ध्यान दें:

स्टेट पी.सी.एस.

  • 26 Aug 2025
  • 2 min read
  • Switch Date:  
उत्तर प्रदेश Switch to English

शुभांशु शुक्ला को लखनऊ में सम्मानित किया गया

चर्चा में क्यों? 

अंतर्राष्टीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की यात्रा करने वाले पहले भारतीय ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को अपने गृह नगर लखनऊ लौटने पर उत्तर प्रदेश सरकार ने लोकभवन में एक विशेष सम्मान समारोह का आयोजन किया जहाँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुभांशु शुक्ला और उनके परिवार को सम्मानित किया। 

मुख्य बिंदु 

  • छात्रवृत्ति: मुख्यमंत्री ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का अध्ययन करने वाले छात्रों के लिये शुभांशु के नाम पर छात्रवृत्ति की स्थापना की घोषणा की तथा इस बात पर प्रकाश डाला कि चार दशक बाद किसी भारतीय को अंतरिक्ष की यात्रा करने का अवसर मिला है।  
    • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में राज्य की सक्रिय भागीदारी को भी रेखांकित किया गया जहाँ उत्तर प्रदेश में एक दर्जन से अधिक संस्थान अब इससे संबंधित पाठ्यक्रम चला रहे हैं। 
  • डाक टिकट: भारतीय डाक ने शुभांशु के अंतरिक्ष मिशन के सम्मान में एक डाक आवरण और टिकट भी जारी किया। 
  • मोबाइल इनोवेशन प्रोग्राम: सिटी मॉन्टेसरी स्कूल (CMS), लखनऊ ने डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी (AKTU) के सहयोग से शुभांशु शुक्ला इनोवेशन एक्सप्रेस नामक एक मोबाइल इनोवेशन प्रोग्राम की शुरुआत की। 
  • आपदा प्रबंधन में भूमिका: मुख्यमंत्री ने प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन में सुधार लाने में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर भी ज़ोर दिया।

शुभांशु शुक्ला

  • भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला वर्ष 2025 में निजी मिशन पर अंतर्राष्टीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की यात्रा करने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री हैं। 
    • इसका नेतृत्व NASA की अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन ने किया और शुभांशु शुक्ला ने मिशन पायलट के रूप में कार्य किया। 
    • वे भारत के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम ‘गगनयान’ के लिये भी अंतरिक्ष यात्री-नामांकित (astronaut-designate) हैं।  
  • वे NASA और ISRO के बीच एक संयुक्त उद्यम एक्सिओम मिशन-4 (Ax-4) के हिस्से के रूप में फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से स्पेसएक्स ड्रैगन अंतरिक्षयान में सवार हुए। 
  • Ax-4 मिशन में भारत, पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री शामिल थे तथा यह चार दशक बाद इस प्रकार का पहला बहु-देशीय सहयोग बना।  
    • अंतरिक्ष यात्री दल ने ISS पर 14 दिन व्यतीत किये और इस दौरान NASA तथा ISRO के साथ मिलकर वैज्ञानिक प्रयोगों, शैक्षिक गतिविधियों तथा वाणिज्यिक कार्यों का संचालन किया। 
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 1984 में राकेश शर्मा सोवियत संघ के सोयूज T-11 मिशन (इंटरकोस्मोस कार्यक्रम) के तहत अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय थे। 

मध्य प्रदेश Switch to English

रण संवाद-2025

चर्चा में क्यों? 

रण संवाद-2025, एक विशिष्ट द्विवर्षीय कार्यक्रम, 26 अगस्त, 2025 से मध्य प्रदेश के डॉ. कोम्बम नगर स्थित आर्मी वॉर कॉलेज में आयोजित किया जाएगा। 

मुख्य बिंदु 

  • विचारधारा के विषय में: यह संस्था एक अभिनव पहल है, जिसका उद्देश्य भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच त्रि-सेवा संवाद को बढ़ावा देना है, जो समकालीन विचारधारा तथा युद्ध के भविष्य पर केंद्रित है। 
  • आयोजक: इस उद्घाटन समारोह की मेज़बान भारतीय सेना होगी तथा इसके बाद के कार्यक्रमों का नेतृत्व भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना द्वारा किया जाएगा। यह चक्रीय संरचना आधुनिक युद्ध तथा रक्षा रणनीति पर सतत् तथा विकसित होती संवाद को सुनिश्चित करती है।  
    • इस कार्यक्रम का आयोजन रक्षा स्टाफ मुख्यालय और संयुक्त युद्ध केंद्र द्वारा सेना प्रशिक्षण कमांड के सहयोग से किया जा रहा है तथा यह चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के मार्गदर्शन में संचालित है। 
  • संयुक्त सिद्धांतों का विमोचन: इस आयोजन के दौरान संयुक्त सिद्धांत, वैज्ञानिक सिद्धांत एवं क्षमता रोडमैप जैसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ जारी किये जाएंगे, जिनमें सैन्य आधुनिकीकरण और अंतर-सेवा एकीकरण के लिये भारत के दृष्टिकोण को सम्मिलित किया जाएगा।

उत्तर प्रदेश Switch to English

लोक संवर्द्धन पर्व

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा लोक संवर्द्धन पर्व का पाँचवाँ संस्करण 26 अगस्त से 4 सितंबर, 2025 तक कोच्चि (केरल) में आयोजित किया जा रहा है।  

  • यह केरल में आयोजित होने वाला पहला लोक संवर्द्धन पर्व होगा। इसमें देशभर से 100 से अधिक शिल्पकार तथा 15 खाद्य कला-विशेषज्ञ भाग लेंगे। 

मुख्य बिंदु 

  • लोक संवर्द्धन पर्व अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की एक प्रमुख पहल है, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदायों के कारीगरों, शिल्पकारों, बुनकरों, खाद्य कला विशेषज्ञों और उद्यमियों को बाज़ार संपर्क तथा राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन का अवसर प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाना है। 
  • उद्देश्य: इस महोत्सव का उद्देश्य भारत की समृद्ध विविधता का उत्सव मनाना तथा अल्पसंख्यक समुदायों को अपने कला, शिल्प और पाक-कौशल को प्रदर्शित करने के लिये एक मंच उपलब्ध कराना है। यह पहल अल्पसंख्यक समुदायों के बीच समावेशी विकास और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिये सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप है। 
  • शिल्प: इस महोत्सव में विभिन्न प्रकार के पारंपरिक शिल्प प्रदर्शित किये जाएंगे, जिनमें सम्मिलित हैं: 

शिल्प/कला 

क्षेत्र 

ज़री और चिकनकारी 

उत्तर प्रदेश 

फूलकारी कढ़ाई 

पंजाब 

मधुबनी पेंटिंग 

बिहार 

ब्लू पॉटरी 

राजस्थान 

पश्मीना बुनाई 

लद्दाख 

बस्तर लौह शिल्प 

छत्तीसगढ़ 

चन्नपटना लकड़ी के खिलौने 

कर्नाटक 

नेट्टिपट्टम निर्माण 

केरल 

भारत के अल्पसंख्यक समुदाय

  • अल्पसंख्यक समुदाय:  
    • केंद्र सरकार राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम (NCMA), 1992 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा निर्धारित करती है।  
    • इसके अंतर्गत मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन (वर्ष 2014 में जोड़े गए) और पारसी को आधिकारिक रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता दी जाती है।  
      • जनगणना 2011 के अनुसार ये भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 19.3% हैं।  
    • अधिकांश राज्य केंद्रीय सूची का पालन करते हैं, किंतु महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों की अपनी सूची भी हो सकती है (उदाहरणार्थ, महाराष्ट्र में यहूदी अधिसूचित अल्पसंख्यक हैं)। 
  • संवैधानिक प्रावधान: 
    • अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित रखने का अधिकार प्रदान करता है तथा धर्म, वंश, जाति या भाषा के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है। 
    • अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
  • अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा हेतु संस्थाएँ: 
    • अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय: वर्ष 2006 में स्थापित, यह सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से अलग होकर गठित हुआ। इसका उद्देश्य भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये कार्यक्रमों का समन्वय करना है। 
    • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM): NCMA, 1992 के तहत गठित यह आयोग संविधान और संसद द्वारा अधिनियमित कानूनों के अनुरूप अल्पसंख्यक समूहों के हितों की रक्षा करता है। 

उत्तर प्रदेश Switch to English

राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025

चर्चा में क्यों? 

उत्तर प्रदेश से मधुरिमा तिवारी (मिर्ज़ापुर) और रामलाल सिंह यादव (भदोही) का चयन वर्ष 2025 में राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार हेतु किया गया है। यह पुरस्कार उन्हें शिक्षक दिवस (5 सितंबर, 2025) के अवसर पर प्रदान किया जाएगा। 

मुख्य बिंदु

राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के बारे में: 

  • वर्ष 1958 में स्थापित ये पुरस्कार शिक्षा मंत्रालय (MoE) की देखरेख में भारत के राष्ट्रपति अथवा उपराष्ट्रपति द्वारा प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस (5 सितंबर) पर प्रदान किये जाते हैं। 
  • यह पुरस्कार देश के असाधारण शिक्षकों को शिक्षा की गुणवत्ता तथा छात्र विकास में सुधार लाने में उनके योगदान के लिये प्रदान किये जाते हैं।  
    • इसमें योग्यता प्रशस्ति-पत्र, 50,000 रुपए का नकद पुरस्कार और एक रजत पदक प्रदान किया जाता है। 
  • राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025: भारत के 45 शिक्षकों को वर्ष 2025 में उनके समर्पण, नवाचार, छात्र नामांकन में सुधार, ड्रॉपआउट दर को कम करने तथा रचनात्मक शिक्षण विधियों की शुरुआत करने में योगदान हेतु सम्मानित किया जाएगा। 
  • महत्त्व: यह पुरस्कार प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों के उल्लेखनीय प्रयासों को मान्यता देता है, जिनके माध्यम से शिक्षा व्यवस्था में सुधार, विद्यार्थियों को प्रेरणा तथा समाज में सार्थक परिवर्तन संभव होता है।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन 

  • जन्म:  
    • इनका जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी नगर में एक तेलुगु परिवार में हुआ। 
  • शैक्षणिक उपलब्धियाँ:  
    • इन्होंने कई प्रतिष्ठित पदों पर कार्य किया, जिनमें सम्मिलित हैं—कलकत्ता विश्वविद्यालय में किंग जॉर्ज पंचम चेयर (1921-1932), आंध्र विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति (1931-1936) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चौथे कुलपति (1939-1948)।  
    • इसके अतिरिक्त, वर्ष 1936 से 1952 तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ईस्टर्न रिलीजन एंड एथिक्स के प्रोफेसर रहे। 
  • राजनीतिक जीवन:  
  • दार्शनिक योगदान:  
    • दार्शनिक क्षेत्र में इन्हें भारत और पश्चिम के बीच सेतु-निर्माता के रूप में मान्यता प्राप्त है। 
  • सम्मान:  
    • वर्ष 1984 में उन्हें मरणोपरांत (मृत्यु के बाद) भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 
    • वर्ष 1931 में ब्रिटेन के तत्कालीन सम्राट किंग जॉर्ज पंचम द्वारा उल्लेखनीय शैक्षणिक योगदान हेतु इन्हें नाइटहुड से सम्मानित किया गया। 

हरियाणा Switch to English

गुरु तेग बहादुर का 350वाँ बलिदान दिवस

चर्चा में क्यों?  

हरियाणा विधानसभा ने सर्वसम्मति से गुरु तेग बहादुर के 350वें बलिदान दिवस पर उन्हें सम्मानित करने के लिये एक प्रस्ताव पारित किया और 25 नवंबर को कुरुक्षेत्र में एक बड़े कार्यक्रम की योजना की घोषणा की। 

  • उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करते हुए नवंबर 1675 में चाँदनी चौक, दिल्ली में सर्वोच्च बलिदान दिया। 

मुख्य बिंदु

  • गुरु तेग बहादुर को श्रद्धांजलि:  
    • मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें कहा गया कि गुरु तेग बहादुर की आपसी सहयोग और भाईचारे की शिक्षाओं का प्रसार करना उनके बलिदान के प्रति सर्वोत्तम श्रद्धांजलि है। 
    • प्रस्ताव में गुरु तेग बहादुर के अनुयायी भाई मति दास, भाई सती दास और भाई दयाला के बलिदान को भी याद किया गया, जिन्होंने अटूट विश्वास के साथ अपने प्राण त्याग दिये। 
  • हरियाणा से संबंध:  
    • गुरु तेग बहादुर ने अपनी यात्रा के दौरान हरियाणा के कई स्थानों का दौरा किया, जिनमें कुरुक्षेत्र, पेहोवा, कैथल, जींद, अंबाला, चीका और रोहतक शामिल हैं। इन स्थलों पर महत्त्वपूर्ण गुरुद्वारे स्थित हैं, जैसे कि जींद में गुरुद्वारा श्री धमतान साहिब तथा अंबाला में गुरुद्वारा श्री शीशगंज साहिब, जो उनके आशीर्वाद एवं शिक्षाओं के स्थायी प्रतीक हैं। 
  • गुरु तेग बहादुर  
    • वे 9वें सिख गुरु थे, जो अपनी शिक्षाओं, बहादुरी और बलिदान के लिये पूजनीय माने जाते हैं। 
    • 21 अप्रैल, 1621 को अमृतसर में गुरु हरगोबिंद (छठे सिख गुरु) तथा माता नानकी के घर जन्मे गुरु तेग बहादुर का मूल नाम उनके तपस्वी स्वभाव के कारण त्याग मल रखा गया था। 
    • भाई गुरदास से शास्त्रों में तथा बाबा बुड्ढा से युद्ध कला में प्रशिक्षण प्राप्त करके उन्होंने 13 वर्ष की आयु में ही युद्ध में अपनी विशिष्ट पहचान बना ली थी। 
    • उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब में 116 भजनों का योगदान दिया, सिख शिक्षाओं का प्रसार करने के लिये व्यापक रूप से यात्रा की और चक-नानकी (अब आनंदपुर साहिब का हिस्सा) की स्थापना की। 
    • वर्ष 1675 में, जबरन धर्मांतरण के खिलाफ धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर उन्हें दिल्ली में फाँसी दी गई, जिससे उन्हें “हिंद की चादर” (हिंद का रक्षक) की उपाधि मिली। 

सिख धर्म के दस गुरु:

गुरु नानक देव (1469-1539) 

  • ये सिखों के पहले गुरु और सिख धर्म के संस्थापक थे। 
  • इन्होंने ‘गुरु का लंगर’ की शुरुआत की। 
  • वह बाबर के समकालीन थे। 
  • गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर करतारपुर कॉरिडोर को शुरू किया गया था। 

गुरु अंगद (1504-1552) 

  • इन्होंने गुरुमुखी नामक नई लिपि का आविष्कार किया और ‘गुरु का लंगर’ प्रथा को लोकप्रिय बनाया। 

गुरु अमर दास (1479-1574) 

  • इन्होंने आनंद कारज विवाह (Anand Karaj Marriage) समारोह की शुरुआत की। 
  • इन्होंने सिखों के बीच सती और पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियों को समाप्त किया| 
  • ये अकबर के समकालीन थे। 

गुरु राम दास (1534-1581) 

  • इन्होंने वर्ष 1577 में अकबर द्वारा दी गई ज़मीन पर अमृतसर की स्थापना की। 
  • इन्होंने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) का निर्माण शुरू किया। 

गुरु अर्जुन देव (1563-1606) 

  • इन्होंने वर्ष 1604 में आदि ग्रंथ की रचना की। 
  • इन्होंने स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य पूरा किया। 
  • वे शाहिदीन-दे-सरताज (Shaheeden-de-Sartaj) के रूप में प्रचलित थे। 
  • इन्हें जहाँगीर ने राजकुमार खुसरो की मदद करने के आरोप में मार दिया। 

गुरु हरगोबिंद (1594-1644) 

  • इन्होंने सिख समुदाय को एक सैन्य समुदाय में बदल दिया। इन्हें "सैनिक संत" (Soldier Saint) के रूप में जाना जाता है। 
  • इन्होंने अकाल तख्त की स्थापना की और अमृतसर शहर को मज़बूत किया। 
  • इन्होंने जहाँगीर और शाहजहाँ के खिलाफ युद्ध छेड़ा। 

गुरु हर राय (1630-1661) 

  • ये शांतिप्रिय व्यक्ति थे और इन्होंने अपना अधिकांश जीवन औरंगज़ेब के साथ शांति बनाए रखने तथा मिशनरी काम करने में समर्पित कर दिया। 

गुरु  हरकिशन (1656-1664) 

  • ये अन्य सभी गुरुओं में सबसे कम आयु के गुरु थे और इन्हें 5 वर्ष की आयु में गुरु की उपाधि दी गई थी। 
  • इनके खिलाफ औरंगज़ेब द्वारा इस्लाम विरोधी कार्य के लिये सम्मन जारी किया गया था। 

गुरु तेग बहादुर (1621-1675) 

  • इन्होंने आनंदपुर साहिब की स्थापना की। 

गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708) 

  • इन्होंने वर्ष 1699 में ‘खालसा’ नामक योद्धा समुदाय की स्थापना की। 
  • इन्होंने एक नया संस्कार "पाहुल" (Pahul) शुरू किया। 
  • ये मानव रूप में अंतिम सिख गुरु थे और इन्होंने ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को सिखों के गुरु के रूप में नामित किया। 


उत्तर प्रदेश Switch to English

भारत ने AIBD के कार्यकारी बोर्ड की अध्यक्षता की

चर्चा में क्यों? 

भारत को थाईलैंड के फुकेट में 19 से 21 अगस्त, 2025 तक आयोजित 23वें AIBD सामान्य सम्मेलन के दौरान एशिया-प्रशांत प्रसारण विकास संस्थान (AIBD) के कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष चुना गया। इससे पहले भारत ने वर्ष 2016 में AIBD कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष का पद संभाला था। 

मुख्य बिंदु  

  • AIBD सामान्य सम्मेलन (GC 2025) के बारे में: 
    • AIBD की 23वीं GC 2025 और संबद्ध बैठकों ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के वैश्विक हितधारकों को एकत्र किया, जिसका उद्देश्य नीतिगत चर्चाओं तथा संसाधन साझाकरण के माध्यम से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक गतिशील और सहयोगात्मक मीडिया परिदृश्य को बढ़ावा देना था। 
    • भारत AIBD GC का अध्यक्ष है। प्रसार भारती के सीईओ गौरव द्विवेदी अगस्त, 2025 तक AIBD GC के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेंगे। 
  • विषय:  
    • इस वर्ष का विषय था शांति, समृद्धि और जनता के लिये मीडिया” 
  • महत्त्व:  
    • यह प्रसारण के क्षेत्र में भारत के नेतृत्व में वैश्विक विश्वास को उजागर करता है तथा दुनिया भर में मीडिया विकास को आकार देने में भारत के लिये और भी अधिक रणनीतिक तथा प्रभावशाली भूमिका निभाने का मंच तैयार करता है। 

एशिया-पैसिफिक इंस्टीट्यूट फॉर ब्रॉडकास्टिंग डेवलपमेंट (AIBD) 

  • स्थापना: AIBD की स्थापना वर्ष 1977 में UNESCO के मार्गदर्शन में हुई थी, जिसमें भारत एक संस्थापक सदस्य है। 
  • संस्थापक संगठन: इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (ITU), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और एशिया-पैसिफिक ब्रॉडकास्टिंग यूनियन (ABU) संस्थापक संगठन हैं, जो सामान्य सम्मेलन के गैर-मतदान सदस्य हैं। 
  • भारत का प्रतिनिधित्व: भारत का प्रतिनिधित्व प्रसार भारती, जो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की सार्वजनिक सेवा प्रसारक संस्था है, द्वारा किया जाता है। 
  • सदस्यता: यह एक विशिष्ट क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है, जिसमें 45 देशों के 92 से अधिक सदस्य संगठन हैं। 
  • सचिवालय: इसका सचिवालय कुआलालंपुर में स्थित है और इसे मलेशिया सरकार द्वारा संचालित किया जाता है। 

close
Share Page
images-2
images-2