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डेली न्यूज़

  • 08 May, 2021
  • 52 min read
भारतीय राजनीति

न्यायालय की कार्यवाही पर मीडिया को रिपोर्ट करने का अधिकार : सर्वोच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने मीडिया को न्यायिक कार्यवाही के दौरान टिप्पणियों की रिपोर्टिंग करने से रोकने के लिये भारतीय चुनाव आयोग (ECI) द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मीडिया को अदालती सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों द्वारा की गई चर्चाओं और मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, अदालती सुनवाई का मीडिया कवरेज़ प्रेस की स्वतंत्रता का हिस्सा है, इसका नागरिकों के सूचना के अधिकार तथा न्यायपालिका की जवाबदेही पर भी असर पड़ता है।

प्रमुख बिंदु 

वाक्-स्वतंत्रता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता:

  • न्यायाधीशों और वकीलों के बीच अदालतों में मौखिक आदान-प्रदान सहित अदालती कार्यवाही की यथासमय रिपोर्ट करना, वाक्-स्वतंत्रता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है।
    • भारतीय  संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लिखित और मौखिक रूप से अपना मत प्रकट करने हेतु  वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई  है।
  • प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ, विभिन्न सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से रिपोर्टिंग का प्रसार हुआ हैऔर इन मंचो से लोगों को सुनवाई के संदर्भ में व्यापक स्तर पर रियल-टाइम अपडेट प्राप्त हुए हैं। यह वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक विस्तार है जो मीडिया के लिये भी उपलब्ध है। 
    •  यह खुली अदालत की अवधारणा का एक आभासी (virtual) विस्तार है।
  • बाल यौन शोषण और वैवाहिक मुद्दों संबंधी मामलों को छोड़कर, अन्य मामलों में मुक्त प्रेस की अवधारणा को अदालती कार्यवाही तक विस्तारित किया जाना चाहिये।

न्यायिक अखंडता:

  • विभिन्न मुद्दों और घटनाओं के साथ-साथ न्यायालय की कार्यवाही जो कि सार्वजनिक डोमेन के हिस्सा है पर रिपोर्ट करने तथा उन्हें प्रसारित करने के मीडिया के अधिकार ने न्यायपालिका की अखंडता को बढ़ाया है।

ओपन कोर्ट अथवा खुली अदालत में सुनवाई की व्यवहार्यता:

  • खुली अदालत यह सुनिश्चित करती है कि न्यायिक प्रक्रिया सार्वजनिक जाँच के अधीन है जो  पारदर्शिता और जवाबदेही को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है और लोकतांत्रिक संस्थाओं के कामकाज में पारदर्शिता लोगों में विश्वास स्थापित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • एक खुली अदालत प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि न्यायाधीश कानून के अनुसार और ईमानदारी के साथ कार्य करते हैं।
  • अदालतों के समक्ष आने वाले मामले विधायिका और कार्यपालिका की गतिविधियों के बारे में सार्वजनिक जानकारी के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
  • खुली अदालत एक शैक्षिक उद्देश्य के रूप में भी कार्य करती है। न्यायालय नागरिकों को यह जानने के लिये एक मंच बन जाता है कि कानून का व्यावहारिक अनुप्रयोग उनके अधिकारों पर क्या प्रभाव डालता है।

भाषा: 

  • शीर्ष न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों को खुली अदालत में बिना सोचे-समझे (Off-the-Cuff) टिप्पणी करने में सावधानी बरतने की आवश्यकता पर जोर देना चाहिये, क्योंकि इनकी गलत व्याख्या अतिसंवेदनशील हो सकती है।
  • खंडपीठ द्वारा प्रयुक्त भाषा और निर्णयों की भाषा, न्यायिक शिष्टाचार के अनुकूल होनी चाहिये।
    • भाषा, न्यायिक प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है, जोकि संवैधानिक मूल्यों के प्रति संवेदनशील भी होती है। 

भारत निर्वाचन आयोग(ECI)

परिचय:

  • यह एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करने के लिए उत्तरदायी है।
  • चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी। 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 
  • निर्वाचन आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • चुनाव आयोग भारत में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव की संपूर्ण प्रक्रिया का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करता है।
    • इसका राज्यों में पंचायतों और नगरपालिकाओं के चुनावों से कोई संबंध नहीं है।भारत का संविधान में इसके लिये एक अलग राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission) का प्रावधान है।

संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान का भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनावों से संबंधित हैं, और यह इनसे संबंधित  मामलों के लिये एक अलग आयोग की स्थापना करता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

पुलायार समुदाय और अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व

चर्चा में क्यों? 

तमिलनाडु के अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व (Anamalai Tiger Reserve) की सीमा में स्थित पुलायार समुदाय की दो आदिवासी बस्तियों (कट्टूपट्टी और कुझिपट्टी) के लोग स्थानीय देवता, वीरपट्टन (Vairapattan) के वार्षिकोत्सव की तैयारी में लग गए हैं।

प्रमुख बिंदु: 

पुलायार समुदाय के बारे में:

  • पुलायार, जिसे पुलाया या होल्या भी कहा जाता है, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में पाए जाने वाले प्रमुख सामाजिक समूहों में से एक हैं।
  • पुलायार समुदाय को केरल और तमिलनाडु में अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • पुलायास अपने संगीत, शिल्प कौशल और कुछ विशिष्ट नृत्य के लिये जाने जाते हैं, जिनमें शामिल हैं,
    • कुलाम-थुल्लल (Kōlam-thullal) एक मुखौटा नृत्य (Mask Dance) है, जो इनके जादू टोना या झाड़-फूँक अनुष्ठानों (Exorcism rituals) का एक हिस्सा है। 
    • मुदी-अट्टम (Mudi-āttam) नृत्य का उद्भव प्रजनन अनुष्ठान से माना जाता है। 
  • महात्मा अय्यंकाली (Mahatma Ayyankali) को 'पुलया राजा' (Pulaya King) कहा था।
    • वर्ष 1893 में अय्यनकाली ने कुछ विशिष्ट हिंदू जातियों द्वारा सार्वजनिक सड़कों के प्रयोग पर तथाकथित अछूतों को  ‘प्रतिबंधित' करने को चुनौती दी और सड़क पर बैलगाड़ी की सवारी करने विरोध दर्ज करवाया।
    • अय्यनकली ने पुलायार समुदाय के अधिकारों की वकालत की और अय्यनकाली के नेतृत्त्व में हुए विरोध प्रदर्शनों के कारण ही वर्ष 1907 में तथाकथित अछूत माने जाने वाले समुदायों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिल करने का फरमान जारी किया गया।

अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व:

  • यह तमिलनाडु के चार टाइगर रिज़र्व में से एक है। यह दक्षिणी पश्चिमी घाट (Southern Western Ghats) का हिस्सा है।
  • यह वर्ष 2003 में  घोषित अनामलाई परंबिकुलम एलीफेंट रिज़र्व (Anamalai Parambikulam Elephant Reserve) का हिस्सा है।
  • यह पूर्व में चिनार वन्यजीव अभयारण्य और दक्षिण-पश्चिमी में एराविकुलम नेशनल पार्क (Eravikulam National Park) तथा परम्बिकुलम टाइगर रिज़र्व (Parambikulam Tiger Reserve) से घिरा हुआ है।
  • यह रिज़र्व केरल के नेनमारा वाज़चल, मलयत्तुर और मरयूर आरक्षित वनों से भी घिरा हुआ है।
  • इस अभयारण्य में पाई जाने वाली पर्वत श्रेणियों में अमरावती (Amaravathi), उदुमलपेट (Udumalpet) पोलाची (Pollachi), उलेडी (Ulandy) और वलपरई आदि शामिल हैं।

मानवीय विविधता:

  • इस क्षेत्र में 3400 बस्तियों में रहने वाले छह जनजातियों के 4600 से अधिक आदिवासी लोगों की महत्त्वपूर्ण मानवीय विविधता पाई जाती है।
    • इन जनजातियों में कादर, मालासर, मलमलसर , पुलायार, मुदुवर और एरावलान शामिल हैं।

वनस्पति:

  • इसमें नम सदाबहार वन (Wet Evergreen Forest) और अर्द्ध-सदाबहार वन (Semi-Evergreen Forest), मोंटाने घास के मैदान (Montane Grasslands), नम पर्णपाती (Moist Deciduous), शुष्क पर्णपाती (Dry Deciduous), कांटेदार वन (Thorn Forests) और दलदल (Marshes) शामिल हैं।

जीव-जंतु:

  • यहाँ पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण स्तनधारियों में एशियाई हाथी, सांभर, चित्तीदार हिरण, बार्किंग हिरण, माउस हिरण, गौर, नीलगिरि तहर, बाघ, आदि शामिल हैं।

तमिलनाडु में अन्य संरक्षित क्षेत्र:

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

सोशल स्टॉक एक्सचेंज पर रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) पर गठित एक तकनीकी समूह ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

  • सितंबर, 2020 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने नाबार्ड (NABARD) के पूर्व अध्यक्ष हर्ष भानवाला की अध्यक्षता में सोशल स्टॉक एक्सचेंज पर तकनीकी समूह का गठन किया था।
  • इससे पूर्व इशात हुसैन की अध्यक्षता में सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) पर एक कार्यकारी समूह (WG) का गठन भी किया गया था, जिसने जून 2020 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

प्रमुख बिंदु

सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) के विषय में:

  • संघीय बजट 2019-20 में  पूंजी निर्माण के लिये सामाजिक उद्यम, स्वैच्छिक और कल्याणकारी संगठनों को सूचीबद्ध करते हुए सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) को एक मंच के रूप में गठित करने का प्रस्ताव रखा गया था।
    • सामाजिक उद्यम को एक ऐसी गैर-लाभांश भुगतान कंपनी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसे किसी एक विशिष्ट सामाजिक समस्या को संबोधित करने के लिये स्थापित किया गया हो।
  • इसे SEBI के विनियामक दायरे के तहत गठित करने का प्रस्ताव दिया गया था। 
  • इस पहल का उद्देश्य सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु इक्विटी या ऋण या म्यूचुअल फंड की एक इकाई के रूप में पूंजी निर्माण कार्यों में संलग्न सामाजिक और स्वैच्छिक संगठनों की सहायता करना हैं।
  • सिंगापुर, ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों में SSE पहले से ही स्थापित है। ये देश स्वास्थ्य, पर्यावरण और परिवहन जैसे क्षेत्रों में संचालित फर्मों को SSE जे माध्यम से पूंजी निर्माण के लिये अनुमति देते हैं।

समूह की सिफारिशें:

  • संगठन का प्रकार: राजनीतिक और धार्मिक संगठनों, व्यापार संगठनों के साथ-साथ कॉर्पोरेट समूहों को SSE के माध्यम से पूंजी निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये ।
  • यदि लाभकारी उद्यम (FPE) और गैर-लाभकारी संगठन (NPO) दोनों अपने प्राथमिक लक्ष्यों जैसे: सामाजिक धारणा और उन पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाने में सक्षम हैं, तो वे SSE के लाभ के लिये पात्र होंगे।
    • SSE पर सूचीबद्ध संस्थाओं को ‘रणनीतिक धारणाओं और नियोजन, दृष्टिकोण, प्रभाव स्कोर कार्ड’ जैसे पहलुओं के बारे में वार्षिक आधार पर अपने सामाजिक प्रभाव की रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
    • गैर-लाभकारी संगठनों (NPO) को आमतौर पर कंपनी अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत गैर-सरकारी संगठनों के रूप में (ट्रस्ट या सोसाइटी) गठित किया जाता है।
    • एक लाभकारी उद्यम (FPEs)  प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के रूप में, भागीदारियों के रूप में या एकल स्वामित्त्व वाला हो सकता है।
  • पूंजी निर्माण के विभिन्न उपाय:
    • गैर-लाभकारी संगठनों (NPO) को इक्विटी, ज़ीरो कूपन ज़ीरो प्रिंसिपल बॉन्ड, विकास प्रभाव बाॅण्ड, सामाजिक प्रभाव निधि के साथ-साथ निवेशक म्यूच्यूअल फंड के माध्यम से 100 प्रतिशत अनुदानित या दान से कोष जुटाने में सामाजिक स्टॉक एक्सचेंज का विचार एक सराहनीय पहल है।
    • लाभकारी उद्यमों के लिये इक्विटी, ऋण, विकास प्रभाव बाॅण्ड और सामाजिक उद्यम निधि के माध्यम से धन का सृजन करना।
  • योग्य गतिविधियाँ: सामाजिक उद्यम निम्नलिखित गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं:
    • भूख, गरीबी, कुपोषण और असमानता का उन्मूलन; स्वास्थ्य देखभाल (मानसिक स्वास्थ्य सहित) तथा स्वच्छता को बढ़ावा देना; और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना।
    • शिक्षा, नियोजिता और आजीविका को बढ़ावा देना।
    • लैंगिक समानता, महिला सशक्तीकरण और LGBTQA+ समुदायों को बढ़ावा देना।
    • जलवायु परिवर्तन (शमन और अनुकूलन), वन और वन्य जीव संरक्षण को संबोधित करते हुए पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करना।
    • गैर-कृषि क्षेत्र में छोटे और सीमांत किसानों और श्रमिकों की आय बढ़ाने के साथ-साथ ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिये आजीविका को प्रोत्साहित करना।
    • सतत् और लचीले शहरों के निर्माण के लिये स्लम क्षेत्र के विकास, किफायती आवास और इस प्रकार के अन्य हस्तक्षेपों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

आगे की राह 

  • वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभावों को देखते हुए पूंजी के विभिन्न सार्वजनिक और निजी स्रोतों के लिये यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सामाजिक क्षेत्र में पूंजी प्रवाह पर महामारी का प्रभाव न पड़े और वैश्विक समुदाय के लिये स्थायी प्रभाव उत्पन्न करने हेतु पूंजी का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए।
  • सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) के माध्यम से दिये जाने वाला संस्थागत समर्थन यह सुनिश्चित करता है कि अधिक-से-अधिक निवेशक मात्र वित्तीय विवरणों से आगे बढ़कर विभिन्न उद्यमों के मूल्यांकन के लिये पर्यावरणीय पहलुओं (संसाधन संरक्षण, पर्यावरणीय रूप से स्थायी कामकाजी प्रथाओं), सामाजिक पहलुओं (गोपनीयता, डेटा संरक्षण, कर्मचारी कल्याण) और शासन संबंधी पहलुओं (जैसे बोर्ड विविधता, हितों के टकराव संबंधी मुद्दों के लिये समाधान तंत्र और प्रबंधन की स्वतंत्र निगरानी) आदि को एकीकृत कर सकें।
  • इसके लिये सभी प्रयासों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यकता है कि सोशल स्टॉक एक्सचेंज के गठन के लिये एक सक्षम नियामक वातावरण बनाया जाए, जहाँ उद्यमों, सामाजिक उद्यमियों और निवेशकों के लिये भी न्यूनतम अनुपालन दायित्त्व निर्धारित हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभयारण्य के आस-पास पर्यावरण संवेदी क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभयारण्य (TCFS) महाराष्ट्र के आस-पास एक पर्यावरण संवेदी क्षेत्र (Eco Sensitive Zone- ESZ) अधिसूचित किया है।

  • ESZ का अर्थ संरक्षित क्षेत्रों के लिये एक बफर के रूप में कार्य करना और एक वन्यजीव अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान के आस-पास विकास के दबाव को कम करना है।

प्रमुख बिंदु:

ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभयारण्य के संबंध में:

  • यह मालवन अभयारण्य (Malvan Sanctuary) के बाद महाराष्ट्र का दूसरा समुद्री अभयारण्य है और ठाणे क्रीक के पश्चिमी तट पर स्थित है।
  • इसे बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी द्वारा एक "महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र" के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभयारण्य में मैन्ग्रोव की 39 प्रजातियाँ पाई जाती हैं इसके अलावा  यह फ्लेमिंगो जैसे पक्षियों की 167 प्रजातियों,  मछली की 45 प्रजातियों,  तितलियों की 59 प्रजातियों,  कीट की 67 प्रजातियों और सबमें सियार जैसे स्तनधारी जानवरों का निवास स्थान है।

ठाणे क्रीक:

  • यह अरब सागर की तटरेखा पर स्थित एक प्रवेश द्वार (Inlet) है जो मुंबई शहर को भारतीय मुख्य भूमि से अलग करता है।
  • क्रीक को दो भागों में विभाजित किया गया है: घोड़बंदर-ठाणे स्ट्रेच और ठाणे-ट्रॉम्बे (उरण) स्ट्रेच।

Thane-Creek

महाराष्ट्र के अन्य संरक्षित क्षेत्र:

पर्यावरण संवेदी क्षेत्र (ESZ):

  • इसके संदर्भ में: 
    • इको-सेंसिटिव जोन (ESZ) या पर्यावरण संवेदी क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास 10 किलोमीटर के भीतर के क्षेत्र हैं।
      • संवेदनशील गलियारे, संपर्क और पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण खंडों और प्राकृतिक संयोजन के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होने की स्थिति में 10 किमी. से अधिक क्षेत्र को भी इको-सेंसिटिव ज़ोन में शामिल किया जा सकता है।
  • संबंधित मंत्रालय:
    • ESZ को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा अधिसूचित किया जाता है।
  • उद्देश्य:
    • इनका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास कुछ गतिविधियों को नियंत्रित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों की निकटवर्ती संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।
  • ESZ में गतिविधियों का विनियमन:
    • प्रतिबंधित गतिविधियाँ: वाणिज्यिक खनन, मिलों, उद्योगों के कारण होने वाले प्रदूषण (वायु, जल, मिट्टी, शोर आदि), प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं की स्थापना (HEP), लकड़ी का व्यावसायिक उपयोग, राष्ट्रीय उद्यान के ऊपर गर्म हवा के गुब्बारे जैसी पर्यटन गतिविधियाँ, निर्वहन अपशिष्ट या किसी भी ठोस अपशिष्ट या खतरनाक पदार्थों का उत्पादन जैसी गतिविधियाँ।
    • विनियमित गतिविधियाँ: वृक्षों की कटाई, होटल और रिसॉर्ट्स की स्थापना, प्राकृतिक जल संसाधनों का वाणिज्यिक उपयोग, बिजली के तारों का निर्माण, कृषि प्रणाली का व्यापक परिवर्तन आदि।
    • अनुमत गतिविधियाँ: कृषि या बागवानी प्रथाओं, वर्षा जल संचयन, जैविक खेती, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग, सभी गतिविधियों के लिये हरित प्रौद्योगिकी को अपनाने आदि की अनुमति होती है।
  • लाभ:
    • इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) घोषित करने का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्रों की गतिविधियों को विनियमित और प्रबंधित करके संभावित जोखिम को कम करना है।
    • ये उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों से कम सुरक्षा वाले क्षेत्रों में संक्रमण क्षेत्र के रूप में भी कार्य करते हैं।
    • ESZs इन-सीटू (स्व-स्थाने) संरक्षण में मदद करते हैं, जो अपने प्राकृतिक आवास में एक लुप्तप्राय प्रजाति के संरक्षण से संबंधित है, उदाहरण के लिये काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, असम के एक-सींग वाले गैंडे का संरक्षण।
    • इसके अलावा ESZs, वन क्षय और मानव-पशु संघर्ष को कम करते हैं।
  • चुनौतियाँ:
    • जलवायु परिवर्तन: वैश्विक तापमान में वृद्धि ने ESZs पर भूमि, जल और पारिस्थितिक तनाव उत्पन्न किया है।
    • स्थानीय समुदाय: कृषि में उपयोग की जाने वाली स्लैश और बर्न तकनीक, बढ़ती आबादी का दबाव तथा जलावन की लकड़ी एवं वन उपज की बढ़ती मांग आदि इन संरक्षित क्षेत्रों पर दबाव डालती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई मानसून में समानता

चर्चा में क्यों?

जीवाश्म पत्तों (Fossil Leaves) के आधार पर किये गए एक हालिया अध्ययन के अनुसार, 25 मिलियन वर्ष पूर्व भारतीय मानसून, ऑस्ट्रेलिया के वर्तमान से समानता रखता था।

  • भारतीय मानसून की पूर्ववर्ती गतिशीलता को समझते हुए भविष्य में मानसून की भविष्यवाणी करने के लिये जलवायु मॉडलिंग (Climate Modelling) में मदद मिलेगी।

प्रमुख बिंदु: 

अध्ययन के विषय में:

  • इस अध्ययन में दक्कन ज्वालामुखी प्रांत, मेघालय के पूर्वी गारो हिल्स, राजस्थान में गुरहा खदान और असम में माकुम कोलफील्ड से एकत्र किये गए विभिन्न भूवैज्ञानिक अवधियों की जीवाश्म पत्तियों के रूपात्मक विशेषताओं का विश्लेषण किया गया।
    • पत्तियों की रूपात्मक विशेषताएँ जैसे- शीर्ष, आधार और उसकी आकृति आदि वर्ष भर आने वाले सभी मौसमों में पारिस्थितिक रूप से विद्यमान जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप पाई गई हैं।
  • अध्ययन में प्राप्त संकेत इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि भारत में प्राप्त जीवाश्म पत्तियांँ भारत की वर्तमान मानसून प्रणाली के अनुकूल न होकर ऑस्ट्रेलियाई मानसून के अनुकूल थीं।
    • भारत के गोंडवाना से अलग होने के बाद, इसने दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तर की तरफ 9000 किलोमीटर की यात्रा की तथा इसकी वर्तमान स्थिति और इसके यूरेशिया के साथ जुड़ने में 160 मिलियन वर्ष का समय लगा।
  • पुनर्निर्मित तापमान डेटा बताते हैं कि अध्ययन में शामिल किये गए सभी जीवाश्म स्थलों (उष्णकटिबंधीय से उपोष्णकटिबंधीय) की जलवायु गर्म थी तथा जीवाश्म स्थलों के तापमान में 16.3 से 21.3 डिग्री सेल्सियस की भिन्नता देखी गई।
  • सभी जीवाश्म स्थलों में वर्षा का उच्च स्तर विद्यमान था, जिसमे 191.6 सेमी से 232 सेमी तक भिन्नता देखी गई।

गोंडवाना से भारत का अलग होना:

  • 140 मिलियन वर्ष से अधिक समय पहले, भारत गोंडवाना (Gondwana) नामक विशाल भू-भाग का हिस्सा था।
    • वर्तमान दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, अंटार्कटिका और ऑस्ट्रेलिया भी गोंडवाना का हिस्सा थे ।
    • टेथिस महासागर- जोकि एक विशाल जलीय भू-भाग था, ने गोंडवाना को यूरेशिया से अलग कर दिया।
  • जब इस विशाल भू-भाग का विभाजन हुआ तो एक विवर्तनिक प्लेट (Tectonic Plate) से भारत और आधुनिक मेडागास्कर का निर्माण हुआ ।
  • फिर, भारत मेडागास्कर से अलग हुआ तथा लगभग 20 सेमी/वर्ष की गति के साथ उत्तर-पूर्व की ओर आगे बढ़ा।
  • हिमालय की उत्पत्ति के समय लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व यह महाद्वीप यूरेशिया से टकराया।
  • भारत अभी भी उसी दिशा में बढ़ रहा है लेकिन यूरेशियन प्लेट के प्रतिरोध के कारण वर्तमान में इसकी गति लगभग 4 सेमी/वर्ष है।

Tectonic-Plate

भारतीय मानसून:

  • भारतीय जलवायु को 'मानसूनी' प्रकार की जलवायु के रूप में वर्णित किया गया है। एशिया में, इस प्रकार की जलवायु मुख्य रूप से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में पाई जाती है।
  • भारत में मौसम को कुल चार हिस्सों में विभाजित किया जाता है, जिसमें से 2 मानसून से संबंधित हैं:
    • दक्षिण-पश्चिम मानसून (Southwest Monsoon)- दक्षिण-पश्चिम मानसून से होने वाली वर्षा ‘मौसमी’ प्रकृति की होती है, जो जून और सितंबर के मध्य देखी जाती है।
    • मानसून का निवर्तन (Retreating Monsoon)- अक्तूबर और नवंबर माह मानसून के निवर्तन के समय के रूप में जाने जाते हैं।
  • दक्षिण पश्चिम मानसून के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक:
    • भूमि और जल के ठंडा और गर्म होने का अंतर भारतीय भू-भाग पर निम्न दबाव का निर्माण करता है, जबकि समुद्र में तुलनात्मक रूप से उच्च दबाव होता है।
    • गर्मियों के समय इंटर ट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन (Inter Tropical Convergence Zone- ITCZ) की स्थिति में बदलाव होता है, जो गंगा के मैदान पर खिसक जाता है।(यह भूमध्यरेखीय गर्त सामान्य रूप से भूमध्य रेखा के लगभग 5 ° N पर स्थित होता है। इसे मानसून-गर्त के रूप में भी जाना जाता है)।
  • मेडागास्कर के पूर्व में, हिंद महासागर में लगभग 20 ° S पर एक उच्च दबाव वाले क्षेत्र का निर्माण होता है। इस उच्च दबाव वाले क्षेत्र की तीव्रता और स्थिति भारतीय मानसून को प्रभावित करती है।
  • तिब्बत का पठार गर्मियों के दौरान तीव्रता से गर्म हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप समुंद्री तल से लगभग 9 किमी की ऊंँचाई पर मज़बूत ऊर्ध्वाधर हवा की धाराओं (Vertical Air Currents) और निम्न दबाव के क्षेत्र का निर्माण होता है।
  • गर्मियों के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर ‘उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम’ (Tropical Easterly Jet Stream) तथा हिमालय के उत्तर में ‘उपोष्ण पछुआ जेट स्ट्रीम’ (Westerly Jet Stream) की उपस्थिति। 
  • उष्णकटिबंधीय पूर्वी स्ट्रीम (अफ्रीकी ईस्टर जेट) की मौजूदगी। 
  • अल नीनो/दक्षिणी दोलन (SO): प्रायः जब उष्णकटिबंधीय पूर्वी-दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में उच्च दबाव का निर्माण होता है, तो उष्णकटिबंधीय पूर्वी हिंद महासागर में निम्न दबाव का क्षेत्र निर्मित होता है, परंतु कुछ ऐसे विशिष्ट वर्ष होते हैं जब दबाव की यह स्थिति विपरीत या परिवर्तित हो जाती है तथा पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में कम दबाव का निर्माण होता है। दबाव की स्थिति में इस आवधिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन के रूप में जाना जाता है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

5जी परीक्षण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार के दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications- DoT) ने दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (Telecom Service Providers- TSPs) को 5जी प्रौद्योगिकी (5G Technology) के उपयोग और उससे संबंधित परीक्षण की अनुमति दे दी है।

  • यह औपचारिक रूप से भारत में 5G प्रौद्योगिकी को लेकर चल रही प्रतिस्पर्द्धा से ‘Huawei’ और ‘ZTE’ जैसी चीन की कंपनियों को बाहर कर देगा।

प्रमुख बिंदु:

परीक्षण के संदर्भ में:

  • प्रारंभ में परीक्षणों की अवधि 6 महीने के लिये है। इसमें उपकरणों की खरीद और स्थापना के लिये 2 महीने की अवधि भी शामिल है।
  • TSPs को शहरी क्षेत्रों, अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में अपने सेट का परीक्षण करना होगा।
  • TSPs को विभिन्न बैंडों में प्रायोगिक स्पेक्ट्रम प्रदान किये जाएंगे, जिसमें मिड-बैंड (3.2 गीगाहर्ट्ज़ से 3.67 गीगाहर्ट्ज़), मिलीमीटर वेव बैंड (24.25 गीगाहर्ट्ज़ से 28.5 गीगाहर्ट्ज़) और सब-गीगाहर्ट्ज़ बैंड (700 गीगाहर्ट्ज़) शामिल हैं।
  • इस दौरान टेली-मेडिसिन, टेली-शिक्षा, ऑगमेंटेड/वर्चुअल रियल्टी (Augmented/Virtual Reality), ड्रोन-आधारित कृषि निगरानी जैसे अनुप्रयोगों का परीक्षण किया जाएगा। परीक्षणों के दौरान प्राप्त आँकड़ों को भारत में ही संग्रहीत किया जाएगा।
  • स्वदेशी प्रौद्योगिकी का उपयोग: TSPs को पहले से मौजूद 5जी प्रौद्योगिकी के अलावा 5जीआई प्रौद्योगिकी (5Gi Technology) का उपयोग कर परीक्षण करने के लिये प्रोत्साहित किया गया है।
    • 5Gi प्रौद्योगिकी की वकालत भारत द्वारा की गई थी और इसे अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunications Union- ITU)- सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के लिये संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी द्वारा अनुमोदित किया गया है।
    • 5Gi प्रौद्योगिकी का विकास आईआईटी मद्रास के वायरलेस टेक्नोलॉजी उत्कृष्ट केंद्र (IIT Madras, Centre of Excellence in Wireless Technology- CEWiT) और आईआईटी हैदराबाद (IIT Hyderabad) द्वारा किया गया है।
    • यह 5G टावरों और रेडियो नेटवर्क की व्यापक पहुँच को सुविधाजनक बनाता है।

5जी परीक्षण की आवश्यकता:

  • वर्तमान में भारत में दूरसंचार बाज़ार केवल तीन निजी टेली कम्युनिकेशन कंपनियों (Telcos) तक ही सीमित रह गया है और शेष कंपनियाँ निवेश के मुकाबले कम आय के कारण लगभग लगभग बंद हो चुकी हैं अथवा बंद होने की कगार पर हैं। दूरसंचार क्षेत्र में वर्तमान में दो राज्य संचालित कंपनियाँ, महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL) और भारत संचार निगम लिमिटेड (Bharat Sanchar Nigam Limited- BSNL) बची हुई हैं, परंतु ये भी आर्थिक क्षति का सामना कर रही हैं।
  • ऐसे में अपने औसत राजस्व को बढ़ाने के लिये टेली कम्युनिकेशन कंपनियों के लिये जल्द-से-जल्द नई 5जी प्रौद्योगिकी पेशकश करना आवश्यक हो गया है।

भारत में चीनी दूरसंचार कंपनियाँ:

  • भारतीय दूरसंचार मंत्रालय ने चीनी उपकरण निर्माताओं जैसे- ‘Huawei’ और ‘ZTE’ को 5जी परीक्षणों से बाहर कर दिया है, जो इन कंपनियों को प्रतिबंधित करने वाला नवीनतम देश बन गया है।
    • अमेरिका का कहना है कि चीन द्वारा ‘Huawei’ कंपनी के 5G उपकरणों का उपयोग जासूसी के लिये किया जा सकता है, अतः अमेरिका के संघीय संचार आयोग (FCC) ने कुछ अमेरिकी दूरसंचार कंपनियों को भी आदेश दिया है कि वे अपने नेटवर्क से ‘Huawei’ के उपकरणों को हटा दें।
  • भारत ने अभी चीन की कंपनियों पर किसी भी प्रकार का आधिकारिक प्रतिबंध लागू नहीं किया है, क्योंकि चीन द्वारा भारत के मोबाइल प्रदाताओं को कई महत्त्वपूर्ण उपकरणों की आपूर्ति की जाती है।
  • हालाँकि, सरकार ने देश के टेलीकॉम नेटवर्क के लिये एक सख्त और अधिक सुरक्षा-उन्मुख दृष्टिकोण का संकेत दिया है, ऐसे में यह माना जा रहा है कि भारत सरकार का यह दृष्टिकोण चीन की कंपनियों के खिलाफ कार्य करेगा।
    • दिसंबर 2020 में, सरकार ने दूरसंचार क्षेत्र के लिये नए राष्ट्रीय सुरक्षा निर्देशों के हिस्से के रूप में दूरसंचार के ‘विश्वसनीय’ स्रोतों की पहचान करने की घोषणा की थी, जिससे देश के विभिन्न दूरसंचार सेवा प्रदत्ता अपने नेटवर्क में ‘विश्वसनीय’ स्रोतों से आने वाले उत्पादों का प्रयोग कर सकें।
    • इन नए खरीद नियमों के जून 2021 में लागू होने की संभावना है और यह भारतीय नेटवर्क प्रदाताओं के लिये ‘विश्वसनीय स्रोतों’ से निश्चित प्रकार के उपकरण खरीदने को अनिवार्य बनाएगा। इसमें प्रतिबंधित आपूर्तिकर्त्ताओं की सूची भी शामिल हो सकती है।

5जी प्रौद्योगिकी:

5जी प्रौद्योगिकी की विशेषताएँ:

  • 5जी में बैंड्स- 5G मुख्य रूप से 3 बैंड (लो, मिड और हाई बैंड स्पेक्ट्रम) में कार्य करता है, जिसमें सभी के बैंड्स के कुछ विशिष्ट उपयोग और कुछ विशिष्ट सीमाएँ हैं।
    • लो बैंड स्पेक्ट्रम (Low Band Spectrum): इसमें इंटरनेट की गति और डेटा के इंटरैक्शन-प्रदान की अधिकतम गति 100Mbps (प्रति सेकंड मेगाबिट्स) तक होती है।
    • मिड बैंड स्पेक्ट्रम (Mid-Band Spectrum): इसमें लो बैंड के स्पेक्ट्रम की तुलना में इंटरनेट की गति अधिक होती है, फिर भी इसके कवरेज क्षेत्र और सिग्नलों की कुछ सीमाएँ हैं।
    • हाई बैंड स्पेक्ट्रम (High-Band Spectrum): इसमें उपरोक्त अन्य दो बैंड्स की तुलना में उच्च गति होती है, लेकिन कवरेज और सिग्नल भेदन की क्षमता बेहद सीमित होती है।
  • उन्नत LTE:  5जी ‘लॉन्ग-टर्म एवोलूशन’ (LTE) मोबाइल ब्रॉडबैंड नेटवर्क में सबसे नवीनतम अपग्रेड है।
  • इंटरनेट स्पीड और दक्षता: 5जी के हाई-बैंड स्पेक्ट्रम में इंटरनेट की स्पीड को 20 Gbps (प्रति सेकंड गीगाबिट्स) तक दर्ज किया गया है, जबकि 4G में इंटरनेट की अधिकतम स्पीड 1 Gbps होती है।
    • 5G तीन गुना अधिक स्पेक्ट्रम दक्षता और अल्ट्रा लो लेटेंसी प्रदान करेगा।
      • लेटेंसी, नेटवर्किंग से संबंधित एक शब्द है। एक नोड से दूसरे नोड तक जाने में किसी डेटा पैकेट द्वारा लिये गए कुल समय को लेटेंसी कहते हैं। लेटेंसी समय अंतराल या देरी को संदर्भित करता है।

5G के अनुप्रयोग:

  • चौथी औद्योगिक क्रांति: इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), क्लाउड, बिग डेटा, कृत्रिम बुद्दिमत्ता (AI) और एज कंप्यूटिंग के साथ, 5G चौथी औद्योगिक क्रांति का एक महत्त्वपूर्ण प्रवर्तक हो सकता है।
    • सूचना का वास्तविक समय प्रसारण: 5जी के प्राथमिक अनुप्रयोगों में से एक सेंसर-एम्बेडेड नेटवर्क (Sensor-Embedded Networks) का कार्यान्वयन होगा, जो विभिन्न क्षेत्रों जैसे- विनिर्माण, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं और कृषि आदि में वास्तविक समय पर सूचना के प्रसारण की अनुमति देगा।
    • कुशल परिवहन अवसंरचना: 5G परिवहन अवसंरचना को स्मार्ट बनाकर अधिक कुशल बनाने में भी मदद कर सकता है। 5G वाहन-से-वाहन और वाहन-से-अवसंरचना के संचार को सक्षम करेगा और ड्राइवर रहित कारों के निर्माण में मदद करेगा।
  • सेवाओं की पहुँच में सुधार: 5G नेटवर्क, मोबाइल बैंकिंग और स्वास्थ्य सेवा आदि की पहुँच में भी सुधार कर सकता है।
  • स्थानीय अनुसंधान: यह स्थानीय अनुसंधान और विकास (Research and Development) पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करेगा, ताकि वाणिज्यिक ज़रूरतों के अनुरूप अभिनव अनुप्रयोगों को विकसित किया जा सके।
  • आर्थिक प्रभाव: सरकार द्वारा नियुक्त पैनल (2018) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 5G से वर्ष 2035 तक भारत में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का संचयी आर्थिक प्रभाव पैदा होने की संभावना है।

पहली पीढ़ी से पाँचवीं पीढ़ी तक का विकास

  • 1जी को 1980 के दशक में लॉन्च किया गया था और इसने एनालॉग रेडियो सिग्नल पर कार्य किया तथा केवल वॉयस कॉल को संभव बनाया।
  • 2जी को 1990 के दशक में लॉन्च किया गया था, जो डिजिटल रेडियो सिग्नल का उपयोग करता है और 64 केबीपीएस की बैंडविड्थ के साथ वॉयस और डेटा ट्रांसमिशन दोनों का कार्य करता है।
  • 3जी को 2000 के दशक में 1 एमबीपीएस से 2 एमबीपीएस की गति के साथ लॉन्च किया गया था और इसमें डिजिटल वॉयस, वीडियो कॉल और कॉन्फ्रेंसिंग सहित टेलीफोन सिग्नल प्रसारित करने की क्षमता है।
  • 4जी को वर्ष 2009 में 100 एमबीपीएस से 1 जीबीपीएस की अधिकतम स्पीड के साथ लॉन्च किया गया था और यह 3डी आभासी वास्तविकता को भी सक्षम करता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

बॉण्ड यील्ड में गिरावट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (G-SAP) के तहत सरकारी प्रतिभूतियों (G-Sec) की खरीद का निर्णय लिया है, जिसके परिणामस्वरूप बेंचमार्क पर यील्ड के 10-वर्षीय बॉण्ड में 6% से कम की गिरावट दर्ज की गई।

  • भारत में, 10-वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों की यील्ड को बेंचमार्क माना जाता है, जो समग्र ब्याज़ दर के परिदृश्य को दर्शाता है।

प्रमुख बिंदु 

बॉण्ड यील्ड :

  • बॉण्ड यील्ड का आशय बॉण्ड पर मिलने वाले रिटर्न से होता है। बॉण्ड यील्ड की गणना करने के लिये वार्षिक कूपन दर को बॉण्ड के वर्तमान बाज़ार मूल्य से विभाजित किया जाता है
    • बॉण्ड: यह धन उधार लेने का एक साधन है। एक देश की सरकार या एक कंपनी द्वारा धन का सृजन करने के लिये एक बॉण्ड जारी किया जा सकता है। 
    • निर्धारित ब्याज़ दर या कूपन दर : यह बॉण्ड के अंकित मूल्य पर बॉण्ड जारीकर्त्ता द्वारा निर्धारित ब्याज़ की दर है।

बॉण्ड यील्ड के गतिशील होने के सामान्य प्रभाव: 

  • बॉण्ड यील्ड की गतिशीलता सामान्यतः ब्याज़ दरों के रुझान पर निर्भर करती है, जिसके परिणामस्वरूप निवेशकों को पूंजीगत लाभ या हानि हो सकता है। 
    • बाज़ार में बॉण्ड यील्ड की बढ़ोतरी से बॉण्ड की कीमतों में कमी आएगी।
    • बॉण्ड में गिरावट से निवेशक को फायदा मिलेगा क्योंकि बॉण्ड की कीमत बढ़ने  पूंजीगत लाभ में वृद्धि होगी।

बॉन्ड यील्ड में कमी के कारण:

  • कोविड -19 के कारण उत्पन्न आर्थिक अनिश्चितता।
  • अप्रैल, 2021 में RBI द्वारा G-SAP को लॉन्च किया गया, जिसके कारण सरकारी प्रतिभूति यील्ड में कमी आई, जो तब से जारी है।

प्रभाव: 

  • बेहतर इक्विटी बाज़ार:
    •  यील्ड में गिरावट इक्विटी बाज़ार के लिये फायदेमंद साबित होती है, क्योंकि धन का प्रवाह ऋण निवेश से इक्विटी निवेश की तरफ होने लगता है।
      • इक्विटी बाज़ार: यह एक ऐसा बाज़ार है, जिसमें कंपनियों के शेयर जारी कर उनका व्यापार, या तो एक्सचेंजों या ओवर-द-काउंटर बाज़ारों के माध्यम से किया जाता है। इसे शेयर बाज़ार के रूप में भी जाना जाता है।
    • इसका मतलब है कि जैसे-जैसे बॉण्ड यील्ड में कमी आती  जाती है, इक्विटी बाज़ार बड़े लाभ के साथ आगे बढ़ते हैं और जैसे-जैसे बॉण्ड यील्ड में बढ़ोत्तरी होने लगती है , इक्विटी बाज़ार लड़खड़ाने लगते हैं।
  • पूंजी-लागत में कमी:
    • जब बॉण्ड यील्ड में बढ़ोतरी होती है, तो पूंजी की लागत भी बढ़ जाती है। इसका अभिप्राय यह है कि भविष्य के नकदी प्रवाह को उच्च दर पर छूट प्रदान की जाएगी।
    • डिस्काउंट या छूट भुगतान के वर्तमान मूल्य या भुगतान की एक प्रवाह निर्धारित करने की प्रक्रिया है, जो भविष्य में प्राप्त की जानी है।
    • यह इन शेयरों के मूल्यांकन को संकुचित करता है। यह एक कारण है कि जब भी RBI द्वारा ब्याज़ दरों में कटौती की जाती है, तो यह शेयरों के लिये सकारात्मक होता है।
  • दिवालियापन के जोखिम को कम करना:
    • जब बॉण्ड यील्ड में बढ़ोतरी होती है, तो यह संकेत देता है कि कॉरपोरेट्स को ऋण पर अधिक ब्याज़ देना होगा।
    • जैसे-जैसे ऋण शोधन की लागत बढ़ती है, दिवालियापन और डिफॉल्ट का जोखिम भी बढ़ता है और इस प्रकार के जोखिम मिड-कैप और अत्यधिक लीवरेज़्ड कंपनियों को कमज़ोर बनाते है।

RBI का रुख:

  • RBI का उद्देश्य यील्ड को कम रखना है, ताकि बाज़ार में उधार दरों में किसी भी तरह के उतार-चढ़ाव को प्रतिबंधित करने हेतु सरकार की उधार की लागत को कम किया जा सके
  • बॉण्ड यील्ड में बढ़ोतरी से बैंकिंग सिस्टम में ब्याज़ दरों पर दबाव बढ़े,गा जिससे उधार देने की दर में बढ़ोतरी होगी। RBI ब्याज़ दरों को प्रारंभिक (किक-स्टार्ट) निवेश के लिये  स्थिर रखना चाहता है।

सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (G-SAP) 

परिचय :

  • RBI ने वर्ष 2021-22 के लिये एक द्वितीयक बाज़ार सरकारी प्रतिभूति (G-sec) अधिग्रहण कार्यक्रम या G-SAP 1.0 लागू करने का निर्णय लिया है।
  • इस कार्यक्रम के तहत RBI सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) की खुली बाज़ार खरीद के विशिष्ट मूल्य का संचालन करेगा।

उद्देश्य:

  • विभिन्न वित्तीय बाज़ार साधनों के मूल्य निर्धारण में सरकारी प्रतिभूति बाज़ार की केंद्रीय भूमिका को देखते हुए सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में अस्थिरता से बचना।

महत्त्व:

  • यह बॉण्ड बाज़ार सहभागियों को वित्त वर्ष 2021-22 में RBI के समर्थन की प्रतिबद्धता के संबंध में निश्चितता प्रदान करेगा।
  • इस संरचित कार्यक्रम की घोषणा से रेपो दर और 10-वर्षीय सरकारी बॉण्ड यील्ड के बीच के अंतर को कम करने में मदद मिलेगी। 
    • परिणामस्वरूप यह वित्त वर्ष 2021-22 में केंद्र और राज्यों की उधार लेने की कुल लागत को कम करने में मदद करेगा।
    • रेपो दर वह दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को धन उधार देता है।
  • यह व्यवस्थित तरलता की स्थिति के बीच ‘यील्ड कर्व’ (Yield Curve) के स्थिर और व्यवस्थित विकास को सक्षमता प्रदान करेगा।
    • ‘यील्ड कर्व’ (Yield Curve): यह एक ऐसी रेखा है, जो समान क्रेडिट गुणवत्ता वाले, लेकिन अलग-अलग परिपक्वता तिथियों वाले बॉण्ड की ब्याज़ दर को दर्शाती है।
      • ‘यील्ड कर्व’ का ढलान भविष्य की ब्याज़ दर में बदलाव और आर्थिक गतिविधि को आधार प्रदान करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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