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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव

  • 31 Aug 2020
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये

सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव, आसियान, व्यापार घाटा 

मेन्स के लिये

चीन के साथ भारत का व्यापार, सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस की अवधारणा और उसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने चीन के आक्रामक राजनीतिक और सैन्य व्यवहार के मद्देनज़र चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिये एक त्रिपक्षीय ‘सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव’ (Supply Chain Resilience Initiative-SCRI) शुरू करने के प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव और कोरोना वायरस (COVID-19) के तीव्र प्रसार के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के समक्ष एक बड़ी बाधा उत्पन्न हो गई है, इसी बाधा को समाप्त करने के उद्देश्य से सर्वप्रथम जापान ने सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (SCRI) शुरू करने का विचार प्रस्तुत किया था।
  • भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया के बाद भविष्य में आसियान (ASEAN) देशों को भी इस पहल में शामिल होने के लिये प्रेरित किया जाएगा।

सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस का अर्थ

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस (Supply Chain Resilience) एक दृष्टिकोण है जो किसी देश को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि वह अपनी संपूर्ण आपूर्ति के लिये किसी एक देश पर निर्भर होने के बजाय अपने आपूर्ति के जोखिम का विस्तार अलग-अलग आपूर्तिकर्त्ता देशों तक करे।
  • इस प्रकार के दृष्टिकोण को अपनाने का मुख्य कारण यह है कि किसी भी प्रकार की अप्रत्याशित घटना, चाहे वह प्राकृतिक हो (जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, भूकंप अथवा महामारी) या मानव निर्मित (जैसे एक क्षेत्र विशिष्ट में सशस्त्र संघर्ष) के कारण किसी विशेष देश से आने वाली आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हो सकती है, जिससे गंतव्य देश में आर्थिक गतिविधि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • इसलिये यह आवश्यक होता है कि कोई देश अपनी आपूर्ति श्रृंखला को केवल एक देश तक सीमित न करे, बल्कि अलग-अलग देशों तक उसका विस्तार करे।

जापान का प्रस्ताव

  • इस पहल के तहत भागीदार देशों के बीच पहले से मौजूद आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क को और मज़बूत करने पर ध्यान दिया जाएगा। 
  • जापान द्वारा प्रस्तावित सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (SCRI) का प्राथमिक उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ‘आर्थिक महाशक्ति’ के रूप में बदलने के लिये अधिक-से-अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना और भागीदार देशों के बीच परस्पर पूरक संबंध स्थापित करना है।
  • इस पहल के माध्यम से अंततः हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस अवधारणा को और अधिक बल दिया जाएगा।

आवश्यकता

  • कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी ने इस विषय को पुनः केंद्र में ला दिया है कि जब एक देश अपने उत्पादन के लिये आवश्यक कच्चे माल की आपूर्ति हेतु किसी अन्य देश पर बहुत ज़्यादा निर्भर रहता है और यदि किसी कारणवश आपूर्तिकर्त्ता देश में उत्पादन बंद होने के कारण आयात करने वाले राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है।
    • आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 के दौरान जहाँ एक ओर जापान ने चीन को 135 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात किया, वहीं जापान ने चीन से कुल 169 बिलियन डॉलर का आयात भी किया।
    • इस प्रकार जापान के कुल आयात में चीन हिस्सा लगभग 24 प्रतिशत था।
  • इस प्रकार यह स्पष्ट है कि चीन द्वारा की जाने वाली आपूर्ति में कोई भी बाधा जापान की आर्थिक गतिविधियों और वहाँ की अर्थव्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
    • ध्यातव्य है कि कुछ इसी प्रकार की स्थिति कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण भी उत्पन्न हुई थी, जब चीन को कई दिनों तक अपना उत्पादन बंद करना पड़ा था।
  • इसके अलावा बीते कुछ दिनों में अमेरिकी और चीन के बीच पैदा हुए तनाव ने भी भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के बीच चिंता पैदा की है, क्योंकि इस प्रकार के तनाव से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के प्रभावित होने की संभावना है।
    • यदि विश्व की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ अपने मतभेदों को हल नहीं करती हैं, तो वैश्वीकरण पर इसका काफी व्यापक प्रभाव पड़ेगा।

भारत के लिये इस पहल के निहितार्थ

  • दो अत्यधिक आबादी वाले एशियाई पड़ोसियों के साथ सीमा तनाव के बीच जापान जैसे भागीदार देश के माध्यम से भारत वैकल्पिक व्यापार श्रृंखलाओं पर विचार कर सकता है। 
    • आँकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान भारत द्वारा चीन को लगभग 16.6 बिलियन डॉलर का निर्यात किया गया, जबकि भारत ने चीन से लगभग 65.26 बिलियन डॉलर का आयात किया, जिसके कारण चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 48.66 बिलियन रहा रहा, जबकि वित्तीय वर्ष 2018-19 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 53.56 बिलियन डॉलर रहा था।
    • चीन भारत के कुल आयात में लगभग 14 प्रतिशत का हिस्सेदार है, ऐसे में यदि चीन किसी भी कारण से भारत को आयात करना बंद कर देता है तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी प्रभावित कर सकता है।
  • हालाँकि चीन के साथ अचानक अपनी आपूर्ति श्रृंखला को समाप्त करना या अपने आयात को कम करना अथवा बंद कर देना पूरी तरह से अव्यवहारिक है।
    • भारतीय दवा निर्माता कई दवाओं के निर्माण के लिये आवश्यक सामग्री के आयात हेतु चीन पर काफी अधिक निर्भर हैं। इसके अलावा भारत के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स आयात में चीन का 45 प्रतिशत हिस्सा है।
  • ऐसे में यह स्पष्ट है कि भारत एक साथ चीन के साथ अपने अपनी आपूर्ति श्रृंखला को समाप्त या बंद नहीं कर सकता है, किंतु यदि भारत समय के साथ धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाता है या चीन के अलावा अन्य देशों के साथ अपने आपूर्ति नेटवर्क को मज़बूत करता है, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के आपूर्ति नेटवर्क में लचीलापन पैदा कर सकता है, जो कि अर्थव्यवस्था के लिये भविष्य में काफी लाभदायक साबित होगा।

ऑस्ट्रेलिया की भूमिका 

  • यद्यपि चीन, ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार देशों में से एक है, किंतु पिछले कुछ समय में दोनों के बीच व्यापारिक संबंध काफी तनावपूर्ण रहे हैं।
  • चीन ने इसी वर्ष मई माह में चार ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों से पशु माँस के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था, साथ ही ऑस्ट्रेलिया से आयातित जौ पर भी आयात शुल्क अधिरोपित किया था।
  • जून माह में चीन के शिक्षा मंत्रालय ने ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले अथवा पढ़ने की इच्छा रखने वाले छात्रों को वहाँ बढ़ते नस्लवाद को लेकर चेतावनी दी थी।
  • दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के कारण ही संभवतः ऑस्ट्रेलिया अपनी आपूर्ति श्रृंखला में लचीलापन लाने की कोशिश कर रहा है।

स्रोत: द हिंदू

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