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डेली न्यूज़

  • 04 May, 2023
  • 50 min read
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भारतीय राजनीति

'विवाह का असाध्य रूप से टूटना' तलाक का आधार: सर्वोच्च न्यायालय

प्रिलिम्स के लिये:

संविधान का अनुच्छेद 142(1), हिंदू विवाह अधिनियम (HMA), 1955, तलाक पर सर्वोच्च न्यायालयके फैसले

मेन्स के लिये:

भारत में तलाक की मांग करने वाले लोगों के सामने कानूनी चुनौतियाँ, तलाक के मामलों में अनुच्छेद 142(1) का महत्त्व, विवाह का असाध्य रूप से टूटना, भारत में विवाह समानता पर सर्वोच्च न्यायालय और विधि आयोग - महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 द्वारा प्राप्त 'पूर्ण न्याय' करने की अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए फैसला सुनाया कि न्यायालय किसी दंपति के बीच सुलह की बिलकुल भी गुंजाइश न रहने की स्थिति में विवाह को भंग कर सकता है। दूसरी ओर, संबद्ध पक्षकारों को पारिवारिक न्यायालय में आपसी सहमति से तलाक के आदेश के लिये 6-18 महीने तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है, ऐसे में इस प्रक्रिया की तुलना में सर्वोच्च न्यायालय की प्रक्रिया से त्वरित निर्णय की संभावना है।

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:

  • फैसले:
    • शिल्पा सैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि न्यायालय के पास दंपति के बीच सुलह की बिलकुल भी गुंजाइश न रहने की स्थिति के आधार पर विवाह को भंग करने की शक्ति है।
      • मूल मामला वर्ष 2014 में दायर किया गया था, जिसका शीर्षक शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन था, जहाँ पक्षकारों ने अनुच्छेद 142 के तहत तलाक की मांग रखी थी।
    • न्यायालय हिंदू विवाह अधिनियम (HMA), 1955 के तहत तलाक के लिये अनिवार्य छह महीने की प्रतीक्षा अवधि को खत्म कर सकता है और एक पक्ष के इच्छुक न होने पर भी सुलह की गुंजाइश न रहने के आधार पर विवाह को भंग करने की अनुमति दे सकता है।
  • शर्त:

  • यह निर्णय महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) 1955 के तहत दंपत्ति में सुलह की स्थिति नहीं होने पर तलाक का आधार नहीं है।
    • विवाह विच्छेद के लिये अभी भी कोई संहिताबद्ध विधान नहीं है। हालाँकि हिंदू विवाह अधिनियम 1955, धारा 13 में विवाह विच्छेद के लिये कुछ आधारों की पहचान करता है।
  • निर्णय के निहितार्थ:
    • सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय का अर्थ यह नहीं है कि लोग तुरंत तलाक के लिये सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकते हैं।
      • दंपत्ति में सुलह न होने की स्थिति के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तलाक देना "अधिकार का मामला नहीं है, बल्कि विवेकाधिकार है जिसे बहुत सावधानी और सतर्कता से प्रयोग करने की आवश्यकता है"।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि एक पक्ष भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 (या अनुच्छेद 226) के तहत रिट याचिका दायर नहीं कर सकता है और सीधे दंपत्ति में सुलह की स्थिति नहीं होने के आधार पर विवाह विच्छेद की मांग नहीं कर सकता है।
  • त्रुटिपूर्ण सिद्धांत का त्याग:
    • 5-न्यायाधीशों की पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 (1) के तहत "त्रुटि सिद्धांत" और "तलाक के अभियोगात्मक सिद्धांत" को त्यागने के लिये सर्वोच्च न्यायालय की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, जिसमें पति-पत्नी में से किसी एक को क्रूरता, व्यभिचार या परित्याग जैसे कुछ कुकर्मों के लिये दोषी ठहराया जा सकता है।
    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 तलाक के उद्देश्य से ‘दोष’ या 'वैवाहिक अपराध' सिद्धांत पर आधारित हैं।
      • यदि दूसरा पक्ष वैवाहिक अपराध करता है तो यह निर्दोष पक्ष को तलाक प्राप्त करने की अनुमति देता है।
      • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक के लिये 7 दोष आधार हैं: व्यभिचार, क्रूरता, परित्याग, धर्मांतरण, पागलपन, कुष्ठ रोग, यौन रोग और संन्यास।
        • चार आधार हैं जिन पर पत्नी अकेले मुकदमा दायर कर सकती है: बलात्कार, समलैंगिकता, व्यभिचार, भरण-पोषण के आदेश के बाद फिर से सहवास न करना और भरण-पोषण के लिये डिक्री।
      • बचाव पक्ष को यह साबित करना होगा कि इस सिद्धांत के तहत दिये जाने वाले तलाक के लिये वे निर्दोष हैं।

नोट:

  • भारत के विधि आयोग ने 1978 और 2009 में अपनी रिपोर्ट में तलाक के अतिरिक्त आधार के रूप में इर्रीटेबल ब्रेकडाउन को जोड़ने की सिफारिश की थी।
    • विधि आयोग ने अपनी 71वीं रिपोर्ट (1978) में विवाह के विवाह का असाध्य रूप से टूटना की अवधारणा पर विचार किया।
  • रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि 1920 तक न्यूज़ीलैंड राष्ट्रमंडल देशों में पहला था जिसने यह प्रावधान पेश किया कि तलाक के लिये न्यायालयों में याचिका दायर करने हेतु तीन वर्ष या उससे अधिक का अलगाव समझौता आधार था।
    • विवाह कानून में वैवाहिक संबध टूटने की अवधारणा को कई मौकों पर इस तरह व्यक्त किया गया है।

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955:

  • परिचय:
    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 भारत की संसद द्वारा बनाया गया एक अधिनियम है जो हिंदुओं और अन्य लोगों के बीच विवाह से संबंधित कानून को संहिताबद्ध एवं संशोधित करता है।
    • यह हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों, सिखों और उन व्यक्तियों पर लागू होता है जो धर्म से मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं हैं।
  • HMA के तहत तलाक की वर्तमान प्रक्रिया:
    • HMA की धारा 13 B में "आपसी सहमति से तलाक" का प्रावधान है, जिसके तहत विवाह के दोनों पक्षों को एक साथ ज़िला न्यायालय में याचिका दायर करनी होगी।
      • यह इस आधार पर किया जाएगा कि वे एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि से अलग-अलग रह रहे हैं तथा एक साथ रहने में सक्षम नहीं हैं और पारस्परिक रूप से सहमत हैं कि उनके वैवाहिक रिश्ते को समाप्त कर देना चाहिये।
    • दोनों पक्षों को पहली याचिका की प्रस्तुति की तारीख के कम-से-कम 6 महीने बाद और उक्त तिथि के पश्चात् 18 महीने के बाद अदालत के समक्ष दूसरा प्रस्ताव पेश करना चाहिये (बशर्ते, याचिका इस बीच वापस नहीं ली जाती है)।
      • छह महीने की अनिवार्य प्रतीक्षा का उद्देश्य पक्षकारों को अपनी याचिका वापस लेने का समय देना है।
    • आपसी सहमति से तलाक की याचिका शादी के एक वर्ष बाद ही दायर की जा सकती है।
  • HMA की धारा 14 में कहा गया है, " प्रतिवादी की ओर से अत्यधिक दुष्टता या याचिकाकर्ता को हो रही असाधारण कठिनाई" की स्थिति में तलाक की याचिका तुरंत दायर की जा सकती है।
  • परिवारिक न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत आवेदन में धारा 13 B (2) के तहत छह महीने की प्रतीक्षा अवधि की छूट की मांग की जा सकती है।

तलाक से संबंधित अन्य निर्णय:

  • अमित कुमार बनाम सुमन बेनीवाल (2021): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “जहाँ सुलह की संभावना हो, भले ही मामूली हो, तलाक की याचिका दायर करने की तारीख से छह महीने अलग रहने की अवधि लागू की जानी चाहिये। हालाँकि यदि सुलह की कोई संभावना नहीं है, तो विवाह के पक्षकारों की पीड़ा को लंबा खींचना व्यर्थ होगा।
  • भागवत पीतांबर बोरसे बनाम अनुसयाबाई भागवत बोरसे (2018): बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि पत्नी का सात साल से अधिक समय तक बिना किसी उचित कारण के वापस न लौटने का इरादा तलाक के लिये एक वैध आधार है।
  • जून 2016 में दो न्यायाधीशों की पीठ ने पक्षकारों को पारिवारिक अदालत में भेजे बिना तलाक देने के लिये अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों के प्रयोग के संबंध में मामले को 5 न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को संदर्भित किया।
    • शीर्ष न्यायालय की विभिन्न पीठों द्वारा लिये गए परस्पर विरोधी निर्णयों का हवाला देते हुए इसने सहमति देने वाले पक्षों के बीच विवाह को भंग करने के लिये अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों के प्रयोग के लिये व्यापक मापदंडों पर स्पष्टता मांगी है।
    • छोटी बेंच ने वर्ष 2016 में वरिष्ठ अधिवक्ताओं इंदिरा जयसिंह, दुष्यंत दवे, वी गिरि और मीनाक्षी अरोड़ा को संविधान पीठ की सहायता के लिये एमिकस क्यूरी (अदालत के मित्र) के रूप में नियुक्त किया था।

संविधान का अनुच्छेद 142 (1):

  • अनुच्छेद 142 (1) सर्वोच्च न्यायालय को इस तरह की डिक्री पारित करने या किसी भी कारण या मामले में 'पूर्ण न्याय' करने हेतु आवश्यक आदेश देने के लिये व्यापक शक्ति प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 142(1) के तहत शक्ति का प्रयोग करने का निर्णय "मौलिक रूप से सामान्य और विशिष्ट सार्वजनिक नीति पर आधारित" होना चाहिये।
    • सार्वजनिक नीति की मूलभूत सामान्य शर्तें मौलिक अधिकारों, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और संविधान की अन्य बुनियादी विशेषताओं को संदर्भित करती हैं; विशिष्ट सार्वजनिक नीति को न्यायालय द्वारा परिभाषित किया गया था जिसका अर्थ है "किसी भी मूल कानून में कुछ पूर्व-प्रतिष्ठित निषेध, न कि किसी विशेष वैधानिक योजना के लिये शर्तें और आवश्यकताएँ"।

भारत में वैवाहिक समानता की स्थिति:

  • भारत में तलाक दर और उनके रुझान:
    • वर्ष 2018 के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 160,000 परिवारों के 93% विवाहित भारतीयों का 'व्यवस्था विवाह’ (Arrange Marriage) हुआ था, जबकि वैश्विक औसत लगभग 55% था।
      • भारत में प्रति 1,000 लोगों पर 1.1 की न्यूनतम वार्षिक तलाक दर है, प्रत्येक 1,000 में से केवल 13 विवाहों में तलाक की स्थिति उत्पन्न होती है, जिसमें सामान्यतः पुरुष आरंभकर्त्ता होते हैं।
      • प्रचलित सामाजिक मानदंड महिलाओं को तलाक लेने से हतोत्साहित करते हैं और जब वे ऐसा करते हैं, तो उन्हें कानूनी बाधाओं एवं सामाजिक-आर्थिक अलगाव का सामना करना पड़ता है, विशेषकर अगर वे अपने जीवनसाथी पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं।
  • महिलाओं की आर्थिक निर्भरता:
  • तलाक के बाद महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ:
    • वैवाहिक संबंध का विघटन असमान रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है, जिसमें घरेलू आय में अनुपातहीन नुकसान, गृह स्वामित्त्व खोने का उच्च जोखिम, पुन: साझेदारी के कम अवसर और एकल पालन-पोषण का भारी बोझ शामिल है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान के संदर्भ में सामान्य विधियों में अंतर्विष्ट प्रतिषेध अथवा निर्बंधन अथवा उपबंध, अनुच्छेद 142 के अधीन सांविधानिक शक्तियों पर प्रतिषेध अथवा निर्बंधन की तरह कार्य नहीं कर सकते। निम्नलिखित में से कौन-सा एक इसका अर्थ हो सकता है? (2019)

(a) भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय लिये गए निर्णयों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
(b) भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपनी शक्तियों के प्रयोग में संसद द्वारा निर्मित विधियों से बाध्य होता है।
(c) देश में गंभीर वित्तीय संकट की स्थिति में भारत का राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के परामर्श के बिना वित्तीय आपातकाल घोषित कर सकता है।
(d) कुछ मामलों में राज्य विधानमंडल, संघ विधानमंडल की सहमति के बिना विधि निर्मित नहीं कर सकते।

उत्तर: (b)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

केंद्रीय प्रतिपक्ष

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय प्रतिपक्ष (CCPs), यूरोपीय बाज़ार अवसंरचना विनियमन (EMIR), यूरोपीय प्रतिभूति एवं बाज़ार प्रा​धिकरण (EMSA)

मेन्स के लिये:

CCP और वित्तीय बाज़ारों में इसकी कार्यप्रणाली, यूरोपीय बैंकों के लिये भारतीय CCPs की ESMA की मान्यता समाप्त करने के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

यूरोपीय संघ के वित्तीय बाज़ार नियामक, यूरोपीय प्रतिभूति और बाज़ार प्राधिकरण (ESMA) ने यूरोपीय बाज़ार अवसंरचना विनियमन (EMIR) के अनुसार, 30 अप्रैल, 2023 से छह भारतीय केंद्रीय प्रतिपक्षों (CCP) की मान्यता रद्द कर दी है।

  • ये छह CCPs भारतीय समाशोधन निगम (Clearing Corporation of India- CCIL), भारतीय समाशोधन निगम लिमिटेड (Indian Clearing Corporation Ltd- ICCL), NSE समाशोधन लिमिटेड (NSE Clearing Ltd- NSCCL), मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज क्लियरिंग (MCX CCL), इंडिया इंटरनेशनल क्लियरिंग कॉर्पोरेशन (India International Clearing Corporation-IFSC) लिमिटेड (IICC) और NSE IFSC समाशोधन निगम लिमिटेड (NSE IFSC Clearing Corporation Ltd- NICCL) हैं।

भारतीय केंद्रीय प्रतिपक्ष (CCP):

  • परिचय:
    • CCP एक वित्तीय संस्थान है जो विभिन्न डेरिवेटिव और इक्विटी बाज़ारों में खरीदारों एवं विक्रेताओं के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है। CCPs ऐसी संरचनाएँ हैं जो वित्तीय बाज़ारों में समाशोधन और निपटान प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने में सहायता करती हैं।
    • CCP का प्राथमिक लक्ष्य वित्तीय बाज़ारों में दक्षता और स्थिरता को बढ़ाना है।
    • CCP प्रतिपक्ष, परिचालन, निपटान, बाज़ार, कानूनी और डिफॉल्ट मुद्दों से जुड़े जोखिमों को कम करता हैं।
    • CCP एक व्यापार में खरीदारों और विक्रेताओं दोनों के प्रतिपक्ष के रूप में कार्य करता है, इसमें शामिल प्रत्येक पक्ष से धन एकत्र करता है और व्यापार की शर्तों की गारंटी देता है।
  • कार्यप्रणाली:
    • समाशोधन और निपटान CCP के दो मुख्य कार्य हैं।
      • समाशोधन में व्यापार के विवरण को मान्य करना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि लेन-देन को पूरा करने के लिये दोनों पक्षों के पास पर्याप्त धन है।
      • निपटान में विक्रेता से खरीदार को व्यापार में सम्मिलित परिसंपत्ति या प्रतिभूति के स्वामित्त्व का हस्तांतरण शामिल है।
  • भारत में विनियामक:

ESMA द्वारा भारतीय CCP की मान्यता समाप्त:

  • कारण:
    • ESMA ने सभी EMIR आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहने के कारण भारतीय CCP की मान्यता समाप्त कर दी।
    • ESMA और भारतीय नियामकों- RBI, SEBI और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (International Financial Services Centres Authority- IFSCA) के बीच 'किसी प्रकार की सहयोग संबंधी व्यवस्था की अनुपलब्धता' के कारण यह निर्णय लिया गया।
      • ESMA इन छह CCPs की निगरानी करना चाहता है, भारतीय नियामकों का मानना है कि चूँकि ये घरेलू CCPs भारत में कार्यरत हैं, यूरोपीय संघ में नहीं, इसलिये इन संस्थाओं को ESMA नियमों के अधीन नहीं लाया जा सकता है। भारतीय नियामकों को लगता है कि इन छह CCP के पास ठोस जोखिम प्रबंधन व्यवस्था है, इसलिये किसी विदेशी नियामक को उनका निरीक्षण करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
  • प्रभाव:
    • निकासी के निर्णयों के लागू होने की तिथि के अनुसार, ये CCPs अब यूरोपीय संघ में स्थापित समाशोधन सदस्यों और व्यापारिक केंद्रों को सेवाएँ प्रदान नहीं करेंगे।
    • इस निर्णय का भारत में यूरोपीय बैंकों पर प्रभाव पड़ेगा क्योंकि भारतीय केंद्रीय प्रतिपक्षों से जुड़े लेन-देन के लिये या तो उन्हें अपनी पूंजी आवश्यकताओं को 50 गुना तक बढ़ाने की आवश्यकता होगी या उन्हें अगले 6 से 9 महीने के दौरान उन प्रतिपक्षों के साथ अपनी होल्डिंग को समाप्त करना होगा।

यूरोपीय प्रतिभूति और बाज़ार प्राधिकरण (ESMA):

  • ESMA स्वतंत्र यूरोपीय संघ प्राधिकरण है।
  • ESMA निवेशकों की सुरक्षा और स्थिर एवं व्यवस्थित वित्तीय बाज़ारों को बढ़ावा देता है।
  • ESMA विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं जैसे- क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों, प्रतिभूतिकरण रिपॉज़िटरी एवं ट्रेड रिपॉज़िटरी का प्रत्यक्ष पर्यवेक्षक है।

यूरोपीय बाज़ार अवसंरचना विनियमन (EMIR):

  • EMIR अगस्त 2012 में अपनाया गया एक यूरोपीय संघ विनियमन है।
  • इसका उद्देश्य OTC डेरिवेटिव बाज़ार में प्रणालीगत, प्रतिपक्ष और परिचालन जोखिम को कम करना है।
  • यह CCPs और ट्रेड रिपॉज़िटरी हेतु उच्च विवेकपूर्ण मानक निर्धारित करता है।
  • EMIR गैर-निकासी डेरिवेटिव जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों में सुधार करता है।
  • यह तीसरे देश के CCP की पहचान और पर्यवेक्षण हेतु एक ढाँचा स्थापित करता है।

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स


जैव विविधता और पर्यावरण

नागरिक विमानन क्षेत्र की अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई में शामिल होगा भारत

प्रिलिम्स के लिये:

ICAO, CORSIA, LTAG

मेन्स के लिये:

नागरिक विमानन में जलवायु कार्रवाई: CORSIA, LTAG, भारत के लिये इसके लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नागरिक विमानन मंत्रालय (MoCA) ने घोषणा की है कि भारत वर्ष 2027 से अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organisation- ICAO) की कार्बन ऑफसेटिंग एंड रिडक्शन स्कीम फॉर इंटरनेशनल एविएशन (CORSIA) और लॉन्ग-टर्म ग्लोबल एस्पिरेशनल गोल्स (LTAG) में भाग लेगा।

  • CORSIA योजना की परिकल्पना 3 चरणों में की गई है: पायलट चरण (2021-2023), पहला चरण (2024-2026) जो कि स्वैच्छिक चरण है, जबकि दूसरा चरण (2027-2035) सभी सदस्य राज्यों के लिये अनिवार्य है।
    • भारत ने CORSIA के स्वैच्छिक चरण में भाग नहीं लेने का निर्णय लिया है।

CORSIA और LTAG:

  • पृष्ठभूमि:
    • ICAO को अपने प्रमुख क्षेत्रों में से एक के रूप में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन से कार्बन उत्सर्जन को कम करने का कार्य सौंपा गया है।
      • विमानन से होने वाले कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन पर इसके प्रभाव को कम करने के लिये वैश्विक निकाय ने कई प्रमुख आकांक्षात्मक लक्ष्यों को अपनाया है। उनमें शामिल हैं:
        • वर्ष 2050 तक 2 प्रतिशत वार्षिक ईंधन दक्षता में सुधार
        • कार्बन न्यूट्रल ग्रोथ
        • वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन
      • ICAO ने CORSIA और LTAG का गठन किया है।
  • CORSIA:
    • यह अंतर्राष्ट्रीय विमानन के कारण होने वाली CO2 उत्सर्जन में वृद्धि को संबोधित करने के लिये ICAO द्वारा स्थापित एक वैश्विक योजना है।
    • CORSIA का उद्देश्य कार्बन ऑफसेटिंग, कार्बन क्रेडिट और सतत् विमानन ईंधन सहित अनेक उपायों के संयोजन के माध्यम से वर्ष 2020 के स्तर के शुद्ध CO2 उत्सर्जन को स्थिर करना है।
    • यह ICAO सदस्य राज्यों की विशेष परिस्थितियों और संबंधित क्षमताओं का सम्मान करते हुए अंतर्राष्ट्रीय विमानन क्षेत्र में उत्सर्जन, बाज़ार विकृति को कम करने के लिये एक सुसंगत तरीका प्रदान करता है।
    • CO2 उत्सर्जन को संतुलित करने के लिये CORSIA पहले के उपायों के पूरक के रूप में कार्य करता है जिसे प्रौद्योगिकी प्रगति, परिचालन सुधार और कार्बन बाज़ार उत्सर्जन इकाइयों के साथ स्थायी विमानन ईंधन के उपयोग से कम नहीं किया जा सकता है।
    • CORSIA केवल एक देश से दूसरे देश जाने वाली उड़ानों पर लागू होता है।
  • दीर्घकालिक वैश्विक आकांक्षात्मक लक्ष्य (Long-term Global Aspirational Goal- LTAG):
    • UNFCCC पेरिस समझौते के तापमान संबंधी लक्ष्य के समर्थन में 41वीं ICAO सभा ने अंतर्राष्ट्रीय विमानन हेतु LTAG को अपनाया जिसमें वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना प्रस्तावित है।
    • LTAG राज्यों को उत्सर्जन में कटौती करने के लक्ष्यों के रूप में विशेष कर्त्तव्य अथवा ज़िम्मेदारियाँ नहीं सौंपता है। इसके बजाय यह प्रत्येक राज्य की अलग-अलग परिस्थितियों और क्षमताओं की पहचान करता है, जैसे कि विमानन बाज़ारों के वृद्धि और विकास का स्तर।

अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठन (ICAO):

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जिसे वर्ष 1944 में विश्व भर में सुरक्षित और कुशल हवाई परिवहन को बढ़ावा देने हेतु बनाया गया था।
  • ICAO विमानन हेतु अंतर्राष्ट्रीय मानकों और अनुशंसित तरीकों को विकसित करता है, जिसमें हवाई नेविगेशन, संचार और हवाई अड्डे के संचालन के नियम शामिल हैं।
  • यह हवाई यातायात प्रबंधन, विमानन सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण जैसे वैश्विक विमानन मुद्दों को उज़ागर करने का भी कार्य करता है।
  • इसका मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में है।

ऐसी पहलों में शामिल होने के संभावित लाभ:

  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना: CORSIA में शामिल होने और LTAG हेतु प्रयास करने से अंतर्राष्ट्रीय विमानन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी। यह जलवायु परिवर्तन से निपटने एवं पर्यावरण की रक्षा के लिये आवश्यक है।
    • भारत ने वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य भी रखा है।
    • भारत वर्ष 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने हेतु प्रतिबद्ध है।
  • धारणीयता में वृद्धि: CORSIA और LTAG एयरलाइंस को अधिक टिकाऊ तकनीकियों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करते हैं, जैसे कि अधिक कुशल विमान का उपयोग करना, ईंधन की खपत को कम करना तथा नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करना।

विमानन क्षेत्र का जलवायु पर प्रभाव:

  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: विमानन क्षेत्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। विमान के इंजनों में जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प, नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं अन्य ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न होती हैं जो जलवायु परिवर्तन में योगदान करती हैं।
  • कॉन्ट्रिल्स: कॉन्ट्रिल्स सफेद, लकीर वाली रेखाएँ होती हैं जिन्हें हवाई जहाज़ द्वारा आकाश में छोड़ा जाता है। वे बर्फ के क्रिस्टल से बने होते हैं एवं तब बनते हैं जब विमान से निष्कासित जल वाष्प ठंडे, उच्च ऊँचाई वाले वातावरण में संघनित होता है। कॉन्ट्रिल्स पृथ्वी के वायुमंडल में ताप को रोककर ग्रह पर उष्मण प्रभाव डाल सकते हैं।
  • पक्षाभ मेघ: कॉन्ट्रिल्स के समान पक्षाभ मेघ भी विमान के उत्सर्जन से बनते हैं। इन बादलों का ग्रह पर गर्म प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि ये पृथ्वी के वातावरण में गर्मी को रोके रखते हैं।

कार्बन उत्सर्जन को कम करने हेतु MoCA की प्रमुख पहलें:

  • हरित हवाई अड्डे: हरित हवाई अड्डे के तहत पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये स्थायी प्रथाओं को लागू किया गया है। हरित हवाई अड्डों का लक्ष्य अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करना, ऊर्जा और जल संसाधनों का संरक्षण करना तथा कचरा एवं उत्सर्जन को कम करना है।
  • राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति (NCAP) 2016: इसमें एक टिकाऊ विमानन ढाँचा विकसित करने का लक्ष्य शामिल है जो वैकल्पिक ईंधन, ऊर्जा कुशल विमान और बुनियादी ढाँचे के उपयोग को बढ़ावा देता है।
  • सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF): सतत् विकास और हवाई अड्डों पर कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिये SAF के उपयोग को प्रोत्साहित करने की पहल की गई है।

स्रोत: इकोनाॅमिक टाइम्स


भूगोल

भारत का जलवायु और मौसम प्रतिरूप

प्रिलिम्स के लिये:

अल नीनो, दक्षिण-पश्चिम मानसून मौसम, हीटवेव

मेन्स के लिये:

भारत के मानसून पर अल नीनो का प्रभाव, भारत में चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता में जलवायु परिवर्तन की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के कई क्षेत्रों में बारिश हुई, विशेषज्ञों का अनुमान है कि वर्ष 2023 काफी गर्म और शुष्क रहेगा।

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने मानसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की है, लेकिन अल नीनो की घटनाओं में वृद्धि होने से मानसूनी वर्षा में कमी आ सकती है।
  • इसके अतिरिक्त IMD ने पहली बार चरम मौसमी घटनाओं के कारण होने वाली मौतों पर डेटा जारी किया है।

भारत की वर्तमान स्थिति:

  • अनियमित वर्षाजल वितरण:
    • हालिया बूँदा-बाँदी के बावजूद पूर्वोत्तर राज्यों, झारखंड और पश्चिम बंगाल को छोड़कर पूरे देश में पर्याप्त बारिश हुई है।
    • महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में स्थानीय मौसम की विभिन्न घटनाओं के कारण उम्मीद से 15 गुना अधिक बारिश हुई है।
  • अल नीनो और ग्लोबल वार्मिंग:
    • IMD ने सामान्य मानसून की भविष्यवाणी की है लेकिन अल नीनो में वृद्धि भारत में वर्षा को प्रभावित कर सकती है।
    • विश्व स्तर पर अल नीनो की घटनाओं में तेज़ी से वृद्धि, जिसका समग्र ग्रह पर वार्मिंग प्रभाव पड़ता है, के कारण वर्ष 2023 के चार सबसे गर्म वर्षों में से एक होने की संभावना है।
  • भारत में वार्मिंग पैटर्न:
    • वर्ष 2022 पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म रहा है, भारत के तापमान में वृद्धि की प्रवृत्ति वैश्विक औसत से थोड़ी कम है।
    • भारत में उष्मण सभी क्षेत्रों में एक समान नहीं है। हिमाचल प्रदेश, गोवा और केरल जैसे कुछ राज्यों में अन्य राज्यों की तुलना में अधिक गर्मी देखी गई है, जबकि बिहार, झारखंड एवं ओडिशा जैसे पूर्वी राज्यों में सबसे कम गर्मी का अनुभव हुआ है।
    • उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में समुद्र की सतह का तापमान वर्ष 1950 और 2015 के बीच लगभग एक डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है।

आगामी अल नीनो के प्रभाव के संदर्भ में जलवायु मॉडल का अनुमान:

  • भारत में कमज़ोर मानसून: मई/जून 2023 में अल नीनो की घटना में वृद्धि से दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम कमज़ोर हो सकता है, जो भारत को प्राप्त होने वाली कुल वर्षा का लगभग 70% है, साथ ही इस पर देश के अधिकांश किसान निर्भर हैं।
    • हालाँकि मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) और कम दबाव प्रणाली जैसे उप-मौसमी कारक कुछ क्षेत्रों में वर्षा को अस्थायी रूप से बढ़ा सकते हैं जैसा कि वर्ष 2015 में देखा गया था।
  • उच्च तापमान: यह भारत और विश्व भर के अन्य क्षेत्रों जैसे कि दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और प्रशांत द्वीप समूह में हीटवेव तथा सूखे का कारण बन सकता है।
  • पश्चमी देशों में भारी वर्षा: यह संयुक्त राज्य अमेरिका में कैलिफोर्निया जैसे अन्य क्षेत्रों में भारी वर्षा तथा बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर सकता है और प्रवाल भित्तियों के विरंजन एवं मृत्यु का कारण बन सकता है।
  • बढ़ता वैश्विक औसत तापमान:
    • अल नीनो के कारण वर्ष 2023 और 2024 में वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो सकता है।
    • महासागरों का गर्म होना भी अल नीनो घटना के प्रमुख प्रभावों में से एक है।
    • यह तब है जब विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization- WMO) के अनुसार, समुद्र की गर्मी पहले से ही उच्च स्तर पर है।

किस मौसम की घटना के कारण सबसे अधिक मौतें होती हैं?

  • भारत में किसी भी अन्य मौसम की घटना की तुलना में बिजली गिरने से अधिक मौतें हुईं।
    • वर्ष 2022 में भारत में मौसम संबंधी घटनाओं के चलते 60% मौतें (2,657 दर्ज मौतों में से 1,608) बिजली गिरने के कारण हुईं।
  • बाढ़ और अत्यधिक वर्षा की घटनाओं से 937 लोगों की जान चली गई।
  • मरने वालों की वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है, क्योंकि IMD और राज्य सरकारें सूची तैयार करने के लिये मीडिया रिपोर्टों पर निर्भर थीं।

भारत की जलवायु परिवर्तन शमन पहल क्या हैं?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित 'इंडियन ओशन डाईपोल (IOD)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. IOD परिघटना उष्णकटिबंधीय पश्चिमी हिंद महासागर एवं उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के बीच सागर-पृष्ठ तापमान के अंतर से विशेषित होती है।
  2. IOD परिघटना मानसून पर अल नीनो के असर को प्रभावित कर सकती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

भारत में ऑनलाइन जुआ

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में ऑनलाइन जुआ, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019, सार्वजनिक जुआ अधिनियम, 1867, ऑनलाइन गेमिंग

मेन्स के लिये:

भारत में ऑनलाइन जुआ, इसके लाभ और हानि

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने राज्यों को ऑनलाइन सट्टेबाज़ी और जुआ मंचों को बढ़ावा देने वाले बाह्य विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।

  • सरकार ने पहले जून 2022 में मीडिया को एक दिशा-निर्देश जारी किया था, जिसमें उन्हें जनहित में ऐसे विज्ञापनों को प्रकाशित करने से परहेज करने का निर्देश दिया गया था।

सरकार का पक्ष:

  • सरकार ने पाया है कि कुछ सट्टेबाज़ी और जुआ मंच बाह्य मीडिया जैसे- होर्डिंग्स, पोस्टर, बैनर एवं ऑटो रिक्शा ब्रांडिंग का उपयोग अपनी वेबसाइट्स/एप्स को बढ़ावा देने हेतु कर रहे हैं।
  • ऐसे विज्ञापन भ्रामक पाए गए और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के अनुरूप नहीं पाए गए।
  • इसके अलावा चूँकि सट्टेबाज़ी और जुआ देश के अधिकांश हिस्सों में अवैध है, वे उपभोक्ताओं, विशेष रूप से युवाओं एवं बच्चों हेतु वित्तीय तथा सामाजिक आर्थिक जोखिम उत्पन्न करते हैं।
  • सरकार ने विशिष्ट सट्टेबाज़ी मंच के प्रचार पर आपत्ति जताई है, जिसने लोगों को कॉपीराइट अधिनियम के प्रथम दृष्टया उल्लंघन में अपनी वेबसाइट पर खेल लीग देखने हेतु प्रोत्साहित किया।

ऑनलाइन जुआ:

  • ऑनलाइन जुए में पैसे या पुरस्कार जीतने के लिये खेल और घटनाओं पर दाँव लगाकर इंटरनेट के माध्यम से जुआ गतिविधियों में भाग लेना शामिल है। इसे विभिन्न उपकरणों पर चलाया जा सकता है और इसमें नकदी के बजाय वर्चुअल चिप या डिजिटल मुद्राओं का उपयोग शामिल है।
  • वर्ष 2022 में वैश्विक ऑनलाइन जुआ बाज़ार का मूल्य 63.53 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और इसके वर्ष 2023 से वर्ष 2030 तक 11.7% की CAGR से बढ़ने की उम्मीद है, जिसमें एशिया-प्रशांत क्षेत्र सबसे बड़ा बाज़ार है।
  • ऑनलाइन जुए के विभिन्न प्रकार हैं, जिसमें स्लॉट, ब्लैकजैक और रूलेट, खेल सट्टेबाज़ी, पोकर एवं लॉटरी जैसे कैसीनो गेम शामिल हैं। ये भारत सहित अधिकांश देशों में प्रतिबंधों तथा कानूनों की अलग-अलग स्तर के साथ विनियमित हैं।

ऑनलाइन गेमिंग और ऑनलाइन जुए में अंतर:

  • कानून के तहत गेमिंग और जुए के बीच का अंतर इसमें शामिल कौशल के तत्त्व पर निर्भर करता है। यदि किसी ऑनलाइन गतिविधि में कौशल की आवश्यकता नहीं है, तो इसे जुआ खेलने के बजाय जुआ माना जाएगा।
  • इसलिये कानून के अनुसार, अनुमत गेमिंग गतिविधियों के लिये कौशल की आवश्यकता होती है, जबकि जुआ गतिविधियाँ अवसर पर निर्भर करती हैं।

ऑनलाइन जुए से संबंधित चिंताएँ:

  • वित्तीय और सामाजिक परेशानी:
    • ऑनलाइन जुआ अत्यधिक व्यसनी हो सकता है, जिससे गंभीर वित्तीय और सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। चूँकि यह आसानी से सुलभ है, खिलाड़ी अपने द्वारा खर्च किये जा रहे समय और धन की मात्रा को महसूस किये बिना गेम खेलने में घंटों बिता सकते हैं।
  • अनियमित:
    • ऑनलाइन जुआ सामान्यतः अनियमित होता है, जिससे धोखाधड़ी की गतिविधियों को अंजाम देना सरल हो जाता है। इससे खिलाड़ियों को अपना पैसा गँवाना पड़ सकता है या उनकी निजी जानकारी से समझौता किया जा सकता है।
    • जुए को लेकर भारत में जटिल कानून हैं और अधिकांश राज्यों में उपलब्ध नहीं हैं। जुए पर प्रत्येक राज्य का अपना अधिकार क्षेत्र है।
  • मनी लॉन्ड्रिंग का साधन:
    • ऑनलाइन जुए का उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग के साधन के रूप में किया जा सकता है, जहाँ खिलाड़ी बड़ी मात्रा में नकदी ऑनलाइन खातों में जमा कर सकते हैं और फिर वैध रूप में धन की निकासी कर सकते हैं।
  • साइबर-हमलों के लिये प्रवण:
    • ऑनलाइन जुआ साइट्स साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं, जिससे खिलाड़ियों की संवेदनशील व्यक्तिगत और वित्तीय जानकारी की चोरी हो सकती है।
  • सामाजिक अलगाव:
    • ऑनलाइन जुआ सामाजिक अलगाव का कारण बन सकता है क्योंकि खिलाड़ी ऑनलाइन गेम खेलने में घंटों बिता सकते हैं, जिससे परिवार और दोस्तों के साथ सामाजिक संपर्क में कमी आती है।

ऑनलाइन जुए के लाभ:

  • सुविधा: ऑनलाइन जुआ अपने घर या कहीं भी इंटरनेट कनेक्शन के साथ सरलता से एक्सेस किया जा सकता है, जो इसे पारंपरिक जुए के तरीकों की तुलना में अधिक सुविधाजनक बनाता है।
  • अभिगम्यता: ऑनलाइन जुआ अकसर विकलांग लोगों या उन लोगों के लिये अधिक सुलभ होता है जिन्हें अपने घरों को छोड़ने में कठिनाई होती है। ऑनलाइन जुए के कारण उन्हें जुआ गतिविधियों में भाग लेने की इज़ाज़त मिलती है जो अन्यथा उनके लिये मुश्किल या असंभव है।
  • राजस्व सृजन: ऑनलाइन जुए में कराधान और विनियमन के माध्यम से भारत सरकार के लिये महत्त्वपूर्ण राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता है। इसके अतिरिक्त ऑनलाइन जुआ उद्योग भारतीय उद्यमियों के लिये नौकरी के अवसर पैदा कर सकता है, जो अपने स्वयं के ऑनलाइन जुआ मंचों को विकसित और संचालित कर सकते हैं।

ऑनलाइन जुए पर भारतीय कानून:

  • सार्वजनिक जुआ अधिनियम, 1867:
    • वर्तमान में सार्वजनिक जुआ अधिनियम, 1867 जुआ और इसके सभी रूपों में नियंत्रित करने के लिये भारत में केवल एक केंद्रीय कानून है। यह एक पुराना कानून है, जो डिजिटल कैसीनो, ऑनलाइन जुआ और गेमिंग की चुनौतियों से निपटने के लिये अभिकल्पित नहीं है।
  • संविधान की सातवीं अनुसूची:
    • भारत में जुआ काफी हद तक राज्य का विषय है। इसका मतलब यह है कि राज्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में जुए को विनियमित करने के लिये अपने स्वयं के कानून बनाएँ।
  • विभिन्न राज्यों में कानून:
    • दिल्ली, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने कुछ संशोधनों के साथ सार्वजनिक जुआ अधिनियम को अपनाया है।
    • गोवा, सिक्किम, दमन, मेघालय और नगालैंड जैसे अन्य क्षेत्रों ने अपने अधिकार क्षेत्र में सार्वजनिक जुए को विनियमित करने के लिये विशिष्ट कानूनों का मसौदा तैयार किया है।

आगे की राह

  • ऑनलाइन जुए के कारण उत्पन्न होने वाली चुनौतियों को नियामकों और नीति निर्माताओं द्वारा निष्पक्ष एवं ज़िम्मेदार जुआ सुनिश्चित करने के लिये इनके निपटान करने की आवश्यकता है।
  • भारत में कानूनी परिदृश्य जटिल है और विभिन्न राज्यों में भिन्न भी है, इसलिये व्यक्तियों को अपने राज्य के कानूनों के बारे में पता होना चाहिये और केवल लाइसेंस प्राप्त ऑनलाइन जुआ गतिविधियों में भाग लेना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


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