प्रारंभिक परीक्षा
भारत ने मालदीव की सहायता के लिये 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ट्रेजरी बिल पारित किया
- 03 Jun 2025
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स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत ने वर्ष 2019 में शुरू हुए विशेष गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट (G2G) ढाँचे के तहत 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ट्रेजरी बिल को आगे बढ़ाकर (नवीनीकृत करके) मालदीव को वित्तीय सहायता दी है।
भारत-मालदीव द्विपक्षीय संबंधों के महत्त्वपूर्ण आयाम क्या हैं?
- ऐतिहासिक संबंध: भारत ने वर्ष 1965 में मालदीव को मान्यता दी और वर्ष 1972 में माले में अपना मिशन स्थापित किया। दोनों देशों ने SAARC की स्थापना में भाग लिया हैं और वे SAFTA समझौते के हस्ताक्षरकर्त्ता भी हैं।
- व्यापार और अर्थव्यवस्था: भारत और मालदीव ने वर्ष 1981 में एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिससे द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा मिला।
- वर्ष 2024 में, भारत ने मालदीव को 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता और 3,000 करोड़ रुपए की द्विपक्षीय मुद्रा अदला-बदली प्रदान की, जिससे उसकी आर्थिक सहायता मज़बूत हुई।
- इसके अतिरिक्त, SBI ने मालदीव के लिये 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ट्रेजरी बिल जारी किये।
- वर्ष 2022 में भारत मालदीव का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना, जबकि वर्ष 2023 में वह उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।
- वर्ष 2022 में भारतीय व्यापारिक यात्रियों के लिये ए वीज़ा-मुक्त प्रवेश से वाणिज्यिक संबंधों में और वृद्धि हुई।
- वर्ष 2024 में भारत और मालदीव ने सीमा पार व्यापार के लिये स्थानीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु एक रूपरेखा को अंतिम रूप दिया है।
- पर्यटन और संस्कृति: पर्यटन मालदीव के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 25% और कुल रोज़गार का 70% योगदान देता है। भारत वर्ष 2020 से मालदीव के लिये शीर्ष पर्यटक स्रोत बना हुआ है। वर्ष 2022 में हुई 'ओपन स्काई संधि' (Open Skies Treaty-OST) ने दोनों देशों के बीच हवाई संपर्क को और सशक्त बनाया।
- रक्षा साझेदार: भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति और SAGAR (अब महासागर - MAHASAGAR) पहल के तहत भारत ने मालदीव को कई महत्त्वपूर्ण रक्षा सहायता प्रदान की है, जिनमें ऑपरेशन कैक्टस (1988) शामिल है।
नोट
- आठ डिग्री चैनल भारतीय मिनिकॉय (लक्षद्वीप समूह का हिस्सा) को मालदीव से अलग करता है।
ट्रेजरी बिल (T-बिल) क्या हैं?
- T-बिल भारत सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के माध्यम से जारी किये जाने वाले अल्पकालिक ऋण उपकरण हैं।
- ये सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) का हिस्सा होती हैं और अल्पकालिक निधि एकत्रित करने में सहायता करती हैं।
- ये शून्य-कूपन प्रतिभूतियाँ (Zero-Coupon Securities) होती हैं, अर्थात् इन पर आवधिक ब्याज भुगतान नहीं होता। इसके बजाय, इन्हें अंकित मूल्य से कम पर जारी किया जाता है और परिपक्वता पर पूर्ण अंकित मूल्य पर भुनाया जाता है।
- G-Sec केंद्रीय या राज्य सरकारों द्वारा जनता से निधि उधार लेने के लिये जारी किये जाने वाले व्यापार योग्य ऋण उपकरण हैं, जिनमें एक निर्दिष्ट तिथि पर मूलधन चुकाने का संविदात्मक दायित्व होता है।
- इन्हें 91, 182 और 364 दिनों की परिपक्वता अवधि के साथ जारी किया जाता है तथा इन्हें उनके अंकित मूल्य से कम मूल्य पर बेचा जाता है। निवेशकों को लाभ क्रय मूल्य और परिपक्वता राशि के अंतर से प्राप्त होता है।
- इन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की नीलामी के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धी और गैर-प्रतिस्पर्द्धी बोली प्रक्रिया द्वारा जारी किया जाता है तथा इनकी अल्पकालिक अवधि के कारण इनकी तरलता (liquidity) अधिक होती है।
- T-बिल्स से प्राप्त लाभ अल्पकालिक पूंजीगत लाभ (Short-Term Capital Gains) के रूप में कर योग्य होता है, और इन पर मिलने वाला निश्चित प्रतिफल मुद्रास्फीति के कारण प्रभावित हो सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, 'खुला बाज़ार प्रचालन' किसे निर्दिष्ट करता है? (2013) (a) अनुसूचित बैंकों द्वारा RBI से ऋण लेना उत्तर: (c) प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से गैर-वित्तीय ऋण में सम्मिलित है? (2020)
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