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झारखंड में सिकल सेल रोग पर नियंत्रण
चर्चा में क्यों?
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विश्व सिकल सेल जागरूकता दिवस (19 जून) पर सिकल सेल रोग के उन्मूलन के लिये झारखंड की प्रतिबद्धता दोहराई और उपचार तथा जागरूकता हेतु व्यापक दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया।
मुख्य बिंदु
- मुख्यमंत्री ने सिकल सेल रोग के उन्मूलन के लिये जागरूकता बढ़ाना तथा शीघ्र निदान और उपचार सुनिश्चित करने के लिये स्क्रीनिंग बढ़ाने पर ज़ोर दिया।
- उन्होंने इस बीमारी से निपटने के लिये सरकारी निकायों, स्वास्थ्य पेशेवरों और यूनिसेफ जैसे संगठनों से सामूहिक प्रयास करने का आग्रह किया।
- विश्व सिकल सेल रोग दिवस: यह प्रत्येक वर्ष 19 जून को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 दिसंबर 2008 को एक प्रस्ताव पारित कर सिकल सेल रोग को सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में मान्यता दी।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी एस.सी.डी. को प्रथम आनुवंशिक रोगों में से एक माना है।
सिकल सेल रोग (SCD)
- परिचय:
- SCD एक आनुवंशिक विकार है, जिसमें असामान्य हीमोग्लोबिन के कारण लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC) कठोर और हंसुली (sickle) के आकार की हो जाती हैं, जिससे ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम हो जाती है।
- लक्षण:
- क्रोनिक एनीमिया – थकान और कमज़ोरी का कारण बनता है।
- दर्दनाक प्रकरण – अचानक और तीव्र दर्द, जिसे सिकल सेल संकट कहा जाता है।
- विकास और यौवन में विलंब।
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उपचार:
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संशोधित झरिया मास्टर प्लान (JMP)
चर्चा में क्यों?
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने झारखंड के झरिया कोयला क्षेत्र में आग, भूमि धंसाव तथा प्रभावित परिवारों के पुनर्वास से संबंधित समस्याओं के समाधान हेतु संशोधित झरिया मास्टर प्लान (JMP) को स्वीकृति प्रदान कर दी है।
मुख्य बिंदु
संशोधित झरिया मास्टर प्लान (JMP) के बारे में
- कुल वित्तीय परिव्यय:
- संशोधित योजना के कार्यान्वयन के लिये कुल वित्तीय परिव्यय 5,940.47 करोड़ रुपए है।
- चरणबद्ध दृष्टिकोण के तहत आग, भूस्खलन से निपटने तथा सबसे संवेदनशील स्थलों के परिवारों के पुनर्वास को प्राथमिकता दी जाएगी।
- आजीविका अनुदान और सहायता:
- संशोधित योजना कानूनी शीर्षक धारकों (LTH) और गैर-कानूनी शीर्षक धारकों (गैर-LTH) दोनों परिवारों को 1 लाख रुपए का आजीविका अनुदान प्रदान करती है।
- इसके अलावा, LTH और गैर-LTH दोनों परिवारों के लिये संस्थागत ऋण पाइपलाइन के माध्यम से 3 लाख रुपए तक की ऋण सहायता उपलब्ध होगी।
- इस योजना का उद्देश्य पुनर्वासित परिवारों के लिये आर्थिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने हेतु लक्षित कौशल विकास कार्यक्रमों तथा आय-सृजन के अवसरों के माध्यम से स्थायी आजीविका उत्पन्न करना है।
- बुनियादी ढाँचे का विकास:
- पुनर्वास स्थलों को आवश्यक बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं के साथ विकसित किया जाएगा, जिसमें सड़क, बिजली, जलापूर्ति, सीवरेज, स्कूल, अस्पताल, कौशल विकास केंद्र, सामुदायिक हॉल तथा अन्य सामान्य सुविधाएँ शामिल होंगी।
- कार्यान्वयन और समर्थन:
- इन प्रावधानों का कार्यान्वयन संशोधित झरिया मास्टर प्लान के कार्यान्वयन हेतु गठित समिति की सिफारिशों के अनुसार किया जाएगा।
- आजीविका पहलों को समर्थन देने के लिये झरिया वैकल्पिक आजीविका पुनर्वास कोष की स्थापना की जाएगी, जिससे आजीविका संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
- क्षेत्र में संचालित बहु-कौशल विकास संस्थानों के सहयोग से कौशल विकास कार्यक्रम भी संचालित किये जाएंगे।
झरिया कोलफील्ड के बारे में
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- भारत के झारखंड में स्थित झरिया कोलफील्ड वर्ष 1916 से संचालित है तथा कोयला खनन का कार्य भी उसी समय से आरंभ हुआ था।
- इसे कोयला खदानों में लगी आग की समस्या से निरंतर जूझना पड़ रहा है, विशेष रूप से राष्ट्रीयकरण से पूर्व अपनाई गई अवैज्ञानिक खनन विधियों के कारण।
- झरिया में आग:
- इन आगों ने पर्यावरण तथा स्थानीय आबादी पर गंभीर प्रभाव डाला है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी संकट, भूमि क्षरण तथा भू-धँसाव की स्थितियाँ उत्पन्न हुई हैं।
- वर्ष 1916 में पहली बार आग लगने की सूचना मिलने के बाद से झरिया भूमिगत कोयला आग से प्रभावित रहा है, जिसका मुख्य कारण पूर्ववर्ती निजी ऑपरेटरों की अव्यवस्थित खनन प्रथाएँ थीं।
- राष्ट्रीयकरण और सरकारी हस्तक्षेप:
- भारत में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद, पोलिश टीम और भारतीय विशेषज्ञों सहित विशेषज्ञों ने वर्ष 1978 में लगी आग का अध्ययन किया था।
- भारत सरकार ने इस क्षेत्र में आग और भूस्खलन संबंधी मुद्दों के समाधान हेतु वर्ष 1996 में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था।
- झरिया मास्टर प्लान (2009):
- झरिया मास्टर प्लान को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 में 7,112.11 करोड़ रुपए के अनुमानित निवेश के साथ अनुमोदित किया गया था।
- इस योजना का उद्देश्य कोयला आग का प्रबंधन करना, प्रभावित समुदायों का पुनर्वास करना तथा सुरक्षित कोयला निष्कर्षण सुनिश्चित करना था, जिसकी अवधि दो वर्ष के पूर्व-कार्यान्वयन चरण सहित कुल दस वर्ष की निर्धारित थी।
- वर्ष 2021 में मास्टर प्लान की समाप्ति के बाद, कोयला मंत्रालय ने अग्नि प्रबंधन और पुनर्वास परियोजनाओं की निगरानी और वित्तपोषण जारी रखा।
- वर्ष 2022 में गठित एक समिति ने आग बुझाने, मुआवज़ा देने तथा पुनर्वासित परिवारों के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचा उपलब्ध कराने हेतु आगे की कार्रवाई की सिफारिश की।
- अग्नि प्रबंधन में प्रगति:
- वैज्ञानिक उपायों और प्रौद्योगिकी के माध्यम से झरिया में अग्नि स्थलों की संख्या को 77 से घटाकर 27 कर दिया गया।
- सतह सीलिंग, ट्रेंचिंग तथा निष्क्रिय गैस निस्सारण जैसी तकनीकों के क्रियान्वयन से अग्नि प्रभावित क्षेत्र को 17.32 वर्ग किमी से घटाकर 1.80 वर्ग किमी कर दिया गया।
- पुनर्वास और पुनर्स्थापन:
- इस योजना का मुख्य ध्यान आग और भूस्खलन से प्रभावित परिवारों के पुनर्स्थापन पर था, जिसके अंतर्गत BCCL (भारत कोकिंग कोल लिमिटेड) द्वारा विस्थापित आबादी के लिये आवास निर्माण किया जा रहा था।
- हालाँकि, भूमि मालिकों के प्रतिरोध तथा भूमि अधिकार हस्तांतरण के लिये कानूनी ढाँचे की कमी के कारण पुनर्वास प्रयास जटिल हो गए।
- भूमिगत आग के आकलन में तकनीकी चुनौतियाँ और कोयला निष्कर्षण के लिये भूमि अधिग्रहण को लेकर जनसामान्य की शंकाएँ भी इन प्रयासों की जटिलता को और बढ़ाती रहीं।
- कोयला निष्कर्षण:
- इस क्षेत्र में पर्याप्त कोयला भंडार उपलब्ध है, जिससे जून 2023 तक लगभग 43 मिलियन टन कोयला निकाला जा सकता है।
- कोयला निष्कर्षण अब भी एक प्राथमिक उद्देश्य बना हुआ है तथा उत्पादन लक्ष्यों के साथ-साथ पर्यावरण और सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं के संतुलन के प्रयास भी जारी हैं।

