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डेली न्यूज़

  • 19 Nov, 2022
  • 62 min read
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भारत में महत्त्वपूर्ण झीलें

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शासन व्यवस्था

पूर्ववर्ती पेंशन योजना

प्रिलिम्स के लिये:

नई पेंशन योजना, पूर्ववर्ती पेंशन योजना, PFRDA। राष्ट्रीय पेंशन योजना, असंगठित क्षेत्र।

मेन्स के लिये:

पूर्ववर्ती पेंशन योजना, राष्ट्रीय पेंशन योजना।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कुछ राजनीतिक दलों द्वारा पूर्ववर्ती पेंशन योजना को बहाल करने का वादा किया गया।

पूर्ववर्ती पेंशन योजना:

  • परिचय:
    • यह योजना सेवानिवृत्ति के बाद आजीवन आय का आश्वासन देती है।
    • पूर्ववर्ती पेंशन योजना (OPS) के तहत कर्मचारियों को पूर्व निर्धारित फार्मूले के अनुसार पेंशन मिलती थी जो अंतिम आहरित वेतन का आधा (50%) होता है तथा उन्हें वर्ष में दो बार महँगाई राहत (Dearness Relief) में संशोधन का भी लाभ मिलता था। भुगतान निर्धारित था और वेतन से कोई कटौती नहीं की जाती थी। इसके अलावा OPS के तहत सामान्य भविष्य निधि (General Provident Fund-GPF) का भी प्रावधान था।
      • GPF भारत में सभी सरकारी कर्मचारियों के लिये उपलब्ध है। मूल रूप से यह सभी सरकारी कर्मचारियों को अपने वेतन का एक निश्चित प्रतिशत GPF में योगदान करने की अनुमति देता है। साथ ही कुल राशि जो रोज़गार की अवधि के दौरान जमा होती है, सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी को भुगतान की जाती है।
    • पेंशन पर होने वाले खर्च को सरकार वहन करती है। वर्ष 2004 में इस योजना को बंद कर दिया गया था।
  • चुनौतियाँ:
    • वित्त रहित पेंशन देयता:
      • मुख्य समस्या यह थी कि पेंशन देयता वित्तपोषित नहीं थी अर्थात् पेंशन के लिये विशेष रूप से ऐसा कोई कोष नहीं था, जो लगातार बढ़े और भुगतान के लिये उपयोग किया जा सके।
      • भारत सरकार द्वारा बजट में प्रत्येक वर्ष पेंशन का प्रावधान किया जाता है, भविष्य में साल-दर-साल भुगतान करने के तरीके पर कोई स्पष्ट योजना नहीं थी।
    • अस्थिरता:
      • OPS भी अस्थिर था। हालाँकि पेंशन देनदारियाँ बढ़ती रहेंगी क्योंकि पेंशनरों के लाभ में प्रत्येक वर्ष वृद्धि होगी, जैसे मौजूदा कर्मचारियों का वेतन, पेंशनरों को इंडेक्सेशन से प्राप्त लाभ या जिसे 'महँगाई राहत' कहा जाता है।
      • इसके अलावा बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं से जीवन प्रत्याशा में वृद्धि होगी और दीर्घायु में वृद्धि का अर्थ विस्तारित भुगतान होगा।
      • इससे केंद्र और राज्य सरकारों पर पेंशन का भारी बोझ पड़ा है।

संबद्ध  चिंताओं को दूर करने के लिये बनी योजनाएँ:

  • वर्ष 1998 में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने वृद्धावस्था सामाजिक एवं आय सुरक्षा (OASIS) परियोजना के लिये एक रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया। विशेषज्ञ समिति द्वारा इस रिपोर्ट को जनवरी 2000 में प्रस्तुत किया गया।
  • OASIS का प्राथमिक उद्देश्य उन असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर केंद्रित था जिन्हें वृद्धावस्था में आय सुरक्षा संबंधी समस्याएँ थी।
  • OASIS रिपोर्ट के अनुसार, निवेशकों को तीन अलग-अलग प्रकार के फंड में निवेश करना चाहिये, यथा: वृद्धि, संतुलित और सुरक्षित। ये फंंड छह अलग-अलग फंड प्रबंधकों द्वारा प्रस्तुत किये जाएंगे।
  • शेष राशि का निवेश कॉर्पोरेट बॉण्ड या सरकारी प्रतिभूतियों में किया जाएगा। इसके लिये विशेष सेवानिवृत्ति खाते होंगे और इसमें कम-से-कम 500 रुपए प्रतिवर्ष निवेश करने की आवश्यकता होगी।
  • सेवानिवृत्ति के बाद सेवानिवृत्ति खाते से कम-से-कम 2 लाख रुपए का उपयोग बीमा खरीदने के लिये किया जाएगा।
    • एक बीमा प्रदाता इस राशि का निवेश करता है और उस व्यक्ति के शेष जीवन तक एक निश्चित मासिक आय प्रदान करता है जो कि रिपोर्ट तैयार करने के समय 1,500 रुपए थी।

नई पेंशन योजना की पेशकश के कारण:

  • परिचय:
    • OASIS रिपोर्ट ही नई पेंशन योजना का आधार बनी, जिसे दिसंबर 2003 में अधिसूचित किया गया था।
    • केंद्र सरकार ने जनवरी 2004 से प्रभावी राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) की शुरुआत की (सशस्त्र बलों को छोड़कर)।
      • वर्ष 2018-19 में NPS को कारगर बनाने तथा इसे और अधिक आकर्षक बनाने के लिये केंद्रीय मंत्रिमंडल ने NPS के तहत आने वाले केंद्र सरकार के कर्मचारियों को लाभान्वित करने हेतु योजना में बदलावों को मंज़ूरी दी।
    • पेंशन देनदारियों से छुटकारा पाने के तरीके के रूप में NPS को सरकार द्वारा लॉन्च किया गया था।
      • 2000 के दशक की शुरुआत के शोध का हवाला देते हुए एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, भारत का पेंशन ऋण नियंत्रण से परे के स्तर तक पहुँच रहा था।
    • NPS की शुरुआत के बाद केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 में संशोधन किया गया था।
    • सेवानिवृत्ति के बाद एक व्यक्ति पेंशन राशि का एक हिस्सा एकमुश्त निकाल सकता है और शेष का उपयोग नियमित आय के लिये बीमा खरीदने के लिये कर सकता है।
  • कार्यान्वयन:
    • NPS को देश में PFRDA (पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण) द्वारा कार्यान्वित एवं विनियमित किया जा रहा है।
    • PFRDA द्वारा स्थापित नेशनल पेंशन सिस्टम ट्रस्ट (NPST), NPS के तहत सभी परिसंपत्तियों का पंजीकृत मालिक है।
  • विशेषताएँ:
    • NPS का अखिल नागरिक मॉडल 18-70 वर्ष की आयु के भारत क सभी नागरिकों (NRIs सहित) को NPS में शामिल होने की अनुमति देता है।
    • यह एक भागीदारी योजना है, जहाँ कर्मचारी अपने वेतन से अपने पेंशन कोष में योगदान करते हैं, जिसमें सरकार का भी समान योगदान होता है। इसके बाद फंड को पेंशन फंड मैनेजर्स के माध्यम से निर्धारित निवेश योजनाओं में निवेश किया जाता है।
      • इस NPS में सरकार द्वारा नियोजित लोग NPS में अपने मूल वेतन का 10% योगदान करते हैं, जबकि उनके नियोक्ता 14% तक योगदान करते हैं।
      • वर्ष 2019 में वित्त मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के पास पेंशन फंड (PF) और निवेश पैटर्न का चयन करने का विकल्प है।
    • रिटायरमेंट के समय वे कॉर्पस का 60% निकाल सकते हैं, जो टैक्स-फ्री है और बाकी 40% ऐन्युइटी में निवेश किया जाता है, जिस पर टैक्स लगता है।
    • यहाँ तक कि निज़ी व्यक्ति भी इस योजना का विकल्प चुन सकते हैं।
  • NPS के साथ समस्याएँ:
    • OPS के विपरीत NPS में कर्मचारियों को महँगाई भत्ते के साथ मूल वेतन का 10% जमा करने की आवश्यकता होती है। GPF का कोई लाभ नहीं है और पेंशन की राशि तय नहीं है। इस योजना के साथ प्रमुख मुद्दा यह है कि यह बाज़ार से जुड़ा हुआ है तथा रिटर्न-आधारित है। सरल शब्दों में भुगतान अनिश्चित है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) में शामिल हो सकता है? (2017)

(A) केवल निवासी भारतीय नागरिक
(B) केवल 21 से 55 वर्ष की आयु के व्यक्ति
(C) अधिसूचना की तारीख के बाद सेवाओं में शामिल होने वाले सभी राज्य सरकार के कर्मचारी तथा संबंधित राज्य की सरकारों द्वारा अधिसूचना किये जाने की तारीख के पश्चात सेवा में आये हैं
(D) सशस्त्र बलों सहित केंद्र सरकार के सभी कर्मचारी , जो 1 अप्रैल, 2004 या उसके बाद सेवाओं में शामिल हुए हैं

उत्तर: (C)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन की क्षतिपूर्ति

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीनहाउस गैस, उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट, 2022, पेरिस लक्ष्य

मेन्स के लिये:

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, पेरिस समझौता, शुद्ध शून्य उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन और संरक्षण

चर्चा में क्यों?

समृद्ध देशों, विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और कनाडा ने इंडोनेशिया की कोयले पर निर्भरता को खत्म करने तथा वर्ष 2050 तक कार्बन तटस्थता हासिल करने के लिये बाली में G-20 सम्मेलन के दौरान 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया।

क्षतिपूर्ति का महत्त्व:

  • 20वीं सदी के आरंभ से लेकर अब तक विकसित देश औद्योगिक विकास से लाभान्वित हुए हैं जिससे ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन भी हुआ।
    • ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 1751 और 2017 के बीच CO2 उत्सर्जन में 47% भागीदारी संयुक्त राष्ट्र और 28 यूरोपियन देशों का था। अर्थात् कुल मिलाकर सिर्फ 29 देश।
  • विकासशील देश आर्थिक विकास की दौड़ में थोड़े पीछे रहे।
    • हो सकता है कि उत्सर्जन में वे अभी भी योगदान दे रहे हों, लेकिन इसके लिये उन्हें आर्थिक विकास को रोकने के लिये कहना एक ठोस कारण नहीं होगा।
    • उदाहरण के लिये: अफ्रीका का एक ग्रामीण किसान यह दावा कर सकता है कि उसके देश ने ऐतिहासिक रूप से उत्सर्जन में वृद्धि नहीं की है, लेकिन अमेरिका या रूस के औद्योगीकरण के कारण उसकी कृषि उपज घट रही है या फिर दक्षिण अमेरिका के शहर में काम करने वाले एक श्रमिक को लंबे समय से विकसित देशों द्वारा किये जाने वाले उत्सर्जन के कारण हीटवेव की स्थिति में काम करना पड़ता है।

उत्सर्जन के परिणाम:

  • वर्ष 1990-2014 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा होने वाले उत्सर्जन के कारण दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद लगभग 1-2% प्रभावित हुआ तथा तापमान परिवर्तन के कारण श्रम उत्पादकता तथा कृषि पैदावार पर भी असर पड़ा।
    • लेकिन संभव है कि उत्सर्जन से कुछ देशों को लाभ भी हुआ हो, जैसे कि उत्तरी यूरोप और कनाडा।
  • मूडीज़ एनालिटिक्स का अनुमान है कि इस सदी के मध्य तक कनाडा के सकल घरेलू उत्पाद में 0.3% की वृद्धि होगी क्योंकि गर्म जलवायु कृषि और श्रम उत्पादकता को बढ़ावा देती है।
  • वर्ष 2022 के लिये संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की वार्षिक उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पेरिस के निर्धारित लक्ष्यों (तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने) से बहुत पीछे है।

भारत में उत्सर्जन:

  • 'उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट 2022' के अनुसार, भारत शीर्ष सात उत्सर्जकों (अन्य चीन, यूरोपीय संघ-27, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, रूसी संघ और अमेरिका) में से एक है।
    • ये सात देश अंतर्राष्ट्रीय परिवहन, 2020 में वैश्विक GHG उत्सर्जन का 55% हिस्सा रखते है।
    • सामूहिक रूप से, G-20 सदस्य वैश्विक GHG उत्सर्जन के 75% के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • कुछ GHG उत्सर्जन अपरिहार्य हैं। भारत की जनसंख्या के संदर्भ में इसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दूसरे देशों की तुलना में बहुत कम है।
    • विश्व औसत प्रति व्यक्ति GHG उत्सर्जन 6.3 टन था जो कि वर्ष 2020 में CO2 (tCO2 ई) के समकक्ष था।
    • अमेरिका का स्तर इससे ऊपर है जो कि 14 टन है, रूसी संघ में 13 टन और चीन में 9.7 टन है। भारत 2.4 पर विश्व औसत से बहुत नीचे बना हुआ है।

 भारत द्वारा उठाए गए संबंधित कदम:

  • भारत ने घोषणा की है कि वह वर्ष 2070 तक कार्बन तटस्थता तक पहुँच जाएगा।
  • भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता उत्पन्न करने, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की उत्सर्जन तीव्रता को कम करने के साथ-साथ वन क्षेत्र बढ़ाने की भी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
  • पिछले साल कोयला समझौते में भारत ने भाषा का मसौदा तैयार किया था।
  • इसे कोयले के "फेज़-आउट" से "फेज़-डाउन" में बदल दिया गया था।
  • यह आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये मुख्य रूप से थर्मल पावर द्वारा पूरी की जाने वाली बड़ी ऊर्जा आवश्यकताओं की देश की ज़मीनी वास्तविकताओं को दर्शाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

्रश्न: वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC की बैठक में समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. समझौते पर संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे और यह वर्ष 2017 में लागू होगा।
  2. समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करना है ताकि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2ºC या 1.5ºC से भी अधिक न हो।
  3. विकसित देशों ने ग्लोबल वार्मिंग में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिये 2020 से सालाना 1000 अरब डॉलर दान करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • पेरिस समझौते को दिसंबर 2015 में पेरिस, फ्राँस में COP21 में पार्टियों के सम्मेलन (COP) द्वारा संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के माध्यम से अपनाया गया था।
  • समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करना है ताकि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस या 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो। अत: कथन 2 सही है।
  • पेरिस समझौता 4 नवंबर, 2016 को लागू हुआ, जिसमें वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को अनुमानित 55% तक कम करने के लिये अभिसमय हेतु कम-से-कम 55 पार्टियों ने अनुसमर्थन, अनुमोदन या परिग्रहण स्वीकृति प्रदान की थी। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • इसके अतिरिक्त समझौते का उद्देश्य अपने स्वयं के राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये देशों की क्षमता को मज़बूत करना है।
  • पेरिस समझौते के लिये सभी पक्षों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के माध्यम से अपने सर्वोत्तम प्रयासों को आगे बढ़ाने और आने वाले वर्षों में इन प्रयासों को मज़बूत करने की आवश्यकता है। इसमें यह भी शामिल है कि सभी पक्ष अपने उत्सर्जन औरे कार्यान्वयन प्रयासों पर नियमित रूप से रिपोर्ट करें।
  • समझौते के उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में सामूहिक प्रगति का आकलन करने और पार्टियों द्वारा आगे की व्यक्तिगत कार्रवाइयों को सूचित करने के लिये प्रत्येक 5 साल में एक वैश्विक समालोचना भी होगी।
  • वर्ष 2010 में कानकुन समझौतों के माध्यम से विकसित देशों को विकासशील देशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये वर्ष 2020 तक प्रतिवर्ष संयुक्त रूप से 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने के लक्ष्य हेतु प्रतिबद्ध किया।
  • इसके अलावा वे इस बात पर भी सहमत हुए कि वर्ष 2025 से पहले पेरिस समझौते के लिये पार्टियों की बैठक के रूप में पार्टियों का सम्मेलन प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का एक नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य निर्धारित करेगा। अत: कथन 3 सही नहीं है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

अपशिष्ट जल प्रबंधन

प्रिलिम्स के लिये:

अपशिष्ट जल प्रबंधन, एसबीएम 2.0, खुले में शौच से मुक्त (ODF) की स्थिति, अमृत मिशन, जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूट्रोफिकेशन, बायोरेमेडिएशन, फाइटोरेमेडिएशन।

मेंन्स के लिये:

अपशिष्ट जल प्रबंधन और संबंधित सरकारी पहल में चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

दुनिया की लगभग आधी या 43% नदियाँ सक्रिय दवा सामग्री की सांद्रता से दूषित हैं जो स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकती हैं।

  • दवा उद्योग को एंटीबायोटिक प्रदूषण और रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) को सीमित करने के लिये अपशिष्ट जल प्रबंधन एवं प्रक्रिया नियंत्रण को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • भारत के विभिन्न राज्यों में विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे फार्मास्युटिकल केंद्रों में व्यापक पैमाने पर दवा प्रदूषण की सूचना मिली है।

अपशिष्ट जल:

  • परिचय:
    • अपशिष्ट जल वर्षा जल अपवाह और मानव गतिविधियों से उत्पन्न जल का प्रदूषित रूप है, इसे सीवेज भी कहा जाता है।
    • इसे आमतौर पर घरेलू सीवेज, औद्योगिक सीवेज या तूफान सीवेज (तूफानी पानी) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
    • आमतौर पर एक जल निकाय में डंप किया गया सीवेज आत्म-शुद्धिकरण की प्राकृतिक प्रक्रिया के माध्यम से खुद को साफ कर सकता है।
    • लेकिन जनसंख्या में वृद्धि, साथ ही बड़े पैमाने पर शहरीकरण ने सीवेज निर्वहन में वृद्धि की है जो प्राकृतिक शुद्धिकरण की दर से कहीं अधिक है।
    • इस प्रकार उत्पन्न अतिरिक्त पोषक तत्त्व जल निकाय में यूट्रोफिकेशन और जल की गुणवत्ता में धीरे-धीरे गिरावट का कारण बनते हैं।
      • यूट्रोफिकेशन एक जल निकाय की प्रक्रिया है जो खनिजों और पोषक तत्त्वों से अत्यधिक समृद्ध हो जाती है जो शैवाल की अत्यधिक वृद्धि को प्रेरित करती है, जिससे जल निकायों में ऑक्सीजन की कमी होती है।
  • अपशिष्ट जल उपचार:
    • अपशिष्ट जल उपचार, जिसे सीवेज उपचार भी कहा जाता है, के तहत जलभृतों या जल के प्राकृतिक निकायों जैसे नदियों, झीलों, मुहानों और महासागरों तक अपशिष्ट जल या सीवेज अशुद्धियों को पहुँचने से पहले साफ़ किया जाता है।
    • ऑन-साइट सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STPs) अपशिष्ट जल का शोधन और उसे शुद्ध करे पुन: उपयोग के लिये उपयुक्त बनाते हैं।
      • STP मुख्य रूप से घरेलू सीवेज से अपशिष्ट जल से दूषित पदार्थों को हटाते हैं।

Waste-Water

भारत में अपशिष्ट जल प्रबंधन की स्थिति:

  • परिचय:
    • 2021 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की वर्तमान जल उपचार क्षमता 27.3% है तथा (अन्य 5.2% क्षमता के साथ) सीवेज उपचार क्षमता 18.6% है।
      • यद्यपि भारत की अपशिष्ट और सीवेज उपचार क्षमता लगभग 20% के वैश्विक औसत से अधिक है, यह पर्याप्त नहीं है और त्वरित उपायों द्वारा सीवेज उपचार क्षमता को नहीं बढ़ाया गया तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
    • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, भारत में शहरी क्षेत्रों में 5% अपशिष्ट जल अनुपचारित या आंशिक रूप से उपचारित रहता है।
    • 2019 की एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, गंगा एक्शन प्लान और यमुना एक्शन प्लान के तहत स्थापित अधिकांश सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम नहीं कर रहे हैं तथा उत्पन्न 33000 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD) कचरे में से केवल 7000 MLD एकत्र और उपचारित किया जाता है।
  • नियम:
    • जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 (1988 में संशोधित):
      • यह कानून जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण एवं जल की पूर्णता को बनाए रखने या बहाल करने के लिये पेश किया गया था।
    • जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977 (2003 में संशोधित)
      • इसका उद्देश्य कुछ उद्योगों को चलाने वाले व्यक्तियों और स्थानीय अधिकारियों द्वारा खपत किये गए जल पर उपकर लगाने एवं संग्रह करने का प्रावधान है।
    • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986:
      • यह केंद्र सरकार को सीवेज और प्रवाह निर्वहन मानकों को निर्धारित करने, जाँच करने एवं अनुपालन सुनिश्चित करने तथा अनुसंधान करने का अधिकार देता है।
      • यह अधिनियम जल, भूमि, वायु और शोर सहित सभी प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण पर लागू होता है।
  • सरकार की पहल:
    • भारत सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन 2.0 (SBM 2.0) के तहत अपना ध्यान ठोस अपशिष्ट, कीचड़ और ग्रेवाटर प्रबंधन पर केंद्रित किया।
      • खुले में शौच से मुक्त (ODF) स्थिति प्राप्त करने पर निरंतर ध्यान देने के बाद आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने शहरों के लिये ODF+, ODF++ एवं जल+ स्थिति प्राप्त करने के लिये विस्तृत मानदंड विकसित किये।
    • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (AMRUT) के लिये अटल मिशन के तहत MoHUA द्वारा सीवरेज एवं सेप्टेज प्रबंधन परियोजनाएँ शुरू की गईं।

अपशिष्ट जल प्रबंधन में चुनौतियाँ:

  • भारतीय संविधान की अनुसूची 7 जल को राज्य के मामले के रूप में निर्धारित करती है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से संघ सूची में उल्लिखित प्रावधानों के अधीन है।
    • यह संसद को जनहित में अंतर्राज्यीय जल को विनियमित करने और विकसित करने के लिये कानून बनाने में सक्षम बनाता है, जबकि राज्य जल आपूर्ति, सिंचाई, जल निकासी एवं तटबंधों, जल भंडारण आदि जैसे मामलों पर राज्य के भीतर जल के उपयोग के संबंध में कानून बनाने की स्वायत्तता रखते हैं।
    • अपशिष्ट जल और इसके दुष्परिणामों के प्रति यह विघटित दृष्टिकोण राज्यों के भीतर भी देखा जा सकता है। 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियमों के अनुसार, जल संसाधनों का शासन स्थानीय स्तर, ग्रामीण तथा शहरी स्तर पर और अधिक खंडित है।
    • इन संवैधानिक तंत्रों के परिणामस्वरूप केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति असंतुलन हुआ है, जिससे संघीय न्यायिक अस्पष्टता पैदा हुई है।
      • विशेष रूप से अपशिष्ट जल प्रबंधन के मामले में एक राज्य की निष्क्रियता एक या अधिक अन्य राज्यों के हितों को प्रभावित करती है और विवादों का कारण बनती है।
  • जबकि केंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार समाधानों के लिये एक केंद्रीय स्थान में एकत्र किये जाने वाले अपशिष्ट जल के लिये परस्पर जुड़े सीवरों और जल निकासी के एक अच्छी तरह से विकसित नेटवर्क की आवश्यकता होती है। यह उन्हें महँगा, श्रम प्रधान एवं समय लेने वाला बनाता है।

आगे की राह

  • हालाँकि अपशिष्ट जल के मुद्दों के बेहतर मूल्यांकन और निवारण के लिये एक विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है, लेकिन नीतियों के कुशल संचालन एवं जल निकायों के समग्र विकास के लिये जल प्रशासन को सभी स्तरों पर मान्यता देने की आवश्यकता है।
    • इस संबंध में अपशिष्ट जल को न केवल पर्यावरण प्रदूषण के मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिये बल्कि जल क्षेत्र के मामले के रूप में सभी केंद्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारों द्वारा सुसंगत रूप से संबोधित किया जाना चाहिये।
  • सस्ते वैकल्पिक समाधानों के साथ केंद्रीकृत उपचार संयंत्रों का पूरक होना अत्यावश्यक है जैसे:
    • विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र छोटे कस्बों, शहरी और ग्रामीण समूहों, गेटेड कॉलोनियों, कारखानों एवं औद्योगिक पार्कों में स्थापित किये जा सकते हैं। उन्हें सीधे साइट पर स्थापित किया जा सकता है, इस प्रकार अपशिष्ट जल को सीधे उसके स्रोत पर उपचारित किया जा सकता है।
    • प्रदूषकों और खतरनाक अपशिष्टों को अपघटित करने के लिये बायोरेमेडिएशन कवक और बैक्टीरिया जैसे रोगाणुओं का उपयोग करता है।
    • फाइटोरेमेडिएशन का तात्पर्य संदूषकों की सांद्रता या विषाक्त प्रभावों को कम करने के लिये पौधों और संबंधित मृदा के रोगाणुओं के उपयोग से है, साथ ही यह पूरे देश में झीलों एवं तालाबों की सफाई में काफी प्रभावी साबित हुआ है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) किसके लिये एक मानक मापदंड है? (2017)

(a) रक्त में ऑक्सीजन स्तर मापने के लिये
(b) वन पारिस्थितिक तंत्रें में ऑक्सीजन स्तरों के अभिकलन के लिये
(c) जलीय पारिस्थितिक तंत्रों में प्रदूषण के आमापन के लिये
(d) उच्च तुंगता क्षेत्रों में ऑक्सीजन स्तरों के आकलन के लिये

उत्तर: C

उत्तर:

  • जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) एक निश्चित समय अवधि में एक निश्चित तापमान पर जल के दिये गए नमूने में कार्बनिक पदार्थ को विघटित करने के लिये वायुजीवी(एरोबिक) जीवों द्वारा आवश्यक घुलित ऑक्सीजन की मात्रा है।
  • BOD जल में प्रदूषित जैविक सामग्री के लिये सबसे आम उपायों में से एक है। BOD जल में मौज़ूद सड़ने योग्य कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को इंगित करती है। इसलिये कम BOD अच्छी गुणवत्ता वाले जल का सूचक है, जबकि उच्च BOD प्रदूषित जल को इंगित करता है।
  • सीवेज और अनुपचारित जल के निर्वहन के परिणामस्वरूप घुलित ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है क्योंकि उपलब्ध घुलित ऑक्सीजन की अधिकता अवक्रमण प्रक्रिया में वायुजीवी (एरोबिक) बैक्टीरिया द्वारा उपभोग की जाती है, ऑक्सीजन पर निर्भर अन्य जलीय जीवों को ऑक्सीजन से वंचित करके ही वे जीवित रह सकते हैं।

अतः विकल्प C सही उत्तर है।


प्रश्न. प्रदूषण की समस्याओं का समाधान करने के संदर्भ में जैवोपचारण (बायोरेमीडिएशन) तकनीक का/के कौन-सा/से लाभ है/हैं? (2017)

  1. यह प्रकृति में घटित होने वाली जैवनिम्नीकरण प्रक्रिया का ही संवर्द्धन कर प्रदूषण को स्वच्छ करने की तकनीक है।
  2. कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुओं से युक्त किसी भी संदूषक को सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से जैवोपचारण द्वारा सहज ही पूरी तरह उपचारित किया जा सकता है।
  3. जैवोपचारण के लिये विशेषतः अभिकल्पित सूक्ष्मजीवों को सृजित करने के लिये आनुवंशिक इंजीनियरीग (जेनेटिक इंजीनियरिंग) का उपयोग किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C

व्याख्या:

  • जैवोपचारण एक उपचार प्रक्रिया है जो प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों (खमीर, कवक या बैक्टीरिया) का उपयोग खतरनाक पदार्थों को कम विषाक्त या गैर-विषैले पदार्थों में विखंडित करने, निम्नीकरण करने के लिये करती है।
  • सूक्ष्मजीव कार्बनिक प्रदूषकों को अहानिकर उत्पादों-मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और पानी में विखंडित कर देते हैं। यह एक लागत प्रभावी, प्राकृतिक प्रक्रिया है जो कई सामान्य जैविक कचरे पर लागू होती है। उत्सर्जन स्रोत पर ही कई जैवोपचारण तकनीकों का संचालन किया जा सकता है। अतः कथन 1 सही है।
  • सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके सभी संदूषकों को जैवोपचारण द्वारा आसानी से उपचारित नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिये कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुओं से युक्त किसी भी संदूषक को सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से जैवोपचारण द्वारा सहज ही और पूरी तरह उपचारित नहीं किया जा सकता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • जैवोपचारण के विशिष्ट उद्देश्यों के लिये डिज़ाइन किये गए सूक्ष्मजीवों को बनाने हेतु जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिये जैवोपचारण के लिये विशेषतः अभिकल्पित सूक्ष्मजीवों को सृजित करने हेतु आनुवंशिक इंजीनियरीग (जेनेटिक इंजीनियरिंग) का उपयोग किया जा सकता है। अतः कथन 3 सही है। अतः विकल्प C सही उत्तर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


आंतरिक सुरक्षा

नो मनी फॉर टेरर कॉन्फ्रेंस 2022

प्रिलिम्स के लिये:

नो मनी फॉर टेरर कॉन्फ्रेंस

मेन्स के लिये:

आतंकवाद में प्रौद्योगिकी का उपयोग, आतंकवाद से निपटने की पहल, आतंकवाद से निपटने में चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आतंकवाद-विरोधी वित्तपोषण पर तीसरा 'नो मनी फॉर टेरर' (NMFT) मंत्रिस्तरीय सम्मेलन नई दिल्ली, भारत में आयोजित किया गया।

  • भारत के प्रधानमंत्री ने दृढ़ता से आतंकवाद से निपटने में किसी भी अस्पष्टता से बचने के लिये कहा है और उन देशों के खिलाफ भी चेतावनी दी है जो आतंकवाद को विदेश नीति के एक उपकरण के रूप में उपयोग करते हैं।

नो मनी फॉर टेरर कॉन्फ्रेंस:

  • परिचय:
    • "नो मनी फॉर टेरर" कॉन्फ्रेंस 2018 में फ्राँसीसी सरकार की एक पहल के रूप में शुरू किया गया था, जो विशेष रूप से देशों के बीच आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिये सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने के लिये था।
      • वर्ष 2019 में सम्मेलन ऑस्ट्रेलिया में आयोजित किया गया था।
      • इसे वर्ष 2020 में भारत में आयोजित किया जाना था लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था।
  • महत्त्व:
    • ईसने भाग लेने वाले देशों और संगठनों को आतंकवाद के वित्तपोषण पर वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय शासन की प्रभावशीलता एवं उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये आवश्यक कदमों पर विचार-विमर्श करने हेतु एक अनूठा मंच प्रदान किया।
  • सम्मेलन 2022:
    • इसमें 72 देशों और 15 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
    • सम्मेलन के दौरान चार सत्रों में विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया था, जिसमें निम्नलिखित बिंदु प्रमुख थे:
      • आतंकवाद और आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण में वैश्विक रुझान।
      • आतंकवाद के लिये धन के औपचारिक और अनौपचारिक माध्यमों का उपयोग।
      • उभरती प्रौद्योगिकियाँ और आतंकवादी वित्तपोषण।
      • आतंकवादी वित्तपोषण का सामना करने में चुनौतियों का समाधान करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।

NMFT सम्मेलन 2022 में भारत का पक्ष:

  • अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन:
    • इस तथ्य के आलोक में कि अफगानिस्तान में पिछले शासन परिवर्तन के परिणामस्वरूप 9/11 हमला हुआ था, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इससे उत्पन्न खतरों से अवगत होने की सलाह दी।
    • सत्ता परिवर्तन और अल कायदा और इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) का बढ़ता प्रभाव क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये एक गंभीर चुनौती के रूप में उभरा है।
  • आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकानों का पर्दाफाश:
    • भारत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को कभी भी आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकानों या उनके संसाधनों की अनदेखी नहीं करनी चाहिये।
    • उन्हें प्रायोजित और समर्थन करने वाले ऐसे तत्त्वों की दोहरी नीतियों का पर्दाफाश करना ज़रूरी है।
    • यह महत्त्वपूर्ण है कि इस सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों और संगठनों को इस क्षेत्र की चुनौतियों का चयनात्मक या आत्मसंतुष्ट दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिये।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों से खतरे:
    • आतंकवादी समूह डार्क नेट और क्रिप्टोकरेंसी जैसे आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी हथियारों की बारीकियों को बहुत अच्छी तरह से समझते हैं।
      • आतंकवाद का डायनामाइट से लेकर मेटावर्स और एके-47 से आभासी परिसंपत्ति में परिवर्तन निश्चित रूप से विश्व के लिये चिंता का विषय है।
      • आतंकवाद और ऑनलाइन कट्टरत के लिये उपयोग किये जाने वाले बुनियादी उपकरणों को वितरित किया जाता है।
        • प्रत्येक देश अपनी पहुँच के भीतर आने वाली सभी शृंखलाओं के खिलाफ कार्रवाई कर सकतें है और उन्हें कार्रवाई  करनी चाहिये।
  • आतंकवाद समर्थक देशों की लागत:
    • कुछ देश अपनी विदेश नीति के तहत आतंकवाद का समर्थन करते हैं। वे उन्हें राजनीतिक, वैचारिक और वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
    • आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों को इसकी कीमत चुकानी होगी। आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति पैदा करने की कोशिश करने वाले संगठनों और व्यक्तियों को भी अलग-थलग किया जाना चाहिये।
  • संगठित अपराध से खतरा:
    • संगठित अपराध को अलग करके नहीं देखा जाना चाहिये और इन गिरोहों के अक्सर आतंकवादी संगठनों के साथ गहरे संबंध होते हैं।
    • बंदूक बनाने से मिलने वाले पैसे, ड्रग्स और तस्करी के माध्यम से कमाए गए पैसे को आतंकवाद में लगाया जाता है।
    • यहाँ तक कि मनी लॉन्ड्रिंग और वित्तीय अपराध जैसी गतिविधियों को आतंक के वित्तपोषण में मदद करने के लिये जाना जाता है।

आतंकवाद का मुकाबला करने हेतु पहल:

वैश्विक:

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. आतंकवाद की जटिलता और तीव्रता, इसके कारणों, संबंधों एवं अप्रिय गठजोड़ का विश्लेषण कीजिये। आतंकवाद के खतरे के उन्मूलन के लिये आवश्यक उपायों का भी सुझाव दीजिये। (मेन्स-2021)

प्रश्न. जम्मू और कश्मीर मेंजमात इस्लामीपर पाबंदी लगाने से आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुँचाने में भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं (-जी-डब्ल्यू-) की भूमिका ध्यान का केंद्र बन गई है। उपप्लव (बगावत) प्रभावित क्षेत्रों में आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुँचाने में भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं द्वारा निभाई जा रही भूमिका का परीक्षण कीजिये। भूमि उपरि कार्यकर्त्ताओं के प्रभाव को निष्प्रभावित करने के उपायों की चर्चा कीजिये। (मेन्स-2019)

प्रश्न. "भारत में बढ़ते हुए सीमापारीय आतंकी हमले और अनेक सदस्य-राज्यों के आंतरिक मामलों में पाकिस्तान द्वारा बढ़ता हुआ हस्तक्षेप सार्क (दक्षिणी एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के भविष्य के लिये सहायक नहीं है।" उपयुक्त उदहारण के साथ स्पष्ट कीजिये। (मेन्स-2016)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


नीतिशास्त्र

सार्वजनिक पद पर आसीन लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

मेन्स के लिये:

सिविल सेवकों के लिये आचार संहिता

चर्चा में क्यों?

हाल ही मे सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सार्वजनिक पद पर आसीन लोगों को आत्म-प्रतिबंध का प्रयोग करना चाहिये और ऐसी बातें नहीं करनी चाहिये जो अन्य देशवासियों के लिये अपमानजनक हों।

निर्णय की मुख्य विशेषताएँ:

  • परिचय:
    • न्यायालय ने कहा कि यदि कोई सार्वजनिक अधिकारी ऐसा भाषण देता है जिसका किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, तो संबद्ध व्यक्ति के पास हमेशा इसके निपटान हेतु नागरिक उपाय होता है।
    • न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 19(2) चाहे जो भी कहे, देश में एक संवैधानिक संस्कृति है जहाँ एक अंतर्निहित सीमा है या ज़िम्मेदार पदों पर आसीन लोगों के भाषण अथवा अभिव्यक्ति पर कुछ प्रतिबंध हैं
      • अनुच्छेद 19 (2) देश की संप्रभुता और अखंडता, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता आदि के हित में भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रयोग पर उचित प्रतिबंध लगाने के लिये राज्य की शक्तियों से संबंधित है।
  • पूर्व के निर्णय:
    • 2017 में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने विभिन्न मुद्दों को निर्णय के लिये संविधान पीठ को भेजा था, जिसमें यह भी शामिल था कि क्या एक सार्वजनिक पदाधिकारी या मंत्री संवेदनशील मामलों पर विचार व्यक्त करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दावा कर सकता है
      • इस मुद्दे पर एक आधिकारिक घोषणा की आवश्यकता उत्पन्न हुई क्योंकि ऐसे तर्क थे कि एक मंत्री व्यक्तिगत दृष्टिकोण प्रस्तुत नहीं कर सकता और उसके बयानों को सरकारी नीति के अनुरूप होना चाहिये।
    • अदालत ने पहले कहा था कि वह इस बात पर विचार करेगी कि क्या भाषण और अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार शालीनता या नैतिकता के उचित प्रतिबंध के तहत शासित होगा या मौलिक अधिकारों का भी इस पर प्रभाव पड़ेगा।

आचार संहिता:

  • आचार संहिता किसी व्यक्ति या संगठन के लिये नियमों, व्यवहार या प्रथाओं के मानकों का एक सेट है जो किसी संगठन के निर्णयों, प्रक्रियाओं और प्रणालियों को इस तरह से निर्देशित करती है जो इसके हितधारकों के कल्याण में योगदान देता है।
    • उदाहरण के लिये भारत निर्वाचन आयोग की आदर्श आचार संहिता भारत के चुनाव आयोग द्वारा चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के संचालन के लिये जारी दिशा-निर्देशों का एक सेट है, जिसमें मुख्य रूप से भाषण, मतदान दिवस, मतदान केंद्र, विभाग, चुनाव घोषणापत्र, जुलूस तथा सामान्य आचरण शामिल है।
  • इसी तरह सिविल सेवकों के लिये कर्तव्यों का पालन करने और आचरण संबंधी नियमों को बनाए रखने के लिये संहिताओं का एक सेट निर्धारित किया गया है।

सिविल सेवकों के लिये आचार संहिता के सात सिद्धांत:

  • निस्वार्थता: सार्वजनिक पद धारण करने वालों द्वारा जनहित में निर्णय लिये जाने चाहिये। अपने परिवार या अन्य मित्रों के लिये धन या अन्य भौतिक लाभ प्रदान करने के लिये उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिये।
  • अखंडता: सार्वजनिक कार्यालय के धारकों को किसी भी तरह के आर्थिक या बाहरी पार्टियों के दबाव में काम नहीं करना चाहिये, जो उन्हें ऐसा करने के लिये दबाव बनाते हैं।
  • वस्तुनिष्ठता: सार्वजनिक अधिकारियों को सार्वजनिक नियुक्तियों, अनुबंध पुरस्कारों और प्रोत्साहनों तथा भत्तों के लिये सिफारिशों सहित सार्वजनिक व्यवसाय करते समय योग्यता के आधार पर अपने निर्णय लेने चाहिये।
  • जवाबदेही: सिविल सेवकों को उनकी स्थिति के अनुसार जाँच के दायरे में रखा गया है साथ ही, उन्हें जनता को उनकी पसंद और आचरण के लिये जवाब देना चाहिये।
  • खुलापन: सभी विकल्प और कार्य जो सार्वजनिक कार्यालय धारक करते हैं वे यथासंभव पारदर्शी होने चाहिये। जब व्यापक जनहित में स्पष्ट रूप से इसकी आवश्यकता होती है तो उन्हें अपनी पसंद के लिये औचित्य प्रदान करना चाहिये और केवल आवश्यक होने पर ही जानकारी को प्रतिबंधित करना चाहिये।
  • ईमानदारी: नौकरशाह का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने सार्वजनिक कर्त्तव्यों से संबंधित निजी हितों की घोषणा करे और ऐसे किसी विरोध के समाधान के लिये आवश्यक कदम उठाए जो सार्वजनिक हितों की रक्षा करने में आड़े आता हो।
  • नेतृत्व: इन विचारों को बढ़ावा देने और समर्थन करने के लिये सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा नेतृत्व का उपयोग किया जाना चाहिये।

आगे की राह

  • कुछ निष्कर्ष लोक सेवा पर सामान्य रूप से लागू होते हैं जिन्हें लोक सेवा के सात सिद्धांतों के अतिरिक्त जोड़ा जा सकता है।
    • आचार संहिता: सभी सार्वजनिक निकायों को इन सिद्धांतों को शामिल करते हुए आचार संहिता बनानी चाहिये।
    • स्वतंत्र जाँच: मानकों को बनाए रखने के लिये आंतरिक प्रणालियों को स्वतंत्र जाँच द्वारा समर्थित किया जाना चाहिये।
    • शिक्षा: सार्वजनिक निकायों में आचरण के मानकों को बढ़ावा देने तथा सुदृढ़ करने के लिये और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण के माध्यम से, जिसमें प्रारंभिक प्रशिक्षण भी शामिल है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष का प्रश्न  

प्रश्न. दस आवश्यक मूल्यों की पहचान कीजिये जो एक प्रभावी लोक सेवक बनने के लिये आवश्यक हैं। लोक सेवकों में गैर-नैतिक व्यवहार को रोकने के तरीकों और साधनों का वर्णन कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021)

प्रश्न. उपयुक्त उदाहरणों के साथ "नैतिक संहिता" और "आचार संहिता" के बीच भेद कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018)

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


शासन व्यवस्था

कैदियों का UIDAI नामांकन

प्रिलिम्स के लिये:

CAG, UIDAI, आधार अधिनियम 2016

मेन्स के लिये:

आधार और संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश भर में जेल कैदियों को नामांकित करने के लिये एक विशेष उपाय के रूप में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) कैदी प्रेरण दस्तावेज़ (PID)  को आधार के नामांकन या अद्यतन के लिये एक वैध दस्तावेज़ के रूप मे  को स्वीकार करने के लिये सहमत हो गया है।

  • हालाँकि कैदियों को आधार सुविधा देने का अभियान 2017 में शुरू किया गया था, लेकिन यह प्रक्रिया उम्मीद के मुताबिक आगे नहीं बढ़ी क्योंकि योजना हेतु नामांकन के लिय UIDAI द्वारा निर्धारित वैध सहायक दस्तावेज़ की आवश्यकता होती है।

भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण:

  • सांविधिक प्राधिकरण: UIDAI 12 जुलाई, 2016 को आधार अधिनियम 2016 के प्रावधानों का पालन करते हुए ‘इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ के अधिकार क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वैधानिक प्राधिकरण है।
    • UIDAI की स्थापना भारत सरकार द्वारा जनवरी 2009 में योजना आयोग के तत्त्वावधान में एक संलग्न कार्यालय के रूप में की गई थी।
  • जनादेश: UIDAI को भारत के सभी निवासियों को एक 12-अंकीय विशिष्ट पहचान (UID) संख्या (आधार) प्रदान करने का कार्य सौंपा गया है।
    • देश में समग्र आधार संतृप्ति स्तर 93% को पार कर गया है, और वयस्क आबादी के मामले में यह लगभग 100% है।

आधार का महत्त्व:

  • पारदर्शिता और सुशासन को बढ़ावा देना: आधार नंबर ऑनलाइन एवं किफायती तरीके से सत्यापन योग्य है।
    • यह डुप्लीकेट और नकली पहचान को खत्म करने में अद्वितीय है तथा इसका उपयोग कई सरकारी कल्याण योजनाओं का लाभ प्राप्त करने हेतु किया जाता है जिससे पारदर्शिता एवं सुशासन को बढ़ावा मिलता है।
  • निचले स्तर तक मदद: आधार ने बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को पहचान प्रदान की है जिनकी पहले कोई पहचान नहीं थी।
    • इसका उपयोग कई प्रकार की सेवाओं में किया गया है तथा इसने वित्तीय समावेशन, ब्रॉडबैंड और दूरसंचार सेवाओं, नागरिकों के बैंक खाते में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण में पारदर्शिता लाने में मदद की है।
  • तटस्थ: आधार संख्या किसी भी जाति, धर्म, आय, स्वास्थ्य और भूगोल के आधार पर लोगों को वर्गीकृत नहीं करती है।
    • आधार संख्या पहचान का प्रमाण है, हालांँकि आधार संख्या इसके धारक को नागरिकता या अधिवास का कोई अधिकार प्रदान नहीं करती है।
  • जन-केंद्रित शासन: आधार सामाजिक और वित्तीय समावेशन, सार्वजनिक क्षेत्र की सुविधाओं तक पहुँच में सुधारों, वित्तीय बजटों के प्रबंधन, सुविधा बढ़ाने और समस्या मुक्त जन-केंद्रित शासन को बढ़ावा देने के लिये एक रणनीतिक नीति उपकरण है।
  • स्थायी वित्तीय पता: आधार को स्थायी वित्तीय पते के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, यह समाज के वंचित और कमज़ोर वर्गों के वित्तीय समावेशन की सुविधा प्रदान करता है, अतः न्याय और समानता का एक उपकरण है।
    • इस प्रकार आधार पहचान मंच 'डिजिटल इंडिया' के प्रमुख स्तंभों में से एक है।

आधार से संबंधित चिंताएंँ:  

  • आधार डेटा का दुरुपयोग:
    • देश में कई निजी संस्थाएँं आधार कार्ड पर ज़ोर देती हैं और उपयोगाकर्त्ता अक्सर विवरण साझा करते हैं।
    • इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि यें संस्थाएँ कैसे इन डेटा को सुरक्षित रखती हैं।
    • हाल ही में कोविड-19 परीक्षण के साथ, कई लोगों ने देखा होगा कि अधिकांश प्रयोगशालाएँ आधार कार्ड के डेटा पर ज़ोर देती हैं, जिसमें एक फोटोकॉपी भी शामिल है।
      • यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि कोविड-19 परीक्षण करवाने के लिये इसे साझा करना अनिवार्य नहीं है।
  • ज़बरन थोपना:
    • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि आधार प्रमाणीकरण को केवल भारत के समेकित कोष से भुगतान किये गए लाभों के लिये अनिवार्य बनाया जा सकता है और आधार के विफल होने पर पहचान सत्यापन के वैकल्पिक साधन हमेशा प्रदान किये जाने चाहिये।
      • बच्चों को छूट दी गई थी लेकिन आंँगनवाड़ी सेवाओं या स्कूल में नामांकन जैसे बुनियादी अधिकारों के लिये बच्चों से नियमित रूप से आधार की मांग की जाती रही है।
  • मनमाना बहिष्करण:
    • केंद्र और राज्य सरकारों ने आधार के साथ कल्याणकारी लाभों के जुड़ाव को लागू करने के लिये "अल्टीमेटम पद्धति" का नियमित उपयोग किया है।
    • इस पद्धति में यदि प्राप्तकर्त्ता सही समय में लिंकेज निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है, जैसे कि अपने जॉब कार्ड, राशन कार्ड या बैंक खाते को आधार से लिंक करने में विफल होने पर लाभ को वापस ले लिया जाता है या निलंबित कर दिया जाता है।
  • धोखाधड़ी-प्रवृत्त आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS):
    • AePS एक ऐसी सुविधा है जो किसी ऐसे व्यक्ति को सक्षम बनाती है जिसके पास आधार से जुड़ा खाता है, वह भारत में कहीं से भी "बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट" के साथ बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के माध्यम से पैसे निकाल सकता है- एक तरह का मिनी-एटीएम।
      • भ्रष्ट व्यापार कॉरेस्पोंडेंट द्वारा इस सुविधा का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया गया है।

आगे की राह

  • ज़रूरतमंदों को निरंतर लाभ सुनिश्चित करना:
    • उन नामों का अग्रिम प्रकटीकरण, जिन्हें हटाए जाने की संभावना है, साथ ही प्रस्तावित विलोपन का कारण।
    • प्रभावित लोगों को कारण बताओ नोटिस जारी करना और उन्हें जवाब देने या अपील करने का अवसर (पर्याप्त समय के साथ) प्रदान करना।
    • दिनांक और कारण सहित विलोपन के सभी मामलों का पूर्व एवं पश्चात प्रकटीकरण।
  • ठोस सुरक्षा उपायों की आवश्यकता:

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)  

  1. आधार कार्ड का उपयोग नागरिकता या अधिवास के प्रमाण के रूप में किया जा सकता हैै।
  2. एक बार जारी होने के बाद आधार संख्या को जारीकर्त्ता प्राधिकारी द्वारा समाप्त या छोड़ा नहीं जा सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (d)

  • आधार प्लेटफॉर्म सेवा प्रदाताओं को निवासियों की पहचान को सुरक्षित और त्वरित तरीके से इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रमाणित करने में मदद करता है, जिससे सेवा वितरण अधिक लागत प्रभावी एवं कुशल हो जाता है। भारत सरकार और UIDAI के अनुसार आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
  • हालाँकि UIDAI ने आकस्मिकताओं का एक सेट भी प्रकाशित किया है जो उसके द्वारा जारी आधार अस्वीकृति के लिये उत्तरदायी है। मिश्रित या विषम बायोमेट्रिक जानकारी वाला आधार निष्क्रिय किया जा सकता है। आधार का लगातार तीन वर्षों तक उपयोग न करने पर भी उसे निष्क्रिय किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू


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