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भारतीय अर्थव्यवस्था

स्टार्टअप को बढ़ावा देने हेतु नीतिगत सुधार

  • 19 Aug 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs) ने भारत के स्टार्टअप वातावरण को बढ़ावा देने हेतु कुछ नीतिगत सुधारों को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस कदम से स्टार्टअप को फंड जुटाने में मदद मिलेगी, जबकि कंपनी पर प्रमोटरों (Promoters) का नियंत्रण भी बरकरार रहेगा।

कौन होता है प्रमोटर या प्रवर्तक?

  • प्रमोटर का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह से है जो कंपनी के प्रवर्तन का कार्य करता है। सामान्यतः व्यापार/कंपनी शुरू करने वाले व्यक्ति को ही प्रमोटर कहते हैं।
  • इससे पूर्व यह नियम था कि यदि किसी स्टार्टअप को डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स (Differential Voting Rights-DVR) वाले शेयर जारी करने हों तो उसे कम-से-कम तीन साल तक वितरण योग्य लाभ कमाना ज़रूरी होता था, परंतु अब इस नियम को समाप्त कर दिया गया है।
  • इसके अलावा भारतीय कंपनियों को अब डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स वाले अधिक शेयर जारी करने की भी अनुमति दे दी गई है।
    • इस नियम के लागू होने से पूर्व एक कंपनी केवल 26 प्रतिशत DVR ही जारी कर सकती थी, परंतु अब इसे परिवर्तित कर 74 प्रतिशत कर दिया गया है।

डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स

(Differential Voting Rights-DVR):

  • किसी भी स्टार्टअप के संस्थापक या प्रमोटर कंपनी पर तब अपना नियंत्रण खो देते हैं जब वे अधिक-से-अधिक फंड जुटाने के चक्कर में ज़्यादा-से-ज़्यादा समता अंश (Equity Shares) जारी कर देते हैं। संस्थापकों की इस समस्या को DVR के माध्यम से आसानी से हल किया जा सकता है।
  • DVR शेयर एक सामान्य समता अंश की तरह ही होते हैं, लेकिन इनकी स्थिति में एक-शेयर, एक-वोट के सामान्य नियम का पालन नहीं किया जाता है।
  • यह कई नए निवेशकों के आने के बाद भी प्रमोटरों को कंपनी पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद करता है।

मंत्रालय के इस कदम का महत्त्व:

  • इससे पूर्व अधिक-से-अधिक फंड की चाह में स्टार्टअप के संस्थापक या प्रमोटर विदेशी निवेशकों को कंपनी के समता अंश जारी करते थे जिससे कारण वे कंपनी पर अपना अधिकार खो देते थे।
    • परंतु इस परिवर्तन के पश्चात् सभी संस्थापक कंपनी पर अपना नियंत्रण बनाए रखने में सक्षम होंगे।
  • उपरोक्त दो बदलावों से स्टार्टअप इकोसिस्टम (Startup Ecosystem) को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • इससे उन भारतीय कंपनियों को भी मज़बूती मिलेगी जिनका अतिक्रमण बड़े निवेशकों द्वारा उनके बाज़ार का फायदा उठाने के उद्देश्य से कर लिया गया है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2018 में वालमार्ट द्वारा फ्लिपकार्ट का अधिग्रहण।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)

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