इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 10 Mar, 2023
  • 52 min read
भूगोल

हिमनद का पीछे हटना

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लेशियल रिट्रीट/हिमनद का पीछे हटना, बाढ़, भूस्खलन, पेनसिलुंगपा ग्लेशियर (PG), डुरुंग-द्रुंग ग्लेशियर (DDG)।

मेन्स के लिये:

हिमनद गतिकी को प्रभावित करने वाले कारक, हिमनद के पीछे हटने का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों/हिमनदों के हाल के अध्ययनों के अनुसार, इस पर्वत शृंखला के विभिन्न क्षेत्रों में पीछे हटने की दर और द्रव्यमान संतुलन में व्यापक परिवर्तनशीलता का कारण मुख्य रूप से इस क्षेत्र की स्थलाकृति (Topography ) और जलवायु है।

  • हालाँकि ग्लेशियरों की परिवर्तनीय वापसी दर (Variable Retreat Rates of Glaciers) और अपर्याप्त सहायक क्षेत्र डेटा ने जलवायु परिवर्तन प्रभाव की एक सुसंगत तस्वीर विकसित करना चुनौतीपूर्ण बना दिया है।

हिमनद गतिकी को प्रभावित करने वाले कारक:

  • वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (उत्तराखंड) की एक टीम ने वर्ष 1971 और 2019 के बीच हिमनद परिवर्तन के तुलनात्मक अध्ययन हेतु अलग-अलग विशेषताओं वाले दो हिमनदों पेनसिलुंगपा ग्लेशियर (लद्दाख) और डुरुंग-द्रुंग ग्लेशियर (लद्दाख) का अध्ययन किया।
    • टीम ने ग्रीष्म ऋतु में हिम/बर्फ द्रव्यमान में कमी (ग्रीष्मकालीन पृथक्करण) को लेकर मलबे के आवरण के प्रभाव एवं ग्लेशियरों के टर्मिनस रिसेसन (पीछे हटने का) का मूल्यांकन किया।
  • उनके द्वारा किया गया अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि ग्लेशियर के पीछे हटने की दर जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर की स्थलाकृतिक अवस्थिति तथा आकारिकी द्वारा नियंत्रित होती है।
    • उन्होंने अपने अध्ययन में यह भी पाया कि मलबे के परत की मोटाई जलवायु के प्रति हिमनदों की प्रतिक्रिया को महत्त्वपूर्ण रूप से परिवर्तित करती है।
  • तुंड ज्यामिति, हिमनदों का आकार, ऊँचाई सीमा, प्रवणता, स्वरूप, मलबे के आवरण के साथ-साथ सुप्रा और प्रोग्लेशियल झीलों की उपस्थिति जैसे अन्य कारक भी विषम हिमनदों की गतिशीलता को प्रभावित करते हैं।

हिमनद निवर्तन क्या है?

  • परिचय:
    • हिमनदों का पीछे हटना हिम संचय में कमी या हिम विगलन में वृद्धि के कारण समय के साथ हिमनदों के सिकुड़ने या आकार में कमी की प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
  • कारण:
  • प्रभाव:
    • हिमनदों के पीछे हटने के कारण यह कई गंभीर पर्यावरणीय प्रभावों को उत्पन्न कर सकता है, जिसमें जल की उपलब्धता तथा स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव एवं बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है।
    • इसके अलावा हिमनद हिम क्षय समुद्र के बढ़ते जलस्तर में योगदान कर सकता है, जिसका विश्व भर के तटीय समुदायों और पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

glaciel-retreat

 प्रिलिम्स: UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. पृथ्वी पर जल के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. नदियों और झीलों में पानी की मात्रा भूमिगत जल की मात्रा से अधिक है।
  2. ध्रुवीय बर्फ की चोटियों और हिमनदों में पानी की मात्रा भूजल की मात्रा से अधिक होती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 तथा 2 दोनों
(d) न तो और 1 न ही 2

उत्तर: b


प्रश्न. निम्नलिखित में से किस परिघटना ने जैव-विकास को प्रभावित किया होगा? (2014)

  1. महाद्वीपीय विस्थापन
  2. हिमनद चक्र

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 तथा 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: c


मेन्स:

प्रश्न.आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के हिमनदों के पिघलने से पृथ्वी पर मौसम के पैटर्न एवं मानव गतिविधियों पर अलग-अलग प्रभाव कैसे पड़ता है? व्याख्या कीजिये। (2021)

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

UN हाई सी ट्रीटी

प्रिलिम्स के लिये:

BBNJ, UNCLOS, UNGA, कोविड-19, 1958 जिनेवा अभिसमय, EEZ

मेन्स के लिये:

ट्रीटी ऑन हाई सी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों की समुद्री जैवविविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये हाई सी ट्रीटी पर सहमति व्यक्त की।

  • अमेरिका के न्यूयॉर्क में राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैवविविधता (BBNJ) पर अंतर सरकारी सम्मेलन (IGC) के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्त्व में बातचीत के दौरान इस पर सहमति बनी थी।
  • संधि को औपचारिक रूप से स्वीकृति प्रदान करना अभी बाकी है क्योंकि सदस्यों को अभी इसकी पुष्टि करनी है। एक बार स्वीकृति मिल जाने के बाद यह संधि कानूनी रूप से बाध्यकारी होगी।

हाई सी क्या है?

  • परिचय:
    • हाई सी पर 1958 के जेनेवा अभिसमय के अनुसार, समुद्र के वे हिस्से जो प्रादेशिक जल या किसी देश के आंतरिक जल में शामिल नहीं हैं, हाई सी के रूप में जाने जाते हैं।
    • यह किसी देश के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (समुद्र तट से 200 समुद्री मील यानी 370 किमी. तक फैला क्षेत्र) से परे ऐसा क्षेत्र है जहाँ के जीवित और निर्जीव संसाधनों पर एक राष्ट्र का अधिकार होता है।
    • हाई सी में संसाधनों के प्रबंधन और सुरक्षा के लिये कोई भी देश ज़िम्मेदार नहीं है।
  • महत्त्व:
    • हाई सी विश्व के महासागरीय क्षेत्र का 60% से अधिक हिस्सा है और पृथ्वी की सतह के लगभग आधे हिस्से को आच्छादित करते हैं, जो उन्हें समुद्री जीवन का केंद्र बनाता है।
    • ये लगभग 2.7 लाख ज्ञात प्रजातियों के निवास स्थान हैं, जिनमें से कई की खोज की जानी बाकी है।
    • ये कार्बन के अवशोषण के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में कमी, सौर विकिरण के संग्रहण तथा विश्व भर में उष्मा वितरित कर ग्रहों की स्थिरता में मौलिक भूमिका निभाते हुए जलवायु को नियंत्रित करते हैं।
      • इसके अलावा महासागर संसाधनों तथा सेवाओं के स्रोत हैं, जिनमें समुद्री भोजन एवं कच्चे माल, आनुवंशिक व औषधीय संसाधन, वायु शोधन, जलवायु विनियमन और सौंदर्य, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक सेवाएँ शामिल हैं।
      • ये मानव अस्तित्व और कल्याण के लिये मौलिक हैं।
  • संकट:
    • ये वातावरण से उष्मा को अवशोषित कर अल नीनो जैसी घटनाओं से प्रभावित हो रहे हैं, और अम्लीकरण के दुष्प्रभाव से भी गुज़र रहे हैं, जिससे सभी समुद्री वनस्पतियों तथा जीवों को संकट में डाल सकते हैं।
      • यदि वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग और अम्लीकरण की प्रवृत्ति लगातार जारी रही तो वर्ष 2100 तक कई हज़ार समुद्री प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।
    • हाई सी मानवजनित दबावों में समुद्र तल खनन, ध्वनि प्रदूषण, रासायनिक एवं तेल रिसाव और आग, अनुपचारित कचरे का निपटान (एंटीबायोटिक सहित), अत्यधिक मत्स्यन गतिविधियाँ, आक्रामक प्रजातियों का परिचय तथा तटीय प्रदूषण शामिल हैं।
    • खतरनाक स्थिति के बावजूद खुले समुद्र सबसे कम संरक्षित क्षेत्रों में शमिल हैं, जिनमें से केवल 1% ही संरक्षित हैं।

हाई सी संधि:

  • पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 1982 में समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) में महासागरों में मौजूद संसाधनों के प्रबंधन के लिये दिशा-निर्देश स्थापित किये गए।
      • हालाँकि हाई सी एक पूर्ण कानूनी प्रणाली के अधीन नहीं थे।
    • चूँकि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग वैश्विक चिंता के रूप में उभरी हैं, अतः महासागरों एवं समुद्री जीवन की रक्षा हेतु अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढाँचे की आवश्यकता महसूस की गई।
    • संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) ने वर्ष 2015 में UNCLOS के ढाँचे के भीतर कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन विकसित करने का निर्णय लिया।
      • इसके बाद BBNJ पर एक कानूनी दस्तावेज़ तैयार करने हेतु IGC की बैठक बुलाई गई।
    • कोविड-19 महामारी के कारण कई रुकावटें आईं, जिससे समय पर वैश्विक प्रतिक्रिया प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न हुई। वर्ष 2022 में यूरोपीय संघ ने तेज़ी से समझौते को अंतिम रूप देने हेतु BBNJ पर उच्च महत्त्वाकांक्षी गठबंधन लॉन्च किया।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • पहुँच और लाभ साझाकरण समिति:
      • यह दिशा-निर्देश तैयार करने के लिये पहुँच और लाभ-साझाकरण समिति की स्थापना करेगा।
      • हाई सी क्षेत्रों में समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से जुड़ी गतिविधियाँ सभी राज्यों के साथ ही मानवता के हित के लिये लाभप्रद होंगी।
      • उन्हें विशेष रूप से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जाना चाहिये।
    • पर्यावरण प्रभाव आकलन:
      • हस्ताक्षरकर्त्ताओं को समुद्री संसाधनों के दोहन से पूर्व पर्यावरण प्रभाव आकलन करना होगा।
      • एक नियोजित गतिविधि से पूर्व, सदस्य को स्क्रीनिंग, स्कोपिंग, प्रभावित समुद्री पर्यावरण के मूल्यांकन, रोकथाम की पहचान और संभावित नकारात्मक प्रभावों का प्रबंधन करना आवश्यक होगा।
    • स्वदेशी समुदाय की सहमति:
      • राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र के बाहर केवल स्थानीय लोगों और समुदायों की "स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति या अनुमोदन एवं भागीदारी" के साथ समुद्री संसाधनों तक पहुँचा जा सकता है, जिन पर उनका नियंत्रण है।
      • कोई भी राज्य राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों के समुद्री आनुवंशिक संसाधनों पर अपने अधिकार का दावा नहीं कर सकता है।
    • समाशोधन गृह/क्लियरिंग हाउस प्रणाली:
      • सदस्यों को संधि के भाग के रूप में स्थापित समाशोधन-गृह प्रणाली (सीएचएम) को अनुसंधान के उद्देश्य, भौगोलिक क्षेत्र के संकलन, प्रायोजकों के नाम आदि जैसे विवरण प्रदान करने होंगे।
    • निवेश:
      • समझौते के भाग के रूप में एक विशेष कोष स्थापित किया जाएगा जिसे विभिन्न दलों के सम्मेलन (COP) द्वारा तय किया जाएगा। जो COP समझौते के कामकाज़ की भी देख-रेख करेगा।
  • महत्त्व:

समुद्र संबंधी अन्य सम्मेलन:

  • महाद्वीपीय कगार (शेल्फ) पर सम्मेलन 1964:
    • यह महाद्वीपीय शेल्फ के प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाने और उनका दोहन करने वाले राज्यों के अधिकारों को परिभाषित एवं सीमांकित करता है।
  • मछली पकड़ने और हाई सी के जीवित संसाधनों के संरक्षण पर सम्मेलन 1966:
    • यह हाई सी के जीवित संसाधनों के संरक्षण संबंधी समस्याओं के समाधान हेतु डिज़ाइन किया गया था, क्योंकि इनमें से कुछ संसाधन आधुनिक तकनीकी प्रगति के कारण अतिदोहन के खतरे में हैं।
  • लंदन अभिसमय 1972:
    • इसका लक्ष्य सभी समुद्री प्रदूषण स्रोतों के प्रभावी नियंत्रण को प्रोत्साहित करना और कचरा एवं अन्य वस्तुओं का सुरक्षित निपटान कर समुद्र को प्रदूषित होने से बचाने के लिये सभी व्यावहारिक कदम उठाना है।
  • MARPOL अभिसमय (1973):
    • इसमें परिचालन या आकस्मिक कारणों से जहाज़ों द्वारा समुद्री पर्यावरण प्रदूषण को शामिल किया गया है।
    • यह तेल, हानिकारक तरल पदार्थ, पैकेज़्ड के रूप में हानिकारक पदार्थ, सीवेज़ और जहाज़ों से उत्पन्न कचरा आदि के कारण होने वाले समुद्री प्रदूषण के विभिन्न रूपों को सूचीबद्ध करता है।

आगे की राह

  • संधि को लागू करने हेतु राष्ट्रीय सरकारों को अभी भी औपचारिक रूप से इस समझौते को अपनाने और इसकी पुष्टि करने की आवश्यकता है।
    • वैश्विक समुदाय को सभी क्षेत्रों में हमारे स्वयं के और समुद्र के जीवन की सुरक्षा हेतु नई हाई सी संधि को प्रभावी ढंग से लागू करने एवं निगरानी करने के लिये मिलकर काम करना चाहिये।
  • बिना किसी संदेह के हाई सी की बेहतर रक्षा और समुद्री संसाधनों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करने से धारणीय ब्लू अर्थव्यवस्था में शिपिंग तथा औद्योगिक मत्स्यन जैसी संभावित उच्च लागत वाली गतिविधियों के संचयी प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी जो लोगों और प्रकृति दोनों को लाभान्वित करेगा।
    • यह उचित समय है कि समुद्र का संरक्षण किया जाए।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

कोर्ट मार्शल

प्रिलिम्स के लिये:

कोर्ट मार्शल, न्यायालयी जाँच (कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी), सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, FIR, दंड प्रक्रिया संहिता।

मेन्स के लिये:

आरोपियों के लिये कोर्ट मार्शल और वैधानिक शरण।

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2020 में जम्मू-कश्मीर के शोपियां ज़िले के अमशीपोरा में तीन लोगों की हत्या में शामिल एक कैप्टन को सैन्य न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। हालाँकि उत्तरी सेना के कमांडर द्वारा पुष्टि किये जाने के पश्चात् सज़ा को अंतिम रूप दिया जाएगा।

  • न्यायालयी जाँच (CoI) के पश्चात् कैप्टन का कोर्ट-मार्शल किया गया था और बाद में सबूतों का विश्लेषण करने पर पाया गया कि कैप्टन के आदेश के तहत सैनिकों ने सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम के अंतर्गत अपने अधिकार की सीमा को पार किया था।

कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया:

  • जब सेना चाहती है कि उसके कर्मियों के खिलाफ लगे आरोपों की जाँच हो, तो वह पहले इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये एक न्यायालयी जाँच (CoI) सुनिश्चित करती है।
  • न्यायालयी जाँच शिकायत की पुष्टि करती है लेकिन सज़ा नहीं दे सकती। COI गवाहों के बयान दर्ज करती है, जो दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 161 के तहत एक पुलिस अधिकारी द्वारा गवाहों की जाँच के समान है।
  • COI के निष्कर्षों के आधार पर आरोपी अधिकारी के लिये कमांडिंग ऑफिसर द्वारा एक अस्थायी आरोप पत्र तैयार किया जाता है।
    • उसके बाद आरोपों को सुना जाता है (जैसे नागरिकों से जुड़े मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त को प्रारंभिक समन देना) फिर साक्ष्य का सारांश दर्ज किया जाता है।
  • एक बार यह प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद एक जनरल कोर्ट मार्शल (General Court Martial- GCM) को नागरिक मामलों के लिये न्यायिक अदालत द्वारा परीक्षण के संचालन के समान आदेश दिया जाता है।

कानूनी प्रावधान:

  • सेना अधिनियम 1950 की धारा 164 के तहत अभियुक्त एक पूर्व-पुष्टि याचिका के साथ-साथ एक पश्च-पुष्टि याचिका दायर कर सकता है।
    • पूर्व-पुष्टि याचिका सेना कमांडर को भेजी जाएगी, जो इसकी विशेषताओं पर विचार करेगा।
    • चूँकि अधिकारी को बरखास्त कर उसकी रैंक छीन ली जाती है और उसे सेवा से निकाल दिया जाता है तथा सेना के कमांडर द्वारा सज़ा की पुष्टि करने के बाद सरकार को सिफारिस की जाती है।
  • इन विकल्पों के समाप्त हो जाने के बाद अभियुक्त सशस्त्र बल अधिकरण का दरवाज़ा खटखटा सकता है, जो सज़ा को निलंबित कर सकता है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2017 में अधिकरण ने वर्ष 2010 के माछिल फर्ज़ी मुठभेड़ मामले में दो अधिकारियों सहित पाँच सैन्यकर्मियों को दी गई उम्रकैद की सज़ा को निलंबित कर दिया था।

स्रोत: जनसत्ता


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता, आपूर्ति शृंखला लचीलापन पहल, क्वाड, ऑस्ट्रेलिया की अवस्थिति और पड़ोसी, व्यापक रणनीतिक साझेदारी।

मेन्स के लिये:

भारत और ऑस्ट्रेलिया संबंध, भारत-ऑस्ट्रेलिया क्रिटिकल मिनरल्स इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप, महत्त्व, भारत-ऑस्ट्रेलिया शिखर सम्मेलन।

चर्चा में क्यों?

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री भारत-ऑस्ट्रेलिया शिखर सम्मेलन हेतु मार्च 2023 में भारत के दौरे पर हैं, उनका लक्ष्य दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश और रक्षा संबंधों को मज़बूत करना है।

australia

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध:

  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
    • ऑस्ट्रेलिया और भारत ने सर्वप्रथम स्वतंत्रता से पूर्व राजनयिक संबंध स्थापित किये, जब भारत के वाणिज्य दूतावास को पहली बार वर्ष 1941 में सिडनी में एक व्यापार कार्यालय के रूप में खोला गया था।
    • भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध उस समय ऐतिहासिक निम्न स्तर पर पहुँच गए जब ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने भारत के वर्ष 1998 के परमाणु परीक्षणों की निंदा की थी।
    • वर्ष 2014 में ऑस्ट्रेलिया ने भारत के साथ एक यूरेनियम आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर किये, जो भारत के "त्रुटिहीन" (Impeccable) अप्रसार रिकॉर्ड को मान्यता देते हुए परमाणु अप्रसार संधि के गैर-हस्ताक्षरकर्त्ता देश के साथ अपनी तरह का पहला समझौता था।
  • साझा मूल्य:
    • बहुलवादी, वेस्टमिंस्टर-शैली के लोकतंत्रों के साझा मूल्यों, राष्ट्रमंडल परंपराओं, आर्थिक संबंधों के विस्तार और उच्च-स्तरीय संवाद में वृद्धि ने भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत किया है।
    • मज़बूत, जीवंत, धर्मनिरपेक्ष और बहुसांस्कृतिक लोकतंत्र, एक स्वतंत्र प्रेस, एक स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली तथा अंग्रेज़ी भाषा सहित सामान्य लक्षण, घनिष्ठ सहयोग की नींव के रूप में काम करते हैं।
  • लोगों के बीच संबंध:
    • भारत उन शीर्ष देशों में से एक है जहाँ से प्रतिभाशाली अप्रवासी ऑस्ट्रेलिया आते हैं। वर्ष 2021 की जनगणना के अनुसार, लगभग 9.76 लाख ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने भारतीय मूल के होने का दावा किया, जिससे वे विदेशों में पैदा हुए निवासियों का दूसरा सबसे बड़ा समूह बन गए।
  • सामरिक संबंध:
    • वर्ष 2020 में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने भारत-ऑस्ट्रेलिया वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी से व्यापक रणनीतिक साझेदारी में परिवर्तित किया।
    • वर्ष 2021 में ग्लासगो में COP26 के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात हुई थी।
    • वर्ष 2022 और 2023 में मंत्रियों द्वारा कई उच्च-स्तरीय बैठकें एवं दौरे किये गए, जिनमें ऑस्ट्रेलिया-भारत वर्चुअल शिखर सम्मेलन और विदेश मंत्रियों की बैठक शामिल है। दूसरे भारत-ऑस्ट्रेलिया वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान कई महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ की गईं जिनमें शामिल हैं:
      • कौशल के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने हेतु प्रवासन और गतिशीलता भागीदारी व्यवस्था पर आशय पत्र।
  • रक्षा सहयोग:
    • सितंबर 2021 में 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद हुआ और ऑस्ट्रेलिया के उप प्रधानमंत्री एवं रक्षा मंत्री ने जून 2022 में भारत का दौरा किया।
    • रक्षा सहयोग बढ़ाने हेतु जून 2020 में वर्चुअल समिट के दौरान म्यूचुअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट (MLSA) पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • संयुक्त सैन्य अभ्यास:
      • अगस्त 2023 में भारत, जापान और अमेरिका की भागीदारी के साथ ऑस्ट्रेलिया "मालाबार" अभ्यास की मेजबानी करेगा।
      • भारत को 2023 में तालिस्मान सेबर अभ्यास में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया है।
  • चीन कारक:
    • ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंध कई कारणों से तनावपूर्ण हो गए, जिनमें ऑस्ट्रेलिया द्वारा 5G नेटवर्क से हुआवेई पर प्रतिबंध लगाना, कोविड-19 की उत्पत्ति की जाँच की मांग और शिंजियांग तथा हॉन्गकॉन्ग में चीन के मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा करना शामिल है।
      • चीन ने ऑस्ट्रेलियाई निर्यात पर व्यापार बाधाओं को लागू कर सभी मंत्रिस्तरीय संपर्क समाप्त कर दिये।
    • भारत सीमा पर चीनी आक्रमण का सामना कर रहा है, जिसका उदाहरण गलवान घाटी संघर्ष जैसी घटनाएँ हैं।
    • ऑस्ट्रेलिया और भारत दोनों एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन करते हैं और वे भारत-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय संस्थानों की स्थापना की मांग कर रहे हैं, जो समावेशी और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देते हों।
      • क्वाड (भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान) में शामिल भागीदार देशों की साझा चिंताओं का आधार उनके हितों के अभिसरण का एक उदाहरण है।
  • बहुपक्षीय सहयोग:
  • आर्थिक सहयोग:
    • आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA):
      • यह एक दशक में विकसित देश के साथ भारत द्वारा हस्ताक्षरित पहला मुक्त व्यापार समझौता है जो दिसंबर 2022 में लागू हुआ।
    • ड्यूटी में कमी:
      • इसके परिणामस्वरूप ऑस्ट्रेलिया को किये जाने वाले भारतीय निर्यात के 96% मूल्य (जो कि टैरिफ लाइनों का 98% है) पर शुल्क में तत्काल कमी आई है और भारत को ऑस्ट्रेलिया के 85% निर्यात (मूल्य में) पर शून्य शुल्क लगा दिया गया है।
    • सप्लाई चैन रेज़ीलियेंस इनीशिएटिव (SCRI):
      • भारत और ऑस्ट्रेलिया जापान के साथ त्रिपक्षीय व्यवस्था में भागीदार हैं जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपूर्ति शृंखलाओं के लचीलेपन को बढ़ाना चाहता है।
    • द्विपक्षीय व्यापार:
      • ऑस्ट्रेलिया भारत का 17वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और भारत, ऑस्ट्रेलिया का 9वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
      • वर्ष 2021 में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार 27.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, पाँच वर्षों में इसके 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आसपास पहुँचने की संभावना है।
  • शिक्षा क्षेत्र में सहयोग:
    • मार्च 2023 में शैक्षिक योग्यता की पारस्परिक मान्यता (MREQ) के लिये सहयोग पर हस्ताक्षर किये गए थे। यह भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच छात्रों की गतिशीलता को सुविधाजनक बनाएगा।
      • डीकिन विश्वविद्यालय और वोलोंगोंग विश्वविद्यालय भारत में परिसर खोलने की योजना बना रहे हैं।
      • 1 लाख से अधिक भारतीय छात्र ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं, जिससे ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्र विदेशी छात्रों का दूसरा सबसे बड़ा समूह बनकर उभरा है।
  • स्वच्छ ऊर्जा में सहयोग:
    • फरवरी 2022 में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा के एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर कर देशों ने अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों जैसे- अल्ट्रा लो-कॉस्ट सौर और स्वच्छ हाइड्रोजन की लागत को न्यूनतम करने के लिये साथ काम करने पर सहमति व्यक्त की।
    • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के तहत प्रशांत महाद्वीपीय देशों को 10 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (AUD) की सहायता प्रदान करने की घोषणा की।
    • दोनों देशों ने तीन वर्ष की भारत-ऑस्ट्रेलिया दुर्लभ खनिज निवेश साझेदारी के लिये 5.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान करने का वचन दिया।

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों को लेकर चुनौतियाँ:

  • अडानी कोयला खदान विवाद:
    • ऑस्ट्रेलिया में अडानी कोयला खदान परियोजना पर विवाद था, हालाँकि कुछ कार्यकर्त्ताओं ने इसका विरोध किया, जिससे दोनों देशों के आपसी संबंधों में तनाव उत्पन्न हो गया।
  • वीज़ा मुद्दे :
    • ऑस्ट्रेलिया में काम करने के इच्छुक भारतीय कामगारों और छात्रों के लिये वीज़ा प्रतिबंधों को लेकर चिंता व्यक्त की गई है।
  • भारतीय प्रवासियों के साथ हिंसा:
    • खालिस्तान समर्थकों द्वारा हाल ही में भारतीय प्रवासियों और मंदिरों पर किये गए हमलों ने तनाव उत्पन्न कर दिया है।

आगे की राह

  • साझा मूल्यों, विभिन्न प्रकार की रुचियों, भौगोलिक उद्देश्यों के कारण हाल के वर्षों में भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध मजबूत हुए हैं।
  • दोनों देश एक ऐसा हिंद-प्रशांत क्षेत्र चाहते हैं जो मुक्त, खुला, समावेशी और नियमपूर्वक शासित हो; किसी भी विवाद को बिना किसी दबाव या एकतरफा कार्रवाई के सुलझाया जाना चाहिये।
  • भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन जैसी पहल, भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच नए सिरे से संबंध, इंडो-पैसिफिक में नियम-आधारित आदेश सुनिश्चित करने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिये दोनों देशों के बीच संबंधों को और मज़बूत करने का अवसर प्रदान करते हैं।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. ऑस्ट्रेलिया
  2. कनाडा
  3. चीन
  4. भारत
  5. जापान
  6. अमेरिका

उपर्युक्त में से कौन आसियान के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में से हैं?

(a) केवल 1, 2, 4 और 5
(b) केवल 3, 4, 5 और 6
(c) केवल 1, 3, 4 और 5
(d) केवल 2, 3, 4 और 6

उत्तर: (c)

  • पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, कोरिया गणराज्य, जापान, भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड छह ऐसे देश हैं जिनके साथ दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के मुक्त व्यापार समझौते हैं।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

डिजिटल इंडिया अधिनियम, 2023

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल इंडिया अधिनियम, 2023, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT अधिनियम), 2000, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022, साइबर सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डीपफेक।

मेन्स के लिये:

डिजिटल इंडिया अधिनियम, 2023, साइबर सुरक्षा।

चर्चा में क्यों?

इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय जल्द ही डिजिटल इंडिया अधिनियम, 2023 अधिनियमित करेगा जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act), 2000 को प्रतिस्थापित करेगा।

नए अधिनियम की आवश्यकता:

  • IT अधिनियम, 2000 को लागू किये जाने के बाद से डिजिटल क्षेत्र को परिभाषित करने के प्रयासों में कई परिशोधन और संशोधन (IT अधिनियम संशोधन, 2008 तथा IT नियम संशोधन, 2011) हुए हैं, जिसमें डेटा प्रबंधन नीतियों पर अधिक बल देते हुए इसे विनियमित किया गया है।
  • चूँकि IT अधिनियम मूल रूप से केवल ई-कॉमर्स लेन-देन की रक्षा और साइबर अपराधों को परिभाषित करने के लिये डिज़ाइन किया गया था, यह वर्तमान साइबर सुरक्षा परिदृश्य की बारीकियों से निपटने में पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं था और न ही यह डेटा गोपनीयता अधिकारों को संबोधित करता था।
  • नियामक डिजिटल कानूनों के पूर्ण प्रतिस्थापन के बिना, IT अधिनियम साइबर हमलों के बढ़ते परिष्कार और दर को बनाए रखने में विफल रहेगा।
  • नए डिजिटल इंडिया अधिनियम में अधिक नवाचार, अधिक स्टार्टअप को सक्षम करके और साथ ही सुरक्षा, विश्वास एवं जवाबदेही के मामले में भारत के नागरिकों की रक्षा करके भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य करने की परिकल्पना की गई है।

डिजिटल इंडिया अधिनियम 2023 के तहत संभावित प्रावधान क्या हैं?

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता:
    • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की अपनी संतुलित नीतियों को अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मूल अभिव्यक्ति के अधिकारों के लिये संवैधानिक सुरक्षा तक सीमित किया जा सकता है।
      • सूचना और प्रद्यौगिकी नियम, 2021 में अक्तूबर 2022 के एक संशोधन में कहा गया है कि प्लेटफॉर्म को उपयोगकर्त्ताओं की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकारों का सम्मान करना चाहिये।
    • सोशल मीडिया उपयोगकर्त्ताओं द्वारा सामग्री संबंधी शिकायतों के निवारण के लिये अब तीन शिकायत अपीलीय समितियों की स्थापना की गई है।
    • इन्हें अब डिजिटल इंडिया अधिनियम में शामिल किये जाने की संभावना है।
  • ऑनलाइन सुरक्षा:
    • यह अधिनियम कृत्रिम बुद्धिमता (AI), डीपफेक, साइबर क्राइम, इंटरनेट प्लेटफॉर्म के बीच प्रतिस्पर्द्धा के मुद्दों और डेटा सुरक्षा को शामिल करेगा।
    • सरकार ने 2022 में एक डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल का मसौदा तैयार किया, जो डिजिटल इंडिया एक्ट के चार पहलुओं में से एक होगा, जिसमें राष्ट्रीय डेटा शासन नीति तथा भारतीय दंड संहिता में संशोधन के साथ-साथ डिजिटल इंडिया अधिनियम के तहत तैयार किये गए नियम भी शामिल हैं।
  • नया न्यायिक तंत्र:
    • ऑनलाइन किये गए आपराधिक और दीवानी अपराधों के लिये एक नया "न्यायिक तंत्र" लागू होगा।
  • सेफ हार्बर:
    • सरकार साइबर स्पेस के एक प्रमुख पहलू- 'सेफ हार्बर' पर पुनर्विचार कर रही है, यह एक सिद्धांत है, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को उपयोगकर्त्ताओं द्वारा किये गए पोस्ट के लिये उत्तरदायित्त्व से बचने की अनुमति देता है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) 2021 जैसे नियमों द्वारा हाल के वर्षों में इस शब्द पर लगाम लगाई गई है, जिसके लिये सरकार द्वारा ऐसा करने का आदेश दिये जाने पर या कानून द्वारा आवश्यक होने पर पोस्ट को हटाने के लिये प्लेटफॉर्मों की आवश्यकता होती है।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक:

  • यह विधेयक भारत के भीतर डिजिटल व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण पर लागू होगा जहाँ ऐसा डेटा ऑनलाइन या ऑफलाइन डिजिटल रूप में एकत्र किया जाता है। यदि यह भारत में वस्तुओं या सेवाओं की पेशकश या व्यक्तियों की प्रोफाइलिंग के लिये है तो यह भारत के बाहर इस तरह के प्रसंस्करण पर भी लागू होगा।
  • व्यक्तिगत डेटा को केवल वैध उद्देश्य के लिये संसाधित किया जा सकता है जिसके लिये व्यक्ति ने सहमति दी है। यह सहमति कुछ मामलों में मानी जा सकती है।
  • डेटा फिड्यूशरी (नियामक) डेटा की सटीकता बनाए रखने, डेटा को सुरक्षित रखने तथा इसका उद्देश्य पूरा होने के बाद डेटा को हटाने के लिये बाध्य होंगे।
    • "डेटा फिड्यूशरी" को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के उद्देश्य और साधनों को निर्धारित करता है।
  • यह बिल लोगों को कई अधिकार प्रदान करता है, जिसमें सूचना प्राप्त करने, सुधार करने, हटाने और शिकायत निवारण का अधिकार शामिल है।
  • केंद्र सरकार विशिष्ट कारणों से जैसे- राज्य सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और अपराधों की रोकथाम करने में शासकीय एजेंसियों को बिल के प्रावधानों में छूट प्रदान कर सकती है।
  • बिल की आवश्यकताओं के अनुपालन न करने के मामलों को तय करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड ऑफ इंडिया की स्थापना की जाएगी।

अन्य देशों में डेटा संरक्षण कानून:

  • यूरोपीय संघ मॉडल:
    • सामान्य डेटा संरक्षण विनियम व्यक्तिगत डेटा प्रसंस्करण के लिये व्यापक डेटा संरक्षण कानून पर केंद्रित है।
    • यूरोपीय संघ में निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार के रूप में निहित है जो किसी व्यक्ति की गरिमा और उसके द्वारा उत्पन्न डेटा पर उसके अधिकार की रक्षा करने हेतु लक्षित है।
  • संयुक्त राष्ट्र मॉडल:
    • अमेरिका में गोपनीयता अधिकारों या सिद्धांतों के लिये कोई समग्र विनियम नहीं है जैसा कि EU का GDPR, जो डेटा के उपयोग, संग्रह और प्रकटीकरण को विनियमित करता है।
    • इसके बजाय यह सीमित क्षेत्र-विशिष्ट विनियमन है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के लिये डेटा सुरक्षा के प्रति दृष्टिकोण अलग है।
      • गोपनीयता अधिनियम, इलेक्ट्रॉनिक संचार गोपनीयता अधिनियम जैसे व्यापक कानून के माध्यम से व्यक्तिगत जानकारी तथा सरकार की गतिविधियों और शक्तियों को अच्छी तरह से परिभाषित एवं सूचित किया गया है।
      • निजी क्षेत्र के लिये कुछ क्षेत्र आधारित विशिष्ट मानदंड हैं।
  • चीन मॉडल:
    • पिछले 12 महीनों में डेटा गोपनीयता और सुरक्षा संबंधी जारी किये गए नए चीनी कानूनों में व्यक्तिगत सूचना संरक्षण कानून (PIPL) शामिल है जो नवंबर 2021 में लागू हुआ था।
      • यह चीनी डेटा विनियामकों को नए अधिकार प्रदान करता है ताकि व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग को रोका जा सके।
      • डेटा सुरक्षा कानून (DSL), जो सितंबर 2021 में लागू हुआ, व्यावसायिक डेटा को उनके महत्त्व के स्तरों के आधार पर वर्गीकृत करने की आवश्यकता है। DSL सीमा पार हस्तांतरण पर नए प्रतिबंध आरोपित करता है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

प्रवासी मुद्दे और सुरक्षा उपाय

प्रिलिम्स के लिये:

मानव प्रवास, भारत के प्रवासी श्रमिक, श्रम संहिता।

मेन्स के लिये:

प्रवासी कल्याण के लिये कानूनी ढाँचा, श्रम संहिता के मुद्दे, प्रवास-केंद्रित नीति की आवश्यकता।

चर्चा में क्यों?

तमिलनाडु के औद्योगिक और विनिर्माण क्षेत्र हिंदी भाषी श्रमिकों पर कथित हमलों के बाद इनके पलायन की संभावना से चिंतित हैं।

  • राज्य के इस उद्योग में अनुमानित दस लाख प्रवासी श्रमिक कार्यरत हैं।

प्रवासी श्रमिकों के समक्ष मुद्दे:

  • सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू:
    • कई बार प्रवासियों को मेज़बान क्षेत्र द्वारा आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता है और उनके साथ दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप व्यवहार किया जाता है।
    • कोई भी व्यक्ति जो एक नई संस्कृति की ओर पलायन कर रहा है, सांस्कृतिक अनुकूलन और भाषा की बाधाओं से लेकर होमसिकनेस एवं अकेलेपन जैसी कई चुनौतियों का सामना करता है।
  • राजनीतिक अधिकारों और सामाजिक लाभों से बहिष्करण:
    • प्रवासी श्रमिकों को मतदान के अधिकार जैसे राजनीतिक अधिकारों के अवसरों से वंचित रखा जाता है।
    • इसके अलावा जीवनयापन के लिये आवश्यक और कल्याणकारी योजनाओं तथा नीतियों तक पहुँच की सुविधा पते का प्रमाण, मतदाता पहचान पत्र एवं आधार कार्ड की स्थानीय स्तर पर अनुपलब्धता उनको कई प्रकार की सुविधाओं से वंचित करती है।
  • सीमांत वर्गों के सम्मुख मुद्दे:
    • हालाँकि गरीब और हाशिये के समूहों के सदस्यों से घुलना-मिलना आसान नहीं होता।

share-of-migrant-workers

प्रवासी श्रमिक कल्याण के लिये कानूनी संरचना:

प्रवासी श्रमिकों हेतु कानूनी ढाँचे संबंधी मुद्दे:

  • अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम, 1979 को राज्यों में पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है।
  • छोटे स्टार्टअप और अनौपचारिक क्षेत्र सामाजिक सुरक्षा कवरेज से बाहर रह गए। छोटे स्टार्टअप, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों या 300 से कम श्रमिकों वाले छोटे प्रतिष्ठानों में श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के लिये कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवासी श्रमिकों, स्व-नियोजित श्रमिकों, गृह-आधारित श्रमिकों एवं अन्य कमज़ोर समूहों को सामाजिक सुरक्षा लाभों के तहत शामिल नहीं किया गया है।
    • इससे कंपनियाँ अपने कर्मचारियों हेतु मनमानी सेवा शर्तें आरोपित कर सकती हैं।

प्रवासी कल्याण हेतु सरकार की पहल:

  • केंद्र सरकार के कदम:
  • राज्य सरकारों के कदम:
    • वर्ष 2012 में, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की मदद से, ओडिशा और आंध्र प्रदेश के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए थे, जो ओडिशा के 11ज़िलों से पलायन करने वाले मज़दूरों को तत्कालीन संयुक्त आंध्र प्रदेश में ईंट भट्टों में काम करने के लिये ट्रैक करता था।
    • केरल ने प्रवासी श्रमिकों के लिये केरल में आने वाले प्रवासी श्रमिकों के बारे में डेटा बनाए रखने के साथ-साथ प्रवासी श्रमिकों को किसी भी समस्या का सामना करने में मदद करने के लिये सुविधा केंद्र स्थापित किये हैं।
    • झारखंड ने वर्ष 2021 में सुरक्षित और उत्तरदायी प्रवासन पहल (SRMI) शुरू की है, जिसका उद्देश्य स्रोत के साथ-साथ गंतव्य ज़िलों में निगरानी और विश्लेषण के लिये प्रवासी श्रमिकों के व्यवस्थित पंजीकरण को सक्षम करना है।
      • इसके अतिरिक्त झारखंड सरकार के हेल्प डेस्क विभिन्न राज्यों में 'श्रम वाणिज्य दूतावास' के रूप में जाने जाएंगे।

आगे की राह

  • केवल एक रजिस्ट्री में श्रमिकों का नामांकन तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि उनके पास सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुँच न हो। इसलिये केंद्र सरकार के लिये राज्यों के साथ सहयोग करना और श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा में उनके कार्यों का समन्वय करना महत्त्वपूर्ण है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्षों के प्रश्न: 

मेन्स

प्रश्न. भारत के प्रमुख शहरों में आईटी उद्योगों के विकास से उत्पन्न मुख्य सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ क्या हैं? (2021)

प्रश्न. पिछले चार दशकों में भारत के आंतरिक और बाह्य श्रम प्रवास के रुझानों में बदलाव पर चर्चा कीजिये। (2015)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow