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जैव विविधता और पर्यावरण

विशेष : प्लास्टिक पर असमंजस

  • 31 Jan 2019
  • 16 min read

संदर्भ


उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने चेन्नई में सिपेट (Central Institute of Plastic Engineering and Technology-CIPET) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल के प्रति आगाह किया है। राष्ट्रपति ने इसके लिये रीड्यूस, रीयूज्ड तथा रीसाइकिलिंग का मंत्र दिया है। उपराष्ट्रपति का कहना है कि प्लास्टिक का बढ़ता प्रयोग विकास की प्रक्रिया में बाधक है। उपराष्ट्रपति ने धरती को खुशहाल बनाए रखने के लिये प्लास्टिक के विवेकपूर्ण इस्तेमाल की नसीहत दी है। इसके साथ ही प्लास्टिक से जुड़े कचरे के बेहतर प्रबंधन पर भी ज़ोर दिया है।

प्लास्टिक का बढ़ता प्रयोग पर्यावरण के लिये गंभीर खतरा

  • पिछले 50 सालों में प्लास्टिक का प्रयोग दोगुना हुआ है, जो अगले 20 साल में फिर से दोगुना हो सकता है। सबसे अधिक प्लास्टिक उपयोग करने वाले विश्व के देशों में भारत का पाँचवा स्थान है।
  • देश में हर साल प्रति व्यक्ति प्लास्टिक प्रयोग करीब 13 किलोग्राम है। प्लास्टिक के सही इस्तेमाल को लेकर जनता के बीच जागरूकता बढ़ाए जाने की ज़रूरत है।
  • प्लास्टिक के दुष्प्रभाव से बचने के लिये उपयोग के बाद इसका ठीक से पुर्ननवीकरण करना होगा।
  • पर्यावरण के प्रति चिंता जाहिर करते हुए उपराष्ट्रपति ने बेहतर वेस्ट मैनेजमेंट तकनीक के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया। उन्होंने सीपेट को पारंपरिक प्लास्टिक की जगह बायोडीग्रेडेबल पॉलीमर के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिये तकनीक के विकास पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी।
  • उन्होंने कहा कि प्लास्टिक एक विकासात्मक दुविधा पैदा करता है। प्लास्टिक का इस्तेमाल ज़िम्मेदारी से और विवेकपूर्ण तरीके से करना होगा।
  • प्लास्टिक और प्लास्टिक आधारित उत्पाद अपने कम वज़न, तथा मज़बूती की वज़ह से वैश्विक अर्थव्यवस्था का अभिन्न और महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं।
  • कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में प्लास्टिक की उपयोगिता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एरोनॉटिक्स से लेकर चिकित्सा विज्ञान और 3D प्रिंटिंग तक प्लास्टिक ने रोज़मर्रा की ज़िंदगी को बदल दिया है।
  • प्लास्टिक उद्योग ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • भारत की प्लास्टिक निर्यात के प्रति मौजूदा रूझान अत्यधिक उत्साहजनक है और 2018-19 में प्लास्टिक निर्यात 8 बिलियन डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है।
  • देश का प्लास्टिक उद्योग अपनी क्षमता, आधारभूत संरचना और कुशल क्षयशक्ति के मामले में भी अपार संभावनाएँ मुहैया कराता है।
  • उपराष्ट्रपति ने समुद्र में प्लास्टिक के बढ़ते ढेर को लेकर भी आगाह किया। उन्होंने कहा कि अगर हम धरती को समृद्धि की ओर ले जाना चाहते हैं तो प्लास्टिक को समुद्र में जाने से रोकना ही होगा।

प्लास्टिक कचरे का दुष्प्रभाव

  • प्रधानमंत्री ने पिछले साल ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 44वें संस्करण में विश्व पर्यावरण दिवस के बारे में बताते हुए कहा था कि 2019 का विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन भारत करेगा। जिसकी थीम, ‘प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्ति’रखी जाएगी।
  • प्रधानमंत्री ने कहा था कि हमें प्रकृति में हो रहे नकारात्मक बदलाव को रोकने की ज़िम्मेदारी लेनी है लेकिन भारत को प्लास्टिक मुक्त कर पाना एक बहुत बड़ी चुनौती है।
  • देश में हर साल तकरीबन 56 लाख टन कचरे का उत्पादन होता है। इसमें लगभग 9205 टन प्लास्टिक को रीसाइकिल कर दोबारा उपयोग में लाया जाता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के मुताबिक, दिल्ली में हर रोज़ 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन और मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा फेंका जाता है।
  • यह हानिकारक प्लास्टिक हमारी मिट्टी, समुद्र और हमारे शरीर को नुकसान पहुँचाता है।
  • प्लास्टिक की थैलियाँ खाने से प्रतिवर्ष तकरीबन एक लाख से ज़्यादा पशु-पक्षी मर जाते हैं। प्लास्टिक की थैलियों का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह है कि ये नॉन-बायोडीग्रेडेबल होते हैं।
  • हमारे देश में पशुओं की मौत के पीछे प्लास्टिक भी एक वज़ह है। चारा चरते हुए ये पशु प्लास्टिक भी निगल जाते हैं जिससे इनकी मौत तक हो जाती है।
  • समुद्र की स्थिति और भी भयावह है। समुद्र में प्लास्टिक कचरे के रूप में असंख्य टुकड़े तैरते रहते हैं। अधिक वक्त बीतने के बाद ये टुकड़े माइक्रोप्लास्टिक में तब्दील हो जाते हैं।
  • जीव वैज्ञानिकों के अनुसार, समुद्र तट पर पाया जाने वाला प्लास्टिक का यह भाग कुल प्लास्टिक का सिर्फ एक फीसदी है, जबकि 99 प्रतिशत भाग समुद्री जीवों के पेट में या फिर समुद्र तल में जमा है।
  • समुद्री जीव प्लास्टिक की बोतलों और थैलियों को गलती से निगल लेते हैं जिससे इन जीवों की आहारनाल अवरुद्ध हो जाती है।
  • एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार, दुनिया के 192 समुद्री तटों से 2 टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में जा चुका है। इसी तरह बड़े प्लास्टिक पदार्थों के छोटे घटक भी परेशानी का सबब बनते हैं क्योंकि ये छोटे घटक परिवर्तित होकर आखिरकार मनुष्यों के भोजन का हिस्सा बन जाते हैं।
  • यही नहीं, प्लास्टिक के बर्तनों में खाने और बोतलों में पानी पीने से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी हो रही है।
  • समुद्र के अलावा यह जहरीला प्लास्टिक मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी खत्म करता है क्योंकि इसके जलने से जहाँ ज़हरीली गैस निकलती है वहीं यह मिट्टी में पहुँच कर भूमि की उर्वरा शक्ति को नष्ट करता है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, प्लास्टिक के नष्ट होने में 500 से 1000 साल का वक्त लगता है। दुनिया में हर साल 80 से 120 अरब डॉलर का प्लास्टिक बर्बाद होता है जिसकी वज़ह से उद्योगों पर रीसाइकिल कर पुन: प्लास्टिक तैयार करने का दबाव ज़्यादा होता है।
  • प्लास्टिक कचरे की चुनौती से निपटने के लिये केंद्र सरकार लगातार काम कर रही है। सरकार ने देश में कचरा प्रबंधन से जुड़े नियमों को पहले के मुकाबले कड़ा किया है ताकि प्लास्टिक की वज़ह से पर्यावरण को हो रहे नुकसान को कम किया जा सके।

भूजल में भी माइक्रोप्लास्टिक

  • एक नए शोध से पता चला है कि भूजल में भी माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है, जो हमारे शरीर को हानि पहुँचाकर कई बीमारियों का शिकार बना सकता है। विदित हो कि वैश्विक पेयजल की 25 फीसदी आपूर्ति भूजल से होती है। अभी तक धरती की सतह पर मौजूद जल ही माइक्रोप्लास्टिक से दूषित पाया जाता था, लेकिन शोधकर्त्ताओं के नवीन अध्ययन ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है।
  • शोध के मुताबिक, वातावरण में मौजूद प्लास्टिक टूटकर माइक्रोप्लास्टिक बन जाता है। यह माइक्रोप्लास्टिक समुद्री जीवों की आँत और गलफड़ों में जमा हो जाता है और उनके जीवन के लिये खतरा पैदा करता है।
  • जैसे ही प्लास्टिक टूटता है, वह एक स्पंज का काम करने लगता है और अपने अंदर बहुत से दूषित पदार्थों और रोगाणुओं को सोख लेता है। इसके बाद यही माइक्रोप्लास्टिक समुद्री जीवों में से होकर हमारी फूड चेन का हिस्सा बन जाता है। भूजल चट्टानों की दरारों से बहता है और यहीं से यह माइक्रोप्लास्टिक की चपेट में आ जाता है।

पर्यावरण को बचाने की पहल

  • प्लास्टिक की विकराल समस्या से निपटने के लिये भारत ने कई ठोस कदम उठाए हैं। प्लास्टिक कचरे को लेकर देश में नियम कड़े किये गए हैं। इसमें 2016 में लाया गया प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम भी शामिल है।
  • इसके तहत प्लास्टिक के कैरी बैग की न्यूनतम मोटाई को 40 माइक्रोन से बढ़ाकर 50 माइक्रोन करना अनिवार्य किया गया। इससे कम माइक्रोन की थैलियों की बिक्री और इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया गया है। साथ ही नियमों पर अमल के दायरे को नगर पालिका क्षेत्र से बढ़ाकर ग्रामीण क्षेत्रों तक ले जाया गया है क्योंकि अब गाँव-देहात में प्लास्टिक कचरा मिलना आम बात हो गई है।
  • इसके अलावा, प्लास्टिक के कैरी बैग के उत्पादों का आयात और इन्हें बेचने वालों का पूर्व पंजीकरण कराना भी अनिवार्य किया गया है ताकि प्लास्टिक कचरा प्रबंधन शुल्क जुटाया जा सके और पर्यावरण संरक्षण के उपायों को मज़बूती से लागू किया जा सके।
  • जब यह नियम अधिसूचित किया गया उस समय के अनुमान के मुताबिक देश में रोज़ाना 15,000 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है जिसमें से 9000 टन प्लास्टिक कचरा जिसे समेट लिया जाता है, को प्रोसेस किया जाता है। लेकिन 6000 टन प्लास्टिक कचरा ऐसे ही खुले में बिखरा पड़ा रह जाता है जो पर्यावरण में ज़हर घोलने का काम करता है।
  • नए नियमों के तहत प्लास्टिक थैलियों, कैरी बैग और पैकेज्ड सामग्रियों पर इसके निर्माता का नाम, पता दर्ज करना भी अनिवार्य किया गया है।
  • बिना नाम पते वाली प्लास्टिक थैलियों की बिक्री गैर-कानूनी घोषित की गई है। इसी तरह दुकानदारों के लिये भी प्रावधान किया गया कि वह सामान बेचने के लिये ऐसी थैलियों का इस्तेमाल न करें।
  • इसके अलावा, सरकार ने इन नियमों में जनता को भी जवाबदेह बनाने की कोशिश की है। इसके तहत यह प्रावधान किया गया कि अगर किसी समारोह का आयोजन किया जाता है तो उस दौरान पैदा होने वाले प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी आयोजक की होगी और ऐसा नहीं करने पर आयोजक के खिलाफ पर्यावरण कानून के तहत कार्यवाही की जा सकती है।
  • कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के अलावा, केंद्र सरकार ने इसी साल कचरा प्रबंधन नियमों के अंतर्गत कई अन्य नियम भी अधिसूचित किये जिसमें शामिल है-
  1. ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016
  2. बायोमेडिकल कचरा प्रबंधन नियम, 2016
  3. निर्माण और विध्वंस कचरा प्रबंधन नियम, 2016
  4. खतरनाक और अन्य कचरा (प्रबंधन और सीमापार परिवहन) नियम, 2016
  5. ठोस कचरा प्रबंधन नियम, 2016
  • स्वच्छ भारत मिशन के हिस्से के तौर पर शहरी विकास मंत्रालय और पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने मिलकर इन नियमों के बारे में जागरूकता अभियान चलाया।
  • 86 शहरों में शहरी स्थानीय निकायों, शहरी एजेंसियों और अन्य संबंधित पक्षों की राष्ट्रीय क्षमता निर्माण के लिये एक परियोजना शुरू की गई।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कचरा प्रबंधन से जुड़े इन सभी नियमों के लिये राष्ट्रीय क्रियान्वयन एजेंसी के तौर पर काम कर रहा है।
  • प्लास्टिक कचरे की समस्या से निपटने के लिये राज्य सरकारें भी इस मुहिम में योगदान दे रही हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों ने एक बार इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक के उपयोग पर रोक लगा दी है और नियम तोड़ने वालों के खिलाफ भारी ज़ुर्माना का प्रावधान भी किया गया है।
  • हालाँकि दूध, दही, तेल और चिकित्सीय उत्पादों को पैक करने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले प्लास्टिक को इस प्रतिबंध के दायरे से बाहर रखा गया है।
  • UN ने कहा है कि पर्यावरण प्रदूषण संबंधी समस्याओं से निपटने के लिये भारत ने जो नई पद्धति और कार्य प्रणाली अपनाई है वह सराहनीय है।
  • सरकार सस्टेनेबल विकास योजनाएँ तैयार करते समय भी कचरा प्रबंधन पर ज़ोर दे रही है। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करने को भी कहा है।

निष्कर्ष


प्लास्टिक का इस्तेमाल हम रोज़मर्रा के कामों में धड़ल्ले से करते आए हैं। प्लास्टिक के अंधाधुंध इस्तेमाल से आज पर्यावरण खतरे में है। दुनिया भर में हर साल लाखों टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है। इसमें सिर्फ 9 फीसदी ही रिसाइकिल होता है। 12 फीसदी जला दिया जाता है जो हमारी हवा को ज़हरीला बनाता है, जबकि 79 फीसदी प्लास्टिक कचरा इधर-उधर बिखर कर हमारे पर्यावरण को दूषित करता है। इसका बुरा प्रभाव समुद्री जीव-जंतुओं पर पड़ रहा है। अगर प्लास्टिक का सही से निपटारा नहीं किया गया तो 2050 तक हमारे आसपास 1 अरब 20 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा जमा हो जाएगा। अगर हम अब भी कुछ बुनियादी कदम उठाएँ तो समुद्री जीवों के साथ-साथ दुनिया के हर जीव-जंतु के साथ हमारा सह-अस्तित्व बना रह सकता है। इन कदमों से प्लास्टिक के बढ़ते खतरों को कम करने में मदद मिल सकती है।

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