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जैव विविधता और पर्यावरण

जल के भीतर ध्वनि उत्सर्जन

  • 20 Feb 2023
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जल के भीतर ध्वनि उत्सर्जन, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, समुद्री ध्वनि प्रदूषण, तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ), लंदन कन्वेंशन (1972)

मेन्स के लिये:

समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, समुद्री ध्वनि प्रदूषण और संरक्षण

चर्चा में क्यों? 

"भारतीय जल में जहाज़ों द्वारा उत्पन्न जल के भीतर ध्वनि के स्तर को मापना" शीर्षक वाले एक अध्ययन के अनुसार, भारतीय जल में जहाज़ों द्वारा जल के भीतर ध्वनि उत्सर्जन (UNE) का बढ़ना समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल रहा है।

  • गोवा तट रेखा से लगभग 30 समुद्री मील की दूरी पर एक हाइड्रोफोन स्वायत्त प्रणाली तैनात कर परिवेशी शोर के स्तर का मापन किया गया था। 

अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ:

  • UNE स्तर में वृद्धि:
    • भारतीय जल में UNE का ध्वनि दबाव स्तर एक माइक्रोपास्कल (dB re 1µ Pa) के सापेक्ष 102-115 डेसिबल है।
      • वैज्ञानिक जल के भीतर ध्वनि हेतु संदर्भ दबाव के रूप में 1μPa का उपयोग करने पर सहमत हुए हैं। 
    • पूर्वी तट का स्तर पश्चिम की तुलना में थोड़ा अधिक है। लगभग 20 dB re 1µPa के मान में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
  • कारक:
    • निरंतर नौपरिवहन गतिविधियों को वैश्विक महासागर शोर स्तर में वृद्धि के लिये एक प्रमुख योगदानकर्त्ता के रूप में पहचाना जाता है। 
    • बॉटलनोज़ डॉल्फिन, मैनेटीज़, पायलट व्हेल, सील और स्पर्म व्हेल जैसे स्तनधारियों के जीवन के लिये जल के भीतर ध्वनि उत्सर्जन खतरा उत्पन्न कर रहा है।
      • विभिन्न प्रकार के समुद्री स्तनपायी व्यवहारों के लिय ध्वनि, ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है जैसे- समागम, अंतःक्रिया, भोजन, सामूहिक सामंजस्य और आहार।
  • प्रभाव: 
    • जहाज़ों का अंतःजल शोर और मशीनरी कंपन स्तरों की आवृत्ति 500 हर्ट्ज़ से कम आवृत्ति रेंज में समुद्री प्रजातियों की संचार आवृत्तियों को प्रभावित करती हैं।
      • इसे मास्किंग कहा जाता है, जिससे समुद्री प्रजातियों का उथले क्षेत्रों में प्रवास में परिवर्तन हो सकता है, साथ ही इन  प्रजातियों का गहरे जल में वापस जाना भी मुश्किल हो सकता है।
    • हालाँकि दीर्घ अवधि में जहाज़ों से निकलने वाली ध्वनि उन्हें प्रभावित करती है और इसके परिणामस्वरूप आंतरिक क्षति, सुनने की क्षमता में कमी, व्यावहारिक प्रतिक्रियाओं में बदलाव, मास्किंग और तनाव उत्पन्न होता है।  

समुद्री ध्वनि प्रदूषण: 

  • समुद्री ध्वनि प्रदूषण समुद्र के वातावरण में अत्यधिक या हानिकारक ध्वनि है। यह कई प्रकार की मानवीय गतिविधियों के कारण होता है, जैसे- शिपिंग, सैन्य सोनार, तेल और गैस की खोज, नौका विहार तथा जेट स्कीइंग जैसी मनोरंजक गतिविधियाँ।
  • यह समुद्री जीवन पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिसमें व्हेल, डॉल्फिन और पोरपोइज़ जैसे समुद्री स्तनधारियों के संचार, नेविगेशन एवं शिकार व्यवहार में हस्तक्षेप करना शामिल है। यह इन समुद्री जीवों की सुनने और अन्य शारीरिक क्षमता को भी नुकसान पहुँचा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप चोट या मृत्यु हो सकती है।

समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा हेतु पहल:

  • वैश्विक: 
    • भूमि आधारित गतिविधियों से समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा हेतु वैश्विक कार्रवाई कार्यक्रम (Global Programme of Action- GPA):
      • GPA एकमात्र वैश्विक अंतर-सरकारी तंत्र है जो सीधे स्थलीय, मीठे जल, तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के बीच संपर्क को बढ़ावा देता है।
    • MARPOL अभिसमय (1973): यह परिचालन या आकस्मिक कारणों से जहाज़ों द्वारा उत्पन्न समुद्री पर्यावरण प्रदूषण को कवर करता है। 
      • यह तेल, हानिकारक तरल पदार्थों, पैक किये गए हानिकारक पदार्थों, जहाज़ों से उत्पन्न सीवेज़ और कचरे आदि के कारण समुद्री प्रदूषण के विभिन्न रूपों को सूचीबद्ध करता है। 
    • लंदन अभिसमय (1972):
      • इसका उद्देश्य समुद्री प्रदूषण के सभी स्रोतों के प्रभावी नियंत्रण को बढ़ावा देना तथा कचरे एवं अन्य पदार्थों को डंप करके समुद्री प्रदूषण को रोकने हेतु सभी व्यावहारिक कदम उठाना है। 
  • भारतीय पहल:
    • भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972): यह कई समुद्री जानवरों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। भारत में तटीय क्षेत्रों को कवर करते हुए कुल 31 प्रमुख समुद्री संरक्षित क्षेत्र हैं जिन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अधिसूचित किया गया है। 
    • तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ): CRZ अधिसूचना (वर्ष 1991 एवं बाद के संस्करण) संवेदनशील तटीय पारिस्थितिक तंत्र में विकासात्मक गतिविधियों तथा कचरे के निपटान पर रोक लगाती है।
    • सेंटर फॉर मरीन लिविंग रिसोर्सेज़ एंड इकोलॉजी (CMLRE): CMLRE, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) का एक संलग्न कार्यालय पारिस्थितिकी तंत्र निगरानी और मॉडलिंग गतिविधियों के माध्यम से समुद्री जीवित संसाधनों के लिये प्रबंधन रणनीतियों के विकास हेतु अनिवार्य है।

स्रोत: द हिंदू

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