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राजस्थान

खेजड़ी वृक्षों की कटाई

  • 24 Jul 2025
  • 18 min read

चर्चा में क्यों?

राजस्थान के थार रेगिस्तान, विशेषकर बीकानेर ज़िले में एक गंभीर पर्यावरणीय संघर्ष उभरकर सामने आया है, जहाँ सौर ऊर्जा कंपनियाँ भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में सदियों पुराने खेजड़ी वृक्षों की कटाई कर रही हैं।

हरियाली’ (पर्यावरण संरक्षण) और ‘हरित ऊर्जा (सौर ऊर्जा विकास) के मध्य उत्पन्न इस संघर्ष ने स्थानीय किसानों एवं पर्यावरणविदों के व्यापक विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया है, जो कठोर वृक्ष संरक्षण कानूनों की माँग कर रहे हैं।

मुख्य बिंदु 

खेजड़ी वृक्ष के बारे में: 

  • खेजड़ी या खेजरी (Prosopis cineraria), जिसे राजस्थान में शमी के नाम से भी जाना जाता है, एक कठोर, सूखा-प्रतिरोधी वृक्ष है, जो रेगिस्तानी पर्यावरण में अस्तित्व के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
  • राजस्थान के पश्चिमी ज़िलों के खेतों में सैकड़ों वर्ष पुराने खेजड़ी वृक्ष आसानी से मिल जाते हैं। 
  • खेजड़ी के पत्ते, जिन्हें स्थानीय रूप से 'लूक' कहा जाता है, ऊँट, बकरी, भेड़ आदि जैसे पालतू पशुओं के लिये पौष्टिक आहार के रूप में उपयोग किये जाते हैं। 

मान्यता: 

  • खेजड़ी को वर्ष 1983 में आधिकारिक तौर पर राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था। 
  • इसके साथ ही राज्य सरकार ने इसकी सुरक्षा हेतु प्रतिबंध लगाए, जिनमें राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1965 तथा राजस्थान वन अधिनियम, 1953 के तहत खेजड़ी वृक्ष की कटाई पर प्रतिबंध शामिल है।

सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महत्व: 

  • वर्ष 1730 ई. में, जोधपुर से लगभग 26 किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित एक छोटा-सा गाँव भारत के प्रथम और तीव्र पर्यावरण संरक्षण आंदोलनों में से एक का केंद्र बना।
  • इस आंदोलन के 'शहीद' (विशेष रूप से अमृता देवी) बिश्नोई समुदाय के सदस्य थे, जिन्होंने खेजड़ी वृक्षों की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी।
  • 1970 के दशक में यह बलिदान चिपको आंदोलन की प्रेरणा बना।

संरक्षण के लिये वैकल्पिक रणनीतियाँ:

  • पर्यावरणविदों का तर्क है कि सौर ऊर्जा का उत्पादन ऐसे विकल्पों के माध्यम से भी किया जा सकता है, जिनके लिये वृहद स्तर पर वनों की कटाई आवश्यक नहीं है। 
  • उदाहरणस्वरूप, सौर पैनलों की स्थापना छतों, सरकारी भवनों अथवा नहरों की सतह पर पर की जा सकती है (जैसे पंजाब में सफलतापूर्वक लागू परियोजनाएँ)।
  • हालाँकि ये उपाय महँगे सिद्ध हो सकते हैं, किंतु ये इस क्षेत्र की जैवविविधता संरक्षण में सहायक सिद्ध होंगे।

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