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पेपर 3

भारतीय अर्थव्यवस्था

समावेशी विकास

  • 02 Mar 2020
  • 11 min read

भारतीय संदर्भ में समावेशी विकास की अवधारणा कोई नई बात नहीं है। प्राचीन धर्मग्रंथों का अवलोकन करे तो उनमें भी सब लोगों को साथ लेकर चलने का भाव निहित है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिन’ में इसी बात की पुष्टि की गई है। नब्बे के दशक में उदारीकरण के बाद विकास की यह अवधारणा नए रूप में उभरी क्योंकि उदारीकरण के दौरान वैश्विक

अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ जुड़ने का मौका मिला तथा यह धारणा देश एवं राज्यों की परिधि से बाहर निकलकर वैश्विक संदर्भ में अपनी महत्ता बनाए रखने में सफल रही।

समावेशी विकास से आशय

समावेशी विकास के अर्थ को समझने के लिये इसे विभिन्न संदर्भों में देखे जाने की आवश्यकता है, जैसे-

  • समावेशी विकास का अर्थ ऐसे विकास से लिया जाता है जिसमें रोज़गार के अवसर पैदा हों तथा जो गरीबी को कम करने में मददगार साबित हो।
  • इसमें अवसर की समानता प्रदान करना तथा शिक्षा व कौशल के लिये लोगों को सशक्त करना शामिल है, अर्थात् अवसरों की समानता के साथ विकास को बढ़ावा देना।
  • दूसरे शब्दों में ऐसा विकास जो न केवल नए आर्थिक अवसरों को पैदा करे, बल्कि समाज के सभी वर्गो के लिये सृजित ऐसे अवसरों तक समान पहुँच को भी सुनिश्चित करे।
  • वस्तुनिष्ट दृष्टि से समावेशी विकास उस स्थिति को दर्शाता है जहाँ सकल घरेलू उत्पाद उच्च संवृद्धि दर के साथ प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद की उच्च संवृद्धि दर परिलक्षित होती है जिसमें आय एवं धन के वितरण के बीच असमानता में कमी आती है।
  • समावेशी विकास का बल जनसंख्या के सभी वर्गों के लिये बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराने पर होता है, अर्थात् आवास, भोजन, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ के साथ-साथ एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये आजीविका के साधनों को उत्पन्न करना। इन सब के साथ समावेशी विकास के लिये पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखा जाना आवश्यक है क्योंकि पर्यावरण की कीमत पर किये गए विकास को न तो टिकाऊ कहा जा सकता है तथा न ही समावेशीI

समावेशी विकास हेतु सरकार द्वारा पहल:

  • समावेशी विकास की अवधारणा सर्वप्रथम 11वीं पंचवर्षीय योजना में प्रस्तुत की गईI इस योजना में समाज के सभी वर्गों के लोगों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने और उन्हें अवसरों की समानता उपलब्ध कराने की बात कही गई I
  • 12वीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 2012-17) पूरी तरह से समावेशी विकास पर केंद्रित थी तथा इसकी थीम ‘तीव्र, समावेशी एवं सतत् विकास’ थी I इस योजना में गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा आजीविका के अवसर प्रदान करने पर विशेष ज़ोर दिया गया ताकि योजना में निर्धारित 8 प्रतिशत की विकास दर को हासिल किया जा सकेI
  • सरकार द्वारा समावेशी विकास की स्थिति प्राप्त करने के लिये कई योजनाओं की शुरुआत की गई I इनमें शामिल है- दीनदयाल अंत्योदय योजना, समेकित बाल विकास कार्यक्रम, मिड-डे मील, मनरेगा, सर्व शिक्षा अभियान इत्यादिI
  • वित्तयी समावेशन के लिये सरकार द्वारा कई पहलों की शुरुआत की गई हैI इनमें मोबाइल बैंकिंग, प्रधानमंत्री जन धन योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, वरिष्ठ पेंशन बीमा इत्यादि महत्त्वपूर्ण योजनाओं को शामिल किया गया है I
  • महिलाओं को मद्देनज़र रखते हुए सरकार द्वारा स्टार्ट-अप इंडिया, सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वीमेन जैसी योजनाओं की शुरुआत की गई हैI इसके अलावा महिला उद्यमिता मंच तथा प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना जैसे प्रयास भी महिलाओं के लिये किये गए वित्तीय समावेशन के प्रयासों में शामिल हैं I
  • किसानों एवं कृषि कार्य हेतु वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा मृदा स्वास्थ्य कार्ड, नीम कोटेड यूरिया, प्रधानमंत्री कृषि सिचाई, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन जैसी महत्त्वपूर्ण योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
  • दिव्यागजनों को समावेशी विकास में शामिल करने के लिये सरकार द्वारा निःशक्तता अधिनियम 1995, कल्याणार्थ राष्ट्रीय न्यास अधिनियम 1999, सिपडा, सुगम्य भारत अभियान, स्वावलंबन योजना तथा इसके अलावा दिव्यांगजन अधिकार नियम, 2017 जैसे कदम उठाए गए हैं।

समावेशी विकास का मापन:

  • समावेशी विकास को मापने का सबसे बेहतर तरीका है, राष्ट्र की प्रगति को उसके सबसे गरीब हिस्से की प्रगति के आधार पर मापा जाए अर्थात् जनसंख्या के सबसे निचले 20 प्रतिशत हिस्से की प्रगति के आधार पर प्रति व्यक्ति आय को मापना।
  • यदि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि दर्ज होती है तो यह स्वस्थ समावेशी विकास का सूचक है।
  • समावेशी विकास की अवधारणा इस बात पर निर्भर करती है कि यदि उच्च विकास दर को हासिल करना है तो समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग को भी विकास की गति में शामिल करना होगा।

समावेशी विकास की आवश्यकता:

समावेशी विकास न केवल आर्थिक विकास है बल्कि यह एक सामाजिक एवं नैतिक अनिवार्यता भी है। समावेशी विकास के अभाव में कोई भी देश अपना विकास नहीं कर सकता है। निम्नलिखित संदर्भों में हम समावेशी विकास की महत्ता को समझ सकते हैं-

  • समावेशी विकास, धारणीय विकास के लिये आवश्यक है यदि विकास धारणीय नहीं होगा तो अर्थव्यवस्था में गिरावट की स्थिति उत्पन्न होगी।
  • समावेशी विकास न होने पर आय वितरण में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होगी जिससे धन का संकेंद्रण कुछ ही लोगों के पास होगा, परिणामस्वरूप मांग में कमी आएगी तथा GDP वृद्धि दर में भी कमी होगी।
  • एकसमान समावेशी विकास न हो पाने के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में विषमता में वृद्धि होती है जिससे वंचित वर्ग विकास की मुख्य धारा से नहीं जुड़ पाते है।
  • समावेशी विकास के अभाव के चलते कभी-कभी देश में असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है परिणामस्वरूप देश की भौगोलिक सीमा में सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद जैसी विघटनकारी प्रवृत्तियों का जन्म होता है।

समावेशी विकास के समक्ष चुनौतियाँ:

  • गॉव में बुनियादी सविधाएँ न होने के कारण गाँव से लोग शहरों की तरफ पलायन करते हैं। इसके चलते शहरों में जनसंख्या का दवाब बढ़ता है।
  • शहरी क्षेत्रों की तरफ पलायन से कृषि अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है जिससे कृषि उत्पादकता में कमी दर्ज की जा रह है।
  • भ्रष्टाचार भी देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालता है जो समावेशी विकास की गति में बाधा उत्पन्न करता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी स्थायी एवं दीर्घकालीन रोज़गार साधनों की ज़रूरत है क्योंकि मनरेगा एवं अन्य कई रोज़गारपरक योजनाओं का क्रियान्वयन ग्रामीण क्षेत्रों में किया तो जा रहा है परंतु इन्हें रोज़गार के स्थायी साधनों में शामिल नहीं किया जा सकता है।

आगे की राह:

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2030 तक गरीबी के सभी रूपों (बेरोज़गारी, निम्न आय, गरीबी इत्यादि) को समाप्त करने का लक्ष्य सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल के लक्ष्य-1 में निर्दिष्ट किया गया हैI चूँकी कृषि क्षेत्र देश में कुल श्रम बल के आधे श्रम बल को रोज़गार उपलब्ध कराता है। इसके अलावा सरकार द्वारा भी वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है परंतु इस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति उत्पादकता काफी कम है जिसके कारण यह गरीबी के सबसे उच्चतम क्षेत्र से जुड़ी है। अत: यदि भारत में तीव्र समावेशी विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना है तो कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत होगीI हालाँकि 1.21 बिलियन जनसंख्या वाले देश में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि विकास के लाभ को समाज के सभी वर्गों और सभी हिस्सों तक कैसे पहुँचाया जाए तथा यहीं पर तकनीक के उपयुक्त इस्तेमाल की भूमिका सामने आती है। हाल हीं में शुरू किया गया डिजिटल इंडिया कार्यक्रम इस चुनौती का सामना करने के लिये एक अच्छी पहल है।

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