युद्ध: राज्य और आवाम
- 01 Jul, 2025

- युद्ध के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
- मनोवैज्ञानिक आघात
- युद्धोत्तर अर्थव्यवस्था और सैन्यीकरण
- युद्धजनित विस्थापन और शरणार्थी संकट
- महिलाओं और बच्चों पर प्रभाव
- पर्यावरणीय विनाश
- सांस्कृतिक विरासत का विनाश
युद्ध के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
युद्ध एक ऐसी विनाशकारी शक्ति है, जो मानव इतिहास में हमेशा उपस्थित रही है। यह न केवल अत्यधिक दुख और विनाश का कारण बनती है बल्कि संसाधनों पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। युद्ध अक्सर आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक कारणों से उत्पन्न होते हैं, जैसे कि संसाधनों तथा बाज़ारों पर नियंत्रण प्राप्त करने की इच्छा। राजनीतिक कारक भी युद्ध का कारण बन सकते हैं, जब एक देश दूसरे पर सत्ता या प्रभाव प्राप्त करना चाहता है। सामाजिक तनाव भी युद्ध का कारण बन सकते हैं, जब एक समूह दूसरे पर प्रभुत्व चाहता है। ये सभी कारक सम्मिलित रूप में भी हो सकते हैं। युद्ध का एक प्रमुख कारण वैचारिक मतभेद है। वैचारिक मतभेद संघर्ष का कारण तब बनते हैं जब एक समूह दूसरे पर अपने विश्वासों को थोपना चाहता है।
मनोवैज्ञानिक आघात
युद्ध के प्रभाव दूरगामी और विनाशकारी होते हैं। युद्ध संपत्ति और बुनियादी ढाँचे के भारी विनाश एवं जान-माल की हानि का कारण बनता है। यह उन लोगों के लिये मनोवैज्ञानिक आघात का कारण भी बनता है, जिन्होंने इसका प्रत्यक्ष अनुभव किया है। युद्ध के दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव भी हो सकते हैं। युद्ध लोगों के विस्थापन का कारण भी बन सकता है। लाखों लोगों को इसके कारण अपने घरों को छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ा है। युद्ध के राजनीतिक प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे नए राष्ट्र का बनना या मौजूदा राष्ट्रों को कमज़ोर करना। यह युद्ध कई देशों में सत्तावादी शासन के उदय का कारण भी बन सकता है। युद्ध सैन्यीकरण में भी वृद्धि कर सकता है, क्योंकि राष्ट्र भविष्य के संघर्षों से खुद को बचाने की कोशिश करते हैं। भवन, घर और बुनियादी ढाँचे को मिनटों में नष्ट किया जा सकता है। यह विनाश किसी समुदाय पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि यह लोगों को आश्रय या संसाधन विहीन बनाता है।
युद्ध से पर्यावरणीय क्षति हो सकती है और इससे क्षेत्र में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है। इससे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिये धन में कमी आ सकती है। इसके अतिरिक्त, युद्ध व्यापार और निवेश को कम कर सकता है, क्योंकि निवेशक युद्धरत देश में निवेश करने में संकोच कर सकते हैं। इससे बेरोज़गारी में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि निवेश की कमी के कारण व्यवसाय चल नहीं सकते हैं। युद्ध से करों में वृद्धि हो सकती है। युद्ध की लागत का भुगतान करने के लिये सरकार को कर बढ़ाने की आवश्यकता हो सकती है। इससे गरीबी बढ़ सकती है, क्योंकि लोग बढ़े हुए करों के कारण अपनी ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। युद्ध में महिलाएँ और बच्चे विशेष रूप से अत्याचार सहते हैं। पिछले दशक में सशस्त्र संघर्षों में मारे गए लोगों में करीब 20 लाख बच्चे थे।
युद्ध के संभावित विनाश के कुछ तथ्यों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि यूरोप में तीस साल के युद्ध के दौरान, जर्मन राज्यों की आबादी लगभग 30% कम हो गई थी। अकेले स्वीडिश सेनाओं ने जर्मनी में 2,000 महल, 18,000 गाँव और 1,500 कस्बों को नष्ट कर दिया। अमेरिकी गृहयुद्ध में 1860 की जनगणना के आँकड़ों के आधार पर, 13 से 50 वर्ष की आयु के सभी श्वेत अमेरिकी पुरुषों में से 8% अमेरिकी मारे गए। प्रथम विश्व युद्ध में जुटे 6 करोड़ यूरोपीय सैनिकों में से 80 लाख मारे गए, 70 लाख स्थायी रूप से विकलांग हो गए और 1.5 करोड़ गंभीर रूप से घायल हो गए। अगर द्वितीय विश्व युद्ध की बात करें तो इसमें कुल हताहतों का अनुमान अलग-अलग लगाया गया है। लेकिन आम सहमति यह है कि इस युद्ध में लगभग 6 करोड़ लोग मारे गए, जिनमें लगभग दो करोड़ सैनिक और चार करोड़ नागरिक शामिल थे। सोवियत संघ ने युद्ध के दौरान लगभग 2 करोड़ 70 लाख लोगों को खो दिया, जो द्वितीय विश्व युद्ध में हताहत हुए लोगों की संख्या का लगभग आधा है। यहाँ 872-दिवसीय घेराबंदी के दौरान 12 लाख नागरिकों की मौत हो गई थी। सीरिया में हालिया विद्रोह के रूप में शुरू हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप 2011 से सीरिया में 12,000 बच्चों की मौत हो चुकी है। वर्ष 2023 में, फिलिस्तीन में दो महीनों में 12,000 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है, जो हाल के इतिहास में सबसे अधिक और सबसे तेज़ बाल मृत्यु दर है।
युद्धोत्तर अर्थव्यवस्था और सैन्यीकरण
युद्ध के दौरान और उसके बाद अर्थव्यवस्था पर कई विनाशकारी प्रभाव पड़ सकते हैं। साल 2012 में युद्ध और हिंसा का आर्थिक प्रभाव सकल विश्व उत्पाद का ग्यारह प्रतिशत या 9.46 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान लगाया गया था। हालाँकि कुछ मामलों में युद्ध ने देश की अर्थव्यवस्था को प्रेरित किया है। द्वितीय विश्व युद्ध को अक्सर अमेरिका को महामंदी से बाहर निकालने का श्रेय दिया जाता है। मानवों की लाश पर होने वाले ऐसे व्यापार का समर्थन नहीं किया जा सकता। वास्तव में संघर्ष का अर्थव्यवस्था पर बहुत कम सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। युद्ध के कारण होने वाले बुनियादी ढाँचे का विनाश सामाजिक अंतर-संबंधित संरचना, बुनियादी ढाँचा सेवाओं, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में एक भयावह पतन उत्पन्न हो सकता है। स्कूलों और शैक्षिक बुनियादी ढाँचे के विनाश से युद्ध प्रभावित कई देशों में शिक्षा में गिरावट आई है। यदि कुछ बुनियादी ढाँचे के तत्त्व काफी क्षतिग्रस्त या नष्ट हो जाते हैं तो यह अर्थव्यवस्था जैसे अन्य प्रणालियों के लिये गंभीर व्यवधान उत्पन्न कर सकती है।
अर्थव्यवस्था की श्रम शक्ति भी युद्ध के प्रभावों के साथ बदलती है। श्रम शक्ति कई तरह से प्रभावित होती है, सबसे ज़्यादा जीवन की भारी क्षति, जनसंख्या में बदलाव, शरणार्थियों की आवाजाही और विस्थापन के कारण श्रम शक्ति का आकार कम हो जाता है। जब पुरुष युद्ध में जाते हैं तो महिलाएँ उनके द्वारा छोड़ी गई नौकरियों को सँभाल लेती हैं। इससे कुछ देशों में आर्थिक बदलाव होता है, क्योंकि युद्ध के बाद ये महिलाएँ आमतौर पर अपनी नौकरी को बनाए रखना चाहती हैं। ईरान-इराक युद्ध के दौरान श्रम शक्ति की कमी ने महिलाओं को रोज़गार के नए क्षेत्रों में प्रवेश करने में सक्षम बनाया। इससे वे पहले से बंद क्षेत्रों में काम करने लगीं और बड़ी संख्या में ज़रूरी नौकरियों में शामिल हो गईं । इसके परिणामस्वरूप उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता और सम्मान मिला।
सैन्य व्यय जितना अधिक होगा, उतना ही अन्य पहलुओं पर खर्च करने के लिये कम धन बचता है, चाहें वह सामुदायिक स्तर हो या व्यक्तिगत। बुनियादी ढाँचे का निर्माण और रखरखाव, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि पर खर्च कम होता है। कई बार तो इतना कम हो जाता है कि लोगों को खाना तक नहीं मिलता। आइजनहावर के शब्दों में: "हर बंदूक जो बनाई जाती है, हर युद्धपोत जो लॉन्च किया जाता है, हर रॉकेट जो दागा जाता है, वह अंतिम रूप से दर्शाता है। यह उन लोगों से चोरी है जो भूखे हैं और उन्हें खाना नहीं मिलता है, जो ठंड से पीड़ित हैं और उन्हें कपड़े नहीं मिलते। हथियारों से लैस यह दुनिया सिर्फ पैसे ही खर्च नहीं कर पा रही है"।
यह भी पाया गया है कि युद्ध संयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों (एमडीजी) के लिये एक बड़ी बाधा है, विशेष रूप से सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा और शिक्षा में लैंगिक समानता के लिये। सहस्राब्दि विकास लक्ष्य दुनिया के समयबद्ध और मात्रात्मक लक्ष्य हैं, जो कई आयामों में अत्यधिक गरीबी को कम करने की बात कहते हैं। युद्ध-क्षेत्रों में बच्चे अपराधी के रूप में कार्य कर सकते हैं, बाल सैनिक बन सकते हैं। अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग तीन लाख बाल सैनिक हैं और उनमें से 40 प्रतिशत लड़कियाँ हैं। जिससे सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों के समय पर पूरा होने की आशा करना व्यर्थ हो जाता है।
युद्धजनित विस्थापन और शरणार्थी संकट
विस्थापन या जबरन पलायन सबसे ज़्यादा युद्ध के समय होता है और इससे समुदाय तथा व्यक्ति दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। जब युद्ध छिड़ जाता है तो कई लोग अपनी जान और अपने परिवार को खोने के डर से अपने घरों से भाग जाते हैं एवं बिखराव का सामना करते हैं। जो लोग आंतरिक रूप से विस्थापित होते हैं, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है । उन्हें एक शरणार्थियों की तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त अधिकार और सुरक्षा नहीं मिलती, जिससे उनकी स्थिति और भी जटिल हो जाती है । आंतरिक विस्थापन अक्सर जातीय पृष्ठभूमि, नस्ल या धार्मिक विचारों के आधार पर सांप्रदायिक घृणा से प्रेरित होते हैं। जबकि बाहरी विस्थापन करने वाले वे व्यक्ति होते हैं जिन्हें अपने देश की सीमाओं से बाहर निकालकर दूसरे देश में जाने के लिये मजबूर किया जाता है। आँकड़े बताते हैं कि 2015 में दुनिया भर में 53 प्रतिशत शरणार्थी सोमालिया, अफगानिस्तान और सीरिया से आए थे। यूएनएचआरसी की ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट में दुनिया भर में लगभग साढ़े छह करोड़ लोगों को उनके घर से जबरन निकाला गया है। युद्ध, कठिनाइयों और दर्दनाक घटनाओं के संपर्क में आने के कारण शरणार्थियों को पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर या पीटीएसडी की समस्या का भी सामना करना होता है। शरणार्थियों के समग्र मनोसामाजिक कल्याण से संबंधित चुनौतियाँ जटिल और व्यक्तिगत रूप से सूक्ष्म होती हैं। विशेष रूप से प्रभावित होने वाले समूह और जिनकी ज़रूरतें अक्सर पूरी नहीं होती हैं, वे हैं महिलाएँ, वृद्ध लोग एवं अकेले रहने वाले नाबालिग। इस समूह की चुनौतियाँ अति विशिष्ट किस्म की होती हैं जिनको समझने के लिये अतिरिक्त संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है।
महिलाओं और बच्चों पर प्रभाव
युद्ध, महिलाओं पर विशेष नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर महिलाओं को लिंग-विशिष्ट कठिनाइयाँ होती हैं, जिन्हें दुनिया भर में मुख्यधारा के समुदायों द्वारा पहचाना तक नहीं जाता है। युद्ध महिलाओं को अलग तरह से प्रभावित करता है,क्योंकि प्रत्यक्ष कारणों के विपरीत अप्रत्यक्ष कारणों से उनकी मृत्यु होने की अधिक संभावना होती है। युद्ध के दौरान प्रत्यक्ष कारणों से मरने की अधिक संभावना होती है लेकिन महिला की मृत्यु युद्ध से जुड़े अप्रत्यक्ष कारणों से होती है। सैन्यीकृत संघर्षों के अप्रत्यक्ष प्रभाव भोजन, स्वच्छता, स्वास्थ्य सेवाओं और स्वच्छ जल तक पहुँच को प्रभावित करते हैं। महिलाएँ स्वास्थ्य के साथ-साथ समग्र कल्याण, अन्य बुनियादी ढाँचे के नुकसान और व्यापक आर्थिक नुकसान के साथ-साथ संघर्ष के दौरान तथा उसके बाद विस्थापन से अधिक कष्ट झेलती हैं। युद्ध में महिलाएँ अक्सर अपने पतियों से अलग हो जाती हैं या युद्ध की कीमत पर उन्हें खो देती हैं। इस वजह से महिलाओं पर एक आर्थिक लागत प्रभाव पड़ता है, जिससे कई महिलाओं को अपने घर की पूरी आर्थिक ज़िम्मेदारी उठानी पड़ती है। युद्ध का महिलाओं पर कई तरह से असर पड़ता है - भावनात्मक, सामाजिक और शारीरिक रूप से। संघर्ष के दौरान पुरुषों के सेना में भर्ती होने के कारण परिवार में बिखराव हो सकता है। महिलाओं को ऐसी भूमिकाएँ निभाने के लिये मजबूर किया जा सकता है, जिसकी वे अभ्यस्त नहीं हैं – जैसे कार्यबल में प्रवेश करना, अपने परिवार का भरण-पोषण करना और अन्य पारंपरिक पुरुष भूमिकाएँ निभाना। पराजित देश की महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार का दंश शारीरिक एवं भावनात्मक दोनों तरह के प्रभाव छोड़ता है। दुर्भाग्य से बलात्कार पीड़ितों की संख्या पर सटीक डेटा का अभाव रहा है।
पर्यावरणीय विनाश
युद्ध दो मुख्य तरीकों से पर्यावरण क्षरण में योगदान देता है। पहला है, देशी जीवों को मारने का प्रत्यक्ष प्रभाव। दूसरा है, प्रजातियों को जीवित रहने के लिये आवश्यक संसाधनों या यहाँ तक कि उनके पूरे आवास से वंचित करने का अप्रत्यक्ष प्रभाव। समूचा पर्यावरण सूक्ष्म संतुलन पर आधारित हो जाता है। पर्यावरण में खाद्य शृंखला है। अगर किसी कारण से किसी विशेष जगह पर युद्ध के कारण पर्यावरणीय असंतुलन हो जाए तो उसके भयावह दुष्परिणामों की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
सांस्कृतिक विरासत का विनाश
युद्ध के दौरान सांस्कृतिक संपत्तियों को नष्ट करने, ज़ब्त करने व लूटने की घटनाएँ सामने आती हैं। सांस्कृतिक विरासत में पुरातात्त्विक स्थल, उत्खनन स्थल, अभिलेखागार, पुस्तकालय, संग्रहालय और स्मारक शामिल होते हैं, जो अक्सर युद्ध के दौरान निशाने पर आते हैं और लूट लिये जाते हैं या नष्ट कर दिये जाते हैं। उदाहरण के लिये, द्वितीय विश्व युद्ध के समय नाजी जर्मनी ने यूरोप के बड़े हिस्से में कला वस्तुओं को भी चुराया था। अनुमान है कि युद्धों के कारण सभी मानव निर्मित सांस्कृतिक संपत्तियों का लगभग तीन चौथाई हिस्सा और मानव रचनात्मकता के साक्ष्य नष्ट हो गए हैं। सांस्कृतिक वस्तुओं का विनाश भी मनोवैज्ञानिक युद्ध का हिस्सा है, क्योंकि हमले का लक्ष्य प्रतिद्वंद्वी की पहचान को समाप्त करना है। यही कारण है कि प्रतीकात्मक सांस्कृतिक सामान मुख्य लक्ष्य बन जाते हैं। युद्ध के कारण कलाकारों का भी विस्थापन होता है। युद्ध के प्रभाव लंबे समय में देश की रचनात्मक क्षमता के लिये विशेष रूप से हानिकारक होते हैं। युद्ध का कलाकारों के व्यक्तिगत जीवन-चक्र उत्पादन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पर्यावरण और सांस्कृतिक हनन या कला तथ्यों के नष्ट होने की क्षति अपूरणीय है।
युद्ध केवल शक्ति प्रदर्शन नहीं है बल्कि इसके गहरे और विनाशकारी परिणाम होते हैं। महिलाएँ, बच्चे और समाज के हाशिये पर रहने वाले लोग युद्ध के सबसे बड़े पीड़ित होते हैं तथा अक्सर उनके जीवन पर इसका स्थाई प्रभाव पड़ता है।