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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोविड के कारण मृत्यु: विकसित बनाम विकासशील देश

  • 01 Jan 2021
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

एक अध्ययन के अनुसार, समृद्ध और विकसित देशों में बेहतर साफ-सफाई की स्थिति भी कोरोनोवायरस से संबंधित मौतों की उच्च दर के लिये उत्तरदायी हो सकती है।

प्रमुख बिंदु

अध्ययन:

  • यह अध्ययन 29 जून, 2020 तक के उन आँकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। उल्लेखनीय है कि इस समय तक विश्व भर में 5 लाख से अधिक मौतें दर्ज की गई थीं जिनमें से 70% से अधिक मौतें उच्च आय वाले देशों में हुई थीं।
  • इस रिपोर्ट में सकल घरेलू उत्पाद, जनसंख्या घनत्व, मानव विकास सूचकांक रेटिंग, जनसांख्यिकी, साफ-सफाई और स्व-प्रतिरक्षित बीमारियों की व्यापकता जैसे संकेतकों के आधार पर विभिन्न देशों में कोरोनोवायरस के कारण हुई मौतों के बीच सह-संबद्धता व्यक्त की गई है।

परिणाम:

  • विकसित देशों का मामला:
    • प्रति मिलियन जनसंख्या की मृत्यु की उच्चतम दर वाले देशों में बेल्ज़ियम, इटली और स्पेन शामिल हैं, जहाँ प्रति मिलियन 1,200 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। अमेरिका और ब्रिटेन में प्रति मिलियन जनसंख्या पर 1,000 से अधिक मौतें हुई हैं।
  • भारत विशिष्ट परिणाम:
    • इसके विपरीत भारत में प्रति मिलियन लगभग 110 मौतें हुई हैं, जो कि विश्व भर में कोविड के कारण हुई मौतों के औसत 233 के आधे से भी कम है। 
  • विरोधाभास:
    • यद्यपि निम्न-आय वाले देशों का जनसंख्या घनत्व अधिक तथा स्वच्छता मानक बहुत कम हैं फिर भी धनी एवं विकसित देशों की तुलना में यहाँ कोरोनावायरस के कारण होने वाली मौतों की संख्या कम रही है।
  • अपवाद:
    • जापान, फिनलैंड, नॉर्वे, मोनाको या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी बहुत कम मृत्यु दर दर्ज की गई है।
  • अन्य कारक शामिल:
    • महामारी का चरण।
    • कम विकसित देशों में कम रिपोर्टिंग/परीक्षण जो मृत्यु दर को भी प्रभावित कर सकता है।
    • यह पाया गया कि 'स्वच्छता परिकल्पना' (Hygiene Hypothesis) इन्हीं कारणों में से एक हो सकती है।

स्वच्छता परिकल्पना

  • स्वच्छता परिकल्पना के अनुसार, कम सफाई मानकों वाले देशों में लोग कम उम्र में ही संचारी रोगों के संपर्क में आ जाते हैं और मज़बूत प्रतिरक्षा विकसित करते हैं, जिससे उन्हें बाद के जीवन में बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है जिसे ‘प्रतिरक्षा प्रशिक्षण’ कहा जाता है। 
  • इसके विपरीत अमीर देशों में लोगों के पास स्वास्थ्य सेवा एवं टीके और स्वच्छ पेयजल जैसी सुविधाओं की बेहतर पहुँच है, जिसके कारण वे ऐसे संक्रामक रोगों से सुरक्षित रहते हैं। विरोधाभासी रूप से इसका अर्थ यह भी है कि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली इस तरह के खतरों के प्रति असंयमित रहती है।
  • इस परिकल्पना का उपयोग कभी-कभी स्व-प्रतिरक्षित रोगों की व्यापकता को समझाने के लिये भी किया जाता है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली कभी-कभी 'अति प्रतिक्रियात्मक (Overreacts)' हो जाती है और शरीर की अपनी कोशिकाओं पर हमला करना शुरू कर देती है, जिससे टाइप -1 मधुमेह मेलिटस या मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसे विकार हो जाते हैं।
  • हालाँकि कुछ लोगों द्वारा यह सुझाव दिया जाता है कि इस परिकल्पना का नाम बदल देना ही बेहतर होगा। उदाहरण के लिये इसे 'माइक्रोबियल एक्सपोज़र' परिकल्पना, या 'माइक्रोबियल अवक्षेपण' जैसा नाम दिया जा सकता है। यदि 'स्वच्छता' जैसे शब्दों पर ध्यान न दिया जाए तो इससे रोगाणुओं के वास्तविक प्रभाव को निर्धारित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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