अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार और भारतीय साहित्य: अब तक की यात्रा
- 16 Jun, 2025

अंग्रेज़ी भाषा के संसार में बुकर पुरस्कार को सर्वाधिक प्रतिष्ठित साहित्य पुरस्कार माना जाता है। पिछले 50 से अधिक वर्षों से यह पुरस्कार दिया जा रहा है। इसमें अंग्रेज़ी में लिखे गए उत्कृष्ट कथा साहित्य को मान्यता दी जाती है और पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। इससे पुस्तक को विशेष संख्या में पाठक और प्रशंसक दोनों मिलते हैं। बुकर पुरस्कार हर साल अंग्रेज़ी में लिखे गए सर्वश्रेष्ठ उपन्यास को दिया जाता है। विजेता को अंतिम तौर पर चुने गए छह लेखकों में से चुना जाता है। लेखक को चुनने की प्रक्रिया बहुत जटिल और कठिन मानकों पर आधारित होती है। इसमें विजेता लेखक को पुरस्कार राशि के तौर पर पचास हज़ार पाउंड या करीब साढ़े 57 लाख रुपए की धनराशि दी जाती है। इस सूची के शेष लेखकों को ढाई हज़ार पाउंड की राशि दी जाती है। इस पुरस्कार का विजेता होना और शॉर्टलिस्ट किये गए लेखकों की सूची में आने भर से ही लेखकों का सम्मान आशातीत ढंग से पूरी दुनिया में बढ़ जाता है और उनकी रचना को दुनिया भर के पाठक पढ़ने के साथ ही सहेजना चाहते हैं।
बुकर पुरस्कार: एक प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान
बुकर पुरस्कार साहित्यिक श्रेणी का पुरस्कार है, जो हर साल अंग्रेज़ी भाषा में लिखे और यूनाइटेड किंगडम से प्रकाशित सर्वश्रेष्ठ मूल उपन्यास के लिये दिया जाता है। इसकी स्थापना वर्ष 1969 में हुई थी। इसे कुछ समय पूर्व तक ‘मैन बुकर पुरस्कार’ के नाम से जाना जाता था। ‘मैन’ शब्द का प्रयोग इसलिये होता था, क्योंकि इसे ‘द मैन’ नाम की कंपनी पुरस्कार की राशि को प्रायोजित करती थी। किंतु जब कंपनी ने अपना समर्थन वापस ले लिया तो ‘मैन’ शब्द को पुरस्कार के नाम से हटा दिया गया। अब इस पुरस्कार को ‘बुकर पुरस्कार’के नाम से जाना जाता है और इसका प्रबंधन धर्मार्थ संस्थान द्वारा किया जाता है।
मूल अंग्रेज़ी साहित्य के लिये बुकर पुरस्कार देने के अलावा एक और महत्त्वपूर्ण पुरस्कार है, जिसे ‘बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार’ कहा जाता है। इसे पहले ‘मैन बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार’ कहते थे, लेकिन अब इसे केवल ‘बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार’ कहा जाता है। यह पुरस्कार हर दो साल में एक ऐसे जीवित लेखक को दिया जाता है, जिसने या तो मूल रूप से अंग्रेज़ी में उपन्यास प्रकाशित किया हो या जिसकी साहित्यिक कृति का अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद उपलब्ध हो। इस पुरस्कार का उद्देश्य वैश्विक कथा साहित्य को बढ़ावा देना और अनुवादकों के कार्य की सराहना करना है। इसमें भी पुरस्कार के रूप में 50,000 पाउंड (64,000 अमेरिकी डॉलर) की धनराशि दी जाती है, जिसे लेखक और अनुवादक के बीच समान रूप से साझा किया जाता है तथा शॉर्टलिस्ट किये गए लेखकों व अनुवादकों में से प्रत्येक को सांत्वना- स्वरूप 2,500 पाउंड दिये जाते हैं। बुकर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ काल्पनिक कृति को दिया जाता है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार प्राय: अंग्रेज़ी में अनुवादित सर्वश्रेष्ठ काल्पनिक कृति को दिया जाता है।
बुकर पुरस्कार का इतिहास और विकास
अगर हम बुकर शब्द का इतिहास देखें तो पता चलता है कि एक परिवार के दो भाइयों जॉर्ज और रिचर्ड बुकर ने वर्ष 1835 में एक शिपिंग कंपनी ‘बुकर लाइन’ नाम से बनाई थी। यह कंपनी बाद में बुकर मैककोनेल लिमिटेड के रूप में कारोबार करने लगी और उसने इन पुरस्कारों को देने की घोषणा की। जनवरी 2017 में, ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय सुपर मार्केट रिटेलर टेस्को ने बुकर मैककोनेल लिमिटेड को खरीद लिया। इस तरह से पुरस्कार देने का काम अब टेस्को कंपनी के पास आ गया है। बुकर पुरस्कार पहली बार वर्ष 1969 में दिया गया था। इसका लक्ष्य लोगों को आधुनिक फिक्शन पढ़ने और उस पर बहस करने के लिये प्रोत्साहित करना था। बुकर पुरस्कार के पहले विजेता पीएच न्यूबी थे, जिन्हें उनके उपन्यास समथिंग टू आंसर फॉर के लिये यह पुरस्कार दिया गया। 1970 में, पुरस्कार के दूसरे वर्ष, बर्निस रूबेंस द इलेक्टेड मेंबर के लिये बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली महिला बनीं ।
बुकर की तरह पुलित्ज़र पुरस्कार भी एक महत्त्वपूर्ण सम्मान है। अगर हम दोनों पुरस्कारों के बीच मुख्य अंतर की बात करें तो हम पाएंगे कि पुलित्ज़र पुरस्कार एक व्यापक पुरस्कार है जो पत्रकारिता, साहित्य एवं संगीत सहित विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता को मान्यता देता है और संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रकाशित कार्य तक सीमित है। दूसरी ओर बुकर पुरस्कार विशेष रूप से कथा साहित्य के लिये है, जो अंग्रेज़ी भाषा में लिखे गए और यूनाइटेड किंगडम एवं आयरलैंड में प्रकाशित उपन्यासों पर केंद्रित है, चाहे लेखक की राष्ट्रीयता कुछ भी हो। इस तरह से पुलित्ज़र संयुक्त राज्य तक सीमित है, जबकि बुकर पुरस्कार यूके और आयरलैंड में प्रकाशित कार्यों के लिये खुला है।
अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार: वैश्विक साहित्य को समर्पित
अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाले भारतीयों की सूची देखने पर पता चलता है कि पहली बार यह पुरस्कार 1971 में महान लेखक वी.एस. नायपॉल को उनकी कृति ‘इन अ फ्री स्टेट’ को मिला। 1981 में सलमान रुश्दी को ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’ के लिये यह सम्मान मिला। 1997 में सामाजिक कार्यकर्त्ता और लेखिका अरुंधती रॉय को ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ 2006 के लिये दिया गया। साल 2006 में यह सम्मान लेखिका किरण देसाई को उनकी किताब ‘द इनहेरिटेंस लॉस’ के लिये मिला। इसके दो साल बाद 2008 में अरविंद अडिगा को उनकी कृति ‘द वाइट टाइगर’ को यह सम्मान मिला। 2022 में लेखिका गीतांजलि श्री को उनकी कृति ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ को इस सम्मान से नवाज़ा गया। उनकी किताब ‘रेत समाधि’ का अनुवाद डेजी रॉकवेल ने किया था। इसलिये पुरस्कार की आधी राशि सुश्री रॉकवेल को दी गई। 2025 के लिये इस पुरस्कार को कन्नड़ भाषा की लेखिका बानू मुश्ताक को उनकी कृति ‘हार्ट लैंप’ के लिये दिया गया है। उनकी कृति का अंग्रेज़ी अनुवाद दीपा बष्टी ने किया है। दीपा को उनके अनुवाद कार्य के लिये पुरस्कार का आधा हिस्सा दिया जाएगा। पहली बार किसी भारतीय अनुवादक को यह पुरस्कार मिला है।
बानू मुश्ताक का काम पुस्तक प्रेमियों के बीच काफी मशहूर है, बुकर इंटरनेशनल की जीत ने उनके जीवन और साहित्य पर रोशनी डाली है। उनकी कहानियों में महिलाओं के सामने आने वाली कई चुनौतियों को दर्शाया गया है, जो धार्मिक और सामाजिक पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण उत्पन्न होती हैं। भारतीय लेखिका, वकील और कार्यकर्त्ता बानू मुश्ताक ने अपनी लघु कथा संकलन हार्ट लैंप के साथ अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली कन्नड़ भाषा की पहली लेखिका बनकर इतिहास रच दिया है। यह प्रतिष्ठित पुरस्कार जीतने वाला पहला लघु कथा संग्रह है। निर्णायकों ने उनके पात्रों की प्रशंसा "अस्तित्व और लचीलेपन के आश्चर्यजनक चित्रण" के रूप में की है। इस संग्रह में बानू मुश्ताक द्वारा 1990 से 2023 के बीच लिखी गई 12 लघु कथाओं को शामिल किया गया है। हार्ट लैंप (मूल कन्नड़ में ‘हृदय दीप’) दक्षिण भारत में रहने वाली मुस्लिम महिलाओं की कठिनाइयों को मार्मिक रूप से दर्शाती है। ये कहानियाँ दक्षिण भारत, विशेषकर कर्नाटक की मुस्लिम महिलाओं के रोज़मर्रा के जीवन, उनके संघर्षों, पितृसत्तात्मक समाज में उनके छोटे-छोटे विद्रोहों और लचीलेपन को मार्मिक ढंग से चित्रित करती हैं। कहानियाँ सामाजिक मुद्दों ,जैसे- लैंगिक असमानता, धार्मिक संकीर्णता, जातिगत उत्पीड़न और शक्ति संरचनाओं पर केंद्रित हैं। इनमें कन्नड़ संस्कृति की मौखिक परंपराओं का प्रभाव, सूक्ष्म हास्य और भावनात्मक गहराई दिखती है। प्रत्येक कहानी मानवीय अनुभवों को संवेदनशीलता के साथ उकेरती है, जो हाशिये पर रहने वाली महिलाओं की अनकही पीड़ा और उनकी हिम्मत को दर्शाती है।
बानू मुश्ताक कर्नाटक के एक छोटे से शहर हासन में पली-बढ़ी और अपने आस-पास की अधिकांश लड़कियों की तरह जीवन शुरू किया। उनके पिता ने उनकी परवरिश और पढ़ाई पर ध्यान दिया। उन्होंने स्कूल में रहते हुए ही लेखन कार्य शुरू कर दिया। जहाँ एक ओर उनकी सहेलियों की शादियाँ हो रही थीं तो उन्होंने कॉलेज जाने का फैसला करके सबको चौंका दिया। मुश्ताक का लेखन कार्य प्रकाशित होने में काफी समय लगा और उनकी लघु कहानी 26 साल की उम्र में एक स्थानीय पत्रिका में छपी। अपने शुरुआती विवाहित जीवन में संघर्ष और कलह का भी सामना किया, क्योंकि उनका विवाहित परिवार काफी पारंपरिक था, लेकिन बाद में उन्होंने परिस्थितियों को सँभाल लिया और अपने जीवन को आगे बढ़ाया।
वह ‘लंकेश पत्रिका’ नामक समाचार पत्र की रिपोर्टर भी रहीं। 1980 के दशक से ही वे कर्नाटक में "कट्टरपंथ और सामाजिक अन्याय" के खिलाफ विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल रही हैं। 2000 में मुश्ताक और उनके परिवार के खिलाफ तीन महीने के "सामाजिक बहिष्कार" की घोषणा की गई थी, क्योंकि उन्होंने "मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश के अधिकार की वकालत" की थी। वह साहित्य और सक्रियता के माध्यम से सामाजिक एवं आर्थिक अन्याय को दूर करने के उद्देश्य से जुड़े बंद या आंदोलन का भी हिस्सा रहीं। एक दशक तक पत्रकारिता करने के बाद उन्होंने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिये वकालत का पेशा अपनाया। कई दशकों के शानदार कैरियर में उन्होंने कई रचनाएँ प्रकाशित की हैं जिनमें छह लघु कथा संग्रह, एक निबंध संग्रह और एक उपन्यास शामिल है।
बुकर पुरस्कार जीतने वाले भारतीय लेखक
बानू का कहानी संग्रह दक्षिण भारत के मुस्लिम परिवारों में महिलाओं की स्थिति को दर्शाया गया है कि कैसे उनके आसपास के लोगों ने उनको हाशिये पर ढकेल दिया है। चाहे वह उनका विवाहित जीवन हो, परिवार या धर्म ही क्यों न हो। उनका होना किसी के लिये मायने नहीं रखता। ‘हार्टलैंप’ में संकलित उनकी कहानियों के अंग्रेज़ी शीर्षकों में "Stone Slabs for Shaista Mahal" , "Fire Rain", "Black Cobras", "A Decision of the Heart", "Red Lungi", "Heart Lamp", "High-Heeled Shoe", "Soft Whispers","A Taste of Heaven" ,"The Shroud","The Arabic Teacher and Gobi Manchuri" और"Be a Woman Once, Oh Lord" हैं।
कहानियों की विषयवस्तु और प्रतीकात्मक गहराई
ये केवल कहानियाँ नहीं हैं बल्कि हाशिये से उठने वाली वो आवाज़ें हैं जिसे हमेशा दबाया गया है। उनकी कहानी पितृसत्तात्मक नियमों के खिलाफ एक विद्रोह का स्वर है, जो महिलाओं के त्याग, खामोशी और गुमनामी से भरी ज़िंदगी से उन्हें आज़ाद कराती हैं। ‘हार्टलैंप’ कहानी में मेहरुन नाम की महिला की कहानी है, जिसके सपने तब राख हो जाते हैं, जब उसका पति इनायत उसे दूसरी औरत के लिये छोड़ देता है। कहानी के शीर्षक ‘हार्टलैंप’ की ज़बान में कहा जाए तो दोनों के बीच का प्रेम बहुत पहले ही बुझ चुका था। इसी तरह Be a woman once, Oh Lord कहानी में तीखे स्त्रीवादी स्वर हैं, जो स्वयं सृष्टिकर्त्ता को औरत होने का बोझ अनुभव करने की चुनौती देती है। इसकी एक बेनाम नायिका, जिसे पति ने घर से निकाल दिया, हर उस औरत का प्रतीक बन जाती है जिसे ठुकराया गया है। उसकी पुकार पीढ़ियों तक गूँजती है कि एक बार तुम भी औरत बनो, प्रभु! Stone Slabs for Shaista Mahal में शाइस्ता की मृत्यु और इफ्तिखार का ढोंगी प्रेम सामाजिक दिखावे की खोखली सच्चाई को उजागर करता है। Fire Rain में अरिफा की माँ के रूप में विद्रोह और ‘मैं माँ नहीं, महामारी हूँ’ जैसे वाक्य सामाजिक दबावों के खिलाफ उसकी स्थिति को बयाँ करते हैं।High heeled Shoe कहानी में स्त्री के शरीर को एक वस्तु की तरह देखा गया है। Red Lungi में रज़िया की थकान और घरेलू अव्यवस्था के बीच उसकी पहचान की खोज है जो हर उस औरत को छूती है जो अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष करती है। Soft Whispers और The Shroud जैसी कहानियाँ मुश्ताक जी की दार्शनिक गहराई को दर्शाती हैं। A decision of the heart कहानी में माँ और पत्नी के बीच यूसुफ का द्वंद्व पारंपरिक मुस्लिम परिवार की जटिलताओं को उजागर करता है।
कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियाँ
अगर संग्रह की आलोचना पर बात की जाए तो यह कहा गया है कि उनकी लगभग सभी कहानियाँ एक जैसी प्रतीत होती हैं, जिससे पाठक के मन में एक ऊब की भावना उत्पन्न होती है। इसके अतिरिक्त, लेखक ने कुछ ऐसे आंचलिक शब्दों का प्रयोग किया है, जिसे सामान्य पाठक के लिये समझ पाना मुश्किल हो जाता है। साथ ही पात्रों की अधिकता और एक छोटे से दायरे में उनका सिमट जाना पाठकों को भ्रमित कर सकता है, जिससे कहानी कहने की सहजता पर भी असर पड़ता है।
समकालीन साहित्य में बानू मुश्ताक का योगदान
बानू मुश्ताक ने कट्टर धार्मिक व्याख्याओं को चुनौती देते हुए अपने लेखन में महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाया है। समाज में बदलाव आया है, लेकिन मूल मुद्दे आज भी वही हैं। संदर्भ बदल गए हैं, लेकिन महिलाओं और हाशिये पर पड़े समुदायों के साथ अन्याय जारी है। पिछले कुछ वर्षों में मुश्ताक के लेखन ने कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार और दाना चिंतामणि अत्तिमाबे पुरस्कार सहित कई प्रतिष्ठित स्थानीय और राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। 2024 में, 1990 और 2012 के बीच प्रकाशित मुश्ताक के पाँच लघु कहानी संग्रहों के अनुवादित अंग्रेज़ी संकलन - हसीना और अन्य कहानियाँ - ने पेन अनुवाद पुरस्कार जीता। वह मानती हैं कि कोई भी कहानी कभी छोटी नहीं होती और मानव के अनुभव के ताने-बाने में हर धागा पूरा- का-पूरा भार रखता है। ऐसी दुनिया में जो अक्सर हमें विभाजित करने की कोशिश करती है, साहित्य उन अंतिम पवित्र स्थानों में से एक है, जहाँ हम एक-दूसरे के मन में रह सकते हैं, भले ही कुछ पन्नों के लिये ही क्यों न हो। वह यह भी मानती हैं कि मुख्यधारा के भारतीय साहित्य में मुस्लिम महिलाओं को अक्सर रूपकों में बदल दिया जाता है - मूक पीड़ित या किसी और के नैतिक तर्क में रूपक। मुश्ताक दोनों को अस्वीकार करती हैं। उनके पात्र सहते हैं, बातचीत करते हैं और कभी-कभी पीछे हटते हैं - सुर्खियों में आने के तरीकों से नहीं बल्कि उनके जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण तरीकों से। उनके संग्रह की कहानियाँ मुश्ताक के पत्रकार और वकील के रूप में जीवन को दर्शाती हैं, जिसमें देश के अपने हिस्से में महिलाओं के अधिकारों और जाति तथा धार्मिक अन्याय के प्रतिरोध पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
निष्कर्ष:
बुकर इंटरनेशनल के जजों के अध्यक्ष मैक्स पोर्टर ने कहा कि हालाँकि मुश्ताक की कहानियाँ नारीवादी हैं और उनमें "पितृसत्तात्मक व्यवस्था और प्रतिरोध के असाधारण विवरण शामिल हैं"। इसमें सबसे पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वे "रोज़मर्रा की ज़िंदगी और विशेष रूप से महिलाओं के जीवन का सुंदर विवरण हैं"।