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डेली न्यूज़

  • 03 May, 2023
  • 57 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

साइकेडेलिक पदार्थ

प्रिलिम्स के लिये:

साइकेडेलिक पदार्थ, मनोचिकित्सा, NDPS अधिनियम 1985, अवसाद, नशीली दवाओं की तस्करी।

मेन्स के लिये:

साइकेडेलिक पदार्थ और उनके निहितार्थ।

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में मनोचिकित्सा (Psychiatry) के नैदानिक और अनुसंधान क्षेत्र में साइकेडेलिक्स पदार्थ के उपयोग को फिर से महत्त्व दिया जा रहा है।

साइकेडेलिक:

  • परिचय:
    • साइकेडेलिक्स दवाओं का एक समूह है जो धारणा, मनोदशा और विचार प्रक्रिया को बदल देता है, जबकि व्यक्ति स्पष्ट रूप से सचेत होता है। सामान्यतः व्यक्ति की सूझबूझ या दृष्टिकोण भी अक्षुण्ण रहती है।
    • साइकेडेलिक्स ज़हरीले पदार्थों या नशे की लत नहीं हैं। अवैध दवाओं की तुलना में साइकेडेलिक्स बहुत कम हानिकारक हैं।
      • दो सबसे अधिक इस्तेमाल किये जाने वाले साइकेडेलिक्स डी-लिसेर्जिक एसिड डायथाइलैमाइड (LSD) और साइलोसाइबिन (psilocybin) हैं।
      • मेस्केलिन कम इस्तेमाल किये जाने वाले साइकेडेलिक्स में से है जो उत्तर अमेरिकी पियोट कैक्टस (लोफोफोरा विलियम्सी) में पाया जाता है और एन, एन-डाइमिथाइलट्रिप्टामाइन, दक्षिण अमेरिकी धार्मिक अनुष्ठान अयाहुस्का का एक प्रमुख घटक है।
  • उपभोग के बाद शरीर पर प्रभाव: साइकेडेलिक पदार्थों का उपयोग करने वालों में सोचने, समझने के तरीके में बदलाव, मनोदशा में परिवर्तन तथा मतिभ्रम जैसे अनुभव देखने को मिलते हैं:
    • दृश्य क्षेत्र (Vision Domain) उन क्षेत्रों में से एक है जिसमें अवधारणात्मक बदलाव सबसे अधिक बार होता है।
      • संवेदी तौर-तरीके में बदलाव की विचित्र घटना देखी जा सकती है जिसे सिनेस्थेसिया कहा जाता है, इसमें एक व्यक्ति को आवाजें दिखाई दे सकती हैं और वह रंगों को सुन सकता है।
    • दैहिक अनुभवों में आंत्र संबंधी, स्पर्शनीय और इंटरओसेप्टिव (शरीर की आंतरिक स्थितियाँ) अनुभूतियाँ शामिल की जा सकती हैं।
    • उत्साह, चिंता और व्यामोह मनोदशा परिवर्तन के अंतर्गत आते हैं।
    • उत्साही अनुभवों में व्यक्ति को पारलौकिक आध्यात्मिक अनुभव भी हो सकता है।
  • मुद्दे:
    • ओवरडोज़ के लिये कम उद्दीपन और आश्वस्त वातावरण में कार्डियक मॉनिटरिंग तथा सहायक प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
    • सिंथेटिक साइकेडेलिक्स (जैसे 25I-NBOMe) एक्यूट कार्डियक, सेंट्रल नर्वस सिस्टम और लिम्ब इस्किमिया के साथ-साथ सेरोटोनिन सिंड्रोम से जुड़े हुए हैं।
      • सिंथेटिक साइकेडेलिक के उपयोग को सीधे तौर मौत के लिये ज़िम्मेदार ठहराए जाने की खबरें भी मिली हैं।
  • अवसाद/डिप्रेशन का उपचार:
    • नवंबर 2022 में साइलोसाइबिन चरण- II के परीक्षण के परिणाम न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुए थे। परीक्षण में पाया गया कि साइलोसाइबिन की 25 मिलीग्राम की एक एकल खुराक ने उपचार-प्रतिरोधी अवसाद वाले लोगों में तीन सप्ताह में अवसाद के स्तर को कम कर दिया।
    • इन निष्कर्षों को हाल ही में एक चरण- IIB परीक्षण में दोहराया गया था, जिसमें पाया गया कि 25 मिलीग्राम साइलोसाइबिन की एक खुराक से अवसाद की गंभीरता, चिंता की स्थिति में सुधार देखा गया।

नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट 1985:

  • यह 1985 में अधिनियमित किया गया था और देश में ड्रग्स और उनकी तस्करी से संबंधित है।
    • वर्ष 1988, 2001 और 2014 के बाद अधिनियम में तीन बार संशोधन किये गए हैं।
  • अधिनियम भाँग, हेरोइन, अफीम आदि सहित अनेक मादक दवाओं या मन:प्रभावी पदार्थों के उत्पादन, निर्माण, बिक्री, खरीद, परिवहन तथा उपभोग पर प्रतिबंध लगाता है।
    • हालाँकि अधिनियम के तहत भाँग प्रतिबंधित नहीं है।
  • NDPS अधिनियम की धारा 20 के तहत अधिनियम में परिभाषित भाँग के उत्पादन, निर्माण, बिक्री, खरीद, आयात और अंतर-राज्य निर्यात के लिये दंड का प्रावधान है। निर्धारित सज़ा जब्त दवाओं की मात्रा पर आधारित है।
  • यह कुछ मामलों में मौत की सज़ा का भी प्रावधान करती है जहाँ एक व्यक्ति बार-बार अपराध करता है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इस्पात विनिर्माण का डीकार्बोनाइज़ेशन

प्रिलिम्स के लिये:

हाइड्रोजन, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, डायरेक्ट रिडक्शन यूज़िंग हाइड्रोजन (DR-H)

मेन्स के लिये:

इस्पात विनिर्माण में DR-H का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

विश्व में विनिर्माण और ऑटोमोटिव क्षेत्रों को हरित बनाने के लिये हाइड्रोजन एक प्रमुख घटक है क्योंकि यह ऐसा ईंधन है जिसके उत्पादन एवं उपयोग में कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है।

  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी कम करने के लिये कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा में कमी लाने वाले अभिकारक के रूप में हाइड्रोजन का इस्तेमाल किया जा सकता है।

इस्पात विनिर्माण में हाइड्रोजन डायरेक्ट रिडक्शन प्रोसेस:

  • प्रक्रिया:
    • इस्पात बनाने में डायरेक्ट रिडक्शन यूज़िंग हाइड्रोजन (DR-H) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ब्लास्ट फर्नेस का उपयोग किये बिना आयरन ऑक्साइड (Fe2O3) से धात्विक आयरन (Fe) प्राप्त करने के लिये हाइड्रोजन गैस का उपयोग किया जाता है।
    • इस पद्धति को इस्पात उत्पादन के लिये "हरित मार्ग (Green Route)" के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह पारंपरिक इस्पात विनिर्माण/उत्पादन प्रक्रियाओं से जुड़े कार्बन उत्सर्जन को काफी कम कर देती है।
    • डायरेक्ट रिडक्शन प्रक्रिया में आमतौर पर 600 से 800 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर एक रिएक्टर वेसल में हाइड्रोजन गैस और लौह अयस्क के पेल्लेट्स को मिलाना शामिल होता है।
    • हाइड्रोजन आयरन ऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करके धात्विक लोहा और जलवाष्प बनाता है, जैसा कि निम्नलिखित रासायनिक समीकरण में दिखाया गया है:

Fe2O3 + 3H2 → 2Fe + 3H2O

  • महत्त्व:
    • कम कार्बन उत्सर्जन: एक रेड्युसिंग एजेंट के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग उप-उत्पाद के रूप में केवल जल वाष्प उत्पन्न करता है जिससे यह कोयला/कोक के लिये एक अधिक स्वच्छ विकल्प बन जाता है।
      • इस प्रक्रिया की सहायता से कार्बन उत्सर्जन को 97% तक कम किया जा सकता है।
    • ऊर्जा दक्षता: यह प्रक्रिया अधिक प्रभावी है क्योंकि इसमें ब्लास्ट फर्नेस में बड़ी मात्रा में लौह अयस्क को गर्म करने और पिघलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
    • उच्च गुणवत्ता वाला इस्पात: प्रत्यक्ष कटौती प्रक्रिया उच्च गुणवत्ता वाले लोहे का उत्पादन करती है जो शुद्ध होता है और इसमें अशुद्धियों का स्तर कम होता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च गुणवत्ता वाला इस्पात बनता है।
    • लचीलापन: हाइड्रोजन द्वारा डायरेक्ट रिडक्शन का उपयोग विभिन्न लौह अयस्कों (ऐसे भी जिनमें लौह सामग्री कम होती है) से इस्पात का उत्पादन करने के लिये किया जा सकता है।
    • लागत-प्रभावशीलता: प्राकृतिक गैस की कीमतों में वृद्धि के चलते वर्तमान में पारंपरिक इस्पात विनिर्माण विधियों की तुलना में डायरेक्ट रिडक्शन प्रक्रिया अधिक लागत प्रभावी हो सकती है।

इस्पात विनिर्माण के अलावा अन्य उद्योगों में हाइड्रोजन का उपयोग:

  • ऊर्जा उत्पादन: दहन या ईंधन सेल/बैटरी के माध्यम से हाइड्रोजन का उपयोग विद्युत उत्पादन हेतु ईंधन के रूप में किया जा सकता है। वास्तव में हाइड्रोजन ईंधन सेल पहले से ही कुछ वाहनों में उपयोग किये जा रहे हैं और भवनों के लिये अक्षय ऊर्जा स्रोत के रूप में पहचाने जा रहे हैं।
  • रासायनिक उत्पादन: हाइड्रोजन का उपयोग अमोनिया, मेथनॉल और अन्य हाइड्रोकार्बन जैसे रसायनों के उत्पादन के लिये फीडस्टॉक के रूप में किया जाता है जो विभिन्न उद्योगों (कृषि, परिवहन और निर्माण) में उपयोग किये जाते हैं।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स: हाइड्रोजन का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में किया जाता है, जैसे अर्द्धचालक और फ्लैट पैनल डिस्प्ले तथा प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED) के उत्पादन में।
  • खाद्य प्रसंस्करण: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में हाइड्रोजन का उपयोग खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता और उपस्थिति को बनाए रखने के लिये काम करने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है।
  • चिकित्सा अनुप्रयोग: अनुत्तेजक और एंटीऑक्सीडेंट गुणों के साथ संभावित चिकित्सा गैस (Medical Gas) के रूप में हाइड्रोजन की जाँच की जा रही है। इसे मेडिकल डायग्नोस्टिक्स में ट्रेसर गैस के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।

नोट:

  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, हरित हाइड्रोजन के व्यावसायिक उत्पादन को प्रोत्साहित करने और भारत को ईंधन का शुद्ध निर्यातक बनाने हेतु एक कार्यक्रम है।
  • देश में हाइड्रोजन ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विकास और तैनाती को बढ़ावा देने के लिये केंद्रीय बजट 2021-22 में राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (NHEM) की घोषणा की गई थी।

भारत में इस्पात उत्पादन की स्थिति:

  • उत्पादन और खपत: भारत वर्तमान में (2021 तक) कच्चे इस्पात का विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और वर्ष 2021 में तैयार इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है (दोनों मामलों में चीन से आगे)।
  • भारत में महत्त्वपूर्ण इस्पात उत्पादक केंद्र: भिलाई (छत्तीसगढ़), दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल), बर्नपुर (पश्चिम बंगाल), जमशेदपुर (झारखंड), राउरकेला (ओडिशा) और बोकारो (झारखंड)।
  • निर्यात: अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और नेपाल सहित प्रमुख निर्यात स्थलों के साथ भारत इस्पात उत्पादों का एक महत्त्वपूर्ण निर्यातक है।
  • सरकारी नीतियाँ: राष्ट्रीय इस्पात नीति की शुरुआत वर्ष 2017 में की गई थी जिसमें वर्ष 2030-31 तक 300 मिलियन टन (MT) कच्चे इस्पात की क्षमता निर्माण, 255 मीट्रिक टन का उत्पादन और 158 किलोग्राम मज़बूत तैयार इस्पात प्रति व्यक्ति खपत का अनुमान है।
  • इस्पात उद्योग और GHG उत्सर्जन:
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, इस्पात उद्योग वैश्विक CO2 उत्सर्जन के लगभग 7 प्रतिशत के लिये ज़िम्मेदार है, जो इसे ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े औद्योगिक उत्सर्जकों में से एक बनाता है।
  • इस्पात उद्योग के प्रदूषक:
  • हरित इस्पात/ग्रीन इस्पात:
    • इस्पात मंत्रालय ग्रीन इस्पात (जीवाश्म ईंधन का उपयोग किये बिना इस्पात का निर्माण) को बढ़ावा देकर इस्पात उद्योगों में CO2 को कम करना चाहता है।
      • यह कोयले से चलने वाले संयंत्रों के पारंपरिक कार्बन-गहन निर्माण के बजाय हाइड्रोजन, कोयला गैसीकरण या विद्युत जैसे निम्न-कार्बन ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके किया जा सकता है।
    • यह अंततः GHG उत्सर्जन को कम करता है, लागत में कटौती करता है और इस्पात की गुणवत्ता में सुधार करता है।

इस्पात उत्पादन में हाइड्रोजन के उपयोग की चुनौतियाँ:

  • उच्च पूंजी लागत: संयंत्र के निर्माण और संचालन की प्रारंभिक पूंजीगत लागत आमतौर पर पारंपरिक इस्पात बनाने के तरीकों से अधिक होती है। यह छोटे इस्पात उत्पादकों के प्रवेश हेतु बाधा बन सकती है।
  • हाइड्रोजन की उपलब्धता: हाइड्रोजन की उपलब्धता और लागत एक चुनौती हो सकती है, विशेषकर यदि इसका उत्पादन जीवाश्म ईंधन का उपयोग करके किया जाता है। इस प्रक्रिया को व्यापक रूप से अपनाने के लिये कम लागत वाली हरित हाइड्रोजन उत्पादन तकनीकों का विकास करना महत्त्वपूर्ण होगा।
  • स्केल-अप चुनौतियाँ: स्केल-अप की प्रक्रिया को बढ़ाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, विशेषकर तब जब बड़ी मात्रा में इस्पात का उत्पादन होता है क्योंकि इसके लिये रिएक्टर के सावधानीपूर्वक प्रबंधन और हाइड्रोजन गैस की आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
    • इसके अतिरिक्त लौह उत्पाद की गुणवत्ता और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये उच्च स्तर की तकनीकी विशेषज्ञता एवं प्रक्रिया नियंत्रण की आवश्यकता होती है।
  • अवसंरचना आवश्यकताएँ: इस प्रक्रिया के लिये हाइड्रोजन गैस के भंडारण और संचालन सुविधाओं सहित विशेष बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है। इस बुनियादी ढाँचे का विकास महँगा एवं समय लेने वाला हो सकता है।

आगे की राह

  • बेहतर निवेश: सरकारों और निजी क्षेत्र को लागत कम करने तथा हाइड्रोजन की उपलब्धता बढ़ाने के लिये हरित हाइड्रोजन उत्पादन प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाना चाहिये।
  • सहयोग को बढ़ावा: इस्पात उत्पादकों, हाइड्रोजन उत्पादकों और अन्य हितधारकों के बीच सहयोग से तकनीकी चुनौतियों का समाधान करने तथा आवश्यक बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
  • नीतिगत समर्थन: सरकारें इस तकनीक को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु कर क्रेडिट, अनुदान एवं ऋण गारंटी जैसे प्रोत्साहनों के माध्यम से नीतिगत समर्थन प्रदान कर सकती हैं।
    • इसके अलावा हरित हाइड्रोजन के उत्पादन/उपयोग हेतु मानक विकसित करने से उत्पाद की गुणवत्ता एवं स्थिरता सुनिश्चित करने, लागत कम करने तथा बाज़ार स्वीकृति को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. 'आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (Index of Eight Core Industries)' में निम्नलिखित में से किसे सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है? (2015)

(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत में इस्पात उत्पादन उद्योग को निम्नलिखित में से किसके आयात की अपेक्षा होती है (2015)

(a) शोरा
(b) शैल फॉस्फेट (रॉक फॉस्फेट)
(c) कोककारी कोयला
(d उपरोक्त सभी

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से कुछ महत्त्वपूर्ण प्रदूषक हैं जो भारत में इस्पात उद्योग द्वारा मुक्त किये जाते हैं? (2014)

1. सल्फर के ऑक्साइड
2. नाइट्रोजन के ऑक्साइड
3. कार्बन मोनोऑक्साइड
4. कार्बन डाइऑक्साइड

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 3 और 4
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)


प्रश्न. इस्पात स्लैग निम्नलिखित में से किसके लिये सामग्री हो सकता है? (2020)

1. आधार सड़क के निर्माण के लिये
2. कृषि मृदा के सुधार के लिये
3. सीमेंट के उत्पादन के लिये

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. कच्चे माल के स्रोत से दूर लौह और इस्पात उद्योगों की वर्तमान स्थिति का उदाहरण देते हुए वर्णन कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020)

प्रश्न. विश्व में लौह एवं इस्पात उद्योग के स्थानिक प्रतिरूप में परिवर्तन का विवरण दीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2014)

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-संयुक्त अरब अमीरात CEPA का एक वर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

CEPA, भारत-संयुक्त अरब अमीरात CEPA, भारत-संयुक्त अरब अमीरात व्यापार संबंध

मेन्स के लिये:

भारत और उसके पड़ोस, द्विपक्षीय समूह और समझौते, भारत-संयुक्त अरब अमीरात संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-संयुक्त अरब अमीरात के बीच व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) के कार्यान्वयन का एक वर्ष पूरा हो गया है।

व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA):

  • यह एक प्रकार का मुक्त व्यापार समझौता है जिसमें सेवाओं एवं निवेश के संबंध में व्यापार और आर्थिक साझेदारी के अन्य क्षेत्रों पर बातचीत करना शामिल है।
  • यह व्यापार सुविधा और सीमा शुल्क सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों जैसे क्षेत्रों पर बातचीत किये जाने पर भी विचार करता है।
  • साझेदारी या सहयोग समझौते मुक्त व्यापार समझौतों की तुलना में अधिक व्यापक हैं।
  • CEPA व्यापार के नियामक पहलू को भी देखता है और नियामक मुद्दों को कवर करने वाले एक समझौते को शामिल करता है।

भारत और संयुक्त अरब अमीरात CEPA:

  • परिचय:
    • भारत-संयुक्त अरब अमीरात CEPA दोनों देशों के बीच एक ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है। इसमें वस्तुओं, सेवाओं, निवेश और आर्थिक सहयोग के अन्य क्षेत्रों में व्यापार शामिल है।
    • CEPA 1 मई, 2022 को लागू हुआ और उम्मीद है कि पाँच वर्षों के भीतर वस्तुओं के मामले में द्विपक्षीय व्यापार का कुल मूल्य 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक और सेवाओं में व्यापार 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो जाएगा।
    • CEPA पिछले एक दशक में किसी भी देश के साथ भारत द्वारा हस्ताक्षरित पहला सुदृढ़ और पूर्ण FTA है।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • व्यापार में सम्मिलित वस्तु:
      • CEPA भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच किये जाने वाले व्यापार से 80 प्रतिशत अधिक उत्पादों के लिये अधिमान्य बाज़ार पहुँच प्रदान करता है।
      • भारत को विशेष रूप से रत्न और आभूषण, कपड़ा, चमड़ा, जूते, खेल का सामान, प्लास्टिक, फर्नीचर, कृषि तथा लकड़ी के उत्पादों, इंजीनियरिंग उत्पादों, चिकित्सा उपकरणों तथा ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में संयुक्त अरब अमीरात को अपने निर्यात पर टैरिफ में कमी करने या उन्मूलन से लाभ होगा।
    • व्यापार में सम्मिलित सेवाएँ:
      • CEPA में 11 व्यापक सेवा क्षेत्र और 100 से अधिक उप-क्षेत्र शामिल हैं, जैसे- व्यवसाय सेवाएँ, संचार सेवाएँ, निर्माण और इंजीनियरिंग संबंधित सेवाएँ, वितरण सेवाएँ, शैक्षिक सेवाएँ, पर्यावरण सेवाएँ, वित्तीय सेवाएँ, स्वास्थ्य संबंधी और सामाजिक सेवाएँ, पर्यटन एवं यात्रा संबंधित सेवाएँ, मनोरंजक सांस्कृतिक तथा खेल सेवाएँ और परिवहन सेवाएँ।
      • दोनों देशों ने इन क्षेत्रों में एक-दूसरे के सेवा प्रदाताओं के लिये बाज़ार तक बेहतर पहुँच की पेशकश की है।
    • निवेश:
      • CEPA भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच सीमा पार निवेश के लिये एक उदार और गैर-भेदभावपूर्ण व्यवस्था प्रदान करता है।
      • इसमें विवाद निपटान और निवेश सुविधा पर सहयोग के प्रावधान भी शामिल हैं।
    • सहयोग के कुछ अन्य क्षेत्र:

भारत-संयुक्त अरब अमीरात व्यापार संबंध:

  • व्यापार :
    • संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार (अमेरिका, चीन के बाद) है। वर्ष 2021 में दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार कारोबार 68.4 अरब अमेरिकी डॉलर का था।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI):
    • संयुक्त अरब अमीरात अप्रैल 2000 से सितंबर 2022 तक 15,179 मिलियन अमेरिकी डॉलर के संचयी FDI प्रवाह के साथ भारत में 7वाँ सबसे बड़ा निवेशक है।
  • निर्यात:
    • संयुक्त अरब अमीरात को होने वाले प्रमुख भारतीय निर्यात में पेट्रोलियम उत्पाद, रत्न और आभूषण, मशीनरी एवं उपकरण, रसायन, लोहा तथा इस्पात, कपड़ा व वस्त्र, अनाज, मांस और मांस उत्पाद आदि शामिल हैं।
  • आयात:
    • संयुक्त अरब अमीरात से होने वाले प्रमुख भारतीय आयात में कच्चा तेल, सोना, मोती और कीमती पत्थर, धातु अयस्क एवं धातु स्क्रैप, रसायन, विद्युत मशीनरी आदि शामिल हैं।
  • व्यापार संबंधों पर भारत-संयुक्त अरब अमीरात CEPA का प्रभाव:
    • द्विपक्षीय व्यापार:
      • वित्त वर्ष 2022-2023 में भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच वाणिज्य में रिकॉर्ड वृद्धि हासिल की गई है, यह वित्त वर्ष 2022 के 72.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 84.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो कि 16% की वृद्धि है।
    • संयुक्त अरब अमीरात को भारत से निर्यात:
      • भारतीय निर्यात 28 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 31.3 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया (उपर्युक्त समान अवधि में); प्रतिशत के संदर्भ में 11.8%की वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि।
      • इसी अवधि के दौरान भारत के वैश्विक निर्यात में 5.3% की वृद्धि हुई थी, यदि संयुक्त अरब अमीरात को छोड़ दिया जाए तो भारत का वैश्विक निर्यात 4.8% की दर से बढ़ा है।
    • वे क्षेत्र जिनमें निर्यात में काफी वृद्धि हुई, इस प्रकार हैं:
      • खनिज ईंधन
      • विद्युत मशीनरी (विशेष रूप से टेलीफोन उपकरण)
      • रत्न और आभूषण
      • ऑटोमोबाइल (परिवहन वाहन)
      • आवश्यक तेल/इत्र/प्रसाधन सामग्री (सौंदर्य/त्वचा देखभाल उत्पाद)
      • अन्य मशीनरी
      • अनाज (चावल)
      • कॉफी/चाय/मसाले
      • रासायनिक उत्पाद

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

लुधियाना गैस रिसाव त्रासदी

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), न्यूरोटॉक्सिक गैसें, रासायनिक आपदाओं के मामलों में उपलब्ध अन्य कानूनी सुरक्षा उपाय

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय हरित अधिकरण: शक्तियाँ; रासायनिक आपदाओं से सुरक्षा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने पंजाब के लुधियाना ज़िले में गैस रिसाव के कारण 11 लोगों की मौत की जाँच के लिये आठ सदस्यीय तथ्यान्वेषी समिति का गठन किया है।

लुधियाना में हुई त्रासदी:

  • पृष्ठभूमि:
    • लुधियाना के ग्यासपुरा इलाके में गैस रिसाव ने 11 लोगों की जान ले ली है।
    • पुलिस को संदेह है कि इलाके में आंशिक रूप से खुले मैनहोल से ज़हरीली गैस निकली होगी और आस-पास की दुकानों तथा घरों में फैल गई।
      • गैस रिसाव के कारणों की जाँच की जा रही है।
    • पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि मौतें "इनहेलेशन पॉइज़निंग" के कारण हुई हैं।
      • फोरेंसिक विशेषज्ञों ने हाइड्रोजन सल्फाइड को त्रासदी के लिये ज़िम्मेदार होने का संदेह व्यक्त किया है जो कि एक न्यूरोटॉक्सिक गैस है।
      • एक विशेषज्ञ के अनुसार, संभवतः कुछ अम्लीय अपशिष्ट सीवर में फेंके गए थे जिसने मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य सीवरेज गैसों के साथ प्रतिक्रिया कर हाइड्रोजन सल्फाइड उत्पन्न की।
  • न्यूरोटॉक्सिन:
    • न्यूरोटॉक्सिन ज़हरीले पदार्थ होते हैं जो सीधे तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं।
      • ये पदार्थ स्नायु या तंत्रिका कोशिकाओं, जो कि मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के अन्य भागों में संकेतों को प्रसारित करने तथा संसाधित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, को बाधित या मार भी सकते हैं।
    • न्यूरोटॉक्सिक गैसें:
      • मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड आम न्यूरोटॉक्सिक गैसें हैं।
      • मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साइड गंधहीन गैसें हैं, लेकिन हाइड्रोजन सल्फाइड में तीखी गंध होती है जिसकी उच्च सांद्रता मनुष्यों हेतु घातक हो सकती है।
        • हाइड्रोजन सल्फाइड इतनी ज़हरीली होती है कि इसमें साँस लेने से किसी व्यक्ति की जान जा सकती है।

भारत में रासायनिक आपदाओं के खिलाफ सुरक्षा उपाय:

  • पृष्ठभूमि: भोपाल गैस त्रासदी से पहले IPC 1860 ऐसी आपदाओं के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने वाला एकमात्र कानून था, हालाँकि त्रासदी के तुरंत बाद सरकार ने पर्यावरण को विनियमित करने एवं सुरक्षा उपायों तथा दंडों को निर्धारित करने व निर्दिष्ट करने वाले कई कानून बनाए। कुछ कानून निम्नलिखित हैं:
    • भोपाल गैस रिसाव (दावों की प्रक्रिया) अधिनियम, 1985 ने केंद्र सरकार को भोपाल गैस त्रासदी से उत्पन्न होने वाले या उससे जुड़े दावों को सुरक्षित करने की शक्तियाँ प्रदान कीं।
      • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत ऐसे दावों को शीघ्रता और समान रूप से निपटाया जाता है।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (Environment Protection Act- EPA), 1986 केंद्र सरकार को पर्यावरण में सुधार के उपाय और मानक निर्धारित करने एवं औद्योगिक इकाइयों का निरीक्षण करने की शक्ति देता है।
  • सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम, 1991 खतरनाक पदार्थों को प्रबंधित करने के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं से प्रभावित व्यक्तियों को राहत प्रदान करने हेतु एक बीमा है।
  • खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन संचालन और सीमा पार संचलन) नियम, 1989 के तहत उद्योगों को प्रमुख दुर्घटना खतरों की पहचान, निवारक उपाय करने एवं नामित अधिकारियों को रिपोर्ट प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है।
  • खतरनाक रसायनों के निर्माण, भंडारण और आयात नियम, 1989 के तहत आयातकों को संपूर्ण उत्पाद सुरक्षा जानकारी सक्षम प्राधिकारी को प्रस्तुत करनी होती है, साथ ही संशोधित नियमों के अनुसार आयातित रसायनों का परिवहन करना आवश्यक है।
  • रासायनिक दुर्घटनाएँ (आपातकाल, योजना निर्माण, तैयारी और प्रतिक्रिया) नियम, 1996 के तहत केंद्रीय सरकार को रासायनिक दुर्घटनाओं के प्रबंधन के लिये एक केंद्रीय आपदा समूह का गठन करना अनिवार्य है; साथ ही आपदा चेतावनी प्रणाली के रूप में जाने जानी वाली त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली स्थापित करना भी इसी के अंतर्गत आता है।
  • प्रत्येक राज्य को एक संकट समूह स्थापित करने और इसके कार्य के बारे में रिपोर्ट करना अनिवार्य है।
  • राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण अधिनियम, 1997: इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण विशिष्ट सुरक्षा उपायों के अधीन उन स्थानों पर EPA1986 के प्रतिबंधों के बारे में अपील पर विचार कर सकता है जिसमें कुछ उद्योग, संचालन, प्रक्रियाएँ संचालित हो सकती हैं अथवा नहीं हो सकती हैं।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal):

  • परिचय:
    • यह पर्यावरण संरक्षण और वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) अधिनियम, 2010 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
    • NGT की स्थापना के साथ ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बाद भारत एक विशेष पर्यावरण अधिकरण स्थापित करने वाला विश्व का तीसरा देश बन गया, ऐसा करने वाला भारत पहला विकासशील देश है
    • NGT को प्राप्त आवेदनों अथवा अपीलों को दाखिल करने के 6 महीने के भीतर पूरी तरह से निपटान करना अनिवार्य है।
    • अधिकरण की प्रधान बैठक नई दिल्ली में और अन्य चार बैठकें भोपाल, पुणे, कोलकाता तथा चेन्नई में होंगी।
  • शक्तियाँ:
    • किसी भी पर्यावरणीय कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन सहित महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़े सभी नागरिक मामले इस अधिकरण के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
    • यह पर्यावरणीय मामलों का स्वत: संज्ञान ले सकता है।
    • आवेदन दाखिल करने पर मूल अधिकार क्षेत्र के अलावा NGT के पास न्यायालय (ट्रिब्यूनल) के रूप में अपील सुनने के लिये अपीलीय क्षेत्राधिकार भी है।
    • NGT, CPC 1908 के तहत निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं है, लेकिन 'प्राकृतिक न्याय' के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगा।
    • ट्रिब्यूनल का आदेश/निर्णय/अवार्ड सिविल कोर्ट की डिक्री के रूप में निष्पादन योग्य है।
    • NGT द्वारा दिये गए आदेश/निर्णय/अधिनिर्णय का निष्पादन न्यायालय के आदेश के रूप में करना होता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) से कैसे अलग है? (2018)

  1. NGT की स्थापना एक अधिनियम द्वारा की गई है जबकि CPCB सरकार के एक कार्यकारी आदेश द्वारा बनाई गई है।
  2. NGT पर्यावरणीय न्याय प्रदान करता है और उच्च न्यायालयों में मुकदमेबाज़ी के बोझ को कम करने में मदद करता है, जबकि CPCB धाराओं और कुओं की स्वच्छता को बढ़ावा देता है तथा इसका उद्देश्य देश में हवा की गुणवत्ता में सुधार करना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: b

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

नौकरियों में स्थानीय आरक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

नौकरियों में स्थानीय आरक्षण, अनुच्छेद 14,16,19, हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम, 2022, आंदोलन की स्वतंत्रता

मेन्स के लिये:

नौकरियों में स्थानीय आरक्षण और निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

पिछले वर्षों की तुलना में नौकरियों में स्थानीय आरक्षण कानून के परिणामस्वरूप राज्य को नई निवेश परियोजनाएँ कम प्राप्त हुई हैं, जिसकी वजह से राष्ट्र में नई निवेश परियोजनाओं में राज्य की हिस्सेदारी पिछले वर्ष के 3% से घटकर 2022-23 में 1.06% हो गई, जो छह वर्षों में सबसे कम है।

हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम, 2022:

  • परिचय:
    • इसके तहत 10 या अधिक कर्मचारियों वाली फर्मों को 30,000 रुपए प्रतिमाह वाली सभी नौकरियों में से 75% राज्य के अधिवासी उम्मीदवारों के लिये आरक्षित करने की आवश्यकता है।
    • इन सभी नियोक्ताओं के लिये श्रम विभाग, हरियाणा की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध नामित पोर्टल पर सकल मासिक वेतन या 30,000 रुपए से अधिक वेतन नहीं पाने वाले अपने सभी कर्मचारियों को पंजीकृत करना अनिवार्य होगा।
  • अन्य राज्यों में किये गए इसी प्रकार के प्रयास:
    • आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड सहित अन्य राज्यों में भी निवासियों के लिये रोज़गार आरक्षण विधेयक अथवा कानूनों की घोषणा की गई है।
    • रोज़गार कोटा विधेयक के तहत आंध्र प्रदेश के निवासियों के लिये तीन-चौथाई निजी नौकरियाँ आरक्षित हैं, जिसे वर्ष 2019 में राज्य की विधानसभा द्वारा अनुमोदित किया गया था।

नौकरियों में स्थानीय आरक्षण के लाभ एवं नुकसान:

  • लाभ:
    • संवैधानिक रूप से मान्य: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत अधिवास और निवास के आधार पर आरक्षण पर प्रतिबंध नहीं है। यह स्थानीय नौकरियों में स्थानीय लोगों को पहले अवसर प्रदान करने के लिये संवैधानिक रूप से मान्य प्रतीत होता है क्योंकि प्राथमिक तौर पर यही लोग नौकरी सृजन करने वाली कंपनियों के कारण पड़ने वाले सभी प्रतिकूल प्रभावों को सहन करते हैं।
    • समानता: स्थानीय नौकरियों में आरक्षण समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग को समानता प्रदान करता है, क्योंकि आरक्षण केवल निम्न स्तर की नौकरियों तक ही सीमित है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समान संरक्षण की भावना के अनुसार है।
    • बेरोज़गारी के लिये उपयुक्त समाधान: बेरोज़गारी और स्थिर रोज़गार सृजन की समस्या को देखते हुए स्थानीय नौकरियों में आरक्षण एक उपयुक्त समाधान है।
    • भारत के संविधान में अनुच्छेद 371D और E के तहत आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों के लिये उनकी विशेष परिस्थितियों को देखते हुए नौकरियों और शिक्षा हेतु विशेष प्रावधान हैं। अत: बेरोज़गारी की स्थिति में स्थानीय नौकरियों में आरक्षण उचित और भारत के संविधान के विशेष प्रावधानों के अनुसार उपयुक्त प्रतीत होता है।
    • स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: जब कंपनियाँ स्थानीय लोगों को काम पर रखती हैं, तो वे अपनी कमाई स्थानीय अर्थव्यवस्था में खर्च करती हैं, जो रोज़गार पैदा करने और आर्थिक विकास में मदद कर सकता है।
      • स्थानीय लोगों को काम पर रखने का मतलब है कि कंपनियों को कर्मचारियों के स्थानांतरण का खर्च वहन नहीं करना पड़ेगा। यह उनकी परिचालन लागत को कम करने में मदद कर सकता है, जिसे कम कीमतों के रूप में ग्राहकों पर डाला जा सकता है।
    • उत्पादकता में सुधार: स्थानीय कर्मचारियों की स्थानीय भाषा, संस्कृति और कारोबारी माहौल से परिचित होने की अधिक संभावना है, जो उनकी उत्पादकता और दक्षता में सुधार करने में मदद कर सकता है।
  • चिंताएँ:
    • निवेशकों के पलायन में वृद्धि: यह ऑटो, आईटी जैसे क्षेत्रों में बड़े घरेलू और बहुराष्ट्रीय निवेशकों के पलायन को गति प्रदान कर सकता है जो अत्यधिक कुशल जनशक्ति पर निर्भर हैं।
      • हरियाणा के मामले में वर्ष 2022 में किया गया निवेश लगभग 56,000 करोड़ रुपए से 30% गिरकर 39,000-करोड़ रुपए हो गया, स्थानीय आरक्षण कानून के कारण यह वर्ष 2022-23 में नई निवेश परियोजनाओं के मामले में नौवें सर्वश्रेष्ठ राज्य से 13वें स्थान पर पहुँच गया।
    • मौजूदा उद्योगों को प्रभावित करना: राज्य के अन्य क्षेत्रों से राज्य में जनशक्ति संसाधनों की मुक्त आवाजाही को रोकने एवं स्थायी निवासियों के मुद्दे उठाने से राज्य में मौजूदा उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
      • यह तकनीकी दिग्गजों और अन्य उद्योगों को अपना आधार हरियाणा से दूसरे राज्यों में स्थानांतरित करने तथा राज्य के मौद्रिक संसाधनों को कम करने में भूमिका निभा सकता है।
    • कुशल प्रतिभा की कमी उत्पन्न कर सकता है: गिग और प्लेटफॉर्म कंपनियों पर आरक्षण लागू करने से प्रतिभा की कमी हो सकती है।
    • संविधान के विरुद्ध: भारत का संविधान अनेक प्रावधानों के माध्यम से देश में कहीं आने-जाने की स्वतंत्रता और रोज़गार की गारंटी देता है।
      • अनुच्छेद 14 जन्म स्थान पर ध्यान दिये बिना कानून के समक्ष समानता प्रदान करता है।
      • अनुच्छेद 15 जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव से रक्षा करता है।
      • अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोज़गार में जन्मस्थान आधारित भेदभाव की गारंटी नहीं देता है।
      • अनुच्छेद 19 सुनिश्चित करता है कि नागरिक भारत के संपूर्ण क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से आ-जा सकते हैं।

आगे की राह

  • आरक्षण नीति को इस तरह से लागू किया जा सकता है जिससे देश में जनशक्ति संसाधनों के मुक्त आवागमन में बाधा न आए।
  • राज्य में अर्थव्यवस्था और उद्योगों पर इसके प्रभाव का आकलन करने के लिये आरक्षण नीति की समय-समय पर समीक्षा की जा सकती है।
  • यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि लिया गया कोई भी नीतिगत निर्णय भारत के संविधान के अनुपालन में है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है।
  • स्थानीय लोगों के लिये नौकरी (JRFL) हेतु विभिन्न राज्य सरकारों के प्रयासों का सबसे अच्छा तरीका आर्थिक सुधार सुनिश्चित करना है और कौशल प्रशिक्षण तथा उचित शिक्षा के साथ युवाओं के लिये पर्याप्त नौकरी के अवसर प्रदान करना है, जो मुख्य क्षेत्रों के रूप में जनता को मुफ्त बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बनाता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

राजद्रोह कानून

प्रिलिम्स के लिये:

राजद्रोह, धारा 124A, सर्वोच्च न्यायालय, IPC, अनुच्छेद 19

मेन्स के लिये:

राजद्रोह कानून - महत्त्व और मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि सरकार ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A (राजद्रोह) की "पुन: परीक्षा की प्रक्रिया" शुरू कर दी है और इस संबंध में परामर्श अपने "अंतिम चरण" में हैं।

  • मई 2022 में न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश में देश भर में धारा 124A के तहत लंबित आपराधिक मुकदमों और न्यायालयी कार्यवाही को रोकते हुए धारा 124A के उपयोग को निलंबित कर दिया था।

राजद्रोह कानून:

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • राजद्रोह कानून को 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड में अधिनियमित किया गया था, उस समय विधि निर्माताओं का मानना था कि सरकार के प्रति अच्छी राय रखने वाले विचारों को ही केवल अस्तित्त्व में या सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिये, क्योंकि गलत राय सरकार तथा राजशाही दोनों के लिये नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर सकती थी।
      • इस कानून का मसौदा मूल रूप से वर्ष 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थॉमस मैकाले द्वारा तैयार किया गया था, लेकिन वर्ष 1860 में भारतीय दंड सहिता (IPC) लागू करने के दौरान इस कानून को IPC में शामिल नहीं किया गया।
    • धारा 124A को 1870 में जेम्स स्टीफन द्वारा पेश किये गए एक संशोधन द्वारा जोड़ा गया था जब उन्होंने अपराध से निपटने के लिये एक विशिष्ट खंड की आवश्यकता महसूस की थी।
      • वर्तमान में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत राजद्रोह एक अपराध है।
  • वर्तमान में राजद्रोह कानून:
    • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A:
      • यह कानून राजद्रोह को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित करता है जिसमें ‘किसी व्यक्ति द्वारा भारत में कानूनी तौर पर स्थापित सरकार के प्रति मौखिक, लिखित (शब्दों द्वारा), संकेतों या दृश्य रूप में घृणा अथवा अवमानना या उत्तेजना पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है।
        • विद्रोह में वैमनस्य और शत्रुता की भावनाएँ शामिल होती हैं। हालाँकि इस धारा के तहत घृणा या अवमानना फैलाने की कोशिश किये बगैर की गई टिप्पणियों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है।
        • बलवंत सिंह बनाम पंजाब राज्य (1995) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि भाषण को देशद्रोही करार देने से पहले उसके वास्तविक इरादे को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
  • दंड:
    • राजद्रोह गैर-जमानती अपराध है। राजद्रोह के अपराध में तीन वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है और इसके साथ ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है।
    • इस कानून के तहत आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी प्राप्त करने से रोका जा सकता है।
      • आरोपित व्यक्ति को पासपोर्ट के बिना रहना होता है, साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसे न्यायालय में पेश होना ज़रूरी है।

राजद्रोह कानून का महत्त्व:

  • उचित प्रतिबंध
    • भारत का संविधान अपने नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
      • हालाँकि यह अधिकार पूर्ण नहीं है और सरकार यह सुनिश्चित करने के लिये कुछ परिस्थितियों में इसे प्रतिबंधित कर सकती है ताकि इसका दुरुपयोग न हो।
    • इन प्रतिबंधों को उचित माना जाता है और संविधान के अनुच्छेद 19(2) में निर्धारित किया गया है।
  • एकता और अखंडता बनाए रखना:
    • राजद्रोह कानून सरकार को राष्ट्र-विरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों का मुकाबला करने में मदद करता है।
  • राज्य की स्थिरता को बनाए रखना:
    • यह चुनी हुई सरकार को हिंसा और अवैध तरीकों से उखाड़ फेंकने के प्रयासों से बचाने में मदद करता है।
    • कानून द्वारा स्थापित सरकार का निरंतर अस्तित्त्व राज्य की स्थिरता के लिये एक अनिवार्य शर्त है।

संबंधित मुद्दे:

  • औपनिवेशिक युग का अवशेष:
    • औपनिवेशिक प्रशासकों ने ब्रिटिश नीतियों की आलोचना करने वाले लोगों को रोकने के लिये राजद्रोह कानून का इस्तेमाल किया।
  • संविधान सभा का मत:
    • संविधान सभा संविधान में राजद्रोह को शामिल करने के लिये सहमत नहीं थी क्योंकि सदस्यों को लगा कि यह बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम कर देगा।
    • उन्होंने तर्क दिया कि राजद्रोह कानून को विरोध करने के लोगों के वैध और संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार को दबाने के लिये एक हथियार में बदल दिया जा सकता है।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों का दमन:
    • मुख्य रूप से राजद्रोह कानून के कठोर और गणनात्मक उपयोग के कारण भारत को एक निर्वाचित निरंकुशता के रूप में वर्णित किया जा रहा है।

देशद्रोह के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के विगत निर्णय:

  • वर्ष 1950 की शुरुआत में रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि "सरकार की आलोचना उसके प्रति असंतोष या बुरी भावनाओं को उत्तेजित करती है, अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करना एक न्यायोचित आधार के रूप में नहीं माना जाना चाहिये जैसे कि सुरक्षा को कमज़ोर करना या राज्य सत्ता को उखाड़ फेंकना।"
  • इसके बाद दो उच्च न्यायालयों- तारा सिंह गोपीचंद बनाम राज्य (1951) मामले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय तथा राम नंदन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1959) मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने IPC की धारा 124A घोषित की जो मुख्य रूप से देश में असंतोष को दबाने के लिये औपनिवेशिक आकाओं के लिये एक उपकरण था एवं प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
  • केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962) मामले में देशद्रोह पर फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों के पहले के फैसलों को खारिज कर दिया और IPC की धारा 124A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। हालाँकि न्यायालय ने इसके दुरुपयोग की गुंज़ाइश को सीमित करने का प्रयास किया।

हाल के विकास:

  • फरवरी 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक राजनीतिक नेता और छह वरिष्ठ पत्रकारों को कथित रूप से ट्वीट करने एवं असत्यापित समाचार साझा करने हेतु उनके खिलाफ दर्ज कई राजद्रोह FIR से सुरक्षित किया।
  • जून 2021 में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा दो तेलुगू (भाषा) समाचार चैनलों को जबरदस्ती की कार्रवाई से बचाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह की सीमा को परिभाषित करने पर ज़ोर दिया।
  • जुलाई 2021 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें राजद्रोह कानून पर फिर से विचार करने की मांग की गई थी।
  • न्यायालय ने फैसला सुनाया कि एक कानून जो 'सरकार के प्रति असंतोष' जैसे शब्दों की अस्पष्ट और असंवैधानिक परिभाषाओं के आधार पर अभिव्यक्ति का अपराधीकरण करता है, वह अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर उचित प्रतिबंध नहीं है।
  • इस तरह का कानून अभिव्यक्ति पर एक द्रुतशीतन प्रभाव उत्पन्न करता है, जिसका अर्थ है कि लोग सरकार द्वारा दंडित किये जाने के डर से स्वयं को सेंसर या सीमित करेंगे अथवा अपनी राय व्यक्त करने से परहेज करेंगे।

आगे की राह

  • न्यायालय का हस्तक्षेप महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अगर यह प्रावधान को रद्द कर देता है, तो उसे केदार नाथ के फैसले को रद्द करना होगा एवं पहले के फैसलों को बरकरार रखना होगा जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पर उदार थे।
    • यदि सरकार भाषा को कमज़ोर करके या इसे निरस्त करके कानून की समीक्षा करने का निर्णय लेती है, तो प्रावधान को एक अलग रूप में फिर से बहाल किया जा सकता है।
  • उच्च न्यायपालिका को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्रावधानों के प्रति मजिस्ट्रेट और पुलिस को संवेदनशील बनाने हेतु अपनी पर्यवेक्षी शक्तियों का उपयोग करना चाहिये।
  • भारत की क्षेत्रीय अखंडता और देश की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों को शामिल करने हेतु राजद्रोह की परिभाषा को संक्षिप्त किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


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