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बिहार का वार्षिक बाढ़ संकट
चर्चा में क्यों?
बिहार को अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति और दशकों पुरानी बाढ़ नियंत्रण पद्धति के कारण प्रति वर्ष विनाशकारी बाढ़ का सामना करना पड़ता है।
मुख्य बिंदु
- बिहार की बाढ़-प्रवण प्रकृति
- बिहार भारत का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य है, जहाँ उत्तर बिहार की 76% आबादी प्रभावित है।
 - यह क्षेत्र वर्षा और हिमपात से उत्पन्न नदियों से घिरा हुआ है, जिससे बाढ़ आने की संभावना अधिक रहती है।
 - बिहार नेपाल के नीचे स्थित है, और हिमालयी नदियाँ (कोसी, गंडक, बागमती) राज्य में बहती हैं।
 - इन नदियों में हिमालय की ढीली मृदा के कारण अत्यधिक मात्रा में तलछट होता है, जिसके कारण तीव्र वर्षा के दौरान ये उफान पर आ जाती हैं।
 
 - तटबंधों का प्रभाव: 
- बाढ़ को नियंत्रित करने के लिये 1950 के दशक में कोसी जैसी नदियों पर तटबंध बनाए गए थे।
 - तटबंधों के कारण नदी के मार्ग संकीर्ण हो गए, जिससे तलछट जमा हो गया और नदी तल ऊँचा हो गया, जिससे नदियों के अतिप्रवाह की संभावना बढ़ गई।
 - कोसी, जिसे "बिहार का शोक" कहा जाता है, तटबंधों के बावजूद प्रतिवर्ष बाढ़ आती है।
 
 - हालिया बाढ़ (2024): 
- अत्यधिक वर्षा और नेपाल द्वारा कोसी बैराज से जल छोड़े जाने के कारण उत्तर बिहार में भीषण बाढ़ आ गई।
 - विभिन्न ज़िलों में तटबंध टूट गए हैं, जिससे 11.84 लाख लोग प्रभावित हुए हैं।
 - बीरपुर बैराज से 6.6 लाख क्यूसेक जल छोड़ा गया, जो छह दशकों में सबसे अधिक है।
 
 - आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: 
- बाढ़ के परिणामस्वरूप फसल की हानि, पशुधन विनाश, बुनियादी ढाँचे को नुकसान, तथा मज़बूरन पलायन होता है।
 - बिहार सरकार बाढ़ राहत और प्रबंधन पर प्रतिवर्ष 1,000 करोड़ रुपए व्यय करती है।
 
 - प्रस्तावित समाधान: 
- संरचनात्मक: कोसी एवं अन्य नदियों पर बाँध एवं अतिरिक्त बैराज के प्रस्ताव।
 - गैर-संरचनात्मक: बाढ़ की चेतावनियों में सुधार, प्रतिक्रिया समय में सुधार, जन जागरूकता, तथा बाढ़ के प्रभावों को कम करने के लिये प्रशिक्षण।
 
 

            
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