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मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सरपंच की वित्तीय शक्तियाँ वापस लेने का निर्णय बरकरार रखा
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में भ्रष्टाचार के आरोप में ग्राम पंचायत के सरपंच की वित्तीय शक्तियाँ वापस लेने के ज़िला पंचायत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) के निर्णय को बरकरार रखा है।
- यह कार्रवाई सरपंच के खिलाफ रिश्वत मांगने के आरोप में लोकायुक्त द्वारा मामला दर्ज किये जाने के बाद की गई।
मुख्य बिंदु
- मामले से संबंधित तर्क:
- सरपंच ने आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि CEO ने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य किया है, क्योंकि कोई विशिष्ट प्रावधान केवल आपराधिक मामला दर्ज होने पर वित्तीय शक्तियों को वापस लेने की अनुमति नहीं देता है।
- उच्च न्यायालय का निर्णय:
- उच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश पंचायत (CEO की शक्तियाँ एवं कार्य) नियम, 1985 का संदर्भ दिया।
- न्यायालय ने कहा कि CEO के पास पंचायतों पर पर्यवेक्षण और नियंत्रण की शक्तियाँ हैं, जिसमें आवंटित धन का उचित उपयोग सुनिश्चित करना भी शामिल है।
- भ्रष्टाचार के आरोपों पर पंचायत प्रतिनिधि की वित्तीय शक्तियाँ वापस लेना CEO के अधिकार क्षेत्र में आता है।
- परिणामस्वरूप, उच्च न्यायालय ने सरपंच द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी।
- कानूनी एवं प्रशासनिक निहितार्थ:
- पंचायत प्रशासन में CEO की भूमिका: इस निर्णय में ज़िला पंचायत के CEO की शक्तियों की सीमा को स्पष्ट किया गया है तथा पंचायत गतिविधियों पर पर्यवेक्षी भूमिका और सार्वजनिक धन की सुरक्षा पर प्रकाश डाला गया है।
- भ्रष्टाचार के विरुद्ध जाँच: यह निर्णय आपराधिक मामलों में अंतिम निर्णय से पहले ही समय पर हस्तक्षेप की अनुमति देकर ज़मीनी स्तर पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रशासनिक जाँच को सशक्त करता है।
- उचित प्रक्रिया और प्रशासनिक कार्रवाई के बीच संतुलन: जब तक आपराधिक मामला लंबित है, प्रशासनिक प्राधिकारियों को धन के दुरुपयोग से बचने के लिये निवारक उपाय करने का अधिकार है, जो कानूनी उचित प्रक्रिया और शासन जवाबदेही के बीच संतुलन को दर्शाता है।
पंचायती राज संस्थाओं (PRI) का शासन
- स्थानीय शासन राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आता है तथा पंचायती राज संस्थाएँ संबंधित राज्य पंचायती राज अधिनियमों के अनुसार कार्य करती हैं।
- 73वें संविधान संशोधन अधिनियम (1992) ने त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली की स्थापना की और महिलाओं के लिये 1/3 आरक्षण अनिवार्य किया, जिसे बाद में 21 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों में बढ़ाकर 50% कर दिया गया।
- अनुच्छेद 243D पंचायती राज संस्थाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण का प्रावधान करता है।
- संविधान का अनुच्छेद 40, जो राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत है, राज्य को ग्राम पंचायतों की स्थापना करने तथा उन्हें स्वशासी इकाइयों के रूप में कार्य करने के लिये आवश्यक शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करने का अधिकार देता है।
- अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (पेसा) अधिनियम, 1996, अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभाओं को प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और जनजातीय संस्कृति और आजीविका की रक्षा के लिये विशेष शक्तियाँ प्रदान करता है।

