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जैव विविधता और पर्यावरण

वायु गुणवत्ता और कोविड-19 के बीच संबंध

  • 26 Jun 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये 

वायु गुणवत्ता सूचकांक, उजाला योजना, भारत स्टेज VI, राष्ट्रीय उत्सर्जन सूची (NEI), पार्टिकुलेट मैटर (PM)

मेन्स के लिये 

वायु गुणवत्ता और कोविड-19 के बीच पारस्परिक संबंध, पार्टिकुलेट मैटर का संक्षिप्त परिचय एवं इसके प्रभाव, वायु प्रदूषण को कम करने हेतु पहल

चर्चा में क्यों?

एक अखिल भारतीय अध्ययन में पहली बार वायु प्रदूषण और कोविड -19 के बीच पारस्परिक संबंध पाया गया है।

  • इस अध्ययन में यह पाया गया कि खराब वायु गुणवत्ता और पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 के उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में कोविड -19 संक्रमण और इससे संबंधित मौतों की संभावना अधिक है।

पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) 2.5 :

  • यह 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास का एक वायुमंडलीय कण होता है, जो कि मानव बाल के व्यास का लगभग 3% होता है।
    • यह इतना छोटा होता है कि इसे केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की मदद से ही देखा जा सकता है।
  • यह श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है और हमारे देखने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। यह एक अंतःस्रावी विघटनकर्त्ता है, जो इंसुलिन स्राव और इंसुलिन संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकता है, इस प्रकार मधुमेह में योगदान देता है।
  • ये कण ईंधन के जलने और वातावरण में होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप बनते हैं। जंगल की आग जैसी प्राकृतिक आपदाएँ भी हवा में PM 2.5 में योगदान करती हैं। 
  • ये कण भी स्मॉग उत्पन्न होने का प्राथमिक कारण हैं।

प्रमुख बिंदु 

परिचय :

घटक:

  • अध्ययन में तीन प्रकार के डेटा सेट शामिल हैं : 
    • PM2.5 की राष्ट्रीय उत्सर्जन सूची (NEI) 2019, वैज्ञानिकों द्वारा विकसित।
    • 5 नवंबर, 2020 तक कोविड-19 पॉज़िटिव मामलों की संख्या और संबंधित मौतों की संख्या।
    • वायु गुणवत्ता सूचकांक डेटा (इन-सीटू अवलोकन)।

महत्त्वपूर्ण अवलोकन:

  • 'मानवजनित उत्सर्जन स्रोतों और वायु गुणवत्ता डेटा के आधार पर भारत में सूक्ष्म कण पदार्थ (पीएम2.5) क्षेत्रों और कोविड-19 के बीच एक लिंक स्थापित करना' शीर्षक के अध्ययन में बताया गया है कि अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोग कोरोनावायरस संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
  • परिवहन और औद्योगिक गतिविधियों में भारी मात्रा में जीवाश्म ईंधन जैसे-पेट्रोल, डील और कोयले का उपयोग करने वाले क्षेत्रों में कोविड ​​-19 मामलों की अधिक संख्या देखने को मिली।
    • उदाहरणस्वरूप महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और गुजरात जैसे राज्यों में कोविड-19 मामलों की अधिक संख्या देखने को मिली। इन राज्यों में लोग लंबे समय तक 2.5 PM की उच्च सांद्रता के संपर्क में अपेक्षाकृत अधिक रहे हैं, खासकर शहरों में जहाँ  जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग होता है।
    • मुंबई और पुणे उन हॉटस्पॉट्स में से हैं जहाँ परिवहन और औद्योगिक क्षेत्रों से उच्च वायु प्रदूषण कोविड -19 मामलों और मौतों की अधिक संख्या से संबंधित है।
  • इस तथ्य के भी प्रमाण हैं कि नोवेल कोरोनावायरस PM 2.5 जैसे सूक्ष्म कणों से चिपक जाता है, जिससे वे कोविड-19 के हवाई संचरण को और अधिक प्रभावी बनाकर एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने की अनुमति देते हैं।

प्रभाव:

  • जब मानव-प्रेरित उत्सर्जन को कोविड-19 वायरस के दोहरे प्रभाव के साथ जोड़ा जाता है तो फेफड़ों को नुकसान बहुत तेज़ी से होगा और स्वास्थ्य की स्थिति खराब होगी।
  • अध्ययन के परिणाम वर्तमान परिस्थितियों के साथ-साथ भविष्य की संभावनाओं के लिये उच्च प्रदूषण स्तर वाले क्षेत्रों में अधिक निवारक कदम और संसाधन प्रदान करके वायरस के प्रसार को कम करने में मदद करेंगे।

समाधान:

  • स्वच्छ प्रौद्योगिकी को अपनाने, भारत स्टेज (BS) VI जैसे बेहतर परिवहन उत्सर्जन मानदंडों को अपनाने और कण उत्सर्जन को कम करने के लिये अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल पावर प्लांट जैसी बेहतर कोयला प्रौद्योगिकी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

वायु प्रदूषण को कम करने के लिये अन्य पहलें:

वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI)

  • AQI दैनिक वायु गुणवत्ता की रिपोर्टिंग के लिये एक सूचकांक है।
  • यह उन स्वास्थ्य प्रभावों पर केंद्रित है जिन्हें कोई भी व्यक्ति प्रदूषित वायु में साँस लेने के कुछ घंटों या दिनों के भीतर अनुभव कर सकता है।
  • AQI की गणना आठ प्रमुख वायु प्रदूषकों के लिये की जाती है:
    • भू-स्तरीय ओज़ोन,
    • PM10,
    • PM2.5,
    • कार्बन मोनोऑक्साइड,
    • सल्फर डाइऑक्साइड,
    • नाइट्रोजन डाइऑक्साइड,
    • अमोनिया,
    • लेड (शीशा),
  • भू-स्तरीय ओज़ोन और एयरबोर्न पार्टिकल्स दो ऐसे प्रदूषक हैं जो भारत में मानव स्वास्थ्य के लिये सबसे बड़ा खतरा हैं।

स्रोत: द हिंदू

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