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भारतीय राजनीति

विशेष विवाह अधिनियम, 1954

  • 31 Aug 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 मौलिक अधिकार, अनुच्छेद 21, सर्वोच्च न्यायालय।

मेन्स के लिये:

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954, निजता का अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें युगल को अपनी शादी से 30 दिन पहले शादी करने के अपने इरादे की घोषणा करने के लिये एक नोटिस देने की आवश्यकता होती है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि याचिकाकर्त्ता अब पीड़ित पक्ष नहीं है क्योंकि उसने पहले ही SMA के तहत अपनी शादी कर ली थी।

याचिका में मांग:

  • याचिका ने SMA के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि इन प्रावधानों के तहत युगल को शादी की तारीख से 30 दिन पहले जनता से आपत्तियाँ आमंत्रित करने के लिये नोटिस देना होता है।
  • ये प्रावधान समानता के अधिकार पर अनुच्छेद 14 के साथ-साथ धर्म, नस्ल, जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव के निषेध पर अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करते हैं क्योंकि ये आवश्यकताएँ पर्सनल लॉ में अनुपस्थित हैं।

प्रावधानों को चुनौती:

  • SMA की धारा 5 के तहत शादी करने वाले युगल को शादी की तारीख से 30 दिन पहले विवाह अधिकारी को नोटिस देना होता है।
  • याचिका में धारा 6 से धारा 10 तक के प्रावधानों को खत्म करने की मांग की गई है।
    • धारा 6 में ऐसी सूचना की आवश्यकता होती है जिसे विवाह अधिकारी द्वारा अनुरक्षित विवाह सूचना पुस्तिका में दर्ज किया जाता है, जिसका निरीक्षण “किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है जो उसका निरीक्षण करना चाहता है।”
    • धारा 7 आपत्ति दर्ज करने की प्रक्रिया प्रदान करती है।
    • धारा 8 आपत्ति दर्ज कराने के बाद की जाने वाली जाँच प्रक्रिया को निर्दिष्ट करती है।
  • याचिका में कहा गया है कि ये प्रावधान व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक जाँच के लिये सुभेद्य बनाते हैं।
  • इसलिये, ये प्रावधान व्यक्तिगत जानकारी और उसकी पहुँच पर नियंत्रण रखने के अधिकार को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाते हैं।
  • युगल के व्यक्तिगत विवरण को सभी के लिये सुलभ बनाकर, विवाह के निर्णय लेने के अधिकार को राज्य द्वारा बाधित किया जा रहा है।
  • इन सार्वजनिक नोटिसों का इस्तेमाल असामाजिक तत्त्वों ने शादी करने वाले युगलों को परेशान करने के लिये भी किया है।
  • ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ विवाह अधिकारियों ने कानून के सीमा से बाहर जाकर युगल के माता-पिता को इस प्रकार के नोटिस भेजे हैं, जिसके कारण लड़की को उसके माता-पिता द्वारा उसके घर पर ही बंधक की तरह रखा गया ।

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954:

  • परिचय:
    • भारत में विवाह संबंधित व्यक्तिगत कानूनों- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955; मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954, या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत पंजीकृत किये जा सकते हैं।
    • इसके अंतर्गत यह सुनिश्चित करना न्यायपालिका का कर्तव्य है कि पति और पत्नी दोनों के अधिकारों की रक्षा की जाए।
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भारत की संसद का एक अधिनियम है जिसमें भारत और विदेशों में सभी भारतीय नागरिकों के लिये विवाह का प्रावधान है, चाहे दोनों पक्षों द्वारा किसी भी धर्म या आस्था का पालन किया जाए।
    • जब कोई व्यक्ति इस कानून के तहत विवाह करता है तो विवाह व्यक्तिगत कानूनों द्वारा नहीं बल्कि विशेष विवाह अधिनियम द्वारा शासित होता है।
  • विशेषताएँ:
    • दो अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों को शादी के बंधन में एक साथ आने की अनुमति देता है।
    • जहाँ पति या पत्नी या दोनों में से कोई हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख नहीं है, वहाँ विवाह के अनुष्ठापन तथा पंजीकरण दोनों के लिये प्रक्रिया निर्धारित करता है।
    • एक धर्मनिरपेक्ष अधिनियम होने के कारण यह व्यक्तियों को विवाह की पारंपरिक आवश्यकताओं से मुक्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • प्रावधान:
    • पूर्व सूचना:
      • अधिनियम की धारा 5 के अनुसार यदि युगल को विवाह से कोई आपत्ति है, तो वह अगले 30 दिनों की अवधि में इसके विरुद्ध सूचना दर्ज करा सकता है।
    • पंजीकरण:
      • सार्वजनिक नोटिस जारी करने और आपत्तियाँ आमंत्रित करने के लिये दस्तावेज जमा करने के उपरांत दोनों पक्षों को उपस्थित होना आवश्यक है।
      • उपजिलाधिकारी द्वारा उस अवधि के दौरान प्राप्त होने वाली किसी भी आपत्ति का निर्णय करने के बाद नोटिस की तिथि के 30 दिन बाद पंजीकरण किया जाता है।
      • पंजीकरण की तिथि पर दोनों पक्षों को तीन गवाहों के साथ उपस्थित होना आवश्यक है।

स्रोत: द हिंदू

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