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जैव विविधता और पर्यावरण

नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में 30% की वृद्धि

  • 27 Oct 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

नाइट्रोजन के ऑक्साइड

मेन्स के लिये:

नाइट्रोजन बजट 

चर्चा में क्यों?

नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, वर्ष 1980 से 2016 के बीच नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) के मानवजनित उत्सर्जन में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह शोध कार्य 'अंतर्राष्ट्रीय नाइट्रोजन पहल' (International Nitrogen Initiative- INI) और 'ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट ऑफ फ्यूचर अर्थ' द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था जिसमें 14 देशों के 48 संस्थानों के 57 वैज्ञानिक शामिल हुए।
  • अध्ययन में 21 प्राकृतिक और मानवीय स्रोतों का विश्लेषण किया गया है, जिसमें पाया गया कि कुल उत्सर्जन का 43 प्रतिशत मानव स्रोतों से आया है।
  • यह 'वैश्विक नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन' का अब तक का सबसे व्यापक अध्ययन है। इसमें प्राकृतिक तथा मानवजनित (मानव निर्मित) दोनों स्रोतों से उत्सर्जित नाइट्रोजन का अध्ययन किया गया है।

नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NOx):

  • नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) को ओज़ोन का पूर्ववर्ती (Precursors) माना जाता है जो ओज़ोन के समान क्षोभमंडल में एक ‘ग्रीन-हाउस गैस’ (GHG) है।
  • नाइट्रोजन के पाँच आक्साइडों में से केवल तीन अर्थात् नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), नाइट्रिक ऑक्साइड (NO), और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) ही महत्त्वपूर्ण मात्रा में वातावरण में मौजूद हैं, नाइट्रोजन के अन्य दो ऑक्साइड नाइट्रोजन ट्राइऑक्साइड (NO3)और नाइट्रोजन पेंटाऑक्साइड (N2O5) हैं।
  • नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) अम्ल वर्षा और और क्षोभमंडल में ओज़ोन के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाती है।

नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O):

  • नाइट्रस ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की तुलना में 300 गुना अधिक शक्तिशाली ग्रीन-हाउस गैस है। नाइट्रस ऑक्साइड 125 वर्षों तक वातावरण में रह सकती है। 
  • नाइट्रस ऑक्साइड का वैश्विक संकेंद्रण स्तर वर्ष 1750 के 270 PPB (Parts Per Billion) से बढ़कर वर्ष 2018 में 331 PPB हो गया है अर्थात्  इसमें 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है । 
  • मानवजनित उत्सर्जन के कारण पिछले पाँच दशकों में इसके संकेंद्रण में सर्वाधिक वृद्धि हुई है।
  • वर्तमान में नाइट्रस ऑक्साइड ओज़ोन परत के लिये सबसे प्रमुख खतरा है, क्योंकि इसका संकेंद्रण लंबे समय तक वातावरण में बना रहता है।
  • विकासशील देशों यथा- भारत, चीन और ब्राज़ील आदि का नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में प्रमुख योगदान है।

Global-N2O-Budget

अध्ययन का महत्त्व:

  • नाइट्रस ऑक्साइड की वायुमंडल में बढ़ती मात्रा के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन में गैर-कार्बन स्रोतों का योगदान बढ़ रहा है, जबकि वर्तमान में वैश्विक जलवायु परिवर्तन वार्ताओं का मुख्य ध्यान कार्बन के उत्सर्जन और शमन पर केंद्रित है।
  • जलवायु संकट और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के मध्य भी द्वैतवाद (Dichotomy) देखने को मिलता है। पिछले चार दशकों में नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र में नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों के प्रयोग से आया है। भोजन तथा पशु-चारे की बढ़ती मांग के कारण नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन की मात्रा में वृद्धि हो सकती है।

आगे की राह:

  • 'संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा' (UNEA-4) को  'स्थायी नाइट्रोजन प्रबंधन' (Sustainable Nitrogen Management) पर संकल्प को लागू करने की दिशा में कार्य करना चाहिये। 
    • यह संकल्प सतत् विकास लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये 'वैश्विक नाइट्रोजन चक्र' के बेहतर प्रबंधन हेतु विकल्प तलाशने का समर्थन करता है। 
  • 'नाइट्रस ऑक्साइड' के उत्सर्जन को कम करने के लिये अच्छी तरह से स्थापित प्रथाओं और प्रौद्योगिकियों की वैश्विक उपलब्धता के लिये सभी देशों को एक साथ मिलकर कार्य करना चाहिये।
  • यूरोपीय देशों द्वारा अपनाई गई औद्योगिक और कृषि नीतियों से नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी करने में मदद मिली है। ऐसे प्रयासों को यूरोप के साथ ही विश्व स्तर पर अपनाए जाने की आवश्यकता है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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