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विश्व सिकल सेल दिवस

  • 20 Jun 2020
  • 10 min read

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व सिकल सेल दिवस, सिकल सेल रोग

मेन्स के लिये:

सिकल सेल रोग तथा इसके रोकथाम एवं प्रबंधन हेतु भारत सरकार के प्रयास

संदर्भ

राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सिकल सेल रोग (Sickle Cell Disease- SCD) के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये प्रत्येक वर्ष 19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस (World Sickle Cell Day) के रूप में मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने आधिकारिक तौर पर वर्ष 2008 में यह घोषणा की थी कि प्रत्येक वर्ष 19 जून को विश्व सिकल सेल दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
  • यह दिवस सिकल सेल रोग, इसके उपचार के उपायों के बारे में जागरूकता बढाने तथा विश्व भर में इस रोग पर प्रभावी नियंत्रण प्राप्त करने के लिये मनाया जाता है।
  • प्रथम विश्व सिकल सेल दिवस वर्ष 2009 में मनाया गया था।
  • सिकल सेल दिवस के अवसर पर जनजातीय कार्य मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs) , फिक्की (FICCI), अपोलो हॉस्पिटल्स, नोवर्टिस और ग्लोबल अलायंस ऑफ सिकल सेल डिज़ीज़ आर्गेनाईज़ेशन (Global Alliance of Sickle Cell Disease Organizations- GASCDO) द्वारा नेशनल सिकल सेल कॉन्क्लेव (National Sickle Cell Conclave) नामक वेबिनार का आयोजन किया गया।
    • ग्लोबल अलायंस ऑफ सिकल सेल डिज़ीज़ आर्गेनाईज़ेशन की स्थापना 10 जनवरी, 2020 को एम्स्टर्डम, नीदरलैंड में की गई। 
    • यह विश्व में सिकल सेल रोग (SCD) से पीड़ित व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करने के लिये स्थापित पहली इकाई है।
  • विश्व सिकल सेल दिवस 2020 के अवसर पर पिरामल फाउंडेशन द्वारा तैयार सिकल सेल सपोर्ट पोर्टल लॉन्च किया गया है। इसके अलावा द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (Economist Intelligence Unit- EIU) तथा नोवर्टिस इंडिया लिमिटेड द्वारा तैयार 'स्टेपिंग आउट ऑफ द शैडोज़- कॉम्बैटिंग सिकल सेल डिज़ीज़ इन इंडिया' (Stepping out of the shadows – Combating Sickle Cell Disease in India) नामक रिपोर्ट भी जारी की गई।

सिकल सेल रोग

(Sickle Cell Disease- SCD)

Sickle-cell

  • सिकल सेल रोग (SCD) या सिकल सेल एनीमिया (रक्ताल्पता) लाल रक्त कोशिकाओं से जुडी एक प्रमुख वंशानुगत विकार है जिसमें इन लाल रक्त कोशिकाओं का आकार अर्द्धचंद्र/हंसिया (Sickle) जैसा हो जाता है।
  • ये असामान्य आकार की लाल रक्त कोशिकाएँ (Red Blood Cells- RBCs) कठोर तथा चिपचिपी हो जाती हैं और रक्त वाहिकाओं में फँस जाती हैं, जिससे शरीर के कई हिस्सों में रक्त एवं ऑक्सीजन का प्रवाह या तो कम हो जाता है या रुक जाता है। यह आसामान्य आकार RBCs के जीवनकाल को भी कम करता है तथा एनीमिया (रक्ताल्पता) का कारण बनता है, जिसे सिकल सेल एनीमिया के नाम से जाना जाता है।

भारत में सिकल सेल रोग

  • भारत में यह बीमारी मुख्य रूप से पूर्वी गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिमी ओडिशा और उत्तरी तमिलनाडु और केरल में नीलगिरि पहाड़ी क्षेत्रों में व्याप्त है।
  • ओडिशा में, यह रोग आदिवासी समुदायों में अधिक प्रचलित है। उल्लेखनीय है कि ओडिशा सरकार से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत संबलपुर ज़िले के बुरला में स्थित वीर सुरेंद्र साईं इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ एंड रिसर्च (Veer Surendra Sai Institute of Medical Sciences and Research- VIMSAR) के परिसर में अपना पहला सिकल सेल संस्थान स्थापित किया है। इसके अलावा संस्थान ने पश्चिमी ओडिशा के 12 ज़िलों में सिकल सेल इकाइयाँ भी स्थापित की हैं।
  • विभिन्न राज्यों द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, 1 करोड़ 13 लाख 83 हज़ार 664 लोगों की स्क्रीनिंग में से लगभग 9 लाख 96 हज़ार 368 (8.75%) में यह व्याधि परिलक्षित हुई और 9 लाख 49 हज़ार 57 लोगों में लक्षण और 47 हज़ार 311 लोगों में बीमारी पाई गई ।
  • भारत में यह बीमारी जनजाति समूहों में अधिक व्याप्त है और प्रत्येक 86 बच्चों में से एक बच्चे में यह बीमारी पाई जाती है।

SCD के रोकथाम एवं प्रबंधन हेतु भारत सरकार के प्रयास

  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग इस रोग के इलाज का अनुसंधान कर रही है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से राज्यों में कार्यशालाएं आयोजित की गयी है। बीमारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए राज्यों को प्रोटोकॉल जारी किये गए हैं।
  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK), जिसका उद्देश्य जन्म से लेकर18 वर्ष तक की आयु तक के बच्चों में विशिष्ट रोग सही 4D अर्थात् चार प्रकार की बीमारियों (जन्म दोष, बाल्यावस्था की बीमारियाँ, कमियाँ और विकासात्मक विलम्ब एवं अशक्तता) की शीघ्र पहचान और प्रारंभिक हस्तक्षेप करना है, के तहत सिकल सेल एनीमिया को भी शामिल किया गया है।
  • वर्ष 2016 में थैलेसीमिया और सिकल सेल रोग से पीड़ित रोगियों के बेहतर भविष्य, उनकी देखभाल में सुधार तथा जाँच एवं जागरूकता रणनीतियों के माध्यम से हीमोग्लोबिन रुग्णता (Hemoglobinopathies) के प्रसारण को कम करने के लिये भारत में हीमोग्लोबिन रुग्णता की रोकथाम और नियंत्रण (Prevention and Control of Hemoglobinopathies in India) दिशा-निर्देश जारी किये गए। 
  • वर्ष 2018 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने भारत में हीमोग्लोबिन रुग्णता- थैलेसीमिया, सिकल सेल रोग और भिन्न हेमोग्लोबिन की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये मसौदा नीति (Draft Policy For Prevention and Control of Hemoglobinopathies- Thalassemia, Sickle Cell Disease and variant Hemoglobins in India) जारी की थी।
  • राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के अनुसार, सभी रक्त बैंकों के लिये यह अनिवार्य है कि वे उन रोगियों के लिये निःशुल्क रक्त/रक्त घटक उपलब्ध कराएँ जिन्हें सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया और हीमोफिलिया जैसे रोगों के लिये जीवन रक्षक उपायों के रूप में आवर्ती रक्त आधान की आवश्यकता होती है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • वैश्विक जनसंख्या का अनुमानित 5 प्रतिशत हीमोग्लोबिन विकार विशेष रूप से सिकल सेल रोग तथा थैलेसीमिया के जीन का वाहक है।
  • हीमोग्लोबिन विकार वंशानुगत रक्त विकार है जो सामान्यतः माता-पिता (आम तौर पर स्वस्थ माता-पिता) दोनों से हीमोग्लोबिन जीन में उत्परिवर्तन की आनुवंशिकता के कारण होता है।
  • प्रत्येक वर्ष 300,000 से अधिक बच्चे गंभीर हीमोग्लोबिन विकारों के साथ जन्म लेते हैं।
  • सिकल सेल एनीमिया वंशानुगत है न कि संक्रामक।
  • अफ्रीका और एशिया में यह सबसे सामान्य सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है।

आगे की राह:

सिकल सेल रोग के इलाज हेतु विश्व में कोई औषधि विकसित नहीं हुई है। SCD के रोगी को जीवित रखने के लिये आवर्ती रक्त आधान (Blood Transfusion) की आवश्यकता होती है। स्टेम सेल-थेरेपी, जीन-थेरेपी एवं बोनमैरो ट्रांसप्लान्टेशन के ज़रिये इस बीमारी का इलाज किया तो जाता है लेकिन उसमें भी रोगी के ज्यादा समय तक जीवित रहने की गारंटी नहीं होती। साथ ही ये तकनीकें इतनी महंगी हैं कि सभी के लिये सुलभ नहीं हो सकतीं। इसके निराकरण के लिये जन जागरूकता और इलाज आवश्यक है। यद्यपि सरकार इस बीमारी से निजात पाने के लिये कृतसंकल्प है लेकिन कारगर राष्ट्रीय योजना के अभाव में इस बीमारी को नियंत्रित कर पाना कठिन है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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