राजस्थान
अरावली हरित विकास परियोजना
- 12 Aug 2025
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चर्चा में क्यों?
राजस्थान सरकार ने अरावली पर्वतमाला के किनारे 19 ज़िलों में 3,700 हेक्टेयर क्षेत्र में पारिस्थितिकी पुनरुद्धार और मरुस्थलीकरण नियंत्रण के उद्देश्य से अरावली हरित विकास परियोजना शुरू की है।
प्रमुख बिंदु
- परियोजना के बारे में:
- पाँच वर्षों तक चलने वाली 250 करोड़ रुपए की इस परियोजना का उद्देश्य अरावली पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना, भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण से निपटना है, जिसमें पहले वर्ष वृक्षारोपण पर तथा अगले वर्ष रखरखाव पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- यह परियोजना अरावली ग्रीन वॉल परियोजना के अनुरूप है जिसका उद्देश्य दिल्ली से अहमदाबाद तक अरावली में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करना है।
- भौगोलिक लक्ष्य:
- यह परियोजना अलवर से सिरोही तक 19 ज़िलों में फैली हुई है, जो लगभग 550 किलोमीटर (राजस्थान में अरावली पर्वतमाला का 80%) क्षेत्र को कवर करती है।
- निगरानी और निरीक्षण:
- इस परियोजना की निगरानी केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वनस्पतियों तथा जीवों की बहाली, भूजल स्तर में परिवर्तन एवं सूक्ष्म जलवायु परिवर्तन जैसे संकेतकों का उपयोग करके की जाएगी।
- परियोजना लक्ष्य:
- बिगड़ते अरावली पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली।
- थार रेगिस्तान से आने वाले रेतीले तूफानों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) तक पहुँचने से रोकना, उत्तर भारत के लिये एक पारिस्थितिक रक्षा तंत्र के रूप में कार्य करेगा।
- मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण और वनों की कटाई के प्रतिकूल प्रभावों से निपटना।
- जैवविविधता, भूजल पुनर्भरण और दीर्घकालिक पारिस्थितिक स्थिरता में सुधार करने में मदद करता है।
- वृक्षारोपण रणनीति:
- मृदा स्थिरीकरण के लिये देशी और जलवायु-लचीली प्रजातियाँ, जिनमें खेजड़ी (राज्य वृक्ष), बबूल, ढाक, नीम, बेर तथा सेवन व धामन जैसी देशी घासें शामिल हैं।
विभिन्न जलवायु (सीकर में शुष्क क्षेत्र से लेकर डूंगरपुर और सिरोही में आर्द्र क्षेत्र) के प्रति उनकी अनुकूलन क्षमता के आधार पर प्रजातियों का चयन किया गया। - वृक्षारोपण केवल वन भूमि पर किया जाएगा, मानव निवास या अतिक्रमण वाले क्षेत्रों से बचा जाएगा
- जयपुर और सीकर जैसे शुष्क क्षेत्रों में पौधों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिये सावधानीपूर्वक रखरखाव के साथ दीर्घकालिक स्थिरता पर ज़ोर दिया जाता है।
- मृदा स्थिरीकरण के लिये देशी और जलवायु-लचीली प्रजातियाँ, जिनमें खेजड़ी (राज्य वृक्ष), बबूल, ढाक, नीम, बेर तथा सेवन व धामन जैसी देशी घासें शामिल हैं।