाने पर किसी अन्य प्राधिकरण के खातों का ऑडिट करता है, जैसे- कोई स्थानीय निकाय।
  • केंद्र और राज्यों के खाते जिस प्रारूप में रखे जाएंगे, उसके संबंध में राष्ट्रपति को सलाह देता है।
  • केंद्र के खातों से संबंधित अपनी ऑडिट रिपोर्ट को राष्ट्रपति को सौंपता है, जो संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखी जाती है।
  • किसी राज्य के खातों से संबंधित अपनी ऑडिट रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपता है, जो राज्य विधानमंडल के समक्ष रखी जाती है।
  • संसद की लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) के मार्गदर्शक, मित्र और सलाहकार के रूप में भी कार्य करता है।

CAG और लोक लेखा समिति

(Public Accounts Committee- PAC)

  • लोक लेखा समिति भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत गठित एक स्थायी संसदीय समिति है।
  • CAG की ऑडिट रिपोर्ट केंद्र और राज्य में लोक लेखा समिति को सौंपी जाती है।
  • विनियोग खातों, वित्त खातों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर ऑडिट रिपोर्ट की जाँच लोक लेखा समिति द्वारा की जाती है।
  • केंद्रीय स्तर पर इन रिपोर्टों को CAG द्वारा राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है, जो संसद में दोनों सदनों के पटल पर रखी जाती हैं।
  • CAG सबसे ज़रूरी मामलों की एक सूची तैयार करके लोक लेखा समिति को सौंपता है।
  • CAG कभी-कभी राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों के विचारों की व्याख्या और अनुवाद भी करता है।
  • CAG यह देखता है कि उसके द्वारा प्रस्तावित सुधारात्मक कार्रवाई की गई है या नहीं। यदि नहीं तो वह मामले को लोक लेखा समिति के पास भेज देता है जो मामले पर आवश्यक कार्रवाई करती है।

चुनौतियाँ तथा अवसर

  • वर्तमान समय में सरकारी ऑडिट करना जटिल होता जा रहा है क्योंकि भ्रष्टाचार और प्रशासन में खामियों का पता लगाना आसान नहीं है।
  • केंद्र और राज्य सरकारों पर कड़ी नजर रखने के साथ ही CAG अब कई सार्वजनिक-निजी सहभागी परियोजनाओं (PPP) का ऑडिट भी करता है।
  • CAG की नियुक्ति के लिये कोई मानदंड या प्रक्रिया संविधान या कानून में निर्धारित नहीं की गई है।
  • कार्यपालिका को यह शक्ति दी गई है कि वह अपनी पसंद के व्यक्ति को CAG के रूप में नियुक्त कर सके। यह विश्व में प्रचलित तरीकों के साथ मेल नहीं खाता।
  • CAG को किसी भी सरकारी कार्यालय का निरीक्षण करने और किसी भी खाते को मांगने का अधिकार है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा नहीं हो पाता।
  • इसके अलावा ऑडिट में बाधा डालने के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ों की आपूर्ति ऑडिट प्रक्रिया के अंत में की जाती है।
  • RTI अधिनियम 2005 के तहत नागरिकों के एक महीने के भीतर जानकारी प्राप्त करने के अधिकार की तरह ऑडिटरों को भी सात दिनों के भीतर प्राथमिकता के आधार पर रिकॉर्ड उपलब्ध किये जाने चाहिये। ऐसा नहीं हो पाने की स्थिति में संबंधित विभागों के प्रमुखों को इसकी वज़हों को स्पष्ट करना चाहिये।
  • वर्ष 2015 में संसद और राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के विधानमंडलों ने लोक लेखा समिति के अखिल भारतीय सम्मेलन में CAG की पूर्ण स्वायत्तता और लोक लेखा समिति का सदस्य बनाए जाने पर चर्चा की, जैसा कि UK और ऑस्ट्रेलिया में होता है।
  • हालाँकि भारतीय संविधान CAG को छह साल का कार्यकाल प्रदान करता है, लेकिन 65 साल उम्र की शर्त इसके वास्तविक कार्यकाल की अवधि को कम कर सकती है। कार्यकाल कम होने से नेतृत्व, निरंतरता और विशेषज्ञता की कमी के कारण संस्था के स्वतंत्र और उचित कामकाज में बाधा उत्पन्न होती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर UK के CAG और अमेरिका के नियंत्रक महाप्रबंधक का कार्यकाल क्रमशः 10 और 15 वर्ष होता है।
  • संघ और राज्यों के खातों के ऑडिट का काम वास्तव में Indian Audit and Accounts Department (IA&AD) के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा किया जाता है। हालाँकि भारत में IA&AD के कार्य को वैधानिक मान्यता नहीं दी गई है, जैसा कि UK के राष्ट्रीय लेखा परीक्षा कार्यालय (National Audit Office) में होता है।
  • IT एक्ट की तर्ज पर IA&AD को सांविधिक निकाय के रूप में मान्यता देने और शक्तियाँ प्रदान करने से ऑडिट की गुणवत्ता में सुधार होगा तथा IA&AD के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा किये गए कार्यों की विश्वसनीयता बढ़ेगी।

पूर्व CAG विनोद राय द्वारा सुझाए गए सुधार

  • CAG के दायरे में सभी निजी-सार्वजनिक सहभागी (PPP), पंचायती राज संस्थान और सरकार द्वारा वित्तपोषित संस्थानों को लाना चाहिये।
  • 1971 के CAG एक्ट में संशोधन किया जाना चाहिये ताकि शासन में बदलाव से ताल-मेल हो सके।
  • नया CAG चुनने के लिये मुख्य सतर्कता आयुक्त (CVC) के चयन की तरह एक कॉलेजियम जैसा तंत्र होना चाहिये।

तौर-तरीकों में बदलाव की ज़रूरत

  • हालिया समय में कुछ ऑडिट के दौरान नुकसान के बढ़े हुए अनुमानों या बाहरी आँकड़ों के कारण CAG की आलोचना हुई है। इस तरह के आरोपों से बचने के लिये CAG को कठोर मानकों का पालन करना चाहिये ताकि ऑडिट की अखंडता बाहरी विचारों से प्रभावित न हो।
  • सरकारी धन और सार्वजनिक वस्तुओं का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है। इसे रोकने के लिये CAG को अपने ऑडिट तंत्र में बदलाव करने चाहिये।
  • CAG को सतत विकास लक्ष्यों का ऑडिट करने और GST के कार्यान्वयन जैसे मुद्दों की जाँच के लिये तैयार किया जाना चाहिये।
  • बिग डेटा क्रांति के मद्देनज़र CAG ने वर्ष 2016 में बिग डेटा मैनेजमेंट पॉलिसी के साथ काम किया तथा दिल्ली में डेटा मैनेजमेंट एंड एनालिटिक्स के लिये एक केंद्र भी स्थापित किया।
  • CAG ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय का सफलतापूर्वक ऑडिट किया, जिसमें विविध जटिल कार्य शामिल थे। यह भारत के CAG की विश्वसनीयता को दर्शाता है।

भारत के वर्तमान नियंत्रक और महालेखापरीक्षक गिरीश चंद्र मुर्मू हैं।

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