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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

मित्र, मित्रता के लिये

सामान का क्या करना है? सिलेंडर और बर्तन राकेश को दे-देना, चेयर टेबल और बैड हिमांशु को दे- देना उसका भाई आ रहा है तैयारी करने के लिये राकेश ने रवि के प्रश्न का उत्तर दिया।

राकेश 6 वर्ष पहले अपनी इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद मुखर्जी नगर आया था। दो वर्ष पूर्व एक दुर्घटना में उसके पिता जी का निधन हो गया था जो कि एक अध्यापक थे और अनुकंपा के आधार पर उनके स्थान पर मिलने वाली नौकरी राकेश की सहमति से उसके भाई को मिली थी जो पिछले दो वर्षों से राकेश का खर्च वहन कर रहा था और अब राकेश अपने गाँव वापस जा रहा था जो कि बनारस के पास है।

यार मत जा, दो ही महीने तो है IAS प्री के लिये, कम-से-कम प्री तो दे के जा रवि ने राकेश को रोकने के लिये आखिरी कोशिश की। 

रवि और राकेश दोनों ने एक ही संस्थान से कोचिंग की थी दोनों का वैकल्पिक विषय भी एक ही था, कोचिंग के दौरान ही दोनों में गहरी मित्रता हो गई और आज राकेश जब दिल्ली छोड़कर जा रहा था तो रवि को बहुत खल रहा था। वो राकेश ही तो था जो उसे समझता था, उसका मनोबल हमेशा ऊँचा करता था, औसत शैक्षणिक पृष्ठभूमि वाला रवि चार वर्ष में कोई प्रारंभिक परीक्षा भी नहीं पास कर पाया था तब हताश होकर दो वर्ष पूर्व उसने घर वापस जाने का सोच लिया था। 

तब राकेश ने ही उससे कहा था, घर जाना है तो जा पर बताओ क्या तुमने एक बार भी ईमानदार कोशिश की है? अगर हाँ, तो चले जाओ। अगर नहीं तो एक ईमानदार कोशिश बनती है और तुमने ऐसे ही कैसे मान लिया तुमसे नहीं होगा। तू चार साल के सफर या वैकेशन पर आया था जो छुट्टियाँ खत्म हो गई और घर वापस चलते हैं? भाई तुम वहाँ तैयारी करने नहीं आए थे सेलेक्शन के लिये आए थे भाई चार सौ में से एक का चयन होता था तुझे नहीं पता था कि जब तुम उदव से अच्छा करोगे तब तुम्हारा चयन होगा, बिना शत प्रतिशत दिये कैसे चयन होगा भाई।

तब राकेश ने रवि को रोक लिया था, आज जब रवि दो राज्य सिविल सेवा परीक्षा की मुख्य परीक्षा में सफल होकर साक्षात्कार की तैयारी में संलग्न है तो उसका वही मित्र उसे छोड़ कर जा रहा है जो उसे इस पड़ाव तक लेकर आया है और वह अपने मित्र के लिये कुछ नहीं कर पा रहा है। 

राकेश के बड़े भाई ने उसे खर्च देने से मना कर दिया था रवि भी आर्थिक रूप से इतना सक्षम नहीं था कि वह उसका खर्च वहन कर सके, पर ये कैसे हो गया? राकेश के भइया तो उसके हीरो थे उसके हर किस्सों में उसके भइया का जिक्र होता था। स्कूल में दोनों में बस एक क्लास का अंतर था। बकौल राकेश की लड़ाई स्कूल के एक बदमाश लड़के से हो गई थी जिसमें राकेश पिट गया था राकेश का भाई पागल हो गया था, उन्होंने उस लड़के को उसके गाँव तक दौड़ा कर मारा था। आज ऐसा क्या हो गया कि उस पर अपनी जान न्योछावर करने वाले भाई ने उसे पैसे देने से मना कर दिया। शायद किसी ने सही ही कहा है समय और दूरियों के साथ रिश्तों के मायने और प्राथमिकताएँ दोनों बदलती हैं।

खैर राकेश अपने गाँव चला गया, डेढ़ महीने बाद राज्य सिविल सेवा परिक्षा के साक्षात्कार का परिणाम आए, रवि का अंतिम चयन नहीं हुआ सभी मित्रों की काॅल आई रवि को सांत्वना देने के लिये पर आज वह राकेश से बात करना चाह रहा था। उसने क्यों नहीं फोन किया? उसे पता तो चल ही गया होगा। 

रात के 11 बजे तक जब राकेश का फोन नहीं आया तो रवि से रहा नहीं गया और उसने राकेश को फोन मिला दिया। 

रवि: वही हुआ यार, मेरा बहुत अच्छा साक्षात्कार हुआ था, MP का बहुत खराब गया है वहाँ से तो कोई उम्मीद ही नहीं है। 

राकेश: हाँ मैने देखा।

रवि: किस्मत ही खराब है, तुमने कहा था ना शत प्रतिशत दो, मैने दिया फिर भी नहीं हुआ।

राकेश: हो सकता है, पर आज खराब है तो कल अच्छी भी हो सकती है पर तब तक तुम्हारा होश जरूरी है, पृथ्वी घूमती है इसलिये ही जहाँ अंधेरा है वहाँ रोशनी आती है। 

रवि: छोड़ो यार, यह बताओ गाँव में सब कैसा है? क्या कर रहे हो वहाँ पर कोई पुराना दोस्त है गाँव में?

राकेश: कुछ नहीं दिन भर ताने सुनता हूँ और दोस्त कौन होगा? इतने साल घर से बाहर रहने के बाद जब अपने भाई आपने न रहे तो दोस्त कौन होगा।

रवि: प्री देने तो आ रहे हो ना?

राकेश: क्या देने आऊँगा यार तैयारी ही नहीं तो क्या आऊँगा।

सिविल सेवा प्री परीक्षा के एक दिन पहले राकेश रवि के कमरे पर आ धमका रवि को समझ ही नहीं आ रहा था की वह मित्र के आने की खुशी मनाए या उससे नाराज़गी जताए, यार पागल हो गया था गाँव में जैसे वहाँ कोई अपना है ही नहीं इसलिये परीक्षा के बहाने कुछ दिनों के लिये यहाँ पर आ गया।

रवि का पेपर अच्छा गया था और कुछ प्रतिष्ठित कोचिंग केंद्रों से उत्तर मिलने के बाद वह अपनी सफलता को लेकर आश्वात था। शाम को आने के बाद जब राकेश ने अगले दिन घर जाने की बात कही तो रवि उससे कुछ और दिन रुकने को आग्रह करने लगा। 

राकेश: जाना तो है ही कितने दिन और रुकूँगा और रुकने की कोई वजह भी तो होनी चाहिये, प्री से भी कोई उम्मीद नहीं है। 

रवि: अरे हाँ, RRBDO का फॉर्म निकला है। छ: महीने में ही फाइनल रिजल्ट दे देते हैं। IBPS वाले छ: महीने तो हम लोग मैनेज कर ही लेंगे, मैं अपने पार्टनर से बात कर लेता हूँ।

राकेश: क्या बात कर रहा है। कुछ सामान नहीं लाया हूँ और घर पर भी किसी को कुछ नहीं बताया है। 

रवि: तो बोल दो यार और समान की क्या जरूरत है? जो मेरा है वो तुम्हारा है। सब मैनेज हो जायेगा तुम्हारी मैथ अच्छी है हिन्दी तो तुमने पढ़ी ही है। एक और आखिरी कोशिश कर लो यार।

[अरविंद सिंह]

(लेखक समसामयिक, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों एवं आर्थिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन के साथ आर्थिक इकाई के रूप में मानव व्यवहार के अध्ययन में गहरी रुचि रखते हैं।)


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