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आर्थिक राहत पैकेज के मायने

“का हो बब्बू इ 20 लाख करोड़ रुपयवा में से हम्ह्नो के कुछ लाभ मिली”? 

चाचा जी के इस सवाल को पहले तो मैंने मजाक में टालने की कोशिश की पर उनके बहुत ज़ोर देने पर मैंने बोल दिया रुकिये मै कुछ दिनों में पता कर के बताता हूँ। हाल ही में COVID-19 महामारी से निपटने हेतु प्रधानमंत्री द्वारा की गई 20 लाख करोड़ रूपये की घोषणा के बाद से ही न केवल मेरे चाचा जी, बल्कि सरकार ने देश के सभी नागरिकों की अपेक्षाओं को बढ़ा दिया है। उन्हें लगता है की यह आर्थिक पैकेज उनके जीवन में अप्रत्याशित सकारात्मक प्रभाव डालेगा। 

अब समझने वाली बात यह है कि आर्थिक राहत पैकेज होता क्या है और इसकी आवश्यकता क्यों पड़ती है? अगर आसान शब्दों में इन सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करें तो आर्थिक राहत पैकेज का उद्देश्य किसी आर्थिक संकट से अर्थव्यवस्था को राहत प्रदान करना होता है। यह संकग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिये ठीक उसी तरह कार्य करता है जैसे किसी बीमार व्यक्ति के लिये कोई दवा काम करती है। यदि दवा शत प्रतिशत कारगर रही तो बीमारी को जड़ से समाप्त भी कर सकती है, उसी प्रकार कोई भी वर्तमान आर्थिक राहत पैकेज भी COVID-19 महामारी के कारण बीमार हुई अर्थव्यवस्था को ठीक करने का एक प्रयास भर है। परंतु हर एक गंभीर बीमारी के कारगर इलाज के बाद भी अपने दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ जाती है ठीक उसी प्रकार यह कहना तार्किक नहीं होगा की इस आर्थिक पैकेज के बाद सब सामान्य हो जाएगा।

इससे पहले भी कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं जैसे कि अमेरिका ने अपनी जीडीपी (GDP) का 10 प्रतिशत एवं जापान ने अपनी GDP का 20 प्रतिशत आर्थिक राहत पैकेज के रूप में प्रदान किया है। कहने का आशय यह है कि इस संकट से जूझ रही सभी अर्थव्यवस्थाएँ इस बीमारी से निपटने के लिये अपनो का इलाज कर रही हैं। यह किसी स्वास्थ्य व्यक्ति को दिया जाने वाला पौष्टिक आहार नहीं है जो उसकी क्षमताओं को बढ़ाता है, बल्कि यह बीमारी से लड़ने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता के संवर्द्धन हेतु दिया जाने वाला आहार हैI 

दूसरी सबसे बड़ी बात इस आर्थिक राहत पैकेज के साथ प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर बनने की बात कही साथ ही देशज वस्तुओं के इस्तेमाल की बात कहीI यहाँ पर आत्मनिर्भरता का आशय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में आत्मनिर्भरता की बात की गई है जिससे हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये आयात पर निर्भर न रहें। जाहिर सी बात है जब पूरा विश्व इस आर्थिक संकट से जूझ रहा है तो विश्व के तमाम देश वैश्वीकरण के आदर्श नियमों के पालन के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के उद्देश्य को प्राथमिकता दे रहे हैं जिसके लिये वे संरक्षणवाद का सहारा ले रहे हैं और ऐसी संभावना है कि आने वाले कुछ वर्षो तक वैश्विक व्यापार में व्यापक कमी आएगी। इन परिस्थितियों में अगर भारत अपने व्यापार घाटे को कम करने के लिये अपने आयात को हतोत्साहित करता है तो उसके लिये यह आवश्यक हो जाता है कि वह उन वस्तुओं का उत्पादन स्वयं करे जिनकी आपूर्ति के लिये वह विदेशों से आयात पर निर्भर है। 

आर्थिक राहत पैकेज की सहायता से जिन समस्याओं का समाधान करने की कोशिश की गई है हम उन्हें समझने का प्रयास करते हैं। भारत की लगभग एक चौथाई जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है वहीं लगभग सात करोड़ लोग एक्स्ट्रीम गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। ऐसे वर्तमान आर्थिक संकट में यह वर्ग भुखमरी जैसी समस्या का शिकार हो सकता है। इस राहत पैकेज में इसी बिंदु को ध्यान में रखते हुए इस वर्ग के समक्ष उत्पन्न होने वाली चुनौतियों के समाधान हेतु विशेष उपाय किये गए हैं। 

MSMEs सेक्टर जो कि कृषि के बाद सर्वाधिक रोजगार प्रदान करने वाला क्षेत्र है और लगभग 12 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करता है। सेन्ट्रल स्टेटिस्टिक्स ऑफिस (CSO) के अनुसार, MSMEs सेक्टर का वर्ष 2016-2017 में भारत के कुल GVA (Gross value Added) में योगदान लगभग 31.8 प्रतिशत था, जबकि वर्ष 2018-19 में कुल निर्यात में MSMEs सेक्टर की हिस्सेदारी लगभग 48 प्रतिशत थी। उपरोक्त आँकड़ों से हम MSMEs क्षेत्र के महत्त्व को समझ सकते हैं। एक तरफ जहाँ बड़ी आर्थिक इकाइयाँ अपने कुल व्यय का श्रमबल पर मात्र 10 प्रतिशत व्यय करती हैं वहीं MSMEs लगभग 35 प्रतिशत करती हैं जो कि इस बात का प्रमाण है कि MSMEs में लाभ का वितरण अपेक्षाकृत अधिक न्यायोचित है।

परंतु वर्तमान आर्थिक संकट ने इन क्षेत्रों के अस्तित्व के समक्ष चुनौती उत्पन्न कर दी है देश की लगभग 90 प्रतिशत MSMEs, COVID-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए घोषित आर्थिक पैकेज में केवल इस सेक्टर के लिये लगभग 5 लाख करोड़ रूपये की घोषणा की गई है जो कुल राहत पैकेज का लगभग एक चौथाई है। 

अभी हम जिस संकट से जूझ रहें है उसकी समयावधि का सटीक कोई आंकलन नहीं है ऐसे में यह समस्या कितनी और गंभीर हो सकती है उसका कोई अंदाजा नहीं है। हमें अपनी अपेक्षाओं को असीमित करने के बजाए इस समस्या से निपटने हेतु इसके सभी आयामों को समझते हुए एक दीर्घकालिक रणनीति बनाने और उसे जमीन पर भी उतरने की आवश्यकता है। यह जितना किसी अर्थव्यवस्था के लिये आवश्यक है उतना ही व्यक्तिगत स्तर पर हमारे लिये भी आवश्यक है। 

इस महामारी के कारण कार्य पद्धति में भी व्यापक बदलाव आने की संभावना है जो किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहने वाली है। अगर आप छात्र हैं तो नए माध्यमों से आपको शिक्षा ग्रहण करने के लिये तैयार रहना होगा अगर आप किसी रोज़गार से जुड़े हैं तो बदले हुए कार्य परिदृश्य के अनुरूप आपको अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर निकलते हुए स्वयं को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। कहने का आशय यह है कि आपको इतना सतर्क और तैयार रहना है कि अपने समक्ष उत्पन्न होने वाले किसी भी अवसर को पहचान सकें और किसी बाज़ की तरह उस पर झपट कर उसका लाभ ले सकें।

[अरविंद सिंह]

(लेखक समसामयिक, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों एवं आर्थिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन के साथ आर्थिक इकाई के रूप में मानव व्यवहार के अध्ययन में गहरी रुचि रखते हैं।)

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