भारतीय अर्थव्यवस्था
SRVA और रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण
प्रिलिम्स के लिये: भारतीय रिज़र्व बैंक, विशेष रुपए वोस्ट्रो खाते, ट्रेजरी बिल, सरकारी प्रतिभूतियाँ, एकीकृत भुगतान इंटरफेस
मेन्स के लिये: भारतीय मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ और चुनौतियाँ, वृद्धि एवं विकास
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक ने विशेष रुपए वोस्ट्रो खाते (SRVA) रखने वाले अनिवासियों को अधिशेष शेष राशि को सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने की अनुमति दी है। साथ ही, बैंकों के लिये SRVA खोलने की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता भी हटा दी है। ये कदम रुपए में व्यापार को बढ़ावा देने और भारतीय रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के उद्देश्य से उठाए गए हैं।
विशेष रुपए वोस्ट्रो खाते (SRVA) क्या हैं?
- परिचय: SRVA ऐसे खाते हैं जो विदेशी संस्थाओं द्वारा भारतीय बैंकों में खोले जाते हैं। ये भारतीय रुपए में अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक लेनदेन के निपटान को सुगम बनाते हैं।
- वर्ष 2022 में शुरू की गई SRVA व्यवस्था निर्यातकों और आयातकों को सीधे रुपए में व्यापार का बीजक जारी करने तथा उसका निपटान करने की सुविधा प्रदान करती है।
- SRVA के माध्यम से रुपए को बढ़ावा देने हेतु RBI के उपाय: अब SRVA रखने वाली अनिवासी संस्थाएँ अपनी रुपए की अधिशेष शेष राशि को केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों (G-secs) और ट्रेजरी बिलों में निवेश कर सकती हैं।
- पहले अधिकृत डीलर (AD) बैंकों को विदेशी संवाददाता बैंकों के लिये SRVA खोलने से पूर्व RBI की अनुमति लेनी पड़ती थी। अब AD बैंक बिना RBI की अनुमति लिये स्वयं SRVA खोल सकते हैं।
- इसका उद्देश्य रुपए-आधारित व्यापार निपटान के परिचालन में तेज़ी लाना है।
- पहले अधिकृत डीलर (AD) बैंकों को विदेशी संवाददाता बैंकों के लिये SRVA खोलने से पूर्व RBI की अनुमति लेनी पड़ती थी। अब AD बैंक बिना RBI की अनुमति लिये स्वयं SRVA खोल सकते हैं।
- महत्त्व: भारतीय रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देता है। द्विपक्षीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर जैसी कठोर मुद्राओं पर निर्भरता कम करता है।
- अधिशेष रुपए को भारतीय सरकारी प्रतिभूतियों में सार्थक निवेश हेतु प्रेरित करता है।
- अधिशेष रुपए को भारतीय सरकारी प्रतिभूतियों में सार्थक निवेश हेतु प्रेरित करता है।
रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण क्या है?
- परिचय: रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण का अर्थ है अमेरिकी डॉलर जैसी प्रमुख विदेशी मुद्रा में अनिवार्य रूपांतरण के बिना सीमा पार व्यापार, निवेश और वित्तीय लेनदेन में इसके उपयोग को बढ़ावा देना।
- लाभ:
- संवेदनशीलता में कमी: डॉलर जैसी विदेशी मुद्राओं पर कम निर्भरता अर्थव्यवस्था को वैश्विक संकटों और मुद्रा की कमी से बचाती है।
- भारतीय रुपए में व्यापार निपटाने से हेजिंग लागत कम होती है और व्यवसायों को मुद्रा अस्थिरता से सुरक्षा मिलती है, जिससे प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ती है।
- विदेशी मुद्रा भंडार का दबाव कम: बड़े पैमाने पर USD/EUR भंडार रखने की आवश्यकता घटती है, जिससे संसाधन अन्य प्राथमिकताओं के लिये उपलब्ध होते हैं।
- घाटे के वित्तपोषण में सहायता: रुपए की वैश्विक स्वीकृति सरकार को रुपए-आधारित बॉण्ड जारी कर विदेशों से पूंजी प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है।
- बाज़ारों को मज़बूती: भारतीय मुद्रा परिसंपत्तियों के लिये अधिक विदेशी मांग से भारतीय बॉण्ड और इक्विटी बाज़ार में वृद्धि हो रही है, जिससे दीर्घकालिक पूंजी आकर्षित हो रही है।
- संवेदनशीलता में कमी: डॉलर जैसी विदेशी मुद्राओं पर कम निर्भरता अर्थव्यवस्था को वैश्विक संकटों और मुद्रा की कमी से बचाती है।
- नकारात्मक प्रभाव: वैश्विक अस्थिरता के प्रति जोखिम बढ़ जाता है और मौद्रिक प्रबंधन जटिल हो जाता है।
- यदि उचित नियमन न हो, तो बड़े पैमाने पर विदेशी भागीदारी शेयर या ऋण बाज़ार को अस्थिर कर सकती है।
- यदि उचित नियमन न हो, तो बड़े पैमाने पर विदेशी भागीदारी शेयर या ऋण बाज़ार को अस्थिर कर सकती है।
रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण में क्या चुनौतियाँ हैं?
- सीमित वैश्विक स्वीकृति: पूँजी खाते पर INR पूरी तरह परिवर्तनीय नहीं है, जिसके कारण इसका उपयोग वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में सीमित रहता है।
- कंटीन्यूअस लिंक्ड सेटलमेंट (CLS) जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म पर INR की अनुपस्थिति निपटान दक्षता को सीमित करती है।
- विदेश में INR तरलता की कमी: विदेशी वित्तीय प्रणालियों में आसानी से उपलब्ध INR तरलता का अभाव, रुपए में निपटान की सुविधा को बाधित करता है।
- नियामक और दस्तावेज़ी जटिलताएँ: सख्त KYC मानदंड, जो RBI और SEBI के बीच असंगत हैं, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के लिये बाधा का कार्य करते हैं।
- INR में अपर्याप्त व्यापार बीजक: भारत के बाह्य व्यापार का बड़ा हिस्सा अब भी USD या अन्य परिवर्तनीय मुद्राओं में बीजक और निपटान किया जाता है।
- वैश्विक स्तर पर INR-आधारित भुगतान अवसंरचना का अभाव: UPI, रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम (RTGS) और रुपे का विदेशी भुगतान प्रणालियों से सीमित एकीकरण, सीमा-पार लेनदेन को बाधित करता है।
- भूराजनैतिक और मुद्रा प्रभुत्व: वैश्विक आरक्षित और व्यापारिक मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर (USD) का प्रभुत्व एक संरचनात्मक बाधा उत्पन्न करता है।
- जब तक भारत एक प्रमुख व्यापारिक और वित्तीय केंद्र नहीं बनता, तब तक देश INR को अपनाने में संकोच कर सकते हैं।
रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण हेतु उठाए गए प्रमुख कदम
- SVRA: 22 देशों के साथ लागू किये गए ताकि रुपए में व्यापारिक निपटान को सुगम बनाया जा सके।
- केंद्रीय बैंकों के साथ समझौता ज्ञापन (MoU): UAE, इंडोनेशिया, मालदीव आदि के साथ स्थानीय मुद्राओं में द्विपक्षीय व्यापार निपटान हेतु हस्ताक्षर किये गए।
- UPI का वैश्विक विस्तार: जुलाई 2025 तक एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) सात देशों (UAE, सिंगापुर, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, फ्राँस और मॉरीशस) में परिचालित है।
- रणनीतिक कार्ययोजना 2024–25 (RBI): इसमें भारत के बाहर निवास करने वाले व्यक्तियों (PROI) को विदेश में INR खाते खोलने की अनुमति देना, भारतीय बैंकों को PROI को रुपए में ऋण देने की अनुमति देना तथा विशेष अनिवासी रुपए खाते (SNRR) व SRVA के माध्यम से FDI तथा पोर्टफोलियो निवेश को सक्षम करना शामिल है।
- RBI ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (FEMA) को उदार बनाया ताकि सीमा-पार व्यापार निपटान के लिये रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण बढ़ाया जा सके।
- मुद्रा स्वैप समझौते: 20 से अधिक देशों के साथ हस्ताक्षर किये गए, जो तरलता समर्थन और स्थानीय मुद्राओं में व्यापार निपटान को सुगम बनाते हैं।
- मसाला बॉण्ड: वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने के लिये रुपए-आधारित बॉण्ड जारी किये गए।
रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से संबंधित RBI की सिफारिशें:
- सीमा पार निपटान तंत्र को सुदृढ़ करना: अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिये पर्याप्त INR तरलता द्वारा समर्थित स्थानीय मुद्रा निपटान (LCS) ढाँचे को विकसित तथा मानकीकृत करना।
- वित्तीय बाज़ार अवसंरचना को सुदृढ़ बनाना: वैश्विक 24×5 INR विदेशी मुद्रा बाज़ार का निर्माण करना, विदेशी शाखाओं के माध्यम से अंतर-बैंक व्यापार को सक्षम बनाना तथा CCIL प्लेटफॉर्म घंटों को विस्तारित करना।
- स्थिर निष्क्रिय प्रवाह को आकर्षित करने के क्रम में जेपी मॉर्गन जैसे सूचकांकों में G‑sec को शामिल करने की सुविधा प्रदान करना।
- KYC और ऑनबोर्डिंग को सरल बनाना: RBI, SEBI और वैश्विक हितधारकों के बीच KYC संबंधी मानदंडों में सामंजस्य स्थापित करना। प्रोसेसिंग में देरी को कम करने के क्रम में सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (SWIFT) पुष्टिकरण के साथ डिजिटल हस्ताक्षर एवं स्कैन किये गए दस्तावेज़ स्वीकार करना।
- IMF की SDR बास्केट में भारतीय रुपए को शामिल करना: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के विशेष आहरण अधिकार बास्केट में शामिल करने का लक्ष्य रखकर भारतीय रुपए को वैश्विक आरक्षित मुद्रा के रूप में स्थापित करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: Q. रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से डॉलर पर निर्भरता कम होती है, लेकिन बाहरी जोखिमों का खतरा भी बना रहता है। महत्त्वाकांक्षा एवं धारणीयता के बीच भारत किस प्रकार संतुलन बना सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न: रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015)
(a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना
(b) रुपए के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना
(c) रुपए को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपए में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुज्ञा प्रदान करना
(d) भारत में मुद्राओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार विकसित करना
उत्तर: (c)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध
WTO और बहुपक्षीय व्यापार का भविष्य
प्रिलिम्स के लिये: विश्व व्यापार संगठन, मुक्त व्यापार समझौता, टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौता, विशेष और विभेदक उपचार
मेन्स के लिये: वैश्विक व्यापार प्रशासन में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका और चुनौतियाँ, 21वीं सदी में बहुपक्षवाद बनाम संरक्षणवाद
चर्चा में क्यों?
अमेरिका द्वारा एकतरफा शुल्क उपायों में वृद्धि ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) की प्रभावकारिता और भविष्य पर वैश्विक चर्चा को पुनः सक्रिय कर दिया है, जिससे व्यापार विवादों को सुलझाने तथा निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने में बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की घटती भूमिका को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
वैश्विक व्यापार गतिशीलता को आकार देने में विश्व व्यापार संगठन की क्या भूमिका है?
- परिचय: वर्ष 1995 में मारकेश समझौते (1994) के तहत स्थापित, उरुग्वे दौर की वार्ता (1986–94) के बाद। इसने GATT का स्थान लिया।
- इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
- यह वस्तुओं, सेवाओं और बौद्धिक संपदा में व्यापार को शामिल करता है (जबकि GATT का फोकस केवल वस्तुओं पर था)।
- इसके 166 सदस्य हैं (जो विश्व व्यापार का 98% प्रतिनिधित्व करते हैं)। भारत जनवरी 1995 से WTO का सदस्य है और जुलाई 1948 से GATT का सदस्य रहा है।
- WTO के प्रमुख समझौते हैं: TRIMS (व्यापार-संबंधित निवेश उपाय), TRIPS (बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधित पहलू) और AoA (एग्रीमेंट ओन एग्रीकल्चर)।
- भूमिका:
- नियम-निर्माण और वार्ता मंच: व्यापार समझौतों पर बातचीत के लिये बहुपक्षीय मंच प्रदान करता है (उदाहरण: ट्रेड फैसिलिटेशन एग्रीमेंट 2013)।
- व्यापार उदारीकरण एवं पूर्वानुमान: शुल्क/बाधाओं को कम करने की मांग करता है, मोस्ट फेवर्ड नेशन सिद्धांत को बढ़ावा देता है और एक स्थिर, नियम-आधारित वैश्विक व्यापारिक वातावरण बनाता है।
- पारदर्शिता और निगरानी: ट्रेड पॉलिसी रिव्यू और सब्सिडी, शुल्क तथा नियमों की अनिवार्य सूचनाओं के माध्यम से जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
- क्षमता निर्माण और तकनीकी सहायता: कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं को वैश्विक व्यापार में एकीकृत होने में समर्थन करता है (उदाहरण: WTO एिड-फॉर-ट्रेड पहल, सबसे कम विकसित देशों के लिये क्षमता कार्यक्रम)।
- व्यापार और विकास लक्ष्यों का संतुलन: व्यापार को सतत् विकास, खाद्य सुरक्षा और जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखित करने का प्रयास करता है (उदाहरण: SDG 14 से जुड़ी मत्स्य पालन सब्सिडी)।
- सुरक्षात्मक नीतियों को रोकना और सहयोग को बढ़ावा देना: वैश्विक व्यापार रेफरी के रूप में कार्य करता है, विशेष रूप से संकट के दौरान (उदाहरण के लिये, कोविड-19 के दौरान, WTO ने चिकित्सा आपूर्ति पर निर्यात प्रतिबंधों की निगरानी की)।
बहुपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने में विश्व व्यापार संगठन की प्रभावशीलता को कौन-से कारक सीमित कर रहे हैं?
- विवाद निपटान में निष्क्रियता: WTO की अपीलीय निकाय वर्ष 2019 से कार्यशील नहीं है, जिससे बहुपक्षीय विवाद निपटान प्रणाली की विश्वसनीयता कमज़ोर हुई है और ‘व्यर्थ अपील’ को बढ़ावा मिला है।
- अमेरिका वर्ष 2017 से नए न्यायाधीशों की नियुक्ति को न्यायिक सक्रियता के आधार पर रोक रहा है।
- वार्ता गतिरोध: विकासशील देशों के लिये अधिक न्यायसंगत व्यापार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया दोहा विकास दौर (2001) कृषि, सब्सिडी और बाज़ार पहुँच जैसे मुद्दों पर असफल हो गया, जिससे बहुपक्षीय व्यापार वार्ताओं में उत्तर–दक्षिण के बीच गहरा विभाजन उजागर हो गया।
- क्षेत्रीय व्यापार का उदय: मुक्त व्यापार समझौतों (FTA), द्विपक्षीय संधियों तथा क्षेत्रीय गुटों (जैसे EU, ASEAN) की बढ़ती संख्या ने वैश्विक व्यापार को छोटे-छोटे वरीयतापूर्ण व्यवस्थाओं में बाँट दिया है, जिससे WTO का बहुपक्षीय दृष्टिकोण कमज़ोर हुआ है।
- संरक्षणवाद का उदय: टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते (GATT) के अनुच्छेद XXI (सुरक्षा अपवाद) का बढ़ता उपयोग, जैसे अमेरिका–चीन व्यापार युद्ध में एकतरफा टैरिफ लगाने हेतु, बहुपक्षीय व्यापार नियमों में विश्वास को कमज़ोर करता है।
- अमेरिका–चीन तनाव, रूस–यूक्रेन संघर्ष और बड़े क्षेत्रीय व्यापार समझौते (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी) ने WTO को और अधिक हाशिये पर धकेल दिया है, जिससे यह बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था के केंद्रीय स्तंभ के रूप में अपनी भूमिका खोने के खतरे का सामना कर रहा है।
- विकसित होते व्यापार आयामों को संबोधित करने में अंतराल: WTO डिजिटल व्यापार, ई-कॉमर्स, जलवायु-संबद्ध व्यापार अवरोधों तथा हरित प्रौद्योगिकियों जैसे नए मुद्दों को प्रभावी रूप से संबोधित करने में संघर्ष कर रहा है, जिससे आज की बहुपक्षीय व्यापार शासन प्रणाली में इसकी प्रासंगिकता कम होती जा रही है।
- उदाहरण के लिये, ई-कॉमर्स पर सीमा शुल्क न लगाने का वर्ष 1998 का स्थगन (moratorium) लगातार बढ़ाया गया है, किंतु इस पर स्थायी नियम अब तक सहमति से तय नहीं हो पाए हैं।
- विकास असमानताएँ और स्व-नामांकन की समस्या: WTO का विशेष एवं भिन्न उपचार (S&DT) प्रावधान विकासशील देशों को व्यापार में अनुकूलता प्रदान करता है, किंतु “विकासशील देश” की स्पष्ट परिभाषा के अभाव में चीन जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाएँ स्वयं को विकासशील घोषित कर इन लाभों का दावा करती हैं, जिससे विवाद उत्पन्न होते हैं।
विकसित होते व्यापार परिदृश्य में WTO की भूमिका को सशक्त बनाने हेतु कौन-से सुधार महत्त्वपूर्ण हैं?
- नियम-आधारित विवाद निपटान को पुनर्जीवित करना: अमेरिका की चिंताओं का समाधान करते हुए अपीलीय निकाय को पुनः सक्रिय करना, सख्त समयसीमाएँ निर्धारित करना तथा घरेलू नीतिगत स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिये।
- पारदर्शिता के माध्यम से विश्वास पुनर्निर्माण: WTO की व्यापार नीति समीक्षा तंत्र (TPRM) को सशक्त बनाना ताकि राष्ट्रीय नीतियों के पार्श्व प्रभावों का विश्लेषण हो सके।
- सदस्यों को डेटा साझा करने और संयुक्त आकलन करने हेतु प्रोत्साहित करना, जिससे प्रभावों की साझा समझ विकसित हो सके।
- अन्य संस्थाओं के साथ साझेदारी: IMF, विश्व बैंक, UNCTAD और जलवायु संस्थाओं के साथ सहयोग को सुदृढ़ करना ताकि व्यापार को वित्त, विकास और सततता लक्ष्यों से एकीकृत किया जा सके।
- सुधार तंत्र का संस्थानीकरण: स्थायी WTO सुधार परिषद का गठन करना, जिसमें घूर्णनशील नेतृत्व हो, ताकि सुधार की गति केवल मंत्रिस्तरीय बैठकों तक सीमित न रहे और आगे भी बनी रहे।
- समानतापूर्ण वैश्वीकरण की ओर: WTO को डिजिटल व्यापार, सीमा-पार डेटा, औद्योगिक नीति और हरित सब्सिडियों पर नियम बनाते हुए समानतापूर्ण वैश्वीकरण का संरक्षक बनने की दिशा में विकसित होना चाहिये।
बहुपक्षीय व्यापार शासन को सशक्त बनाने में भारत क्या भूमिका निभा सकता है?
- ग्लोबल साउथ का प्रवक्ता: भारत WTO वार्ताओं में विकासशील एवं अल्प-विकसित देशों का प्रवक्ता बन सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा, सब्सिडी और न्यायसंगत बाज़ार पहुँच से संबंधित उनकी चिंताओं का समाधान सुनिश्चित हो।
- संरक्षणवाद और उदारीकरण के बीच संतुलन: भारत संतुलित उदारीकरण की वकालत कर सकता है, जो विकासात्मक आवश्यकताओं का सम्मान करे तथा प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की एकतरफा टैरिफ वृद्धि और संरक्षणवादी प्रवृत्तियों का विरोध करे।
- सतत् एवं समावेशी व्यापार का प्रवर्तक: भारत व्यापार को सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) से जोड़ने की पहल कर सकता है, जिसमें जलवायु-न्यायसंगत ढाँचे की वकालत, हरित संरक्षणवाद (जैसे EU CBAM) का प्रतिरोध, और मिशन LiFE व नवीकरणीय ऊर्जा मॉडल का प्रदर्शन सम्मिलित हो।
- आदर्श अर्थव्यवस्था के रूप में प्रस्तुति: अपनी बढ़ती विनिर्माण क्षमता (PLI योजनाएँ), डिजिटल अर्थव्यवस्था (UPI) और सेवा क्षेत्र की मज़बूती के साथ भारत स्वयं को एक ऐसे उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर सकता है, जो विकास और वैश्विक एकीकरण के बीच संतुलन स्थापित करता है।
बहुपक्षवाद क्या है?
- परिचय: बहुपक्षवाद का आशय ऐसी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्रणाली से है जिसमें तीन या अधिक राज्य (या अभिकर्त्ता) साझा नियमों तथा मानदंडों के साथ संबंधित संस्थानों द्वारा निर्देशित सामान्य मुद्दों पर एक साथ कार्य करते हैं।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- नियम-आधारित व्यवस्था: समझौतों और संस्थाओं से अनुकूल ढाँचे का निर्माण होता है (जैसे, विश्व व्यापार संगठन के नियम)।
- समावेशिता: विकसित, विकासशील और अल्पविकसित देशों को एक साथ लाना।
- साझा उत्तरदायित्व: वैश्विक मुद्दों (जलवायु परिवर्तन, महामारी, आतंकवाद) को हल करने में साझे सहयोग को बढ़ावा देना।
- वैश्विक मुद्दे: सीमाओं (महासागर, साइबरस्पेस, पर्यावरण) से परे मुद्दों पर सहयोग सुनिश्चित करना।
- बहुपक्षवाद के उदाहरण:
- राजनैतिक एवं सुरक्षात्मक: संयुक्त राष्ट्र (UN)।
- आर्थिक: विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक।
- जलवायु एवं पर्यावरण: पेरिस समझौता।
- महत्त्व: इससे सामान्य मानक निर्धारित होने के क्रम में हवाई यात्रा, नौवहन, संचार और व्यापार जैसी वैश्विक प्रणालियों से संबंधित अराजकता में कमी आती है।
निष्कर्ष:
राष्ट्रों के बीच सहयोग, अनुकूलन और समान विकास को बढ़ावा देने के क्रम में बहुपक्षीय व्यापार ढाँचे वैश्विक आर्थिक स्थिरता की आधारशिला बने हुए हैं। इस संदर्भ में नियम-आधारित वैश्विक व्यापार हेतु सबसे मज़बूत मंच के रूप में विश्व व्यापार संगठन अपूरणीय बना हुआ है। समय पर सुधारों एवं नवीन सहयोग के साथ, यह नए युग की व्यापारिक वास्तविकताओं के अनुरूप विकसित हो सकता है तथा बहुपक्षवाद के आधार के रूप में अपनी पहचान पुनः स्थापित कर सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: विश्व व्यापार संगठन की कम होती भूमिका के मद्देनजर व्यापार में बहुपक्षवाद को लगातार चुनौती मिल रही है। वैश्विक व्यापार में बहुपक्षवाद को पुनर्जीवित करने के उपाय सुझाइये। https://www.youtube.com/watch?v=GGPpTvzSKm0 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. 'एग्रीमेंट ओन एग्रीकल्चर', 'एग्रीमेंट ओन द एप्लीकेशन ऑफ सेनेटरी एंड फाइटोसेनेटरी मेज़र्स और 'पीस क्लाज़' शब्द प्रायः समाचारों में किसके मामलों के संदर्भ में आते हैं; (2015) (a) खाद्य और कृषि संगठन उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित में से किस संदर्भ में कभी-कभी समाचारों में 'एम्बर बॉक्स, ब्लू बॉक्स और ग्रीन बॉक्स' शब्द देखने को मिलते हैं? (2016) (a) WTO मामला उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. यदि 'व्यापार युद्ध' के वर्तमान परिदृश्य में विश्व व्यापार संगठन को जिंदा बने रहना है, तो उसके सुधार के कौन-कौन से प्रमुख क्षेत्र हैं विशेष रूप से भारत के हित को ध्यान में रखते हुए? (2018) प्रश्न. “विश्व व्यापार संगठन के अधिक व्यापक लक्ष्य और उद्देश्य वैश्वीकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रबंधन एवं प्रोन्नति करना है। लेकिन वार्ताओं की दोहा परिधि मृत्योन्मुखी प्रतीत होती है, जिसका कारण विकसित तथा विकासशील देशों के बीच मतभेद है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस पर चर्चा कीजिये। (2016) |

