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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-आसियान संबंधों का नया युग

प्रिलिम्स के लिये: हिंद-प्रशांत क्षेत्र, आसियान, एक्ट ईस्ट पॉलिसी, मुक्त व्यापार समझौता, रणनीतिक साझेदारी से व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक

मेन्स के लिये: भारत और आसियान के बीच सहयोग के क्षेत्र, भारत के लिये हिंद-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) क्षेत्र का महत्त्व, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सक्रिय भागीदारी में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे।

स्रोत: ओआरएफ

चर्चा में क्यों?

चीन की बढ़ती आक्रामकता, अमेरिका की रणनीतिक पुनर्संरेखण प्रक्रिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की अनिश्चितताओं के बीच आसियान की भूमिका लगातार महत्त्वपूर्ण होती जा रही है। भारत के लिये, यह एक्ट ईस्ट पॉलिसी और हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण का आधार बना हुआ है, जैसा कि वर्ष 2018 के शांगरी-ला डायलॉग में भी रेखांकित किया गया, जो एक स्वतंत्र, खुला, समावेशी और लचीले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को प्रोत्साहित करता है।

आसियान भारत के लिये क्या अवसर प्रदान करता है?

  • आर्थिक और व्यापारिक अवसर: आसियान, जिसकी जनसंख्या 65 करोड़ है और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 3.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, भारत के लिये एक प्रमुख आर्थिक और व्यापारिक साझेदार है।
    • द्विपक्षीय व्यापार 122.67 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2023–24) तक पहुँच गया है, जो भारत के वैश्विक व्यापार का 11% है।
    • सिंगापुर भारत का सबसे बड़ा आसियान व्यापार साझेदार और छठा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार (वित्त वर्ष 2024-25) है, जिसकी भारत के कुल व्यापार में लगभग 3% हिस्सेदारी है और यह 14.94 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ शीर्ष प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) स्रोत भी है।
    • आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते (AIFTA) का पूर्ण उपयोग और आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौता (AITIGA) का अंतिम रूप देने से व्यापार और निवेश को और प्रोत्साहन मिल सकता है।
  • रक्षा सहयोग: भारत धीरे-धीरे एक विश्वसनीय रक्षा साझेदार के रूप में उभर रहा है, और आसियान देशों को सैन्य हार्डवेयर एवं प्रौद्योगिकी प्रदान कर रहा है।
    • महत्त्वपूर्ण सौदे, जैसे कि फिलिपींस को ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल प्रणाली की बिक्री, रणनीतिक सहयोग के नए चरण का संकेत देते हैं।
    • भारत की सहायता में प्रशिक्षण, रखरखाव और तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करना भी शामिल है, जिससे विभिन्न आसियान सदस्य देशों की सशस्त्र सेनाओं को आधुनिक बनाने में मदद मिलती है, उनकी रक्षा क्षमताओं को मज़बूत किया जाता है और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है।
  • रणनीतिक और सुरक्षा संबंधी सहभागिता: क्षेत्रीय तनावों के बीच आसियान एक रणनीतिक संतुलन प्रदान करता है, जो भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण को मज़बूत करता है तथा आसियान की केंद्रीयता का समर्थन करता है।
    • भारत, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, आसियान क्षेत्रीय मंच, आसियान समुद्री मंच और संयुक्त अभ्यासों जैसे आसियान-भारत समुद्री अभ्यास (दक्षिण चीन सागर, 2023) के माध्यम से सहभागिता करता है।
    • सहयोग में समुद्री डकैती विरोधी उपाय, आपदा प्रबंधन और भारत के सागर सिद्धांत के अनुरूप नियम-आधारित क्षेत्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देना शामिल है।
  • कनेक्टिविटी और अवसंरचना एकीकरण: भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग तथा कलादान मल्टीमॉडल पारगमन परिवहन परियोजनाएँ क्षेत्रीय भौतिक कनेक्टिविटी और एकीकरण को सुदृढ़ करने के लिये तैयार हैं। साथ ही, ये पहल भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करेंगी, जिससे यह क्षेत्रीय व्यापार का केंद्र बन सकेगा।
    • 5G, साइबर सुरक्षा तथा आसियान स्मार्ट सिटीज़ नेटवर्क (ASCN) में भारत की भागीदारी जैसी डिजिटल पहलें तकनीकी और आर्थिक संबंधों को और मज़बूत करती हैं।
    • ये प्रयास चीन की बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के विकल्प प्रस्तुत करते हैं तथा क्षेत्र में आर्थिक और सांस्कृतिक एकीकरण को बढ़ावा देते हैं।
  • प्रौद्योगिकी और ऊर्जा सहयोग: भारत-आसियान सहयोग का विस्तार सूचना प्रौद्योगिकी (IT), फिनटेक, ई-कॉमर्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और स्टार्ट-अप्स (आसियान-भारत स्टार्ट-अप फेस्टिवल के माध्यम से) तक है, जिसे आसियान-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास कोष का समर्थन प्राप्त है।
    • ऊर्जा संसाधनों, सौर एवं स्वच्छ प्रौद्योगिकी तथा अर्द्धचालकों में सहयोग ऊर्जा सुरक्षा और सतत् विकास को सुदृढ़ करता है,  जिस पर वर्ष 2022 में आसियान-भारत उच्च-स्तरीय नवीकरणीय ऊर्जा सम्मेलन द्वारा प्रकाश डाला गया है।
  • सांस्कृतिक एवं जन संबंध: भारत-आसियान के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध कलाकार शिविर, संगीत महोत्सव और विश्वविद्यालयों के नेटवर्क (2022) जैसी पहलों के माध्यम से सॉफ्ट पावर को सुदृढ़ करते हैं, जिससे शैक्षणिक और सामाजिक संबंधों को बल मिलता है।
    • आसियान एकीकरण पहल कार्य योजना-IV तथा उत्कृष्टता केंद्रों में भारत की भागीदारी नवाचार, कनेक्टिविटी और सतत् विकास को प्रोत्साहित करती है।
    • वर्ष 2025 को भारत-आसियान पर्यटन वर्ष के रूप में नामित किया गया है, जिसमें युवा शिखर सम्मेलन, स्टार्ट-अप महोत्सव जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
    • साथ ही, इंडोनेशिया का रामायण बैले और थाईलैंड का अयुत्थाया (जिसे “थाईलैंड की अयोध्या” कहा जाता है) साझा सांस्कृतिक धरोहर को प्रतिबिंबित करते हैं।

भारत और आसियान के बीच तनाव के क्षेत्र कौन-से हैं?

  • व्यापार असंतुलन एवं RCEP से पृथक होना: भारत का आसियान के साथ व्यापार घाटा तेज़ी से बढ़ा है, जो वर्ष 2016–17 में 9.66 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024–25 में 45.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। इसका प्रमुख कारण निर्यात वृद्धि की तुलना में आयात में तेज़ वृद्धि है।
    • बाज़ार पहुँच, टैरिफ असमानता और अनुचित व्यापार प्रथाओं से जुड़ी चिंताओं को दूर करने हेतु भारत आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते (AITGA) की समीक्षा कर रहा है।
    • इससे पूर्व, भारत वर्ष 2019 में आसियान बाज़ारों के ज़रिये चीनी वस्तुओं के बढ़ते आयात को रोकने के लिये RCEP से अलग हुआ, जबकि आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते पर पुनर्विचार की प्रक्रिया धीमी और सीमित रही है।
  • कनेक्टिविटी परियोजनाओं में विलंब: IMT त्रिपक्षीय राजमार्ग और KMMT परियोजना जैसी परियोजनाएँ वित्तपोषण, सुरक्षा और नौकरशाही संबंधी विलंब से जूझ रही हैं। इसका प्रतिकूल प्रभाव व्यापार, निवेश तथा लोगों के बीच संबंधों पर पड़ता है और इससे भारत की क्षेत्रीय विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
  • सीमित रक्षा सहयोग एवं भिन्न रणनीतियाँ: आसियान की सुरक्षा प्राथमिकताओं में विविधता और चीन पर उसकी आर्थिक निर्भरता (वर्ष 2023–24 में आसियान-चीन व्यापार 702 अरब अमेरिकी डॉलर बनाम आसियान-भारत व्यापार 122.67 अरब अमेरिकी डॉलर) रक्षा सहयोग को सीमित करती है। चीन के साथ मज़बूत आर्थिक संबंधों के कारण आसियान देश उसे सैन्य या रणनीतिक रूप से चुनौती देने में अनिच्छुक हैं। परिणामस्वरूप, भारत के हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण को केवल आंशिक समर्थन प्राप्त होता है।
    • आसियान देशों में भी राजनीतिक रूप से भिन्नता है, जहाँ वियतनाम और फिलीपींस भारत की खुली एवं समावेशी हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं, जबकि कंबोडिया तथा अन्य देश तटस्थता को प्राथमिकता देते हैं।
    • इसके अलावा, म्याँमार के राजनीतिक संकट के प्रति भारत और आसियान के दृष्टिकोण में भिन्नता है, जहाँ भारत सीमा तथा संपर्क कारणों से सैनिक शासकों के साथ व्यावहारिक संबंध बनाए रखता है, जबकि आसियान पाँच सूत्री सहमति के माध्यम से कूटनीतिक संबंध बनाए रखता है, जिससे तनाव उत्पन्न होता है।
  • डिजिटल व्यापार और डेटा शासन की चुनौतियाँ: डिजिटल व्यापार, फिनटेक और डेटा शासन में नियामक असंगतियाँ भारत-आसियान सहयोग को धीमा करती हैं।
    • जहाँ आसियान एक उदार डिजिटल व्यापार प्रणाली का समर्थन करता है, वहीं भारत डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के तहत डेटा संप्रभुता लागू करता है।

आसियान के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नेतृत्व स्थापित करने हेतु भारत क्या रणनीति अपना सकता है?

  • कनेक्टिविटी बढ़ाना (भौतिक + डिजिटल): समुद्री संपर्क, हवाई मार्ग और डिजिटल अवसंरचना को बढ़ाने के लिये IMT ट्रिलैटरल हाइवे तथा KMMT परियोजना जैसे प्रोजेक्ट्स को तेज़ी से लागू करना।
    • आसियान साझेदारों के साथ आपसी मान्यता समझौते, इंटरऑपरेबल डिजिटल प्लेटफॉर्म  तथा पायलट प्रोजेक्ट्स लागू करना, जिससे भारत की डेटा संप्रभुता (डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के तहत) और आसियान के उदार डिजिटल व्यापार प्रणाली के बीच संतुलन बना रहे।
    • भारत–सिंगापुर UPI लिंकेज (2023) जैसी द्विपक्षीय पहलों को क्षेत्रीय डिजिटल भुगतान ढाँचे में विस्तारित किया जाना चाहिये।
  • समुद्री सुरक्षा और नीली अर्थव्यवस्था/ब्लू इकोनॉमी: भारत और आसियान को नौसेना अभ्यास तथा समुद्री डकैती गश्त से परे समुद्री सहयोग को मज़बूत करना चाहिये, जिसके लिये अंडरवाटर डोमेन अवेयरनेस, लॉजिस्टिक्स व MRO समर्थन को बढ़ाना तथा आतंकवाद, मादक पदार्थ तस्करी एवं  मानव तस्करी जैसे गैर-पारंपरिक खतरों का सामना करना आवश्यक है।
    • ब्लू इकोनॉमी के क्षेत्र में, समुद्री प्रौद्योगिकी, अपतटीय नवीकरणीय ऊर्जा तथा सतत् मत्स्य पालन के संदर्भ में की गई संयुक्त पहलें अवैध, गैर-सूचित एवं अविनियमित (IUU) मत्स्यग्रहण का मुकाबला कर सकती हैं और क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ कर सकती हैं।
  • स्थिरता, अनुकूलन और विकास भागीदारी: जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा, आपदा प्रबंधन, खाद्य सुरक्षा और डिजिटल कौशल विकास में सहयोग को मज़बूत करना।
    • भारत महत्त्वपूर्ण तकनीकों में आपूर्ति शृंखला विविधीकरण पहलों की शुरुआत कर सकता है तथा क्षेत्रीय अनुकूलन बढ़ाने के लिये ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर और संधारणीय कृषि मॉडल का संयुक्त विकास कर सकता है।
  • संस्थागत और जनता-केंद्रित सहभागिता को मज़बूत करना: एशिया शिखर सम्मेलन (EAS), आसियान क्षेत्रीय मंच (ARF), ADMM-प्लस जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करके रणनीतिक संवाद को सशक्त करना।
    • क्वाड–आसियान सहयोग को एकीकृत करना, ट्रैक-1.5 संवाद, छात्रवृत्तियाँ, सांस्कृतिक आदान-प्रदान को संस्थागत बनाना तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को सुदृढ़ करने के लिये लोगों के बीच संबंधों को मज़बूत करना।
      • वर्ष 2025 को आसियान-भारत पर्यटन वर्ष के रूप में घोषित करना, यात्रा और सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने का एक उत्कृष्ट अवसर है।
  • धारणीयता में अंतरिक्ष क्षेत्र: भारत, आसियान के साथ अपने अंतरिक्ष सहयोग को लेन-देन आधारित स्तर से बढ़ाकर एक रणनीतिक साझेदारी में बदल सकता है, इसके लिये  एक समर्पित "धारणीयता में अंतरिक्ष क्षेत्र (Space for Sustainability)" कार्यक्रम की अगुवाई कर सकता है।
    • साउथ एशिया सैटेलाइट (GSAT-9) की सफलता को आधार बनाते हुए, भारत को अपने अंतरिक्ष कूटनीति को आसियान तक बढ़ाना चाहिये और धारणीयता के लिये एक समर्पित क्षेत्रीय उपग्रह लॉन्च करना चाहिये।
      • यह मिशन फसल निगरानी, समुद्री प्रदूषण की ट्रैकिंग और आपदा चेतावनी प्रदान करने के लिये महत्त्वपूर्ण डेटा प्रदान कराएगा, जिससे भारत की दक्षिण-पूर्व एशिया में एक विश्वसनीय तथा कम-लागत वाले अंतरिक्ष साझेदार के रूप में भूमिका मज़बूत होगी।

आसियान

  • परिचय: आसियान (दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) एक क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1967 में बैंकॉक, थाईलैंड में हुई थी।
    • इसमें 10 सदस्य देश हैं: इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्याँमार और कंबोडिया।
  • उद्देश्य: आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देना, क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखना तथा सदस्य देशों के बीच सहयोग को सुदृढ़ करना।
  • भारत-आसियान संबंध: आसियान के साथ भारत का औपचारिक जुड़ाव वर्ष 1992 में एक क्षेत्रीय संवाद साझेदार के रूप में शुरू हुआ, और वर्ष 1995 में एक संवाद साझेदार बन गया।
    • यह संबंध वर्ष 2012 में रणनीतिक साझेदारी के स्तर पर उन्नत हुआ तथा वर्ष 2022 में व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक उन्नयन किया गया।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र भारतीय महासागर तथा पश्चिमी/मध्य प्रशांत महासागर तक फैला हुआ है, जिसमें विविध संस्कृतियाँ, पारिस्थितिक तंत्र तथा भारत, चीन, जापान और अमेरिका जैसी प्रमुख शक्तियाँ सम्मिलित हैं।
  • यह क्षेत्र विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या, वैश्विक GDP का लगभग 60% तथा वैश्विक आर्थिक वृद्धि का दो-तिहाई भाग समाहित करता है।
  • भारत की दृष्टि एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत की है, जो विवादों के शांतिपूर्ण समाधान तथा संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान का समर्थन करती है।

निष्कर्ष

भारत-आसियान संबंध एक्ट ईस्ट और इंडो-पैसिफिक दृष्टिकोण की आधारशिला हैं, जो साझा समृद्धि, रणनीतिक विश्वास तथा सांस्कृतिक संबंधों पर आधारित हैं। कनेक्टिविटी, डिजिटल नवाचार, जलवायु लचीलापन एवं समुद्री सुरक्षा में सहयोग को गहरा करके, यह साझेदारी भविष्य के लिये तैयार, नियम-आधारित व समावेशी क्षेत्रीय संरचना के रूप में विकसित हो सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारत के स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने में आसियान की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत की "पूर्व की ओर देखो नीति" के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2011)  

  1. भारत पूर्वी एशियाई मामलों में खुद को एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना चाहता है। 
  2. भारत शीत युद्ध की समाप्ति से उत्पन्न शून्यता को दूर करना चाहता है।  
  3. भारत दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया में अपने पड़ोसियों के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को बहाल करना चाहता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?  

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: D


मेन्स 

प्रश्न 1. नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। क्या यह क्षेत्र में मौज़ूदा साझेदारियों को खत्म करने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की शक्ति और प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2021)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत के विकास इंजन के रूप में पर्यटन

प्रिलिम्स के लिये: यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, स्वदेश दर्शन, प्रसाद, हील इन इंडिया पहल

मेन्स के लिये: भारत की आर्थिक मजबूती और रोजगार सृजन में पर्यटन की भूमिका, भारत के पर्यटन क्षेत्र के विकास में बाधा डालने वाली चुनौतियाँ

स्रोत: BS

चर्चा में क्यों? 

भारतीय वस्तुओं पर 50% अमेरिकी टैरिफ लगाए जाने के बाद, नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत जैसे विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि पर्यटन उच्च मूल्य वाले पर्यटकों को आकर्षित करके संभावित नुकसान की भरपाई करने में मदद कर सकता है, क्योंकि पर्यटन टैरिफ बाधाओं से मुक्त है।

भारत के पर्यटन क्षेत्र की संभावनाएँ क्या हैं?

  • भारत का पर्यटन: भारत में पर्यटन क्षेत्र ने महामारी पूर्व की गति को पुनः प्राप्त कर लिया है, जो वित्तीय वर्ष 2022-2023 में GDP में 5% का योगदान देता है और 7.6 करोड़ नौकरियाँ सृजित करता है।
    • भारत में वर्ष 2024 में 9.95 मिलियन विदेशी पर्यटक आगमन (FTA) दर्ज किये गए, जो फिर भी महामारी पूर्व स्तर से कम हैं। विदेशी मुद्रा अर्जन (FEE) वर्ष 2024 में 10% बढ़कर 2.9 लाख करोड़ रुपए हो गया, जो पर्यटन की नौकरियों, राजस्व और वैश्विक स्थिति में भूमिका को मज़बूत करता है।
    • भारत अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक आगमन का 1.5% हिस्सा है। विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद (WTTC) वर्ष 2024-25 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 8वीं सबसे बड़ी पर्यटन अर्थव्यवस्था है, जो 231.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान देती है।
    • मेडिकल टूरिज्म इंडेक्स (2020–21) में भारत 46 गंतव्यों में से 10वें स्थान पर रहा, जैसा कि मेडिकल टूरिज्म एसोसिएशन द्वारा जारी किया गया।
  • मुख्य स्रोत बाज़ार: वर्ष 2020 से 2024 के बीच, अमेरिका, बांग्लादेश, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया, श्रीलंका, जर्मनी और फ्राँस भारत के विदेशी पर्यटक आगमन के शीर्ष स्रोत देश बने।
    • यात्रा के उद्देश्य मुख्य रूप से अवकाश (46%), प्रवासी यात्राएँ (27%) और व्यापार यात्रा (10%) हैं।
  • भावी वृद्धि: WTTC ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2035 तक यात्रा और पर्यटन क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था में लगभग 42 ट्रिलियन रुपए का योगदान देगा और 64 मिलियन नौकरियों का समर्थन करेगा।
    • वर्ष 2028 तक, FTA 30.5 मिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है, जिससे 5.13 लाख करोड़ रुपए से अधिक राजस्व उत्पन्न होगा।
    • वर्ष 2047 तक, भारत का लक्ष्य 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की पर्यटन अर्थव्यवस्था बनना है, जिसमें 100 मिलियन अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक, 20 बिलियन घरेलू यात्राएँ और 200 मिलियन पर्यटन-संबंधित नौकरियाँ सृजित हों।

भारतीय पर्यटन के विकास में बाधा डालने वाली चुनौतियाँ क्या हैं?

  • वीज़ा और यात्रा में बाधाएँ: कागज़ी प्रक्रियाएँ, जटिल अनुमोदन और सीमित वीज़ा-रहित प्रवेश विदेशी पर्यटकों (FTA) के लिये भारत में प्रवेश को कठिन बनाते हैं।
    • उदाहरण के लिये, केवल भूटान, नेपाल और मालदीव के नागरिक ही बिना वीज़ा भारत की यात्रा कर सकते हैं, जबकि चीन 70 देशों और थाईलैंड 90 देशों को वीज़ा-रहित प्रवेश की अनुमति देता है।
  • निम्नस्तरीय अवसंरचना: सीमित होटल कमरों और अविकसित परिवहन नेटवर्क के कारण पर्यटकों की सुविधा प्रभावित होती है।
    • भारत में लगभग 2,00,000 होटल कमरे हैं, जबकि चीन में 20 मिलियन। कई सरकारी होटल घाटे में चल रहे हैं, जिससे निवेश हतोत्साहित हो रहा है।
  • स्वच्छता की कमी: हवाई अड्डों और सार्वजनिक क्षेत्रों के आसपास अपशिष्ट प्रबंधन की कमी तथा अव्यवस्थित वातावरण आगंतुकों पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ते हैं, विशेषकर जब इसकी तुलना स्वच्छ अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थलों से की जाती है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: अपर्याप्त सुरक्षा और आपातकालीन सेवाएँ पर्यटकों के लिये जोखिम उत्पन्न करती हैं, विशेष रूप से दूरदराज़ या अधिक यातायात वाले क्षेत्रों में।
  • कम वैश्विक प्रचार: भारत में एक मज़बूत, सतत् अंतर्राष्ट्रीय मार्केटिंग अभियान का अभाव है। अतुल्य भारतजैसी पिछली पहलें सफल रहीं, लेकिन पिछले दशक में कोई प्रमुख अभियान नहीं चला।
    • जुलाई 2025 तक भारत में 44 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, जबकि ग्रीस में लगभग आधे हैं, लेकिन वह तीन गुना अधिक पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह सांस्कृतिक संसाधनों के अपर्याप्त उपयोग, कमज़ोर वैश्विक ब्रांडिंग, असंतोषजनक आगंतुक सुविधाओं और सीमित प्रचार को दर्शाता है, जिससे भारत के लिये उच्च-मूल्य वाले पर्यटकों को आकर्षित करना कठिन हो जाता है।
  • शहरी और कनेक्टिविटी अंतराल: दूरदराज़ या उच्च-संभावित स्थलों तक कठिन पहुँच पर्यटक आगमन को कम करती है।
    • हिमालयन रिलीजियस सर्किट जैसे क्षेत्र सड़कें, हवाई अड्डे और आवास की दृष्टि से अविकसित बने हुए हैं।

भारत उच्च-मूल्य वाले पर्यटकों को कैसे आकर्षित कर सकता है?

  • प्रवेश और यात्रा को सरल बनाना: ई-टूरिस्ट वीज़ा और आगमन पर वीज़ा (Visa-on-arrival) को अधिक देशों तक विस्तारित करने तथा उन्हें तीव्र एवं किफायती बनाने से आगमन को बढ़ावा मिल सकता है।
    • उच्च-मूल्य वाले पर्यटकों (High-value tourists) के लिये बेहतर हवाई अड्डों, त्वरित आव्रजन और बहुभाषी समर्थन के माध्यम से निर्बाध यात्रा आवश्यक है।
  • विशिष्ट, प्रीमियम अनुभवों को बढ़ावा देना: आयुर्वेद रिट्रीट, लक्ज़री वाइल्डलाइफ सफारी, आध्यात्मिक वेलनेस टूर, उच्च-स्तरीय सांस्कृतिक उत्सव और रिवर क्रूज़ जैसी विशिष्ट पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देना। ये वे पर्यटक आकर्षित करते हैं जो अधिक भुगतान करने को तैयार हैं।
    • लक्षद्वीप, अपने निर्मल समुद्र तटों, प्रवाल भित्तियों और स्वच्छ जल के कारण, उच्च-मूल्य वाले पर्यटक गंतव्य के रूप में अपार संभावनाएँ रखता है। सतत् पर्यटन प्रथाओं और सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध अवसंरचना के साथ, ये द्वीप एक प्रमुख पर्यटन केंद्र बन सकते हैं।
    • इन्फ्लुएंसर्स, यात्रा लेखक तथा राय निर्माता को लक्ज़री अनुभवों के लिये आमंत्रित करना, जिससे आकांक्षाओं का निर्माण हो और लोगों में इसके प्रति जागरूकता बढ़े।
  • पर्यटन स्थलों की विविधता को सर्किट्स के माध्यम से प्रदर्शित करना: स्वदेश दर्शन और प्रसाद जैसी योजनाओं का उपयोग अनुभवों को प्रीमियम यात्रा कार्यक्रमों में पैकेज करने के लिये किया जा सकता है, जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय तीर्थयात्रियों के लिये बुद्धिस्ट सर्किट, वेलनेस एवं एडवेंचर को मिलाकर लक्ज़री हिमालयन सर्किट और उन्नत प्रसाद स्थलों के साथ स्पिरिचुअल सर्किट
    • ये पहल भारत को एकल-स्थल गंतव्य से बहु-दिवसीय गहन यात्रा में बदल देती हैं, जिससे पर्यटकों को लंबे समय तक ठहरने और अधिक व्यय करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
  • विश्व-स्तरीय अवसंरचना और कनेक्टिविटी: राज्यों के साथ चैलेंज-मोड पार्टनरशिप के माध्यम से 50 शीर्ष पर्यटन स्थलों को विकसित करने की पहल, प्रीमियम सुविधाओं, लक्ज़री होटलों और निर्बाध कनेक्टिविटी को सुनिश्चित करती है।
    • होटलों को इंफ्रास्ट्रक्चर हार्मोनाइज्ड मास्टर लिस्ट (HML) के अंतर्गत वर्गीकृत करना उच्च-स्तरीय आतिथ्य क्षेत्र में निजी निवेश को आकर्षित करेगा, जो संपन्न पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • सेवा की गुणवत्ता को उन्नत करना: उच्च-मूल्य वाले पर्यटक आराम और सुविधा चाहते हैं। आतिथ्य क्षेत्र में मानव संसाधन (शेफ, गाइड, सेवा कर्मी) को प्रशिक्षित करने पर अधिक ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है।
    • वैश्विक-स्तरीय होटल, बुटीक स्टे, लक्ज़री ट्रेन और क्रूज़ को प्रोत्साहित करना।
  • चिकित्सा एवं स्वास्थ्य पर्यटन: हील इन इंडिया पहल, जो आधुनिक चिकित्सा को आयुर्वेद, योग और स्वास्थ्य के साथ मिलाती है, भारत को एक वैश्विक स्वास्थ्य केंद्र के रूप में स्थापित करती है।
    • वर्ष 2026 तक मेडिकल वैल्यू ट्रैवल 13.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने के साथ, भारत समग्र उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल चाहने वाले रोगियों को आकर्षित कर सकता है।
  • मूल्य संवर्धन के रूप में ज्ञान: ज्ञान भारतम मिशन जैसी पहलें (पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण, विरासत का संरक्षण) विद्वानों और वैश्विक धरोहर प्रेमियों को लक्षित सांस्कृतिक पर्यटन का समर्थन कर सकती हैं।
  • सुरक्षा और सुविधा को मज़बूत करना: 24x7 हेल्पलाइन, पर्यटन पुलिस, स्वागत पुस्तिकाएँ और बहुभाषी गाइड्स विश्वास स्थापित कर सकते हैं तथा अधिक पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं।

निष्कर्ष

पर्यटन भारत को रोज़गार सृजन, विदेशी मुद्रा अर्जन और वैश्विक ब्रांडिंग को मज़बूत करके, बिना किसी शुल्क के अनुकूलन का मार्ग प्रदान करता है। 'सेवा' और 'अतिथि देवो भव' जैसे मार्गदर्शक मूल्यों के साथ, भारत अपने पर्यटन परिदृश्य को पुनर्परिभाषित कर सकता है और वर्ष 2047 तक एक विश्वस्तरीय गंतव्य के रूप में उभर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. “भारत में पर्यटन को परिमाण से मूल्य की ओर स्थानांतरित होना चाहिये।” भारत की वैश्विक व्यापार चुनौतियों के आलोक में, परीक्षण कीजिये कि पर्यटन क्षेत्र आर्थिक अनुकूलन को कैसे बढ़ा सकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

मेन्स 

प्रश्न 1. पर्वत पारिस्थितिकी तंत्र को विकास पहलों और पर्यटन के ऋणात्मक प्रभाव से किस प्रकार पुनःस्थापित किया जा सकता है ? (2019)

प्रश्न 2. पर्यटन की प्रोन्नति के कारण जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य अपनी पारिस्थितिकी वहन क्षमता की सीमाओं तक पहुँच रहे हैं? समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015)


नीतिशास्त्र

भारत में आवारा कुत्तों का प्रबंधन: सार्वजनिक सुरक्षा और पशु कल्याण में संतुलन

प्रिलिम्स के लिये: रेबीज़, अनुच्छेद 21, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय रेबीज़ नियंत्रण कार्यक्रम

मेन्स के लिये: मानव अधिकार बनाम पशु कल्याण में संतुलन

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में बच्चों पर हुई दुखद घटनाओं के बाद स्वत: संज्ञान (Suo Motu) लेते हुए आवारा कुत्तों को हटाने का निर्देश जारी किया।

  • इस निर्देश ने सार्वजनिक सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन बनाए रखने से जुड़े कानूनी और नैतिक पहलुओं पर बहस को बढ़ावा दिया है।

भारत में आवारा कुत्तों का खतरा

  • भारत में 62 से 80 मिलियन (6.2 से 8 करोड़) तक आवारा कुत्ते हैं। केवल वर्ष 2024 में ही 22 लाख से अधिक कुत्ते के काटने के मामले दर्ज किये गए। कुत्तों के काटने से होने वाला रेबीज़ वैश्विक स्तर पर होने वाली कुल मौतों का 36% हिस्सा है, जो मुख्य रूप से बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को प्रभावित करता है।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में कुत्ते के काटने से 4000 से अधिक मौतें दर्ज की गईं।
  • केवल दिल्ली में ही वर्ष 2025 की पहली छमाही में 35,000 से अधिक जानवरों के काटने के मामले दर्ज किये गए। रेबीज़ का उपचार, जो पोस्ट-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (PEP) के माध्यम से किया जाता है, स्वास्थ्य प्रणाली पर आर्थिक दबाव डालता है, जहाँ प्रत्येक मामले का औसत उपचार खर्च लगभग ₹5,128 है।

भारत में आवारा कुत्तों के प्रबंधन के लिये कानूनी और नीतिगत ढाँचे क्या हैं?

  • संवैधानिक प्रावधान;
    • अनुच्छेद 246(3): राज्य सरकारें पशुधन का संरक्षण, सुरक्षा और सुधार, पशु रोगों की रोकथाम तथा पशु चिकित्सा प्रशिक्षण और अभ्यास का प्रबंधन करती हैं।
    • अनुच्छेद 243(W) और 246: स्थानीय निकायों की ज़िम्मेदारी है कि वे आवारा कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण करें।
    • अनुच्छेद 51A(g): नागरिकों का मौलिक कर्तव्य है कि वे सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा और सहानुभूति दिखाएं।
    • अनुच्छेद 21 (भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम नागराजा (2014) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विस्तारित): पशुओं को भी जीवन का अधिकार (जल्लीकट्टू मामला) दिया गया।
  • कानूनी और नीतिगत ढाँचा:
    • पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960: क्रूरता पर प्रतिबंध लगाता है और मानवीय व्यवहार को अनिवार्य बनाता है।
    • पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2023: इसमें आवारा कुत्तों की नसबंदी, टीकाकरण और उन्हें उनके आवास में वापस छोड़ने का प्रावधान है।
    • रेबीज़ नियंत्रण प्रयास: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के नेतृत्व में राष्ट्रीय रेबीज़ नियंत्रण कार्यक्रम (NRCP) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक रेबीज़ को समाप्त करना है। इसमें टीकाकरण, नसबंदी (Sterilization) और सर्विलांस (निगरानी) प्रमुख उपाय हैं।

आवारा कुत्तों के प्रबंधन से संबंधित प्रमुख नैतिक पहलू क्या हैं?

  • मानव सुरक्षा बनाम पशु अधिकार: कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाएँ और रेबीज़ से होने वाली मौतें एक नैतिक द्वंद्व पैदा करती हैं, जहाँ एक ओर जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना ज़रूरी है, वहीं दूसरी ओर पशुओं के जीवन के अधिकार की रक्षा करना भी आवश्यक है।
    • बच्चों पर हमलों की अधिक घटनाएँ यह नैतिक चिंता उत्पन्न करती हैं कि सबसे कमजोर वर्ग की सुरक्षा में लापरवाही बरती जा रही है। पशु जन्म नियंत्रण (Animal Birth Control Rules- ABC) नियम में पशु कल्याण को मानव सुरक्षा से अधिक प्राथमिकता दी गई है, जिससे आक्रामक आवारा कुत्तों को छोड़ने पर नागरिकों के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन होने का खतरा बढ़ जाता है।
    • वहीं दूसरी ओर, जानवरों को एक जीवित प्राणी के रूप में संरक्षण और मानवीय व्यवहार मिलना चाहिये। आवारा कुत्तों को हटाना या उन्हें कहीं छोड़ देना उनके जीवन के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन माना जाता है।
  • व्यवहार में असमानता: अच्छी नस्ल के कुत्तों को अक्सर परिवार के सदस्य या प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है, जबकि आवारा कुत्तों को समाज से उपेक्षित समझा जाता है। यह स्थिति असमान व्यवहार और न्याय की कमी को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करती है।
  • नियंत्रण विधियों में नैतिक दुविधाएँ: मार देना (Culling), ज़हर देना या क्रूर तरीके से स्थानांतरण जैसी घटनाएँ, करुणा और मानवीय व्यवहार जैसे नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं।
  • भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन: नसबंदी, टीकाकरण और आवारा कुत्तों के कल्याण कार्यक्रमों के लिये आवंटित धन का कुप्रबंधन और दुरुपयोग, इन पहलों की प्रभावशीलता को कमज़ोर करता है और पशुओं के प्रति मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करने की नैतिक ज़िम्मेदारी को भी ठेस पहुँचाता है।

आवारा कुत्तों के प्रबंधन के लिये नैतिक ढाँचे

  • उपयोगितावादी नैतिकता (Utilitarian Ethics): नसबंदी और टीकाकरण समाज के बड़े हित में होते हैं क्योंकि ये रेबीज़ के खतरे को कम करते हैं और साथ ही क्रूरता से भी बचाव करते हैं। यह दृष्टिकोण आमतौर पर मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिये सख्त कदमों का समर्थन करता है, ताकि समग्र रूप से समाज का लाभ सुनिश्चित किया जा सके।
  • कर्तव्यनिष्ठा (Deontology): राज्य और समाज का कर्तव्य है कि वे नागरिकों और पशुओं दोनों की सुरक्षा करें
  • अधिकार आधारित नैतिकता (Rights-Based Ethics): आवारा कुत्तों को स्वाभाविक अधिकारों वाला माना जाता है, और नैतिक कार्य उन अधिकारों की संरक्षा करना तथा उनके कल्याण को सुनिश्चित करना होता है।
  • अहिंसा की सांस्कृतिक भावना: भारतीय परंपरा सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा और सह-अस्तित्व पर बल देती है।
  • वन हेल्थ दृष्टिकोण: नैतिक प्रबंधन के लिये पशु कल्याण को मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के साथ एकीकृत करना आवश्यक है।

आवारा कुत्तों के प्रबंधन में सर्वोत्तम अभ्यास

  • बंगलुरु में, पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम के आकलनों से पता चला कि वर्ष 2019 से 2023 के बीच आवारा कुत्तों की जनसंख्या में 10% की कमी आई है, जबकि नसबंदी दर में 20% की वृद्धि हुई है। यह आवारा कुत्तों की जनसंख्या प्रबंधन में सकारात्मक परिणाम को दर्शाता है।
  • नीदरलैंड्स ने संग्रह, नसबंदी, टीकाकरण, वापसी (Collect, Neuter, Vaccinate, Return- CNVR) कार्यक्रम के माध्यम से "आवारा कुत्ता मुक्त" दर्जा प्राप्त किया है, और इसके साथ ही गोद लेने (Adoption) को भी सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया गया।
  • इस्तांबुल, तुर्की में शहर प्रशासन द्वारा एक व्यापक "ट्रैप-न्यूटर-वैक्सीनेट-रिटर्न (TNVR)” कार्यक्रम संचालित किया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत नसबंदी किये गए कुत्तों के कानों पर टैग (Ear Markers) लगाए जाते हैं, और समुदाय के पशु-भक्तों (Community Feeders) को भी इस पहल में शामिल किया जाता है। 
    • पिछले दशक में, आवारा पशुओं की आबादी स्थिर हो गई है, रेबीज़ लगभग समाप्त हो गया है, तथा मनुष्यों के साथ सह-अस्तित्व कायम है।
  • बैंकॉक, थाईलैंड ने जनसंहार (Mass Culling) की नीति को छोड़कर TNVR पद्धति अपनाई। इस उपाय से रेबीज़ के प्रकोप पर रोक लगी और कुत्तों के प्रति समुदाय में आक्रोश में भी उल्लेखनीय कमी आई।

सार्वजनिक सुरक्षा और पशु कल्याण में संतुलन के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  • कुत्तों की सेवा भूमिकाएँ: सभी प्रमुख हितधारकों को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिये कि कुत्तों की संज्ञानात्मक (Cognitive) और सामाजिक क्षमताओं का उपयोग नशीले पदार्थों की पहचान, विस्फोटक पहचान तथा थेरेपी जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में किया जाए। साथ ही समाज में कुत्तों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • नीति क्रियान्वयन: सरकारों को टीकाकरण और नसबंदी कार्यक्रमों को बेहतर बनाने तथा पालतू जानवरों के परित्याग को रोकने के लिये नागरिक समाज के साथ सहयोग करना चाहिये। एक राष्ट्रीय नीति तैयार की जानी चाहिये जो मानव एवं कुत्तों के बीच संघर्ष (Human-Dog Conflict) को प्रभावी ढंग से संबोधित करे।
  • समर्पित सुविधाएँ: आवारा कुत्तों की जनसंख्या को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये खुराक देने के स्थान (Feeding Stations), पशु चिकित्सा स्वास्थ्य सुविधाएँ और पशु कल्याण संस्थाओं का समर्थन प्रदान करना आवश्यक है।
    • इसके अतिरिक्त, हमलों की सूचना देने के लिये एक समर्पित हेल्पलाइन स्थापित की जानी चाहिये।
  • सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा: जनता को ज़िम्मेदार पालतू जानवर पालन, नसबंदी के महत्त्व और जानवरों के साथ सुरक्षित व्यवहार के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिये ताकि कुत्ते के काटने से बचाव हो सके और पालतू जानवरों के परित्याग को कम किया जा सके

निष्कर्ष

जानवरों की रक्षा की नैतिक ज़िम्मेदारी को समाज के नागरिकों की सुरक्षा के कर्तव्य के साथ संतुलित किया जाना चाहिये। करुणा को बढ़ावा देकर, प्रभावी नीतियों को लागू करके और जनजागरूकता अभियानों में भाग लेकर, भारत एक ऐसा भविष्य बना सकता है जहाँ मानव तथा पशु दोनों के अधिकारों का सम्मान हो एवं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित हो।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. आवारा कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण के संदर्भ में सार्वजनिक सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन बनाने में नैतिक आयामों पर चर्चा कीजिये।


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