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जैव विविधता और पर्यावरण

सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन मानदंडों का विस्तार

  • 07 Sep 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सल्फर डाइऑक्साइड प्रदूषण और इसका प्रभाव, फ्लू-गैस डिसल्फराइजेशन।

मेन्स के लिये:

भारत में वायु प्रदूषण के खतरों को कम करने पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

चर्चा में क्यों?

विद्युत मंत्रालय (MoP) ने सल्फर उत्सर्जन में कटौती करने के लिये फ्लू  गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) स्थापित करने के लिये कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्रों की समय सीमा दो वर्ष बढ़ा दी है।

पृष्ठभूमि

  • भारत ने शुरू में सल्फर उत्सर्जन में कटौती के लिये FGD इकाइयों को स्थापित करने के लिये तापीय ऊर्जा संयंत्र हेतु के लिये वर्ष 2017 की समय सीमा निर्धारित की थी।
    • सल्फर डाइऑक्साइड को हटाने को फ्लू-गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) कहा जाता है।
    • यह गैसीय प्रदूषकों को दूर करने का प्रयास करता है। SO2 थर्मल प्रसंस्करण, उपचार और दहन के कारण भट्टियों, बॉयलरों और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं में उत्पन्न गैसें हैं।
  • बाद में समय सीमा को अलग-अलग क्षेत्रों के लिये अलग-अलग समय सीमा वर्ष 2022 में समाप्त होने वाली थी जिसे बढ़ाकर वर्ष 2025 कर दिया गया
  • 2027 के अंत तक सल्फर उत्सर्जन के मानदंडों का पालन नहीं करने पर बिजली संयंत्रों को जबरन रिटायर्ड कर दिया जाएगा।
  • आबादी वाले क्षेत्रों और राजधानी नई दिल्ली के पास संयंत्रों को वर्ष 2024 के अंत से संचालित करने के लिये जुर्माना देना होगा, जबकि कम प्रदूषण वाले क्षेत्रों में यूटिलिटीज पर वर्ष 2026 के अंत से जुर्माना लगाया जाएगा।
  • उच्च लागत, धन की कमी, कोविड -19 संबंधित देरी और चीन के साथ भूराजनीतिक तनाव, जिसने व्यापार को कुप्रभावित किया है, विस्तार के कारणों के रूप में उद्धृत किया गया है।

FGD इकाइयों की स्थापना का महत्त्व:

  • भारतीय शहरों में दुनिया की कुछ सबसे प्रदूषित वायु हैं। भारत वर्तमान में अगले उच्चतम देश रूस की तुलना में SO2 की मात्रा का लगभग दोगुना उत्सर्जन करता है।
  • थर्मल यूटिलिटीज, जो देश की 75% बिजली का उत्पादन करती हैं, सल्फर और नाइट्रस-ऑक्साइड के लगभग 80% औद्योगिक उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं, जो फेफड़ों की बीमारियों, अम्ल वर्षा  और स्मॉग का कारण बनती हैं।
  • निर्धारित मानदंडों के कार्यान्वयन में हर एक दिन की देरी और FGD प्रणाली को स्थापित नहीं करने से हमारे समाज को भारी स्वास्थ्य और आर्थिक नुकसान हो रहा है।
  • भारत में हानिकारक SO2 प्रदूषण के उच्च स्तर को बहुत जल्द टाला जा सकता है क्योंकि फ्लू -गैस डिसल्फराइज़ेशन सिस्टम चीन में उत्सर्जन के स्तर को कम करने में सफल साबित हुए हैं , जो 2005 में उच्चतम स्तर के लिये जिम्मेदार देश था।

सल्फर डाइऑक्साइड प्रदूषण

  • स्रोत:
    • वातावरण में SO2 का सबसे बड़ा स्रोत विद्युत संयंत्रों और अन्य औद्योगिक गतिविधियों में जीवाश्म ईंधन का दहन है।
    • SO2 उत्सर्जन के छोटे स्रोतों में अयस्कों से धातु निष्कर्षण  जैसी औद्योगिक प्रक्रियाएँ, प्राकृतिक स्रोत जैसे- ज्वालामुखी विस्फोट, इंजन, जहाज़ और अन्य वाहन तथा भारी उपकारणों में उच्च सल्फर ईंधन सामग्री का प्रयोग शामिल है।
  • प्रभाव:
    • SO2 स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को प्रभावित कर सकती है।
    • SO2 के अल्पकालिक जोखिम मानव श्वसन प्रणाली को नुकसान पहुंँचा सकते हैं और साँस लेने में कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं। विशेषकर बच्चे SO2 के इन प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
    • WHO के अनुसार, यह प्रति वर्ष विश्व स्तर पर 2 मिलियन लोगों की मौत SO2 के कारण होती है।
    • SO2 का उत्सर्जन हवा में SO2 की उच्च सांद्रता के कारण होता है, सामान्यत:  यह सल्फर के अन्य ऑक्साइड (SOx) का निर्माण करती है। (SOx) वातावरण में अन्य यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया कर छोटे कणों का निर्माण कर सकती है। ये पार्टिकुलेट मैटर (PM) प्रदूषण को बढ़ाने में सहायक हैं।
      • छोटे प्रदूषक कण फेफड़ों में प्रवेश कर स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
    • यह अम्लीय वर्षा का कारण भी बन सकता है जिससे व्यापक पर्यावरणीय क्षति होती है।
  • भारत के संदर्भ में:
    • भारत द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में ग्रीनपीस इंडिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (Centre for Research on Energy and Clean Air) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में वर्ष 2018 की तुलना में लगभग 6% की गिरावट (चार वर्षों में सबसे अधिक) दर्ज की गई है।
      • फिर भी भारत इस दौरान SO2 का सबसे बड़ा उत्सर्जक बना रहा।
    • वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) को अल्पकालिक अवधि (24 घंटे तक) के लिये व्यापक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक निर्धारित करने हेतु आठ प्रदूषकों (PM10, PM2.5, NO2, SO2, CO, O3, NH3 तथा Pb) के आधार पर विकसित किया गया है।

प्रिलिम्स

प्रश्न. ताम्र प्रगलन संयंत्रों को लेकर चिंता क्यों है?

  1. वे पर्यावरण में घातक मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड निर्मुक्त कर सकते हैं।
  2. कॉपर स्लैग पर्यावरण में कुछ भारी धातुओं के निक्षालन का कारण बन सकता है।
  3. वे प्रदूषक के रूप में सल्फर डाइऑक्साइड निर्मुक्त कर सकते हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • कई अलग-अलग प्रक्रियाएंँ हैं जिनका उपयोग तांँबे के उत्पादन के लिये किया जा सकता है। पारंपरिक प्रक्रियाओं में से एक रेवरबेरेटरी भट्टियों (या अधिक जटिल अयस्कों के लिये इलेक्ट्रिक भट्टियांँ) में गलाने पर आधारित है, जिससे मैट (कॉपर-आयरन सल्फाइड) का उत्पादन होता है। भट्ठी से मैट को कन्वर्टर्स पर चार्ज़ किया जाता है, जहांँ पिघला हुआ पदार्थ हवा की उपस्थिति में लोहे और सल्फर अशुद्धियों (कन्वर्टर स्लैग के रूप में) को हटाने तथा ब्लिस्टर कॉपर बनाने के लिये ऑक्सीकृत होता है।
  • ताम्र प्रगलन पर वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड की घातक मात्रा का निष्कासित नहीं होती है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • उत्पादित ताम्र प्रगलन में आर्सेनिक, लेड, कैडमियम, बेरियम, जिंक आदि सहित कई संभावित जहरीले तत्त्वों की महत्वपूर्ण सांद्रता हो सकती है। स्लैग इन संभावित जहरीले तत्त्वों को प्राकृतिक अपक्षय परिस्थितियों में पर्यावरण में निष्कासित करता है और मृदा, सतही जल एवं भूजल के प्रदूषण का कारण बन सकता है। अत: कथन 2 सही है।
  • चूँकि स्लैग को रासायनिक रूप से निष्क्रिय माना जाता है, इसे सीमेंट के साथ मिलाया जाता है और इसका उपयोग सड़कों और रेलरोड बेड के निर्माण के लिये किया जाता है। इसका उपयोग सैंडब्लास्टिंग के लिये भी किया जाता है।
  • इस प्रक्रिया से उत्सर्जित होने वाले प्रमुख वायु प्रदूषक सल्फर डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर हैं और ठोस अपशिष्ट का मुख्य भाग स्लैग छोड़ दिया जाता है। अत: कथन 3 सही है।

Q. भट्टी के तेल के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. यह तेल रिफाइनरियों का उत्पाद है।
  2. कुछ उद्योग इसका उपयोग विद्युत उत्पादन करने के लिये करते हैं।
  3. इसके उपयोग से वातावरण में सल्फर का उत्सर्जन होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • भट्टी के तेल/फर्नेस तेल (Furnace Oil) या ईंधन तेल कच्चे तेल के आसवन का एक गहरा चिपचिपा अवशिष्ट उत्पाद है। इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के दहन उपकरणों में ईंधन के रूप में किया जाता है। सल्फर के ऑक्साइड का उत्सर्जन ईंधन तेल की सल्फर सामग्री का प्रत्यक्ष परिणाम है। अत: कथन 1 और 3 सही हैं।
  • भट्टी के तेल का उपयोग:
    • विद्युत उत्पादन के लिये समुद्री इंजन और धीमी गति के इंजन;
    • चाय की पत्तियों को सुखाना;
    • विद्युत उत्पादन के लिये गैस टर्बाइन;
    • उर्वरक निर्माण के लिये फीड स्टॉक;
    • थर्मिक द्रव हीटर और हॉट एयर जनरेटर। अत: कथन 2 सही है।

मेन्स:

Q. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में जारी संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश (AQGs) के प्रमुख बिंदुओं का वर्णन कीजिये। ये वर्ष 2005 में इसके पिछले अद्यतन से किस प्रकार भिन्न हैं? संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में कौन से परिवर्तन आवश्यक हैं? (2021)

Q. सरकार द्वारा किसी परियोजना को मंजूरी देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन तेज़ी से किये जा रहे हैं। कोयला खदानों के नजदीक स्थित कोयले से चलने वाले तापीय संयंत्र के पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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