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ग्रीन जॉब्स: आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण का संगम

  • 23 Jun, 2025

ग्रीन जॉब्स क्या हैं?

हरित नौकरियाँ या ‘ग्रीन जॉब्स’ का आशय ऐसे रोज़गार अवसरों से है, जो पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखने में सहायक होते हैं। ये नौकरियाँ न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देती हैं बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सतत् विकास के लक्ष्यों में हरित नौकरियाँ अब एक प्रमुख घटक के रूप में उभर रही हैं।

सतत् विकास और ग्रीन जॉब्स का संबंध

पर्यावरण क्षरण को कम करते हुए आर्थिक विकास को गति देने में हरित नौकरियों की भूमिका पर अधिक ज़ोर दिया गया है। इसलिये हरित नौकरी का विचार अब सतत् विकास के एक प्रमुख घटक के रूप में उभर रहा है। हम जानते हैं कि सतत् विकास का अर्थ है, वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करना तथा यह सुनिश्चित करना कि भावी पीढ़ियाँ अपनी आवश्यकताओं को स्वयं पूरा कर सकें। इस तरह से सतत् विकास संबंधी हरित नौकरियाँ अब हमारे जीने के तरीके यानी आ‍र्थिक जीवन के संजाल और पर्यावरण का संगम बनकर नई तरह की व्‍यवस्‍था को लाने और हमारे व्यवहार में समुचित परिवर्तन लाने के लिये महत्त्वपूर्ण घटक बन रही हैं। 

ग्रीन जॉब्स की विशेषताएँ

स्किल काउंसिल फॉर क्लीन जॉब्स के अनुसार, 'ग्रीन जॉब्स' रोज़गार की एक श्रेणी है जो हमें प्रत्यक्ष लाभ पहुँचाती है और पर्यावरण संरक्षण में योगदान देती है। इन नौकरियों में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग या विकास, संसाधनों का संरक्षण, ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना, कचरे का ज़िम्मेदारी से प्रबंधन करना और सतत् विकास का समर्थन करना शामिल है। इस प्रकार से हरित नौकरियाँ पर्यावरण की रक्षा, अपशिष्ट को कम करने, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, जीवन और काम करने के अधिक संधारणीय तरीके बनाने पर ध्यान केंद्रित करती हैं। ये नौकरियाँ कई उद्योगों में फैली हो सकती हैं और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन में काम करने से लेकर अक्षय ऊर्जा में विशेषज्ञता तक कई तरह की भूमिकाएँ निभा सकती हैं। हमारी वर्तमान पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने और आने वाली पीढ़ियों के लिये एक संधारणीय भविष्य सुनिश्चित करने  में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। हरित नौकरियों के क्षेत्र में काम करने से न केवल पर्यावरण संरक्षण होता है, बल्कि आर्थिक विकास भी होता है।

पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर ग्रीन जॉब्स का प्रभाव

हरित नौकरियाँ आर्थिक गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम करके पर्यावरणीय स्तर पर सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इससे न केवल पर्यावरण को लाभ होता हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हरित उद्योगों की वृद्धि से नए रोज़गार के अवसर पैदा होते हैं और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है। हरित नौकरियाँ पर्यावरण पर मानवीय गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम करने में भी मदद करती हैं। उदाहरण के लिये, सौर पैनल इंस्टॉलर और पवन टरबाइन तकनीशियन जैसी नवीकरणीय ऊर्जा नौकरियाँ उस जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता को कम करने में मदद करती हैं, जो वायु और जल प्रदूषण में योगदान करते हैं। हरित नौकरियाँ नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देकर  पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में मदद करती हैं। हरित नौकरियों में निवेश करने से पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों को दीर्घकालिक लाभ होता है। संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने और नवीकरणीय संसाधनों पर निर्भरता कम करके हम एक  अधिक लचीली और संधारणीय अर्थव्यवस्था बना सकते हैं । इससे  पर्यावरण की रक्षा होती है और भविष्य की पीढ़ियों के लिये संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित होती है।  

भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से विकास कर रही है, लेकिन इसके साथ ही विविध पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना भी कर रहा हैऐसे में हरित नौकरियों को बढ़ावा देना और उनका विस्तार करना अवसर तथा चुनौतियाँ दोनों को प्रस्तुत करता है। हाल ही में भारत सरकार के केंद्रीय बजट 2024-25 में हरित नौकरियों पर ज़ोर दिया गया है, जो एक सकारात्मक कदम है। यह पहल कई क्षेत्रों में हरित नौकरियों के विकास की नींव रखती है, जो भारत के एक स्थायी और समावेशी अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिये महत्त्वपूर्ण है। हरित नौकरियों की अवधारणा भारत में सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये अपार संभावनाएँ रखती हैं और इससे संबंधित बाधाओं की जटिल शृंखला का समाधान करना उनकी पूरी क्षमता का दोहन करने के लिये आवश्यक है। भारत  दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और उसने वैश्विक जलवायु समझौतों पर हस्ताक्षर करने वाले देश के रूप में अपनी छवि बनाई है, किंतु वह कार्बन उत्सर्जन को कम करने और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाने के साथ-साथ आर्थिक विकास को बनाए रखने की दोहरी चुनौती का सामना कर रहा है। इसलिये हरित नौकरियों की अवधारणा भारत की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ निकटता से जुड़ी हुई है। 

भारत में ग्रीन जॉब्स की आवश्यकता

भारत में हरित नौकरियों का विस्तार कई चुनौतियाँ का सामना कर रहा है, जिनमें  नीतिगत ढाँचे की कमी, वित्तीय संसाधनों की कमी, कौशल बेमेल और तकनीकी बुनियादी ढाँचे की कमी शामिल हैं।  इन बाधाओं को दूर करने से ही हरित नौकरियों को बढ़ावा दिया जा सकता है और आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है। हरित प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं के तेज़ी से विकास के लिये नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और टिकाऊ कृषि जैसे क्षेत्रों में विशेष कौशल से युक्त कार्यबल की आवश्यकता होती है। हालाँकि, वर्तमान शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणालियाँ उभरते हरित क्षेत्रों में कैरियर के लिये श्रमिकों को पर्याप्त रूप से तैयार करने में अपना योगदान तो दे रही हैं पर यह योगदान आनुपातिक रूप से विफल प्रतीत होता है, जिससे श्रम बाज़ार में असंतुलन बढ़ता है और हरित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण में बाधा आती है। अपर्याप्त तकनीकी अवसंरचना हरित उद्योगों के विकास और स्थायी रोज़गार अवसरों के सृजन के लिये एक बड़ी चुनौती है। उन्नत प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुँच, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, हरित उद्यमों के विकास रोकती है और वैश्विक बाज़ारों में उनकी प्रतिस्पर्द्धा क्षमता को सीमित करती है।

हरित नौकरियों की राह में चुनौतियाँ

हरित नौकरी देने वाले क्षेत्रों और उद्यमों को समर्थन देने के लिये डिज़ाइन किये गए मज़बूत नीतिगत ढाँचों की अनुपस्थिति एक महत्त्वपूर्ण बाधा बनी हुई है। भारत ने पर्यावरण संबंधी नीतियाँ बनाने और नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य निर्धारित करने में प्रगति की है, लेकिन इन प्रतिबद्धताओं को प्रभावी रूप से हरित रोज़गार सृजन और स्थिरता को बढ़ावा देने वाली कार्य-योग्य रणनीतियों में बदलने में कमियाँ बनी हुई हैं। इसके अलावा, विभिन्न सरकारी विभागों और अधिकार क्षेत्रों में सुसंगत नीति में समन्वय की कमी हरित रोज़गार पहलों को बढ़ाने के प्रयासों को जटिल बना दे रही है। इसके अलावा वित्तीय बाधाएँ भी हरित उद्यमों के विकास और नई हरित नौकरियों के सृजन में बाधा डालती रही हैं। हरित क्षेत्रों में काम करने वाले छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों के लिये वित्त तक पहुँच एक बड़ी चुनौती है। कम लागत वाले ऋण कमी, विनियामक अनिश्चितताएँ और उच्च लेन-देन लागतें हरित व्यवसायों के विकास और करने और रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने में बाधा उत्पन्न कर रही हैं।

समाधान 

भारत में हरित नौकरियों की पूर्ण क्षमता को प्राप्त करने के लिये एक नई बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें  निजी क्षेत्र, सरकार और अन्य हितधारकों को शामिल करते हुए व्यापक प्रयास करने होंगे। निजी क्षेत्र को हरित प्रौद्योगिकियों और नवाचार में निवेश बढ़ाना चाहिये, जबकि सरकार को नीतिगत समर्थन और वित्तीय संस्थानों को हरित परियोजनाओं के लिये वित्त प्रदान करना चाहिये। शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से कार्यबल कौशल में सुधार करना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।

सरकार को मज़बूत नीतिगत ढाँचे स्थापित और करने हरित उद्योगों का समर्थन करने के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाने होंगे, जिनमें समर्पित हरित निधि बनाना, विनियामक बाधाओं को कम करना, वित्त तक पहुँच को सुगम बनाना, शिक्षा और प्रशिक्षण में निवेश करना, तकनीकी अवसंरचना में सुधार करना और डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देना शामिल है। इन कदमों से हरित उद्यमों का समर्थन होगा और हरित नौकरियों के अवसर बढ़ेंगे।

इसके अलावा गैर-सरकारी संगठनों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और शिक्षाविदों के नीति संवादों में भाग लेकर, साथ ही तकनीकी सहायता प्रदान करके नीति और विनियामक सुधारों की वकालत करनी चाहिये। प्रशिक्षण कार्यक्रमों और ज्ञान साझाकरण के माध्यम से क्षमता निर्माण के प्रयास आवश्यक हैं। अंतर्राष्ट्रीय निधि जुटाकर और एमएसएमई विकास का समर्थन करके वित्त और संसाधनों तक पहुँच को सुगम बनाना हरित क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा देगा। अनुप्रयुक्त अनुसंधान और उद्योग सहयोग के माध्यम से अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने से चुनौतियों का समाधान होगा और हरित रोज़गार सृजन के अवसरों का लाभ उठाया जा सकेगा। सामूहिक रूप से ये कार्य भारत को हरित नौकरियों की बाधाओं को दूर करने और सतत् विकास हासिल करने में सक्षम बनाएंगे।

संभावित क्षेत्र जहाँ ग्रीन जॉब्स सृजित हो सकते हैं

भारत में कई क्षेत्र हरित रोज़गार सृजन के लिये बड़े अवसर प्रदान करते हैं। केंद्रीय बजट 2024-25 में ऐसे कई उपायों की घोषणा की गई है, जिनमें विभिन्न क्षेत्रों में हरित रोज़गार सृजन की क्षमता है। एक आकलन के अनुसार देश में एक करोड़ तक हरित रोज़गार सृजित हो सकते हैं। छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की योजना और पंप संबंधी परियोजनाओं की नीति नवीकरणीय ऊर्जा की ओर मज़बूत कदम का संकेत देती है, जिससे अधिक संख्‍या में हरित रोज़गार सृजित हो सकते हैं तथा नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति शृंखला में सुधार हो सकता है। साथ ही बुनियादी ढाँचे में निवेश से टिकाऊ निर्माण, ऊर्जा-कुशल भवन डिज़ाइन तथा स्मार्ट ग्रिड और टिकाऊ परिवहन नेटवर्क जैसे हरित बुनियादी ढाँचे के रखरखाव में हरित रोज़गार सृजित करने के अवसर उपलब्ध होते हैं। इसके अलावा पारगमन-उन्मुख विकास और 'विकास केंद्रों के रूप में शहरों' के निर्माण पर ज़ोर देने से शहरी नियोजन, टिकाऊ परिवहन प्रबंधन और शहरों के भीतर हरित स्थानों के विकास में हरित रोज़गार सृजन हो सकता है। पर सबसे अधिक ध्यान पर्यावरण अनुकूल वस्तुओं के उत्पादन पर देकर एमएसएमई और श्रम-प्रधान विनिर्माण को बढ़ावा देने से टिकाऊ उत्पादन, पुनर्चक्रण और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के विकास में हरित नौकरियों के सृजन को बढ़ाया जा सकता है। तीर्थयात्रा और पर्यटन स्थलों का विस्तार करने से पारिस्थितिकी पर्यटन, विरासत संरक्षण और टिकाऊ आतिथ्य सेवाओं में हरित रोज़गार सृजित हो सकते हैं। इसके अलावा अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास में निवेश से उच्च -कुशल हरित नौकरियों का सृजन हो सकता है ।

निष्कर्ष

इन पहलों को कौशल विकास कार्यक्रमों के साथ जोड़ना महत्त्वपूर्ण है, जो कार्यबल को हरित प्रौद्योगिकियों और संधारणीय प्रथाओं में आवश्यक दक्षताओं से लैस करेगा। सरकार का कर संरचनाओं को सरल बनाने और व्यवसायों के लिये अनुपालन बोझ को कम करने ध्यान केंद्रित करने से नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा और हरित रोज़गार सृजन में तेज़ी आएगी। व्यक्तियों, संगठनों और सरकारों को हरित नौकरियों के महत्त्व को पहचानना होगा तथा अधिक टिकाऊ भविष्य के लिये उनके विकास को बढ़ावा देने की दिशा में काम करना होगा।


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