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प्रथम सूचना रिपोर्ट

  • 19 Feb 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR), ज़ीरो एफआईआर, संज्ञेय अपराध और गैर-संज्ञेय अपराध।

मेन्स के लिये:

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR), संज्ञेय अपराध और गैर-संज्ञेय अपराध

चर्चा में क्यों?

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है क्योंकि यह आपराधिक न्याय की प्रक्रिया को गति प्रदान करती है। थाने में FIR दर्ज होने के बाद ही पुलिस मामले की जाँच शुरू करती है।

प्रथम सूचना रिपोर्ट:

  • प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) एक लिखित दस्तावेज़ है जो पुलिस द्वारा तब तैयार की जाती है जब उसे किसी संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना प्राप्त होती है।
  • यह एक सूचना रिपोर्ट है जो समय पर सबसे पहले पुलिस तक पहुँचती है, इसीलिये इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट कहा जाता है।
  • यह आमतौर पर एक संज्ञेय अपराध के शिकार व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा पुलिस में दर्ज कराई गई शिकायत होती है। कोई भी व्यक्ति संज्ञेय अपराध की सूचना मौखिक या लिखित रूप में दे सकता है।
  • FIR शब्द भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 या किसी अन्य कानून में परिभाषित नहीं है।
    • हालाँकि पुलिस नियमों या कानूनों में सीआरपीसी की धारा 154 के तहत दर्ज की गई जानकारी को प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के रूप में जाना जाता है।
  • FIR के तीन महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं:
    • जानकारी एक संज्ञेय अपराध से संबंधित होनी चाहिये।
    • यह सुचना लिखित या मौखिक रूप में थाने के प्रमुख को दी जानी चाहिये।
    • इसे मुखबिर द्वारा लिखा और हस्ताक्षरित किया जाना चाहिये और इसके प्रमुख बिंदुओं को दैनिक डायरी में दर्ज किया जाना चाहिये।

FIR दर्ज होने के बाद की स्थिति:

  • पुलिस मामले की जाँच करेगी और गवाहों के बयान या अन्य वैज्ञानिक सामग्री के रूप में साक्ष्य एकत्र करेगी।
    • पुलिस कानून के अनुसार कथित व्यक्तियों को गिरफ्तार कर सकती है।
  • यदि शिकायतकर्ता के आरोपों की पुष्टि करने के लिये पर्याप्त सबूत हैं, तो आरोप पत्र दाखिल किया जाएगा। अन्यथा कोई सबूत नहीं मिलने का उल्लेख करते हुए एक अंतिम रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत की जाएगी।
  • यदि यह पाया जाता है कि कोई अपराध नहीं किया गया है, तो रद्दीकरण रिपोर्ट दर्ज की जाएगी।
  • यदि आरोपी व्यक्ति का कोई पता नहीं चलता है, तो एक 'अनट्रेस्ड' रिपोर्ट दर्ज की जाएगी।
  • हालाँकि अगर अदालत जाँच रिपोर्ट से सहमत नहीं है, तो वह आगे की जाँच का आदेश दे सकती है।

एफआईआर दर्ज करने से इनकार किये जाने की स्थिति में:

  • CrPC की धारा 154(3) के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी थाने के प्रभारी अधिकारी की ओर से प्राथमिकी दर्ज करने के इनकार किये जाने से व्यथित है तो वह संबंधित पुलिस अधीक्षक/डीसीपी को शिकायत भेज सकता है।
    • यदि पुलिस अधीक्षक/डीसीपी इस बात से संतुष्ट है कि इस तरह की जानकारी से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो वह या तो मामले की जाँच करेगा, या किसी अधीनस्थ पुलिस अधिकारी को जाँच का निर्देश देगा।
  • यदि प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाती है, तो पीड़ित व्यक्ति संबंधित न्यायालय के समक्ष CrPC की धारा 156(3) के तहत शिकायत दर्ज कर सकता है और यदि न्यायालय इस बात से संतुष्ट होता है कि शिकायत में संज्ञेय अपराध शामिल है तो वह पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने और कार्रवाई करने का निर्देश दे सकता हैं।

ज़ीरो एफआईआर का अर्थ:

  • जब एक पुलिस स्टेशन को किसी अन्य पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में किये गए कथित अपराध के विषय में शिकायत प्राप्त होती है, तो यह एक प्राथमिकी दर्ज करता है और फिर आगे की जाँच के लिये उसे संबंधित पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित कर देता है।
    • इसी प्रकार की प्राथमिकी को ‘ज़ीरो एफआईआर’ कहा जाता है।
  • इसमें एफआईआर को कोई नियमित नंबर नहीं दिया जाता है। ‘ज़ीरो एफआईआर’ मिलने के बाद संबंधित थाने की पुलिस नई एफआईआर दर्ज कर जाँच शुरू देती है।

संज्ञेय अपराध और गैर-संज्ञेय अपराध:

  • संज्ञेय अपराध: संज्ञेय अपराध वह अपराध है, जिसमें पुलिस किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है।
    • पुलिस स्वयं एक संज्ञेय मामले की जाँच शुरू करने के लिये अधिकृत है और ऐसा करने के लिये न्यायालय से किसी आदेश की आवश्यकता नहीं होती है।
  • गैर-संज्ञेय अपराध: गैर-संज्ञेय अपराध एक ऐसा अपराध है, जिसमें किसी पुलिस अधिकारी को बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है।
    • न्यायालय की अनुमति के बिना पुलिस अपराध की जाँच नहीं कर सकती है।
    • गैर-संज्ञेय अपराधों के मामले में  CrPC की धारा 155 के तहत FIR दर्ज की जाती है।
    • शिकायतकर्त्ता आदेश के लिये न्यायालय  का सहारा ले सकता है। उसके बाद न्यायालय पुलिस को शिकायतकर्त्ता की शिकायत पर जांँच का निर्देश दे सकता है।

शिकायत और एफआईआर में अंतर:

  • CrPC एक "शिकायत" (Complaint) को "मौखिक रूप से या लिखित रूप में मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किसी आरोप" के रूप में परिभाषित करता है। इस संहिता के तहत कार्रवाई करने की दृष्टि से कि ‘’किसी व्यक्ति, चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात, ने अपराध किया है, लेकिन इसमें पुलिस रिपोर्ट शामिल नहीं होती है।"
  • हालांँकि FIR वह दस्तावेज़ है जिसे पुलिस ने शिकायत के तथ्यों की पुष्टि के बाद तैयार किया है। प्राथमिकी में अपराध और कथित अपराधी का विवरण हो सकता है।
  • यदि शिकायत के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि संज्ञेय अपराध किया गया है, तो CrPC की धारा 154 के तहत FIR दर्ज की जाएगी और पुलिस जांँच शुरू करेगी। यदि कोई अपराध नहीं पाया जाता है, तो पुलिस द्वारा जांँच को बंद कर दिया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

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